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Tuesday, September 15, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 27 काढा के दोहे

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 27

काढा के दोहे


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http://freedhyan.blogspot.com/2018/11/blog-post_18.html?m=0

Bhakt Lokeshanand Swami: सूर्य निकलने पर अंधकार कैसे बचे? रामजी जहाँ छू दें, वहाँ अहंकार कैसे बचे? अहंकारियों से जो हिल तक नहीं रहा था, रामजी के छूते ही, हमेशा के लिए उठ गया, टूट गया।

देखें, धनुष के दो टुकड़े हो गए, माने देह अलग, स्वरूप अलग। देहाध्यास टूट गया, जड़ अलग, चेतन अलग।

पर धनुष की रस्सी वैसी की वैसी ही रही, वह नहीं टूटी। रस्सी माने गुण, गुण तो रहे, पर गुणों का अभिमान न रहा।

रामजी और सीताजी मिल गए, सुख और शांति मिल गए। यह सुख और शांति का मिल जाना ही धर्म का फल है।

जैसे ज्ञान भक्ति वैराग्य तीन हैं, सरस्वती गंगा यमुना तीन हैं, कौशल्या सुमित्रा कैकेयी तीन हैं, रामजी सीताजी लक्ष्मणजी भी तीन हैं। और धर्म के लिए तीनों चाहिएँ। वह तो साधन की, निष्ठा की न्यूनाधिक प्रधानता से मार्ग का नाम दिया जाता है, चाहिए तीनों ही।

रामजी ज्ञान हैं, भक्ति वैराग्य पूर्ण ज्ञान।

सीताजी भक्ति हैं, ज्ञान वैराग्य पूर्ण भक्ति।

लक्ष्मणजी वैराग्य हैं, ज्ञान भक्ति पूर्ण वैराग्य।

पालन तीनों का ही करना पड़ता है।

सीताजी ने रामजी को जयमाला पहना दी। आज से सीताजी उन सबको अपना मान लेंगी, जो रामजी को अपना और जिनको रामजी अपना मानते हैं। भक्ति तो भगवान की हैं, वे उसी से संबंध मानती हैं जिसका संबंध रामजी से हो। जो भगवान को अपना नहीं मानता, उसे वे अपना कैसे मानें? आप भी उसी को अपना मानना। जो भगवान को अपना नहीं मानता, वो आपको क्या मानेगा?

यहाँ रामकथा में पहला सोपान बालकाण्ड संपूर्ण हुआ। कल अयोध्याकाण्ड प्रारंभ होगा। अब आप साधन में लगें।

बिन्दु जी कहते हैं-

"यदि नाथ का नाम दयानिधि है

तो दया भी करेंगे कभी ना कभी।

दुखहारी हरि दुखिया जन के,

दुख कष्ट हरेंगे कभी ना कभी॥

हम द्वारे पे तेरे आन पड़े,

मुद्दत से इसी जिद्द पर हैं अड़े।

जब सिन्धु तरे जो थे बड़े से बड़े,

तो बिन्दु भी तरेंगे कभी ना कभी॥"

अब विडियो देखें- भगवान से संबंध

https://youtu.be/OlIr0r4jN3Q

Bhakt Lokeshanand Swami: बड़ी पुरानी कहानी है। एक बूढ़ा पिता और उसका किशोर पुत्र, अपने मरियल गधे के साथ किसी बड़े नगर की ओर निकले। गधे की लगाम पकड़े दोनों पैदल ही चल रहे थे।

रास्ते में एक गाँव आया तो गाँव वाले हंसकर कहने लगे- देखो! कितने मूर्ख हैं। गधा साथ है, फिर भी पैदल चल रहे हैं।

पिता ने अपने पुत्र को गधे पर बिठा दिया।

पर अगले गाँव में भी गाँव वाले हंसकर कहने लगे- यह लड़का कितना मूर्ख है, बूढ़े बाप को पैदल चला कर खुद चढ़ा बैठा है।

पुत्र नीचे उतर आया और अब पिता गधे पर बैठ गया।

पर अगले गाँव में भी गाँव वाले हंसकर कहने लगे- यह बूढ़ा कितना मूर्ख है, बेचारे बच्चे को पैदल चला कर खुद चढ़ा बैठा है।

अब पिता पुत्र दोनों गधे पर बैठ गए।

पर अगले गाँव में भी गाँव वाले हंसकर कहने लगे- ये दोनों कितने मूर्ख हैं, दोनों के दोनों बेचारे गधे पर चढ़े बैठे हैं।

हार कर दोनों नीचे उतर गए, और उन्होंने गधे को ही अपने सिर पर उठा लिया।

अब आगे क्या हुआ होगा, आप समझदार हैं, समझते ही होंगे।

निश्चित ही हम इस कहानी के पात्र नहीं हैं। यह हमारी कहानी नहीं है। पर हाल हमारा भी यही है।

इसीलिए लोकेशानन्द कहता है कि किसी एक श्रेष्ठ को चुनो, जो पूछना है उसी एक से पूछो और फिर उसी एक की सुनो। गली गली दरवाजे दरवाजे मत झांकते फिरो।

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*सुखं शेते सत्यवक्ता सुखं शेते मितव्ययी ।*

*हितभुक् मितभुक् चैव तथैव विजितेन्द्रिय: ॥*

सत्य बोलनेवाला , मर्यादित खर्चा करनेवाला , हितकारक पदार्थ जरूरी प्रमाण मे खानेवाला , तथा जिसने इन्द्रियोंपर विजय पाया है , वह चैन की नींद सोता है.

The one who speaks truth, one who spends less, One who eats nutritional food in limited quantity and the one who has conquered the senses, gets peaceful sleep.

*शुभोदयम@ लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar verma*

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

अभ्यस्तै: सकलै: सुदीर्घमणिलै व् वर्याधिप्रदै र्दुष्करै:

प्राणायाम शतैरनेक करनै: दुःखात्मकैर्दुजयै:।

यस्मिन्नभ्युदिते विनश्यति बली वायु: स्वयं तत् क्षणात्

प्राप्तुं तत्सहजं स्वभावमनिशं सेवध्वमेकं गुरुम्।।53।।


अर्थ: प्राणायामों के अनेक प्रकार हठ योग प्रक्रिया में बतलाए गए है, (आंतरिक-कुम्भक, बाह्य कुम्भक, स्तम्भवृति, या केवल कुम्भक, भस्त्रिका, शीतली, भ्रामरी, इत्यादि) प्राणायाम, अभ्यास साध्य है, दीर्घ कालतक करना पड़ता है और भी सैकड़ो प्राणायामों के प्रकार मिलते है, प्राण वायु को रोककर प्राणायाम की क्रिया दुखदायी, बड़ी कठिनता से जीती जाने वाली और अनेक प्रकार की कठिन व्याधियों को उतपन्न करने वाली है। (उपयुक्त अनुभवी मार्गदर्शक, के अभाव से) उपरोक्त सभी प्राणायामों की क्रियाए हानिकारक  और नाना प्रकार के जटिल रोगों को उतपन्न करने वाली होती है। अतः यहाँ साधक को सावधान किया है कि (हे साधक) सहज, स्वाभाविक प्राप्त एक मात्र गुरुदेव की रात दिन सेवा करें।

व्याख्या: इस श्लोक के शब्दार्थों में बहुत कुछ व्याख्या हो चुकी है, अब यहाँ केवल एक बात समझने की है, की किसी शक्ति संपन्न गुरु की शरण ग्रहण कर ली जाय, तो उनकी प्रसन्नता प्राप्ति के बाद उन्ही की कृपा से दुःसाध्य कार्य सुसाध्य हो जाते है और सिद्धयोग के प्रभाव से शक्तिपात के बाद साधन में स्वतः ही प्राणायाम की क्रियाएं अनायास रूप से होने लगती है, तथा प्राण निरोध एवं मनोनिरोध की अवस्था प्राप्त हो जाती है। अतः गुरु शरण ग्रहण करने में ही साधक का कल्याण है।


सुंदर बात है कि अंधेरे में दिखता नहीं है लेकिन अंधेरा दिखता है यानि जिसके पास आँखे है उसे ही अंधेरा दिखता है, जो अंधेरे को देख सकता है वहीं उजाले को भी देख सकता है। दु:ख अंधेरा है और सुख उजाला - सुख का आनन्द वही उठा सकता है जिसने दु:ख को भोगा है। अंधेरे का भी अपना आनन्द है, उजाले में भागते भागते जब हम थक जाते हैं तब विश्राम करने के लिये अंधेरे की आवश्यकता होती है। आनन्द में रहने वाला सुख-दु:ख, उजाले-अंधेरे दोनों में समान रहता है। उसे ही गीता में स्थिर बुद्धि कहा गया है।

यक्ष हास्य कट पेस्ट

*सभी शादी शुदा पुरुषों को समर्पित🙏*


उठो लाल अब आंखे खोलो🙇

बर्तन मांजो कपड़े धोलो👕

झाड़ू लेकर फर्श बुहारो🧹

और किचेन में पोछा मारो 🧼


अलसाओ न, आंखें मूंदो🥱

सब्ज़ी काटो, आटा गूथो🥝

तनिक काम से तुम न हारो🙅‍♂️

घी डालकर दाल बघारो🥘


गमलों में तुम पानी डालो🎍

छत टंकी से गाद निकालो🛢️

देखो हमसे खेल न खेलो🤷🏽‍♀️

छोड़ मोबाइल रोटी बेलो🍪


बिस्तर सारे , धूप में डालो🛌

ख़ाली हो अब काम संभालो💁‍♂️

नहीं चलेगी अब मनमानी 🤦🏻‍♀️

याद दिला दूंगी अब नानी👨‍🚀


ये, आईं है, अजब बीमारी🤭

सब पतियों पे विपदा भारी🤷‍♂️

नाथ अब शरणागत ले लो🙏

कुछ भी हो ये आफत ले लो।👏🏻

😷😷😷😷😷😷😷😷

पति की व्यथा मेरी आवाज में।

Hb 82 P D Vaish: 🌸 प्रभु श्रीराम और माँ जानकी ने स्वयं को विरहाग्नि में डालकरके त्रिताप में जलते हुये जीवों को निकालने की करुणा पूर्ण नरलीला की है।

🌸 राम जी माया के दो भेद बताते हुए कहते हैं की अविद्या माया ‘अति दुःख रूपा है’ जिसके मानस में दो उदाहरण हैं- मंथरा और शूर्पणखा।

🌸 माँ कैकेयी के जीवनमें अविद्या रूपी मंथरा ने संशय जगाकर जीव (भरत) और भगवान (राम) के बीच भेद उत्पन्न करने की कोशिश की।

भरत सजग साधक हैं इसलिये उनका तप साधना के रूप में १४ वर्ष अयोध्या के बाहर झोपड़ी में परिणित हुआ। राजमाता का कठिन तप महलों में रहकर जीवनभर उपेक्षा सहने में कटा।

🌸 मोह रूपी रावण की बहन शूर्पणखा अविद्या की प्रतीक है मानस में जो परमात्मा (राम) और उनकी शक्ति (सीता) में भेद कराना चाहती है।

वैराग्य स्वरूप श्रीलखनजी ने नाक (लज्जा का प्रतीक) और कान (श्रुति) ही हर लिये।

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: 🙏श्री वल्लभ 🙏

चींटी कितनी छोटी ! उसको यदि मुंबई से पूना यात्रा करनी हो, तो लगभग ३-४ जन्म लेना पडेगा । लेकिन यही चींटी पूना जाने वाले व्यक्ति के कपड़े पर चढ़ जाये, तो सहज ही ३-४ घंटे में पूना पहुंच जाएगी कि नहीं !

ठीक इसी प्रकार अपने प्रयास से भवसागर पार करना कितना कठिन ! पता नहीं कई जन्म लग सकते हैं । इसकीअपेक्षा यदि हम गुरू का हाथ पकड लें और उनके बताये सन्मार्ग पर  श्रद्धापूर्वक चलें, तो सोचिये कितनी सरलता से वे आपको  सुख, समाधान व अखंड आनंदपूर्वक भव सागर पार करा सकते हैं !! 😇🙏😇🙏😇🙏😇🙏😇

*हम लोग कितने सौभाग्यशाली हैं, हमारे जीवन में गुरु है ।*

Ba Shetty Hindi: *मुस्कुराइए*

एक औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली

"डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें?"

मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला - "मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें।"

तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा, कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी - "मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी, मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।"

मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी। तब एक दिन,एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।"

"उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है,तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी ख़ुशी मिले। इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी, जो कि बीमार था,के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।"

"हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे ख़ुशी मिलती थी।"

"आज,मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।"

यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी।

लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।

मित्रों! हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।

तो आईये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।

*मुस्कुराइए*

अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।

*मुस्कुराइए*

अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा।

*मुस्कुराइए*

अगर आप एक ग्रहणी है तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम किजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

*मुस्कुराइए*

अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

*मुस्कुराइए*

अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

*मुस्कुराइए*

अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

*मुस्कुराइए*

कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

*मुस्कुराइए*

क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।

*मुस्कुराइए*

क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

*मुस्कुराइए*

क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

*मुस्कुराइए*

क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

*मुस्कुराइए*

क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।

*मुस्कुराइए*

क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।

*मुस्कुराइए*

क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है

और सबसे बड़ी बात

*मुस्कुराइए*

😊 क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है। एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।

इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औराें के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं.

*मुस्कुराइए क्योंकि यही जीवन है*

Hb 82 P D Vaish: Wah kya baat kahi 🙏🙏🙏🌹🌹

http://freedhyan.blogspot.com/2020/01/blog-post_15.html?m=1

Bhakt Lokeshanand Swami: "भव और भाव!"

स्वामी राजेश्वरानंद जी कहते हैं कि संसार में सुनने के लिए दो ही बातें हैं, भगवान की कथा और संसार की व्यथा। जहाँ कथा है, वहाँ भाव है, जहाँ व्यथा है, वहाँ भव है।

जहाँ भव है, वहाँ भाव नहीं, जहाँ भाव है, वहाँ भव नहीं । भाव का अभाव भव है, भव का उपाय भाव है। भव में डूबे तो मरे, भाव में डूबे तो तरे। यह कथा भाव में डुबाकर भव से उबार लेती है।

तुलसीदास जी कहते हैं-

"भव सागर चह पार जो पावा।

राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥"

भगवान की कथा ऐसी दृढ़ नौका है कि यदि और कुछ भी न किया जाए, बस इस नाव में भाव सहित बैठ जाएँ, कहो कि इसी भाव में बैठ जाएँ, तो उस भवसागर से सहज ही पार पाया जा सकता है।

ध्यान दें, भगवान का स्मरण ही भाव है, विस्मरण ही भव। भगवान का विस्मरण ही संसार की सबसे बड़ी समस्या है, उनका स्मरण ही एकमात्र समाधान है। भगवान तो सदा साथ हैं, पर प्रश्न यह है कि हम भगवान के साथ हैं या नहीं, उनका स्मरण साथ है या नहीं? बस समस्या तभी तक समस्या है जबतक भगवान का स्मरण नहीं होता। और कथा की नाव, भगवान का सतत स्मरण कराती रहती है।

हमारा सौभाग्य देखिए हमें यह नाव अपनेआप ही मिल रही है। पहले तो परम पवित्र भारत भूमि पर जन्म मिला है। वह भी सींग वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं, रेंगने, तैरने या उड़ने वाला नहीं, मनुष्य कहलाने वाला देह मिला है। फिर सनातन हिन्दू परम्परा में मिला है। खाने को रोटी है, पहनने को कपड़ा है, घर बैठे संत संग और सत्संग मिलता है, कमी क्या रही? कुछ नहीं।

बस कथा की नाव छोड़कर उतरना मत। इतना कर लिया तो बहुत कर लिया। तब तो पार हुए ही समझो॥

अब विडियो देखें- भवसागर पार करना

https://youtu.be/bH9GcREaKGY

Hb 96 A A Dwivedi: बहुत सुंदर महाराज जी🙏😊🌹👏

Bhakt Lokeshanand Swami: कुछ लोग उलटा ही चलते हैं। ऐसी ही एक स्त्री की कहानी है।

रामू अपनी पत्नी से बहुत परेशान था। कारण कि रामू उससे जो भी कहता वह सदा उलटा ही करती थी।

रामू खाना माँगता, तो कहती आज हम व्रत रखेंगे। और कभी रामू कहता कि आज भूख नहीं है, तो जबरदस्ती खाना मुंह में ठूंस देती।

एकबार गुरूजी आए तो रामू ने रोते रोते सारी बात बताई।

गुरूजी बोले- ऐसा किया करो, जैसा मन हो, उससे उलटा ही कहा करो।

अब तो रामू को रास्ता मिल गया। वह ऐसा ही करने लगा और सुख से रहने लगा।

एक दिन वे एक पहाड़ी नदी में नहाने गए। वहाँ बड़ी भीड़ थी। पत्नी जल्दी जल्दी नदी में उतरने लगी। हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई, रामू गुरूजी का नुस्खा भूल गया, कह उठा- आगे मत जाना! फिसल जाएगी। पर पत्नी कहाँ मानने वाली थी? वो आगे चली गई और फिसल गई।

रामू मदद के लिए चिल्लाया- गई रे गई! कोई बचाओ रे।

कुछ साहसी युवक नीचे की ओर दौड़ने लगे। रामू ने देखा तो बोला- नीचे कहाँ भाग रहे हो बावलों? ऊपर की तरफ चलो, ऊपर की तरफ। युवक बोले- कैसी बात करते हो? यहाँ डूबी है तो नीचे ही तो जाएगी।

रामू बोला- भाई! तुम पानी के बहाव को जानते हो, मेरी पत्नी को नहीं। वह कभी सीधी चली है जो आज चलेगी? वह डूब कर भी उलटी ही जाएगी।

अंततः वह स्त्री डूब गई, और मर गई।

लोकेशानन्द विचार करता है कि यहाँ भी कईं हैं जो सीधे नहीं चलते, उलटे ही चलते हैं। जो करने को कहा जाता है, वो नहीं करते। जो करने से रोका जाता है, बार बार वही वही ही किया करते हैं। उन्हें इस भवसागर में डूबने से कैसे बचाया जाएगा?

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता ...


स्वदेशिकस्यैवशरीर चिन्तनम्

भवेदनन्तस्य शिवस्य चिन्तनम्।

स्वदेशिकस्यैव च नाम कीर्तनम्।।54।।

अर्थ: जब हम गुरुदेव के शरीर का चिंतन करते है, अपने आप स्वतः शिव का चिंतन हो जाता है और जब हम गुरुदेव का नाम कीर्तन करते है, तो अपने आप स्वतः अनन्त शिव का कीर्तन हो जाता है।

व्याख्या: गुरुतत्व से प्रकाशित भौतिक गुरुदेव के शरीर का चिंतन करने से भगवान शिव का चिंतन अपने आप हो जाता है अर्थात यहाँ शिव और गुरुदेव के शरीर मे अभेद दर्शन के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ है। इसी प्रकार गुरुदेव के नाम कीर्तन से शिव कीर्तन का फल प्राप्त हो जाता है। यहाँ नाम के साथ अभेद दर्शन का प्रतिपादन करते हुए गुरु और शिव नाम की एकता का बोध कराया गया है।

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।

यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्॥

दिन में वह करना चाहिए जिससे रात में सुख से नींद आ सके। जब तक जीवित हैं तब तक वह करना चाहिए जिससे मरने के बाद सुख से रहा जा सके।

Do that in the day which makes you happy at night. Do that throughout the life which could make you happy after death.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा। Lokesh Kumar Verma*

यक्ष काढ़ा

विपुल लखनवी।

काढ़ा मेरा बड़ा निराला।

काली मिर्च लौंग पीस कर डाला।।

पिसी हुई इलायची भी मिलाई।

पिसा पुदीना खड़ा धनिया रंग लाई।।

लेमनग्रास खुशबू निराली।

पिसी अदरक महिमा कह डाली।।

थोड़ा गुड़ अजवाइन भी डाला।

काला नमक तो बड़ा निराला।।


तेजपत्ता डालकर उसे उबाल फिर छान।

गरम-गरम पी लो उसे करोना जाए मान।।

एक कप दूध में हल्दी लियो मिलाय।

रात्रि समय पी लो उसे करोना कभी न आय।।

यक्ष सलाह

विपुल लखनवी

नींबू छिलका फेंक न बीज निकाल सुखाय।

फिर मिक्सी में पीसकर पाउडर उसे बनाय।।

पीने से पहले इसे काढ़े में कुछ मिलाय।

खटमिठ्ठा स्वाद हो विटामिन सी मिल जाय।।

वरना काढ़े में थोड़ा आंवला पीस मिलाय।

स्वादिष्ट काढ़ा बन गया जी भर के पी जाय।।


Bhakt Parv Mittal Hariyana: नींबू छिलका फेंक न बीज निकाल सुखाय।

चुटकी हल्दी नमक और चन्दन लियो मिलाय।

चीनी को बारीक कर संग गुलाब जल लाय।

सबको एक साथ मिला चेहरे पर मलते जाय।

देसी स्क्रबर देशी लोग, मुखड़ा दमक दमक जाय।

ये पर्व विपुल को सेवक, नुक्शा अद्भुत दियो बताय।।

Vipul Sen: 🙏🏻🙏🏻👌👌😄😄

हिन्दू धर्म के चार मुख्‍य माने गए वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) से निकली हुयी शाखाओं रूपी वेद ज्ञान को उपवेद कहते हैं। उपवेदों के वर्गीकरण के बारे में विभिन्न इतिहासकारों तथा विद्वानों के विभिन्न मत हैं,किन्तु सर्वोपयुक्त निम्नवत है-

उपवेद भी चार हैं-

आयुर्वेद- ऋग्वेद से (परन्तु सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं);

धनुर्वेद - यजुर्वेद से ;

गन्धर्ववेद - सामवेद से, तथा

शिल्पवेद - अथर्ववेद से ।

सनातन हिन्दू की धरोहर चार वेद हैं। जो सदैव सर्वकालीन सत्य हैं। जिनका ज्ञान आज के विज्ञान की कसौटी पर भी सत्य है। लेकिन शोध की भी आवश्यकता है।  

एको सत्य वेद:,  वेदो परमो धर्म:। वेदो ऊपांग आयुर्वेद, तस्य वचने परमसत्य।

मेरे व्यक्तिगत विचार से आज ऋग्वेद से उत्पन्न आयुर्वेद (परन्तु सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं) में शायद इतनी क्षमता नहीं रही जिसके कुछ कारण है।

पहला कारण है कि भूमि बहुत अधिक प्रदूषित हो चुकी है अतः जड़ी बूटियों अभी अपना वास्तविक रूप खो सकती है क्योंकि आधुनिक शोध के हिसाब से हेवी मेटल्स 2000 पीपीएम से अधिक भी पाए जाते हैं जो नुकसानदेह हो सकते हैं।

दूसरा कारण जब पहले जड़ी बूटियों का रोपण करते थे तो उनका विधिवत अनुष्ठान होता था और उनको तोड़ने के पहले भी विधिवत पूजन कर उनसे प्रार्थना की जाती थी कि आप अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो।

तीसरा कारण है की भारत की संस्कृति को कुचलने का नष्ट करने का प्रयास निरंतर किया गया जिसके कारण हम अपनी परंपरागत संस्कृति व औषधीय विरासत को भूलकर पाश्चात्य सभ्यता के गुलाम होते गए और इस दिशा में शोध के सत्यापन पर अधिक कार्य नहीं हो सका।

किंतु मुझे पूरी आशा है कि आने वाला समय भारत का ही होगा। साथ ही महामारी के इलाज आयुर्वेद के द्वारा ही आसानी से हो सकते हैं।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: निश्चित ही आपका कथन सत्य होगा


यक्ष पत्नी रिपोर्ट: कट पेस्ट।

लाॅक डाऊन खोलने के संबंध में पत्नियों ने समीक्षा समिति बनाकर रिपोर्ट दी है

प्रशिक्षणार्थी पतियों का मूल्यांकन किये जाने पर निम्न कमियां पाई गई:-

* पति अब भी ढंग से चिकनाई लगे बर्तन ढोना नहीं   सीख पाये हैं,

* रोटियां बनाना सीखा तो है पर रोटियां गोल बनाना नहीं सीख पा रहे हैं कभी रोटी चाईना के वुहान के आकार की तो कभी ब्राजील के नक्शे जैसी बन रही हैं।

* चाय के लिये कहना पड़ रहा है, स्वप्रेरणा से चाय बनाकर पिला दें, इसका अभाव पाया गया है

* सहेलियां की याद मिटाने में समय लगने की संभावना है,

* भटूरे बनवाने का प्रयास किया गया तो परिणाम में मठरी बना कर धर देते हैं,

* मलाई कोफ्ते के निर्माण में आधी मलाई पहले ही खा जाते हैं और कोफ्ते इतने कठोर बनाये हैं कि बच्चे उनसे लट्टू लट्टू खेल रहे हैं,

* पोंछा लगाने में प्रवीणता का अभाव पाया गया है, पोंछा लगवाये जाने के पश्चात फर्श का रंग सफेद से काले में बदल गया है,

*निष्कर्ष:- प्रशिक्षण के दौरान पतियों में कार्य सीखने के प्रति उत्साह और लगन का अभाव पाया गया है । अंकतालिका संतोषजनक नहीं है इसलिये पत्नी समिति के द्वारा इस लाॅक डाऊन को पतियों पर और बढ़ाये जाने की अभिशंसा की जाती है, जिससे पति आत्मनिर्भर हो सकें।*

 महिलाओं के ब्यूटी पार्लरों को आवश्यक सेवा मानते हुये तत्काल खोले जाने  की भी अभिशंसा की जाती है।

भारत सरकार को आवश्यक व प्रभावी कार्यवाही हेतु प्रेषित😀😄😃

 

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 28 


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