यह देश हमारा
विपुल लखनवी नवी मुंबई
हम तुम्हें बधाई देते हैं क्योंकि यह देश हमारा है।
इसकी पावन मिट्टी पर वीरों ने सब कुछ बारा है।।
पर कैसे हर्ष मनाऊं मैं जब मन में दुख का सागर हो।
इस दिन भारत के टुकड़े हुए अश्रु से भरता गागर हो।।
लाखों हिंदू के कत्ल हुए माताओं की अस्मत लूटी।
हम अड़े रहे अहिंसा पर यहीं अपनी किस्मत फूटी।।
कितने लाचार हुए इस दिन अब तक भारत में रोते हैं।
लूटा सारा घर बार जहां वे काश्मीर के बेटे हैं।।
सत्य सनातन नष्ट करने को सत्ता जिसने पाई थी।
बार-बार भारत में फिर पुनरावृत्ति दुहराही थी।।
हिंदू दमन कारण जिसने कानून नये बनाए थे।
स्वतंत्रता सेनानियों को जिसने खूनी पंजे पहनाए थे।।
जॉर्ज पंचम की चमचागिरी को गीत कहीं जो गाया था।
राष्ट्रीय गान भारत का हो हमको ही यह रटवाया था।।
हम विपुल बार छुप कर रोते दुष्टों को महान बताया है।
वीर शिवा राणा भूले आक्रांताओं का गुण गाया है।।
नहीं सहन होता यह अब सीमा सब्र की टूट चुकी।
नकली इतिहास मिटाओ जिन भारत माता अस्मत लूटी।।
चलो प्रतिज्ञा यह कर ले अखंड भारत का नारा है।
यह विपुल कविता विपुल जीवन बस देश प्रेम पर वारा है।।
जय हिंद वंदे मातरम।
कवि विपुल लखनवी नवी मुंबई।
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