Search This Blog

Thursday, September 10, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 1

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 1

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/


Bhakt Sundram Shukla:
*श्री "गुरुचरित्र"   अध्याय : 1 (श्लोक 35-45)
सर्व देवादिक, साधु सिद्ध पुरुष, गंधर्व यक्ष किन्नर और सभी ऋषि मुनीयों को मेरा प्रणाम ।। ३५ ।।
पराशर, व्यास, वाल्मीकि आदि सर्व कवि और गीतकार ऋषि मुनीयों को मैं अब नमन करता हूँ ।। ३६ ।।
आप सभी ऋषि-मुनियोंको अत्यंत विनीत भाव से प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे कवित्व का ज्ञान प्रदान करे ।। ३७ ।।
ऋषिवर, मुझे किसी भी ग्रंथ प्रकार या ग्रंथ शाखा का ज्ञान नहीं है और नाही मुझे कोई शास्त्र अवगत है । मेरी मातृ भाषा भी मराठी नहीं है इसी कारण मैं आप सभी से विनती कर रहा हूँ कि आप मुझे ज्ञान दे ।। ३८ ।।
आप सभी ऋषि-मुनियों को मैं विनीत भाव से विनती करूं कि आप सभी मुझ पर कृपा करे। मुझे सहायता करे । शब्द, अर्थ और उनका ज्ञान मुझे प्रदान करे ।। ३९ ।।
इसी प्रकार सब को प्रणाम कर, अब मैं अपने पूर्वजों को प्रणाम करता हूँ । मेरे माता और पिता इन दोनों पक्षों के पूर्वजों का पुण्य  स्मरण करता हूँ और उनका महात्म्य वर्णित करता हूँ  ।। ४० ।।
कौण्डिन्य गोत्र के, आपस्तंब शाखा के ब्राह्मण, सायंदेव प्रमुख पुरुष, जिनका उपनाम साखरे था ।। ४१ ।।
सायंदेव के सुपुत्र नागनाथ, उनके सुपुत्र देवराय और सदा सद्गुरु चरणों मे लीन मेरे पिता गंगाधर जी थे ।। ४२ ।।
अपने पिता के चरणों में वंदन कर, मैं अब अपनी माता पूर्वज को सादर प्रणाम करता हूँ । काश्यप गोत्र कुलउत्पन्न श्री चौंडेश्वरी नाम कुलस्त्री जो आश्वलायन शाखा की ब्राह्मण थी ।। ४३ ।।
साक्षात आदिभवानी स्वरूप मेरी माता चंपादेवी उनकी सुपुत्री थी ।। ४४ ।।
अपने माता पिता को वंदन कर अब मैं अपने गुरुदेव जी को प्रणाम करता हूँ और गुरु चरण स्मरण करने आप मुझे बुद्धी प्रदान करें यह विनती करता हूँ ।। ४५ ।।
क्रमशः 

 
सुंदर प्रार्थना प्रार्थना करने वाले ने कितनी सुंदर बात करी है जो प्रायः लोग नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा कि हम माता-पिता दोनों पक्षों के पूर्वजजनों को प्रणाम करता हूं।
हम चर्चा में पिता के पक्ष को ले आते हैं मां के पक्ष को ध्यान नहीं देते।
प्रार्थना करने वाले को कोटिश: नमन।

प्रश्न यह है ध्यान में गहराई कैसे लाई जाए। तो मित्रों यदि आप षष्टांग योग देखें। यानी 6 अंग वाला योग विधि सप्तांग देखें 7 अंग वाला योग विधि तो उसमें उन्होंने प्राणायाम को हटाकर उसकी जगह पर मुद्रा योग पर ध्यान दिया है।
यानी मुद्राओं के द्वारा हम ध्यान की गहराई में जा सकते हैं।
यदि आप संकेत उंगली और अंगूठे की ऊपर की छोरों को मिलाकर ध्यान करते हैं तो आप देखेंगे आप बहुत ही शीघ्र गहराई में उतर जायेंगे।
अष्टांग योग तो बहुत बाद में आया है उसके पहले ऋषियों ने षटअंग और सप्तांग योग की विधियां बताई हैं।
http://freedhyan.blogspot.com/2018/11/blog-post_60.html?m=1


फेसबुक पर चर्चा।
मनुष्य सदैव करने के पीछे भागता है जिस दिन मनुष्य न करना सीख लेगा समझो उस दिन उसकी साधना परिपक्व हो गई।
वैसे कलयुग में मंत्र जप से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं मंत्र जाप मम् दृढ़ विश्वासा पंचम भक्ति वेद प्रकाशा।
गुरु करना कोई पहचान नहीं जब समय आता है तो गुरु से मिल जाएगा अपने इष्ट के मंत्र जप में लगे रहो सतत निरंतर निर्बाध क्योंकि गुरु की जल्दबाजी में किसी गुरु घंटाल के चक्कर में लोग अक्सर पड़ जाते हैं।
अपने घर पर लाक डाउन के समय का भरपूर उपयोग करो और अधिक कुछ करना है तो सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करो ना रंग लगे ना हल्दी रंग चोखा।
जी, ऐसा भी नहीं है कि समय आता है तो गुरु मिल जाता है और आपने कहा कि जल्दबाजी में गुरु घंटाल के चक्कर में पड़ जाता है आपकी बात बिल्कुल सही है इस बात से मैं भी सहमत हूं लेकिन गुरु ऐसा किया जाए जिससे हमारी ज्ञान की विकास हो हमारे जीवन की दायित्व ले सके, शरीर धारी गुरु के चक्कर में पड़कर संभव नहीं है इसलिए जगद्गुरु भगवान शिव को अपना गुरु बनाया जाए जो वही गुरु भी है वही भगवान भी है वह स्वयं भोग और मोक्ष के दाता भी है और उस शिव को अपना गुरु बनाने के लिए केवल तीन काम करना है जो कर सकते हैं बिल्कुल आसानी से करके देखा जाए कि जीवन में क्या परिणाम आता है
शिव गुरु के अलावा सारे गुरु की स्थिति यही है जो आपने कहा है गुरु घंटाल, शिव शिष्य ता में कोई व्यक्ति गुरु नहीं है केवल भगवान शिव को अपना गुरु बनाने की बात कहा जा रहा है
Bisnu Dew शिव आपके मानने से आपके गुरु नहीं हो सकते।
शरीरी और अशरीरी गुरु में अंतर होता है।
कारण अशरीरी गुरु हमेशा आपके चाहने पर आपके साथ नहीं हो सकता।
किंतु शरीर गुरु आपके साथ आपकी सहायता प्रत्यक्ष रूप में कर सकता है।
यह अवस्थाएं होती है अशरीरी गुरु एक अवस्था के बाद स्वयं ही शिष्य को शरीर गुरु की ओर प्रेषित कर देता है।
मैं समझता हूं आपको अभी गुरु तत्व का ज्ञान अधूरा है।
जब तक गुरु तत्व का ज्ञान अधूरा है आप शिव तत्व को नहीं जान सकते।
यह बात मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं और आप वैसे रामकृष्ण परमहंस की जीवनी देख सकते


*परोअ्पेहि मनस्पाप  किमशस्तानि शंससि।*
*परेहि न त्वा कामये वृक्षां,वनानि सं चर गृहेषु गोषु मे मन:।।*
अपने मन, मस्तिष्क को हमेशा व्यस्त रखिए , इसे कभी खाली न रखें।
*" व्यस्त रहें, स्वस्थ्य व प्रसन्न रहें "*

In order that your mind doesn't wander away in bad thoughts,
keep it busy in some work or the other. Don't allow it to remain idle.
"BE BUSY,BE HAPPY AND BE HEALTHY"
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma+*


Amit Singh: सर मैंने देवी कवच, सिद्धकुंजिकास्त्रोत, क्षमा प्रार्थना ये तीनो प्रतिदिन पाठ करना शुरू कर दिया। क्या सही या कोई अन्य भी जोड़ना चाहिए इनके साथ, एक बात और सर आरती नही करता पता नही क्यो मन नही लगता जरूरी है तो शुरू कर दु या रहने दू । 🙏🏻🙏🏻
इस ग्रुप में बगलामुखी भक्त स्वामी तूफान गिरी महाराज जी मौजूद है मेरी इच्छा है वह हम लोगों को देवी की आराधना के प्रति अनुष्ठान का ज्ञान कराएं।


मैंने कितनी बार निवेदन किया है कि कृपया वीडियो तो बिल्कुल ना पोस्ट करें और फोटो यदि बहुत आवश्यक हो तो डालें वह भी यदि आप कोई लेख लिख रहे हो तो।
क्योंकि वीडियो इत्यादि डालने से समस्याएं पैदा होती है।
पहली बात आप अनजाने में पर्यावरण प्रदूषण फैलाने के दोषी हो जाते हैं और जिस व्यक्ति को पर्यावरण से प्रेम नहीं वह आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता।
दूसरा इतनी अधिक वाइट्स‌ से मोबाइल हैंग हो जाते हैं।
तीसरा आपकी मोबाइल की जो बाइट्स की सीमा है वह जल्द समाप्त हो जाती है।
अतः आपसे कर मध्य प्रार्थना है कि आप वीडियो ना डालें।
फोटो भी ना डालें  स्वयं की जिज्ञासा निर्माण या उत्तर डालने का कष्ट करें।
किसी को ग्रुप से निकालते हुए अच्छा नहीं लगता।

 
Mera sbhi mitro se anurodh hai ke krapya mera margdarshan kre
 Mai, Vipul sir ke kahne pr group ke sabhi mitro se apne sapne share kr rhi hu
 Mera Vipul sir se Vishesh nivedan hai ke mera margdarshan  kre 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
 Mai childhood se hi Mehandipur  Bala ji ki puja karti hu
 Bala ji ko kuch btana ho to Bala ji sapno ke through mujhko bta dete hai
 Maine 3 sapne dekhe h, jinko mai smjh ni pa rhi hu
Maine sapne me dekha ki rat ka time hai ek ground hai, us ground me Hanuman ji khade hai or unse kuch door mai v khadi hu. Hanuman ji ne Jai Shree Ram bola or unka sarir kuch bda ho gya, fir Maine v Jai Shree Ram bola to mera v sarir kuch bda ho gya. Asa Hanuman ji ne 3 ya 4 bar kiya.Or Hanuman ji bhut bde ho gye. Puri duniya chhoti ho gai. Hanuman ji ko dekh kr Maine v 3, 4 bar Jai Shree Ram bola. Mera v sarir Prabhu ki trh bda ho gya. Or puri duniya  chhoti ho gai
 Pabhu ne mujhse bola sb kuch tumko krna hai. Mai kuch v ni krunga.  Mai sath hmesa rhunga tumhre, pr krna tumko hi sb kuch hai
 Fir Maine kuch din bad spna dekha. Spne me rat ka time hai.Mai ek khandahar me fas gai hu or vha se nikl ni pa rhi hu. Fir kuch der bad awaj aai ki koi mujhse bol rha h ki kyo presan ho rhi ho. Maine tumko btaya to hai  Jai Shree Ram bolo. Fir uske bad  Maine Jai Shree  Ram bola or Mai khandahr se nikl aai
Kuch din phele Maine fir  sapna dekha. Sapne me evening ka time hai. Or Sky me Ram ji khade hai or unka sarir bhut hi bda ha
Mera group me sbhi se nivedan hai krapya mera margdarshan kre


बहन जी आपको बहुत-बहुत बधाई आपकी बालाजी की स्तितुयां रंग लाई।
बालाजी विष्णु का रूप है राम जी भी विष्णु का रूप है तो आपको अनजाने में भगवान बजरंगबली ने राम का नाम दे दिया।
यानी आपको बजरंगबली ने गुरू बनकर मार्गदर्शन किया।
अब आप बजरंगबली को अपना अशरीरी गुरु मानिए।
बजरंगबली को प्रार्थना करते हुए प्रभु राम के मंत्र से आप सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करें।
इस विधि में आपकी आध्यात्मिक शक्तियां एकत्र होकर आपको शरीरी गुरु तक प्रेषित कर सकती हैं।
जब तक आप को गुरु नहीं मिलते हैं तब तक भगवान बजरंगबली आप के गुरु रूप हैं।
हो सकता है आपको सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि में और मित्रों की भांति कुछ विशेष अनुभव हो।
वे अनुभव आपको गुरु तक पहुंचाने में सहायक हो सकते हैं।
मैं आपके स्वप्न को नमन करता हूं।
💐💐🙏🏻🙏🏻
आप बिल्कुल परेशान ना हो आपको प्रभु श्री राम का बजरंग बली बाबा का वरद हस्त स्वप्न के माध्यम से प्राप्त हो गया है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻
यह लिंक ग्रुप के डिस्क्रिप्शन में दिया हुआ है।
सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधियों हेतु mmstm हेतु
http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html
भजन और कविताओं हेतु देखें।
Kavidevidasvipul.blogspot.com
अन्य लेखों हेतु देखे।
Freedhyan.blogspot.com
अंतिम लिंक में देख लो तुम्हें महाविद्या के सभी रूपों के बारे में वर्णन मिल जाएगा।]

शक्तिपात दीक्षित साधक का एक ग्रुप बनाया है।
उसमें एक कल कुछ प्रश्न उत्तर हुए थे मैं उनको कट पेस्ट कर रहा हूं।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
शक्तिपात की परिभाषा क्या है
यह हमारी परंपरा में लगभग हर गुरु ले अपने प्रवचन में समझाया है शक्तिपात का अर्थ होता हैशक्ति का गिरना। कहां से गिरना हाई वोल्टेज से लो वोल्टेज पर गिरना। गुरु से शिष्य पर गिरना। या गुरु से शिष्य को शक्ति प्राप्त होना।
मेरा प्रश्न है कुंडलिनी जागरण कब कैसे होता है??????
कुंडलिनी जागरण का सबसे सहज मार्ग तो है शक्तिपात गुरु की अनुकंपा से कुंडलनी का जागरण होना।
दूसरों मार्ग जो आजकल यूट्यूब पर समझाते हैं लोग मूलाधार चक्र का मंत्र का जप करना।
तीसरा है जो कुछ लोगों ने प्रयोग किया है उन्होंने मूलाधार के नीचे कृत्रिम रूप से एक वाइब्रेटर रखिए उस पर कंपन के आघात दिए।
चौथा है अपने इष्ट मंत्र का निरंतर जाप करना।
पांचवा है बीज मंत्र का निरंतर ध्यान करना और जाप करना।
लेकिन पहले और पांचवी के अतिरिक्त सभी तरीकों में शक्ति आघात का खतरा रहता है। जिससे मनुष्य पागल हो सकता है अथवा मृत्यु भी हो सकती है।
कुंडलनी जागरण हेतु कभी भी निराकार मंत्र का या ओम का जाप नहीं करना चाहिए।
क्या सिद्धी के लिये साधना कर्णेवला सचमुच मे  साधक होता हैं ?
मात्र सिद्धि के लिए साधना करने वाला महामूर्ख और अज्ञानी होता है।
प्रश्नों के उत्तर को ठीक से समझने के लिए साधन का आधार होना बहुत जरूरी है बिना साधन के प्रश्न के उत्तर को समझना बहुत ही कठिन है
यह बात सत्य है और दीक्षित जानता भी है।
जब तक में जिज्ञासा शांत नहीं होती है मन शांत नहीं होता है और साधन के समय भटकता रहता है।
शक्तिपात परंपरा में साधक आलसी और कामचोर हो जाता है।
क्योंकि हमको कुछ करने की आदत है अतः हम साधन में बैठकर भी कुछ न कुछ अपनी ओर से सोचने का करने का प्रयास करते हैं।
जबकि शक्तिपात परंपरा संस्कारों को नष्ट कर हमको निर्वाण की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती है। जिसमें हमको केवल और केवल दीक्षा के समय दिए गए आसन पर बैठना होता है और कुछ नहीं। कमर में दर्द होने लगे तो लेट जाओ और कुछ नहीं।
किंतु हम कुछ करना ही नहीं चाहते हैं।
साधन की परिपक्वता आने के पश्चात आसन की आवश्यकता नहीं रहती है।
शिवओम तीर्थ जी महाराज ने कहा है साधन ऐसे किया जाए की जगत के कर्म ही हमारे क्रिया रूप हो जाएं।
इसका एक अनुभव खुद मैनें किया।
करीबन 2 साल पहले बैंगलोर गया था वहां पर सिद्धार बेटी नामक एक पहाड़ी है जिस पर चढ़ना उतरना करीबन 3 किलोमीटर के आसपास पड़ता है।
मार्ग भी कोई खास आसान नहीं सीड़िया कहीं-कहीं बनी है लेकिन पकड़ने के लिए रस्सियां लगी है।
मेरा वजन 114 किलो का। मैं बेटी दमाद के साथ मात्र 2 या 3 जीने चढ़ा कि मुझे थकान आने लगी और हांफी आने लगी।
फिर मैंने प्रभु से प्रार्थना की गुरु महाराज को याद किया मां काली को याद किया और उसके पश्चात मेरा चलना क्रिया रूप हो गए और मैं बड़ी आसानी से चोटी तक जाकर नीचे आ गया और मुझे तनिक भी थकान नहीं आई।
पर अभी तो पैर की तीन हड्डियां टूटी है एक डिसलोकेट होकर दरार पड़ी। राड पड़ी है प्लेट पड़ी है तार पड़ा है। और तमाम स्कर्ऊ लगे हैं। पैर में सूजन भी है तो शायद में ना चल सके लेकिन यदि चल लिया तो हो सकता है मेडिकल की समस्या हो जाए।
इसीलिए मुझे चलने में पहले तकलीफ नहीं होती थी क्योंकि अपने चलने को यदि क्रिया रूप में कर लिया जाए तो स्वयं चलने लगते हैं।

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


No comments:

Post a Comment

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...