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Friday, September 11, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 10 (बुद्ध और सनातन)

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 10 

(बुद्ध और सनातन)

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/



Bhakt Lokeshanand Swami: बड़ी विचित्र पर सरल सी बात है।

कभी भी, किसी को भी, स्वप्न में, अपने मर जाने का स्वप्न नहीं आता। यदि वह मौत के दरवाजे तक पहुँच भी जाए, तो भी मरने से पहले, उसका वह स्वप्न और उसकी नींद, दोनों टूट जाएँगे।

कोई कहे कि "किसी मनुष्य को, यदि स्वप्न में अपनी मृत्यु का स्वप्न आ जाए, तो वह मनुष्य फिर नींद से उठता ही नहीं, वह तो दुनिया से ही उठ जाता है।" तो बात तो वह सही ही कहता है।

पर मैं फिर भी यही कहूँगा कि कभी भी, किसी को भी, स्वप्न में, अपनी मृत्यु का स्वप्न नहीं आता। आ ही नहीं सकता।

Bhakt Shubhra Misra Kannoj: Vipul sir aur parv bhaii jee .....Anya sabki group members ko Mera pranaam .....ISS group mai shamil karne ke liye aap  sabka bahut bahut dhanyawaad .....🙏🏻🙏🏻💐💐🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙏🏻🙏🏻

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: https://youtu.be/iRNJ0hAyVjY

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: इस वीडियो को सोशल मीडिया की हर साइट पर शेयर जरूर करें

Bhakt Baliram Yadav: रावण ब्राह्मण थे तो जन्म से या कर्म से कृपया मार्गदर्शन करे

Bhakt Baliram Yadav: जवाब का इंतजार है महानुभाआे से क्यू की ये सवाल मुझे किसीने पूछा है तो उन्हें में तर्क के साथ बता पाऊ 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Brijesh Singer: रावण ऋषि विश्रवा का पुत्र, और ऋषि पुलस्त्य का पौत्र था जो ब्रह्मा के मानस पुत्र थे जो सप्तर्षि मे से एक ऋषि है l जो ब्राम्हण थे l

श्री राम जी को रावण को मारने से ब्रम्हहत्या का पाप लगा था जिसके कारण उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया था ।

Bhakt Baliram Yadav: ब्राह्मण यानी वर्ण व्यवस्था थी उस वक़्त

Bhakt Brijesh Singer: हा

श्री राम जी सूर्यवंशी क्षत्रिय है

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏नहीं वर्ण व्यवस्था जाति गत नहीं कर्म गत होती थी मेरे अनुसार

Bhakt Brijesh Singer: मै ये सब जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए नही कह रहा 🙏

Bhakt Brijesh Singer: परशुराम जी को ब्राम्हण कहा जाता है

Bhakt Baliram Yadav: मगर  वर्ण का जिक्र किया गया है किया गया है

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: में आपकी बात से सहमत हूं परंतु जो जिस प्रकार का कार्य करता था उस वर्ण का माना जाता था

रावण ब्रह्मज्ञानी था क्योंकि उसे ब्रह्म का ज्ञान था। इसलिए वह ब्राह्मण था। और संयोग से वह ब्रह्मा के पुत्र में भी आता है उस हिसाब से उसे ब्राह्मण कहा गया। लेकिन उसके कर्म गलत हो गए थे इसलिए वह पूजा नहीं जाता है।

परशुराम जी को छत्रिय होना चाहिए कर्मो से

विश्वामित्र जी क्षत्रिय थे लेकिन कर्म से ब्राम्हणत्व को प्राप्त किया

वैसे वेदों में उपनिषद में यहां तक कि कुछ पुराणों में भी जन्म से ब्राह्मण नहीं बोला जाता है कर्म से बोला जाता है और रामायण श्रुति नहीं है।

वे ब्रह्म ज्ञानी भी थे। ब्रह्म का वरण कर चुके थे।

आप लोगों को कितनी बार लेख पोस्ट किया है वेदों के उपनिषद के उदाहरण के साथ लेकिन आप लोगों ने फिर कभी नहीं पढ़ा।

Bhakt Baliram Yadav: किस रामायण को माना जाए प्रभु  क्यूंकि चार प्रकार के है

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/16.html?m=0

Bhakt Baliram Yadav: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 प्रभु जी बस मार्गदर्शन हेतु पुनः पूछ लिया 🙏🏻🙏🏻

किसी भी विवाद की स्थिति में संदेह  की उपस्थिति में वेदों को अंतिम माना जाता है।

किसी भी विवाद की स्थिति में संशय की उपस्थिति में वेदों को अंतिम माना जाता है।

प्रश्न है राम थे कि नहीं थे कृष्ण थे कि नहीं थे इससे हमें क्या लेना देना है क्या करना हमको हम यह जानते हैं कि राम के नाम ने रामचरितमानस ने रामायण ने लाखों को तार दिया कृष्ण की भगवत गीता ने करोड़ो का कल्याण कर दिया। हम आम खाए गुठली से क्यों परेशान हो। क्योंकि इस तरह की चर्चाएं व्यर्थ में विवाद उत्पन्न करती है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/11/blog-post_89.html?m=0

नहीं जी एक बौद्ध धर्म के जन ने प्रश्न किया था इसलिए

Bhakt Brijesh Singer: अब जैसे विपुल जी को ब्रम्हज्ञान हो गया तो ये ब्राम्हणत्व के अधिकारी हो गए लेकिन इनके पुत्र को वो पद पाने के लिए फिर से परिश्रम करना पडेगा l लेकिन कलांतर मे समाज ने जिनके जो पुत्र हुए उनको पिता का पद दे दिया जो आगे चलकर पुस्तैनी हो गया और वर्ण से जाति व्यवस्था बन गया।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: भैया रामपाल के चेले सबसे बड़े वायरस है इन सबको निकाल देना ही अच्छा है।

मुझे ग्रुप की सत्यानाशी नहीं करनी है।

इस ग्रुप का उद्देश्य है हमारी अपनी आध्यात्मिक उन्नति न की बकवास में समय गंवाना।

Bhakt Brijesh Singer: यह दोहा भी रामपाल का बनाया हुआ लगता है कबीर का तो नही है

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: वर्ण वास्तव में हमारा सनातन है।

सनातन है आत्मा।

आत्मा को विदित करने की साधना कि सीढ़ी में चार सोपान ये चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र है।

यदि कोई आत्म प्राप्ति की साधना का नियत कर्म नहीं जानता और जानकारी के पश्चात साधन आरंभ नहीं करता तो वह शूद्र भी कदापि नहीं है।-

स्वामी अड़गड़ानंद जी

इस ग्रुप में रामपाल के चेलों का ब्रम्हाकुमारी के चेलों का कोई स्थान नहीं है यदि मालूम हो गया तो उनको तुरंत निकाल दिया जाएगा।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: वर्ण व्यवस्था केवल कार्य के प्रतिपादन के लिए बनी थी कि कार्य सुचारू रूप से हो सके।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: अतिउत्तम मार्ग भैया 😇😇😇😇🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

यह लोग किसी भी ग्रुप में संपर्क और नंबर नोट करने के लिए घुसते हैं फिर अपना ग्रुप बनाते हैं उन लोगों की खोपड़ी चाटते हैं।

मुझे महोदय का कुछ लिखने का संकेत मिला मैंने नंबर ब्लॉक कर दिया।

इनका उद्देश सनातन का प्रचार नहीं होता है।

इनका उद्देश्य होता है कि अपने गुरु का प्रचार करना और रामपाल को भगवान की जगह पर स्थापित करना।

निर्मल बाबा वालो का भी शायद यही योगदान है समाज में

Bhakt Brijesh Singer: ये बिल्कुल प्रीप्रोग्राम्ड चिप की तरह काम करते है बोलते चले जाते है। रामपाल की अर्थ के अनर्थ मे अनुवाद की हुई गीता को बताते रहते है

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: फेसबुक पे तो हर ग्रुप में ये सब कीड़े मकोड़े की तरह छाए हुए है

मुझको तो न्यायालय में खींचने तक की धमकी दी थी।

Bhakt Brijesh Singer: जिन्होंने ने गीता नही पढ़ी वो इनके चक्कर मे आ जाते है। सोचते है कि ऐसा गीता मे लिखा हुआ है

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: धुल मे चना मिलाकर खिलाते है 😃

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: यह सब मानवीय व्यवहार में अंतर की ही देन है जिस प्रकार का व्यक्ति स्वयं होता है वह वैसा ही ईश्वर डूंडने का प्रयत्न करता है। रामपाल जी के शिष्यों की तो क्या कहूं २ दिन पूर्व लॉक डाउन मै पुस्तक वितरण के लिए कॉलोनी में घर २ घूम कर पुस्तक वांटी।और पुस्तक देने के पश्चात पुस्तक के साथ लेने वाले की फोटो खींचकर प्रमाण भी लेते है। अजब है ये लोग🙏

Bhakt Amit Singh Parmar Meditation, Gwalior: पगला जाते है रामपाल के चेले, जाने कौनसी नई नई रीति चला रहे है एक भी ढंग की नही है। खुद जेल से बाहर नही आ पा रहे, दुनिया को मुक्ति दिल वाएँगे

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*श्रध्दापूर्वा: सर्वधर्मा: मनोरथ फलप्रदा: ।*

*श्रध्दया साध्यते सर्वम् श्रध्दया तुष्टति हरि: ॥*

श्रध्दा सभी धर्मों के पूर्व में होती है और मनोरथों को पूर्ण करने वाली फल दायिनी  श्रध्दा है| श्रद्धा से सब कुछ प्राप्त होता है, श्रद्धा से भगवान   भी प्रसन्न होते है।

Reverence, FAITH is the first source of  Belief in any religion to get the desired results . One can get anything just by having faith.

*शुभोदयम! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Bhakt Lokeshanand Swami: अब आप सावधान हो जाएँ !!

हृदयस्थ भगवान के निर्देश में चलते चलते, जब आपका चित् त्रिकूट नहीं ही रहता, चित्रकूट हो जाता है, जब अन्त:करण भगवदाकार हो जाता है, अपना कोई संकल्प रहता ही नहीं, भगवान का संकल्प ही आपका संकल्प हो जाता है, जब त्रिगुण, त्रिदेह, त्रिवस्था का झझंट नहीं रहता, माया का बंधन नहीं रहता, तब, तब आप में तीन परिवर्तन होते हैं।

१- आप ही अत्रि हो जाते हैं। अत्रि माने अ+त्रि, जहाँ तीन गुण न हों। अभी तक तो आप स्त्री थे, स्+त्रि, जहाँ तीन हों। जब तीनों गुणों का अभाव ही हो गया, स्त्री अत्रि हो गया। जीवभाव नहीं रहा, मुक्ति सिद्ध हो गई।

२- आपकी बुद्धि जो अभी तक असूया थी, दूसरे का दोष दर्शन करती थी, छिद्रान्वेषण करती थी, अब निर्मल हो गई, दोष दर्शन रहित हो गयी, दूसरे के छिद्र ढंकने लगी, समस्त गुण दोषों से दृष्टि हट गई, सियाराम मय हो गई, परम पवित्र हो गई, अनुसूया हो गई।

३- जिस बुद्धि से संसार की व्यथा निकला करती थी, अब भगवान की कथा बहने लगी। मंदाकिनी बहने लगी।

"रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित् चारू"

ऐसा जिसका चित् हो गया, उसी का चित् सुंदर चित् है। अब उसमें जगत का चित्र बनता ही नहीं, उसके चित् में अभाव का अभाव हो गया, उसका स्थान भाव ने ले लिया, दुख और राग मिट गया, आनन्द और अनुराग उतर आया।

यही वो अवस्था है जिसमें पापनाशिनी रामकथा अपने से पनपने लगी, भीतर हिलोरें मारने लगी, बाहर छलकने लगी। अब बिना ही प्रयास, मुंह खुलते ही स्वाभाविक ही भगवान की कथा निकलने लगी।

वह स्वयं तो शीतल हो ही गया, जिसके कान में उसकी आवाज पड़ती है, वह भी शीतल हो जाता है, उसका भी पाप नष्ट होने लगता है, उसका भी मुक्ति का मार्ग खुलने लगता है।

अब विडियो देखें- चित्रकूट

https://youtu.be/W3Kw9TJcThM

+91 96726 33273: Sammohak h telang swami ji ki yeah pratima  .adhik der tak dekhne par muskurati hui mehsus hoti h.. Aankho ko dekh kar lagta h ki maa kaali ki aankho ka tez h

Bhakt Lokeshanand Swami: बड़ी ही रोचक और महत्वपूर्ण कथा है। एक बहुत ही कामी और महत्वाकांक्षी राजा था, श्रोण उसका नाम था। उसकी संगीत में बहुत रुचि थी और वह स्वयं भी उच्च कोटि का वीणावादक था।

एकदिन श्रोण ने महात्मा बुद्ध को देखा, उनकी शांति, सौम्यता, रहस्यमयी मुस्कान और सुंदरता ने श्रोण के हृदय में जगत के विषयों से वैराग्य उत्पन्न कर दिया। और अपना राज पाट छोड़ कर वह उनका शिष्य हो गया।

कुछ ही समय बीता कि बुद्ध के पास श्रोण की बहुत शिकायतें आने लगी। बड़ा विचित्र था श्रोण। सभी भिक्षु प्रतिदिन भिक्षाटन को जाते, वह तीन दिन में एक बार जाता। सभी भिक्षु प्रतिदिन तीन समय भोजन करते, वह तीन दिन में एक बार करता। अन्य भिक्षु धूप से बचते और छाया में चलते, वह छाया से बचता और धूप में चलता। इतने ही दिनों में उसकी देह क्षीणकाय हो चली थी।

भगवान बुद्ध श्रोण के पास आए। श्रोण चरणों में गिरा, उन्हें आसन पर बैठा कर, भूमि पर बैठ गया।

बुद्ध ने श्रोण पर प्रेमपूर्ण दृष्टि डाली और पूछा- श्रोण! वीणा का तार बहुत ढीला हो, तो कैसा संगीत निकलता है?

श्रोण- भगवान! तार ढीला हो तो संगीत नहीं निकलता।

बुद्ध ने पुनः पूछा- श्रोण! वीणा का तार बहुत कसा हो, तो कैसा संगीत निकलता है?

श्रोण- भगवान! तार बहुत कसा हो तो भी संगीत नहीं निकलता। तब तो छूते ही तार टूट जाएगा।

बुद्ध उठे, और बाहर चले गए। श्रोण को जीवन का उपदेश मिल गया।

लोकेशानन्द कहता है कि हमें भी यह उपदेश समझना चाहिए।

"कईं तेज राह भटक गए, कईं सुस्त हो गए लापता।

जो उनके चरणों में झुक गए, उन्हें आके मंजिल ने पा लिया॥"

जो चला ही नहीं, उसकी तो बात ही मत छेड़ो, यहाँ बहुत तेज चलने वाला भी भटक जाता है, उसे मंजिल नहीं मिलती।

जो सहज चलता है, सरलता बनाए रखता है, निरंतरता पूर्वक मध्य में रहता है, वह पहुँच जाता है। और ऐसा भी नहीं है कि उसे अधिक चलना पड़ता है, मंजिल ही उसकी ओर सरक आती है।

Jai Gurudev ji

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/14_24.html?m=0

मित्रों यह लेख अवश्य पढ़ें सनातन के प्रमाण के साथ सिद्ध किया है कि बुद्ध ने जो भी कहा वह हमारे वेदों भगवत गीता से ही कहा है वह अलग नहीं है बस कुछ मूर्खों ने बिना अनुभव के कुछ भी लिखा है उनको अलग बता दिया।

यह आपकी बुद्धि में कुछ ज्ञान वृद्दी अवश्य करेगा।

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: जय गुरुदेव

प्रणाम गुरु जी। 🌹🙏🌹🚩🚩

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: अलग कहां से लायेंगे। अथाह ज्ञान भरा है वेदो और पुराणों में। यह लोग बस उसमे सोया सास और शेझवान सास का तड़का लगा कर नया और अपना कह कर परोस देते हैं।

*यह नये पिछलग्गू उसे ही सम्पूर्ण ज्ञान समझ कर कूप मण्डूक बन कर उसे ही सर्वश्रेष्ठ कहने-मानने लगते हैं......*😊😊😊

एक बेहद रोचक चर्चा।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

+91 70669 84802: Ham bhi diksha le sakte hai

Bhakt Sundram Shukla: आपकी दीक्षा हो तो चुकी है भाईजी

+91 70669 84802: Are bhiya aur lena chatu hu

Bhakt Sundram Shukla: कौन सी? ब्रम्हचारी, सन्यास या गुरु पद??

Bhakt Parv Mittal Hariyana: आप पूर्व दीक्षित है। फिर कौन सी दीक्षा लेनी है प्रभु

+91 70669 84802: Sanyas

प्रभु जी क्षमा करें सन्यास में ऐसे कौन से हीरा पन्ना है जो आप लेना चाहते हैं।

वह कौन सी उपलब्धि है जो सन्यासी होने से मिल जाएगी।

+91 70669 84802: Sanyas sansar se mukt hokar sadhna mai age bad sakta hai

मित्र जी आपके मन का भ्रम है।

सन्यास मन की अवस्था होती है और आप योगी सिद्ध पुरुष ज्ञानी ब्रह्मज्ञानी और यहां तक मोक्ष भी संसार में रहकर प्राप्त कर सकते हैं।

सन्यासी होना एक सत् गुणी दंड है।

+91 70669 84802: Asmbhav

आप सन्यास को उच्च क्यों मानते हैं।

+91 70669 84802: Sansar bhog bhomi hya sadhna acchi nahi ho  paygi

स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज ने लिखा है। भगवान करे कि आप लोग कभी गुरु ना हो और सन्यासी ना हो।

+91 70669 84802: Is my liye pavtra jagna santo ka sahvas rahta hay

यह आपकी दुर्बलता है। इसके मतलब यह हुई कि आपने शक्तिपात की गहराई को ढंग से नहीं समझा।

क्षमा करें यह कटु वचन बोलना पड़ रहा है ताकि आप सन्यास के लिए हट छोड़ दे।

+91 70669 84802: Brhmchry ke bina sadha ag bad hi nahi sakti

मैं कितनी सन्यासियों को जानता हूं जो ज्ञान में कई साधकों से भी निम्न होंगे और कर्म भी उनके प्रशंसनीय नहीं होते हैं।

+91 70669 84802: Who man vachan se sanysi nahi honge phir

भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज ने कहा है स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज ने कहा है कि इसके लिए हमें प्रयास करना होता है और इसके लिए हमें प्रणायाम भी करना होता है।

यदि आप मन कर्म और वचन से सन्यासी हो गए तो वस्त्रों को पहनने की कोई आवश्यकता नहीं।

+91 70669 84802: Varayge ke bina kuch prapt nahi ho sakta

बड़े-बड़े सन्यासियों को फिसलते हुए देखा है।

+91 70669 84802: Ye baat sahi hay

वैराग मन की अवस्था है वस्त्र की नहीं।

+91 70669 84802: Hum sansar mai rahte aur sansriyo ka tarha ho jate hay

+91 70669 84802: Santo mai rahnge to hamra anad acch sanskar honge

इसका कारण होता है कि हमारे संस्कारों में कहीं न कहीं कामवासना के संस्कार दबे हुए रहते हैं बहुत नीचे दबे होते हैं हम धीरे-धीरे अपना घड़ा खाली करते हैं कहीं किसी कोने में कामवासना का संस्कार दबा हुआ है वह अचानक प्रकट हो जाता है। स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज ने लिखा भी है जो संस्कार जिस कर्म के द्वारा उत्पन्न होता है क्रिया रूप में वह उसी कर्म के द्वारा ही नष्ट होता है।

अब यदि आप ग्रहस्त है तो आप अपने को संतुष्ट कर सकते हैं किंतु यदि भौतिक बंधन में है तो आप कुछ गलत कर बैठते हैं।

यह आपके पात्र की कमजोरी है की दुनिया के कर्म आपको प्रभावित कर रहे हैं

जब आपका पात्र ही कमजोर है तो आप सन्यासी कैसे बनेंगे।

+91 70669 84802: Patra agar kamjor hota to vargy ki baat karta hi nahi sansar mai lipta ho jata

संतों ने कहा है कि तुम यदि जगत को कीचड़ समझते हो तो उसके कमल की भांति खिलकर रहो कमल के पत्ते पर न कीचड़‌ चढ़ता है और ना ही जल।

आप क्या ब्रह्मचारी है।

आप अपने बालकपन से लेकर अब तक अपने कर्मों की मीमांसा करें और स्वाध्याय करें क्योंकि कोई भी मनुष्य स्वयं अपने लिए वास्तव में निर्णायक होता है।

Bhakt Pallavi: अति ज्ञानवर्धक🙏🏻💐

Hb 96 A A Dwivedi: बहुत सुंदर महाराज जी👏🌹😊🙏

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏🙏💐💐

Vipul Luckhnavi Bullet dekho bde bhai, kuch gyan de, hm to nye he isme।

फेसबुक पर चर्चा। बुद्ध और सनातन।

विपुल लखनवी।

यह प्रश्न तो अपनी जगह पर है लेकिन किसी विशेष पुस्तक के प्रचार करने के लिए यह कुछ अधिक दिखता है।

यह बात बिल्कुल सत्य है की महात्मा बुद्ध ने अहिंसा परमो धर्मा इसको इतना अधिक फैलाया कि हमारे देश में लोग शक्तहीन हो गए युद्ध ही भूल गए।

क्योंकि अधिकतर लोगों ने यह देखा कि बौद्ध मठों का पोषण राजे महाराजे कर रहे हैं वहां पर यदि जाकर हम भिक्षुक बन जाए तो हमारे रहने खाने की व्यवस्था हो जाएगी और हम आसानी से जीवन यापन कर लेंगे।

इसी की आड़ में कई यवन भारत में आए और बौद्ध की शरण में जाकर झूठे बौद्ध भिक्षु बन गए। और वह अपना गलत तरीके से प्रचार करने लगे और गुप्तचर के रूप में यवनों को सारी सूचनाएं देने लगे।

इधर भारतवर्ष में लोग बौद्ध धर्म की गहराई को नहीं समझे बल्कि कुछ न करके भोजन प्राप्त करने का एक मात्र साधन समझने लगे क्षत्रिय हथियारों को चलाना भूल गए वणिक व्यापार करना भूल गए इस तरीके से समाज का पतन होने लगा और बड़ी आसानी से विदेशी आक्रांता भारत को रौंदने लगे।

हालांकि महात्मा बुद्ध ने जो कुछ भी शिक्षाएं दी है वह वेद उपनिषद और भगवत गीता की ही बातें है कुछ भी उन्होंने नया नहीं बताया खाली शब्द चेंज हुए हैं और अंतर केवल यह था कि बौद्ध साहित्य पाली में है और बाकी सब संस्कृत में।

सनातन परंपरा तथाकथित हिंदू परंपराएं नष्ट होने लगी और सनातन परंपरा नष्ट होने के कगार पर आ गई।

अति सर्वत्र वर्जयेत। तब आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ एक तरीके से अवतार हुआ। उन्होंने सनातन की स्थापना की और जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य इस बात को जन्म दिया।

उन्होंने पुनर्जागरण हेतु कई नकली बौद्ध संतो को सजा दिलवाई और उन्हें मृत्युदंड भी दिलाया।

वास्तव में प्रकृति समझाने के लिए किसी न किसी को जन्म देती है।

जब मनुष्य अत्याचारी हो गया तो महात्मा बुध के द्वारा अहिंसा का पाठ दिया। जब मनुष्य आलसी हो गया तो सनातन की पुनर्स्थापना के लिए शौर्य जागरण के लिए आदि गुरु शंकराचार्य जन्म लिया।

महात्मा बुद्ध पर जो अधिकतर साहित्य लिखा गया है वह लोगों ने पूर्वाग्रह होकर और मात्र लिखने के लिए लिखा है अनुभव लेकर बहुत कम लोगों ने लिखा है।

बुध के अष्टमन सिद्धांत को पतंजलि के योग दर्शन द्वारा समझा जा सकता है उनके सम्यक सिद्धांत को भगवत गीता द्वारा समझा जा सकता है। बुद्ध ने कभी साकार की आलोचना नहीं की। लेकिन वे क्योंकि विपश्यना के द्वारा अंतर्मुखी हुए थे अतः निराकार पर चर्चा करते रहे।

जगतगुरु शंकराचार्य आरंभ में अद्वैत अद्वैत चिल्लाते थे लेकिन बाद में वेद दैव्त पर आ गए।

कारण यह है की समय बीतने के पश्चात लोग यह मूल्यांकन नहीं कर पाते कि किसी दार्शनिक ने वो बातें आरंभिक जीवन में लिखी है या अंतिम जीवन में लिखी और वह कोई एक चीज पढ़कर मूल्यांकन कर लेते हैं जबकि अनुभव आयु के साथ परिवर्तित होते रहते हैं जरूरी नहीं एक से रहें।

Vipul Luckhnavi Bullet

पतंजलि के योग दर्शन में ईश्वर है।

बुद्ध के अष्टांग मार्ग में ईश्वर नहीं है।

 

पतंजलि ने ईश्वर की किधर बात की है जरा बताइए।

दोनों ने अंतर्मुखी होने हेतु अपनी आत्मा को पहचानने हेतु आत्म तत्व के साक्षात्कार हेतु बातें लिखी है।

कारण है हम कभी सूक्ष्म भाव में नहीं जाते। एक अनुवाद कर उसको रट कर जानी हो जाते हैं।

अब जगतगुरु शंकराचार्य ने कहा जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य यह क्यों कहा।

वही माधवाचार्य कृष्ण को सब कुछ बता दिया।

रामानुजम ने साकार की बात कर दी।

अब ज्ञानी लोग बिना अनुभव के बिना समझे सबको विपरीत बताने लगे।

जबकि इन्होंने अलग-अलग परिस्थितियों में बात करी आप रूप स्वरूप में देखें तो इस सब ने एक ही बात की है।

पतंजलि में योग शास्त्र में मनुष्य को समझाया यदि वह 8 विधियों को साथ लेकर चलता है आठ अंग से चलता है तो उसे समाधि लग सकती है और उसे योग अनुभव  हो सकता है।

और योग क्या है वेदांत महावाक्य क्या कहता है।

आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है।

मतलब द्वैत से अद्वैत का अनुभव योग है।

जब द्वैत परिपक्व हो जाता है तब अद्वैत खुद चला आता है।

ब्रह्म किसी भी रूप में रहता है।

सर्वस्व ब्रह्म सर्वत्र ब्रह्म।

वह द्वैत भी है अद्वैत भी है।

लेकिन अनुभवहीन ज्ञानी इसका ढिंढोरा पीटते रहते हैं।

जबकि अनुभव के लिए प्रत्येक मनुष्य की एक अवस्था होती है।

Bhakt Varun: Jai Gurudev

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री पद पर नियुक्त हुए शिवोहम आश्रम के संस्थापक महामंडलेश्वर बाल योगी संत स्वामी प्रकाशानंद

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=279020446438263&id=100029909290698?sfnsn=scwshmo&extid=

 Bhakt Baliram Yadav: मृत्यु अटल अखंड सत्य है तो उससे भय कैसा,

जीवन से मोह ही भय और स्वार्थ का कारण है ।

जिस प्रकार जन्म का पर्व होता है उसी प्रकार मृत्यु का भी होना चाहिए । 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*चक्षुषा मनसा वाचा, कर्मणा चतुर्विधम् ।*

 *प्रसादयति यो लोकं,  तं लोकोअ्नुप्रसीदति ।।*

एक अच्छा एवं कुशल प्रशासक वही है जो तन, मन,  धन से अपने लोगों की बिना किसी अपेक्षा व पक्षपात के सेवा करे ।

A good ruler is the one who looks after his people by serving them wholeheartedly and attentively  addresses them with courtesy. (Mansa, Wacha , Karmana)

*शुभोदयम् । लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

मीरा कहो या राधा मतलब तो एक है।

कर लो प्रभु की भक्ति सारे जग में एक है॥

मीरा हरि दीवानी हरि को उसने पाया।  

राधा के केवल गिरधर दृष्टि तो एक है॥

और पढ़ना हो तो लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/01/blog-post_636.html

Bhakt Lokeshanand Swami: यह कथा लोकेशानन्द को बड़ी प्रिय है। आप ध्यान देकर पढ़ें-

चित्रकूट में एकबार एक पत्र पुष्प विहीन ठूँठ पर भगवान की दृष्टि पड़ी। एक जड़ विहीन अमरबेल उस ठूँठ से लिपटी थी। अमरबेल की हरियाली से, वह ठूँठ हरा भरा लग रहा था।

सीताजी ने पूछा, प्रभु! इतने ध्यान क्या देख रहे हैं?

रामजी ने कहा, आप वह ठूँठ देखती हैं, कितना भाग्यशाली है, इसके पास अपनी कुछ शोभा नहीं है, फिर भी यह कितना धन्य है, कि इसे इस अमरबेल का संग मिला, इसकी पूरी शोभा इस बेल के कारण है।

सीताजी कहने लगीं, प्रभु! धन्य तो यह अमरबेल है, जिसे ऐसा आश्रय मिल गया। नहीं तो यह जड़हीन बेल भूमि पर ही पड़ी दम तोड़ देती, कैसे तो ऊपर उठती, कैसे फलती फूलती, कैसे सौंदर्य को प्राप्त होती? भाग्य तो इस बेल का है, वृक्ष का तो अनुग्रह है।

अब निर्णय कौन करे? दोनों ही लक्ष्मणजी की ओर देखने लगे। लक्ष्मणजी ने देखा कि उस वृक्ष और बेल से बनी छाया में एक पक्षी बैठा है।

लक्षमणजी की आँखें भीग आईं। कहने लगे, भगवान! न तो यह वृक्ष धन्य है, न बेल। धन्य तो यह पक्षी है, जिसे इन दोनों की छाया मिली है।

ध्यान दें, ब्रह्म तो वृक्ष जैसा अविचल है, वह बस है, जैसा है वैसा है, तटस्थ है। जब भक्ति रूपी लता इससे लिपट जाती है, तब ही यह शोभा को प्राप्त होता है।

तो भगवान का मत है कि हमारी शोभा तो भक्ति से है।

सीताजी का मत है कि भगवान के ही कारण भक्ति को सहारा है, भगवान की शरण ही न हो, तो शरणागत कहाँ जाएँ? दीनबंधु ही न होते, तो दीनों को पूछता कौन?

पर लक्षमणजी का मत है कि धन्य तो मैं हूँ, माने वह जीव धन्य है, जिसे भक्ति और भगवान दोनों की कृपा मिलती है।

Hb 96 A A Dwivedi: जय हो महाराज जी🙏🙏

यह पुस्तक शकतिपात दिक्षित साधक के लिए अत्यंत उपयोगी है इसमें पेज 12 पर महाराज जी कह रहे हैं कि साधक का ध्यान चक्र के ऊपर हो या न हो भगवती कुण्डली चक्र का भेद करती जाती है मतलब स्वयं का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।।

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: शिवोहम जी

Bhakt Lokeshanand Swami: एक सुबह एक आदमी हिसार नगर के रेलवे स्टेशन पर उतरा। उसने बाहर आकर एक ताँगेवाले से आनन्दनगर चलने को कहा। ताँगेवाले ने कहा कि मैंने आनन्दनगर का नाम तो बहुत सुना है पर कभी गया नहीं हूँ, आप बैठें मैं पूछते पूछते पहुँचा दूंगा। वह आदमी बैठ गया।

पर हैरानी की बात है कि सुबह से शाम हो गई, वे सारा नगर घूम आए, प्रेमनगर, प्रीतीनगर, योगनगर, ध्यानकुंज, कोठीकुंज, कामिनीकुंज, कंचनविहार, न मालूम कहाँ कहाँ गए, लेकिन उन्हें आनन्दनगर नहीं मिला।

जिससे भी रास्ता पूछते, वह भी यही कहता कि हमने आनन्दनगर का नाम तो बहुत सुना है पर कभी गए नहीं हैं।

दिन ढलने लगा तो दोनों घबराने लगे। तांगेवाले को एक पैसा तक नहीं मिला, घोड़े भी थक गए। और वह आदमी सोचने लगा कि रात कैसे बीतेगी?

अचानक एक दाढ़ीवाले ने तांगे का रास्ता रोक लिया। हंसते हुए बोला, मैं यह भी जानता हूँ तुम क्या ढूंढ रहे हो, और मैं उस नगर को भी जानता हूँ। मैं उसी में रहता हूँ। तुम्हें भी ले चलूंगा, पर मेरी एक शर्त है, तांगा मैं चलाऊँगा।

ऐसा ही किया गया। दाढ़ीवाला तांगा जंगल की ओर ले चला। कुछ ही देर में सुनसान रास्ता देख कर दोनों और भी घबरा गए, और बोले- बस हमें आगे नहीं जाना। तांगा रोक दो, हमें हमारे हाल पर छोड़ दो।

दाढ़ीवाले ने तांगा रोका, नीचे उतरा और बोला- अब आनन्दनगर दूर नहीं है। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास हो तो कुछ ही देर में पहुँचा दिए जाओगे।

लोकेशानन्द कहता है कि तुम भी यहाँ आनन्द ही ढूंढ रहे हैं। जीवन की शाम हो गई, मृत्यु की रात होने वाली है, इन्द्रियों के घोड़े भी थक गए, पर आनन्द नहीं मिला।

मैं ही आनन्दनगर का वासी हूँ, तुम्हें भी पहुँचा सकता हूँ।

घबराओ मत! तुम आधा रास्ता पार कर आए हो, अब कुछ ही दूरी शेष है। अगर तुम मुझ पर विश्वास कर सको, और अपनी बुद्धि का तांगा मुझे चलाने दो, तो तुम भी आनन्दनगर पहुँच सकते हो।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

गुरुरेव जगत्सर्वं ब्रह्म विष्णु शिवात्मकम्।

गुरोः परतरं नास्ति तस्मात्संपूजयेद्गुरुम्॥८०॥

ज्ञानं विज्ञानसहितं लभ्यते गुरुभक्तितः।

गुरोः परतरं नास्ति ध्येयोऽसौ गुरुमार्गिभिः॥८१॥

अर्थ: ब्रह्मा, विष्णु, शिव इन तीन देवों की शक्ति से संचारित यह पूरा संसार गुरु तत्व का ही स्वरूप है, गुरु से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। ऐसे गुरुदेव का ही पूजन करना चाहिए।

गुरु भक्ति से विज्ञान सहित ज्ञान की प्राप्ति होती है। गुरु से बढ़कर और कुछ नहीं है। अतः गुरु मार्ग पर चलने वालों के लिए ये गुरुदेव ही ध्यान के विषय है।

व्याख्या: केवल पठन-पाठन, चिंतन, मनन, योगाभ्यास से तथा भजन पूजन से विज्ञान सहित ज्ञान प्राप्त नहीं होता, वह तो गुरु भक्ति से ही सहज सुलभ है।

गुरु भक्ति का अर्थ है गुरुदेव की शारीरिक सेवा, मन से गुरु प्रदत्त मंत्र का जप, चित्त से स्मरण, ये गुरुभक्ति के तीन प्रकार हैं, इससे गुरु शक्ति का अंतर में प्रकाश फैलता है। अनेक प्रकार की क्रियाएं होने लगती हैं, उन क्रियाओं में शारीरिक या मानसिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। श्री गुरुदेव के आदेशानुसार जीवन के विकास का प्रयत्न करना, गुरु भक्ति का स्वरूप है।

यहां पर ज्ञान तथा विज्ञान पर हम विशेष रूप से प्रकाश डालना चाहते हैं। शास्त्रों के पठन-पाठन, चिंतन, मनन, सत्संग एवं परस्पर वार्तालाप द्वारा संपादित ज्ञान, ज्ञान कहलाता है, उसमें जब पूर्ण अनुभव भी मिल जाता है तब वह विज्ञान कहलाता है,  जैसे "शक्तिपात प्रक्रिया" केवल शास्त्र पढ़ कर समझ में नहीं आ सकती जब तक वह प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा सिद्ध नहीं होती। इसी प्रकार पूर्ण विज्ञान की अवस्था केवल गुरु के प्रति भक्ति एवं समर्पण से ही प्राप्त होती है। अतः गुरु से बढ़कर कुछ नहीं है। गुरु मार्ग पर चलने वालों के लिए केवल गुरुदेव ही ध्यान के विषय है।।

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Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 आध्यात्म मार्ग / परंपरा में साधक की अवस्था के बारे में बताएं।

जगत का ज्ञान तुम से ही प्रकटे। ज्ञान विज्ञान मां तुम्ही से उपजे॥

महिमा तेरी कोई न जाने।  पर सबको जाने गायत्री माता॥

पंचमुखों का मां रूप बनाया। असुरों को पाताल पैठाया॥

भक्तों को सदा सुख देने वाली। सब इच्छित देती गायत्री माता॥

और पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/03/blog-post_4.html

Bhakt Lokeshanand Swami: आज यहाँ भगवान की विलक्षण कृपा बरस रही है, सब ओर धन्यता छा रही है, क्योंकि प्रिय भरतलालजी महाराज का प्रसंग प्रारम्भ हो रहा है।

अयोध्याकांड मुख्य रूप से भगवान के हृदय भरतजी का ही चरित्र है। भरतजी कौन हैं? "भावेन् रत: स भरत" जो परमात्म् प्रेम में रत है वो भरत। भरत माने संत, भरत माने सद्गुरु। और अयोध्याकांड में गुरुओं की ही महिमा है। पहले भारद्वाज जी, फिर वाल्मीकि जी और अब भरतजी। नाम ही भिन्न भिन्न हैं, तत्व, अनुभूति, प्रेमभाव तो एक ही है।

यहाँ जो है, जैसा है, जिस स्थिति में है, बस भरतलाल जी के साथ हो ले, संत का संग कर ले, गुरुजी के बताए साधन और उपदेश को पकड़ ले, उसे भगवान मिलते ही हैं।

कोई लाख पापी हो, उसके माथे पर कितना ही कलंक क्यों न लगा हो, पतित हो, योगभ्रष्ट हो, पात्र न हो, सामर्थ्य न हो, भरतजी के यहाँ सबका स्वागत है।

उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं, किसी से कुछ चाहिए नहीं, बस उसमें भगवान को पाने की तड़प होनी चाहिए।

देखो, भगवंत की कृपा के बिना संत नहीं मिलते, और संत की कृपा के बिना भगवंत नहीं मिलते। वास्तव में ये दिखते ही दो हैं, दो हैं नहीं, भगवान ही भक्त की तड़प को देखकर, संत बन आते हैं।

ध्यान दो, आज अयोध्या की क्या स्थिति है। भगवान चले गए, सब रोते बिलखते पीछे छूट गए। अब न मालूम कब भगवान से मिलना होगा?

लोकेशानन्द विचार करता है कि एक ओर भगवान हैं, दूसरी ओर मृत्यु है, न मालूम पहले कौन आए, कहीं उनके आने से पहले मौत तो नहीं आ खड़ी होगी? हाय! हाय! बड़ी भूल लग गई, अब कैसे उनको पाएँ?

और सब पाएँगे, कैसे? भरतजी मिलवाने ले जाएँगे। भरतजी हमें भी ले जाएँगे, तैयार हो रहो॥

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*कर्मणा मनसा वाचा  यदभीक्ष्णं निषेवते ।*

*तदेवापहरत्येनं तस्मात् कल्याणमाचरेत्।।*

दूसरों की भलाई के लिये अच्छे कार्य अगर पूरे तन मन से , व तत्परता से किये जायें   तो वह आत्मिक संतोष प्रदान करते हैं।

अतः हमेशा सत्कार्यो  व दूसरों की भलाई के कार्य करते रहिये ।

A noble deed done wholeheartedly and steadily , in speech, thought and action , is fascinating and attractive. Therefore, always act for the welfare of others and perform good deeds.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Bhakt Lokeshanand Swami: एक राजा ने सुना कि शुकदेव जी से भागवत सुन कर परीक्षित मुक्त हो गए थे।

राजा ने सोचा कि मैं भी भागवत सुनकर मुक्त होऊँगा। बस फिर क्या था? घोषणा करवा दी गई। एक के बाद एक कथा सुनाने वाले आने लगे। राजा प्रत्येक सप्ताह कथा सुनता, पर मुक्त न होता, और कथा सुनाने वाला कैद में डाल दिया जाता। योंही बहुत समय बीत गया। कल ही एक बूढ़े बाबा को भी जेल में डाला गया है।

आज एक युवक दरबार में आया है। कहता है मैं आपको कथा सुनाऊँगा। पर मेरी एक शर्त है। पहले मुझे एक घंटे के लिए राजा बनाया जाए।

मंत्रियों की तलवारें खिंच गईं। राजा मुस्कुराया। मंत्रियों को शांत रहने का इशारा कर, सिंहासन से नीचे उतर आया।

"सिंहासन स्वीकार करें" राजा ने युवक से कहा।

युवक सिंहासन पर बैठा, और बोला- जेल में बंद मेरे दादा, बूढ़े बाबा को दरबार में बुलाया जाए और दो रस्सियाँ मंगवाई जाएँ।

ऐसा ही किया गया। बाबा समझ नहीं पाए कि वहाँ क्या हो रहा है? अब युवक ने एक मंत्री से कहा- एक रस्सी से बाबा को एक खम्बे से, तो दूसरी रस्सी से महाराज को दूसरे खम्बे से बाँध दिया जाए।

जब दोनों बंध गए तो युवक ने राजा से कहा- महाराज! आप बाबा को खोल सकते हैं?

राजा मौन ही रहा। तब युवक बाबा से बोला- दादा जी! आप ही महाराज को खोल दीजिए।

बाबा जी चिल्लाए- मूर्ख! तूं कर क्या रहा है? मैं तो जेल में ही था, पर तूं फांसी चढ़ेगा। अभी तक तो मैं यही समझता था कि तूं आधा पागल है, पर तूं तो महामूर्ख है। जब मैं खुद बंधा हूँ, तो महाराज को कैसे खोल सकता हूँ?

अब मुस्कुराने की बारी युवक की थी। रस्सियाँ खुलवा कर, वह सिंहासन से उतर गया। राजा के चरणों में झुका और बोला- महाराज! मेरी धृष्टता क्षमा हो। मुझे बस इतना ही कहना था कि जो स्वयं बंधन में पड़ा हो, वह दूसरे को मुक्त कैसे करेगा? आपका सिंहासन आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।

लोकेशानन्द भी यह कहानी सुन कर मुस्कुरा कर रह जाता है।

Dr manisha p iii  kem h: सुंदर कथा,

मैं जनकल्याण समिती,मुंबई के लिये,बालसंस्कार वर्ग,में कथा सुनाने का काम करती हूं, इस कथा को सुनाने की अनुमती चाहती हूं।

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


 

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