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Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 14

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 14



Bhakt Lokeshanand Swami: भरतजी अयोध्या पहुँचे, आज अयोध्या शमशान लग रही है।

कोई नगरवासी भरत जी की ओर सीधे नहीं देखता। आज तो सब उन्हें संत मानते हैं, पर उस समय सब के मन में भरतजी को लेकर संशय था।

यही संसार की रीत है, जीवित संत को पहचान लेना हर किसी के बस की बात नहीं, क्योंकि संत चमड़े की आँख से नहीं, हृदय की आँख से पहचाना जाता है। पर वह है कितनों के पास? हाँ! उनके जाने के बाद तो सब छाती पीटते हैं।

भरतजी सीधे कैकेयी के महल में गए, क्योंकि रामजी वहीं मिलते थे। कैकेयीजी आरती का थाल लाई है, भरतजी पूछते हैं, भैया राम कहाँ हैं? पिताजी कहाँ हैं? काँपती वाणी से उत्तर मिला। वही हुआ जिसका कैकेयीजी को भय था। भरतजी की आँखों से दो वस्तु गिर गई, एक वो जो फिर गिरते ही रहे, आँसू। और दूसरी जो फिर नजरों में कभी उठ नहीं पाईं, कैकेयीजी।

संत की नजरों से गिर जाना और जीवन नष्ट हो जाना, एक जैसी बात है।

भगवान के राज्याभिषेक के बाद की घटना है, कैकेयीजी रामजी के पास आईं, बोलीं- राम! मैं कुछ माँगूगी तो मिलेगा?

रामजी की आँखें भीग आईं, कहने लगे, माँ! मेरा सौभाग्य है, कि आपके काम आ सकूं, आदेश दें।

कैकेयीजी ने कहा, हो सके तो एकबार भरत के मुंह से मुझे "माँ" कहलवा दो।

रामजी ने तुरंत भरतजी को बुलवा भेजा। भरतजी दौड़े आए, दरबार में कदम धरते ही कनखियों से समझ लिया कि वहाँ और कौन बैठा है। तो कैकेयीजी को पीठ देकर खड़े हो गए।

रामजी ने पूछा, भरत! मेरी एक बात मानोगे भाई?

भरतजी के प्राण सूख गए, गला रुंध गया, परीक्षा की घड़ी आ गई। बोले, मानूँगा भगवान, जो आदेश देंगे मानूँगा, पर एक बात को छोड़ कर।

रामजी ने पूछा, वह क्या भरत?

भरतजी कहते हैं, इन्हें माँ नहीं कहूँगा॥

अब विडियो देखें- भरत जी अयोध्या आए-

https://youtu.be/9TWpf3t8gIs

Bhakt Lokeshanand Swami: एक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई। सेठ ने उससे पूछा- भाई! यह क्या है?

उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है। कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो, यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है।

सेठ भूत की प्रशंसा सुनकर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी। उस आदमी ने कहा- कीमत बस पाँच सौ रुपए है। कीमत सुनकर सेठ ने हैरानी से पूछा- बस पाँच सौ रुपए?

उस आदमी ने कहा- सेठ जी! जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है।

सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है। यह भूत मर जाएगा पर काम खत्म न होगा। यह सोचकर उसने भूत खरीद लिया।

भूत तो भूत ही था। उसने अपना चेहरा फैलाया बोला- काम! काम! काम! काम!

सेठ भी तैयार ही था। तुरंत दस काम बता दिए। पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। इधर मुंह से काम निकलता, उधर पूरा होता। अब सेठ घबरा गया।

संयोग से एक संत वहाँ आए। सेठ ने  विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बताई। संत ने हँस कर कहा- अब जरा भी चिंता मत करो। एक काम करो। उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस लाकर, आपके आँगन में गाड़ दे। बस, जब काम हो तो काम करवा लो, और कोई काम न हो, तो उसे कहें कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे। तब आपके काम भी हो जाएँगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी।

सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा।

लोकेशानन्द कहता है कि यह मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है। एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है। श्वास ही बाँस है। श्वास पर नामजप का अभ्यास ही, बाँस पर चढ़ना उतरना है।

आप भी ऐसा ही करें। जब आवश्यकता हो, मन से काम ले लें। जब काम न रहे तो श्वास में नाम जपने लगो। तब आप भी सुख से रहने लगेंगे।

Hb 87 lokesh k verma bel banglore: 🕉🌹13.05.2020 बुद्धवार🌹

*जरा रूपं हरति धैर्य माशा मॄत्यु प्राणान धर्मचर्या सूया ।*

*कामो दि्वयं वॄत्तमनार्य सेवा क्रोध: श्रियंसर्वमेवाभिमान: ।।*

वृद्धावस्था युवावस्था की बैरी है,

क्रोध उन्नति मे बाधक है,व घमंड पूरे व्यक्तित्व का शत्रु है।

Old age is the enemy of youth, death is the enemy of life, anger is the enemy of prosperity and PRIDE is the enemy of whole personality.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

+91 79828 87645: परंतु प्रश्न क्या था प्रश्न को तो मैं भूल ही गया❓🙏

कोई बात नहीं भूलना ही अच्छा है।

स्वामी तूफानगिरी महाराज की जय हो।

प्रभु जी लाक डाउन फिर बढ़ गया अब उन साधुओं के हत्यारों के बारे में क्या विचार है।

+91 79828 87645: गुरुजी जब तक हिंदू लोग मुस्लिमों की तरह हिंसा पर नहीं उतरेंगे जब तक कुछ नहीं होने वाला

हमको बोलना कम चाहिए कार्य अधिक करना चाहिए।

ग्रुप में इस तरह की बातें न करें धन्यवाद।

🙏🏻🙏🏻

कोई ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जिसमें कानून तोड़ने का जिक्र हो।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: कोई बात नहीं भूलना ही अच्छा है।

कोई बात नहीं, भूलना ही अच्छा है।

यार तुम भी राजनीतिज्ञ हो यह बात मैंने प्रश्न के लिए कही है और तुमने इस को कहा पर पोस्ट किया इसके क्या अर्थ लिए जाएंगे।

☹️☹️

Bhakt Lalchand Yadav: 🕉🌞🌞🌞🚩🌞🌞🌞🕉

 जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरियावस्था क्या है ?इन्हें विस्तार से समझाने की कृपा कीजिए।

          - तरसेम लाल जी

           🔥

🌞 तरसेम जी ॐ जय मां आदिशक्ति! मानव शरीर में आत्मा ही सब कुछ है अन्य सभी प्रकृति है जो जड़ है । हमारे शरीर में जो कुछ भी जड़ है वह आत्मा के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। स्थूल शरीर हो, सूक्ष्म शरीर हो ,चाहे कारण शरीर हो ,उसमें सारी क्रियाओं का कारण यह आत्मा ही है ।अन्य सभी पदार्थ एवं अवयव जड़ प्रकृति से निर्मित होने के कारण कोई क्रिया नहीं कर सकते ।स्थूल शरीर में देखना, स्वाद लेना, सुनना,  स्पर्श करना , स्पर्श करना आदि तथा कर्मेंद्रियों की सभी क्रियाओं का कारण यह आत्मशक्ति ही है । मन, बुद्धि, अहंकार का कारण भी यह चेतन तत्व ही है ।चेतना के अभाव में यह शरीर कुछ भी नहीं कर सकता ।यह चेतन शक्ति चार अवस्थाओं में हमारे शरीर में विद्यमान रहती है ।जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरिया अवस्था। 👉 जागृत अवस्था -जागृत अवस्था में यह आत्मशक्ति इस संसार का अनुभव करती है भगवान शंकराचार्य ने आत्म तत्व की 4 अवस्थाओं को समझाते हुए लिखा है --जागृत अवस्था  आत्मा का स्थूल शरीर है ।इंद्रियों में विषयों की उपलब्धि ही जागृत अवस्था है अर्थात  जागृत अवस्था वह अवस्था है जिसमें यह आत्म तत्व समस्त सांसारिक कार्यों का संपादन एवं उपयोग करता है । हमारी   पाँच ज्ञानेंद्रियां  हैं तथा इनके पाँच ही विषय हैं। इनके द्वारा जो विशेष अनुभव होता है उसी को "जागृत अवस्था" कहते हैं। इस अवस्था में स्थूल शरीर का अभिमान रहने से आत्मा विश्व नाम वाला होता है चेतना कि इसी अवस्था को "वेश्वानर" कहते हैं ।

👉 स्वप्नावस्था- जागृत अवस्था में मनुष्य को जो भी ज्ञान प्राप्त होता है। वह पांँचों ज्ञानेंद्रियों द्वारा होता है। इसके सिवा ज्ञान प्राप्ति का अन्य कोई साधन नहीं है किंतु स्वप्नावस्था  में इंद्रियां विषयों को ग्रहण नहीं कर सकती। जिससे उनसे कोई ज्ञान प्राप्त नहीं होता ।स्वप्न में जो भी दृश्य दिखाई देते हैं वे जागृत अवस्था में जो कुछ देखा, सुना गया है उसकी सूक्ष्म वासना मन में समाहित रहती है। मन की इसी वासना के कारण निद्रा काल में जगत का जो व्यवहार दिखाई देता है उसी को स्वप्नावस्था कहते हैं। वस्तु के होते हुए भी उसका दिखाई देना मन की वासना के कारण ही होता है इस अवस्था में स्थूल शरीर तो निष्क्रिय हो जाता है किंतु सूक्ष्म शरीर जागृत रहता है आत्मा को उस समय सूक्ष्म शरीर का अभिमान होता है कि मैं सूक्ष्मा शरीर हूं इस अवस्था में आत्मा तेजस रूप वाला होता है आत्मा के तेज से ही सभी दृश्य दिखाई देते हैं आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने कहा है कारणों का उपसंहार हो जाने पर जागृत के संस्कार से उत्पन्न जो सविषयक वृत्ति है उसी को स्वप्नावस्था कहते हैं।

👉 सुषुप्तावस्था- जागृत अवस्था में ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से होता है। स्वप्नावस्था में यह ज्ञान मन से उसकी वासना के अनुसार होता है जबकि सुसुप्तावस्था में मन भी सुप्त हो जाता है। इस अवस्था में उसे किसी प्रकार का अनुभव नहीं होता मात्र निद्रा का अनुभव होता है । इस अवस्था में  आत्म चेतना को अपने कारण शरीर का अभिमान रहता है । वह इसी को अपना वास्तविक स्वरूप मानता है ।आत्मा की यह अवस्था 'प्राज्ञ'कहलाती है जिसमें यह अनुभव स्वयं आत्मा द्वारा होता है। वास्तव में यदि देखा जाए तो जानने वाला केवल आत्मा है। आत्मा की उपस्थिति में ही जानने योग्य विषय वस्तु को जाना जाता है । आत्मा सीधा ही ज्ञान का कारण  है। जागृत अवस्था में ज्ञान का कारण शरीर की ज्ञानेंद्रियां होती है। स्वप्ना अवस्था में ज्ञान का कारण मन होता है । इस अवस्था में मन भी शांत हो जाता है इसलिए यहां पर ज्ञान का बोध सिर्फ आत्मा के द्वारा किया जाता है।

👉 तुरियावस्था- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति में आत्मा विश्वानर, तेजस और प्राज्ञ अवस्था में रहती है। इसकी चौथी अवस्था "तुरीया "कही गयी है। इस अवस्था में सभी दृश्य तथा ज्ञान का विलय हो जाता है। केवल परब्रह्म के समान निर्विकल्प ,निर्विचार  ,शून्य अवस्था प्राप्त हो जाती है। इस स्थिति में सभी विकल्प समाप्त होकर केवल ज्ञान ही शेष रह जाता है। यही जीवात्मा की मुक्तावस्था है। आरंभ की तीन अवस्थाओं में जीव और आत्मा के बीच भेद बना रहता है ।ज्ञाता और ज्ञान का भेद रहता है। अभेद का ज्ञान होने पर भी भेद बना रहता है। जीव और ब्रह्म में भेद रहने से ही जीव ब्रह्म की साधना करता है । जीवात्मा उसी का अंश है किंतु प्रकृति के आवरण में आकर वह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाती है। नाशवान जड़ तत्वों से बने हुए भौतिक शरीर को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझने लगती है । इसी के दुख एवं सुख को अपना दुख एवं सुख मानने लगती है। जब निरंतर  ध्यान के अभ्यास से उसे अपने वास्तविक स्वरूप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर हो जाता है तो वह अपने  वास्तविक स्वरूप को ही धारण कर लेती है । साधक के हृदय में "आत्मवत् सर्वभूतेषु "की स्थिति उत्पन्न  हो जाती है।उसे संपूर्ण संसार अपना ही स्वरूप दिखाई देने लगता है।न कोई अपना न कोई पराया ,सब कुछ अपना ही स्वरूप  दिखाई देने लगता है अर्थात उसकी चेतना ब्रह्मांड व्यापी अस्तित्व को धारण कर लेती है। इस स्थिति में साधना की आवश्यकता ही नहीं रहती । अब कौन किसकी साधना करें? तुझमें मुझमें बस भेद  यही  मैं नर हूंँ तू नारायण है किंतु यहां पर पहुंचने के बाद योगी की यह स्थिति  समाप्त हो जाती है । फिर  जो स्थिति उत्पन्न होती है उसमें साधक कह उठता है- तुझमें मुझमें अब भेद नहीं  तू नारायण ,मैं भी नारायण हूँ। एक ही में साधना नहीं हो सकती ।इसलिए तुरियावस्था में सभी साधनाएं समाप्त हो जाती हैं क्योंकि इसमें आत्मा को  परमात्मा से एकत्त्व का अनुभव हो जाता है ।नदी पार होने पर फिर नाव की आवश्यकता नहीं रहती।उसे भी छोड़ना पड़ता है। इस स्थिति में योगी को जगत अपना ही स्वरूप ज्ञात होने लगता है ।वह वासना शून्य हो जाता है ।वासना ही जन्म का कारण बनती है तथा वासना शून्य होना ही वास्तविक मुक्ति है ।जिस साधक के मन में इस संसार के प्रति कोई वासना नहीं ,कोई आसक्ति नहीं! वह समस्त बंधनों से मुक्त होकर हमेशा हमेशा के लिए इस संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है।

⚜🚩 सत्यमेव जयते

  ⚜🚩 जय मां आदिशक्ति 🚩⚜

Bhakt Lalchand Yadav: पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे तो . . .

बच्चे की नाभि कौन काटता था मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी ?

आपका मुंडन करते वक्त कौन स्पर्श करता था ?

शादी के मंडप में नाईं और धोबन भी होती थी। लड़की का पिता लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था।

वाल्मीकियों के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता हैं ।

आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था?

भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी?

किसने आपके कपडे धोये?

डोली अपने कंधे पर कौन मीलो मीलो दूर से लाता था और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल न थी कि आपकी बिटिया को छू भी दे।

किसके हाथो से बनाये मिट्टी की सुराही से जेठ में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी ?

कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था?

कौन फसल लाता था?

कौन आपकी चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता हैं?

जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे।

. . . और कहते है कि छुवाछूत था ??

यह छुआ छूत की बीमारी मुगलों और अंग्रेजों ने हिंदु धर्म को तोड़ने के लिए एक साजिश के तहत डाली थी।

जातियां थी, पर उनके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई  उल्लेख नहीं करता।

अगर जातिवाद होता तो राम कभी शबरी के झूठे बेर ना खाते,

सत्यकाम जाबाल महर्षि जाबाल ना कहलाए जाते,

रत्नाकर महर्षि बाल्मीकी के नाम से ना पूजे जाते

जाति में मत टूटीये, धर्म से जुड़िये . . . देश जोड़िये।

सभी जातियाँ सम्माननीय हैं...

एक हिंदु, एक भारत श्रेष्ठ भारत🌱⛳🙏🙏


फेसबुक पर एक चर्चा

गुरु ढूंढ रहा हूं कई सालों से 🙏

जब तक वक़्त नही आता तब तक गुरु नही मिलते।  ,,,,,हम 15  साल के थे जब हमको गुरु मिले।  सब पिछले जन्मों की।  कहानी होती है।


मेरा उत्तर

गुरु को ढूंढा नहीं जाता है गुरु खुद शिष्य को ढूंढ लेता है।

इस गुरु के चक्कर में किसी गुरु घंटाल के चक्कर में मत पड़ जाना।

सत्य सुंदर उपाय होता है अपने इष्ट का अपने कुलदेव का सतत निरंतर मंत्र जप करो यह मंत्र जप तुमको गुरु से लेकर निर्वाण तक योग से लेकर ब्रह्म ज्ञान तक स्वत: पहुंचा देता है।

यदि उचित लगे तो अपने ही घर पर बिना पैसे खर्च किए बिना गुरु के सचल मन वैज्ञानिक ध्यान की विधि करो जो तुमको अनुभव के साथ गुरु तक पहुंचाने में सहायता कर देगा। लिंक नीचे है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html

+91 79828 87645: परंतु किसी बात को भूल जाना खाला जी का घर है क्या

अब आपने विपुल जी की बात पर प्रतिक्रिया पर डबल पुनरावृत्ति करके प्रतिक्रिया दी है इस बात को भूल कर दिखा दो

Hbg P N Agnihotri: Kya bhakti ko yog mana ja sakta hai

Bhakt Shivkumar bhardwaj ji: हां  योग ही है

Hbg P N Agnihotri: Pahle itana to pacha len yah bhari yog hai sahab

Bhakt Shivkumar bhardwaj ji: जब यह पच 😄😄😄😄😄 जाए तब दोबारा पूछ लेना

यह संभव है कि आपको भक्ति के द्वारा योग अनुभूति हो जाए।

किंतु योग होने के बाद आप भक्त हो जाएंगे यह बिल्कुल आवश्यक नहीं।

क्योंकि भक्ति द्वैत की बात करता है।

जबकि योग होने का अर्थ होता है अद्वैत का अनुभव।

यदि आप ज्ञान मार्ग से योग का अनुभव करते हैं तो आवश्यक नहीं कि आपके अंदर भक्ति पैदा हो।

Bhakt Nayyer Healer Reki: Mera anubhav bhi yahi kehta hai ki apne guru se milne ke liye apna time kharab na kre, apni sadhna se Jude rahe, jab guru theek samjhenge khud aap se sampark kr lenge.

Mei 12years ki age se regular Dhyan aur Pooja kr raha hu, aur mujhe mere guru 60 years ki age me mile.

Is karya Mei jaldbaji na kare.

Sachal Mn vigyanic Dhyan ke dwara aap bahut jald apne guru aur easht tk pahuch sakte hei.

Bhakt Komal: शत प्रतिशत सही कहा🌹🙏

और गुरु मिले हैं तो वह भी विपुल सेन के द्वारा।

Sadguru bhi apne chelo se kam lena jante hei.

+91 81785 22322: जनाब बाकी तीन कोष को भी विभाजित करके लिख देते तो पूर्ण पंच कोष नश्वर शरीर की व्याख्या हो जाती ।

+91 81785 22322: पंचकोश ये हैं- 1. अन्नमय, 2. प्राणमय, 3. मनोमय, 4. विज्ञानमय और 5. आनंदमय। उक्त पंचकोश को ही पाँच तरह का शरीर भी कहा गया है।

वैसे इस तरह के प्रश्न पूछना इस सभा में उचित नहीं है क्योंकि अभी हम उस तह तक नहीं पहुंचे है।

शिव पुत्र: 1) *अन्नमय कोष*


जो पृथ्वी आप तेज वायु और आकाश पंचतत्व से बना है अर्थात माता पिता के रजबेरी असे उत्पन्न होता है उसे *स्थूल शरीर* कहते है उसी का दुसरा नाम *अन्नमय कोश* क्यु की ये  अन्न के विकार से उत्पन्न होता है और अन्न के सहारे ही जीवित रहता है

पाच ज्ञानेंद्रिये पाच कर्मेंद्रिये पंचप्राण मन और बुद्धी ये सतरा त्व से बने हुए शरीर को *सूक्ष्म शरीर* कहते है

अब इन 17 तत्वों में से पंचप्राण के प्राबल्य से ये सूक्ष्म शरीर *प्राणमय कोष*

मन के प्राबल्य से *मनोमय कोष*

बुद्धि के प्रधानता से *विज्ञानमय कोष*

कहलाये जाते है

अज्ञान को *कारणशरीर* शरीर कहते है, एक इंसान को बुद्धि तक ही ज्ञान होता है उसके पर ज्ञान नही रहता है उसे *अज्ञान* कहते है. औए ये अज्ञान पूरे शरीर का है ऐसी वजह से उसे *कारणशरीर* कहा जाता है

*"" अज्ञानमेवास्य हि मुलकरणम ""*

यही कारणशरीर को स्वभाव,आदत, प्रकृति या *आनंदमय कोष* भी कहत है

] +91 81785 22322: बहुत सुंदर व्याख्यान

] शिव पुत्र: *जागृत अवस्था* मे स्थूलशरीर की प्रधानता के कारण उस के साथ सूक्ष्म और कारणशरीर भी साथ होते है

*स्वप्न अवस्था* मे सूक्ष्म शरीर की प्रधानता के कारण उस के साथ कारण शरीर भी होत है

*सुषुप्ति अवस्था* में स्थूल शरीर ( अन्नमय कोष) के ज्ञान का अभाव होता है,ये सूक्ष्म शरीर प्राणमय,मनोमय,और विज्ञानमय कोष का बना हुवा होता है मतलब बुद्धि अज्ञानता में लीन हो जाती है इसलिए सुषुप्ति अवस्था कारणशरीर की होती है

जागृत अवस्था मे और स्वप्न अवस्था मे सुख दुःख दोनों का अनुभव होता है,परंतु सुषुप्ति अवस्था मे केवल सुख का अनुभव रहता है वह दुःख का अनुभव नही होता है

इसलिए कारणशरीर को *आनंदमय कोष* कहते है

शिव पुत्र: *इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते |*

*एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ||*

(भ.गीता 13 \ 1 )

SHIVJI: प्रकृति पुरुष तथा चेतना अध्याय 13

              अर्जुन उवाच

प्राकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च

एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव।।१।।

हे केशव प्रकृति पुरुष क्षेत्र और क्षेत्र को जानने वाले के विषय में मैं जानना चाहता हूं ज्ञान और ज्ञेय के विषय में भी बताने की कृपा करें ?

                  श्रीभगवानुवाच

इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।२।।

हे कुंती पुत्र यह शरीर (स्थूल शरीर) क्षेत्र कहलाता है इसे इस प्रकार (क्षेत्र को) यह जो जानने वाला है वह क्षेत्रज्ञ कहा जाता है क्षेत्र क्षेत्रज्ञ  ज्ञानवान अस्तित्व ही तत्व वेत्ता है

क्षेत्रज्ञ चापि मां विद्ध सर्वक्षेत्रेषु भारत ।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोज्ञानम् यततत्ज्ञानं मतं मम ।।३।।

हे भरतवंशी ! क्षेत्रज्ञ भी  मैं हूं निश्चित ही सभी क्षेत्रों को मुझ क्षेत्रज्ञ के द्वारा ही जाना जा रहा है

क्षेत्र और क्षेत्र को जानने वाले को जानना ज्ञान से मेरा अभिप्राय है।


भावार्थ

इन दो श्लोक में जो भगवान ने कहा है

है बात तो बहुत गहरी है परंतु 2 4 बात ख्याल में लेंगे तो बात क्लियर हो जाएगी क्षेत्र है शरीर शरीर को महसूस करने वाला है मन (दि माईंड )और मन को भी जानने वाला है आत्मा आत्मा ही क्षेत्रज्ञ और आत्मा ही परमात्मा है परमात्मा का हिस्सा है परमात्मा का अंश है परमात्मा  की ही एक मात्रा है क्योंकि हमारी पकड़ में अभी आत्मा नहीं है पकड़ का मतलब है कि हम अपने आपको केवल मन समझे बैठे हैं आत्मिक बोध हमें नहीं हैं आत्मिक बोध जब प्रकट होता है तो शरीर भी दिखाई देता है और मन भी दिखाई देता है प्रथक प्रथक सब चीजें दिखाई देने लग जाती हैं और हम केवल दृष्टा होते हैं

     

इस बात को इस उदाहरण से समझैं

एक बच्चा मैदान में खेल रहा है  और खेलते समय अचानक उसके पैर में चोट लग गई है  और पैर में से खून बह निकला है  और खेल देखने वाले दर्शक सभी देख रहे हैं कि बच्चे के पैर में से खून निकल रहा है  परंतु बच्चे का ध्यान पूरी तरीके से खेल में है  बच्चे की सारी चेतना बाहर की तरफ खींची हुई है  पूरी तरीके से  ध्यान खेल पर है पैर का उसे तनिक भी ध्यान नहीं है ना दर्द का पता है ना खून का पता है परंतु खेल रुक गया बच्चा बैठ गया और अचानक से बहुत तेज दर्द पैर में महसूस करता है और देखता है खून पैर को पकड़ कर के बैठ जाता है अभी भी उसे पैर के दर्द को पता चल रहा है परंतु उसे नहीं जान रहा जिसको दर्द हो रहा है दर्द को महसूस करने वाला है मन मन को दर्द हो रहा है इस बात को देखना क्षेत्रज्ञ का काम है और क्षेत्रज्ञ की समझ ही ज्ञान है और क्षेत्रज्ञ ही आत्मा है

भगवान कृष्ण के करीब करीब सभी सूत्र अंततः दृष्टा की ओर ही इशारा करते हैं

मेरी बात को इतने ध्यान से पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद     🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏      

Npc Narendra Parihar: एक अल्पविराम ने बात को सकारात्मक बना दिया।

आराम से बोलना बातों में सौहाद्र भर देता है।

🙏🙏🙏🙏

Swami Pranav Anshuman Jee: ॐ शांति 💐💐🙏🙏

13/05/2020, 20:02 - Bhakt Varun: मै कौन हू ?

आप बताओ।

13/05/2020, 20:16 - Bhakt Varun: मैं क्या जानू  अज्ञानी हू

Bhakt Varun: Vipul g pls bataye

तुम शक्तिपात साधक हो। क्रिया से समझो।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: देवास टेकरी स्थित मां चामुंडा देवी का सन 1940 का दुर्लभ चित्र....

+91 79828 87645: वरुण कड हो

Bhakt Varun: मेडिटेशन करते समय मुझे यह आवाज सुनाई दी इसका क्या मतलब है

सुंदर अनुभव।

Bhakt Varun: साधक जैसी बात करो मजाक मत करो

+91 79828 87645: आपने प्रश्न ही मजाक करने वाला किया है

आप कौन हो इसका आपको पता होना चाहिए कि विपुल जी को❓

निराकार का सीमित साकार रूप हो।

इस बात को तो यह एक लाख बार सुन चुके हैं परंतु कुछ नहीं निकलता

Bhakt Varun: पता होता तो मैं पूछता ही क्यों ?

तुम्हारा यह अनुभव बहुत ही सुंदर है मतलब तुम्हारी साधन सही दिशा में जा रही है।

जब तक योग का अनुभव नहीं होगा तब तक इसको समझना मुश्किल है।

Bhakt Varun: योग का अनुभव मतलब ?

किसी भी वेद महावाक्य का अनुभव इस तरह के प्रश्नों के उत्तर सहजता से दे देता है।

नहीं योग का अनुभव नहीं हुआ है अभी।

वेदांत महावाक्य के अनुसार आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है।

+91 79828 87645: एक छोटा सा सूत्र बता देता हूं अगर इसको पकड़ कर के बैठ गए तो पक्का संकल्प करके तो जिंदगी में दोबारा किसी और से पूछना नहीं पड़ेगा कि मैं कौन हूं

आपके भीतर से सांस कौन ले रहा है इस बात का लगातार निरीक्षण करते रहो

पकड़ो उसको जो आपके भीतर से सांस ले रहा है  पूरे संकल्प के साथ

विपश्यना करो।

+91 79828 87645: ✅🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

उसके बिना तो मेडिटेशन होता ही नहीं है विपश्यना  करता आ रहा हूं शुरू से जब से मेडिटेशन स्टार्ट किया है

शक्तिपात संस्कार नष्ट करती है। विपश्यना पैदा करती है।

मतलब विपस्सना में तो सिर्फ सांस को ही देखना होता है आते जाते

विपश्यना मात्र एक विधि है। अंतर्मुखी होने की विधियां अनेकों है।

+91 79828 87645: कुछ ही दिन में सांसे छोड़ करके आप अपने सैल्फ को जानने लगेंगे

Bhakt Varun: पर अब विपस्सना नहीं करना पड़ता

वरुण तुम भटको नहीं।

विपश्यना कि इन सब की एक सीमा होती है।

Bhakt Varun: जी वी

+91 79828 87645: परंतु अभी केवल जैसे ड्यूटी करते हैं वैसे सांसो को देख रहे हो स्थिर नहीं हो पाए

+91 79828 87645: विपश्यना अपने सेल्फ के नजदीक पहुंचने का सबसे सुगम मार्ग है

Bhakt Varun: ज्यादा 1 मिनट ही विपश्यना करता हूं ज्यादा नहीं पहले ज्यादा करता था

शक्तिपात संस्कार नष्ट करती है। विपश्यना पैदा करती है।

वरुण तुम मात्र गुरु प्रदत आसन पर साधन करो और कुछ नहीं।

यह आपके लिए होगा।

+91 79828 87645: 1 1 मिनट 1 मिनट में क्या होता है❓😃

+91 79828 87645: सबसे पहली शर्त यह है कि आपको हिसाब छोड़ना पड़ेगा उसे आपको अपनी आदत से जोड़ना पड़ेगा।

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 15


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