Search This Blog

Thursday, September 10, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 4 (गुरू तत्व और सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 4 (गुरू तत्व और सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि)  

 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रणाम प्रभु जी।

प्रभु जी सांसारिक सुख दुख की परिभासा समझ मे आती है, निश्चित ही स्वीकार योग्य भी है कि मन की एक अवस्था या किसी कार्य की निरन्तरता से उतपन्न ही मन संकल्प द्वारा सुख दुख का हेतु है, परन्तु प्रभु...

जिस आनंद की बात की गई है वो आनंद क्या है मात्र शाब्दिक अंतर है अथवा उसका कोई पैमाना है?

जब इंद्रियों का शमन हो जाता है और चित्त का भी लोप हो जाता है, फिर उस आनंद का अनुभव क्योंकर होता है?

यह आनंद है, यही चिन्मय आनंद है, इसका निर्णयन कौन करता है? नियोक्ता जिससे आनंद प्राप्त हो रहा है या भोक्ता जो आनंद को प्राप्त कर रहा है?

परमात्मा आनंद का स्त्रोत है ऐसा मानता हूं लेकिन जानता नही। फिर उस स्त्रोत का साक्षात्कार कौन करता है, चिन्मय, चिन्मय को कैसे अनुभव करता है। जब अनुभव कर लिया जाता है तो उसे कौन प्रकट करता है और कौन उस प्रकाट्य को अंगीकार करता है।


Swami Triambak giri Fb: इसके लिए सबसे पहले जवाब यह देना होगा कि आप कौन हो ❓


Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी मैं चैतन्य हूं, शाश्वत हूँ, यह मैं जानता हूं, मेरा मुझसे साक्षात्कार नही हुआ है। यही होना और जानने का अंतर है जिसे पाट नही पा रहा। एक आवरण है जिसे हटा नही पा रहा।
इसीलिये उस आनंद की अनुभूति चाहता हूं उसका व्याख्यान चाहता हूं ताकि जिसका विस्मरण हो गया है उसे धारणा में धारण कर उसकी ओर अग्रसर रहू। चाहे जिस भी स्वरूप में रहू उस चिन्मय में ही तरंगित रहू

 
Hb 96 A A Dwivedi: बाहर इसका उत्तर नहीं है और अनुभव अध्यात्म का मुल है और आत्मस्वरुप की दिशा में लगातार अभ्यास करना चाहिए और जो इस स्वरुप में आनन्द आता है उसकी शब्दों में व्याख्या नहीं हो सकती है चैतन्य का अनुभव किए बगैर उसे जाना नहीं जा सकता है यह लगातार अभ्यास यानी पुरुषार्थ से ही प्राप्त होता है और जिस अहंकार के कारण शरीर का अनुभव होता है उसे गलाने में जन्म जन्मांतर लग जाते हैं मन के खेल में बिरले लोग पार करने में सक्षम है और इसलिए गुरु के चरणों में बैठकर लगातार अभ्यास करना पड़ेगा

 
यार यह एक कामन‌ बात लिखी है। कोई भी इसे अपने ऊपर न लें। यह व्यक्तिगत नहीं है
http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_22.html?m=1
 हे प्रभु। हम अज्ञानी नहीं जानते कि हम एक फोटो पोस्ट करने से तेरी बनाई प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻

 
Swami Triambak giri Fb: यह कथन वैसा ही है जैसे कोई कहे; अन्धकार के बिना प्रकाश एक कोरी कल्पना है।
अज्ञान के बिना ज्ञान एक कोरी कल्पना है।
असत्य के बिना सत्य एक कोरी कल्पना है।
सापेक्ष के बिना निरपेक्ष एक कोरी कल्पना है।
दृश्य के बिना द्रष्टा एक कोरी कल्पना है।
और
बुद्धि के बिना ब्रह्म एक कोरी कल्पना है।
तो अब आप अपनी बुद्धि से अंधकार, अज्ञान और असत्य को पूरी तरह से समझ सकते हैं क्योंकि अज्ञान और असत्य आपके सापेक्ष है तो जब आप अंधकार, अज्ञान और असत्य को पूरी तरह से समझ लेते हैं और  और इस दृश्य के द्रष्टा बनकर इसको छोड़ देते हैं तो बाकि रह जाता है यही सत्य है यही चिन्मय है यही महाचेतन है | इसकी अनुभूति के बाद जब खालिस आप इससे जुड़ते हैं तो इसके कृपा के आनंद का अनुभव करते हैं |

 
एक निवेदन:
मित्रों जिस किसी ने सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि की हो तो कृपया वह अपने अनुभव या कोई टिप्पणी ग्रुप में डालने का कष्ट करें।
यह मेरी आपसे प्रार्थना है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻


+91 96726 33273: Mene puri vidhi to follow nahi ki.... Par phir bhi mantra jaap teevrta se hone laga h... Kai baar ajapa lag jaata h.. Baaki aantrik yogik kriyaye hoti h

 
Bhakt Mamta Dubey: सभी भाइयों को प्रणाम 🙏
मैं mmstm कुछ अपना अनुभव बता रही हूँ
मैं इस ग्रुप से एक साल से जुड़ी हुई हूँ। मैं ध्यान करना चाहती थी पर समझ नही आ रहा थे कि कैसे शुरू करू मेरा कोई गुरु नही ह मैं facebok पर बहुत से लोगो को देखा और कई बार किया भी मैं सुदर्शन क्रिया ओर ओशो शिविर भी किया फिर भी मन ध्यान की ओर अग्रसर नही हो पाया। फिर मैंने mmstm किया तब से मैं ध्यान में  एकाग्रता आ गयी अब मैं एक घंटे से भी ज्यादा एकाग्र होकर ध्यान कर लेती हूँ और मन को भी अच्छा महसूस होता है। ओर मन्त्र तो चलता ही रहता है मन मैं सोने से पहले अपने आप ही मन मंत्र करने लगता है। मेरे शिक्षा गुरु तो बहुत है पर दीक्षा गुरु नही है।शायद समय की प्रतिक्षा करनी हैं।पता नही कब गुरु दर्शन होंगे मेरा दीक्षा गुरु नही है😞😞

 
Hb 96 A A Dwivedi: स्वामी जी जड़ चैतन्य ग्रन्थि को तोड़ने की तीव्रतम विधि कौन सी है आप स्वयं के जीवन में जो भी साधन करते हैं उसे विस्तार से बताये और आप अपनी परम्परा के बारे में हम लोगों का मार्ग दर्शन करने की दया करे🌹🙏👏😊
Hb 96 A A Dwivedi: बहुत सुंदर👏😊🙏🌹
Bhakt Mamta Dubey: 🙏🙏

 
Swami Triambak giri Fb: तात्विक चेतना में जीवन जीना |

 
+91 96726 33273: Bas 5 baar jor se apne  guru mantra ko bola or japna shuru kar diya gurudev ki tasveer saamne rakh k 🙏🙏🙏..kya me phir se Karu..

 
Mrs Sadhna H Mishra: जय श्री कृष्ण, आप सभी को नमन, जड़ चैतन्य की ग्रंथी को तोड़ने के लिए  साधना की आवश्यकता नहीं है, ज्ञान के द्वारा  हीअज्ञान की निवृति होती है।
Mrs Sadhna H Mishra: साधना  की अपनी भूमिका है।

 
राम के दोष
विपुल लखनवी
हमारे एक वरिष्ठ मित्र हमारे बड़े भाई की भांती जिनका नाम है श्री वी के भल्ला। अपने वॉल पर लिखा है कि प्रभु श्री राम द्वारा सीता की अग्नि परीक्षा देना राम के नाम पर कलंक है मैं इस दिशा में अपनी बात रखना चाहता हूं तुलसीदास जी ने लिखा है राम जी के बारे में लिखा है। तुम सा होय तो तुम का जानी।
हे प्रभु तुमको जानने के लिए तुम्हारे बराबर होना पड़ेगा। वो विद्वान होगा जो तुम्हारा चरित्र जान सकता है।
किंतु मैं एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूं।  कि राजधर्म परिवार के धर्म से बड़ा होता है। परिवार धर्म की सीमा होती है। राजा का अनुकरण जनता के लिए एक उदाहरण बन जाता है यह बात प्रभु श्रीराम अच्छी तरीके से जानते थे यदि दूसरे के घर में रही  स्त्री को ऐसे ही स्वीकारा तो राज्य में एक प्रथा चल जाती है कि किसी के घर में रहो क्योंकि राजा कर रहा है।
दूसरी बात यह घटना त्रैता की है और हम उसकी चर्चा और तुलना कलियुग में कर रहे हैं। किसी भी घटना की व्यक्ति की महानता देश काल परिस्थिति पर निर्भर करती है। समय उसका मूल्यांकन करता है।
आप देखें भगवत गीता में पतंजलि योग सूत्र में समाज उपर रखा गया है और व्यक्ति पीछे। उपनिषद में भी समष्टि को व्यष्टि के ऊपर बताया गया है।
त्रैता युग में मनुष्य की शक्ति कलयुग के मनुष्य से कई गुना अधिक थी।
तब योग द्वारा भी अग्नि उत्पन्न होती थी।
आज कल भी आपने देखा होगा एक वीडियो में एक साधु अग्नि में बैठ कर अग्नि स्नान कर रहे हैं और एक बालक उबलते हुए पानी में बैठा है।
क्योंकि इन सिद्धियों के लिए भी योग के विषय में ऊंचाई आवश्यक है। अंत: राम जी जानते थे कि सीता जी का कुछ नहीं होगा।
यह साधारण जनता के लिए एक कौतूहल ही था।

Swami Pranav Anshuman Jee: 👌🏻👌🏻👌🏻💐💐💐
Vipul Sen: 🙇🏼♀️🙇♂️

 
Mrs Sadhna H Mishra: जय श्री कृष्ण, रामजी कर्ता नही हैं, वे अवतार हैं। साधारण मनुष्य भगवान को भी स्वयं के समान  जब अज्ञानतावश समझने लगता है ,तब बड़ी भारी भूल कर बैठता है।
जो भी अवतार हुए हैं। उनके काल में गिनती के लोग ही जानते थे कि वह अवतार हैं।
चाहें कृष्ण हों या राम।

 
Bhakt Brijesh Singer: बहुत सही जवाब दिया आपने 👍🙏
भगवान तो लीला कर रहे थे, उनको तो माता सीता जी को अग्नि देव से वापस लेना था और परीक्षा का बहाना था l



हिमगिरि नंदनी  विश्व वंदिनी, नंदी बंदी जय जय कार करे।
शिखर निवासिनी विष्णु सेविता, शुद्ध ब्रह्म आकार धरे॥
विश्व कुटुम्ब महादेव की शक्ति, जग प्रणाम बारम्बार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥1।
सुर वरदायनी दुर्मुख दुर्धर, सब असुरों का विनाश धरे।
मन हरषानी शिव पटरानी, तीनो  लोको  निरमाण करे॥
असुरों को भय  देनेवाली, धनुष प्रतंच्या टंकार  करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥2।
और पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/01/blog-post_107.html
हिंदी काव्य रूपांतरण : विपुल लखनवी


रे मन तू मेरे ये क्यों न समझते।
एक ही तीर्थ है श्री विष्णु तीर्थम्॥
भज मन सदा तू श्री विष्णु तीर्थम्।
श्री विष्णु तीर्थ है श्री विष्णु तीर्थम्॥
मुक्ति के दाता, भुक्ति प्रदाता।
आध्यत्म मार्ग सहज बनाता॥
सदा साथ तेरे श्री विष्णु तीर्थम्।
श्री विष्णु तीर्थ है श्री विष्णु तीर्थम्॥
और पढ़ना हो तो लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
http://freedhyan.blogspot.com/2019/07/blog-post_96.html?m=0


Bhakt Lokeshanand Swami: आज रामजी भारद्वाज ऋषि के पास पहुँचे हैं। भारद्वाज जी प्रयागराज में रहते हैं। प्रयाग भी दो प्रकार का है, बाहर का और भीतर का।
तुलसीदासजी लिखते हैं "साधु समाज प्रयाग"। एक खड़ा प्रयाग है, एक चलता फिरता प्रयाग है, वहाँ तीन नदियों का संगम है, यहाँ तीन धाराओं का संगम है।
ये तीन धाराएँ कौन सी हैं?
"राम भगति जहँ सुरसरि धारा।"
गंगा माने भक्ति की धारा, यही वास्तविक कल्याण करती है, इसी धारा में डुबकी लगाने से पाप मिटता है।
"सरसई ब्रह्म विचार प्रसारा॥"
ज्ञान की, ब्रहमविचार की धारा ही सरस्वती है, बाहर भी यह छिपी है दिखती नहीं, भीतर भी किसमें कितना ज्ञान बह रहा है मालूम नहीं पड़ता, छिपा रहता है।
"विधिनिषेधमय कलिमल हरनि।
कर्मकथा रविनंदिनी बरनी॥"
क्या करना, क्या न करना, ऐसी कर्म की धारा यमुना है, कर्म यमुना सूर्यपुत्री हैं, इनका भाई यम सूर्यपुत्र कर्मफल दाता है।
संत तो भक्ति ज्ञान और कर्म का संगम है, बाहर का प्रयाग कुछ देता है कि नहीं मालूम नहीं, पर संत मुक्तिदाता हैं।
यहाँ भारद्वाज जी के साथ भगवान का बड़ा ही विचित्र प्रश्नोत्तर हुआ। रामजी ने पूछा, मार्ग क्या है? कहाँ जाना है, यह नहीं पूछा।
भारद्वाज मुनि ने आवाज लगाई, जो जो मार्ग जानते हैं, आ जाएँ। पचास आए, 18 पुराण, 18 स्मृतियाँ, 10 उपनिषद् और 4- रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत्, श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र। 46 पहले वाले लौटा दिए गए, 4 को रामजी के साथ भेजा गया।
पर देखें, वे चार ही कदम चले थे कि यमुना का किनारा आ गया, और रामजी ने उन्हें लौटा दिया। विचार करें क्यों?
क्योंकि शास्त्र मार्गदर्शक है, मार्ग नहीं है। मानचित्र है, रास्ता नहीं है। वह रास्ता बता सकता है, चलना तो फिर स्वयं ही पड़ता है।
शास्त्र कर्म की धारा दिखा देता है, उस धारा को पार तो आपको ही करना पड़ेगा॥
अब विडियो देखें- प्रयाग
https://youtu.be/60zsS7BtW70


Ba anil ahirwar: 🙏एक भक्त था वह परमात्मा को बहुत मानता था,
बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा
किया करता था ।
एक दिन भगवान से
कहने लगा –
मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई ।
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो।
भगवान ने कहा ठीक है,
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,
जब तुम रेत पर
चलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देंगे ।
दो तुम्हारे पैर होंगे और दो पैरो के निशान मेरे होंगे ।
इस तरह तुम्हे मेरी
अनुभूति होगी ।
अगले दिन वह सैर पर गया,
जब वह रेत पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ ।
अब रोज ऐसा होने लगा ।
एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया,
वह रोड़ पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया ।
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत में सब साथ छोड़ देते है ।
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये ।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त में भगवान ने भी साथ छोड दिया।
धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके
पास वापस आने लगे ।
एक दिन जब वह सैर
पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने लगे ।
उससे अब रहा नही गया,
वह बोला-
भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है,
पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था,
ऐसा क्यों किया?
भगवान ने कहा –
तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,
उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है ।
इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे ।
So moral is never lose faith on God. U believe in him, he will look after u forever.
✔जब भी बड़ो के साथ बैठो तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि कुछ लोग इन लम्हों को तरसते हैं ।
✔जब भी अपने काम पर जाओ तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।
✔परमात्मा का धन्यवाद कहो कि तुम तन्दुरुस्त हो , क्योंकि बीमार किसी भी कीमत पर सेहत खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं ।
✔ परमात्मा का धन्यवाद कहो कि तुम जिन्दा हो , क्योंकि मरते हुए लोगों से पूछो जिंदगी की कीमत क्या होती है।🙏🙏🙏


lokesh k verma bel banglore:
*आत्मार्थं जीवलोकेस्मिन् को न जीवति मानवः ।*
*परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥*
इस दुनिया में अपने लिए कौन मानव नहीं जीता (सब जीते हैं) ? लेकिन परोपकार के लिए जिए उसे जिया कहते हैं ।
Who is not living in this world for oneself? But those living for others are worthy & their living is the real living.
*शुभोदयम ! लोकेश कुमार वर्मा (Lokesh Kumar Verma)*


Bhakt Lokeshanand Swami: प्रस्तुत कहानी में दो पात्र हैं, दो मकोड़े। एक चीनी के गोदाम में रहता था, दूसरा नमक के गोदाम में।
एक दिन दोनों की मुलाकात हुई तो नमक वाले ने चीनी वाले को अपने गोदाम में रात्रिभोज के लिए निमंत्रित किया।
रात हुई तो चीनी वाला बढ़िया से तैयार होकर, नमक के गोदाम में पहुँचा। नमक वाले ने उसके सामने नमक परोसा। नमक जीभ पर रखते ही, थू थू थू थू करते हुए, चीनी वाले ने नमक थूक दिया। और कहा- हे भगवान! तूं इतनी कड़वी चीज खाता है? कल रात तूं मेरे गोदाम पर आना, मैं तुझे इस दुनिया की सब से स्वाद चीज चखाऊँगा।
अगली रात नमक वाला चीनी के गोदाम में पहुँचा। चीनी वाले ने चीनी परोसी। नमक वाले ने चीनी का दाना मुँह में रखा, और उसने भी थू थू थू थू करते हुए, चीनी थूक दी।
चीनी वाला बड़ा हैरान हुआ। पर वह सारी बात समझ गया कि जरूर यह अपने मुंह में नमक का दाना छिपाए है। इसीलिए इसे चीनी में स्वाद नहीं आया।
वह बोला- मकोड़े भाई! मैं पानी लाता हूँ। तूं एकबार अच्छी तरह कुल्ला कर ले, फिर तुझे चीनी का असली स्वाद मालूम पड़ेगा।
अपनी चाल पकड़ी जाने पर, नमक वाला मकोड़ा शर्मिंदा हो गया। उसने कुल्ला किया और फिर चीनी चखी। और तब उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा।
लोकेशानन्द कहता है कि मैं भी दुनियावालों को भगवान की मीठी बात सुनाता हूँ। पर वे अपने मन में संसार भर की कड़वी बातें दबाए रखते हैं। इसीलिए उन्हें मेरी बात मीठी नहीं लगती, कड़वी लगती है।
अगर वे मेरी बात सुनने से पहले, श्रद्धा के जल से, अच्छी तरह कुल्ला कर लें, अपने मन को खाली कर लें, तब उन्हें मेरी बात की असली मिठास का अनुभव हो जाए।


Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः।
तत्त्वं ज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७४॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुस्त्रिजगद्गुरुः।
ममात्मा सर्व भूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७५॥
अर्थ: गुरु तत्त्व से अधिक कोई तत्व नहीं है, गुरु सेवा से बढ़कर कोई तप नहीं है, गुरु ज्ञान से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है, ऐसे तत्व स्वरूप गुरुदेव को प्रणाम है।
मेरे स्वामी श्री जगन्नाथ है, मेरे गुरु तीनों जगत के गुरु है। मेरी आत्मा सब प्राणी की आत्मा है (इस भावना के साथ) मैं ऐसे गुरुदेव को प्रणाम करता हूं।
व्याख्या: वैसे भौतिक स्तर पर, पंचतत्व, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, का अपना महत्वपूर्ण स्थान है, किंतु गुरुतत्व इन तत्वों से ही महान है। इन पांचों तत्वों का समावेश गुरु तत्व में हो जाता है।
इसी प्रकार तप के भी अनेक प्रकार हैं, किंतु गुरु सेवा से सभी प्रकार के तपों का फल प्राप्त हो जाता है। तत्वज्ञान से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है- का अर्थ है-  गुरु तत्व का पूर्ण ज्ञान होने पर सभी प्रकार का ज्ञान उसके अंतर्गत आ जाता है।
साधक को अपना यह भाव बनाकर रखना चाहिए कि मेरे गुरु सारे जगत के स्वामी हैं, उनमें सृष्टि, स्थिति, संहार तीनों शक्ति विद्यमान है। वहीं स्वामी भुक्ति मुक्ति दाता, जगत का शासक है, जिसकी इच्छा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता, ऐसे, वे गुरुदेव मेरे जगन्नाथ हैं।
"मेरे गुरु तीनों लोगों के गुरु हैं" इसका भाव यह है कि वह गुरुओं के भी गुरु है, सब कालो में उनकी स्थिति बनी रहती है। वह वर्तमान में जितने गुरु हैं, उनके भी गुरु है, भूतकाल में जितने गुरु हो गए हैं, उनके भी गुरु थे, और भविष्य में भी जितने गुरु होंगे उनके भी गुरु होंगे। क्योंकि सभी गुरु, जो भौतिक शरीर से गुरु हैं। उनमें ईश्वरतत्व, गुरुतत्व के ही कारण है।
मेरे गुरु मेरी आत्मा है, का तात्पर्य यह है कि श्री गुरुदेव सभी जीवो में समान रूप से स्थित हैं, वे सर्व व्यापक आत्मा होने के कारण मेरी आत्मा भी है।
अतः ऐसे मेरे स्वामी जगन्नाथ, त्रिलोक के गुरु, मेरे गुरु तथा आत्मस्वरूप से सर्व व्यापक आत्म रूप गुरु को प्रणाम है।।

 
Swami Triambak giri Fb: साधकों ने ऐसा ही भाव आसाराम, राम रहीम, रामपाल और राम वृक्ष के ऊपर भी लगा रखा है अभी तक लगा रखा है |
और इनके लिस्ट में शामिल दक्षिण के भी कुछ ऐसे लोग हैं जो गुरु बने खुद को भगवान भी घोषित कर दिया स्वयंभू और फिर लंपट निकले

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी निश्चित ही आपका कथन सही है। कलियुग में गुरु पाना ईश्वर पाने से भी कठिन है। आपके उदारहण से मुझे कोई अतिशयोक्ति नही है। निश्चित ही मात्र साधक इसके लिये दोषी नही है, दोषी वो व्यक्ति है जोकि गुरु रूप का दम्भ भरता है।
वो गुरु भी दोषी नही क्योंकि उसे ऐसा कृत्य करने के लिये साधको का अनन्य भाव उद्वेलित करता है।
इसमे दोष पहचान का है। हमारे गुरुदेव ने स्पस्ट रूप से वर्णन किया है कि गुरु कौन हो सकता है। जब गुरु इस कसौटी पर प्रस्तुत हो जाये तो शिष्य तो स्वयं तर जाना निर्धारित है। उपरोक्त वर्णन गुरु महाराज में निष्ठा हेतु है प्रपंचियो हेतु नही। जैसे पौंड्रक द्वारा स्वघोषित वासुदेव होने पर वो वासुदेव नही हो जाते। इसी प्रकार सद्गुरु नामपट्ट लगा लेने से कोई व्यक्ति सद्गुरु नही हो जाता।
यहां मैं गुरु महाराज विष्णुतीर्थ महाराज जी के उदगार पुनः प्रस्तुत करता हूं।
प्रभु जी आपका यह प्रश्न कोई कटाक्ष नही है यह आपका प्रसादमृत है जोकि आप साधक वर्ग के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे है।
हम आपकी कृपा हेतु सदैव नतमस्तक है।
Bhakt Parv Mittal Hariyana: यह किस प्रकार का कमेंट है। हम इस तरह के दुस्साहस को शोभनीय पाते है। एक सन्यासी हेतु अवांछित आचरण अनुशासित व्यक्तित्व का परिचय नही देती। कृपया अपना पोस्ट डिलीट करें। यह अमर्यादित व्यवहार है

 
Hb 96 A A Dwivedi: ऊं नमो विष्णु तीरथम🌹😊👏🙏 सदगुरु के बारे में वर्णन करने की मनुष्य में काबिलियत नहीं है और आसाराम बापू को बड़े महाराज जी ने शिष्य बनाने से मना कर दिया था वो पहचान गए थे ऐसे हमारे गुरु महाराज जय हो गुरु देव जय हो गुरु देव😊🌹🙏👏
आपका तात्पर्य है कि साधकों को ऐसा भाव नहीं रखना चाहिए गुरु के प्रति।
आपको दूसरे विषयों में यह बात कहनी चाहिए।
आपने इस गुरु गीता को पढ कर ऐसा कहा है।
क्या समझे हम?

 
Swami Triambak giri Fb: आप यह समझे कि परमात्मा को ही अपना गुरु सद्गुरु जो कुछ बनाना है बनाएं अगर परमात्मा ने बुद्धि नहीं दी होती तो यह शरीर धारी गुरु आपको कुछ भी नहीं समझा सकते थे और परमात्मा ने अगर बुद्धि दी है तो आप शरीर धारी गुरु को छोड़कर के गुरु तत्व को समझे गुरु तत्व ही ईश्वर तत्व है इसलिए ईश्वर तत्व को ही गुरु सद्गुरु सब कुछ बनाएं अपना दुनियावी ज्ञान के लिए दुनियावी गुरु की जरूरत है परमात्मा की पहचान के लिए परमात्मा ही परमात्मा की पहचान करवा सकता है |
तक परमात्मा की पहचान नहीं होती तब तक हर पल आपका ध्यान परमात्मा में रह नहीं सकता हर पल का मतलब है शरीर को सुलाकर भी आपका ध्यान परमात्मा में रहना चाहिए

 
- +91 94065 00022: महाराज जी आपके मत में शरीरधारी गुरु बनाना ही नहीं चाहिए क्योंकि वो तो सदगुरु हो ही नहीं सकता।वो तो केवल दुनियावी ज्ञान के लिए है।
मै आपसे पूछता हूं क्या आपने कोई शरीर धारी गुरु नहीं बनाया।आपको डारेक्ट परमात्मा ने दीक्षा दी है आपको आकाश वाणी हुई है और परमात्मा से ज्ञान के लिए आप सीधे संपर्क में है।
शरीर धारी गुरु में हम परमात्मा की झलक पाते है।उसके वचनों में उसके तेज में उसके जीवन में उसके संत पन में हम वो करुणा पाते है।जो एक परम मा में होती है।
राम रहीम और दूसरे पाखंडी धर्म गुरु वास्तव में इस मार्ग पर कलंक है।जिनके कारण सच्चे संतो और साधुओं पर से भी लोगों का विश्वास उठ गया है।
परंतु अभी भी हमारे बीच कई क्रांतिकारी जागृत गुरु शरीर लेकर उपस्थित है।जरूरत है हमारे नेत्रों को स्वच्छ करने की।

 
Hb 96 A A Dwivedi: सदगुरु से यह धरती न कभी खाली हुई है और न ही कभी कभी होगी और शिष्य को उसकी योग्यता के अनुसार हि गुरु की प्राप्ति होती है और वो जब अपने भीतर गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा पैदा कर लेता है उसे सदगुरू की प्राप्ति होती है और कोई भी व्यक्ति जो गुरु के नाम पर ग़लत आचरण करता है उसका भोग मान उसे हि करना होगा जय गुरुदेव जय गुरुदेव🌹🙏😊👏

 
Swami Triambak giri Fb: परमात्मा आपके अंदर की आवाज को अंदर ही सुनता है कि नहीं,
और दीक्षा का मतलब आप ऐसे समझे कि डॉक्टर और इंजीनियर दो ही विद्यार्थियों को कॉलेज से निकलते हुए दीक्षांत समारोह होता है बाकी किसी का नहीं होता इस तथ्य को अगर समझो तो आप दीक्षा को समझ पाएंगे
Swami Triambak giri Fb: परमात्मा आपके अंदर उठे भाव को समझता है कि नहीं आपके अंदर ही
+91 94065 00022: आपकी बात उचित है।परंतु आपके लिए, जो पहुंच गया एक स्थिति तक। जिसका तादात्म्य हो गया उस मौन से ।
वो अंदर से जुड़ गया उससे भाव से,भर गया वो ।
परंतु जो प्यासा है।जो अंदर नहीं मिल पा रहा उससे । खोज रहा बाहर उस कस्तूरी मृग की भांति।
उसे केसे यकीन आए की अंदर है वो।
किसी को देख कर ही तो यकीन करेगा।
फिर दीक्षा अर्थात परम श्रद्धा से उसके आगे झुकेगा तभी तो पियेगा।तभी तो मिटेगा।
लोगों ने दीक्षा का अर्थ ही बदल दिया।जैसे महाभारत काल में द्रोणाचार्य ने गुरु और शिक्षक को अलग अलग कर दिया।
ये तो समयानुसार लोग का स्वार्थ इस मार्ग पर भी अपना प्रभाव डालेगा।
परंतु ये मार्ग अभी भी प्रारंभिक साधकों के लिए स्वागत कर रहा है।
Swami Triambak giri Fb: परमात्मा बोध का विषय है शोध का विषय नहीं है परमात्मा अदृश्य है यही समझ जाना इसकी पहचान है और जब यह हमें पता है कि अंदर की आवाज अंदर के भाव को परमात्मा अंदर ही समझ रहा है तो हमें परमात्मा से अंदर ही अंदर बात करनी चाहिए इसमें यही शुरुआत है और यह अनुभव लगभग सभी साधकों को हो जाता है और जब यह अनुभव हो जाता है फिर मृग क्यों बना रहे ❓ क्यों कस्तूरी को बाहर ढूंढे ❓
 फिर क्यों ना सही मायने में प्रभु प्रेमी बन जाए ❓
परमात्मा है यह बात मानते हैं परमात्मा अंग संग है यह बात जानते हैं, इसका बोध हो चुका हैं अब और कौन सा ज्ञान चाहिए अब अंग संग परमात्मा है तो इसकी प्रार्थना कीजिए और उसकी प्रार्थना करते हुए अपने सच्चाई और ईमानदारी से कर्म कीजिए और अगर इससे भी आगे बढ़ना है तो परमात्मा से परमात्मा की पहचान पूछिए और भी इससे आगे बढ़ना है तो द्रष्टा भाव में आ जाइए जो भी कुछ हो रहा है होने दीजिए उसको देखते रहिए अपने आप हो रहा है होता रहेगा होगा करवाने वाला करवा रहा है कर्म फल से अब ऊपर उठ जाएंगे मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाएंगे अब इसमें और किसी चीज की कहां जरूरत है कौन से ज्ञान की जरूरत है किस गुरु की जरूरत है ❓
 क्यों जरूरत है गुरु की ❓
परमात्मा को ही गुरु बना लीजिए परमात्मा को ही अपना सतगुरु बना लीजिए |
परमात्मा आपके अंदर की आवाज को अंदर ही सुनता है आपको विचार भी प्रदान करता है जो विचार आपने दुनिया में कहीं नहीं सुने कहीं नहीं पढ़े कहीं जिन का अवलोकन भी नहीं किया तो परमात्मा आपके अंदर ही है आप परमात्मा से परमात्मा की पहचान पूछ |
परमात्मा की पहचान होने के बाद हर पल परमात्मा में ध्यान रहे शरीर को सुलाकर भी परमात्मा में विचरण हो तो ही मोक्ष मुक्ति संभव |

 
+91 94065 00022: इस तरह से तो ये चर्चा बहुत लंबी हो जाएगी । मै आपकी आंतरिक स्तिथि का सम्मान करता हूं।
और पुनः यह समझाता हूं कि शिशू को चलने के लिए मा का सहारा चाहिए।
इसी तरह एक जिंदा सदगुरु शिशू वत साधकों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जिनके प्रति श्रद्धा पूर्वक यह गुरु गीता कहीं गई।
और इस पर आपकी इस प्रकार की टिप्पणी ठेस पूर्ण है।आप दूसरों की भावनाओं को आहत कर रहे हैं।
जो गलत है।
अब मै अपने शब्दों को विराम देता हूं।कोई प्रति उत्तर नहीं दूंगा इस विषय पर।

 
Swami Pranav Anshuman Jee: *बाली ने मरते समय प्रभु श्रीराम से क्या* *मांगा ?*

 
Swami Triambak giri Fb: बनाना सिर्फ एक मानसिक स्थिति बन गई है और गुरु डम का इतना ज्यादा प्रचार कर दिया गया है कि आदमी गुरु डम से बाहर निकल नहीं पा रहा है |
जिसके कारण चालाक व्यक्ति गुरु बनकर के लालची डरपोक और भोले-भाले प्रभु प्रेमियों को लूट रहे हैं

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी आपका कथन निर्विवाद सत्य है। गुरुडम ने गुरुता को प्रभावित अवश्य किया है लेकिन यह कभी भी अखण्ड स्वरूप को क्षति नही पहुंचा सकती।
यहां सभी साधक ध्यान दे, की गुरुगीता की प्रस्तुति में किसी व्यक्ति विशेष या पद विशेष का वर्णन नही है अपितु गुरु तत्व का बार बार जिक्र है। गुरु तत्व माने परमात्मतत्व उसी की महिमा का बखान है। इसे किसी प्रकार का प्रचार या व्यक्ति विशेष का महिमामंडन न समझा जाये

 
Swami Triambak giri Fb: 👍💐👏 यही समझने की बात है कि परमात्मा तत्व ही गुरु तत्व है
Hb 96 A A Dwivedi: भगवान राम जी और जय श्री कृष्ण जी दोनों ने गुरु के चरणों में बैठकर साधना का अभ्यास किया था और जो पुरव जन्म के साधक होते हैं उन्हें गुरु तत्व दुसरे शरीर के माध्यम से मिलता है और एक ही परम्परा के अनुसार गति करते हैं।
परमात्मा भीतर ही मौजूद हैं यह बात अलग इतनी सरल तरीके से समझाया जा सकता तो फिर माया कि कोई आवश्यकता नहीं थी जय गुरुदेव जस गुरु तस चेले एक दूसरे पर ठेलम ठेले👏🙏😊🌹

 

Swami Triambak giri Fb: राम और कृष्ण ने गुरुओं से शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा ली थी |

यह बात बिल्कुल सत्य है की कलयुग काल में नकली गुरुओं की भरमार है व्यक्ति खुद गुरु होने लायक नहीं होता है लेकिन व्यापार हेतु और दूसरे से सम्मान पाने के लिए वह गुरु बन जाता है

और जगत में शक्ति हीन लोग ही भरे पड़े हैं उनको जरा सा भी तत्व दर्शन का ज्ञान जो दे  देता है वह उसका सम्मान करने लगते हैं। गुरु बना लेते हैं।

लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं की धरती पर समर्थ शक्तिशाली सद्गुरु मौजूद नहीं है। ऐसा सोचना वास्तव में हमारी बुद्धि का ही खोट है क्योंकि हमारे शास्त्रों में कहा गया है उपनिषद में भी वर्णन है कि यदि धरती संत महात्माओं से विलीन विहीन हो जाएगी तो धरती फिर जीवित नहीं रहेगी और यह सत्य है।

इसीलिए मैं बार-बार अपने मित्रों से और जानकारों से निवेदन करता हूं कि आप गुरु के लिए परेशान मत हो बिल्कुल मत हो क्योंकि जगत का गुरु केवल एक ही है और वह परमपिता परमेश्वर है जो कि महागुरु है जिसे हम निराकार रूप में ब्रह्म और साकार रूप में शिव की उपाधि देते हैं शक्ति के रूप में जिसको हम महाकाली मानते हैं अवतार ग्रुप में जिसको हम विष्णु और कृष्ण कह सकते हैं।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज का मानव शक्ति हीन है। वह शिव जैसे देवों के शक्ति सहन नहीं कर सकता है उनकी दीक्षा बर्दाश्त नहीं कर सकता है इसलिए मानव रूप में कुछ मानव रूप को प्रभु शक्ति देकर सनातन और समाज के कल्याण हेतु प्रेरित करते हैं जिनको गुरु कहते हैं।

आप गुरु के लिए चिंता न करें जल्दबाजी भी न करें। कलयुग में सबसे सहज मार्ग मंत्र जप आप किसी भी साकार मंत्र, अपने इष्ट देव को याद करते हुए उनका मंत्र सतत निरंतर करते रहे और कहीं पर एक निश्चित संख्या में मंत्र करने के पश्चात परेशानी या तकलीफ आएगी या आती है तो आपका जो मंत्र है उसका देव आपकी सहायता करता है करता रहा है और करता रहेगा। क्योंकि वह एक प्रकार से आपके मंत्र जप की संख्या के बाद बाध्य हो जाता है कि वह आपकी रक्षा करें।

यह भी होता है कि यदि देव दर्शन हो जाए तो हमसे उनकी शक्ति उनकी ऊर्जा संभल नहीं पाती है और तब आपकी प्रार्थना  के कारण  इष्ट देव आपका मंत्र देव आपको स्वयं समर्थ गुरु सद्गुरु के पास भेज देता है मेरा यही अनुभव है।

इसलिए मैं तो इस बात पर अटूट हूं। अपने अनुभव से बड़ा जगत में कुछ नहीं।

स्वप्न और ध्यान के माध्यम से मैं स्वयं अपने गुरु के पास गया था और गुरु ने जब मुझे नियंत्रित किया था तभी मैं जीवित बचा था इसलिए मात्र यह स्टेटमेंट देना कि परमात्मा ही गुरु है यह शरीर वाला ही गुरु है दोनों अज्ञानता के प्रतीक है।

जय गुरुदेव जय महाकाली

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻💐💐

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


No comments:

Post a Comment

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...