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Saturday, October 31, 2020

अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 से खंड 5 / ab tak prakashit brahm gyan ke prashan

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 से  खंड 5 

(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )  


सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

 

 अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 

 

👉👉👉 कैसे हुई मेरी मां काली से दीक्षा । कैसे पहुंचा स्वप्नन और ध्यान के माध्यय से अपनी पूर्व जन्म की गुुुरू परम्परा में 👈👈👈



लेख लिंक 👉👉गुरु की क्या पहचान है?👈👈

मित्रों आप नेट पर वीडियो ढूंढकर देखो अथवा किसी प्रसिद्ध गुरू की दुकान में पूछो! सब इधर उधर घुमायेंगें! पर सीधा उत्तर न देंगें ??

वैसे आप चाहें तो और प्रश्न पूछ्कर इस प्रश्नावली को और अधिक सार्थक बनानें में योगदान कर सकते हैं।



लेख लिंक 👉👉गुरू का महत्व और पहिचान👈👈 

 👉👉ब्रह्मांड की उत्पत्ति👈👈

👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈


1. संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है??     लेख लिंक 👉👉आत्म ज्ञान👈👈


 👉👉योग व योगी के स्तर और अनुभव👈👈

2. मतलब


3. क्या मिलेगा ??


 

👉👉 ईश्वर चर्चा से नहीं साधना से मिलता है👈👈

4. परिपक्वता क्या ??


5. मतलब ??

 

 

6. वेद महावाक्य क्या??


7. चार महावाक्य क्या।

   

👉👉क्या होता है अह्म ब्रह्मास्मि और आत्म ज्ञान तत्व👈👈

   

8. सार वाक्य ??


 

9. योग है क्या??


 

10. क्या यह घटित होता है??


 

11. इसका फायदा क्या??


 

12. पर यह हो कैसे??


 

 

13. मतलब क्या ??


 

 

14. कृपया स्पष्ट करें??

 

👉👉बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार👈👈  

 👉👉मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र 👈👈

👉👉मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र  👈👈


 

15. फिर साधना क्या??  

लेख लिंक 👉👉क्या अंतर है ध्यान और समाधि में👈👈  

लेख लिंक 👉👉   निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि 👈👈

👉👉साधन साधना में अंतर: योग और कुछ उत्तर  👈👈


 

 

16. मार्ग मतलब ??


👉👉नवधा भक्ति : नौ तरीके, मार्ग या द्वार👈👈

👉👉सत्संग और हम👈👈  

👉👉श्रेष्ठ भक्ति कौन सी??👈👈  

👉👉गीता में स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धि  👈👈

👉👉प्रकृति, प्रवृति स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 👈👈

👉👉गीता सार और कुछ उत्तर 👈👈

👉👉समाधि का सम्पूर्ण विवरण  👈👈

👉👉सहस्त्रसार चक्र क्या है 👈👈


 

 

 

17. ब्रह्म क्या है?     लेख लिंक  👉👉ब्रह्म क्या है???👈👈

 

 

18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??

 

 

19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??


 

20. और बतायें?? 




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2 


👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

 👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

 

20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 3

 

प्रश्न 21. जब योग का एक वाक्य अर्थ तो इतने योग क्यों???

कहीं नाद तो कहीं सहज तो कहीं शब्द कहीं भक्ति कहीं ज्ञान कहीं कर्म??? 

👉👉लेख लिंकअंतर्मुखी बनाम योग 👈👈

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी होने की विधियां 👈👈

👉👉लेख लिंक: योग की वास्तविकता और विभिन्न गलत धारणायें 👈

 

👉👉लेख लिंक  अंतर्मुखी होने की विधियां👈👈


 👉👉कबीर से साक्षात्कार👈👈

 

 👉👉आखिर क्या होती है शक्तिपात योग दीक्षा👈👈

 👉👉क्या होता है शक्तिपात👈👈   

👉👉क्या है क्रिया योग 👈👈

 👉👉क्रिया योग बनाम शक्तिपात👈👈

👉👉 शक्तिपात या दैवीय शक्ति संक्रमण👈👈

👉👉क्रिया व योग या क्रिया योग  👈👈

👉👉शक्तिपात में क्रिया क्या होती है  👈👈

 

👉👉 मन्त्र जप की अवस्थायें👈👈

👉👉शाबर मंत्र और महत्व  👈👈

 

प्रश्न 22: ओशो पर क्या विचार ???  

 


👉👉 क्यों मानता हूं ओशो को पापी👈👈 

 


प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता??? 

 

प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है। 

 

प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

  

24. फिर अष्टांग योग क्या है???



 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 


 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈


 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈


 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈


👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈



 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈



 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5


26. योगी की पहचान क्या है???



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

 

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈



 




 

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👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈


👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈
👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈






संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5 / brahm gyan kaya khand 5

 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"



26. योगी की पहचान क्या है???



किसी को देखकर आप मालूम कर सकते हैं। यदि योगी के अंदर समत्व की भावना यानी सबको एक समझता है न कोई छोटा न कोई बड़ा मानव जाति एक।
तो यह उसके व्यवहार से मालूम पड़ जाता है अक्सर गुरु लोग यह करते हैं जिसने बढ़िया चढ़ावा दिया उसको नारियल के साथ मिठाई का डिब्बा और जिसने सिर्फ प्रणाम किया उसको शक्कर के चार  योगीदाने। यह व्यवहार  योगी का नहीं है। वह सबके साथ समान व्यवहार करेगा दूसरी चीज वह कभी अपने को किसी भी प्रकार की क्रेडिट नहीं देगा वह यही कहेगा कि यह उसके गुरु की इच्छा हुई या उसके इष्ट की इच्छा है इसके अतिरिक्त वह किसी भी प्रश्न का उत्तर तुरंत देगा।



आइंस्टाइन ने कहा है जब तक मैं आपकी किसी भी विषय पर गहराई से पकड़ नहीं होगी अनुभव नहीं होगा तब तक आप सही व्याख्यान नहीं दे सकते।  आप एक प्रश्न पूछ लीजिए भले ही नेट से पूछ लीजिए यदि उसने सही सही उत्तर दे दिया और वह भी तुरंत उसको योग हो सकता है यह भगवान श्री कृष्ण की गीता के अनुसार कर्मेषु कौशलम् अपने कार्य को कुशलता से निपटा लेने वाला व्यक्ति योगी हो सकता है। 



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???



प्रश्न यह है कि आप कैसे जाने आपको योग हो गया तो इसका निर्णय तो आपको स्वयं करना है सबसे पहली बात यह है क्या आपके अंदर समानता की भावना आ गई क्या आपने सब कुछ ईश्वर ही करता है गुरु ही करता है आप कुछ नहीं करते हैं यह भावना आ गई। 



बसे बड़ी बात जो पतंजलि महाराज ने कहा है दूसरा श्लोक चित्त में वृद्धि का निरोध मतलब आपको किसी भी कार्य के होने के बाद उस कार्य के प्रति लगाव उस फल के प्रति दुराव या मलाल तो नहीं होता अपने कर्तव्य को पूरा करने के बाद किसी प्रकार का अपेक्षा तो नहीं रहती।

 

आपके लिए और यदि योग की सफलता की बात है तो क्या आप सदैव अपने इष्ट का स्मरण करते रहते हैं यह सब यदि आपके अंदर है तो आपको योग घटित हो गया।



 वेद महावाक्य  के अनुभव अलग-अलग होते हैं वह यदि आपको अहम् ब्रह्मास्मि का अनुभव हुआ तो आपके अंदर अहंकार की सर्वोच्च अवस्था जाएगी मतलब आप अपने को ब्रह्म के समान ही समझने लगेंगे और शरीर के अंदर मौजूद मन बुद्धि अहंकार सोच सभी कुछ यही कहने लगेगी कि मैं ही ब्रह्म हूं अब बात आती है अयम आत्मा ब्रह्म।  इसमें आपको अनुभूति इस तरह की होगी कि अचानक जैसे कि कोई आपके अंदर प्रकट होकर आपको समझा रहा है अरे मैं तुमसे अलग नहीं हूं क्या तुम मुझको अलग करना चाहते हो क्या तुम मुझको अलग देखना चाहते हो इस तरह की शब्दावली की बातचीत हो जाती है।



तीसरा तत्वमसि आपको यदि किसी भी प्रकार की छाया आकृति डरावनी या अंदर कुछ भी अगर दिखती है तो आप भयभीत नहीं होते हैं आपको भय नहीं पैदा होता आपके मन से आवाज आती है अरे यह सब तो ब्रह्म ही है फिर आता है ।प्रज्ञानं ब्रह्म। मतलब आपके अंदर कुछ भी जो उत्तर पैदा होता है या एक अचानक से प्रकट होता है भावों का जो आपने पहले कभी सोचा नहीं था फिर आप सोचने लगते अरे यह कौन था जो हमको भी समझा गया और यदि आध्यात्मिक होते हैं तो ध्यान के भाव में आकर आप यही कहते हैं कि जो कुछ भी मेरे अंदर से भाव आए वह हो ब्रह्म ने इन्हीं सब वेद महावाक्यों के द्वारा चिंतन मनन के द्वारा आपके अंदर यह भावना प्रकार हो जाती है सर्वत्र ब्रहृम सर्वस्य ब्रह्म। अर्थात जगत में सब कुछ ब्रह्म।


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6



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Friday, October 30, 2020

हे हुलसी के लाल तुलसी/ hulsi ke lala tulsi


 हे हुलसी के लाल तुलसी

सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी


हे हुलसी के लाल तुलसी,  करूं मैं कैसे वंदन तेरा।
तुम हो श्रेष्ठ श्रेष्ठतम कविवर,‌ भक्ति प्रेम रस ज्ञान बिखेरा।।



रामचरित को तुमने गाकर, दिया जगत अनूठा उपहार।
सकल भक्ति का रूप मनोहर,रच डाला है बारंबार।।



गान तुम्हारा बड़ा निराला,  जनमानस में भक्ति जगाए।
कर्म योग प्रभु मार्ग पर चलकर, गुरूभक्ति क्या यह समझाए।।



"विनय पत्रिका" अनुपम माला, लिए समेटे भजन अनेक।
"दोहावली" दोहे की गली, भाव अनेकों लिए समेट।।



"कवितावली" में राम कविता, सभी का मन मोहनेवाली।
"गीतावली" के गीत विलक्षण,  सीता मैया मंगल वाली।।



तुम महाकवि हो सकल जग के, अवधी भाषा के सूर्य बने।
राम नाम की महिमा गाकर, कितने भव सागर पार करें।।



नाम तुम्हारा अमर रहेगा, जब तक चमके चांद सितारे।
विपुल ज्ञान तुम देने वाले, नश्वर जग के हो उजियारे।।



हे तुलसी के राम रमैया, यह पापी अधम बुलाता है।
दे दो भक्ति का अमृत कुछ, कर जोरी विपुल गुहराता है।।



सद्गुरू कृपा तुलसी कीन्ही, भक्ति मार्ग की दे दी धारा।
कृपा अमोलक गुरुवर कर दो, तुलसी सम हो हृदय हमारा।।

Wednesday, October 28, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4 / brahm gyan kaya khand 4

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

24. फिर अष्टांग योग क्या है???


पातांजलि महाराज ने षट् दर्शन के अंतर्गत “योग सूत्र” लिखे जिन्हे अष्ट अंग योग यानि अष्टांग कहा गया। यह हठ योग का मार्ग है। 

 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 

पातंजलि महाराज के पहले ऋषियों ने षष्ट अंग व सप्त अंग योग मार्ग की व्याख्या की है किंतु वह अधिक प्रचलित न हो सकें। इन विधि मार्गों में मुद्रा ध्यान भी एक अंग बताया। जिसको महात्मा बुद्ध ने भलीं भांति प्रयोग कर बताईं। वर्तमान में यह विधियां बुद्ध लामाओं के पास तिब्बत में सुरक्षित हैं। सनातन का कुछ ज्ञान तिब्बती भाषा में ही सुरक्षित रह सका। आक्राताओं ने संस्कृत साहित्य व पाली साहित्य को आसानी से नष्ट कर दिया क्योकि यहां की जलवायु उनके अनुकूल थी। किंतु वे तिब्बत न जा सके। अत: वह साहित्य सुरक्षित रहा।  

 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈

पातांजलि महाराज एक बडे विज्ञानी थे। उन्होने मानव के आठ अंगों के अनुकूल अष्ट वासुदेव की तरह इन अंगों को जोडकर एक योग का मार्ग बना दिया। 

 

योग की क्रिया के आठ भेद — यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यम व नियम के पांच उप अंग। 

 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈

आयुर्वेद के आठ विभाग - शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण।   

 

शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है। आठ अंगों का उपयोग करते हुए प्रणाम करने को साष्टांग दण्डवत कहते हैं।

 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈

आपको बता दें कि जानू का मतलब आत्मा, जीवन शक्ति, जन्मस्थान होता है।

जानू शीर्षासन भी होता है।


अब यहां देखें आप हाथों के द्वारा जगत में व्यवहार करते हैं तो यह यम का अर्थ आपकी दाहिना हाथ हो गया और इसमें पांच उंगलियों के रूप में पांच उपांग है फिर नियम यानी आप अपने प्रति क्या व्यवहार करते हैं इसमें फिर पांच उप अंग है जो आपके हाथ की उंगलियों की भांति है यह बायां हाथ हो गया।

दोनों को जोडने से हो गया नमस्कार मुद्रा।

इसी भांति दोनों हाथों को आप अपने शरीर से खींचकर लगाते हैं।

यानी जकड़ते हैं तो इसका अर्थ हो गया जो बद्रायण पहला ब्रह्म अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यानि आपके अंदर ब्रह्म को जान्ने की जिज्ञासा। 

👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈


तीसरा सूत्र तीसरा अंग है वह है प्रत्याहार जिसका शाब्दिक अर्थ है ( पुल्लिंग)  पीछे खींचना, हटाना अथवा आशा, वचन आदि वापस लेना। जगत में जो कुछ भी वस्तुएं आप संग्रह करने की प्रवृत्ति करते हैं उनके त्याग के विषय में और आवश्यक से अधिक संचय का त्याग करना यह आप यह प्रत्याहार के द्वारा करते हैं।  यानी दोनों हाथों से जगत का व्यवहार करते हैं तो प्रत्याहार का तात्पर्य हो गया आपकी बुद्धि से।

 

अब देखें पहले यम यानि जगत के प्रति व्यहार यानि जगत जो दायां हाथ। आप दाहिने हाथ से अधिक काम करते हैं। फिर नियम यानि आपका स्वयम आपके प्रति व्यहार। मतलब आपकी आत्मा के स्वरूप जो आपका शरीर है उसके प्रति व्यवहार। यानि बायां हाथ। आपका ह्र्दय भी बायीं तरफ है। 

 

इन दोनों हाथों के द्वारा आप ग्रहण करते हैं। स्थूल जगत को और सूक्ष्म रूप में। उसके प्रति उदासीनता ही प्रत्याहार हो गई। 

 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 

चौथा हो गया आसन यानि जिसके द्वारा आप जमीन पर बैठते उठते हैं और प्रत्येक पशु का अलग आसन भी होता हैं।

वह अवस्था जिसमें आप सहजतापूर्वक बैठ सकें व अपने शरीर को स्वास्थ्य प्रदान कर सकें। 

 

पांचवां होता है प्राणायाम। यानी आप का मुख और नासिका द्वारा प्राणों की वायु का आयाम। पंच वायु  जिसके द्वारा आप इस जगत में जीवित रहते हैं।

हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थितर रहकर भी गतिशिल रहती है।

ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।


वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं।

 

1.व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।

2.समान : समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

3.अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।

4.उदान : उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

5.प्राण : प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

 

 

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक।

उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।


अब देखें छठा होता है जो कि आती है उसे बोलते  हैं धारणा।

जिसमें कि आप की आंतरिक दृष्टि का इस्तेमाल होता है तो वह आपके शरीर काम हो गया दृष्टि और यहां पर हो गया धारणा।


इसके पश्चात होता है ध्यान और समाधि।


इन सब को एक साथ लेकर चलने से आपको योग घटित हो सकता है यानी आप एक पूर्ण मानव बन सकते हैं।


पांजजलि महाराज ने बहुत ही सुंदर तरीके से हमारे शरीर के अंगों को योग के अंगों के माध्यम से समझा कर उनके कार्य को समझा कर अष्टांग योग की स्थापना की।


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई थी तब वह एक शुद्ध आत्मा था और ईश्वर के बिल्कुल निकट था आपने नर और नारायण की कथाएं पढ़ी होंगी लेकिन जब नर ने नारायण से पूछा कि भाई मेरा कर्म क्या है मेरी उत्पत्ति क्यों हुई है और उस मनुष्य को मार्गदर्शन करने के लिए आदि शक्ति काली ने मां गायत्री रूप धारण किया और तीन वेदों की रचना की। बाद में मनुष्यों ने ऋषियों ने अन्य मार्ग खोजें और उनको साथ लेकर अर्थव वेद बना। 

👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

यहां देखें। गाय  त्री । यानि तीन गायन मतलब लेखन। नाम पडा गायत्री। ऋग्वेद छंद के रूप में पद्य है। बाकी गद्य। इन वेदों से वेद महावाक्य व मानव रूप का उद्देश्य मिलता है। अर्थ, काम, धर्म व मोक्ष। 

 


इन वेदों को सत्य मानकर जिन शोधकर्ताओं ने शोध किया एक तरह से पीएचडी की उनके ग्रंथ उपनिषद कहलाए।  जिन मनीषियों ने वेदों को सीधे-सीधे न मानकर प्रयोग किये फिर वेदों को समझाया। इति सिद्धम्। आपने रेखा गणित में निर्मेय प्रमेय पढी होगी। सिद्ध होने के बाद जो लिखा वह दर्शन कहलाए।  जो कि षट् दर्शन कहलाते हैं उसी में प्रयोग के द्वारा पतंजलि महाराज ने “ योग सूत्र”  की रचना की। जिसमें अष्टांग योग है। 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈


यदि हम वेदों को गोशाला मानें तो उसके अंदर रहनेवाली गाय हैं उपनिषद। गायों के दूध के रूप में श्रीमद भगवत गीता और दूध के अंदर से निकला हुआ मक्खन रामचरितमानस है।  रामचरितमानस से अच्छी गीता की कोई व्याख्या नहीं हो सकती गीता ने संकेतों में बात किया है लेकिन रामचरितमानस में उदाहरण के साथ चरित्र के रूप में समझाया गया है।  वही षड्दर्शन को नंदी मान सकते हैं और पुराने को हम बछड़े।

 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈

👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

👉👉संक्षिप्त ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 2 ! 👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3 👈👈

 


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 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...