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Saturday, October 31, 2020

अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 से खंड 5 / ab tak prakashit brahm gyan ke prashan

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 से  खंड 5 

(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )  


सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

 

 अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 

 

👉👉👉 कैसे हुई मेरी मां काली से दीक्षा । कैसे पहुंचा स्वप्नन और ध्यान के माध्यय से अपनी पूर्व जन्म की गुुुरू परम्परा में 👈👈👈



लेख लिंक 👉👉गुरु की क्या पहचान है?👈👈

मित्रों आप नेट पर वीडियो ढूंढकर देखो अथवा किसी प्रसिद्ध गुरू की दुकान में पूछो! सब इधर उधर घुमायेंगें! पर सीधा उत्तर न देंगें ??

वैसे आप चाहें तो और प्रश्न पूछ्कर इस प्रश्नावली को और अधिक सार्थक बनानें में योगदान कर सकते हैं।



लेख लिंक 👉👉गुरू का महत्व और पहिचान👈👈 

 👉👉ब्रह्मांड की उत्पत्ति👈👈

👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈


1. संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है??     लेख लिंक 👉👉आत्म ज्ञान👈👈


 👉👉योग व योगी के स्तर और अनुभव👈👈

2. मतलब


3. क्या मिलेगा ??


 

👉👉 ईश्वर चर्चा से नहीं साधना से मिलता है👈👈

4. परिपक्वता क्या ??


5. मतलब ??

 

 

6. वेद महावाक्य क्या??


7. चार महावाक्य क्या।

   

👉👉क्या होता है अह्म ब्रह्मास्मि और आत्म ज्ञान तत्व👈👈

   

8. सार वाक्य ??


 

9. योग है क्या??


 

10. क्या यह घटित होता है??


 

11. इसका फायदा क्या??


 

12. पर यह हो कैसे??


 

 

13. मतलब क्या ??


 

 

14. कृपया स्पष्ट करें??

 

👉👉बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार👈👈  

 👉👉मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र 👈👈

👉👉मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र  👈👈


 

15. फिर साधना क्या??  

लेख लिंक 👉👉क्या अंतर है ध्यान और समाधि में👈👈  

लेख लिंक 👉👉   निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि 👈👈

👉👉साधन साधना में अंतर: योग और कुछ उत्तर  👈👈


 

 

16. मार्ग मतलब ??


👉👉नवधा भक्ति : नौ तरीके, मार्ग या द्वार👈👈

👉👉सत्संग और हम👈👈  

👉👉श्रेष्ठ भक्ति कौन सी??👈👈  

👉👉गीता में स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धि  👈👈

👉👉प्रकृति, प्रवृति स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 👈👈

👉👉गीता सार और कुछ उत्तर 👈👈

👉👉समाधि का सम्पूर्ण विवरण  👈👈

👉👉सहस्त्रसार चक्र क्या है 👈👈


 

 

 

17. ब्रह्म क्या है?     लेख लिंक  👉👉ब्रह्म क्या है???👈👈

 

 

18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??

 

 

19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??


 

20. और बतायें?? 




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2 


👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

 👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

 

20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 3

 

प्रश्न 21. जब योग का एक वाक्य अर्थ तो इतने योग क्यों???

कहीं नाद तो कहीं सहज तो कहीं शब्द कहीं भक्ति कहीं ज्ञान कहीं कर्म??? 

👉👉लेख लिंकअंतर्मुखी बनाम योग 👈👈

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी होने की विधियां 👈👈

👉👉लेख लिंक: योग की वास्तविकता और विभिन्न गलत धारणायें 👈

 

👉👉लेख लिंक  अंतर्मुखी होने की विधियां👈👈


 👉👉कबीर से साक्षात्कार👈👈

 

 👉👉आखिर क्या होती है शक्तिपात योग दीक्षा👈👈

 👉👉क्या होता है शक्तिपात👈👈   

👉👉क्या है क्रिया योग 👈👈

 👉👉क्रिया योग बनाम शक्तिपात👈👈

👉👉 शक्तिपात या दैवीय शक्ति संक्रमण👈👈

👉👉क्रिया व योग या क्रिया योग  👈👈

👉👉शक्तिपात में क्रिया क्या होती है  👈👈

 

👉👉 मन्त्र जप की अवस्थायें👈👈

👉👉शाबर मंत्र और महत्व  👈👈

 

प्रश्न 22: ओशो पर क्या विचार ???  

 


👉👉 क्यों मानता हूं ओशो को पापी👈👈 

 


प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता??? 

 

प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है। 

 

प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

  

24. फिर अष्टांग योग क्या है???



 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 


 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈


 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈


 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈


👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈



 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈



 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5


26. योगी की पहचान क्या है???



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

 

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈



 




 

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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।



👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈


👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈
👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈






Monday, August 26, 2019

आखिर क्या है क्रिया योग

आखिर क्या है क्रिया योग

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bulle



क्रिया योग की साधना करने वालों के द्वारा इसे एक प्राचीन योग पद्धति के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसे आधुनिक समय में महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिरी महाशय के द्वारा 1861 के आसपास पुनर्जीवित किया गया और परमहंस योगानन्द की पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी (एक योगी की आत्मकथा) के माध्यम से जन सामान्य में प्रसारित हुआ।



इस पद्धति में प्राणायाम के कई स्तर होते है जो ऐसी तकनीकों पर आधारित होते हैं जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को तेज़ करना और प्रशान्ति और ईश्वर के साथ जुड़ाव की एक परम स्थिति को उत्पन्न करना होता है। इस प्रकार क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है।


परमहंस योगानन्द के अनुसार क्रियायोग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन से रहित तथा ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपान्तरित होकर मस्तिष्क और मेरूदण्ड के चक्रों को नवशक्ति से पुनः पूरित कर देते है। प्रत्यक्छ प्राणशक्तिके द्वारा मन को नियन्त्रित करनेवाला क्रियायोग अनन्त तक पहुँचने के लिये सबसे सरल प्रभावकारी और अत्यन्त वैज्ञानिक मार्ग है। बैलगाड़ी के समान धीमी और अनिश्चित गति वाले धार्मिक मार्गों की तुलना में क्रियायोग द्वारा ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग को विमान मार्ग कहना उचित होगा।


क्रियायोग की प्रक्रिया का आगे विश्लेषण करते हुये वे कहते हैं कि मनुष्य की श्वशन गति और उसकी चेतना की भिन्न भिन्न स्थिति के बीत गणितानुसारी सम्बन्ध होने के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। मन की एकाग्रता धीमे श्वसन पर निर्भर है। तेज या विषम श्वास भय, काम क्रोध आदि हानिकर भावावेगों की अवस्था का सहचर है।



योगानन्द जी के अनुसार, प्राचीन भारत में क्रिया योग भली भांति जाना जाता था, लेकिन अंत में यह खो गया, जिसका कारण था पुरोहित गोपनीयता और मनुष्य की उदासीनता। योगानन्द जी का कहना है कि भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में क्रिया योग को संदर्भित किया है:
बाह्यगामी श्वासों में अंतरगामी श्वाशों को समर्पित कर और अंतरगामी श्वासों में बाह्यगामी श्वासों को समर्पित कर, एक योगी इन दोनों श्वासों को तटस्त करता है; ऐसा करके वह अपनी जीवन शक्ति को अपने ह्रदय से निकाल कर अपने नियंत्रण में ले लेता है।



योगानन्द जी ने यह भी कहा कि भगवान कृष्ण क्रिया योग का जिक्र करते हैं जब “भगवान कृष्ण यह बताते है कि उन्होंने ही अपने पूर्व अवतार में अविनाशी योग की जानकारी एक प्राचीन प्रबुद्ध, वैवस्वत को दी जिन्होंने इसे महान व्यवस्थापक मनु को संप्रेषित किया। इसके बाद उन्होंने, यह ज्ञान भारत के सूर्य वंशी साम्राज्य के जनक इक्ष्वाकु को प्रदान किया।” योगानन्द का कहना है कि पतंजलि का इशारा योग क्रिया की ओर ही था जब उन्होंने लिखा “क्रिया योग शारीरिक अनुशासन, मानसिक नियंत्रण और ॐ पर ध्यान केंद्रित करने से निर्मित है।” और फिर जब वह कहते हैं, “उस प्रणायाम के जरिए मुक्ति प्राप्त की जा सकती है जो प्रश्वसन और अवसान के क्रम को तोड़ कर प्राप्त की जाती है।” श्री युक्तेशवर गिरि के एक शिष्य, श्री शैलेंद्र बीजॉय दासगुप्ता ने लिखा है कि, “क्रिया के साथ कई विधियां जुडी हुई हैं जो प्रमाणित तौर पर गीता, योग सूत्र, तन्त्र शास्त्र और योग की संकल्पना से ली गयी हैं।”



नवीनतम इतिहास में  हिमालय पर्वत पर स्थित बद्रीनाथ में सन् 1954 और 1955 में बाबाजी ने महान योगी एस. ए. ए. रमय्या को इस तकनीक की दीक्षा दी |


1983 में योगी रमय्या ने अपने शिष्य मार्शल गोविन्दन को 144 क्रियाओं के अधिकृत शिक्षक बनने से पहले उन्हें अनेक कठोर नियमों का पालन करने को कहा | मार्शल गोविन्दन पिछले 12 वर्षों से क्रिया योग का अनवरत अभ्यास कर रहे थे | प्रति सप्ताह 56 घंटे अभ्यास करने के अतिरिक्त उन्होंने 1981 में श्री लंका के समुद्र तट पर एक वर्ष मौन तपस्या की थी | गुरु के दिये हुए अतिरिक्त शर्तों को पूरा करने में गोविन्दन जी को तीन वर्ष और लगे | इतना होने पर योगियार ने उन्हें प्रतीक्षा करते रहने को कहा | योगियार अक्सर कहते थे कि शिष्य को गुरु अर्थात बाबाजी के चरणों तक पंहुचा देना भर ही उनका काम था |

1988 में क्रिस्मस की पूर्व संध्या पर गहन आध्यात्मिक अनुभूति के दौरान गोविन्दन जी को सन्देश मिला कि वो अपने शिक्षक के आश्रम और उनका संगठन छोड़ कर लोगों को क्रिया योग में दीक्षा देना शुरू करें |



इसके बाद मार्शल गोविन्दन के जीवन की दिशा गुरु की प्रेरणा से प्रकाशमान हुई | 1989 से उनका जीवन इस नयी दिशा में अग्रसर हुआ | लोगों तक इस शिक्षा को लाने के द्वार खुलते गए, मार्ग प्रशस्त होता गया | इस कार्य में अन्तःप्रज्ञा और अंतर-दृष्टि के माध्यम से गुरु का मार्गदर्शन निरंतर मिलता रहा | गोविन्दन जी ने मोंट्रियल में ही साप्ताहांत में क्रिया योग सिखलाना शुरू किया | क्रिया योग पर उनकी पहली पुस्तक का प्रकाशन 1991 में हुआ और इसके बाद वे सारी दुनिया में कई जगहों पर साप्ताहांत दीक्षा शिविर आयोजित करने लगे | तब से गुरु के प्रकाश से ज्यादा से ज्यादा लोगों को आलोकित करना ही उन्हें आनंदित करता है | अब तक 20 से अधिक देशों में फैले हुए 10,000 से ज्यादा लोग आध्यात्म कि इस बहुमूल्य वैज्ञानिक प्रणाली से जुड़ चुके हैं | उन्होंने क्रिया योग के 16 शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया है |

एम. गोविंदन सत्चिदानन्द को सन् 2014 में सम्मानित "पतंजलि पुरस्कार" दिया गया।


क्रिया योग का अभ्यास
जैसा की लाहिरी महाशय द्वारा सिखाया गया, क्रिया योग पारंपरिक रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से ही सीखा जाता है। उन्होंने स्मरण किया कि, क्रिया योग में उनकी दीक्षा के बाद, “बाबाजी ने मुझे उन प्राचीन कठोर नियमों में निर्देशित किया जो गुरु से शिष्य को संचारित योग कला को नियंत्रित करते हैं।”



जैसा की योगानन्द द्वारा क्रिया योग को वर्णित किया गया है, “एक क्रिया योगी अपनी जीवन उर्जा को मानसिक रूप से नियंत्रित कर सकता है ताकि वह रीढ़ की हड्डी के छः केंद्रों के इर्द-गिर्द ऊपर या नीचे की ओर घूमती रहे (मस्तिष्क, गर्भाशय ग्रीवा, पृष्ठीय, कमर, त्रिक और गुदास्थि संबंधी स्नायुजाल) जो राशि चक्रों के बारह नक्षत्रीय संकेतों, प्रतीकात्मक लौकिक मनुष्य, के अनुरूप हैं। मनुष्य के संवेदनशील रीढ़ की हड्डी के इर्द-गिर्द उर्जा के डेढ़ मिनट का चक्कर उसके विकास में तीव्र प्रगति कर सकता है; जैसे आधे मिनट का क्रिया योग एक वर्ष के प्राकृतिक आध्यात्मिक विकास के एक वर्ष के बराबर होता है।”
स्वामी सत्यानन्द के क्रिया उद्धरण में लिखा है, “क्रिया साधना को ऐसा माना जा सकता है कि जैसे यह “आत्मा में रहने की पद्धति” की साधना है”।



बाबाजी का क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है | प्राचीन सिद्ध परम्परा के 18 सिद्धों की शिक्षा का संश्लेषण कर भारत के एक महान विभूति बाबाजी नागराज ने इस प्रणाली को पुनर्जीवित किया | इसमें योग के विभिन्न क्रियाओं को 5 भागों में बांटा गया है |



1. क्रिया हठ योग: इसमें विश्राम के आसन, बंध और मुद्रा सम्मिलित हैं | इनसे नाङी एवं चक्र जागरण के साथ-साथ उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है | बाबाजी ने 18 आसनों की एक श्रृंखला तैयार की है जिन्हें दो आसन के युगल में करना सिखाया जाता है | अपने शारीर की देख-भाल मात्र शारीर के लिए नहीं बल्कि इसे ईश्वर का वाहन अथवा मंदिर समझ कर किया जाता है |

2. क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम: यह व्यक्ति की सुप्त चेतना एवं शक्ति को जगा कर उसे मेरुदंड के मूल से शीर्ष तक स्थित 7 प्रमुख चक्रों में प्रवाहित करने की शक्तिशाली स्व्शन क्रिया है | यह 7 चक्रों से सम्बद्ध क्षमताओं को जागृत कर अस्तित्व के पांचों कोषों को शक्तिपुंज में परिणत करते है |

3. क्रिया ध्यान योग: यह ध्यान की विभिन्न पद्धतियों से मन को वश में करने, अवचेतन मन की शुद्धि, एकाग्रता का विकास, मानसिक स्पष्टता एवं दूरदर्शिता, बौधिक, सहज ज्ञान तथा सृजनात्मक क्षमताओं की वृद्धि और ईश्वर के साथ समागम अर्थात समाधि एवं आत्म-ज्ञान को क्रमशः प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है |

4. क्रिया मंत्र योग: सूक्ष्म ध्वनि के मौन मानसिक जप से सहज ज्ञान, बुद्धि एवं चक्र जागृत होते हैं | मंत्र मन में निरंतर चलते हुए कोलाहल का स्थान ले लेता है एवं अथाशक्ति संचय को आसान बनाता है | मंत्र के जप से मन की अवचेतन प्रवृत्तियों की शुद्धि होती है |

5. क्रिया भक्ति योग: आत्मा की ईश्वर प्राप्ति की अभीप्सा को उर्वरित करता है | इसमें मंत्रोच्चार, कीर्तन, पूजा, यज्ञ एवं तीर्थ यात्रा के साथ-साथ निष्काम सेवा सम्मिलित है | इनसे अपेक्षारहित प्रेम एवं आनंद की अनुभूति होती है | धीरे-धीरे साधक के सभी कार्य मधुर एवं प्रेममय हो जाते हैं और उसे सब में अपने प्रियतम का दर्शन होता है |


क्रिया योग में दीक्षाएं
1. प्रथम दीक्षा : क्रिया योग की प्रथम दीक्षा साप्ताहांत में आयोजित एक गहन सेमिनार में दी जाती है | इस सेमिनार में आप बाबाजी द्वारा संकलित क्रिया हठ योग के 18 स्वास्थ्यवर्धक, शक्तिवर्धक तथा विश्रामदायी आसन सीखेंगे | साथ ही सूक्ष्म उर्जा को जाग्रत एवं प्रवाहित करने के लिये “क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम” नामक शक्तिशाली श्वसन प्रणाली के 6 चरण का अभ्यास सीखेंगे | इसके अतिरिक्त अवचेतन मन को परिशुद्ध कर अपने मन का स्वामी बनने तथा आत्म-साक्षात्कार एवं ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिये ध्यान की 7 क्रियाएँ सीखेंगे |
2. द्वितीय दीक्षा : प्रकृति की गोद में किसी ग्रामीण स्थल पर साप्ताहांत में आयोजित ‘आध्यात्मिक अंतर्यात्रा’ के दौरान द्वितीय दीक्षा दी जाती है | मंत्र दीक्षा के साथ साथ इसमें चक्रों को जाग्रत करने की शक्तिशाली तकनीक, योगनिद्रा, मौन एवं क्रियाशील ध्यान का अभ्यास सिखलाया जाता है | योग को रोजमर्रे की सामान्य गतिविधियों में उतारना इसका लक्ष्य है |
3. तृतीय दीक्षा : क्रिया योग के कुल 144 क्रियाओं में से प्रथम एवं द्वितीय दीक्षा के बाद बाकी बची हुई क्रियाओं को किसी ग्रामीण स्थल पर आयोजित 9 दिवसीय गहन अंतर्यात्रा-शिविर में सिखाया जाता है | इनमें वो क्रियाएँ भी शामिल हैं जो समाधि के विभिन्न स्तरों एवं इश्वर-सान्निध्य का अनुभव कराती है |


क्रिया योग के चार सोपान
1- ब्रह्म ग्रन्थी
2- विष्णु ग्रन्थी
3- रूद्र ग्रन्थी
4- परब्रह्म ग्रन्थी

ब्रह्म ग्रन्थी – इस सोपान में

तालव्य क्रिया
जिह्वा चालन
मानसिक ध्यान
प्राणायाम.
नाभी क्रिया
ज्योति मुद्र

छ.महा मुद्रा है । इस मे खेचरी मुद्रा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
प्राणायाम के साथ ऊँ का जाप करते हुऐ षटचक्र का ध्यान किया जाता हैं।इस मे एक प्राणायाम 44सैकिण्ड का होता है। एक समय 144प्राणायाम किये जाते है।
खेचरी मुद्रा पूर्ण होने पर ब्रह्म ग्रन्थी भेदन होती है।

परिणाम-
1- आसन सिद्ध होता है।2.खेचरी मुद्रा लगने लगती है।3 चेतना मूलाधार से उठ कर अनाहत मे आ जाती हैं।4 साधक की कामनाऐ समाप्त हो जाती है।5 ब्रह्मा जी के दर्शन होते हैं।
विष्णु ग्रन्थी या ह्रदय ग्रन्थी
इस मे प्राणायाम 66 सैकिण्ड का होता है।
मन्त्र द्वादश अक्षर का हैं। एक समय 200प्राणायाम किये जाते है ।प्राणायाम के साथ सिर को घूमाने एक विशेष क्रिया की जाती हैं।
नाभि क्रिया कुम्भक लगा कर की जाती है।ज्योति मुद्रा व म हा मुद्रा भी की जाती है।
परिणाम-
1- हृदय गति रूकने लग जाती हैं।
2.वासुदेवम् कटुम्भक की भावना हो जाती है।
3- चेतना ह्रदय से उठ कर आज्ञा चक्र पर आ जाती है।
4.साधक को भगवान विष्णु जी के दर्शन होते है।
रूद्र ग्रन्थी

प्राणायाम88 सैकिण्ड का होता है । मन्त्र ओंकार है। इसमेआज्ञा चक्र पर ध्यान लगा कर श्वास लिया जाता है व छोडा जाता है। प्राणायाम करते हुऐ एक ही धारणा करनी चाहिए आज्ञा चक्र से श्वास ले रहा हू व छोड़ रहा हूँ।
शेष क्रिया ह्रदय ग्रन्थी वाली करनी हैं।
परिणाम-
1.श्वास लम्बे समय तक रूकने लगता है।
2 तीसरा नेत्र खुल जाता है।
3 साधक मृत्यु को जान लेता हैं। मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
4 चेतना आज्ञा चक्र से दशम द्वार की तरफ चल पडती है।
5 भगवान शिव जी के साक्षात दर्शन होते है।

 
परब्रह्म ग्रन्थी
इस के दो भाग है।
1- पहले भाग मे प्रतिदिन पहले श्रीविद्या साधना की साधना की जाती
2- . दूसरे भाग मे प्राणायाम
लंम्बे से लम्बा खिचना है व लंम्बे से लम्बा छोडना है।साधना करते हुऐ संकल्प करे की दशम द्वार से श्वास ले रहा हू और छोड रहा।कुछ समय तो इस प्रकार करे व कुछ समय ध्यान व संकल्प करे की बिन्दु से topसे श्वास ले रहा हू व छोड़ रहा हू। यह क्रिया केवल खेचरी मुद्रा लगा कर ही करनी है ।अन्यथा परिणाम नही आऐगा।

 
परिणाम-
1 दशम द्वार खुल जाता है।
2.चिदाकाश मे प्रवेश हो जाता हैं
3.केवल कुम्भक की स्थिति आ जाती है।
4.आत्म साक्षात्कार हो जाता है।
5.ब्रह्म साक्षात्कार हो जाता है।
6.साधक मोक्ष पा लेता है।जीते जी संसार छुट जाता है ।साधक विदेही हो जाता है।
नियम :-यह विद्या प्रथम दिवस से एक घण्टा प्रातः व एक घण्टा साय । दूसरे मास से दो-दो घंटे व तीसरे मास तीन -तीन घण्टे व कम से कम छः वर्ष व अधिक से अधिक बारह वर्षो तक निरन्तर बिना रुके साधना करनी होती है साथ ही इस विद्या को गुप्त रखना होता है | ब्रह्मचर्य का पालन भी अनिवाय है | क्रिया योग के मार्ग पर मार्गदर्शन जरुरी है |

 

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/


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Wednesday, August 14, 2019

क्रिया व योग या क्रिया योग

क्रिया व योग या क्रिया योग 

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

 

यार बस फेल हो गए। अब योग मत पढ़ाओ।

यार मस्त रहो। व्यस्त रहो।

अस्त व्यस्त मत रहो।

आपको बुरा लगा तो क्षमा मांगता हूँ। पर अनुभव में क्रिया बहुत प्रचलित शब्द है। सब जानते है।

यहाँ शब्दावली की प्रतियोगता नही थी।

सर कलियुग में गूगल गुरू अनन्त भौतिक ज्ञान समेटे हुए है।

मुझसे बेहतर गूगल समझाएंगे।

क्रिया योग नही। क्रिया और योग।

दोनो अलग है।

क्रिया योग का प्रचार महावतार बाबा के शिष्य श्यामाचरन लाहिड़ी महाराज ने किया।

उसी परम्परा में an autography of himalayan yogi लिखी गई है।

मैंने यह कहा क्रिया और योग अलग है। जबकि क्रिया योग एक अंतर्मुखी होने की विधि।

स्वयं को आत्मा के रूप में जानने के लिए

अनुभव करने के लिए है तरीके बहुत है

क्रिया : वह जो कुण्डलनी जागरण के पश्चात अनिको अनुभव देता है। आंतरिक और भौतिक।

योग : आप जानते है।

वेदांत : आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव

श्री कृष्ण और पातंजली ने तुलसीदास ने लक्षण बताये है।

क्रिया योग: कुंभक रेचक और पूरक के साथ मन्त्र जप।

एक विधि अन्यर्मुखी होने की।

सरजी आपने जो बताया था उसे बिल्कुल आपके शब्दों मे तो लिखने मे असमर्थ हू लेकिन जो समझा था वह कुछ इस प्रकार है----


आपने कहा था कि क्रिया के लिए उसके संस्कार पर आधारित होती है और ये संस्कार क्रिया द्वारा नष्ट होते हैं और यह क्रिया एक अवस्था होती है


इसमे मेरे मन से कुछ अवश्य मिल गया होगा लेकिन मुझे अच्छी तरह नही पता।


इस तरह संस्कारों के कारण उसरे जन्म और मृत्यु होती है और कुछ क्रिया के रूप मे संस्कार नष्ट होते हैं और कुछ कर्म फल भोगने पर उसी तरह यह मृत्यु भी क्रिया है क्योंकि नये नये संस्कार बनते ही रहते हैं और इन्ही को भोगने हेतु बार बार जन्म मृत्यु।


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बाकी सब लिंक से जानने का कष्ट करें। मैं हर बार नही लिख सकता।

अध्यात्म बेहद बोरिंग है।

सारे रास्ते वही एक पर जाकर खत्म हो जाते हैं। सब रास्तों से परमेश्वर की प्राप्ति के लिए हैं लेकिन कुछ रास्तों मे थोड़ा देर लग सकता है कुछ जल्दी पहुचा देते हैं। लेकिन यह बात भी कहीं तक गौण ही है।


जो लोग अपना ही मत सर्वश्रेष्ठ बताते हैं उनके लिए तो मै कुछ नही कह सकता क्योंकि उनकी बुद्धि ने एक स्वयं की और परमात्मा की सीमा बना रखी है।


और इसी पर गहन विचार करने पर पता चला कि श्रेष्ठ अश्रेष्ठ,सही गलत मतलब द्वैत की सम्भावन ही खत्म हो जाती है। एक दूसरे को नीचा दिखाना अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने की वृत्ति खत्म हो जाती है। अहंकार पर भी गम्भीर चोट पहुचती है।

मित्र हमारी परम्परा में सब सम्मिलित है। मुझे पातञ्जलि का अष्टांग योग पता है। मैं उनकी धारणा विधि के माध्यम से ही कई रहस्य जान पाया।

हा मुझे किताबी ज्ञान बेहद सीमित है। जो अनुभव है उसी के सहारे जबाब देता हूँ।

आप कृपया पातञ्जलि की क्रिया योग विधि बताने का कष्ट करें।

नई जानकारी हेतु नमन एडवांस में।

हमारी परम्परा में कोई उपदेश नही। सीधे सीधे शिष्य की कुण्डलनी जागृत। जो अनेकों अनुभव देने लगती है। बस।

कुछ सदस्यों की दीक्षा ग्रुप में हुई है। लगभग सभी बौराये बैठे है । आनन्द और अनुभव की सीमाएं लांघ गए है। कभी कभी मुझे भी दुआएं दे देते है।

आभार आपका। बस इसी आ भार से भारी होकर मोटा होता जा रहा हूँ।

जी क्या आप through proper channel आये है।

मतलब mmstm किया क्या।

नही sir अभी नही किया है

तो करे। अपने अनुभव बताये।

सरजी मुझ पर कब कृपा होगी?

यार तुम मिलो तो पहले कुछ पिटाई करूँ। तुम शक्तिपात में ही दीक्षित हो।

आपके हाँथो मेरी पिटाई हो जाये तो मै धन्य हो जाऊँ।

देखो यह परम नालायक पिटाई चाहता है।

जी बिल्कुल , ऐसी पिटाई करें कि बाहरी पिटाई के साथ साथ आंतरिक पिटाई भी कर दें। मन बुद्धि, अहंकार को पीट पीटकर बर्बाद कर दें

देखो मित्र। कीचड़ का कीड़ा यदि दूध में डाला जाए तो मर जायेगा।

विपुल जी प्रणाम। आज सुबह मै साधन करते हुए फील किया कि मेरी आत्मा शरीर से अलग हो गई है तब मैंने एहसास किया की मृत्यु क्या होती है। इसका डर अब मेरे दिल से निकल गया है। यह सब विपुल जी की वजह से हो पाया। विपुल जी को कोटि कोटि प्रणाम।

आपकी दीक्षा हो गई शक्तिपात में। नहीं हुई अभी

जी

विपुल जी से कॉन्टैक्ट कीजिए। हमारे गुरु तुलया वहीं है।

मित्र अभी आप मन्त्र के विषय मे कुछ नही सीख पाए है अतः मन्त्रो की दुनिया की सलाह न दे।

अधूरा ज्ञान गलत हो सकता है।

आप पहले किसी भी मन्त्र से जो आपका इष्ट या कुल का हो। उससे mmstm करे। जो अनुभव हो बताये फिर आगे बात हो।

देखिये कोई भी हो पहले mmstm करे। जो अनुभव हो वो बताये। ताकि आपके स्तर को समझा जा सके।

बिल्कुल। एक तरह से यह बेसिक परीक्षा हैं जो उत्तीर्ण होना आवषयक है।

ओह। उस परम्परा के सन्यासी को मैं समझता हूँ। बिना अनुभव सन्यासी बन बैठते है।

मेरे सम्पर्क में एक आये थे बोले 16 साल से ओशो सन्यासी हूँ लोगो को सिखाता हूँ। पर कोई अनुभव नही।

ओशो लोगो को भृमित करते है और कुछ नही। लोग जानते है  मेरी बहन भी उसकी भक्त थी। मेरी बातों को कोई उत्तर नही दे पाते उनके भक्त।

ओशो एक अपूर्ण अज्ञानी थे। जो महपाप भी कर बैठे।

खुद अभी तक मुक्त नही हुए है। एक कमरे में बन्द दिखते है।

मैं उनको न सन्त मानता हूँ और एक पापी मानता हूँ। वह सनातन के कृष्ण के दोनों के दोषी।

सर मैंने फेस बुक पर बहुत लिखा तर्क दिया है। फिर भी आप पूछ सकते है।

मैं ओशो के अंदर के भाव तक को समझ क्या देख चुका हूँ। कहां भटके वह तो जानता हूँ। उसकी आत्मा तक को देख चुका हूँ। और क्या।

अधिक बोलना ठीक नही। यह गर्व और यात्म श्लाघा है। आप मेरी स्वकथा पढ़ ले।

यदि मैं कहूँ ओशो बच्चा था तो क्या मानोगे।

बहन आप mmstm कर ले। आपको सब महसूस हो जाएगा।

यह विधि सनातन की शक्ति का एहसास घर बैठे बिना गुरु के करवा देती है।

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यार यह ग्रुप के सदस्य है इनकी माता जी को देवी का सायुज्य प्राप्त है। इनकी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं है। जो विज्ञान नही मानता पर घट रही है।

इनकी बात सुनकर वैज्ञानिक पागल हो जायेगे।

यार खुद समझो। कपड़े मत निकलवाओ। इशारा दिया है।

जी मैं अपने को खोजी ही कहलवाना पसन्द करता हूँ।

यार पढ़ लो। बस। पकाओ मत।

तुम mmstm करो जान जाओगे। मैं तो अंगूठा भी नही रखता। क्या बोलू। ग्रुप के पहले के कुछ सदस्यों को सिर्फ बोलकर क्या से क्या हो गया था।

कारण मैं गुरू नही।

अनुभव की बात से क्या सिद्ध होता है। मैं एक पंडित जी से मिला था वह किसी को भी दिखा सकते है आँख बंद करवा कर। कहीं भी कोसो दूर।

गुरोके कर्म मर्यादा असीमित है।

अनुभव करवा सकते है जिससे बोलोगे बात करवा सकते है। आप खुद बोलोगे कौन क्या कह रहा है। मेरे एक मित्र जो इस ग्रुप में भी है। उन्होंने खुद देखा है सब।

यदि अनुभव न हो तो कर के देख लो। अपने गुरू मन्त्र के साथ। अनुभव है तो अपनी गुरू शक्ति या शिव या कृष्ण या किसी देव से पूछ लेना। बस।

यह सब सिद्धियां है जो मार्ग की भारी रुकावट है।

सिद्धया सिद्ध पुरुष के साथ खुद हो जाती है। पर यह बन्धनकारी और विनाशक होती है।

सर जी इस ग्रुप में ही कई प्रकार के ओशो के बाप लोग मौजूद है।

सत्य है। उनके पास ऐसी सिद्धि है। मैं समझ गया था। उनकी बातों में सटीकता नहीं दिखी मुझे। मुझे दिखाने से मना कर देते थे।

ओशो एक भटका अपूर्ण ज्ञानी बच्चा ही था।

किसी भी प्रकार का आप ज्ञान दे सकते है अपितु आप किसी ज्ञानी का तिरस्कार नहीं कर सकते‬‬‬‬

और न ही करना चाहिए‬‬‬‬

रावण ज्ञानी था पर था पापी। फिर उसका तिरस्कार क्यो। ओशो भी उसी कैडर का था।

आपका ज्ञान अच्छा हो सकता है लेकिन अपने अंहकार नहीं कर सकते‬‬‬‬

प्रायः लोग उसके लेख पढ़कर प्रवचन सुनकर मोहित हो जाते है। पर उसकी सोंच और आंतरिक कर्म तक नही पहुँच पाते।

यह अहंकार नही है। जगत को सत्य बताना है।

अगर आप कैकई और सबरी के प्रेम मे भेद समझते है तो‬‬‬‬

कैकई के बारे मे बिचार दीजिए‬‬‬‬

कैकेई ने जगत पर कल्याण किया। राम को वन भेजकर रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर राम की महानता को जगत को सामने आने का मौका दिया।

शबरी ने प्रेमल भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। दोनो की कोई तुलना नही।

रावण के बिषय मे‬‬‬‬

आपके विचारों से हम संतुष्ट है‬‬‬‬

जिस भांति कौओं के मुख से वेद वाणी नही सुहाती उसी प्रकार पापी के मुख से ज्ञान शोभा नही देता।

ओशो को मैं पापी भटका अपूर्ण ज्ञानी मानता हूँ।

तो क्या रावण पापी था‬‬‬‬

दुराचारी था‬‬‬‬

पाप और पुण्य की परिभाषा समाज के हिसाब से बदलती है।

दुराचर का वर्णन करे‬‬‬‬

जो सिर्फ भगवद्गीता बताती है। है अर्जुन जो कर्म समाज के हित में नही वो तेरे हित में कैसे हो सकता है।

मतलब पाप वह जो समाज का अहित करे। पुण्य वह जिसमे समाज का हित हो।

रावण के दुराचारो के बिषय को अवगत करावे‬‬‬‬

ओशो ने खुला यौनाचार जो भारत मे पाप था। उसको प्रचारित किया। वह भी क्रिया की आड़ में। जो लोगो को दुराचार की प्रेरणा दे गया।

हम ओशो के विषय को छोड सकते है‬‬‬‬

हम रावण की दुराचार कर्म के बारे मे जानना चाहते है विवरण पूर्वक‬‬‬‬

जिसका भी उल्लेख रामचरीतमानस में हैं वो बुरा नहीं है‬‬‬‬

मेरी छोटी बुद्धि है कृपा कर विवरण प्रदान करै मेरै छोटे सै प्रश्न का‬‬‬‬

मित्र मैं इस ग्रुप को भटकाना नही चाहता। अब अनर्गल प्रलाप बढ़ रहा है। मैं किताबी ज्ञानियों से बहस शुरू होने के पूर्व हार मान लेता हूँ। मुझे सिर्फ अनुभवित लोगो से बात करने में आनन्द मिलता है।

मेरी सोंच में ओशो पापी। मैंने कई लेखों में तर्क दिए है। अब नही लिखना चाहता।

आपको जो सोंचना समझना हो समझे।

मुझे बेकार की चर्चा में अपनी ऊर्जा नष्ट करने का कोई शौक़ नही।

साउथ में रावण की पूजा होती है। आप करे।

बाकी सबको नमन।

मैं अनावश्यक चर्चा से बाहर।

कोई नृप होई। हमे का हानि।

जानकर क्या फायदा होगा।

मित्र आप लगे रहे। आपने दीक्षा ली है क्या।

ओह। क्या आपको क्रिया होती है।

गायत्री दीक्षा में गुरु तो होते नही।

मतलब कुछ शरीर के साथ कम्पन घूर्णन इत्यादि।

कोई वह जो आपने सोंचा न हो।

अनुभव नही। तीव्र अनुभूति। आप मेरा लेख देखे तो क्रिया समझ जायेंगे।

वह सब गौण है।

क्या आपका मन कोई और मन्त्र जप हेतु करता है। मतलब आपका इष्ट कौन है।

आप घबराए नही। सब मिलेगा।

आप कहाँ रहते है।

क्या आप शक्तिपात दीक्षा चाहते है। मतलब सीधे हवाई यात्रा चाहते है।

यह छोड़ो।

मन्त्र की भी एक सीमा होती है।

आप व्यक्तिगत पोस्ट पर आए।

स्थुल जगत से सुक्ष्म अति बलवान है‬‬‬‬

ये शक्तिपात दिक्षा क्या होती है हमें भी अवगत कराईये  गुरुजी परनाम‬‬‬‬

ये होता कैसे है सर कुछ जान सकता हूँ

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हे प्रभु गणपति। आज आपका विसर्जन लोग कर रहे है। आपसे प्रार्थना है आप विसर्जित न हो। मेरे ह्रदय में विराजित हो।

प्रभु विनती सुने।

गणपति बप्पा सदा मोरया। मुझ पापी के ह्रदय में।

उसको न कोई विसर्जित कर सकता न प्रतिष्ठित।

यह मात्र शब्द है।

पर इस महोत्सव में गणपति शक्ति वास्तविक रूप में भृमण करती है।

विसर्जन मूर्ति का होता है।

मुझे यह शब्द अच्छा नही लगता।

यह लोकमान्य तिलक ने हिन्दुओ को एकत्र कर अंग्रेजो के खिलाफ एक भावना निर्माण हेतु आरम्भ किया था।

गणपति बप्पा मोरिया

वाह जो रस प्रेमाश्रु में है। वह कही नही। यह केवल भक्ति मार्ग से भक्ति योग जहाँ द्वैत होता है वही मिलता है। उसी को प्रेम और विरह की अनुभूति हो सकती है जिसके प्रेमाश्रु गिरते हो। निराकार उपासक ज्ञान योग एक दम नीरस होता है उसे इस प्रेम की विरह की अनुभूति कहाँ।

तुम तर गए पर्व। तुम्हे परम् प्रेमा भक्ति का आनन्द मिल गया।

इसी के लिए कुंती ने कृष्ण से वरदान मांगा। मोक्ष निर्वाण सब बेकार इस आनन्द के सामने।

स्वार्थी मत बनो वह चतुर तुम्हारा ही नही। मेरा भी है। पूरे जगत का है।

फोड़ दो। सब कुछ हल्के हो जाओ। बोझ मत रखो।

वामाचार और दक्षिण पंथ। दो पंथ है। वामाचार समाज से अलग रह कर साधना करते है।

यह दुष्ट इनको भी समाज मे लेकर आ गया। क्या यह उचित था।

यार आप को जो सोंचना हो सोंचे। उस पापी की पूजा करे।

इस बहस का न कुछ हल है न फल है।।

कृपया ओशो पर चर्चा न करे। आपसे निवेदन है।

बन्द कर दे।

जिनको ओशो का बखान करना हो। वह ग्रुप से खुशी से बिदा ले सकते है।

अब आपको जो सोंचना हो सोंचे।

बिल्कुल नही। पर सिर्फ यह करना रुकावट बन जाएगी। हर कार्य को उचित समय देना ही उचित होता है।

सत्य वचन मैं पापी हूँ। शायद इसी लिए महापापी को पहचान गया।

फिलहाल एक पापी महापापी की चर्चा बर्दाश्त नही कर सकता। मतलब एक छोटा बड़े को कैसे सहन करेगा।

चलो बताता हूँ। मैंने ओशो की मैगजीन में एक महिला की बात सुनी तो दंग रह गया। उसने बताया था साधना कक्ष में उसने 200 से अधिक लोगो से सम्पर्क बनाया था।

यह क्या है साधना या इसकी आड़ में वेश्यालय।

चलो ओशो की सोंच और साधना को बताता हूँ। एक लेख ही लिख डालता हूँ कि मैं ओशो से क्यो घृणा करता हूँ।

ओशो अपने कार्यालय में विपश्यना किया करते थे। अचानक उनको निराकार अनुभूति हुई। अहम ब्रह्यस्मि की।

इस अनुभूति के बाद ज्ञान ग्रन्थी खुल जाती है। मनुष्य में दूसरो पर शक्तिपात की क्षमता विकसित हो जाती है।

साथ ही प्रवचन देने गुरू बनने और ज्ञान प्रचार की इच्छा बल वती हो जाती है।

1 अपने को भगवान बनाया। पहले आचार्य फिर भगवान फिर जापानी भाषा मे ओशो। स्वयम बुद्ध जीसस, जिनको ओशो मानते थे। उन्होंने अपने को भगवान बोला।

2 बुद्ध की बात की पर बुद्ध की पाँच अप्रिमिताओ में चौथी की औरत से दूर। पर नही माना। 10000 बुद्ध पैदा करेगे।

3 गीता के अनुसार पाप वह जो समाज के विरूद्ध कार्य है। खुला सेक्स भारत मे पाप। विदेशो में नही।

इसकी भारत मे वकालत कर महापाप किया। गीता का अपमान।

4 गेरुआ वस्त्र सनातन में सिर्फ ब्रह्मचारी और सन्यासी पहन सकता है इन्होंने ग्रहस्थ्य को पहनाया। जो सनातन का अपमान

5 बिना गुरु परम्परा के गुरु बने। दीक्षा दी।

6 भगवे वस्त्र में क्रिया की आड़ में यौनाचार की अनुमति।

7 बिना अनुभव के सन्यासी बनाये और उनको भी ओशो लगाने की अनुमति दी।

कुल मिलाकर सनातन गीता और भारतीयता की धज्जियां उड़ा दी।

अब आप सभी से अंतिम निवेदन है। आप जो चाहे सोंचे ओशो को मैं पापी मानता हूँ। यदि किसी ने फिर तर्क किया। मैं ग्रुप का प्रशासक होने के नाते बाहर कर दूंगा।

यह अंतिम चेतावनी है।

सत्य निरंजन जी मैं आपके गुरु को प्रणाम करता हूँ। मैं हर उस व्यक्ति को नमन करता हूँ जो सनातन का सही तरीके प्रचार करता हो। चाहे अनुभव हो या न हो।

भगवे वस्त्र का सममान करता हूँ।

किंतु भेड़ चाल नही चलता हूँ।

मैंने स्वयम तमाम सन्तो की सत्यता को परखा है।

कई जीजो की नई खोज व्याख्या तक की है। अतः मुझे किसी बैसाखी आवश्यकता नही। जहाँ आवश्यकता होती है मुझे आत्म गुरु दैवीय शक्ति का सहारा मिल जाता है।

मैं यह जानता हूँ आप हठ योग मार्गी है। आपको योग कोई अनुभव नही है। पर आपसे तर्क नही। आपको नमन। आप सनातन का प्रचार कर रहे है।

निवेदन है सभी एडमिन से जहाँ तक सम्भव हो ओशो, ब्रह्मा कुमारी लोगो को न जोड़े।

कृपया ध्यान दे।

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मैं सत्य निरंजन जी को धन्यवाद करता हूँ। जिनके वाद विवाद के कारण मेरे लेख बन गए।

अब इस लेख में दिए बिंदु यदि कोई जबाब देना चाहे तो व्यक्तिगत दे सकता है । यदि उचित होगा तो मैं ग्रुप में पोस्ट कर दूंगा। वैसे मेरी विवेचना सप्रमाण है। कोई तर्क न दे पाएगा।

किंतु स्वागत है।

यार फिर वही। मित्र कहां तक दुनिया का मुंह बंद करोगे। कोई भी अपना अपराध स्वीकार नही करता। क्या फायदा है व्यर्थ पानी मे लठ्ठ मारना।

तुम सनकी रामपाल के शिष्य देख चुके हो।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_24.html

मैं पुनः निवेदन करता हूँ। बकवास न की जाए किसी के गुरु पर व्यर्थ वाद विवाद न किया जाए।

जब तक कोर्ट फैसला न दे सब निर्दोष होते है।

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित  मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़ सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुलेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।

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