क्रिया व योग या क्रिया योग
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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यार बस फेल हो गए। अब योग मत पढ़ाओ।
यार मस्त रहो। व्यस्त रहो।
अस्त व्यस्त मत रहो।
आपको बुरा लगा तो क्षमा मांगता हूँ। पर अनुभव में क्रिया बहुत प्रचलित शब्द है। सब जानते है।
यहाँ शब्दावली की प्रतियोगता नही थी।
सर कलियुग में गूगल गुरू अनन्त भौतिक ज्ञान समेटे हुए है।
मुझसे बेहतर गूगल समझाएंगे।
क्रिया योग नही। क्रिया और योग।
दोनो अलग है।
क्रिया योग का प्रचार महावतार बाबा के शिष्य श्यामाचरन लाहिड़ी महाराज ने किया।
उसी परम्परा में an autography of himalayan yogi लिखी गई है।
मैंने यह कहा क्रिया और योग अलग है। जबकि क्रिया योग एक अंतर्मुखी होने की विधि।
स्वयं को आत्मा के रूप में जानने के लिए
अनुभव करने के लिए है तरीके बहुत है
क्रिया : वह जो कुण्डलनी जागरण के पश्चात अनिको अनुभव देता है। आंतरिक और भौतिक।
योग : आप जानते है।
वेदांत : आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव
श्री कृष्ण और पातंजली ने तुलसीदास ने लक्षण बताये है।
क्रिया योग: कुंभक रेचक और पूरक के साथ मन्त्र जप।
एक विधि अन्यर्मुखी होने की।
सरजी आपने जो बताया था उसे बिल्कुल आपके शब्दों मे तो लिखने मे असमर्थ हू लेकिन जो समझा था वह कुछ इस प्रकार है----
आपने कहा था कि क्रिया के लिए उसके संस्कार पर आधारित होती है और ये संस्कार क्रिया द्वारा नष्ट होते हैं और यह क्रिया एक अवस्था होती है
इसमे मेरे मन से कुछ अवश्य मिल गया होगा लेकिन मुझे अच्छी तरह नही पता।
इस तरह संस्कारों के कारण उसरे जन्म और मृत्यु होती है और कुछ क्रिया के रूप मे संस्कार नष्ट होते हैं और कुछ कर्म फल भोगने पर उसी तरह यह मृत्यु भी क्रिया है क्योंकि नये नये संस्कार बनते ही रहते हैं और इन्ही को भोगने हेतु बार बार जन्म मृत्यु।
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बाकी सब लिंक से जानने का कष्ट करें। मैं हर बार नही लिख सकता।
अध्यात्म बेहद बोरिंग है।
सारे रास्ते वही एक पर जाकर खत्म हो जाते हैं। सब रास्तों से परमेश्वर की प्राप्ति के लिए हैं लेकिन कुछ रास्तों मे थोड़ा देर लग सकता है कुछ जल्दी पहुचा देते हैं। लेकिन यह बात भी कहीं तक गौण ही है।
जो लोग अपना ही मत सर्वश्रेष्ठ बताते हैं उनके लिए तो मै कुछ नही कह सकता क्योंकि उनकी बुद्धि ने एक स्वयं की और परमात्मा की सीमा बना रखी है।
और इसी पर गहन विचार करने पर पता चला कि श्रेष्ठ अश्रेष्ठ,सही गलत मतलब द्वैत की सम्भावन ही खत्म हो जाती है। एक दूसरे को नीचा दिखाना अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने की वृत्ति खत्म हो जाती है। अहंकार पर भी गम्भीर चोट पहुचती है।
मित्र हमारी परम्परा में सब सम्मिलित है। मुझे पातञ्जलि का अष्टांग योग पता है। मैं उनकी धारणा विधि के माध्यम से ही कई रहस्य जान पाया।
हा मुझे किताबी ज्ञान बेहद सीमित है। जो अनुभव है उसी के सहारे जबाब देता हूँ।
आप कृपया पातञ्जलि की क्रिया योग विधि बताने का कष्ट करें।
नई जानकारी हेतु नमन एडवांस में।
हमारी परम्परा में कोई उपदेश नही। सीधे सीधे शिष्य की कुण्डलनी जागृत। जो अनेकों अनुभव देने लगती है। बस।
कुछ सदस्यों की दीक्षा ग्रुप में हुई है। लगभग सभी बौराये बैठे है । आनन्द और अनुभव की सीमाएं लांघ गए है। कभी कभी मुझे भी दुआएं दे देते है।
आभार आपका। बस इसी आ भार से भारी होकर मोटा होता जा रहा हूँ।
जी क्या आप through proper channel आये है।
मतलब mmstm किया क्या।
नही sir अभी नही किया है
तो करे। अपने अनुभव बताये।
सरजी मुझ पर कब कृपा होगी?
यार तुम मिलो तो पहले कुछ पिटाई करूँ। तुम शक्तिपात में ही दीक्षित हो।
आपके हाँथो मेरी पिटाई हो जाये तो मै धन्य हो जाऊँ।
देखो यह परम नालायक पिटाई चाहता है।
जी बिल्कुल , ऐसी पिटाई करें कि बाहरी पिटाई के साथ साथ आंतरिक पिटाई भी कर दें। मन बुद्धि, अहंकार को पीट पीटकर बर्बाद कर दें
देखो मित्र। कीचड़ का कीड़ा यदि दूध में डाला जाए तो मर जायेगा।
विपुल जी प्रणाम। आज सुबह मै साधन करते हुए फील किया कि मेरी आत्मा शरीर से अलग हो गई है तब मैंने एहसास किया की मृत्यु क्या होती है। इसका डर अब मेरे दिल से निकल गया है। यह सब विपुल जी की वजह से हो पाया। विपुल जी को कोटि कोटि प्रणाम।
आपकी दीक्षा हो गई शक्तिपात में। नहीं हुई अभी
जी
विपुल जी से कॉन्टैक्ट कीजिए। हमारे गुरु तुलया वहीं है।
मित्र अभी आप मन्त्र के विषय मे कुछ नही सीख पाए है अतः मन्त्रो की दुनिया की सलाह न दे।
अधूरा ज्ञान गलत हो सकता है।
आप पहले किसी भी मन्त्र से जो आपका इष्ट या कुल का हो। उससे mmstm करे। जो अनुभव हो बताये फिर आगे बात हो।
देखिये कोई भी हो पहले mmstm करे। जो अनुभव हो वो बताये। ताकि आपके स्तर को समझा जा सके।
बिल्कुल। एक तरह से यह बेसिक परीक्षा हैं जो उत्तीर्ण होना आवषयक है।
ओह। उस परम्परा के सन्यासी को मैं समझता हूँ। बिना अनुभव सन्यासी बन बैठते है।
मेरे सम्पर्क में एक आये थे बोले 16 साल से ओशो सन्यासी हूँ लोगो को सिखाता हूँ। पर कोई अनुभव नही।
ओशो लोगो को भृमित करते है और कुछ नही। लोग जानते है मेरी बहन भी उसकी भक्त थी। मेरी बातों को कोई उत्तर नही दे पाते उनके भक्त।
ओशो एक अपूर्ण अज्ञानी थे। जो महपाप भी कर बैठे।
खुद अभी तक मुक्त नही हुए है। एक कमरे में बन्द दिखते है।
मैं उनको न सन्त मानता हूँ और एक पापी मानता हूँ। वह सनातन के कृष्ण के दोनों के दोषी।
सर मैंने फेस बुक पर बहुत लिखा तर्क दिया है। फिर भी आप पूछ सकते है।
मैं ओशो के अंदर के भाव तक को समझ क्या देख चुका हूँ। कहां भटके वह तो जानता हूँ। उसकी आत्मा तक को देख चुका हूँ। और क्या।
अधिक बोलना ठीक नही। यह गर्व और यात्म श्लाघा है। आप मेरी स्वकथा पढ़ ले।
यदि मैं कहूँ ओशो बच्चा था तो क्या मानोगे।
बहन आप mmstm कर ले। आपको सब महसूस हो जाएगा।
यह विधि सनातन की शक्ति का एहसास घर बैठे बिना गुरु के करवा देती है।
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यार यह ग्रुप के सदस्य है इनकी माता जी को देवी का सायुज्य प्राप्त है। इनकी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं है। जो विज्ञान नही मानता पर घट रही है।
इनकी बात सुनकर वैज्ञानिक पागल हो जायेगे।
यार खुद समझो। कपड़े मत निकलवाओ। इशारा दिया है।
जी मैं अपने को खोजी ही कहलवाना पसन्द करता हूँ।
यार पढ़ लो। बस। पकाओ मत।
तुम mmstm करो जान जाओगे। मैं तो अंगूठा भी नही रखता। क्या बोलू। ग्रुप के पहले के कुछ सदस्यों को सिर्फ बोलकर क्या से क्या हो गया था।
कारण मैं गुरू नही।
अनुभव की बात से क्या सिद्ध होता है। मैं एक पंडित जी से मिला था वह किसी को भी दिखा सकते है आँख बंद करवा कर। कहीं भी कोसो दूर।
गुरोके कर्म मर्यादा असीमित है।
अनुभव करवा सकते है जिससे बोलोगे बात करवा सकते है। आप खुद बोलोगे कौन क्या कह रहा है। मेरे एक मित्र जो इस ग्रुप में भी है। उन्होंने खुद देखा है सब।
यदि अनुभव न हो तो कर के देख लो। अपने गुरू मन्त्र के साथ। अनुभव है तो अपनी गुरू शक्ति या शिव या कृष्ण या किसी देव से पूछ लेना। बस।
यह सब सिद्धियां है जो मार्ग की भारी रुकावट है।
सिद्धया सिद्ध पुरुष के साथ खुद हो जाती है। पर यह बन्धनकारी और विनाशक होती है।
सर जी इस ग्रुप में ही कई प्रकार के ओशो के बाप लोग मौजूद है।
सत्य है। उनके पास ऐसी सिद्धि है। मैं समझ गया था। उनकी बातों में सटीकता नहीं दिखी मुझे। मुझे दिखाने से मना कर देते थे।
ओशो एक भटका अपूर्ण ज्ञानी बच्चा ही था।
किसी भी प्रकार का आप ज्ञान दे सकते है अपितु आप किसी ज्ञानी का तिरस्कार नहीं कर सकते
और न ही करना चाहिए
रावण ज्ञानी था पर था पापी। फिर उसका तिरस्कार क्यो। ओशो भी उसी कैडर का था।
आपका ज्ञान अच्छा हो सकता है लेकिन अपने अंहकार नहीं कर सकते
प्रायः लोग उसके लेख पढ़कर प्रवचन सुनकर मोहित हो जाते है। पर उसकी सोंच और आंतरिक कर्म तक नही पहुँच पाते।
यह अहंकार नही है। जगत को सत्य बताना है।
अगर आप कैकई और सबरी के प्रेम मे भेद समझते है तो
कैकई के बारे मे बिचार दीजिए
कैकेई ने जगत पर कल्याण किया। राम को वन भेजकर रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर राम की महानता को जगत को सामने आने का मौका दिया।
शबरी ने प्रेमल भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। दोनो की कोई तुलना नही।
रावण के बिषय मे
आपके विचारों से हम संतुष्ट है
जिस भांति कौओं के मुख से वेद वाणी नही सुहाती उसी प्रकार पापी के मुख से ज्ञान शोभा नही देता।
ओशो को मैं पापी भटका अपूर्ण ज्ञानी मानता हूँ।
तो क्या रावण पापी था
दुराचारी था
पाप और पुण्य की परिभाषा समाज के हिसाब से बदलती है।
दुराचर का वर्णन करे
जो सिर्फ भगवद्गीता बताती है। है अर्जुन जो कर्म समाज के हित में नही वो तेरे हित में कैसे हो सकता है।
मतलब पाप वह जो समाज का अहित करे। पुण्य वह जिसमे समाज का हित हो।
रावण के दुराचारो के बिषय को अवगत करावे
ओशो ने खुला यौनाचार जो भारत मे पाप था। उसको प्रचारित किया। वह भी क्रिया की आड़ में। जो लोगो को दुराचार की प्रेरणा दे गया।
हम ओशो के विषय को छोड सकते है
हम रावण की दुराचार कर्म के बारे मे जानना चाहते है विवरण पूर्वक
जिसका भी उल्लेख रामचरीतमानस में हैं वो बुरा नहीं है
मेरी छोटी बुद्धि है कृपा कर विवरण प्रदान करै मेरै छोटे सै प्रश्न का
मित्र मैं इस ग्रुप को भटकाना नही चाहता। अब अनर्गल प्रलाप बढ़ रहा है। मैं किताबी ज्ञानियों से बहस शुरू होने के पूर्व हार मान लेता हूँ। मुझे सिर्फ अनुभवित लोगो से बात करने में आनन्द मिलता है।
मेरी सोंच में ओशो पापी। मैंने कई लेखों में तर्क दिए है। अब नही लिखना चाहता।
आपको जो सोंचना समझना हो समझे।
मुझे बेकार की चर्चा में अपनी ऊर्जा नष्ट करने का कोई शौक़ नही।
साउथ में रावण की पूजा होती है। आप करे।
बाकी सबको नमन।
मैं अनावश्यक चर्चा से बाहर।
कोई नृप होई। हमे का हानि।
जानकर क्या फायदा होगा।
मित्र आप लगे रहे। आपने दीक्षा ली है क्या।
ओह। क्या आपको क्रिया होती है।
गायत्री दीक्षा में गुरु तो होते नही।
मतलब कुछ शरीर के साथ कम्पन घूर्णन इत्यादि।
कोई वह जो आपने सोंचा न हो।
अनुभव नही। तीव्र अनुभूति। आप मेरा लेख देखे तो क्रिया समझ जायेंगे।
वह सब गौण है।
क्या आपका मन कोई और मन्त्र जप हेतु करता है। मतलब आपका इष्ट कौन है।
आप घबराए नही। सब मिलेगा।
आप कहाँ रहते है।
क्या आप शक्तिपात दीक्षा चाहते है। मतलब सीधे हवाई यात्रा चाहते है।
यह छोड़ो।
मन्त्र की भी एक सीमा होती है।
आप व्यक्तिगत पोस्ट पर आए।
स्थुल जगत से सुक्ष्म अति बलवान है
ये शक्तिपात दिक्षा क्या होती है हमें भी अवगत कराईये गुरुजी परनाम
ये होता कैसे है सर कुछ जान सकता हूँ
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हे प्रभु गणपति। आज आपका विसर्जन लोग कर रहे है। आपसे प्रार्थना है आप विसर्जित न हो। मेरे ह्रदय में विराजित हो।
प्रभु विनती सुने।
गणपति बप्पा सदा मोरया। मुझ पापी के ह्रदय में।
उसको न कोई विसर्जित कर सकता न प्रतिष्ठित।
यह मात्र शब्द है।
पर इस महोत्सव में गणपति शक्ति वास्तविक रूप में भृमण करती है।
विसर्जन मूर्ति का होता है।
मुझे यह शब्द अच्छा नही लगता।
यह लोकमान्य तिलक ने हिन्दुओ को एकत्र कर अंग्रेजो के खिलाफ एक भावना निर्माण हेतु आरम्भ किया था।
गणपति बप्पा मोरिया
वाह जो रस प्रेमाश्रु में है। वह कही नही। यह केवल भक्ति मार्ग से भक्ति योग जहाँ द्वैत होता है वही मिलता है। उसी को प्रेम और विरह की अनुभूति हो सकती है जिसके प्रेमाश्रु गिरते हो। निराकार उपासक ज्ञान योग एक दम नीरस होता है उसे इस प्रेम की विरह की अनुभूति कहाँ।
तुम तर गए पर्व। तुम्हे परम् प्रेमा भक्ति का आनन्द मिल गया।
इसी के लिए कुंती ने कृष्ण से वरदान मांगा। मोक्ष निर्वाण सब बेकार इस आनन्द के सामने।
स्वार्थी मत बनो वह चतुर तुम्हारा ही नही। मेरा भी है। पूरे जगत का है।
फोड़ दो। सब कुछ हल्के हो जाओ। बोझ मत रखो।
वामाचार और दक्षिण पंथ। दो पंथ है। वामाचार समाज से अलग रह कर साधना करते है।
यह दुष्ट इनको भी समाज मे लेकर आ गया। क्या यह उचित था।
यार आप को जो सोंचना हो सोंचे। उस पापी की पूजा करे।
इस बहस का न कुछ हल है न फल है।।
कृपया ओशो पर चर्चा न करे। आपसे निवेदन है।
बन्द कर दे।
जिनको ओशो का बखान करना हो। वह ग्रुप से खुशी से बिदा ले सकते है।
अब आपको जो सोंचना हो सोंचे।
बिल्कुल नही। पर सिर्फ यह करना रुकावट बन जाएगी। हर कार्य को उचित समय देना ही उचित होता है।
सत्य वचन मैं पापी हूँ। शायद इसी लिए महापापी को पहचान गया।
फिलहाल एक पापी महापापी की चर्चा बर्दाश्त नही कर सकता। मतलब एक छोटा बड़े को कैसे सहन करेगा।
चलो बताता हूँ। मैंने ओशो की मैगजीन में एक महिला की बात सुनी तो दंग रह गया। उसने बताया था साधना कक्ष में उसने 200 से अधिक लोगो से सम्पर्क बनाया था।
यह क्या है साधना या इसकी आड़ में वेश्यालय।
चलो ओशो की सोंच और साधना को बताता हूँ। एक लेख ही लिख डालता हूँ कि मैं ओशो से क्यो घृणा करता हूँ।
ओशो अपने कार्यालय में विपश्यना किया करते थे। अचानक उनको निराकार अनुभूति हुई। अहम ब्रह्यस्मि की।
इस अनुभूति के बाद ज्ञान ग्रन्थी खुल जाती है। मनुष्य में दूसरो पर शक्तिपात की क्षमता विकसित हो जाती है।
साथ ही प्रवचन देने गुरू बनने और ज्ञान प्रचार की इच्छा बल वती हो जाती है।
1 अपने को भगवान बनाया। पहले आचार्य फिर भगवान फिर जापानी भाषा मे ओशो। स्वयम बुद्ध जीसस, जिनको ओशो मानते थे। उन्होंने अपने को भगवान बोला।
2 बुद्ध की बात की पर बुद्ध की पाँच अप्रिमिताओ में चौथी की औरत से दूर। पर नही माना। 10000 बुद्ध पैदा करेगे।
3 गीता के अनुसार पाप वह जो समाज के विरूद्ध कार्य है। खुला सेक्स भारत मे पाप। विदेशो में नही।
इसकी भारत मे वकालत कर महापाप किया। गीता का अपमान।
4 गेरुआ वस्त्र सनातन में सिर्फ ब्रह्मचारी और सन्यासी पहन सकता है इन्होंने ग्रहस्थ्य को पहनाया। जो सनातन का अपमान
5 बिना गुरु परम्परा के गुरु बने। दीक्षा दी।
6 भगवे वस्त्र में क्रिया की आड़ में यौनाचार की अनुमति।
7 बिना अनुभव के सन्यासी बनाये और उनको भी ओशो लगाने की अनुमति दी।
कुल मिलाकर सनातन गीता और भारतीयता की धज्जियां उड़ा दी।
अब आप सभी से अंतिम निवेदन है। आप जो चाहे सोंचे ओशो को मैं पापी मानता हूँ। यदि किसी ने फिर तर्क किया। मैं ग्रुप का प्रशासक होने के नाते बाहर कर दूंगा।
यह अंतिम चेतावनी है।
सत्य निरंजन जी मैं आपके गुरु को प्रणाम करता हूँ। मैं हर उस व्यक्ति को नमन करता हूँ जो सनातन का सही तरीके प्रचार करता हो। चाहे अनुभव हो या न हो।
भगवे वस्त्र का सममान करता हूँ।
किंतु भेड़ चाल नही चलता हूँ।
मैंने स्वयम तमाम सन्तो की सत्यता को परखा है।
कई जीजो की नई खोज व्याख्या तक की है। अतः मुझे किसी बैसाखी आवश्यकता नही। जहाँ आवश्यकता होती है मुझे आत्म गुरु दैवीय शक्ति का सहारा मिल जाता है।
मैं यह जानता हूँ आप हठ योग मार्गी है। आपको योग कोई अनुभव नही है। पर आपसे तर्क नही। आपको नमन। आप सनातन का प्रचार कर रहे है।
निवेदन है सभी एडमिन से जहाँ तक सम्भव हो ओशो, ब्रह्मा कुमारी लोगो को न जोड़े।
कृपया ध्यान दे।
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मैं सत्य निरंजन जी को धन्यवाद करता हूँ। जिनके वाद विवाद के कारण मेरे लेख बन गए।
अब इस लेख में दिए बिंदु यदि कोई जबाब देना चाहे तो व्यक्तिगत दे सकता है । यदि उचित होगा तो मैं ग्रुप में पोस्ट कर दूंगा। वैसे मेरी विवेचना सप्रमाण है। कोई तर्क न दे पाएगा।
किंतु स्वागत है।
यार फिर वही। मित्र कहां तक दुनिया का मुंह बंद करोगे। कोई भी अपना अपराध स्वीकार नही करता। क्या फायदा है व्यर्थ पानी मे लठ्ठ मारना।
तुम सनकी रामपाल के शिष्य देख चुके हो।
http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_24.html
मैं पुनः निवेदन करता हूँ। बकवास न की जाए किसी के गुरु पर व्यर्थ वाद विवाद न किया जाए।
जब तक कोर्ट फैसला न दे सब निर्दोष होते है।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :
https://freedhyan.blogspot.com/
इस ब्लाग पर प्रकाशित मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद सर, बहुत ही सुंदर लेख-- साम-दाम-दण्ड-भेद का अर्थ
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आर्टिकल।
ReplyDeletehttps://aadiyogi.org.in/
बहुत-बहुत धन्यवाद आप अन्य लेख भी पढ़े और अपनी टिप्पणी अवश्य दें।
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