साधक का भोजन और भोग
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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इसके आगे मैं यह जोडना चाहता हूं। सँस्कृत के विद्वान बताये। क्या शंकराचार्य के आत्म षट्कम में यह जोड़ा जा सकता है।
न यञो न अग्निर्न काष्ठ समिधा,
नच सूर्य तेजो ना दीप्त न देवा।
नच क्षुधा ना जलं पिपाषा
चिदानन्द रूप: शिवोहं शिवोहम।
*1. सुबह उठ कर कैसा पानी पीना चाहिए*?
उत्तर - हल्का गर्म
*2. पानी पीने का क्या तरीका होता है*?
उत्तर - सिप सिप करके व नीचे बैठ कर
*3. खाना कितनी बार चबाना चाहिए*?
उत्तर. - 32 बार
*4. पेट भर कर खाना कब खाना चाहिए*?
उत्तर. - सुबह
*5. सुबह का नाश्ता कब तक खा लेना चाहिए*?
उत्तर. - सूरज निकलने के ढाई घण्टे तक
*6. सुबह खाने के साथ क्या पीना चाहिए*?
उत्तर. - जूस
*7. दोपहर को खाने के साथ क्या पीना चाहिए*?
उत्तर. - लस्सी / छाछ
*8. रात को खाने के साथ क्या पीना चाहिए*?
उत्तर. - दूध
*9. खट्टे फल किस समय नही खाने चाहिए*?
उत्तर. - रात को
*10. आईसक्रीम कब खानी चाहिए*?
उत्तर. - कभी नही
*11. फ्रिज़ से निकाली हुई चीज कितनी देर बाद*
*खानी चाहिए*?
उत्तर. - 1 घण्टे बाद
*12. क्या कोल्ड ड्रिंक पीना चाहिए*?
उत्तर. - नहीं
*13. बना हुआ खाना कितनी देर बाद तक खा*
*लेना चाहिए*?
उत्तर. - 40 मिनट
*14. रात को कितना खाना खाना चाहिए*?
उत्तर. - न के बराबर
*15. रात का खाना किस समय कर लेना चाहिए*?
उत्तर. - सूरज छिपने से पहले
*16. पानी खाना खाने से कितने समय पहले*
*पी सकते हैं*?
उत्तर. - 48 मिनट
*17. क्या रात को लस्सी पी सकते हैं*?
उत्तर. - नहीं
*18. सुबह नाश्ते के बाद क्या करना चाहिए*?
उत्तर. - काम
*19. दोपहर को खाना खाने के बाद क्या करना*
*चाहिए*?
उत्तर. - आराम
*20. रात को खाना खाने के बाद क्या करना*
*चाहिए*?
उत्तर. - 500 कदम चलना चाहिए
*21. खाना खाने के बाद हमेशा क्या करना चाहिए*?
उत्तर. - वज्रासन
*22. खाना खाने के बाद वज्रासन कितनी देर*
*करना चाहिए.*?
उत्तर. - 5 -10 मिनट
*23. सुबह उठ कर आखों मे क्या डालना चाहिए*?
उत्तर. - ठंडा पानी।
*24. रात को किस समय तक सो जाना चाहिए*?
उत्तर. - 9 - 10 बजे तक
*25. तीन जहर के नाम बताओ*?
उत्तर.- चीनी , मैदा , सफेद नमक
*26. दोपहर को सब्जी मे क्या डाल कर खाना*
*चाहिए*?
उत्तर. - अजवायन
*27. क्या रात को सलाद खानी चाहिए*?
उत्तर. - नहीं
*28. खाना हमेशा कैसे खाना चाहिए*?
उत्तर. - नीचे बैठकर व खूब चबाकर
*29. चाय कब पीनी चाहिए*?
उत्तर. - कभी नहीं
*30. दूध मे क्या डाल कर पीना चाहिए*?
उत्तर. - हल्दी
*31. दूध में हल्दी डालकर क्यों पीनी चाहिए*?
उत्तर. - कैंसर ना हो इसलिए
*32. कौन सी चिकित्सा पद्धति ठीक है*?
उत्तर. - आयुर्वेद
*33. सोने के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए*?
उत्तर. - अक्टूबर से मार्च (सर्दियों में)
*34. ताम्बे के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए*?
उत्तर. - जून से सितम्बर(वर्षा ऋतु)
*35. मिट्टी के घड़े का पानी कब पीना चाहिए*?
उत्तर. - मार्च से जून (गर्मियों में)
*36. सुबह का पानी कितना पीना चाहिए*?
उत्तर. - कम से कम 2 - 3 गिलास।
*37. सुबह कब उठना चाहिए*?
उत्तर. - सूरज निकलने से डेढ़ घण्टा पहले।
*38.इस मैसेज को कितने ग्रुप में भेजना चाहिए ।*
उत्तर . सभी ग्रुपो में!
*39.क्या पुण्य के कार्य में देर* *करनी चाहिए।*
उत्तर. नहीं।
यदि आप किसी तालाब के किनारे बैठे हों । वहीँ आसपास कोई बगुला मछलियों को पकड़ कर खा रहा हो ।
अगर भूखे बगुले को उड़ाया तो पाप लगेगा उससे उसका भोजन छिनने का ।
यदि उसे भोजन करने दिया तो आपकी आँखों के सामने किसी की जान जा रही है और आप देख रहे हैं ये पाप लगेगा ।
अगर आप वहाँ से पलायन किये तो भी कर्तव्य विमुख होने का पाप लगेगा ।
ऐसी परिस्तिथि में आपका क्या कर्तव्य बनेगा ?
स्वम् की सूझ बूझ से ज्ञानीजन उत्तर देवें ।
मेरा उत्तर
देखो बगुला घास तो खाता नही। यदि वह श्रम कर अपना भोजन खा रहा है तो प्रकृति का विधान है। आपको कोई हक नही मछली को बचाकर बगुले को भूखा रखे। यह कर्म वह नियमानुसार कर रहा है।
जहाँ पर अपने मूल स्वभाव को बदल कर हिंसा हो वह पाप है। जैसे
मनुष्य के पंजे नाखून मांसभक्षी नही। अतः मांस भक्षण पाप है परंतु सिंह को प्रकृति ने दूसरे को मार कर ही खाने का आदेश दिया है तो सिंह हिंसा नही अपना कर्म कर रहा है।
स्वभाविक नही प्रकृतिक स्वभाविक
अपने आंखों के सामने हो रही मछलियों की रक्षा करनी चाहिए
पर पृकृति के विपरीत जाकर क्या हम बगुले को भूखा तो नही मार देंगे।
किसी का भोजन छीनना क्या उचित है।
चलो एक विषय मिला हिंसा अहिंसा और रक्षा। अब इस पर लेख लिखा जाएगा।
नही हमे हिंसा समझनी होगी।
प्रतीक्षा करो लेख की। अब और लोग। सूक्ष्म रूप में अनाज भी जीव है तो क्या हम भूखे रहे।
जैसे बचपन में मुझे काली चींटी अच्छी लगती थी क्योकि वह काटती नही थी। लाल चींटी बहुत जोर से काटती थी। अतः मक्खी को मारकर काली चींटी के बिलों में सींक से घुसेड़ा करता था। मतलब चींटी को भी आलसी बनाता था।
याद आता है झींगुर भी मारता था। उनकी लंबी मूछ पकड़कर खेला करता था।
बचपन मे अनजाने में बहुत हत्याएं की। कॉकरोच को भी चप्पल से मारने का फैशन था।
है प्रभु। यह शैतान टिल्लू। अब इतना बड़ा हो गया।
अंतिम प्रभु मिलन यणि मोक्ष हेतु सत्व गुण भी सबसे बड़ी रुकावट है। पर इसमें यह अच्छाई है कि यह समय आने पर स्वयम विलीन हो जाता है।
पर फिर हिंसा शब्द क्यो बना। यह चिंतन का विषय है।
लगभग सभी इसी तल पर जीते है। अतः हिंसा अहिंसा का बहुत महत्व है।
कई विद्वानों और संतों का ऐसा मत है कि विष्णु के 24 अवतारों में मानव शरीर की रचना का रहस्य छुपा है। शास्त्रों ने मानव शरीर की रचना 24 तत्वों से जुड़ी बताई है। ये 24 तत्व ही 24 अवतारों के प्रतीक हैं।
क्या हैं ये 24 तत्व: माना जाता है कि सृष्टि का निर्माण 24 तत्वों से मिलकर हुआ है इनमें पांच ज्ञानेद्रियां(आंख,नाक, कान,जीभ,त्वचा) पांच कर्मेन्द्रियां(गुदा,लिंग,हाथ,पैर,वचन) तीन अंहकार(सत, रज, तम) पांच तन्मात्राएं (शब्द,रूप,स्पर्श,रस,गन्ध)पांच तत्व(धरती, आकाश,वायु, जल,तेज) और एक मन शमिल है इन्हीं चौबीस तत्वों से मिलकर ही पूरी सृष्टि और मनुष्य का निर्माण हुआ है।
आप ने मुझे मान सरोवर का पवित्र जल दिया। मैं उनका आभारी रहूंगा।
यह सब माँ काली की और गुरू महाराज की कृपा है कि कितनो की दया इस ग्रुप को मिल रही है।
माँ का आशीष रहेगा तो महावतार बाबा के भी दर्शन हो जायेगे।
मैं समझता हूँ कि इस जल को प्रतिदिन एक बूंद प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। शिव के जल को शिव को क्या भेंट करना।
मैं तो प्रसाद रूप में स्वयम ही पीना पसन्द करूंगा।
जय शिव शंकर।
जय भोले नाथ।
सही बताऊं हवन की राख। कपूर का अवशेष ईश का चढ़ावा तो मैं स्वयम प्रसाद रूप में खा लेता हूँ।
उसको क्या दूँ जो सबको देता है। जो दाता है वह ही देता है। मैं तो भिखारी।
अपने मन को इंद्रियों के माध्यम से व्यक्त करना है कर्म। इसमें हमारी बुद्धि भी सम्मिलित होती है।
अपने चित्त में संचित संस्कारो को क्रिया के माध्यम बिना बुद्धि का उपयोग किये स्वतः होने देना क्रिया।
कर्म हमारे चित्त में संस्कार संचित करता है।
क्रिया हमारे चित्त के संस्कार नष्ट करती है।
ध्यान देनेवाली बात है यदि क्रिया में बुद्धि या मन को लगाया तो यह कर्म बन जाती है।
अतः कर्म में लिपप्ता।
क्रिया में नही।
कर्म हमे गिरा सकते है।
क्रिया हमे उठाने का प्रयास करती है।
कर्म सुप्त मनुष्य का कार्य है।
क्रिया जागृत मनुष्य को ही होती है।
तुम महानात्मा दूसरो को भरम में डालोगे। खुद भरम ने नही आओगे।
एक बात समझो यदि क्रिया के प्रति झुकाव हुआ या मन मे यह भावना आई कि यह क्रिया हो तो वह कर्म बन जाती है। मतलब क्रिया द्वारा संस्कार नष्ट होने की जगह वह क्रिया का अकर्म फिर कर्म बन संस्कार संचित कर देता है।
मेरे एक मित्र है ग्रुप सदस्य है उनका आसान ऊपर उठ जाता था। वह डर कर मेरे पास आये अब ठीक है। उनकी शक्तिपात दीक्षा करवा दी अब मस्त है।
देख जाए तो यह एक सिद्धि है। अब मान लो यह साधन में हुई। पर तुमको अच्छा लगा तुमने फिर यह करने की इच्छा की तो फिर यह हो गया। अब होता क्या है इसी प्रकार अन्य सिद्धियां होती है जो संस्कार पैदा कर देती है और सिद्धिप्राप्त मनुष्य मुक्त नही हो पाता है क्योकि सिद्धि रूपी संस्कार गहरे रूप में संचित हो जाते है।
अतः मुक्ति हेतु उनको कोई योग्य शिष्य ढूढना पड़ता है जिसको सारी सिद्धि विद्या प्रदान के अपने संस्कार को नष्ट कर तब उनको मुक्ति मिले।
अतः मैं कहता हूँ मार्ग में सिद्धि इत्यादि स्वर्ण के टुकड़े है। अब बोझ तो बोझ चाहे पत्थर हो या हीरा। रास्ते मे चलने में रुकावट तो डालेगा ही।
अतः अपने संस्कारो को नष्ट होने दो स्वतः। उसमें दखल मत करो। स्वतः सिद्धियां आ सकती है आने दो कुछ अनुभव देकर चली जायेगी। जाने दो। उनके पीछे भागने से पतन होने की संभावना अधिक है उन्नति होने की कम।
जय महाकाली गुरूदेव। जय महाकाल।
पहली बात जो आपसे बोला था। क्या आप कर रही है।
दूसरे अपने गुरूमंत्र को जाप कर कर्म करते समय निवेदन करे कि अभी मत होओ। कुछ बार बोले तो यह बन्द हो जाएगी।
यही होता निष्काम कर्म। और यही पातञ्जलि के द्वेतीय सूत्र को समझाता है। कि वह कर्म जब निष्काम होगा तो वह कर्म होते हुए भी करता को संस्कार न देगा तो वह वृत्ति को नही बनेगा।
मतलब। चित्त में वृत्ति का निरोध। यानि वृत्ति नही आई।
अपने मन को इंद्रियों के माध्यम से व्यक्त करना है कर्म। इसमें हमारी बुद्धि भी सम्मिलित होती है।
अपने चित्त में संचित संस्कारो को क्रिया के माध्यम बिना बुद्धि का उपयोग किये स्वतः होने देना क्रिया।
कर्म हमारे चित्त में संस्कार संचित करता है।
क्रिया हमारे चित्त के संस्कार नष्ट करती है।
ध्यान देनेवाली बात है यदि क्रिया में बुद्धि या मन को लगाया तो यह कर्म बन जाती है।
अतः कर्म में लिपप्ता।
क्रिया में नही।
कर्म हमे गिरा सकते है।
क्रिया हमे उठाने का प्रयास करती है।
कर्म सुप्त मनुष्य का कार्य है।
क्रिया जागृत मनुष्य को ही होती है।
जय महाकाली गुरूदेव। जय महाकाल।
यही होता निष्काम कर्म। और यही पातञ्जलि के द्वेतीय सूत्र को समझाता है। कि वह कर्म जब निष्काम होगा तो वह कर्म होते हुए भी करता को संस्कार न देगा तो वह वृत्ति को नही बनेगा।
मतलब। चित्त में वृत्ति का निरोध। यानि वृत्ति नही आई।
क्योकि मनुष्य की बुद्धि मन के नीचे चली जाती है अतः राह कठिन प्रतीत होती है।
यही बात है कि मनुष्य आलस्य और निष्काम कर्म में भेद नही कर पाता।
सभी इंद्रियां खुली है और कुछ करने का मन नही वह आलस्य।
जब हमारी इंद्रियां बन्द हो जाये। मन मे तरंग न हो तब यदि कुछ न करने की इच्छा वैराग्य माना जा सकता है।
अज्ञानी के लिए फल ही कर्म हेतु प्रेरित करता है।
ज्ञानी सिर्फ प्रभु आदेश और प्रकृति का नियम समझ कर बिना फल की सोंचे पूरे उत्साह से कर्म करता है।
भगवान श्री कृष्ण ने इसी लिए योग की पहिचान दी है। कर्मेशु कौशलम। मतलब जो अपने निर्धारित कर्म को बिना फल की सोचे पूरे उत्साह से करे। वो योगी के लक्षण है।
सर कलियुग है सोंच सही हो ही नही सकती। पर मन्त्रो में वह शक्ति है कि रावण को राम बना दे। कंस को कृष्ण बना दे।
अतः जो इष्ट देव अच्छा लगे। मन्त्र नाम अच्छा लगे जुट जाओ।
हा पहले mmstm कर लो। यह बेहद सहायक होता है।
क्या आपने mmstm किया।
वृत्तियों का दमन बेहद कठिन कार्य होता है। इसको गुरू प्रददत साधन और बाकी समय मन्त्र जप से किया जा सकता है। प्रणायाम भी इसमें सहायक होता है। और कोई मार्ग नही।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
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