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Friday, August 9, 2019

आध्यात्म की बत्तख और कैलाश चर्चा

 आध्यात्म की बत्तख और कैलाश चर्चा

 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi

आध्यात्म में मनुष्य को जिस भांति  तालाब में कुछ भी करती नही दिखती पर उसके पैर चलते रहते है और वह आगे बढ़ती रहती है, कुछ इसी भांति जगत में मूर्ख बनकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

कल प्रातः मित्र अंशुमन द्विवेदी की पत्नी और पुत्र की दीक्षा है। अपने ग्रुप के शांत साधक वरुण की भी शक्तिपात दीक्षा है।

आप सभी को शुभकामनाये और बधाई।

आपको मार्ग मिला। मुझे मिली प्रसन्नता। मेरा काम पूरा।

साधन करे आगे बढ़े।

जय महाकाली। जय गुरुदेव।

मित्र कट पेस्ट से बचे।

बधाई हो। तुमको तो कृष्ण दर्शन की भी अनुभूति है mmstm द्वारा। दीक्षा भी ली है।

ग्रुप के माननीय विद्वानों से एक कुछ अपने अनुभवों के बारे में पूछना चाहता हूँ।

मुझे हर 4,5 महीने बाद मौसम बदलते समय सूखी खांसी से आरम्भ होकर गीली खांसी हो जाती है। टेस्ट सब फेल होते है। कोई दवा काम नही करती तीनो पेथी बेकार ही सिद्ध होती है फिर एक निश्चित समय के बाद खांसी खुद ठीक हो जाती है।

एक बार मुझे लगा कि मैं प्रणायाम नही कर पाता हूँ। अतः खाँसी के माध्यम से मुझे तीव्र भस्तिका हो जाती है जो शरीर शुध्द करती है। क्या यह सत्य हो सकता है या मैं गलत हूँ।

2 मुझे लगता है अपना इलाज करवाना अपने कर्म फल को भोगने में एक रुकावट होती है। क्या यह सत्य है।

3 शरीर अंदर से गर्म महसूस होता है। सहस्त्रसार पर दबाब बना रहता है। कनपटी भरी रहती है। मैं प्रायः नशे की हालत में रहता हूँ।

4 अकसर भूल जाता हूँ क्या करना है। बस राम नाम ही अच्छा लगता है।

5 कोई फिक्र नही होती किसी भी काम को करने की।

6 ध्यान के बाद सर हल्का हो जाता है। फिर भारी और नशा आ जाता है।

7 सर अक्सर किसी बुढ्ढे की तरह थोड़ा थोड़ा हिलता भी है। जिसे रोकना पड़ता है।

8 कानो में श्लोक भजन आरती इत्यादि संगीत के साथ गूंजते है। खैर यह तो शब्द योग है।

पर बाकी सब।

किसी से बात करने का बोलने का मन नही होता।

इन पर विचार व्यक्त करे। ग्रुप में कई ज्ञानीजन है। मार्ग दर्शन करें।

बहुत की थी कभी जवानी में। सुबह  समय नही मिलता है।

हलवा मना है।

कोई दवा कारगर नही होती।

नवरात्रि में माता रानी को जो अखंड ज्योति जलाते हैं उसकी राख को सिंदूर में लगाकर अपने गले पर लगाएं इससे फायदा होगा

आयुर्वेदिक

सितोपलादि चूर्ण

पातंजली कफ सीरिप

काली मिर्च मुलैठी पीपर इत्यादि जैसी दवाएं तमाम तरह से।

काढ़ा।

अगर यह ना हो तो चुना बाहर से अपने गले पर लेप कर दें

होमोयो

काली मयूर

फेरम फास इत्यादि तमाम

अजवाइन लहसुन इत्यादि के गर्म सरसो के तेल की मालिश

अंत मे सब छोड़ दिया।

खुद ठीक होती है। खुद होती है।

तब तो आप माता रानी से ही पूछिए क्या बात है

यह तो कर्म फल है। गलतियों का फल। बड़ा नही छोटा सा।

मुझे कोई तकलीफ नही पर पत्नी को होती है।

मधुमेह ठीक करने का कोई बीजमंत्र था उससे बहुत लाभ होता है

है पर कौन करे। व्यर्थ है। इससे अच्छा राम नाम ले।

इस नश्वर शरीर हेतु कुछ समय बर्बाद नही

ठीक है सर वैसे मेरी चाय की पत्ती में अर्जुन छाल, तुलसी, पुदीना, पिपली, लौंग, इलायची, काली मिर्च और तज का पाउडर मिला रहता है। अब यह अलग से बना लेता हूँ।

धन्यवाद।

जी धन्यवाद। शायद मैं धीरे धीरे सांख्य योग की ओर अग्रसर हो रहा हूँ। हालाँकि यह सन्यासी के लिए होता है। पर मुझे कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है।

जय महाकाली। जय गुरुदेव।


अचरज…कैलाश पर्वत की तलहटी में एक दिन होता है ‘एक माह’ के बराबर!


कैलाश की दिव्यता खोजियों को ऐसे आकर्षित करती रही है, जैसे खगोलविद आकाशगंगाओं की दमकती आभा को देखकर सम्मोहित हो जाते हैं। शताब्दियों से मौन खड़ा कैलाश संसार के पर्वतारोहियों और खोजियों को चुनौती दे रहा है लेकिन ‘महादेव के घर’ को देखना तो दूर, कोई उसकी तलहटी में जाकर खड़ा भी नहीं हो पाता। दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर झंडा लहरा चुका मानव कैलाश पर्वत पर आरोहण क्यों नहीं कर सका? अनुभव बताते हैं कि कैलाश की तलहटी में पहुँचते ही आयु बहुत तेज़ी से बढ़ने लगती है।


कैलाश पर्वत की सुंदरता, वहां सर्वत्र व्याप्त अदृश्य आध्यात्मिक तरंगों ने संसार में सबसे अधिक रूसियों को प्रभावित किया है। साल के बारह महीने रुसी खोजियों के कैम्प कैलाश पर्वत क्षेत्र में लगे रहते हैं। यहाँ की प्रचंड आध्यात्मिक अनुभूतियों के रहस्य का पता लगाने के लिए वे जान का जोखिम तक उठा लेते हैं।


इन लोगों के अनुभव बता रहे हैं कि कैलाश पर्वत की तलहटी में ‘एजिंग’ बहुत तेज़ी से होने लगती है। भयानक अनुभवों से गुजरकर आए उन लोगों ने बताया कि वहां बिताया एक दिन ‘एक माह ‘ के बराबर होता है। हाथ-पैर के नाख़ून और बाल अत्यधिक तेज़ी से बढ़ जाते हैं। सुबह क्लीन शेव रहे व्यक्ति की रात तक अच्छी-खासी दाढ़ी निकल आती है।


शुरूआती दौर में चीन ने दुनिया के धुरंधर क्लाइम्बर्स को कैलाश पर्वत आरोहण की अनुमति दी थी लेकिन सैकड़ों प्रयास असफल रहे। बाद में चीन ने यहाँ आरोहण की अनुमति देना बंद कर दिया। ऐसे ही एक बार चार पर्वतारोहियों ने कैलाश के ठीक नीचे स्थित ‘जलाधारी’ तक पहुँचने की योजना बनाई। इनमे एक ब्रिटिश, एक अमेरिकन और दो रुसी थे। बेस कैम्प से चारों कैलाश की ओर निकले।


बताते हैं वे कुशल पर्वतारोही थे और काफी आगे तक गए। एक सप्ताह तक उनका कुछ पता नहीं चला। जब वे लौटे तो उनका हुलिया बदल चुका था। आँखें अंदर की ओर धंस गई थी। दाढ़ी और बाल बढ़ गए थे। उनके अंदर काफी कमजोरी आ गई थी। ऐसा लग रहा था कि वे आठ दिन में ही कई साल आगे जा चुके हैं। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। दिग्भ्रमित अवस्था में उन चारों ने कुछ दिन बाद ही दम तोड़ दिया।


उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में कई बार कैलाश पर्वत पर फतह के प्रयास किये गए। जिन लोगों ने अपने विवेक से काम लिया और आगे जाने का इरादा छोड़ दिया, वे तो बच गए लेकिन दुःसाहसी लोग या तो पागल हो गए या जान गवां बैठे। कैलाश की परिक्रमा मार्ग पर एक ऐसा ख़ास पॉइंट है, जहाँ पर आध्यात्मिक शक्तियां चेतावनी देती है।


मौसम बदलता है या ठण्ड अत्याधिक बढ़ जाती है। व्यक्ति को बैचेनी होने लगती है। अंदर से कोई कहता है, यहाँ से चले जाओ। जिन लोगों ने चेतावनी को अनसुना किया, उनके साथ बुरे अनुभव हुए। कुछ लोग रास्ता भटककर जान गंवा बैठे। सन 1928 में एक बौद्ध भिक्षु मिलारेपा कैलाश पर जाने में सफल रहे थे। मिलारेपा ही मानव इतिहास के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हे वहां जाने की आज्ञा मिली थी।


रुसी वैज्ञानिक डॉ अर्नस्ट मूलदाशेव ने कैलाश पर्वत पर काफी शोध किये हैं। वे कई बार चीन से विशेष अनुमति लेकर वहां गए हैं। कैलाश की चोटी को वे आठ सौ मीटर ऊँचा ‘हाउस ऑफ़ हैप्पी स्टोन’ कहते हैं। उन्होंने अनुभव किया कि कैलाश के 53 किमी परिक्रमा पथ पर रहने से ‘एजिंग’ की गति बढ़ने लगती है। दाढ़ी, नाख़ून और बाल तेज़ी से बढ़ते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कैलाश पर्वत की तलहटी के संपर्क में आते ही एक दिन में ही आयु एक माह बढ़ जाती है। इस हिसाब से वहां एक माह रहने में ही जीवन के लगभग ढाई साल ख़त्म हो जाएंगे।


सन 2004 के सितंबर में इसी तथ्य का पता लगाने के लिए मॉस्को से रशियन एकेडमी ऑफ़ नेचुरल साइंसेज के यूरी जाकारोव ने अपने बेटे पॉल के साथ कैलाश पर्वत जाने की योजना बनाई। वे गैरकानूनी ढंग से तलहटी के करीब पहुंचे और कैम्प लगा लिया। उन्हें अभी एक दिन ही हुआ था कि एक रात ऐसा अनुभव हुआ कि अगली सुबह उन्होंने वापस आने का फैसला कर लिया।


रात लगभग तीन बजे बेटे पॉल ने झकझोर कर यूरी को जगाया और बाहर देखने के लिए कहा। यूरी ने बार देखा तो अवाक रह गया। कैलाश के शिखर पर रोशनियां फूट रही थीं। प्रकाश के रंगबिरंगे गोले एक एक कर आते जाते और बुलबुलों की तरह फूटते जाते। कुछ पल बाद उसी स्थान पर अनगिनत ‘स्वस्तिक’ बनते दिखाई दिए। यूरी और उसके बेटे की आँखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे। वे एक अदृश्य शक्ति को अनुभव कर रहे थे। उनके भीतर एक अनिर्वचनीय आनंद फूट रहा था। यूरी समझ गए कि वे ‘परमसत्ता’ के घर के सामने खड़े हैं और इस काबिल नहीं कि वहां कदम रख सके।


आखिर ऐसी कौनसी ऊर्जा है जो कैलाश के पास जाते ही तेज़ी से उम्र घटाने लगती है। कदाचित ये महादेव का सुरक्षा कवच है जो बाहरी लोगों को उनके घर से दूर रखने का उपाय हो। वैज्ञानिकों, खोजकर्ताओं और पर्वतारोहियों ने इसका साक्षात अनुभव किया है।


कैलाश पर्वत के पास ही ऐसा क्यों होता है, इसका ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है। वहां मिलने वाले आनंद का अनुभव बताना भी किसी के बस में नहीं है। कुछ तो ऐसे भी हैं कि उस अबोले, विलक्षण आनंद के लिए उम्र दांव पर लगाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। ‘फॉस्ट एजिंग’ की मिस्ट्री कभी नहीं सुलझ सकेगी,

कैलाश पर्वत सत आत्माओ का देव स्थान है। इसकी रक्षा गनेश करते है। श्रद्धा भाव से जाने वाला तलहटी तक पहुँच सकता हैं। बाकी को आंतरिक धक्के मारकर या किसी भी तरह दूर रखा जाता हैं। इसके ऊपर जाने के लिए स्वारोहिणी से मार्ग जाता है। जहाँ केवल शुद्ध सात्विक शिवस्वरूप ही जा सकते है। 


कैलाश पर्वत, यह एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग शिव का निवास स्थान मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है।

किन्तु वहीँ नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है। नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

उन सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि, यहाँ पर कई पवित्र शक्तियां जरुर काम कर रही हैं। तो आइये आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े हुए कुछ रहस्य बताते हैं।

*कैलाश पर्वत के रहस्य...*
*रहस्य : 1* रूस के वैज्ञानिको का मानना है कि, कैलाश आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहाँ पर चारों दिशाएँ मिल रही हैं। वहीँ रूसी विज्ञान का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है। धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली है।

*रहस्य : 2* दावा किया जाता है कि आज तक कोई भी व्यक्ति कैलाश के शिखर पर नहीं पहुच पाया है। वहीँ 11 सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपी के यहाँ जाने का दावा किया जाता है। किन्तु इस योगी के पास सबूत नहीं थे या फिर वह खुद सबूत पेश नहीं करना चाहता था। इसलिए यह भी एक रहस्य है कि इन्होनें यहाँ कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे।

*रहस्य : 3* कैलाश पर दो झीलें हैं और यह दोनों रहस्य बनी हुई हैं। आज तक इनका हस्य कोई खोज नहीं पाया है। एक झील साफ़ और पवित्र जल की है। इसका आकार सूर्य के समान बताया गया है। वहीँ दूसरी झील अपवित्र और गंदे जल की है तो इसका आकार चन्द्रमा के समान है। ऐसा कैसे हुआ यह कोई नहीं जानता है।

*रहस्य : 4* यहाँ के आध्यात्मिक और शास्त्रों के अनुसार रहस्य की बात करें तो कैलाश पर्वत पे कोई भी व्यक्ति शरीर के साथ उच्चतम शिखर पर नहीं पहुच सकता है। ऐसा बताया गया है कि, यहाँ पर देवताओं का आज भी निवास हैं। पवित्र संतों की आत्माओं को ही यहाँ निवास करने का अधिकार दिया गया है।

*रहस्य : 5* कैलाश पर्वत का एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि जब कैलाश पर बर्फ पिघलती है तो यहाँ से डमरू जैसी आवाज आती है। इसे कई लोगों ने सुना है। लेकिन इस रहस्य को आज तक कोई हल नहीं कर पाया है।

*रहस्य : 6* कई बार कैलाश पर्वत पर सात तरह के प्रकाश आसमान में देखें गयें है। इसपर नासा का ऐसा मानना है कि यहाँ चुम्बकीय बल है और आसमान से मिलकर वह कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण करता है।

*रहस्य : 7* कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्म का केंद्र माना गया है। यहाँ कई साधू और संत अपने देवों से टेलीपेथी से संपर्क करते हैं। असल में यह आध्यात्मिक संपर्क होता है।

*रहस्य 8 :* कैलाश पर्वत का सबसे बड़ा रहस्य खुद विज्ञान ने साबित किया है कि यहाँ पर प्रकाश और ध्वनी के बीच इस तरह का  समागम होता है कि यहाँ से ॐ की आवाजें सुनाई देती हैं।

इसके विपरीत दुष्ट आत्माओं का स्थान बरमूडा  त्रिकोण है। शायद अंदर से दोनो के बीच कोई कनेसशन हो।

आगे पता नही पर लगता है पर्वत अंदर से खोखला है जहां हल्की स्वर्णिम प्रकाश रहती है। अंदर कुछ कक्ष है जहां विभिन्न कैटेगरी के साधक मुनि ध्यात्म मग्न रहते है। धरती की क्रियाओं को यहीं से संचालित करते है। अपने को अज्ञात रखने हेतु इन शक्तियों ने निर्जन जगह को चीन के कब्जे में दिया। क्योकि चीन किसी को नही मानता। इस कारण उनको डिस्टर्बेंस कम होती है।

और कुछ बताये। श्रीमान। मैंने एक बार कोशिश कर ध्यान में देखने का प्रयास किया पर सफल न हुआ। आप ध्यान द्वारा भी अंदर नही जा सकते आसानी से।

भाई जहाँ न पहुचे विज्ञान वहाँ पहुचे ध्यान।

बहुत जगह नही। कैलाश से हार गया। हिन्दुओ के कई चमत्कारी मन्दिर चुनौती है।

जहाँ शेष है वहाँ भी पहुँच जायेगा

फिर भी आध्यात्म अशेष रह जायेगा।

समय के साथ विज्ञान आगे बढ रहा है

खोज करनें में वक्त लगता हा

मानव पीछे हो रहा है। गुणों का ह्वास हो रहा है।

कहीं राजनीतिक करणों से  विज्ञान पीछे है

मानव आगे बढ रहा है

यही मैं कहता हूँ। वैज्ञानिक सबसे बड़े चीटर। उस यन्त्र पर यकीन करते है जिसे मानव ने बनाया पर मानव पर नही।

आध्यात्म भी विज्ञान है

किसी प्रयोग में कई साल प्रतीक्षा कर लेंगे पर mmstm के लिए जिसमे शक्ति का अनुभव उसके लिए 6 महीने भी न देंगे। मन्त्र जप के लिए कुछ घण्टे भी न देगे।

आद्यात्म आंतरिक और सूक्षम विज्ञान है।

*श्री गणेश चतुर्थी* पर गणपति जी की *पारंपरिक* मूर्ति ही खरीदें, जिसमे गणेश जी के मूल स्वरुप की प्रतिकृति हो, ऋद्धि-सिद्धि विद्यमान हो।


सेल्फ़ी लेते हुए,

स्कूटर चलाते हुए,

ऑटो चलाते हुए,

बॉडी बिल्डर सिक्स पैक,

या अन्य किसी प्रकार के *अभद्र* स्वरुप में गणेश जी को बिठाने का कोई औचित्य नहीं है। उल्टा आपको पाप ही लगता है भगवान के अपमान का।


इस प्रकार की मुर्तियों को एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा बनाकर सनातन धर्म की हँसी उड़ाई जा रही है। और हम फैशन के चक्कर में *मुर्खता* कर बैठते हैं तथा अपने ही देवता के अपमान के *अपराधी* भी बनते हैं।


सभी से पुनः निवेदन है समझदारी का परिचव देवें, और *सही* (शास्त्रसम्मत) विग्रह की प्रतिमा की स्थापना करे।

यहा पर बडे ही सिद्ध साधक हैं और विपुल जी कि अनुयायी मे नये आयाम बना रहे हैं।।राहुल छोटे भाई जम्मू से हैं और माँ भगवती की दया हैं।।

शक्ति पात तथा गुरु के चमत्कार यह दो दिनों से पुनः देख रहा हूँ।।समय वयर्थ मे बरबाद न करें।।जो घटे वो आज ही घट जावे।।यहाँ वहाँ न भटक रे मनवा गुरु शरण जियु लिनहा सब सँताप तुरतहिं हर लिनहा।।चार पहर गुरु के डेरे ,प्रभु लिये चहुतरफ से धेरे।।जय गुरु देव

मित्रो आजकल धड़ल्ले से अपने नाम के आगे स्वामी लगाकर या पीछे कुछ परम्परा का नाम लगाकर या सँस्कृत विद्यालय का नाम लिखकर नकली लोग हिन्दुओ को बरगलाकर  राजनीतिक फायदा उठाना चाहते है।

आप उनको चेक कर सकते है।

जैसे स्वामी आनन्द समर्पण यह नकली ठोगी है। क्योंकि यह हर बात में गाली गलौज करता है। इसके प्रोफ़ाइल में असली नाम भी नही। यानी यह नकली।

जैसे स्वामी सर्वेश्वरचार्य यह भी नकली।

क्यो

1 स्वामी नाम पट्ट सनातन परंपरा के अनुसार सिर्फ सन्यासी को दिया जाता है। सन्यास दीक्षा भी परम्परा के किसी गुरु के द्वारा प्रदत्त की जाती है। अतः उस परम्परा या गुरु का नाम प्रोफ़ाइल में न हो तो आप पूछ लें।

2 नाम के पीछे सरस्वती, तीर्थ, गिरी, नाथ इत्यादि परम्पराओं को इंगित करती है।

अतः भोले हिन्दुओ सावधान रहो। इन नक्कालों को बेनकाब करो।

जय हिंद। जय सनातन।

सरजी जो योगी लगाते हैं या 108,1008 लगाते हैं वे क्या हैं?

यह सम्मान प्रदर्षित करने का तरीका है। यानी 108 बार या 1008 बार श्री लगाओ।

श्री श्री श्री ........ 108 बार।

जैसे। सुनकर हंसी आती है। और लोग प्रसन्न होते है।

अनन्त कोटि ब्रह्मांड नायक महाअधिपति ज्ञानाचार्य 1008 श्री श्री ........ महाराज।

प्रभु जी, आनंदम अनुभूयते, सच में आप महान हो, कमाल हो, आपको साष्टांग प्रणाम।


पानीपत का तीसरा युद्ध और "NOTA"

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अहेमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया. कोई उसे रोकने का साहस न कर सका. तब महाराष्ट्र से मराठा पेशवा ने उसको टक्कर देने की कोशिश की. अब्दाली को रोकने के लिए मराठा सेना पानीपत पहुच गई. मराठों ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों से आव्हान किया कि - वे अब्दाली को रोकने में उनका साथ दे,


लेकिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों NOTA दबा दिया. बोले यह हमारी लड़ाई थोड़े ही है यह तो अफगानों और मराठों की लड़ाई है. स्थानीय हिन्दू NOTA दबा कर पीछे हट गए लेकिन स्थानीय मुसलमानों ने अहेमद शाह अब्दाली का साथ दिया. पानीपत के इस युद्ध में मराठा हार गए और अब्दाली जीत गया.


लेकिन उस जीत के बाद "अहेमद शाह अब्दाली" ने महाराष्ट्र में नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भयानक कत्लेआम किया. कुरुक्षेत्र, पेहोवा, दिल्ली, मथुरा, वृन्दावन आदि के मंदिर तोड़े. यहीं की औरतों के साथ बलात्कार किया और अपने साथ गुलाम बनाकर ले गया. महाराष्ट्र का वो कुछ नुकशान नहीं कर सका.


अब्दाली के पास 60,000 की सेना थी और पेशवा के पास पास लगभग 50,000. पेशवा को उम्मीद थी कि - राजपूत, जाट, सिक्ख एवं स्थानीय हिन्दू उनका साथ देंगे लेकिन इन सब ने यह सोंच कर लड़ाई से किनारा कर लिया कि- अगर मराठे जीत गए तो उत्तर भारत में मराठों का बर्चस्व हो जाएगा. मराठों को साथ मिलना तो दूर भोजन तक नहीं मिला.


इसके विपरीत अब्दाली द्वारा जेहाद का नारा देते ही अवध का नवाव सुजा उद दौला, बरेली का रोहिल्ला सरदार एवं स्थानीय छोटी छोटी मुस्लिम रियासते और जागीरदार अब्दाली के साथ मिल गये. अब्दाली की साठ हजार की सेना सवा लाख हो गई. और 50,000 मराठा सैनिक खाली पेट युद्ध लड़ रहे थे. परिणाम आपको पता ही है.


पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह सम्मिलित इस्लामिक सेना और मराठाओं के बीच लड़ा गया. अवध के नवाब ने इसे इस्लामिक सेना का नाम दिया और बाकी मुसल्मानों को भी इस्लाम के नाम पर इकट्ठा किया. जबकि मराठा सेना ने अन्य हिन्दू राजाओं से सहायता की उम्मीद की थी, लेकिन उत्तर भारत के हिन्दू तटस्थ (NOTA) रहे.


पानीपत की वह लड़ाई 14 जनवरी 1761 मकरसंक्रांति के बेहद सर्द दिन लड़ी गई थी. महाराष्ट्र / गुजरात / मध्य प्रदेश के रहने वाले मराठा उस ठण्ड के आदी नहीं थे और न ही उनके पास गर्म कपडे थे. स्थानीय लोगों ने मराठा सैनिको को भोजन और गर्म कपडे तक नहीं दिए. वो यह सोंचते थे कि - अबदाली से हमारी कोई दुश्मनी थोड़े ही है.


जबकि पानीपत का युद्ध जीतने के बाद अब्दाली और स्थानीय मुसलमानों ने मराठों से ज्यादा स्थानीय हिन्दुओं और सिक्खों को नुकशान पहुंचाया था. याद रखिये जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते है वो मिट्टी में मिल जाते हैं. धर्मयुद्ध में कोई तटस्थ नहीं रह सकता, जो धर्म के साथ नहीं वह धर्म के बिरुद्ध माना ही जाएगा. copied.

प्रिय शर्मा जी आपने श्रीमद्भगवदगीता को और कृष्ण को न समझा है। साथ ही आपने काफी कुछ वह समझा जो गलत तरह से आपको समझाया गया। मित्र गीता में जो कृष्ण का शरीर है वह तो इंसान का ही है जो पैदा हुआ और मर गया। पर उनका ज्ञान अमर है।

कृष्ण का वास्तविक स्वरूप निराकार निर्गुण ही है। और इसे अद्वैत के द्वारा ही अनुभवित किया जा सकता है।

मित्र पुस्तके लिखनेवाला या कवि एक स्तर पर लिखता है। जिसको समझने के लिए उस स्तर पर जाना पड़ता है।

सुवर्ण को ढूढ़त फिरे कवि व्यभिचारी चोर।

यानी

सुवर्ण सुंदर शब्द को कवि

सुवर्ण सुंदर स्त्री को व्यभिचारी

सुवर्ण यानी सोना को चोर।

ढूढते है।

शब्द एक अर्थ अनेक।

जाकी रही भावना जैसी। प्रभु देखी तीन मूरत वैसी।


मित्र जहाँ तक मेरा अनुभव था और जो मुझे कृष्ण ने स्वयम दिखाया और समझाया।वह मैंने ब्लाग पर ब्रह्मांड की उत्तपत्ति लेख में लिखा है जो यहाँ लिखना सम्भव नही।

ब्रह्म का वास्तविक स्वरूप निराकर निर्गुण निर्विकल्प है। उसका अंतिम रूप एक सुप्त ऊर्जा है। जिसे निराकार कृष्ण अल्लह या गाड या जो भी कहो सब नाम है। जो जागृत होने पर सृष्टि का निर्माण करती है। जिसके कई रूप है। इसी को महामाया कहते है। जिसने उस सुप्त ऊर्जा को सक्रिय कर निराकार दुर्गा का निर्माण किया।

मानव असीमित शक्तियों से युक्त आधा ब्रह्म रूप धरकर जन्म लेता है। अपने कर्मो से वह अधिक या न्यून हो जाता है।

यही मानव अपनी संकल्प शक्ति और मन्त्रो के माध्यम से सभी शक्तियों को अपने अनुसार साकार रूप में भी प्रकट कर सकता है।

जिसमे कुछ साकार रूप जो सिद्ध हो चुके है। कुछ विद्याएं देव रूप धर चुके है।

आप तो बहुत बाद के युग मे है।

जैसे गायत्री विद्या निराकर थी पर मनुष्य ने मन्त्र रच कर उसे साकार कर दिया।

हर विद्या अपने को जीवित रखने का प्रयास करती है। जैसे यज्ञ विद्या की स्थापना हेतु दयानन्द आये। लुप्त गायत्री की स्थापना हेतु तपोनिष्ठ महापुरुष परम् पूजनीय श्री राम शर्मा आचार्य आये।

लुप्त होती शक्तिपात विद्या हेतु 200 साल पहले स्वामी विद्याधर तीर्थ जी आये। कुण्डलनी हेतु कबीर आये।

बस ऐसे ही सनातन जो मौलिक और वास्तविक ज्ञान चलता रहता है।

आज सनातन के प्रचार हेतु खुद पंचदेव मानवों को चुन रहे है।

नाम प्रकाश की ओर

लेखक महृषि कृष्णानन्द

आप अमर महृषि के शिषय थे जिन्होंने पुस्तक लिखी है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/blog-post.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2018/05/blog-post.html?m=0

कृपया अपनी मौत देखे।

कलियुग के परम आत्मा, अस करनी पे जेल।

राम पाल कुकर्म करै, नही मिलेगी बेल।।


गर होते परम् आत्मा, तोड़े जेल दिखाय।

मद पाये बौरात है, सत्ता से टकराय।।

यह दोहे कबीर अवतार दास विपुल ने लिखे है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/blog-post.html?m=0

सर आपने शक्तिपात दीक्षा के बारे में ब्लाग पर नहीं लिखा

ठीक है। लिख दूँगा।

लो अनिल लिख दिया।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_5.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_86.html?m=0


मित्रों मैं आपको लिंक देता हूं आप स्वयं धर्म ग्रंथों को पढे और मुझे समझायें कि मैं सही हूं कि गलत।

कुरान का लिंक :

http://ummat-e-nabi.com/holy-quran-in-hindi/


बाइबिल का लिंक :

https://www.wordproject.org/bibles/in/


श्रीमदभगवद्गीता (कृष्ण)

https://www.hindisahityadarpan.in/2016/11/bhagwat-geeta-in-hindi.html


जैन :

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%A8_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE


बौद्ध:

http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE


बुद्ध को एक सभा में भाषण करना था । जब समय हो गया तो बुद्ध आए और बिना कुछ बोले ही वहाँ से चल गए । तकरीबन एक सौ पचास के करीब श्रोता थे । दूसरे दिन तकरीबन सौ लोग थे पर फिर उन्होंने ऐसा ही किया बिना बोले चले गए ।इस बार पचास कम हो गए ।


तीसरा दिन हुआ साठ के करीब लोग थे महामानव बुद्ध आए, इधर – उधर देखा और बिना कुछ कहे वापिस चले गए । चौथा दिन हुआ तो कुछ लोग और कम हो गए तब भी नहीं बोले । जब पांचवां दिन हुआ तो देखा सिर्फ़ चौदह लोग थे । महामानव बुद्ध उस दिन बोले और चौदोहों लोग उनके साथ हो गए ।


किसी ने महामानव बुद्ध को पूछा आपने चार दिन कुछ नहीं बोला । इसका क्या कारण था । तब बुद्ध ने कहा मुझे भीड़ नहीं काम करने वाले चाहिए थे । यहाँ वो ही टिक सकेगा जिसमें धैर्य हो । जिसमें धैर्य था वो रह गए।


केवल भीड़ ज्यादा होने से कोई धर्म नहीं फैलता है । समझने वाले चाहिए, तमाशा देखने वाले रोज इधर – उधर ताक-झाक करते है । समझने वाला धीरज रखता है । कई लोगों को दुनिया का तमाशा अच्छा लगता है । समझने वाला शायद एक हजार में एक ही हो ऐसा ही देखा जाता

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कुछ कहते हैं सत्य को पाना है

ये सत्य क्या है जिसको पाना चाहते हैं सत्य को उपलब्ध होना मतलब? ? ? ?


आत्म ज्ञानी होना

सत्य को पाना

ज्ञान प्राप्त होना

बुध्दत्व को उपलब्ध होना

मोक्ष मिल जाना

परमपद मिलना

क्या ये सब एक ही हैं या अलग अलग? ?

क्या सबकी सीमा अलग है ?

क्या मोक्ष के आगे भी कुछ है?

सत्य वह जो समय के साथ परिवर्तित न हो। असत्य वो जो परिवर्तित हो जाये। यह शरीर असत्य पर आत्मा सत्य।

अब अपनी आत्मा को पहचानना शब्दो मे नही अनुभूति कर जिसे आत्म साक्षात्कार कहते है।

अब आत्मा ही परमात्मा है। यानि योग की अनुभूति। वेदानन्त महावाक्य है आत्मा में परमात्मा की सायुज्यता का अनुभव ही योग है।

यह योग हमे परमसत्ता का अंश है आत्मा यह अनुभूति देता है।

जब अहम्ब्रह्मास्मि की अनुभूति होती है तो हमे अद्वैत का अनुभव होता है।

कुल मिलाकर यह अनुभव कर लेना कि मैं उस परमसत्ता का अंश हूँ। उससे अलग नही। यह शरीर यह आत्मा अलग है। सुख दुख शरीर भोग रहा है मैं नही।

मैं उस परमसत्ता के अनुसार ही चल रहा हूँ। वो ही सब करता है। मैं कुछ नही। यह अनुभूतिया हमे ज्ञान देती है। यही ज्ञान योग है। यही ज्ञान है।

दूसरे ईश का अंतिम स्वरूप निराकार ही है। वह निर्गुण ही है। यह अनुभव करना। साकार तो सिर्फ आनन्द हेतु जीवन मे रस हेतु आवश्यक है। मतलब दोनो क्या है यह समझ लेना। अनुभव के लेना ही अंतिम ज्ञान है। सिद्धियां तो बाई प्रॉडक्ट है और भटकाने के लिए होती है। यह हीरे जेवरात हमे भटकाने के लिए होते है। हमे यदि स्वतः हो जाये तो इन सिद्धियों का अनुभव ले कर इनको भूल जाना चाहियें। इसमें फंसना यानी गिरना। मुक्ति में बाधा।

यह ज्ञान प्राप्त करनेवाला मोक्ष का अधिकारी हो जाता है।

अगर व्यवहार में न ला पायें

अनुभव में नहीं ला पायें

तो कितने भी शास्त्र पढो

चाहे सभी वेद और गीता  रट डालो  . सब व्यर्थ

अगर व्यवहार में लाने के लिए पढो तो गीता का केवल निष्काम कर्म ही काफी है ।

वेद का केवल यही एक वाक्य काफी है . . ईश्वर एक है वह सर्वशक्तिमान है

शास्त्रों के कुछ चुनिंदा शब्द ही काफी है जैसे भक्ति समर्पण आदि

मंत्रों में ॐ ही काफी है

प्राणायाम में कुंभक ही पर्याप्त है


योग में आत्मा में परमात्मा के अंश होने का अनुभव बहुत है

 व्यवहार में लाने की बात हो तो बहुत कम पढना ही पर्याप्त है

आज सुबह ही तो बताया था विपुल सर

मेरे गुरु तुलय विपुल जी को प्रणाम, इन्हीं की वजह से मैंने दीक्षा प्राप्त की तथा इनके बताएं रास्ते पर चलकर आगे जाना आसान हुआ। गायत्री मंत्र की बजाए गुरु का दिया मंत्र ज्यादा करना जरूरी है। इसी से आगे बढ़ सकते है।  विपुल जी को दिल से कोटि कोटि नमन।

विपुल सर बहुत गहरे हैं उन्हें समझने के लिए गहरे में जाना होगा

मित्र मैं साकार में क्या देखता हूँ। मूर्ति में क्या सोंचता हूँ। यह आप जान चुके है। आप धन्य है। मैं अभी तक नही जान पाया वो आप जानते है। आप महान है।

प्रभु मैं अज्ञानी मूर्ति में ही खुश। क्या करूँ अज्ञानता का सागर है मुझमे।

निराकार में क्या क्या किया या जाना यह भी आप जानते होंगे।

पर मैं साकार सगुण में ही आनन्द लेता हूँ। मुझे किंतने भी निराकार के अनुभव हो। मैं पुनः साकार में ही रहना चाहता हूँ। हा अंतिम समय मे निराकार धारण कर लूंगा। मुक्ति हेतु।

पर मैं यही जानता हूँ जो साकार से निराकार की यात्रा करता है उसी को पूर्ण व्यान मिल पाता है।

साधक भाइयों ,बहनों! मेरे द्वारा विपुल जी के खिलाफ की गई टिप्पणियों से निश्चित रूप से मैंने आपको ठेस पहुंचाई है। आप सब से मैं इसके लिए क्षमा मांगता हूं क्षमा प्रार्थी ।

हे प्रभु मुझे इतनी भी ऊँचाई न दे। मुझे मेरा साया भी दिखाई न दे।

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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