यह छप्पन इंची सीना है। काव्य
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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यह छप्पन इंची सीना है।
दुश्मन को छूटे पसीना है॥
छोटा मोटा हीरा नहीं है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
जो बोला वह कर के दिया।
देश की खातिर वो है जिया॥
सर्वस्य अपना देश को देकर।
देशप्रेम हेतु जीना है॥
यह छप्पन इंची सीना है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
राष्ट्र द्रोही की खैर नहीं अब।
देश विरोधी हार गये सब॥
एक वैरागी एक संन्यासी।
गरल देश का पीना है॥
यह छप्पन इंची सीना है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
कितने नेता आये गये।
देश को लूटा खाये गये॥
बने गुलाम विदेशी के।
तलवे धोकर पीना है॥
यह छप्पन इंची सीना है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
परिवारों को पूजा किये।
देश को लंगड़ा लूला किये।
कुत्तों को सब मार भगाया।
मोदी का यह पसीना है॥
यह छप्पन इंची सीना है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
कलम विपुल की बोली है।
यह जयकारा डोली है॥
जुग जुग जियो मोदी राजा।
बरसों तुमको जीना है॥
यह छप्पन इंची सीना है।
यह बेशकीमती नगीना है॥
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