इष्ट कैसे जानें? और चर्चा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
ग्रुप सदस्य पंकज ने पूछा कि मैं अपने मन को स्थिर नही कर पता कुछ दिन महीने में भटक जाता है consistency नही आ पाती सांसारिक आकर्षण के अधीन हो जाता विचलित हो जाता अटक जाता है। मेरा इष्ट क्या है कैसे जानूं। कृपा मेरा मार्गदर्शन करें सर। मैं अपने diagnose बताना चाहता हूं जिससे आप समझ सके आंकलन के बाद कि सही सही मुझे क्या करना चाहिये।
मुझे हमेशा भ्रम रहता है कि अपने निर्णय पर सही गलत का फैसला करना मुश्किल होता है कभी लगता है ये पंत सही है कभी लगता है वो सही है कभी लगता है वो गुरु सही है कभी लगता है वो सही है जितनी जोर से साधना भक्ति का जोश चढ़ता है उतनी ही जोरो से उतर भी जाता है फिर आलस्य और निराशा रह जाती है लगता है कुछ नही कर सकता जीवन मे आलस्य मेरा शत्रु बनता जा रहा है। कभी सोचता है ये मंत्र कर या कोई और करू बस इनी सब कारणों से अटका रहता हूं। जाप शिव जी का करता हूं और भक्ति श्री कृष्ण की तरफ चली जाती है
मेरी सलाह है कि ये सब गलत है। आप सिर्फ एक मन्त्र पकड़े। उसका ही सिर्फ उसका ही सघन निरन्तर सतत मन्त्र जप करे। यानि बेस मंत्र एक बनायें।
रहीम का एक दोहा याद रखें।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
‘रहिमन’ मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥
अर्थ: एक ही काम को हाथ में लेकर उसे पूरा कर लो। सब में अगर हाथ डाला, तो एक भी काम बनने का नहीं। पेड़ की जड़ को यदि तुमने सींच लिया, तो उसके फूलों और फलों को पूर्णतया प्राप्त कर लोगे।
अत: पहले एक मंत्र को साधे। बाकी सब कुछ मिल जायेगा।
मन्त्र का चुनाव ऐसे करे।
1 जो आपका इष्ट हो।
2 जो आपको प्रिय हो
3 संकट में जो याद आता हो।
4 जीवन मे कभी जिसने सहायता की हो
5 जिसका जप अधिक किया हो।
6 नही तो mmstm करे। और पूछे संकल्प के साथ मेरा इष्ट कौन है। जो देव का मन विचार चित्र ध्यान में आये। उसका जाप करे।
फिर उसी से mmstm करे। और वह मन्त्र आपका इष्ट हो गया।
प्राय: जन्म जन्मांतर से हम जिनको भजते हैं। वहीं हमारे इष्ट होते हैं। अत: गुरू दीक्षा इष्ट मंत्र से ही लेनी चाहिये।
सभी देवी –देवताओं की पूजा –उपासना करने के बाद भी अक्सर इंसान का मन भटकता ही रहता है।
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हर इंसान का मन किसी एक देवी या देवता की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होता है और वही देवी या देवता आपके इष्ट देव हो सकते हैं। अगर आपकी कोई कुल देवी या देवता हैं तो वो भी आपके इष्ट हो सकते हैं। प्राय: जन्म जन्मांतर से हम जिनको भजते हैं। वहीं हमारे इष्ट होते हैं। अत: गुरू दीक्षा इष्ट मंत्र से ही लेनी चाहिये।
इष्ट देव कौन हैं?
- धार्मिक मान्यताओं में हर व्यक्ति के एक इष्ट देव या देवी होते हैं।
- इनकी उपासना करके ही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर सकता है।
- इष्ट देव या देवी का निर्धारण लोग कुंडली के आधार पर करते हैं।
- वास्तव में ग्रहों और ज्योतिष का ईष्टदेव से सम्बन्ध नहीं होता है।
- ईष्टदेव या देवी का निर्धारण आपके जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है।
- बिना किसी कारण के ईश्वर के जिस स्वरुप की तरफ आपका आकर्षण हो, वही आपके ईष्ट देव हैं।
- ग्रह कभी भी ईश्वर का निर्धारण नहीं कर सकते।
- ग्रहों की समस्या को दूर करने के लिए विशेष देवी देवताओं की उपासना की जा सकती है।
धार्मिक परंपराओं में ईश्वरीय शक्ति की उपासना अलग-अलग रूपों में की जाती है। अलग-अलग शक्तियों के रूप में उनकी पूजा की जाती है। अगर आपकी कुंडली में ग्रहों से जुड़ी कोई समस्या है तो आइए जानते हैं कि कौन से ग्रह के लिए कौन से देव की उपासना सबसे उत्तम होगी:
ग्रहों की समस्या के लिए क्या करें?
- सूर्य के लिए सूर्य की ही उपासना करें या गायत्री मंत्र की साधना करें। क्योंकि गायत्री सूर्य उपासना है।
- चन्द्रमा के लिए भगवान शिव की उपासना करना उत्तम होगा। क्यंकि शिव चंद्र धारण करते हैं।
- मंगल के लिए कुमार कार्तिकेय या हनुमान जी की उपासना करें। क्योंकि हनुमान सदा मंगलकारी होते हैं। आप किसी भी देव की पूजा करें हनुमान सहायक होते हैं।
- बुध के लिए मां दुर्गा या सरस्वती की उपासना करें। क्योकिं इसका वाहन सिंह है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना, विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। जो मां सरस्वती यानि दुर्गा रूप का क्षेत्र है।
- बृहस्पति के लिए श्रीहरि की उपासना करें। क्योंकि यह शरीर में पाचन तंत्र, मेदा और आयु की अवधि को निर्धारित करता है। इस शरीर का पाल्न पोषण विष्णु का काम है। यहां तक महिलाओं के जीवन में विवाह की सम्पूर्ण जिम्मेदारी बृहस्पति से ही तय होती है।
- शुक्र के लिए मां लक्ष्मी या मां गौरी की उपासना करें। क्यों कि ज्योतिष के अनुसार शुक्र रोमांस, कामुकता, कलात्मक प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है। यह सब लक्ष्मी से ही प्राप्त होता है।
- शनि के लिए श्रीकृष्ण या भगवान शिव की उपासना करें। क्योंकि शनि और इनकी मा6 छाया शिव भक्त हैं। शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है। श्रीकृष्ण तो सत्य के पक्ष में युद्ध तक करते हैं। जो काम शनि का भी है।
- राहु के लिए भैरव बाबा की उपासना करें। क्योंकि राहु क्रोधदेवताएं में से एक है। भैरव भी इसी के सत्य देव रूप है।
- केतु के लिए भगवान गणेश की उपासना करें। क्योंकि दोनों का धड़ काटा गया। श्री गणेश सत्य दिशा में है।
विशेष समस्याओं के लिए किसकी उपासना करें ?
- मानसिक समस्याओं के लिए शिवजी की उपासना करें
- शारीरिक दर्द और चोट -चपेट की समस्या के लिए हनुमान जी की उपासना करें
- शीघ्र विवाह के लिए पुरुष मां दुर्गा उपासना करें
- शीघ्र विवाह के लिए स्त्रियां भगवान शिव की उपासना करें
- बाधाओं के नाश के लिए भगवान गणेश की पूजा करें
- धन के लिए मां लक्ष्मी की उपासना करें
- मुक्ति मोक्ष या आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए श्रीकृष्ण या महादेव की उपासना करें
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हर व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं..अगर समय रहते उन्हें पहचान लिया जाए तो ग्रहों के हर दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है. तो आप भी अपने इष्ट देव को पहचानें और उनकी उपासना करें. फिर सुखी जीवन के लिए किसी दूसरे उपाय की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
मित्र। यदि जब तक हम निंदा सुनना नही सीख पाते। अपमान नही सह सकते तब तक हम आधायतम में उन्नति नही कर सकते।
मुझे तो यह लगता है कि प्रशंसा तो मेरी नही प्रभु की हो रही है। तो गाली और अपमान भी उन्ही का। मैं कौन वह निबटे। अतः लोगो की निंदा को बुराई को सहना सीखो।
क्रोध को प्रेम से। घृणा को स्नेह से।
पाप को पुण्य से।अंधेरे को प्रकाश से।
लूले को हाथ से। अकेले को साथ से।
सूखे को सींच के। बैरी को भींच के।
जीतना चाहिए। जीतना चाहीए।
वैसे आपसे अनुरोध है कि पहले ब्लाग पर जाकर कुछ लेख पढ़ ले। जिससे आपके प्रश्न और जिज्ञासाएं शांत हो जाएगी।
साथ ही यदि आप अदीक्षित है तो mmstm यानी सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि अपने घर पर करे। ताकि आपको ईश शक्ति का अनुभव हो सके।
आपको जो आध्यात्मिक प्रश्न पूछने हो। कृपया पोस्ट कर दे। उचित समय मिलने पर उत्तर मिल जायेंगे। मेरे कार्यालय में मोबाइल की अनुमति नही है। अतः सोम से शुक्र सुबह 7 से शाम 7 तक नो मोबाइल।
गुरूवर मैं संसार में रहते हुए भी संसार में नहीं रहना चाहता कृपया मार्गदर्शन करें।
आप क्या करते थे। क्या करते है।
यह मन मे क्यो आता है।
मित्र मैं खोजी हूँ। वैज्ञानिक हूँ। आप मेरा नाम ले सकते है मैं गुरु नहीं। वैसे आप क्या सन्यासी हैं।
आपने किस गुरु से कौन सी दीक्षा ली है।
कहा किस से ली।
ऐसा करे। आप पूरा विवरण आराम से लिख दे। मैं जवाब दे दूंगा। मेरी रात्रि पूजा का समय हो गया है।
क्या आपको क्रिया हुआ। जो अनुभव हुए हो बताये।
कृपया फिर लिख दे। अनुभव और क्रिया।
देखिये गुरू शरीर नही। शक्ति होती है तत्व हित है। आप ध्यान में उनसे गाइडेन्स ले सकते है। गुरू हर शिष्य को संभालते है
ध्यान में गुरू का आह्वाहन करे।
मित्र मैं तो शक्तिपात का हूँ। अपने गुरू महाराज ध्यान या स्वप्न में आ जाते है।
तो आप mmstm करे। गुरू के चित्र के साथ। अपने मन्त्र के साथ। गुरू आह्वाहन के साथ। वे स्वप्न में आ जायेंगे।
ओम नरायण ने पूछा कि गंगा स्नान को जाता था और शिव जी की पूजा करता था,अब पूजा करने को मन भी नही करता लेकिन ईश्वर पर आस्था उतनी ही है जितनी पहले थी
वो तो ठीक है लेकिन मैं आप का नाम नही ले सकता क्यों कि आप की और मेरी उम्र में काफी अंतर होगा मैने अपनी जिंदगी के कल ही 27 बसन्त पार किये।
इसका उत्तर मुझे खुद नही मिल रहा 2015 की जनवरी से ये बिचार रह रह कर आता है मन में,ऐसा मन को लगता है सब कुछ होते हुए मेरे पास किसी की कमी है पर वो क्या चीज़ है ये ढूंढ सका।
ये ढूंढ़ नहीं सका अभी तक,न किसी का बोलना अच्छा लगता है न किसी से बोलना अच्छा लगता है बस हमेशा के लिए मौन हो जाना चाहता हूं एक दम शांत किसी से कोई मतलब नही।
कभी कभी लगता है भोजन का त्याग कर दूं सिर्फ कूटू के आटे को एक टाइम लूं कभी विचार आता है घर छोंड़ दूँ.....पता नही ये सब मेरे साथ क्या हो रहा है दिल और दिमाग कुछ भी काम नही रहा....?
कुछ भी काम नहीं कर रहा
मेरा उत्तर है कि यह अच्छी स्थिति है। जगत से विमुखता हो रही है। अब आप अपना मन साकार भक्ति में लगाकर आनन्द ले। यदी आपके भाव सत्य है तो गुरु को बताकर ब्रह्मचर्य की दीक्षा ले सकते है।
अपने समय और अनुभव को सनातन की सेवा में लगाये। जगत कल्याण करे।
वैसे यह लक्षण डरिप्रेशन के भी होते है।
क्या आप कामेच्छा होती है।
क्रोध आता है। लालच आता है।
मैं ऐसे किसी गुरु को नही जानता कृपया आप मार्गदर्शन करें।
आप कहाँ रहते है।
आप परिवारिक दायित्व है क्या।
गुरू मेरे पास है।
अगर उस ओर ध्यान दो तो नहीं तो नही।
आप सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करे। इष्ट के मन्त्र के साथ। वह स्वयम प्रकट होकर आपको मार्ग बता सकते है। mmstm का लिंक है।
https://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html?m=0
बाकी जो आप सोंच सकते है। समझ सकते है सबके उत्तर ब्लाग में मिल जायेंगे। पर उसको भी पढ़े कौन। हमको तो अपनी वित्ती भर ज्ञान की बाते बतानी है।
आप की इच्छा हो तो ब्लाग पर पढ़कर लाभ लेते रहे।
जीने नही देते है चैन से ये दुनिया वाले।
मरने जाओ तो जीने की कसम दिलाते हैं। .......... विपुल लखनवी
सिर के मध्य भाग के पीछे अंदर से खुजली। शरीर पर अचानक खुजली होकर दाने प्रकट होना फिर स्वतः गायब होंना। पीठ कर त्वचा के नीचे कभी कभी खुजली का एहसास। क्या एक सब ऊर्जा उतपति के लक्षण है।
हो सकता है छोटे छोटे फुन्सीनुमा दाने सिर पर भी निकल कर खुद बिना दवा के ही सूख जाते है।
देखो गुरू कोई शरीर या देह नही। देह तो माध्यम होती है बस। असली माल मसाला तो गुरु तत्व है जो हमको मिल जाता है पर हम अनुभूति नही कर पाते। कारण स्वार्थ और कर्महीन होना।
न हम साधन करते न हम उनकी बातों पर चिंतन करते। न हम स्वाध्याय करते। हम बस चमत्कारों और उल जलूल बकवास में व्यस्त रहते है।
जैसे मेरे केस में। मेरी पहली गुरु माँ काली जिन्होंने ने शक्ति दी दीक्षा दी। मैं न सम्भल सका तो गुरु महाराज स्वप्न और धतान के माध्यम से अपने पास तक खींच लाये। शक्ति को और मेरे शरीर को संभाला। वह भी काली भक्त। यहाँ तक आऐडी गुरु जो मेरे पूर्व जन्म के भी गुरु थे वह भी काली भक्त।
लोग बाग गुरु शरीर को एक मूर्ति जी तरह पूज कर इतिश्री कर लेते है। जिसके कारण उनका उत्थान नही हो पाता है।
सही है। यह नाता जन्मो का है।
यह शरीर नष्ट हो जाता है। पर गुरु तत्व अनन्त तक रहता है।
सही है। कर सकते है।
शिष्य गुरू के पैर की जंजीर है। प्रायः गुरू इसी कारण मुक्त नही हो पाते वह गुरू लोक में तप करने लगते है।
यदि हमें मुक्त होना है तो गुरू के तत्व को समझकर उसकी ही शक्ति से उसे भी छोड़कर और आगे बढ़ना है।
वह कहलाता है मोक्ष या निर्वाण। यह तब होता है जब हम निराकार का अनुभव कर निराकार निर्गुण को प्राप्त कर लेते है। मतलब मोक्ष का मार्ग ज्ञान योग और अद्वैत का अनुभव।
लेकिन मजा केवल और केवल साकार सगुन और द्वैत में ही होता है।
देखो पहला। आत्मा में परमात्मा का अनुभव हुआ योग। जो भक्ति और कर्म योग का जनक।
दूसरा । मैं ही आत्म स्वरूप हूँ। परमात्मा हूँ। यह हुआ ज्ञान योग।
तीसरा। यह जो मेरी आत्मा है इसी में साकार और निराकार का वास।
इस अंतिम अवस्था मे आप अपनी मर्जी से साकार या निराकार की भक्ति या अनुभूति कर उस मे रम सकते है।
अनुभव को सोंचने से नही होता। क्योकि उत्सुकता ध्यान की गम्भीरता कम कर देती है।
देखो देहभान जब तक है। तब तक कुछ मिलना मुश्किल।
लीन हो मन्त्र जप में। अंत मे यह भी बन्द होकर नींद जैसी पर जागृत अवस्था मे ले जाता है।
सर जी आप दीक्षित भी है। फिर रकीं के उस्ताद।
वास्तव में रात्रि सोने के पहले साधन पर बैठ जाओ। फिर उसी में सो जाओ। यह ध्यान निद्रा का रूप ले लेगी। और स्वप्न भी नही आएंगे। यदी आएंगे तो अनुभव दे जायेगे।
यहाँ तक तमाम लोक। मन्त्र। दर्शन पता नही क्या क्या।
मैं भी इसी वक्त आरती करता हूँ।
रात में ही मजा आता है। वह भी 12 के बाद।
आप पहले ज्योत जलाए आरती करें। फिर बैठे।
उल्टा क्रम कर्म कर दे। यदि निश्चित जाप करते है तो माला ठीक वरना माला छोड़कर पश्यंती करे। तब ही आनन्द और उत्थान होगा। माला अनुष्ठानिक के लिए ठीक है पर ध्यान के लिए बन्धन।
यार इतने वरिष्ठ हो। उंगलियों पर कर लो। बन्धन तो बन्धन
ध्यान में तीव्रता हेतु कुछ नही। न माला न टीका न बिंदी न कुछ भी। सिर्फ और सिर्फ मैं और मेरा मन्त्र। फिर वह भी छूटा।
नही मोक्ष निर्वाण मतलब उस अनन्त सुप्त ऊर्जा में विलीन हो जाना। जिसे निराकार कृष्ण अल्लह या गाड कहते है। यह अंतिम है। पर वहाँ तक लोग पहुचते बहुत कम है। उसके पहले तमाम लोक होते है। पहले निराकार सुप्त ऊर्जा। फिर निराकार दुर्गा। फिर ब्रह्म। फिर विष्णु और रुद्र। फिर शिव और गुरु लोक। फिर तमाम साकार। फिर तेज लोक। गायत्री लोक। फिर अन्य देव लोक। फिर स्वर्ग और नर्क। फिर तीन प्रकार के शरीर। फिर धरा।
अब आपको mmstm की जरूरत नही। आप दीक्षित है। वह तो सिर्फ आपको अनुभव हेतु बताया था।
आप सीधे सीधे गुरु मन्त्र करे आरती के बाद। अब सारे नाटक बन्द। सिर्फ और सिर्फ गुरु शक्ति।
जैसी आपकी सामर्थ्य और प्रभु की इच्छा साथ ही गुरू का आशीष।
मोक्ष अपनी विरासत नही है कि हमारी इच्छा अनिच्छा से मिलेगी।
नही। फिर वापिस ही न आना।
तब अपनी सोंच प्रगाढ़ करो और साकार भक्ति में ही लगे रहो। अंत समय मे यदि शून्य मस्तिष्क हुए तो समझो निर्वाण पक्का। इसी लिए किसी साकार देव को या गुरू को याद करना तो वह लोक। बच्चों को याद करना तो भू लोक। लेकिन यदि ममता या मोह हुआ तो वही योनि। धन सोना तो सर्प। बच्चे मोह तो सुअर या कुत्ती। और कुछ सोंचा तो बस वोही रूप।
सोंच और अनुभव में अंतर है। मैं सोंच नही अनुभव से बात कर रहा हूँ।
अनुभव से बड़ा कुछ नही
योग के बाद ही यह सब अनुभव होते है। योग तो प्राथमिक द्वार है।
देखो जब आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव होता है। तब हमे दर्शनाभूति या ऐसा ही कुछ निराकार उपासक को कुछ और अनुभव के आगे पीछे अहम ब्रह्मास्मि की अनुभूति के साथ हमारे पांचवे तत्व यानी आकाश तत्व के द्वार खुल जाते है। जहाँ पर हम ध्यान के द्वारा आगे बढ़कर नए नए अनुभव और ज्ञान प्राप्त करते है। साथ ही आत्मगुरु जागकर मार्गदर्शन करता है। पर सावधान मन गुरु भी जाग कर भटकाने का प्रयास करता है।
यह सब क्षणिक होकर भी जीवन भर याद रहता है। फिर योग की अवधि धीरे धीरे बढ़कर हमे कृष्ण द्वारा वर्णित कर्म योग करवाता है। उसी के अनुसार लक्षण होने लगते है। सबसे अंत मे पातञ्जलि की वाणी यानी चित्त में वृत्ति का निरोध आ भी सकता है और नहीं भी। यह अंतिम कैवल्य अवस्था है।
इसी के बीच द्वैत से अद्वैत का अनुभव और एकोअहम दिवतीयोनास्ती हमे ज्ञान योग का अनुभव करा देता है। पर यह सब होने के बाद भी अधिकतर पातञ्जलि परिभाषित योग को नही प्राप्त हो पाते।
जी ऐसा नही बिल्कुल नही।
कर्तव्य विमुख होना जिम्मेदारियों से भागना कायरता है। आपको मोक्ष नही मिल सकता। जिम्मेदारी को आप कम ज्यादा नही कर सकते। बस उसको निभाते हुए लिप्त न हो। साक्षी और द्रष्टा भाव रहने का प्रयास कर सकते है।
इसका सबसे आसान उपाय है सघन सतत मन्त्र जप। कर्म करते हुए भी मन्त्र में लीन रहने से लिपपता कम हो जाती है।
यद्यपि यह भी संस्कार संचित करता है। पर यह सत्वगुणी है अतः अपने को खुद विलीन कर लेता है।
जब समय मिले गुरु प्रददत साधन संस्कारविहीन होने के लिए। बाकी समय जप।
सफलता
अधितर लोग सफलता का अर्थ भौतिक सुखों को किसने अधिक प्राप्त किया उस बात से लगाते है। जैसे पैसा शोहरत सन्तान इत्यादि।
कुछ लोग स्वस्थ्यमय जीवन से लगाते है।
सफलतापूर्वक मर गए अपने बच्चों का शादी ब्याह कर के । तो वे सफल हो गए।
पर मैं इसे पूर्ण सफलता नही मानता हूँ।
यो स फल: स सफल:. यानी जिसने उसको या वो फल प्राप्त किया वह सफल हुआ। स के कई अर्थ हो सकते है हर मनुष्य के लिए अलग अलग। ऊपर दो प्रकार के लोग बताये जो निम्न और मध्यम प्रवृति के हुए।
उत्तम प्रकृति पुरुष में इसके अर्थ अलग होते है। जिसने वह फल पाया। जिसको वह फल फलित हुआ। बाबा कौन सा फल। जिसने आत्म रुपी फल को प्राप्त किया वह उत्तम पुरुष। जिसने इस जीवन को वास्तव में सफल बनाया वह उत्तम पुरुष। अर्थात जिसने नश्वर पाया वह निम्न और जिसने नश्वर पाया और अनश्वर को जाना या प्रयास किया वह मध्यम पुरुष। जिसने अनश्वर को पाया। वह उत्तम पुरुष।
प्रायः उच्च मध्यम पुरुष आजकल गुरु बन जाते है। प्रवाचक बन जाते है। दुकान खोल कर प्रचार करते है पर फिर गिर जाते है। क्योंकि उनका पुण्य प्रताप नष्ट होने लगता है। वह चेलो की गिनती और आश्रमो की संख्या में पड़कर अपनी साधना से विमुख हो जाते है। मन भटक जाता है। धीरे धीरे आम मनुष्य की भांति उनकी बुद्धि मन के अधीन हो जाती है और वह फिर इसी जगत में फंस कर रह जाते है।
निम्न पुरुष अनश्वर की सोंचते ही नहीं। वे मानव योनि के भी नीचे गिरकर पतित होकर अधोमुखी होकर दुःख में लिप्त होकर कष्ट भोगते है।
उत्तम पुरुष किसी उच्च लोक में जाकर फिर वापस आ सकते है या निर्वाण यानि मोक्ष प्राप्त कर लेते है।
अब यह सब प्राप्त कैसे हो। कलियुग में अनश्वर को जानना और पाना बेहद आसान है। जिसके लिए भक्तियोग भक्तिमार्ग सर्वश्रेष्ठ। और इसके लिए सर्वप्रथम मन्त्र जप नाम जप। जो इष्ट अच्छा लगे। नही तो अपना ही नाम। जपो। अखण्ड सतत निरन्तर। जबरिया जपो। धीरे धीरे मन लगने लगेगा। और तुम्हारे अंदर भक्ति उदित होकर कल्याणकारी मार्ग पर ले जाएगी। अपने नाम जपने से समय लग सकता है पर फल मिलेगा। क्योकि मानसिक एकाग्रता तो बढ़ेगी। और अक्षर ही ब्रम्ह है। ब्रह्मांड की उतपति का कारण एक अक्षर ही है। जिसे ॐ कहते है।
अतः यदि मुक्ति चाहते हो तो आज से अभी से जुट जाओ। सतत निरन्तर अखण्ड जप में नाम स्मरण में।
कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।
मुझे मेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।
कभी छूट जायेगे ये सारे बन्धन।
मुझे मेरा अपना एक द्वारा मिलेगा।।
यह मैं लेखों में लिख चुका हूँ। आलसी लोग कभी लेख नही पढ़ते।
कवि : विपुल लखनवी, मुम्बई MOB : 09969680093
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