कम्बल चोर और बृक्ष त्रिवेणी
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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तर्क वो करे जो विषय का पूर्ण जानकार हो।
तर्क का विषय चाहे कुछ भी हो भाषा मर्यादित रहे।
जब तर्क चले कोई अन्य सदस्य बीच में रोक टोक न करे।
तर्क में यदि किसी धर्म, संप्रदाय, भाषा, व्यक्ति पर हो तो जानकार ही बोले।
किसी के गुरु को लेकर तर्क करने से बचे जब तक आवश्यक न हो
शब्द और पोस्ट ज्यादा न हो कम से कम शब्द और अनुकरणीय शब्दो का ही प्रयोग करे।
पुस्तक आधारित तर्क और अनुभव आधारित तर्क एक साथ न हो अर्थात या तो तर्क पुस्तक आधारित हो या अनुभव आधारित।
अनुभव आधारित तर्क ही अधिकतम मान्य होंगे,
तर्क का उद्देश्य विद्वत्ता साबित करना न हो अपितु कल्याण की भावना हो।
मित्र स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज। गूगल में डालो। मिल जाएगा।
मित्रो। कल मेरे एक ग्रुप सदस्य मित्र की पत्नी को विगत चार दिनों से साधना के समय कोई सुंदर सी वृद्ध स्त्री पास आकर बैठ जाती थी। मेरे कथनानुसार बात करने कल रात पर वह स्त्री देवी अष्टभुजा का रूप धारण कर काफी देर तक लीला करती रही। और भी कुछ हुआ। साक्षात प्रसाद का भी प्रदान हुआ।
निराकार वाले ज्ञानी अभी भी कहेंगे। ईश तो निराकार ही है।
उन ज्ञानियों को गीता का यदा यदाहि धर्मस्य श्लोक समझ लेना चाहिए जो साफ साफ कहता है। मैं अनिको शरीर धारण कर सन्तो की रक्षा करता हूँ।
जय माता दी। जय गुरुदेव।
भक्त की श्रद्धा mmstm में विश्वास ने आज एक और मील का खम्भा गाड़ दिया।
जय हो सत्य सनातन
जय हो सनातन शक्ति।
ग्रुप के अन्य सदस्य यदि चाहे तो अपनी अनुभूति शेयर कर सकते है ताकि अन्य को भी प्रेरणा मिले।
निवेदन है अब कुछ श्रीमद्भगवद्गीता पर भी व्याख्या प्रस्तुत करें।
एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था।
सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था।
सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।
उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो?
फकीर बोला कि आप आए थे - जीवन में पहली दफा,
यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया!
लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं।
तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया।
ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं,
सिसकियां निकल गईं,
क्योंकि घर में कुछ है नहीं।
तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता
दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।
अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।
चोर घबरा गए, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला नहीं था।
चोरी तो जिंदगी भर की थी,
मगर ऐसे आदमी से पहली बार मिलना हुआ था।
*भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां?*
*शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां?*
पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए।
मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! क्योंकि इस के पास कुछ और है भी नहीं,
कंबल लिया तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना।
लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। फिर तुम आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं।
तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।
चोर तो ऐसे घबरा गए और एकदम निकल कर झोपड़ी से बाहर हो गए।
जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो।
आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा।
कुछ ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।
फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा।
*कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, वही तो ईश्वर है।*
कुछ समय बाद वो चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला,
वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था।
वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था।
जज तत्क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है।
तो तुमने उस फकीर के यहां से भी चोरी की है?
फकीर को बुलाया गया। और जज ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है,
तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है।
उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।
फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा।
चोर तो घबरा रहे थे, काँप रहे थे
जब फकीर अदालत में आया।
और फकीर ने आकर जज से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं।
मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था।
और जब धन्यवाद दे दिया,
बात खत्म हो गई।
मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं,
ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।
जज ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।
चोर फकीर के पैरों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो।
वे संन्यस्त हुए।
और फकीर बाद में खूब हंसा।
और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।
इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थी।
झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया
उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे।
इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था,
गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे।
यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले ही आएगा तुमको
उस दिन चोर की तरह आए थे
आज शिष्य की तरह आए।
मुझे भरोसा था।
क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।
श्रीरामचरितमानस : उत्तर काण्ड
सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ । भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ ।।
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई । जिमि कपिलहि घालइ हरहाई ।।
अब असंतों दुष्टों का स्वभाव सुनो, कभी भूलकर भी उनकी संगति नहीं करनी चाहिए। उनका संग सदा दुःख देने वाला होता है। जैसे हरहाई (बुरी जाति की) गाय कपिला (सीधी और दुधार) गाय को अपने संग से नष्ट कर डालती है ।।
खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी । जरहिं सदा पर संपति देखी ।।
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई । हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई ।।
दुष्टों के हृदय में बहुत अधिक संताप रहता है। वे पराई संपत्ति (सुख) देखकर सदा जलते रहते हैं। वे जहाँ कहीं दूसरे की निंदा सुन पाते हैं, वहाँ ऐसे हर्षित होते हैं मानो रास्ते में पड़ी निधि (खजाना) पा ली हो ।।
काम क्रोध मद लोभ परायन । निर्दय कपटी कुटिल मलायन ।।
बयरु अकारन सब काहू सों । जो कर हित अनहित ताहू सों ।।
वे काम, क्रोध, मद और लोभ के परायण तथा निर्दयी, कपटी, कुटिल और पापों के घर होते हैं। वे बिना ही कारण सब किसी से वैर किया करते हैं। जो भलाई करता है उसके साथ बुराई भी करते हैं ।।
झूठइ लेना झूठइ देना । झूठइ भोजन झूठ चबेना ।।
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा । खाइ महा अहि हृदय कठोरा ।।
उनका झूठा ही लेना और झूठा ही देना होता है। झूठा ही भोजन होता है और झूठा ही चबेना होता है।
(अर्थात् वे लेने-देने के व्यवहार में झूठ का आश्रय लेकर दूसरों का हक मार लेते हैं अथवा झूठी डींग हाँका करते हैं कि हमने लाखों रुपए ले लिए, करोड़ों का दान कर दिया। इसी प्रकार खाते हैं चने की रोटी और कहते हैं कि आज खूब माल खाकर आए, अथवा चबेना चबाकर रह जाते हैं और कहते हैं हमें बढ़िया भोजन से परहेज है, इत्यादि।
मतलब यह कि वे सभी बातों में झूठ ही बोला करते हैं।) जैसे मोर साँपों को भी खा जाता है। वैसे ही वे भी ऊपर से मीठे वचन बोलते हैं। (परंतु हृदय के बड़े ही निर्दयी होते हैं) ।।
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद । ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ।।
वे दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही तो हैं ।।
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन । सिस्नोदर पर जमपुर त्रास न ।।
काहू की जौं सुनहिं बड़ाई । स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई ।।
लोभ ही उनका ओढ़ना और लोभ ही बिछौना होता है (अर्थात् लोभ ही से वे सदा घिरे हुए रहते हैं)। वे पशुओं के समान आहार और मैथुन के ही परायण होते हैं, उन्हें यमपुर का भय नहीं लगता। यदि किसी की बड़ाई सुन पाते हैं, तो वे ऐसी (दुःखभरी) साँस लेते हैं मानों उन्हें ज्वर आ गया हो ।।
जब काहू कै देखहिं बिपती । सुखी भए मानहुँ जग नृपती ।।
स्वारथ रत परिवार बिरोधी । लंपट काम लोभ अति क्रोधी ।।
और जब किसी की विपत्ति देखते हैं, तब ऐसे सुखी होते हैं मानो जगत्भर के राजा हो गए हों। वे स्वार्थपरायण, परिवारवालों के विरोधी, काम और लोभ के कारण लंपट और अत्यंत क्रोधी होते हैं ।।
मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं । आपु गए अरु घालहिं आनहिं ।।
करहिं मोह बस द्रोह परावा । संत संग हरि कथा न भावा ।।
वे माता, पिता, गुरु और ब्राह्मण किसी को नहीं मानते। आप तो नष्ट हुए ही रहते हैं, (साथ ही अपनी संगत से) दूसरों को भी नष्ट करते हैं। मोहवश दूसरों से द्रोह करते हैं। उन्हें न संतों का संग अच्छा लगता है, न भगवान् की कथा ही सुहाती है ।।
अवगुन सिंधु मंदमति कामी । बेद बिदूषक परधन स्वामी ।।
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा । दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा ।।
वे अवगुणों के समुद्र, मन्दबुद्धि, कामी, वेदों के निंदक और जबर्दस्ती पराए धन के स्वामी होते हैं। वे दूसरों से द्रोह तो करते ही हैं, परंतु ब्राह्मण द्रोह विशेषरूप से करते हैं। उनके हृदय में दम्भ और कपट भरा रहता है, परंतु वे ऊपर से सुंदर वेष धारण किए रहते हैं ।।
ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेताँ नाहिं। द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं ।।
ऐसे नीच और दुष्ट मनुष्य सत्ययुग और त्रेता में नहीं होते। द्वापर में थोड़े से होंगे और कलियुग में तो इनके झुंड के झुंड होंगे ।।
(यह प्रसंग है - भरतजी की जिज्ञासा पर भगवान का उपदेश)
देखो तुम जिस मार्ग पर हो। वहाँ दर्शनाभूति किसी भी देव की हो सकती है। पर अपना इष्ट केवल एक बनाओ। मतलब बाइक ग्राउंड देव।
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मित्र। नाम जप हमें तकलीफ सहने की क्षमता देता है। अतः यह मत सोंचो की प्रभु को याद किया तो सब अच्छा ही अच्छा।
दूसरे बात कि हम बासी भोजन करते है। मतलब पूर्व जन्म के संस्कार जो प्रारब्ध बन जाते है वो भी भोगते है।
आफिस में मुझे सबसे धीरे गति से उन्नति मिली। मेरे कनिष्ठ तक वरिष्ठ हो गए पर मुझे कोई शिकायत या मलाल नही।
क्योकि जीवन का माप दण्ड ये सब कुछ प्रतिशत ही मायने रखता है।
जब भीष्म पितामह शर शैय्या पर पड़े थे तो कृष्ण से पूछा। है मधुसूदन मेरा क्या पाप था जो मैं शर शैय्या पर पड़ा हूँ।
श्रीकृष्ण ने भीष्म को ध्यान के माध्यम से पूर्व जन्मों को देखने को कहा।
भीष्म 72 जन्म देखते गए कही कुछ न मिला। पर 73वे जन्म में उन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठ कर विश्राम करते समय एक छिपकली को यूंही बाण से छेद कर दिया था। छिपकली काफी देर तक तड़प कर मरी।
भीष्म को उस समय का दण्ड भोगना पड़ा क्योकि मात्र मनोरंजन हेतु एक निरीह प्राणी को मारा।
इसी प्रकार हम इस जीवन मे सुख और दुख दोनो भोगते है।
अतः आप निराश न हो। प्रभु के आगे ही रोये अपना दुख व्यक्त करे। जगत मात्र हंसेगा। कोई सहायता न करेगा।
वैसे आप पूजा में क्या करते है किसको जपते है।
आप विष्णु या कृष्ण के मन्त्र का जप करे।
बजरंग बाण दुख निवारण के संकल्प के साथ रोज पाठ करे।
21 दिन तक बजरंग बाण पढ़े। पर विष्णु या कृष्ण का मन्त्र आगे भी करते रहे।
बाकी हरि इच्छा।
देखिये। आप स्वतन्त्र है कि आप मेरी बात न माने।
उचित होगा। आप ब्लाग के कुछ अनुभवित लेख पढ़ ले ताकि कुछ जिज्ञासाएं शांत हो जाये।
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हर रोज की अलग दवा होती है। है समस्या हल का अलग देव।
इस दुनिया मे कुछ अज्ञानी अपूर्ण ज्ञानी कहते है राम सीता हनुमान इत्यादि सब गलत। सब काल्पनिक।
मित्रो पहली बात तो यह कि यही एकमात्र ज्ञानी पैदा हुए है जिनको सरस् ज्ञान है। क्षुद्र नदी भर चल इतराई। वाली बात जरा सा प्रणायाम ध्यान किया पहुँच गए सूर तुलसी के ऊपर मीरा के बाप हो गए हो सब गलत बोलने लगे।
दूसरा सवाल यह है कि तुम अपना कल्याण चाहते कि दुनिया मे बकवास बिखेरने के लिए आये हो। इस जगत में बकवास कर क्या प्राप्त करना चाहते हो क्या दिखाना चाहते हो।
बड़े बड़े मर कर नष्ट होकर विलीन हो गए कुछ कर नही पाए तुम लोगो की आस्था के साथ खिलवाड़ करोगे।
तीसरे तुम्ही एक विद्द्वान पैदा हुए हो बाकी सब मूर्ख। अरे मूर्ख क्यो बकवास में समय नष्ट कर रहे हो। समय को नष्ट करोगे समय तुमको नष्ट कर देगा।
चौथी सबसे बड़ी बात। भले ही यह सब काल्पनिक हो पर इन नामो ने कितनो तारा था तार रहे है और तारते रहेगे।
क्या फर्क पड़ता है कथा सत्य थी या झूठी। सत्य यह है राम कृष्ण हनुमान सदा तारणहार रहे है।
आज भी हनुमान जीवित देव है जो हर व्यक्ति की जो प्रभु प्राप्ति मार्ग पर चलता है उसकी सहायता करते है।
अब प्रश्न यह है कि तुम अपना उद्द्वार करोगे या चांद पर थूकोगे। यदि चांद पर थूकोगए तो वह तुम्हारे ही मुंह पर गिरेगा। यह निश्चित है।अतः बकवास बन्द करो। मत फैलाओ। चुपचाप अपने कल्याण के मार्ग पर चलते रहो।
जय महाकाली गुरूदेव। जय महाकाल।
किसी अन्य ग्रुप में जहाँ मैं सदस्य नही हूँ। वहाँ हनुमान जी का अपमान हो रहा है।
यह गधे जरा सा पढ़ गए। जरा से अनुभव से बौरा गए है| मीन मेख निकालने लगे।
नही। यह जगत है। अल्पज्ञ ज्ञानियों की कमी नही।
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देखो वाम मार्गी साधना भी सनातन साधना है पर यह मुक्ति नही दे पाती है। ये सिद्ध जल्दी होगी। सिद्धया देगी पर मोक्ष तक यह नही पहुँच पाती है।
प्रायः वाम मार्ग में शक्ति को अपने अधीन करते है। जबकि दक्षिण में शक्ति के अधीन।
इष्ट वह जो आपका कुल देव हो। जो आपको बचपन से लुभाता हो। जिसका नाम संकट में स्वतः निकल आये। जिसके नाम से काम होते हो।
मन के गुलाम होने से अच्छा है बीबी का गुलाम हो जाओ।
जिससे तुम्हे अपनी और अपने पूरे खानदान की कमियां देखने को मिल जाएगी।
कवि बनने को चाहिए| न फूलों का हार।।
कवि बनने को चाहिए। बीबी की फटकार।।
बीबी की फटकार। बनेगी कविता प्यारी।।
तुलसी कालीदास को। जाने दुनिया सारी।।
कह ज्ञानी कविराय। सभी कवि बन जाओ।।
घर जाकर बीबी से। पहले मार खाओ।।
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प्राप्य पुण्य कृतांलोकान् उषीत्वा शास्वतीसमा:। शुचीनाम् श्रीमतां गेहे योग भ्रष्टो अभिजायते।।
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यद्ईदृशम्।।
भावार्थ :- जो भी योगी साधक योगाभ्यास ध्यान साधन करते-करते आत्म स्वरुप को आत्मबोध को उपलब्ध नहीं हो पाते और उनका शरीर बीच में ही पात हो जाता है।(छूट जाता है) उनको योग भ्रष्ट की संज्ञा से संबोधित किया जाता है। ऐसे लोग इस लोक में दुर्लभ पावन पवित्र आत्माओं, श्रीमन्तों,योगियों व विद्वानों के कुल में जन्म पाते हैं !!ॐ!!
शाबर मंत्र का निर्माण बाबा गोरखनाथ समय समय पर पूर्वांचल भाषा मे करते रहते थे। कारण यह था कि बीच मे सँस्कृत सिर्फ जन्मने ब्रहामण ही पढ़ सकते थे। अतः अधिकतर भक्त यहॉ तक सन्त ज्ञानेश्वर भी मराठी में आये।
सँस्कृत में निर्माण और अध्य्यन न के बराबर सिर्फ जन्मने ब्राह्मणों द्वारा ही हुआ।
दूसरी बात इस समय तक लगभग सभी मन्त्र तन्त्र इत्यादि कई बार कई सिद्धों द्वारा सभी साकार रूपो में सिद्ध किये जा चुके है। अतः उनको सिद्ध करने में इतनी परेशानी नही होती है।
वैसे भी यह कलियुग है यहाँ भगवान की ओर देखनेवाले भी मुश्किल से मिलते है। सिर्फ भिखारी ही मिलते है जो बस प्रभु को atm कार्ड समझ कर भीख ही मांगते रहते है। मिली तो खुश नही तो मजारों को भी पूजने लगते है।
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त्रिवेणी का महत्व पर्व मित्तल ने यूं समझाया
वट वृक्ष धीरे-धीरे बहुत बड़े क्षेत्र में अपनी जड़ें फैला लेता है। उनकी हजारों शाखाएं झुककर पृथ्वी तक आती हैं और पृथ्वी के अंदर नया वट वृक्ष उत्पन्न कर देती हैं।
वट वृक्ष को शास्त्रों ने ऋषि की संज्ञा दी है। जैसे ऋषियों का जीवन केवल परोपकार के लिये होता है उसी प्रकार वह भी पुरुषार्थ एवं परोपकार का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति की तुलना वट से करना अतिशयोक्ति नहीं होगी। वट वृक्ष को काटने से भी वह बार-बार बढ़ता जाता है। जैसे प्रयाग के अक्षय वट को जहांगीर ने जिद करके कटवाया था परंतु वह आज भी उतना ही शानदार है। इसी प्रकार भारतीय संस्कृति को भी संसार के अनेक आसुरों, दैत्यों, राक्षसों, यूनानियों, शकों, हूणों, तुर्कों, मुगलों एवं अंग्रेजों आदि ने नष्टï करने का प्रयत्न किया परंतु भारतीय संस्कृति सब प्रहारों को सहकर आज भी पूरी शान के साथ खड़ी है। जैसे वट वृक्ष की हजारों शााखाएं वट वृक्ष का सौंदर्य व बल बढ़ाती हैं उसी प्रकार भारत की हजारों जातियां, उपजातियां, संप्रदाय, पंथ, भाषाएं व बोलियां उसका उसी प्रकार सौंदर्य व बल बढ़ाती हैं।
वट को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का स्वरूप माना गया है। वट वृक्ष भारतीय नारियों के लिये दीर्घ जीवन व सुहाग का प्रतीक है।
वट का आयुर्वेदिक महत्व सर्वविदित है। वट का दुग्ध दर्द निवारक, वर्ण हर एवं नपुंसकता को दूर करता है। वट की दाड़ी की छाल एवं तना अमर-अजर है। इसके सेवन से बुढ़ापा नहीं आता।
पीपल को भगवान विष्णु का साक्षात रूप माना गया है। भगवान विष्णु जो कि जगत का भरण-पोषण करने वाले हैं, उसी प्रकार पीपल भी दिन-रात प्राण वायु (आक्सीजन) देकर हमें जीवन प्रदान करता है। पीपल वृक्ष वातावरण के परिष्कारों एवं परिमार्जन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की अपेक्षा वातावरण में आक्सीजन की मात्रा अधिकतम रूप से अभिवृद्धि करता है तथा प्रदूषित वायु को कम करता है। इसी कारण इस वृक्ष के नीचे ध्यान का विशिष्ट महत्व है। इस तथ्य का श्रीमद्भागवत महापुराण (3/4/8) में बड़े स्पष्ट ढंग से उल्लेख किया गया है। महापुराण के अनुसार द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस दिव्य एवं पवित्र वृक्ष के नीचे बैठकर ही ध्यानावस्थित हुए थे। कलियुग में भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे हुई थी। इसी वजह से इस वृक्ष को बोधिवृक्ष कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में पीपल का बहुत महत्व है। यह 100 अलग-अलग बीमारियों की दवा है। इसकी जड़ें छिलका, पत्ता, दाड़ी एवं फल अलग-अलग रूप से 25-25 बीमारियों को नियंत्रित करते हैं। पीपल का वृक्ष लगाने वाले को ये रोग स्वत: ही नहीं लगते। यह रक्त शोधन, टीबी, हैजा, पेचिश, कब्ज, अजीर्ण आदि में अचूक दवा है।
‘अश्वत्य: सर्ववृक्षाणां' अर्थात् वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। भगवान श्री कृष्ण की यह उक्ति पीपल के महत्व और महत्ता को और बढ़ाता है। पीपल वानस्पतिक जगत में सर्वश्रेष्ठ है। इसी कारण स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा दी है। नि:संदेह पीपल देववृक्ष है जिससे सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अंत:चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है, इसलिये पीपल सदा से ही भारतीय जनजीवन में विशेष रूप से पूजनीय रहा है।
पीपल और वट वृक्ष का जलदान कर पित्तरों को तृप्त करने की दृढ़ मान्यता हिंदुओं में है। जहां पीपल को लगाना इतना पुण्य कार्य है वहीं इस वृक्ष को काटना बड़ा पाप माना जाता है। इसका वैज्ञानिक तर्क भी है। इसकी जड़ों अथवा टहनियों को काटने से यह दूषित वायु छोड़ता है जो कि सीधे हार्ट पर प्रभाव डालती है।
नीम जिसका वैज्ञानिक नाम निम्बिन है, इसके प्रत्येक भाग में मार्गोसीन नामक रसायन पाया जाता है। यह स्वाद एवं गंध दोनों में कड़वा पाया जाता है। इसकी पत्तियां, टहनी, छाल, जड़, फूल और फल सभी औषधीय दृष्टिï से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
आयुर्वेद में निम्ब वृक्ष को 100 प्रकार के ज्वर का नाशक बताया है। इसका सेवन सूर्य उदय से सुबह दस बजे तक एवं शाम 3 बजे से सूर्य अस्त तक ही करना चाहिए। यह वात-कफ को हर लेने वाला बताया गया है।
नीम को सृष्टि के संहारक भगवान शिव का रूप माना गया है। अपने औषधीय गुणों के लिये मशहूर नीम के बीज से बने पर्यावरण मित्र और सुरक्षित कीटनाशक के इस्तेमाल के उत्साहवर्धक नतीजे सामने आये हैं। नीम की छाया ज्यादा शीतलता प्रदान करती इसलिये गर्मी में चलकर आये व्यक्ति को तुरंत इसकी छाया में विश्राम नहीं करना चाहिए।
अत: बड़, पीपल, नीम का आध्यात्मिक, धार्मिक एवं आयुर्वेद की दृष्टि में महत्वपूर्ण स्थान है। त्रिवेणी साक्षात ब्रह्म, विष्णु, शिव का रूप है। त्रिवेणी के जितना सामर्थ्य अन्य की वृक्ष में नही है, जब त्रिवेणी के तीनों वृक्ष एक साथ लगाये जाते है तो इनकी जड़े एक दूसरे में गूँथ जाती है, इनके पत्ते व् टहनियां एक दूसरे में संयुक्त हो जाती है। परिणाम स्वरुप ये वायु का और अधिक परिमार्जन व् परिष्करण कर देते है, केवल त्रिवेणी में ही वो सामर्थ्य है जो आण्विक विकिरणों को अवशोषित कर ले। यदि तीनो वृक्ष अलग अलग लगाये जाये तो वो आण्विक विकिरणों को अवशोषित पूर्णतः नही कर सकते जितने ये संयुक्त रूप से। यदि एक महानगर में चक्रवहुआ आकर में दो दो 5 किलोमीटर के दायरे में त्रिवेणी लगा दी जाये तो वायु प्रदूषण की समस्या स्वतः समाप्त हो जाये, त्रिवेणी भूमि जलस्तर को बढ़ाने में भी मददग़ार है, त्रिवेणी के कारण अकाल की नोबत नही आती।
अत: बच्चे और बूढ़े, स्त्री और पुरुष सभी मनोयोग से एक-एक त्रिवेणी व पांच अन्य वृक्ष लगायें तो पृथ्वी पुन: सुजलां, सुफलां हो उठेगी।
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