दण्ड, भूत और चर्चा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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“bulle
👉👉शिव और उनके प्रतीक👈👈
👉👉रुद्राक्ष: रुद्र के आंसू👈👈
बुद्धि का अनावश्यक प्रदर्शन।
घर के बर्तन मांजने आये नहीं। सूक्ष्म का शोधन।
👉👉विवेक की व्याख्या👈👈
"विवेक का अर्थ है। ब्राह्मण हेतु कार्य करना"।
इसके सही अर्थ बताये।क्या यह वाक्य गलत है।
अधिकतर गलत ही बताएंगे??? समझेंगे ही नहीं। क्यों??????
कुण्डलनी जागरण मार्ग का पड़ाव होता है। किंतु बिना यह जागृत बने न तो आध्यात्म का और न ही योग का अनुभव होता है।
लक्ष्य तो अलक्ष्य को प्राप्त होना है।
इस विषय मैं कल रात्रि का स्वप्न ध्यान कुछ भी कहो, उसका जिक्र करूंगा।
स्वप्न में मैं देवी पूजन और आरती या भजन गा रहा था। मस्ती में झूम रहा था सभी लोग झूमकर नृत्य कर गान कर रहे थे।
अचानक मेरे मुख से कृष्ण राधे। राधे कृष्ण निकलने लगा जो बाद में राधे राधे होने लगा।
इसके अर्थ यह हुए कि राधे का माँ शक्ति काली से कुछ सम्बन्ध है।
सुबह गूगल गुरू सर्च किया। तो पता चला कि कृष्ण काली का अवतार और राधे शिव का अवतार हैं।
मतलब स्वप्न या ध्यान सही जानकारी दे गया।
जय हो प्रभु। जय हो प्रभु। लीला अपरम्पार प्रभु।
तुझको समझा यह सोंचू मैं। यह भी तेरा उपकार प्रभु।।
##गया के #आकाशगंगा पहाड़ पर एक ##परमहंस जी वास करते थे। एक दिन ##परमहंस जी के शिष्य ने एकादशी के दिन #निर्जला उपवास करके द्वादशी के दिन प्रातः उठकर फल्गु नदी में स्नान किया, #विष्णुपद का दर्शन करने में उन्हें थोड़ा विलम्ब हो गया। वे साथ में एक #गोपाल जी को सर्वदा ही रखते थे। द्वादशी के पारण का समय बीतता जा रहा था, देखकर वे अधीर हो गये एवं शीघ्र एक #हलवाई की दुकान में जाकर उन्होंने दुकानदार से कहा - 'पारण का समय निकला जा रहा है, मुझे कुछ मिठाई दे दो, गोपाल जी को भोग लगाकर मैं थोड़ा जल ग्रहण करुँगा।
#दुकानदार उनकी बात अनसुनी कर दी। #साधु के तीन - चार बार माँगने पर भी हाँ ना कुछ भी उत्तर नहीं मिलने से व्यग्र होकर एक बताशा लेने के लिए जैसे ही उन्होने हाथ बढ़ाया, दुकानदार और उसके #पुत्र ने साधु की खुब पिटाई की, निर्जला उपवास के कारण साधु दुर्बल थे, इस प्रकार के #प्रहार से वे सीधे गिर पड़े। रास्ते के लोगों ने बहुत प्रयास करके साधु की रक्षा की। साधु ने दुकानदार से एक शब्द भी नहीं कहा, ऊपर की ओर देखकर थोड़ा हँसते हुए प्रणाम करके कहा-भली रे दयालु गुरुजी, तेरी लीला। केवल इतना कहकर साधु पहाड़ की ओर चले गये।
#गुरुदेव परमहंस जी पहाड़ पर ##समाधि में बैठे हुए थे, एकाएक #चौक उठे एवं चट्टान से नीचे कूदकर बड़ी तीव्र गति से गोदावरी नामक रास्ते की ओर चलने लगे। रास्ते में #शिष्य को देखकर परमहंस जी कहा 'क्यो रे बच्चा, क्या किया? शिष्य ने कहा, गुरुदेव मैने तो कुछ नहीं किया। परमहंस जी ने कहा' बहुत किया। तुमने बहुत बुरा काम किया। ##परमात्मा के ऊपर बिल्कुल छोड़ दिया। जाकर देखो, #परमात्मा ने उसका कैसा हाल किया। यह कहकर शिष्य को लेकर #परमहंस जी हलवाई की दुकान के पास जा पहुँचे। उन्होंने देखा हलवाई का #सर्वनाश हो गया है।
##साधु को पीटने के बाद, जलाने की लकड़ी लाने के लिए हलवाई का लड़का जैसे ही कोठरी में घुसा था उसी समय एक #काले नाग ने उसे डस लिया। हलवाई घी गर्म कर रहा था, सर्पदंश से मृत अपने पुत्र को देखने दौड़ा। उधर चूल्हे पर रखे घी के जलने से दुकान की फूस की छत पर आग लग गई।
##परमहंस जी ने देखा, लड़का रास्ते पर मृतवत पड़ा है, दुकान धू-धू करके जल रही है, रास्ते के लोग #हाहाकार कर रहे है। #भयानक दृश्य था। ##परमहंस जी शिष्य को लेकर पहाड़ पर आ गए। शिष्य को खूब फटकारते हुए कहा कि बिना अपराध के कोई अत्याचार करता है, तो क्रोध न आने पर भी साधु पुरुष को कम-से-कम एक गाली ही देकर आना चाहिए। #साधु के थोड़ा भी प्रतिकार करने से अत्याचारी की रक्षा हो जाती है, #परमात्मा के ऊपर सब भार छोड़ देने से #परमात्मा बहुत कठोर दंड देते हैं। #भगवान् का दंड बड़ा भयानक है।
क्या भूत प्रेत पिशाच दाकन सच मे होते है।
यह होते है। नकारात्मक ऊर्जा के कारण।
यदि मनुष्य दुर्बल मन का हो तो प्रभाव डाल सकते है।
यह सब सोंच से बनते है। कीड़ो की सोंच नही होती।
जैसा की सभी जानते है, भूत जिसको इतर योनि कहा जाता है, ये कई प्रकार के होते है । प्रेत , बेताल , पिशाच आदि । परंतु इस पोस्ट पर मे भूतो का वर्गीकरण अलग आधार पर करूँगा । इस वर्गीकरण मे इतर योनि की दो श्रेणियाँ ही है, जिसमे सभी प्रेत वर्ग सम्मिलित है ।
1) पहली श्रेणी के भूत वो इतर योनि है , जो कभी मनुष्य थी , पर मृत्यु उपरांत वो अपने कर्म या अतृप्त इच्छा के कारण प्रेत योनि मे आ जाती है , इनको भूत , प्रेत , चुड़ैल , ब्रहम राक्षस आदि कहा जाता है , यहा ये ज्ञात रखे की भूतो की इस श्रेणी की भी काफी sub श्रेणियाँ होती है , जैसे बडवा , कलवा , आदि , आजकल महेश भट्ट की हॉरर फिल्मो मे इन्हीं भूतो को आधार बनाया जाता है , इन भूतो की शक्ती सीमित होती है , ओर ज्यादातर तान्त्रिक इनको गुलाम बनाकर अच्छे बुरे काम लेते है , पर इस श्रेणी के भूत अपनी इच्छा पूरी होने पर या भोग कर्म समाप्त होने पर दुबारा जन्म ले लेते है ।
2) दुसरी श्रेणी के भूत वो इतर योनि है , जो कभी भी मनुष्य योनि मे नही थे, ये योनि इनकी parmanent योनि होती है , ये अलग लोक के वासी होते है , जैसे बेताल , पिशाच , ड़ाकिनी , शाकिनी , राक्षस , शैतान आदि ,शास्त्रो मे इनको मन्त्रो का अधिपति भी बोला
गया है , इनकी शक्ति ओर बल असीमित होता है , इनको सहज रूप से दुसरी इतर योनि की तरह गुलाम नही बनाया जा सकता , इनका साधक चमत्कारी कार्य कर सकता है , महाराजा विक्रम केवल ताल बेताल को प्रसन्न करके ही महान कार्य सम्पादित कर पाये थे , ऐसे ही ड़ाकिनी की शक्ति भी असीमित होती है , ये अपने साधक को अति विशिष्ट तंत्र मन्त्र का ज्ञान कराती है , जिसमे रूप परिवर्तन , परकाय प्रवेश विभिन्न लोको मे गमन प्रमुख है , ओर कुरान मे ज़िक्र है, शैतानो ने मुस्लिमो के अल्लाह को भी चुनौती दे दी थी । इस विशिष्ट इतर योनि को रामसे बंधुओ ने अपनी फिल्मो मे काफी प्रमुखता से स्थान दिया है , उनकी अधिकतर हॉरर फिल्मो के भूत विशिष्ट श्रेणी के ही अधिक देखने को मिले । इस श्रेणी की इतर योनि अमर होती है , ओर अधिकतर मन्त्र या बीज़ मन्त्र इनके द्वारा ही सम्पादित होते है , शास्त्रो मे इनको उपदेव का दर्ज़ा भी प्राप्त है ।
इतने प्रकार के होते हैं भूत-प्रेत आत्माएं।
भले ही विज्ञान भूत-प्रेतों की बातों पर विश्वास ना करें परन्तु ज्योतिष के मुताबिक भूत-प्रेत और आत्माएं होती हैं। तंत्र शास्त्रों के मुताबिक तो दुनिया में करीब 3० प्रकार की अनदेखी आत्माएं और भूत-प्रेत होते हैं। आइये जानते है इनके बारे में.
(1) भूत :- सामान्य भूत जिसके बारे में आप अक्सर सुनते हैं, इसके बारे में कुछ प्रमाण देते हैं तो कुछ को उपरी हवा बताते हैं।
(2) प्रेत : परिवार के सताए हुए बिना क्रियाकर्म के मरे हुए आदमी, जो पीडि़त होते हैं वे इस श्रेणी में आते हैं।
(3) हाडल : बिना नुक्सान पहुचाये प्रेतबाधित करने वाली आत्माएं।
(4) चेतकिन :- चुडैलें जो लोगो को प्रेतबाधित कर दुर्घटनाए करवाती है।
(5) मुमिई :- मुंबई के कुछ घरों में प्रचलित प्रेत, जो कभी कभी दिखाई देते है।
(6) मोहिनी या परेतिन : -प्यार में धोखा खाने वाली आत्माएं जिनसे मनुष्यों को मदद मिल सकती है।
(7) विरिकस:- घने लाल कोहरे में छिपी और अजीबो-गरीब आवाजे निकलने वाला होता है।
(8) डाकिनी :- मोहिनी और शाकिनी का मिला जुला रूप किन्ही कारणों से हुई मौत से बनी आत्मा होती है।
(9) शाकिनी:- शादी के कुछ दिनों बाद दुर्घटना से मरने वाली औरत की आत्मा जो कम खतरनाक होती है।
(10) कुट्टी चेतन :- बच्चे की आत्मा जिस पर तांत्रिको का नियंत्रण होता है।
(11) ब्रह्मोदोइत्यास :- बंगाल में प्रचलित, श्रापित ब्राह्मणों की आत्माए,जिन्होने धर्म का पालन ना किया हो।
(12) सकोंधोकतास :- बंगाल में प्रचलित रेल दुर्घटना में मरे लोगो की सर कटी आत्माए होती हैं।
(13) निशि :- बंगाल में प्रचलित अँधेरे में रास्ता दिखाने वाली आत्माएं।
(14) कोल्ली देवा :- कर्नाटक में प्रचलित जंगलों में हाथों में टोर्च लिए घूमती आत्माएं।
(15) कल्लुर्टी :-कर्नाटक में प्रचलित आधुनिक रीती रिवाजों से मरे लोगों की आत्माएं।
(16) किचचिन:- बिहार में प्रचलित हवस की भूखी आत्माएं।
(17) पनडुब्बा:- बिहार में प्रचलित नदी में डूबकर मरे लोगों की आत्माएं।
(18) चुड़ैल:- उत्तरी भारत में प्रचलित राहगीरों को मारकर बरगद के पेड़ पर लटकाने वाली आत्माएं।
(19) बुरा डंगोरिया :- आसाम में प्रचलित सफ़ेद कपडे और पगड़ी पहने घोड़े पसर सवार होने वाली आत्माएं।
(20) बाक :- आसाम में प्रचलित झीलों के पास घुमती हुई आत्माएं।
(21) खबीस:- पाकिस्तान, गल्फ देशों और यूरोप में प्रचलित जिन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली आत्माएं।
(22) घोडा पाक :- आसाम में प्रचलित घोड़े के खुर जैसे पैर बाकी मनुष्य जैसे दिखाई देने वाली आत्माएं।
(23) बीरा :- आसाम में प्रचलित परिवार को खो देने वाली आत्माएं।
(24) जोखिनी :-आसाम में प्रचलित पुरुषों को मारने वाली आत्माएं।
(25) पुवाली भूत :-आसाम में प्रचलित छोटे घर के सामनों को चुराने वाली आत्माएं।
(26) रक्सा :- छतीसगढ़ मे प्रचलित कुंवारे मरने वालों की खतरनाक आत्माएं।
(27) मसान:- छतीसगढ़ की प्रचलित पांच छह सौ साल पुरानी प्रेत आत्मा नरबलि लेते हैँ, जिस घर मेँ निवास करे। ये पूरे परिवार को धीरे धीरे मार डालते है।
(28) चटिया मटिया :- छतीसगढ़ मेँ प्रचलित बौने भूत जो बचपन मेँ खत्म हो जाते हैँ वो बनते हैँ बच्चो को नुकसान नहीँ पहुँचाते। आंखे बल्ब की तरह हाथ पैर उल्टे काले रंग के मक्खी के स्पीड में भागने वाले चोरी करने वाली आत्माएं।
(29) बैताल:- पीपल पेड़ मेँ निवास करते हैँ एकदम सफेद रंग वाले ,सबसे खतरनाक आत्माएं।
(30) गरूवा परेत:- बीमारी या ट्रेन से कटकर मरने वाले गांयों और बैलों की आत्मा जो कुछ समय के लिए सिर कटे रूप मेँ घुमते दिखतेँ हैँ। ये नुकसान नही पहुचाते। छतीसगढ में प्रचलित है।
ब्रह्म का दास बनकर ही उचित मार्ग है।
वेदों की वाणी और निर्माण का एकमात्र उद्देश्य है कि तुम जान सको कि तुम ही ब्रह्म हो। इसी हेतु वेद महावाक्यों का जन्म हुआ। क्योकि ब्रह्म का अंतिम रूप निराकार सगुण निर्गुण ब्रह्म ही है।
इसी को समझाते हुए उपनिषद भी रचे गए। और सर्व खलु मिदम ब्रह्म सार वाक्य बना।
इसी बात को और अधिक तरीके से योग को समझाते हुए षट दर्शन बने। जिसमे अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार प्रयास हुए।
इसी को गीता ने संक्षेप में समझाया। फिर तुलसीदास ने साकार के उदाहरण देते हुए व्याख्या की।
कुल मिलाकर मनुष्य का जन्म अपने को जानने हेतु ही हुआ है।
यह सभी शक्तियां शिव के ही अधीन होती है। शिव यानि गुरू। शिव इनको कैसे भी नचा सकता है। अतः शिव की बारात। यानि गुरू तत्व जब शक्ति से मिलता है तो सभी शक्तियां प्रसन्न होती है और अपनी उपस्थिति का एहसास कराती है।
क्योकि गुरू शक्ति यानि शिव शक्ति ही उनको मुक्ति दिला सकती है।
सब एक ही ऊर्जा के विभिन्न रूप है किंतु स्वयं कोई भी अपनी पूजा हेतु नहीं कहता है। कृष्ण ने समझाने हेतु अर्जुन को यह वाक्य कहा। क्योकि उस समय कृष्ण अहम ब्रह्मास्मि के भाव मे थे।
कृष्ण को अन्य ने कहा किंतु कृष्ण ने कभी ऐसा नही कहा।
कृष्ण ने भी किंतने गुरु से दीक्षाले थी।
👉👉क्या होते हैं वैष्णव👈👈
साथ ही एक स्वप्न जो बचपन से देखता रहा हूँ वह भी बताना चाहता हूँ।
मेरी इच्छा रही है कि माँ शक्ति का एक सुंदर मन्दिर बनवाऊँ जो जगत निराला हो।
उसकी कल्पना इस प्रकार है।
बीच मे 50 फुट या अधिक ऊंची तीन मूर्तिया जो पीठ से सटी हो। जो माँ सरस्वती महा लक्ष्मी और महाकाली की हो।
उनके सामने गोलाई में नव दुर्गा की 6 फीट की मूतियां जो इन तीनो को घेरे हो।
कुछ इस तरह का निर्माण हो।
कल्पना में जब इनकी आरती एक साथ 12 लोग घूमते हुए करें। तो कितना मनोरम दृश्य होगा।
मेरे पास तो न जमीन है और न इतना धन। सब कुछ बेच कर भी यह कल्पना साकार नहीं हो सकती।
किंतु आपसे शेयर करता हूँ। शायद आप महात्मा लोगोँ का आशीर्वाद मिल जाये और यह स्वप्न साकार हो।
मैं भाग्यशाली होऊंगा यदि नेत्र बन्द होने के पूर्व यह कल्पना साकार होते देख सकूँ। कोई भी इस तरह का मंदिर देश में नहीं है किंतु यदि कोई बनवाये तो दर्शन कर सकूं।
जय माँ। जय गुरुदेव। आपका ही सहारा।
अपनी फोटो के मोह से निकल नहीं पाए। बिना यह त्यागे कैसे आगे बढोगे। ?????
मित्र क्षमा की कोई बात नहीं। तुमको इसलिए टोका क्योकि तुम एक अच्छे साधक हो।
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मन्त्र जप एक तरीका है। जब हमारा तन मन सब मन्त्र जप में लीन हो जाता है। हम देह भान भूल जाते है। हमारा सब कुछ मन्त्र में लीन होने लगता है। तब मन्त्र अपने इष्ट को हमारे सामने प्रकट कर देता है।
तीव्र प्रकाश के साथ हमें अपने इष्ट के साक्षात दर्शन हो जाते है। हमारा इष्ट हमसे बात भी करता है। इसी के साथ कुण्डलनी भी स्वतः खुल सकती है यदि हमें इष्ट स्पर्श कर देता है और हम क्रिया का आनन्द लेने लगते है।
यह कथा यहीं खत्म नहीं होती। इष्ट हमें खुले नेत्रों और इंन्द्रियों से अहम ब्रह्मास्मि की अनुभूति भी करा सकता है। बशर्ते हम दुकान न खोले। कोई लालसा न करें।
यह बात स्वयम मेरे अनुभव की है। आप यकीन करें या न करें।
जिस क्षण आप अपना सब कुछ प्रभु में विलीन कर दो। प्रभु उसी क्षण आपके मन्त्र का इष्ट बनकर सामने आएगा। लेकिन आप न किसी पर यकीन करते है और न खुद कुछ करते है। आपको यकीन दिलाने हेतु इतनी शक्तिशाली ध्यान विधि mnstm का निर्माण स्वयं कृष्ण और काली ने करवाया। जिसके कारण आपको सनातन की शक्ति का एहसास मात्र कुछ दिनों में हो जाता है। लेकिन आप को तो झूठी वाह वाही चाहिए। अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर गुरू की सन्यासी बनने की लालसा ही मोहित करती है।
एक बार प्रभु को को समर्पित होकर देखो। तब मालूम होगा वह अपने दासों की रक्षा किस प्रकार करता है।
कभी किसी भी प्राप्ति हेतु जिद्द न करो। जैसे अनिल करता था। यह जिद्द मात्र उपहास का कारण बनकर दुख ही देगी।
सिरफ और सिर्फ प्रभु स्मरण और समर्पण करो। है प्रभु तेरी इच्छा मेरी इच्छा। मुझे यदि मृत्यु देना तो अपने चरणों मे ही जगह देना। मुझे जगत का कुछ नहीँ चाहिए। यदी च्चाहिये तो सिर्फ तू ही तू।
अपने एक गुरु भाई हैं। अच्छे साधक है। सूक्ष्म तक की यात्रा करते है। किंतु सन्यासी बनने की तमन्ना रखते है। बस यही तमन्ना उनको ऊपर नहीं उठने देगी।
सवाल यह है कि सन्यासी क्यों बनना चाहते हो। ताकि लोग तुम्हे प्रणाम करें आदर दें। जिससे हमारा अहम पोषित हो।
मैं बिल्कुल सन्यासी बनना नहीं चाहता। पिछले दिनों मुझे स्वप्न में भगवा रंग दिखने लगा मैं डर गया कि कहीं प्रभु मुझे सन्यास की भट्टी में न झोंक दे।
मैं अपनी परम्परा के एक गुरू के पास गया उनको स्वप्न बता कर प्रार्थना की कि बड़े महाराज से विनती करें। मुझे सन्यासी या गुरू बिल्कुल नहीं बनना है। एक सेवक हूँ मुझे वो ही रहना है।
लोगो को पता नहीं सन्यासी या गुरू का जीवन कितना कष्टप्रद होता है। वे या नकली सन्यासी को देखते है या सम्मान को देखकर आकर्षित होते है।
सदगुरू और वास्तविक सन्यासी का जीवन बेहद दुरूह और कष्टप्रद होता है। मुझे उनकी पीड़ाओं का अनुभव होता है।
मंत्रो के परिशुद्ध ज्ञान को समझने के लिए मंत्रो की किस पुस्तको का अध्ययन करना चाइये किस publisher की कृपा मार्गदर्शन करें sir ji
अध्य्यन नहीं मनन करो। यही मन्त्र परिपक्व होकर सब ज्ञान स्वतः दे देता है।
जो आपका इष्ट हो उसका मन्त्र।
एक साधे सब सधे। सब साधे सब खोय।।
जो इष्ट आपको संकट में याद आये वह इष्ट है।
कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा॥
यह बात इतनी सत्य है। जितना सूर्य की परिक्रमा धरती करती है। और गर्मी के बाद वर्षा आती है।
मित्रो मैं देखता हूँ कि कुछ ग्रुप के मित्र ग्रुप में नही तो फेस बुक पर मुँह बना बना कर फोटो डालते रहते है मैं उनसे पूछना चाहता हूँ उनको इससे क्या मिलता है।
अपनी फोटो खुद बे वजह डालना क्या आत्म श्लाघा या सूक्ष्म रूप में अहंकार नहीं है।
अब आप कहेंगे आप भी लेख में डालते है। जी बिल्कुल सही यह 10 साल पुरानी घटिया फोटो सिर्फ परिचय हेतु होती है ताकि लोग पहचान सके। प्रचार होगा तो शायद सनातन की सेवा भी अधिक हो सके। और शायद लेख कविता चोरी न हो।
किंतु इससे मुझे तनिक लगाव नहीं। किसी की सलाह पर पुरानी फोटो डाल देता हूँ कभी कभी।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
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