चक्र की स्थिति और चर्चा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
मो. 09969680093
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सर चक्र की स्थिति का कैसे पता करे कौनसा चक्र जाग्रत है ??
पीठ पर उस जगह पर गड्डेनुमा पड़ जाते है।
आपके ध्यान में कौन सा रंग प्रमुखता से है। आपकी क्रिया किस तरह की है।
जैसे शरीर उड़ना, हल्का लगना, आकार बड़ा होना लगना, इत्यादि क्रियाये।
मणिपुर चक्र जागरण के क्या लक्षण है और सहस्र के क्या लक्षण है किताबी ज्ञान नहीं चलेगा
आपको पता है तो बताये।
तब फिर आप कैसे पता करेगे कि किताबी है या अनुभव??
आप जानकर भी क्या फायदा ले पाएंगे। क्या यह किताबी प्रश्न नही है।
आप बताने का कष्ट करें आपके अनुभव क्या है। जिसके आधार पर बात की जा सके।
वाह फिर अपने अनुभव लिखे।
मित्रो धर्मांतरण एक बेहद गम्भीर मुद्दा है। इसके लिए बंगलोर सहित दक्षिण भारत मे पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। उनकी स्टाइल और मार्केटिंग से कोई अछूता नही बच सकता। बच्चों के लिए महंगी कॉमिक्स बुक्स निशुल्क भेंट होती है मेरे पास एक सैंपल है। जिसमे शुरू में कहानियां है हैं आगे जाते जाते यीशु से सब मिलता है तक खत्म होती है। यहाँ तक सिन यानी पाप क्या है उसमे लिखा है प्रभु यीशु को न मानना और उनकी बात न मानना पाप है।
ये कॉमिक्स हिंदी इंग्लिश और कन्नड़ सहित हर भाषाओं में बांटी जा रही है। मतलब एक पूरा बड़ा तंत्र काम कर रहा है।
मेरी बेटी पर ईसाई बनने और दामाद पर मुस्लिम बनने का प्रयास किया जा रहा है। महीने में औसतन 3 लोग सम्पर्क करते है।
पता नही धर्म क्या है यह जानते भी है। एक किताब के सहारे और पैसे के बल पर यह अपनी संख्या भी बढाकर क्या प्राप्त कर लेंगे। विश्व के सभी लोग ईसाई या मुस्लिम हो जाये तो उससे क्या हो जाएगा। कितनी सभ्यता संस्कृति नष्ट हो जाएगी। अब इन मूर्खो को कौन समझाए।
यह अनुभव जनित लेख है जो पुस्तको में न मिलेगा।
साधु साधु लेख हेतु।
जब कोई भी मावन से कुंडली की शक्ति जागृत होती है तो उनका शरीर बिलकुल हलका सा फूल जैसा हरदिन रहता है. उनका शरीर स्फूर्तिमय रहता है और उनका शरीर बिलकुल निरोगी अवस्था मे आ जाते है. उनको किसीभी प्रकार का कोई टेन्शन मुक्त बिलकुल फ्रि अवस्था मे उनकी मगज रहता है उनको शरीर मे किसीभी प्रकार का थकान का अनुभव कभी नहीं होता ये सभी प्रकार से उनका शरीर जरा-व्याधि से मुक्त होकर निरोगी होता है.
कोईभी मानव कि कुंडली की शक्ति का जागरण से उनको खुद वो आत्मज्ञानी अवश्य बन जाता है. सत्य क्यां है, असत्य क्यां है वो बात का उनको ज्ञान अवश्य आ जाते है वो खुद आत्मज्ञानी बन जाता है. उनके पुरे शरीर का विज्ञान यै प्रकृति का विज्ञान ये सृष्टि सर्जन का विज्ञान ये सातेय तत्वो का विज्ञान ये सभी विज्ञान का उनको ज्ञान अवश्य होता है. ईसिमे कोई शक नही है ये पुरी सृष्टि का सर्जन का वो ज्ञानी बन जाता है उनका शरीर शक्तिमय बनता है.
लेकिन जो मानवो बात करते है कि कुंडली जागरण होने के बाद वो मावन सभी प्रकार का काम करते है कोई काम ऐसा नही होता जो कुंडली जागरण वाला नही कर शकता. ये सभी सुनी सूनाई बात है ये सभी गलत बात है अगर ऐसा होता तो महाभारत का युद्ध कभी नही होता, राम रावण का युद्ध कभी नही होता. ये जो अभी वर्तमान मे भारत -पाकिस्तान की तंगदिली युद्ध की है वो कभी नही होती और आतंकवादी यो भी नही होता ये सब अज्ञानी लोगो ने कुंडली के बारे मे अपना खुदका नाम का प्रभाव डाल ने के लिए ये सभी बाते करते गये है. वो सत्य नहीं है, ईसिलिए जो मानव को कहता हु़्ं की शास्त्रो को पठन मत करो. शास्त्रो की बातो पर विश्वास मत करो वो एक कविओ का लिखा हुवा कीव्यो है. शास्त्रो मे कही भी असलियत नहीं है....
कुंडली की जागरण से मानव खुद कल्याण कारी बन जाता है. उनका सामान्य छोटा -मोटा काम अवश्य होता है वो दुसरे का चहेरा का पढन करने लगता है और सेवको का सामान्य जो काम होता है वो अवश्य करते है. लेकिन जो कुंडली नी के बारे मे मानवो मे एक बहुत बडी अफवा है वो बिलकुल गलत है. जो अफवा होती है वो एक हवा की लहेर की तरह अफवा ही होती है.......
कुंडली जागरण वाले मानव उनके सेवको का जो छोटा छोटा काम करते है वो कुंडली शक्ति से नहीं होता वो सभी काम संकल्प शक्ति से होता है. ईसि के लिए संकल्प साधना करनी पडती है और संकल्प साधना के साथ त्राटक की भी साधना करनी पडती है. तभी छोटा छोटा काम होता है. कुंडली शक्ति से ये काम कभी नही हो शकता ये मेरा खुद का अनुभव है. यहां तक का मेरा अनुभव है जो मेने आपको सत्य राह के लिए बताया है. कोइभी प्रकार की अंधश्रध्धा रुपी गलत फेमी मे कोई मानव फसे नही ईसिलिए मेने मेरा अनुभव को शब्दोंमे अंकित किया है ये अनुभव को अंकित करने मे मेरा कोई दुसरा स्वार्थ नही है.
कुंडली की शक्ति से मानव की मानसिकता मे कभी भी बदलाव नही ला शकते ईसिके लिए आत्मबळ-मनोबळ और संकल्प बळ ये तीनो द्रढ और मजबूत साधना के मारफत करना पडता है तभी ये छोटा छोटा काम होता है लेकिन संत कभी ये काम करने वाले बातो मे कभी नही पडेगा क्युं की ये प्रकृति सर्जन कर्मो के आधिन रखा गया है. ईसिलिए प्रकृति कू खिलाफ कभी कोई संत नही जायेगा ऐसे काम के लिए सभी को ना ही बोल देते हैं और संत कभी ये कामो करते नही.
कुंडली की जागरण मे सातेय तत्वो ही काम करते है लेकिन मानव को सिधि-सरल-सादी भाषा मे समज मे आ जावे ईसिलिए तत्वो की बात ज्यादा किया नही है...........
----गगनगीरीजी महाराज
कुंडली की शक्ति क्यां चीज है और कुंडली की शक्ति ये शरीर मे किस तरीके से जागृत होती है ये शरीर का विज्ञान मे आपको बता रहा हुं. मेरा जहा तक का अनुभव है वो मे आपको बता रहा हुं लेकिन जो भी बताउंगा ये बिलकुल सत्य निर्विवाद-सनातन ही है. आध्यात्मिक क्षेत्र मे अनुभव जो होता है वो सभी मानव को एक ही प्रकार का अनुभव होता है ईसिलिए ये बात गलत नही है अगर किसीको गलत लगे तो एक नवलकथा समज कर फेंक देना.
ये मानव शरीर मशीन के मारफत से योगक्रिया का सहारा लेकर जब मानव ध्यान लगता है और प्राणायाम का माध्यम से जब मानव अपनी श्वास लेने की और श्वास छोड़ ने की लंबाई एक मिनट तक पहोचते है तभी ये शरीर मे बिलकुल शून्यवकाश का सर्जन होता है. पुरा शरीर जडत्व अवस्था मे आ जाते है ईसी समय मस्तक मे शून्यवकाश हो जाता है .
{शून्यवकाश का प्रकृति का नियम ऐसा है की जहां भी शून्यवकाश होता है वहां चारो तरफ से वायुं का शून्यवकाश परफ आकर्षण लगता है और एक विनाशक वंटोळ के रुप मे परिवर्तन हो जाता है ये शून्यवकाश का नियम है }
जब शरीर मे शून्यवकाश होता है तो उनकी तरफ वो चारो तरफ़ से वायुं का खेंचाण करेगे लेकिन शरीर मे शून्यवकाश की परिस्थिति के हिसाब से वहां वायुं होता नही और मस्तक मे कही चारो तरफ़ से वायुं आवन जावन कर शके ऐसी भी द्वार कही नही है. ईसिलिए मेरुदंड जो है वो मस्तक से जुडा हुवा है और मेरुंदंड का दुसरा छेडा जो है वो विर्य की कोथळी के साथ जूडा हुवा है और विर्य की कोथळी जो है वो ईन्द्रीयो से जुडी हुई है. मस्तक मे जो शून्यवकाश की गति मेरुंदंड मे से खिचेंगी और मेरुंदंड सिधा विर्य की कोथळी मे से आकर्षण करेगी जब वहां आकर्षण होता है तो उसी स्थान पर बहुत प्रमाण मे गरमी पेदा हो जाती है वो गरमी प्राणायाम के माध्यम से ही होती है ईसिलिए वो गरमी के हिसाब से विर्य मे गरमी पेदा होती हैं और उसी मे एक बाष्पीभवन की क्रिया होती है जो बाष्पीभवन से सफेद वराळ वायुं के रुप मे उठकर वो वायुं राउन्ड मे घुमाव लेते लेते मेरुंदंड मेसे उपर मस्तक की ओर चढने लगेगे ओर जब वो मस्तक मे वायुं एकठा होता है वहां एक प्रकार का दबाव पेदा हो जाता है और पुरे मस्तक मे ये वायुं फैल जाता है. जो वायुं का अनुभव ठंडी लहेर जैसा होने लगता है. और वो भी ठंडी लहेर जैसा जो अनुभव होने लगता है वो ही चेतना के रुप मे प्रगट हो जाता है और पुरे मस्तक मे से शरीर मे चेतना फैल जाती है और पुरा शरीर स्फूर्तिमय -आनंदमय का अनुभव करने लगता है पुरा शरीर एक हलका सा फूल जैसा बन गया है ऐसा मानव को अनुभव होता है वो जो चेतना पुरे शरीर मे फैलती है वो चेतना को प्राणायाम जारी रखने के बाद पुरी चेतना शरीर मे से फिर उपर मस्तक की ओर चढने लगती है और मस्तक मे जब पुरी चेतना एकठी हो जाती है तब दस मे द्वार पे दबाण आ जाते है और वहां दबाण आने से एक बहुत बड़ा प्रकाश ललाट पर दिखाई देता है वो प्रकाश सुर्य से भी बहुत गुना तेज उसी मे होता है जो चेतना एकठी होती है वो ही उर्जा के रुप मे प्रकाश मे परिवर्तन हो जाता है येही क्रिया को कुंडली की शक्ति के नाम से जाना जाता है. ईसिमे शरीर का ही बहुत गहरा विज्ञान काम करता है. अब वो कुंडली की शक्ति क्यां काम करती है और कौन से तरीके से काम करती है ये मे आप को तीसरे भाग मे बताउंगा.
ये जो विर्य का ओजस मे रुपांतरण होकर उध्वगमन होता है ईसिमे ही सातेय तत्वो काम करते है और वो ही उध्वगमन जो होता है ईसिमे ही कुंडली के नाम से जाना जाता है. जो गोळ गोळ वायुं घुमता है ईसिलिए उनका नाम कुंडली नी रखा है ये गोळ गोळ घूमने का शरीर में अनुभव होता है.
------गगनगीरीजी महाराज
कुंडली की शक्ति को अलग- अलग नाम से सब जानते है मात्र लेकिन कुंडली की शक्ति क्यां चीज है उनको कुंडली क्युं कहा गया है वो कुंडली की शक्ति जागृत होने के बाद क्या काम करती है और कुंडली की शक्ति का अनुभव कैसे किया जाता है और जो शास्त्रो मे पुस्तकों में जो कुंडली की शक्ति की बात किया है वो कितनी सत्यता के आधार पर है सभी ने सुनी-सुनाई-पढाई बात पर ज्यादा भार दे दिया है किसीने अनुभव किया नही है और जिसने कुंडली की शक्ति का अनुभव किया है उसीने कहा बकवास नहि किया वो तो अपने भक्तिमय जीवन मे ही मशगुल हो गये हैं. कुंडली की शक्ति के बारे मे आजकल बहुत ही लेक्चर दिया जाता है कही कही तो कुंडली की शक्ति को जागृत करने का क्लासिस फी लेकर चलाते है और कहि तो अनपढ कविओ ने कुंडली की शक्ति जागृत होने के बारे मे बहुत कुछ लिख दिया है. कंई लोगो ने तो कुंडली की शक्ति को सर्पिणी की नाम से भी उल्लेख किया है. कुंडली की शक्ति के बारे मे जो भी कुछ मानव ने सूना है पढा है, पढा है, लिखा है, ईसिमे 20% ही सत्यता के आधार मुजे मिला है. बाकी सभी ने अपना नाम रखने के लिये 70 टका मिलावट कर कर बहुत बड़ी बडी बाते करदिया है. वो लेकिन कोइभी मानव जब ये कुंडली की शक्ति का अनुभव करते है तब उनको मालुम होता है. की असली सत्यबात क्यां है. असली अनुभव क्यां है, सही मे कुंडली की शक्ति की कीतनी ताकात है और उनसे कौन सा कौन सा काम मानव करवा शकते है ,जबतक मानव को अपने शरीर का विज्ञान का ज्ञान और अनुभव नही होता तबतक मानव सुनी सुनाई -पढी-लीखी बातो पर ही विश्वास करने लगता है क्युं की उसीके बारे मे उनको सिर्फ ईतना ही ज्ञान होता है कि सब लोग ये बात करते आये हैं बस वो ईतना ही जानता है और ये ही बात पर मानव विश्वास करने लगता है अनुभव करने के बाद कोईभी बात पर विश्वास करना चाहिए ये कुंडली की शक्ति के बारे मे सही क्यां है वो मे दुसरा भाग मे बताउंगा.....
---गगनगीरीजी महाराज
Vipul Sen: जैसे मुझे लगता है। शक्ति दो प्रकार की। एक वाह्यय मार्ग से बढ़ती है। जो बिना गुरु के भी यदि शक्ति मन्त्र किया जाए वो भी शक्ति मन्त्र तो जागृत होकर ऊपर उठकर अहम ब्रह्मासमी की अनुभूतिया इत्यादि देती है। इसी के साथ कुण्डलनी भी जग जाती है।
वाहीक शक्ति को ब्रम्ह शक्ति जो सर्व व्यापी है यही आंतरिक रूप लेकर कुण्डलनी कहलाती है।
जिस प्रकार पानी के टब में गुब्बारे में पानी भरकर बांध कर छोड़ दो। अब पानी तो अंदर बाहर दोनो है पर एक दूसरे का सम्पर्क नही। अब यदि ऊपर से गुब्बारे में छेद कर दो नीचे का बंधन भी खोल दो और दाब के साथ पानी डालो तो गुब्बारे केआकर वैसा ही बना रहेगा पर पानी नीचे से आकर ऊपर निकल कर टब के पानी मे मिल जाएगा।
कुछ ऐसा ही हमारी शक्ति और वाहीक शक्ति का खेल है। हमारी कुण्डलनी जागकर जब ऊपर जाकर सहस्त्रसार में मिलती है तो शरीर का चक्कर पूरा होता है। उसी के साथ वाहीक शक्ति भी बढ़ने लगती है।योगी ऊपर के छिद्र से अपने प्राण त्याग कर उस ब्रह्म शक्ति में लीन हो जाता है जो निर्वाण है का एक पद है।
यदि मनुष्य निराकार प्राप्त होकर प्राण त्यागेगा तो उसे निर्वाण या मोक्ष मिलेगा। यदि साकार होकर प्राण त्यागेगा तो परमपद या उसी देव के लोक में जागेगा।
जिसकी शक्ति जागृत हो गई उसके लिए स्वर्ग तो निश्चित हो ही गया।
कुंडलनी को सर्पिणी इसी लिए कहते है क्योंकि यह सर्प की तरह कुंडली मारकर अपनी काल्पनिक पूछ को मुख में लेकर शांतरूप में मूलाधार के कन्द में सोती रहती है। कुण्डलनी जागृत होने पर आत्म गुरु या अल्लह की बोली या गाड वाइस भी जग जाती है। जो तमाम गुत्थियों को सुलझा देती है।
पर योग का खुमार उतरने के बाद कुछ समय बाद मन गुरु भी जग जाता है जिसे शैतान की बोली डेविल्स वाइस कहते है। प्रायः मनुष्य इसी मनगुरु की बात को आत्म गुरु मॉनकर कर्म करने लगता है और फिर वह भटक जाता है।
इसके लिए स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने कहा है कि जब तक कोई बात स्पष्ट न सुनाई दे या दिखाई दे। इसको मन की चालबाजियां ही मानो।
एक बात और केवल हठ योग मार्ग या पातञ्जलि योग अष्टांग योग मार्ग से ही कुण्डलनी जागृत नही होती है। इसके जागरण का सबसे आसान मार्ग है प्रभु भक्ति यानी मन्त्र जप नाम जप। सतत सहज निरन्तर। ये सब दे देता है। पर भक्ति को इसन सब को जानने की आवश्यकता ही नही। उसे सब सहज मिल जाता है। सूर तुलसी मीरा की कुण्डलनी क्या नही जागृत हुई होगी। पर उनको सिर्फ प्रभु स्मरण से ही मतलब। और सही बात भी जो आनन्द प्रभु भक्ति में है वह किसी जागरण इत्यादि में नहीं।
वास्तव में कबीरदास ने योग शास्त्र को पुनर्स्थापित किया था। उन्होंने साकार से यात्रा आरम्भ कर निराकार का ज्ञान प्राप्त किया और निराकार में स्थिर हो गए। जीज समय भक्ति योग चरम पर था। लोग हठ योग या अष्टांग को भूलने लगे। तब कबीर दास ने इन मार्गो को पुनर्जीवित कर इनकी स्थापना की।
फिर कवि होना सौभाग्य है मनुष्य होना भाग्य। कवि शब्दो को ढूढते हुए अपनी आत्मा के नजदीक पहुंचने लगता है। अतः कवि का योगी होना औरो की तुलना में सरल और सहज होता है।
यह सब आपकी सोंच और कर्म के फलित लोक है।
यदि स्वतः कुण्डलनी जागरण या देव दर्शन होती है। तो यह तब ही होता है जब आपके पाप कर्म नष्ट हो गए हो।
आप सारे लेंन देंन बन्धनो से मुक्त हो चुके हो।
वही गुरु प्रददत कुण्डलनी साधन से आपके संस्कार नष्ट होते है।
क्रिया द्वारा।
यानी दूसरे से लेन देंन नही पर अपने कर्मफल तो भोगने की क्रिया आरम्भ।
यह तो सभी ने कहा। कुण्डलनी पर कबीर ने बहुत लिखा है।
जैसे
काहे नलिनी तू कुम्हालानी, तेरे नाल सरोवर पानी।
अष्ट कमल का चरखा बनाया, पांच तत्व की पूनी।
नौ दस माह बुनन में लागे।
मूरख मैली कीन्ही। चदरिया भीनी रे भीनी।
जब क्रिया होना बंद हो जाये। मन निर्विकार हो जाये।
धज्जियाँ का मतलब कुछ भोले भाले लोगो को मूर्ख बना लिया। आम जनता को कुछ पता नही उनको बरगला लिया। अंधो में काने राजा बनकर।
सनातन ने जो दिया वह तुम नही समझ सकते। ओशो जैसे पापियों को तथा सभी धर्मों को समझने की ताकत दी।
आपको क्या लगता है कोई सामान्य व्यक्ति बिना सनातन अनुभव के किसी सन्त को परख सकता है व्याख्या कर सकता है। मित्र पूवाग्रह से बाहर निकलो। तुम नही समझ सकते कि ओशो ने भी ऐसा क्यो किया था। मेरे पास व्याख्या भी है प्रमाण भी है।
मानो मत किसी को जानो। अनुभव करो तब समझ मे आयेगा। सत्य क्या है।
आपको क्या लगता है। जीवन के 58 वर्ष बीतने के बाद एक वैज्ञानिक को इंजीनियर को क्या पड़ी है जो ओशो की मीमांसा करे। कोई भी विराट कारण होगा। एक कवि अपनी शोहरत और दौलत को दांव पर लगाकर सनातन के द्वारा धर्मो को परखे और सन्तो को जाने। कोई तो ठोस करण होगा। इस विज्ञान के परे।
सत्य है पर एक बात तय है बिना प्रणायाम के आप सूक्ष्म शरीर की यात्रा नही कर सकते। नासिका का खुला होना। नासिका नली का अवरूद्ध होना मौत को दावत दी सकता है।
गुरु प्रददत साधन आसन पर बैठ कर शक्ति और गुरु को प्रणाम कर। आप क्रिया योग से मन्त्र जप करे। केवल एक हफ्ता बहुत है। बस क्रिया एक बार में 22 बार से अधिक न करे।
सर्व प्रथम गणेश को प्रणाम। फिर इष्ट को। फिर शक्ति को। फिर गुरु नमन ।करे।
तो क्या क्रिया का होना पाप पुण्य पर निर्भर करता है सरजी?
नही संस्कारो पर।
संस्कार क्या होते हैं सर जी?
क्या जो पाप या पुण्य किया जाता है उनका चित्त पर गहरा असर पड़ना संस्कार कहलाते हैं?
जी।
धन्यवाद विपुल सर
*वैदिक हिलींग उपचार*
*ध्यान प्रक्रिया*
रात के समय या फिर ब्रम्हमुहूर्त में जब बाताबरण शान्त हो तब एक आसान पे बैठ जाएं या फिर सीधे लेट जाएं (सवासन) । अपने शरीर को पूरा हल्का छोड़ दें और ढीला कर दें । इस दौरान हल्का भोजन करें ज्यादा भारी भोजन करने के बाद ये क्रिया करने से उल्टी आ सकती है ।
अब अपनी स्वास की गति पे ध्यान करें कि स्वांस कैसे अंदर जा रही है और फिर बाहर निकल रही है । इस दौरान महसूस करें कि अपने नाक के जरिये स्वांस अंदर जा कर फेडों तक पहुंच रही है और फिर फेपडों से होकर नाक के माध्यम से बाहर निकल रही है ।
ध्यान रखें कोई भी मंत्र का जाप नही करना है इस दौरान । शिर्फ़ स्वांस की गति पे ध्यान केंद्रित करे और सब कुछ भुल जाएं कोई चिंता नही कोई तनाब नही ।
इस दौरान आप महसूश करोगे की स्वांस की गति धीमी हो रही है और लंबा चल रहा है यानी कि गहरा स्वांस लेना और छोड़ना अपने आप होगा बिना किसी दवाब के । ये अपने आप होगा शारीरिक प्रक्रिया ।
अब इसी के ऊपर ध्यान करते रहें धीरे धीरे आपको अपने दिल की धड़कन सुनाई देगी अपने कानों में । इसको सुनते रहें 5 से 10 मिनट तक । जब साफ साफ सुनाई देने लगे तो एक धड़कन के साथ ये महशुस करें कि दिल से *नमः शिवाय* की धुन निकल रही है *होठों से नही* मुँह होठ जुबान सब कुछ अपने जगह शांत होगा कोई हलचल नही होगी ये सब में ।
हर धड़कन के साथ *नमः शिवाय* की आवाज़ निकलेगी । समय के साथ आपको दिल की धड़कन की जगह शिर्फ़ और शिर्फ़ यही सुनाई देगा ।
इस बात पे गौर करें कि ये नमः शिवाय की धुन अपनी दिल की आवाज़ है ।
यही है ध्यान और समाधि । इसके दौरान नींद भी लग सकती है तो कोई दिक्कत नही, सोजाएं । ये क्रिया ज्यादातर रात में bed पर करना सही रहता है ।
जब आप लोग ये क्रिया करोगे तो एक हफ्ते के अंदर बहत कुछ बदलाब होने लगेगा । काफी सारे सपने आने शुरू हो जाएंगे । और इसके साथ आप एक साधक की श्रेणी से उठ कर ये योगी के श्रेणी में प्रवेश कर जायेगें ।
योगीक जीवन का सफ़र शुरू हो जाएगा । अपने अंदर शिव तत्व घटित होने लगेगा और दिन भर एक अद्भुत ऊर्जा की महसूश होगी ।
जैसे जैसे अभ्यास बढ़ती जाएगी फिर अपने अंदर की चक्रों का दर्शन भी होना चालू हो जाएगा । और इसके साथ अपने अंदर शिव का निराकार स्वरूप ( एक काफी ऊर्जा बान ज्योति के दर्शन भी होंगे ये आपकी आत्मा है या फिर आत्म ज्योति कहें ) ये सारी उन्ही की कृपा है बाबा नीलकंठ चन्द्रचूड़ की महिमा है ।
ये क्रिया ज्यादा मात्रा में करने से साधक को ये महसूश होगा जैसे कि वो हर पल एक नशे में हो और ये नशा उसके चेहरे से साफ झलकेगी । यही है शिव तत्व की नशा और शिव की नशा । लेकिन ध्यान रखें जितना जितना आप शिव की और अग्रसर होते जाएंगे
उतना ही वैराग्य की भावना अघोर की में बहते जाएंगे वैराग्य क्या है अघोर क्या है इसका आभास आप महसूस करेंगे
शिव ॐ
भाई कुछ भी मत लिखो। ध्यान है यह समाधि नही। यह विशपश्यना या श्वासोश्वास विधि है लेट कर। कृपया अधकचरा ज्ञान न दे।
योग पर लिखा लेख पढ़ने का कष्ट करें।
मित्रो ग्रुप फिर बहक रहा है। मेरा एक निवेदन और ग्रुप का नियम है।
1. यथासम्भव अपने अनुभव पर आधारित बात चीत करे।
2 कट पेस्ट बिल्कुल न करे।
3 किसी धर्म विशेष पर व्यंग्य न करे।
4 लम्बे लेखों का url पोस्ट कर दे। लम्बे लेख शायद ही कोई पढ़ता होगा।
5 जब तक मालूम न हो किसी अनुभव का निष्कर्ष न निकाले।
ये ध्यान करने की एक विधि है। इसे समाधि नही कहा जा सकता।
यह पोस्ट करना मजबूरी है।
सही बात है। मन्दिरो में पैसो की लूट और अनाप शनाप चढ़ावा देखकर लोगो की श्रद्धा कम हो जाती है।
अब आप देखे mmstm जैसी पद्दति जिसमे कोई पैसा खर्च नही। कही जाना नही। सिर्फ घर पर करो। इसके शक्ति का अनुभव होता है। पर लोग वह भी नही करना चाहते।
बस बटन दबाया समाधि योग और ईश मिल जाये।
कुछ करनी कुछ कर्मगत कुछ पूर्व जन्म के पाप।
क्या पोस्ट करने की इतनी चाहत है कि दूसरे का माल अपने नाम से डालोगे। बेहतर है हेडिंग लिखकर लिंक दे दिया करो।
नही दूसरे का माल अपने नाम से डालने की जरूरत नही है और न ही पोस्ट डालने इतनी अधिक चाहत। मुझे ये किसी दूसरे ग्रुप मे मिला था और मैने पढ़ा और मुझे अच्छा लगा इसलिए यहाँ पर भी दे दिया।
नेट से नही लिया , नही तो लिंक ही दे देता सरजी
क्या है यदि कट पेस्ट की अनुमति दी तो किन किन को रोक पायेगे। सभी अपनी भड़ास निकालेंगे। अतः यह रुकावट आवश्यक है। दूसरे ग्रुप में पोस्ट करे।
सर ये सल्लेखना समाधी (जैन धर्म) क्या होती है
यही मै भी जानना चाहता हू।
जैन मुनि तरुण सागर अपने गुरू की अनुमति से सल्लेखना समाधि ले रहे हैं।
जो संथारा नही सीधे सीधे चिर समाधि हो।
सभी से विनम्र निवेदन है कि भगवान श्री कृष्ण के बारे में उल्टे सीधे मेसेज और कोई भी गलत फोटो पोस्ट कर के भगवान का अपमान न करे l
अगर किसी का ऐसा मेसेज आये तो भेजने- वालेसे अपना विरोध भी जताये और उसको फोरवर्ड भी ना करे।
ये बात सभी ग्रुप में डाले और भगवान का सम्मान करें !!
*जय श्री कृष्ण*
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। अथवा मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
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