कुछ ज्ञान चर्चा : कुछ समझे क्या
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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*एक वार्तालाप -*
*प्रश्न:* सभी बड़ी और महत्वपूर्ण साधनाओं का मुझे ज्ञान है और मैं रोज साधना करता भी हूँ । पर फिर भी जीवन मे कुछ कमी है क्यों? सबके सामने तो खुश हूं पर दिल मे अंदर कुछ तृष्णा अभी भी है क्यों ? मैं भी कई सिद्धियां हासिल करना चाहता हूँ । में सभी शिविर भी करता हूँ । और भी बहुत कुछ करता हूँ पर कहाँ कमी रह गयी ? क्या गलत किया ? और क्या करूँ ?
* "अच्छा आप बहुत बड़े लेवल के साधक हो?"*
हाँ जी सबसे बड़े लेवल की साधना सीख ली है मैने ।
*-"बहुत सारे शिविर भी किये ?"*
*हाँ जी A category में बिल्कुल आगे बैठ कर करता हूँ ।*
*-"सिद्धियाँ भी आ गयी होगी कुछ?"*
वो तो सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता हूँ कि मुझे सिद्धि मिल गयी पर ईमानदारी से कहूं तो कुछ नही है
*-"साधना करते हो तो कई बड़े बड़े अनुभव भी हुए होंगे आपको?"*
सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता हूँ कि मुझे कोई अनोखा अनुभव हुआ पर ईमानदारी से कहूं तो शायद कुछ नही है । कृपया बताएं क्या कमी है ? लेवल 5 या 6 सीख लूं तो ज्यादा सिद्धि मिलेगी ?
*-"हा हा हा, अच्छा क्योंकि लेवल 6, लेवल 2 से ज्यादा बेहतर है ना ? सही कहा ना जी ?"*
क्यों जी, नही है क्या? बाहर सभी लोग तो यही मानते है ।
*अनुभवी साधक -*"अब ध्यान से सुनिए प्रिय मित्र - आप के प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है -
*(1) मैं यह नही मान सकता कि साधना की पर कुछ असर नही हुआ । हाँ ये मान सकता हूँ कि जो असर हुआ वो आपको दिखा नही । या फिर साधना सच्चे तरीके से नही हो रही बस दिखावा हो रहा है ।*
*(2) ये बडा ही स्पष्ट है कि हर बार साधना के साथ आप का अहंकार बढ़ता जा रहा है , जैसे कि आप किसी प्रतियोगिता में शामिल हैं । हर बार जो भी करते हो साथ मे अपना अहंकार और बढ़ा लेते हो कि आप कोई बड़े योगी सिद्ध हो गए*
*(3) दूसरे लोगो को नीची दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है । तुमने साधना और शिविर को प्रतियोगिता बना लिया है और हर चीज में अहंकार बढ़ता ही जा रहा है ।*
*(4) जितना अहंकार बढ़ता जाएगा उतना तुम गुरु से और भगवान से बहुत दूर होते जाओगे। जितना सिद्धि के पीछे भागोगे उतना भगवान से दूर जा रहे हो ।*
*(5) क्या करोगे सिद्धि का? दूसरों पे रौब दिखाओगे? जैसे अभी अपने बड़े साधक होने का रौब दिखाते हो?*
*(6) हज़ार बार गुरु जी कहते हैं, गुरु के भौतिक शरीर के पीछे मत भागो । इस अहंकार को और मत बढ़ाओ । प्रतियोगिता नही करो । क्या कभी गुरु की बातें ध्यान से सुनते भी हो ?*
*(7) जीवन मे सरलता लाओ । जितना सरल और निच्छल रहोगे उतना साधना सफल होगी । अहंकार और प्रतियोगिता नही है तुम्हारा उद्देश्य । सेवा करो । प्रेम करो ।*
*(8) खुद को शिष्य कहते हो तो गुरु की प्रतिष्ठा का ध्यान रखो, गुरु ने कभी नही कहा कि मूर्ख अहंकारी बन के दुसरो पे रौब दिखाओ । क्या ये प्रतियोगिता करना गुरु ने सिखाया है ?*
*(9) जब गुरु कहते हैं कि उच्च लेवल की साधना करवाऊंगा तो उसका मतलब ये नही कि पुरानी साधना कोई कम थी । उसका अर्थ ये होता है कि अब तुमको और अधिक मेहनत करनी होगी और सरल और निच्छल साधक बनना होगा और शुद्धि लानी होगी । कोई साधना किसी से कम या ज्यादा नही होती । जो तुमको सिखाया है उसी को सच्चे दिल से रोज करो । पर तुम ने हर चीज को अपना अहंकार की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है । एकदम उल्टी दिशा में जा रहे हो ।*
*(10) हाँथ जोड़ के प्रार्थना करता हूँ गुरु का नाम और साधनाओं को बदनाम नही करना । अहंकारी मत बन जाना, प्रतियोगिता और रौब नही दिखाना । किसी सच्चे का दिल ना दुखाना । तुम सरल बनो । निच्छल प्रेमी बनो । सेवक बनो । सच्चे साधक बनो । एक शब्द राम नाम भी सरल सच्चे मन से जप ले, पार हो जाएगा ।*
*और ये वचन सुन कर जो बुरा लगे तो मुझे माफ करना पर ये समझ लेना, मित्र आपके अंदर छुपे उस अहंकार को चोट लगी है, पर जब वो हटेगा तो ही आप की सही मायनों में मुक्ति होगी ।*
*गुरु या आपका अहंकार - किसी एक को चुन लो , दोनो में से कोई एक ही आपके जीवन मे रह सकता है ।*
*जो गुरु सिखाता है उसको ध्यान से समझो । निष्काम सेवा, साधना, निश्छलता, प्रेम और सरलता को जीवन मे लाओ । ये बखान करना बंद करो और शांत मन से सच्चा कर्म करो ।*
*और जब तक सच्चे साधक न बनो तब तक उनको अपना गुरु ना कहना । क्योंकि गुरु किसी को कभी नही सिखाता ये अहंकार, प्रतियोगिता और अराजकता ।*
पहले आप मोबाइल को पत्थर से कूट कर तोड़कर कचरे में फेंके। फिर जो बोला था वह करे।
जिनको लगता है कि साधना नही हो रही है। मोबाइल से दूर रहना सीखे।
मोबाइल हमारे व्यक्तिव मानवता की हत्यारी है।
मोबाइल मानवता हत्यारी
तन मन धन सब इस पर वारी।।
प्रभु प्राप्ति में करता देरी
चौरासी में करता फेरी।।
कलियुग का ये शस्त्र प्रबल है
हमरा ध्येय इससे निर्बल है।।
एक उत्तर फेस बुक पर। जो मैंने दिया।
अहम ब्रम्हास्मि एक अनुभूति है। जो हमें ब्रह्म होने का अनुभव कराती है। हमें हमारा वास्तविक स्वरूप जो प्रभु ने निर्मित किया था उसका अनुभव कराती है।
जब यह अनुभूति होती है। उस समय हमारे मन बुद्धि अहंकार सहित हमारे आकाश तत्व की सभी विमायें पूरे होशोहवास में रहती है पर सब ही तरफ यह महसूस होता है कि हम ही ब्रह्म हैं। जैसे मन बुद्धि एक तरह से जड़ हो कर सिर्फ ब्रह्म के भाव मे आ जाती है।
मुख से स्वतः वह शब्द जो कभी पढ़े होंगे। अहम शिव अहम दुर्गा अहम सृष्टि अहम सूर्य इत्यादि निकलने लगते है। यदि हम शिव की अनुभूति तो हाथ मे ऐसा लगेगा जैसे त्रिशूल आ गया हो। उस वक्त ऐसा लगता है जैसे हम ही सब कुछ है।
यह आवेग कुछ मिनटों तक चलता रहता है।
शरीर के अंदर ऐसा लगता है जैसे कोई घुस गया और मैं शक्तिशाली हो गया होऊँ।
पर मैं इस अवस्था को सिर्फ एक क्रिया ही मानता हूँ। अपने मन में ब्रह्म होने का विचार बाद में अहंकार बढ़ा देता है।
फिर ईश वह जिसके अधीन माया।
मानव वो जो माया के अधीन।।
इस अनुभूति में भी हम माया के अधीन ही रहते है। अतः मेरी निगाह में यह मात्र एक सर्वोच्च क्रिया है। इसके आगे कुछ नही।
जय गुरुदेव। जय महाकाली। जय महाकाल।
मेरे शब्दों में द्वैत से अद्वैत की भावना का अनुभव करना ही अहम ब्रम्हास्मि है।
यही भावना है। चित्र देखो फिर आंख बंद कर देखने का प्रयास।
और कुछ न हो मत करो सिर्फ मन्त्र जप करो।
नेट पर टाइप करें स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज।
http://freedhyan.blogspot.com/2018/06/blog-post.html
सदस्यों से अनुरोध है कि लेख पढ़कर अपने भरमो का निवारण करे। सत्य से परिचित हो। अपनी टिप्पणी भी दे। ताकि सुधार हो सके।
धन्यवाद।
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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। अथवा मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
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