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Sunday, April 1, 2018

मन्त्र जप की अवस्थायें

मन्त्र जप की अवस्थायें
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

                      मन्त्र जप की पहली अवस्था होती है वैखरी। जिसमे जापक को मुख से बोलना पड़ता है आवाज के साथ। वास्तव में यह अवस्था कई मायनों में श्रेष्ठ भी कही गई है। यद्यपि प्रारम्भिक जापक को मन एकाग्र करने हेतु यही करनी पड़ती है। किंतु विशेष अनुष्ठान हेतु इसी में मन्त्र जप करना पड़ता है। कारण वैज्ञानिक है। वैखरी में उच्चारण के कारण वायु पर हार्मोनिक पाइप प्रभाव अधिक पड़ता है। जिसके कारण हमारे शरीर के चक्रो के अतिरिक्त वायुमण्डल में भी विशेष पी तरंगे पैदा होती है। जो प्रभाव को बढ़ा देती है। अतः वैखरी जाप की महत्ता कम नही होती। दूसरी बात यह मस्तिष्क में कम्पन पैदा करती रहती है जिसके कारण नींद नही आती है। 

             दिव्तीय अवस्था जब जापक कुछ परिपक्व हो जाता है तो मध्यमा अवस्था होती है। जिसमे जापक के मुख से आवाज नही निकलती केवल होठ हिलते है। यह इसलिए होता है क्योकि जापक को मन्त्र जप का कुछ अभ्यास होने लगता है। 

                  तृतीय अवस्था मे जापक के सोंचते ही मस्तिष्क में मन मे जाप आरम्भ हो जाता है जिसे पश्यन्ति कहते है। पश्य यानी देखना मतलब सोंचा और जाप चालू। यह अवस्था मानसिक होती है। जिसमे वाहीक ध्वनि का सवाल ही नही। यह अवस्था वास्तव में ध्यान जप की होती है। 
                                                       

                वास्तव में यदि आप अनुष्ठान जप नही कर रहे है तो यह ध्यान जप ध्यान में सहायक होता है। यदि आप ध्यान करते करते सो जाते है तो निद्रा को ध्यान निद्रा या योग निद्रा की श्रेणी मिल जाती है। अतः जब हल्की नींद का प्रभाव हो तो मन शांत होता है। आप तब ध्यान में बैठे पश्यंती में जाप करे। जाप करते करते सो जाएं। मन्त्र भी छूट जाता है और कभी कभी तुरीय अवस्था मे पहुचते है। जो कुछ नए अनुभव ज्ञान दे सकती है।
                                                        

                 इसके बाद की अवस्था परा पश्यंती      मन्त्र जप की पहली अवस्था होती है वैखरी। जिसमे जापक को मुख से बोलना पड़ता है आवाज के साथ। वास्तव में यह अवस्था कई मायनों में श्रेष्ठ भी कही गई है। यद्यपि प्रारम्भिक जापक को मन एकाग्र करने हेतु यही करनी पड़ती है। किंतु विशेष अनुष्ठान हेतु इसी में मन्त्र जप करना पड़ता है। कारण वैज्ञानिक है। वैखरी में उच्चारण के कारण वायु पर हार्मोनिक पाइप प्रभाव अधिक पड़ता है। जिसके कारण हमारे शरीर के चक्रो के अतिरिक्त वायुमण्डल में भी विशेष पी तरंगे पैदा होती है। जो प्रभाव को बढ़ा देती है। अतः वैखरी जाप की महत्ता कम नही होती। दूसरी बात यह मस्तिष्क में कम्पन पैदा करती रहती है जिसके कारण नींद नही आती है। 


इसके आगे यदि आप अपनी हथिलियो में मन्त्र जप करते हुए किसी रोगी के शरीर पर हथेली रख दे। उसका कम्पन अपने से मिलकर एक कर दे। तो आप अपने मन्त्र जप से रोगी को स्वस्थ कर सकते है।  पर रोगी कितना स्वस्थ्य होगा यह आपके मन्त्र पर निर्भर होगा।
                                                         
इसके आगे भी आप मन्त्र जप बिना किसी भाव के करते रहो। तो हो सकता एक दिन आप देहभान खो बैठो और आप को अचानक आपका इष्ट सामने दिखाई दे जाए। आपकी कुण्डलनी स्वतः जग जाए और आपका जीवन बदल जाये।
जय गुरुदेव। जय माँ शक्ति।

जब आप सोंचते ही शरीर के किसी भी अंग से जाप कर सकते है। इस अवस्था मे आप किसी चक्र पर ध्यान केंद्रित कर जाप के साथ चक्र को कम्पन तरंग भी भेज सकते है। समूचे शरीर को एक साथ मन्त्र के साथ या श्वास के साथ संकुचित और फैलते हुए महसूस कर सकते है। अपने ब्रह्म संरंध्र यानी तालु के नीचे ऊपर नीचे होता हुआ भी महसूस कर सकते है।
यह अवस्था मन्त्र जप की अंतिम अवस्था है।

                                                        

                                                         

              

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