Search This Blog

Thursday, April 19, 2018

क्या है सचल मन वैज्ञानिक ध्यान : प्रस्तावना




ध्यान की आधुनिक वैज्ञानिक विधियां

सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधियां (समवैध्यावि)

Movable Mind Scientific Techniques for  Meditation- MMSTM
प्रस्तावना

आधुनिक समय की आपाधापी को देखते हुये यह आवश्यक है कि ध्यान की किसी ऐसी विधि को विकसित किया जाये जिसे आप अपने घर पर ही कर सकें और साथ ही आपको अपनी पूजा पद्ध्ति को बदलना भी न पडे। गुरू के लिये कहीं भटकना न पडे। कहीं धन भी व्यय न हो और साथ ही साथ ईश शक्ति का भी अनुभव हो। आनंद की प्राप्ति हो। हमें अनुभव हो सके हम क्या हैं।



सचल मन वैज्ञानिक ध्यान इसी प्रकार की एक विकसित सनातन प्रणाली है। जिसमें आप अपनी ही पूजा प्रणाली में थोडा बदलाव कर ईश शक्ति का अनुभव करेगें। यह मेरा दावा है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।



हां यदि आप यह करते हैं तो कुछ तो शुल्क देना होगा तब ही जल्दी फलित होगा) । तो आप दक्षिना स्वरुप किसी गरीब की सहायता कर दे। किसी बालक को पढने हेतु साम्रगी दे दे। गौ को गरीब को भोजन करा दे। मंदिर में मिठाई भोजन बांट दे। प्याउ खोल दें। किसी सनातन प्रचारक साधु संत को कुछ देदे। पर किसी हट्टे कट्टे धर्म के ठेकेदार को न दें। 


मित्रों इस विधि में आप मंत्र जप और शरीर के विभिन्न अंगों का साथ लेकर ध्यान की गहरी अवस्था में जा सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य के ध्यान की विधि अलग अलग उसके कर्म के हिसाब से होगी। कुछ की कुंडलनी भी जागृत हो सकती है। कुछ विशेष भयानक अनुभव भी हो सकते हैं। पर आप डरें मत। हर समस्या का समाधान होगा। हर हाल में आपकी धार्मिकता बढेगी। यह विधियां हर जाति धर्म समुदाय चाहे मुस्लिम हो ईसाई हो जैन हो बौद्द हो कोई भी हो सबके लिये कारगर है। जो जिस धर्म का होगा उसको उसी के धर्म के हिसाब से ध्यान बताया जायेगा।



यह सत्य है कलियुग में ईश प्राप्ति बेहद आसान है। पर इतनी आसान भी नहीं कि किसी के पिता की सम्पत्ति कि जैसे चाहो बेच दो। एक साधारण से ध्यान को, जिसमें प्रभु समर्पण बेहद आवश्यक है, उसको नये नये नाम देकर कहीं त्राटक तो कहीं विपश्यना, तो कहीं शब्द योग, नाद योग, राजयोग पता नहीं किन किन नामों से बडी बडी दुकानें चल रहीं हैं। मेरा उनसे निवेदन है कि धन सम्पत्ति सब प्रभु ऐसे ही दे देता है। श्रेष्ठ सनातन का प्रचार करो। श्रीमदभग्वदगीता को जन जन तक कल्यान के लिये पहुचाओ। वेद वाणी बिना स्वार्थ के प्रसारित करो। ईश का अनुभव बिना शुल्क बिना गुरु बने कराओ। पाप के भागीदार मत बनों। आंखें खोलो जाग जाओ। 


मैं गुरु नहीं हूं और न अपने को कहलाना पसंद करुंगा। मैं दास हूं प्रभु का वोही कहलाना पसंद करुंगा। जैसे प्रभुदास, देवीदास, सर, विपुल जी या विपुल भी चलेगा। 



यह विधियां  पूर्ण वैज्ञानिक है जिसमें आपकी एकाग्रता, शारीरिक क्षमता क्षमता, इंद्रियो की तीव्रता, आपकी सोंच और विचार, मनोविज्ञान और विश्वास की नींव सहायक होती है। आपकी सकारात्मक सोंच परिणाम का समय कम करती है।



 
आज बडी बडी फीस लेकर और नकली गुरुओ की दुकानें प्राय: भोली जनता को भ्रमित कर देते हैं। कहीं ब्र्ह्म विद्या की कहीं कुंडलनी की कहीं सिद्दी की तमाम दुकानें खुली हुई हैं। पैसे दो ज्ञान लो। यह सत्य है कलियुग में ईश प्राप्ति बेहद आसान है। पर इतनी आसान भी नहीं कि किसी के पिता की सम्पत्ति कि जैसे चाहो बेच दो। एक साधारण से ध्यान को, जिसमें प्रभु समर्पण बेहद आवश्यक है, उसको नये नये नाम देकर कहीं त्राटक तो कहीं विपश्यना, तो कहीं शब्द योग, नाद योग, राजयोग पता नहीं किन किन नामों से बडी बडी दुकानें चल रहीं है। जो पैसा जन सेवा में लगना चाहिये उसको प्रचार में लगा कर अपनी दुकान चमकाने की होड लगी है। अनुभव जरा सा हुआ कि दुकान सजा ली बिना परम्परा के गुरु बन बैठे। आज मेरे 1 करोड,  मेरे 50 लाख दुनिया में अनुयायी हैं। बस इसी बात का गर्व। इन नकली अनुभवहीन दुकानदारों से पूछो कि अहम ब्रम्हास्मि या एकोअहम द्वितियोनास्ति या सोहम अनुभूति में क्या होता है तो सब के सब बगलें झाकेंगे। चलो देव दर्शन की अनुभुति कैसे होती है तो मुंह चुरायेगे। यह पापी जानते नहीं कि जब योग होता है तो कैसा लगता है तो किताबों में देखेंगे। इन दुष्टों से पूछो चलो किसी चेले को आगे क्या होगा तो भाग ही जायेंगे या हरि ओम बोलकर कन्नी काट लेंगें। जगत गुरु, जगतमाता, अखंडमंडलाकार, योगीराज जैसे नामपट्ट वाले ढोग़ी पहले खुद जाने कि ब्रह्म क्या है। जिस दिन जान लेंगे उस दिन यह नामपट्ट हटा लेंगें। पर इनको न जानना है न इसकी इच्छा है। इनको तो भगवान के नाम पर दुकान चलाकर शोहरत पैसा और भोग चाहिये। भले ही बाद में नरक भोंगे। ओशो की तरह प्रेत योनि में भटके पर अभी तो मजा ले ले। 

अरे मूर्खों सरल बनो भोली भाली जनता को ठगो मत। धन सम्पत्ति सब प्रभु ऐसे ही दे देता है। दुष्टो श्रेष्ठ सनातन का प्रचार करो। श्रीमदभग्वदगीता को जन जन तक कल्यान के लिये पहुचाओ। वेद वाणी बिना स्वार्थ के प्रसारित करो। ईश का अनुभव बिना शुल्क बिना गुरु बने कराओ। रे पगलों पाप के भागीदार मत बनों। आंखें खोलो जाग जाओ। 

सभी विधियां  आपको नीचे दिये लिंक  में  मिल  जाये। 
Freedhyan.blogspot.com

                     

बी.एस.सी, बी. टेक., एम. टेक. (रसा.प्रौ.) एच. बी. टी. आई, कानपुर

शक्तिपात दीक्षा : मां काली (मार्च, 1993)

शरीरी गुरू: स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज( दिसम्बर, 1993)  

व स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज (फरवरी, 1994)

प्रकाशन : 3 भक्ति, 6 काव्य संग्रह, 500 से अधिक वैज्ञानिक आध्यात्मिक, लेख

सम्पादक : 50 वर्षों से प्रकाशित, वैज्ञानिक त्रैमासिक पत्रिका “वैज्ञानिक”  

सम्पर्क : vipkavi@gmail.com, वेब : vipkavi.info, मो. 9969680093  



 जय गुरूदेव जय महाकाली 






1 comment:

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...