दान कुदान या सद दान
मेरे पास किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया जो बोला विपुल जी मैं फेस बुक
पर आपकी हर पोस्ट को संभाल कर रखता हूं। मैंनें पैसा तो कमा लिया पर न विवाह किया न
कोई परिवार मैं 65 का हो गया हूं। अब सोंचता हूं कि इस पैसे का क्या करूं। कभी कभी
गोवा जाकर कैसीनो में दांव लगाता हूं पर वहां भी जीतता अधिक हूं हारता कम। अब मैं दुनियादारी
से दूर भागना चाहता हूं एक धार्मिक संस्था को कई करोड दिये पर वहां जो देखा तो
मुझे सब चोर दिखते हैं। आप वैज्ञानिक हैं आप बतायें मैं क्या दान पुन्य करूं। क्या
आपको कुछ पैसा दूं।
अब यह फोन हमारी परीक्षा था या सही या गलत पर मैंने जो सोंचा वह आपके
सामने हैं।
महाकवि कालिदास ने कहा है। “अदानं हि विसर्गाय सताँ
वारिमुचामिव।” “जैसे बादल पृथ्वी पर से जल लेकर फिर पृथ्वी पर
ही वर्षा देते हैं, उसी तरह सज्जन जिस वस्तु का ग्रहण करते
हैं, उसका त्याग भी कर देते हैं।” अर्थात दान कर देते हैं
यानी इस धरती से इस देह जो भी प्राप्त होता है उसको जगत में ही देकर चले जाते हैं।
महृऋषि दधीची का दान तो सब जानते है कि जगत के कल्याण हेतु अपना शरीर तक त्याग
दिया ताकि उनकी मेरुदंड ब्रह्मास्त्र बनकर दैत्यों का संहार कर सके।
गीताकार
ने दान की व्याख्या करते हुए कहा है
दातव्यति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे कालेच पात्रे च तद्दानं
सात्विकं स्मृतं॥ यत्ततु प्रत्युपकारार्थं फलर्मुाद्दश्य वा पुनः। दीयते च
परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्॥ अदेशेकाले यद्दानमात्रेभ्यश्च दीयते। असत्कृतमवज्ञातं
तत्तामसमुदाहृतम्॥
“दान
देना मनुष्य का कर्तव्य है, ऐसा जानकर बिना बदले की भावना से
देश, काल, पात्र का ध्यान रखकर जो दान
दिया जाता है वह सात्विक दान है।”
क्लेश
पाकर या बदले की भावना से किसी कामना पूर्ति के लिये दिया जाने वाला राजसिक दान
है। जो
दान बिना सत्कार के, देश-काल-पात्र का ध्यान रखे बिना, उपेक्षा या तिरस्कार के साथ दिया जाता है, वह तामसिक
दान है।
वैसे कहा गया है कि “ विद्याधनं सर्व धन प्रधानं। विद्या का दान सभी
प्रकार के दानों में सर्वश्रेष्ठ है। इस बात को सनातन में कितने ही प्रकार से
समझाया गया है। अत: सनातन के मार्ग पर चलनेवाला अपने ज्ञान का मस्तिष्क का विस्तार
कर लेता है पर वही मात्र एक पुस्तक पर आधारित विश्व के अन्य धर्म आदमी की सोंच को
और मानवता को सीमित करने की शिक्षा देते हैं।
अब विद्यादान श्रेष्ठ क्यों
" विद्या ददाति विनयम विनयात पात्रताम,
पात्रतात धनमाप्नोती धनात धर्म ततः सुखम। अर्थात
विद्या के विनम्रता प्राप्त होती है विनम्रता से
योग्यता प्राप्त होती है योग्यता से धन और धन से धर्म तत्पश्चात सुख प्राप्त होता
है!
अन्न
दानं महादानं विद्या दानं ततः परम। अन्नेन क्षुधा त्रिप्तिर याज्जिवं त विद्यया॥ यानी
अन्न
का दान महादान है पर विद्या दान उससे भी श्रेष्ठ क्योकि अन्न से केवल भूख मिटती है
पर विद्या से जीवन भर की भूख।
दूसरे अन्न दान याचक को कर्महीन और आलसी भी बना सकता है। “घर बैठे
मिले खाने को तो ठेंगा जाये कमाने को”। यह कहावत भी चरितार्थ हो सकती है।
आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में “दान के मायने फेंकना नहीं वरन्
बोना है।” समाज के धरातल पर दान एक प्रकार की खेती है। जो दिया जाता है, वह परिपक्व होकर समाज की उन्नति, कल्याण, विकास में सहायक होना चाहिए। दान से समाज का शरीर पुष्ट होना चाहिए,
तभी वह दान है। अन्यथा दान के नाम पर अपने धन, सम्पत्ति साधनों को नष्ट करना है, व्यर्थ गँवाना है।
अत: ज्ञान-दान में लीन, विद्वान, परोपकार
में लीन, कर्मवीर, ज्ञानवृद्धि में सहायक
तत्वज्ञानी, अनेकों जन-सेवकों के अभावों की पूर्ति करना समाज
को ही भोजन देना है। इन परमार्थकारियों को दिया गया दान जैसे खेत में बोये गए बीज
की तरह कई गुना होकर समाज को वापिस ही मिल जाता है।
आचार्य विनोबा भावे आगे कहते हैं “तगड़े और तन्दुरुस्त आदमी को भीख
देना, दान करना,
अन्याय है। जो दान अनीति और अधर्म को बढ़ाता है, वह दान नहीं वह तो अधर्म ही है।
विवेकशील लोग अनुमान लगा सकते हैं कि इस तरह की अन्धदान प्रवृत्ति के कारण समाज
में बहुत से लोगों ने भीख माँगकर, दान के ऊपर ही गुजारा करने का जन्म सिद्ध अधिकार-सा मान लिया है।
व्यवहारिक क्षेत्र में भी दान के पीछे मुख्यतया तीन भावनायें निहित
होती है। एक दान वह जो श्रद्धा से प्रेरित होकर किसी सामर्थ्यवान यथा-विद्वान, तपस्वी जननेता, देशसेवक, वैज्ञानिक,
कलाकार आदि को दिया जाता
है। इसमें श्रद्धा ही मुख्य होती है। दूसरे प्रकार का दान दया प्रेरित होकर
दीन-हीन सामर्थ्य-विहीन लोगों को दिया जाता है। तीसरे प्रकार का दान अहंकार से
प्रेरित होकर अपनी दानशीलता की ड्योढ़ी पिटवाने के लिये, नाम
यश खरीदने के लिए, किसी लाभ के लिए, बड़ा
बनने के लिए दिया जाता है।
अत: सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन
प्रकार का कहा गया है। जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को
दिया जाता है जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है।
अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से
अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है। अपवित्र स्थान एवं
अनुचित समय में बिना सत्कार के, अवज्ञतार्पूक एवं अयोग्य
व्यक्ति को जो दान दिया जात है वह तामस दान कहा गया है।
दान (जैन दृष्टि से) जैन
ग्रंथों में पात्र, सम और अन्वय के भेद से दान के चार प्रकार
बताए गए हैं। पात्रों को दिया हुआ दान पात्र, दीनदुखियों को
दिया हुआ दान करुणा, सहधार्मिकों को कराया हुआ प्रीतिभोज आदि
सम, तथा अपनी धनसंपत्ति को किसी उत्तराधिकारी को सौंप देने
को अन्वय दान कहा है। दोनों में आहार दान, औषधदान, मुनियों को धार्मिक उपकरणों का दान तथा उनके ठहरने के लिए वसतिदान को
मुख्य बताया गया है। ज्ञानदान और अभयदान को भी श्रेष्ठ दानों में गिना गया है।
मेरी बुद्धी के अनुसार दान की महत्ता इस क्रम में होनी चाहिये
विद्या दान - विद्या देना क्योकि यह समाज का हित करता है। याचक को सामर्थ्य प्रदान
करता है।
भू दान - भूमि
देना क्योकि यह रोजगार देता है।
गो दान - गाय देना क्योकि
यह पर्यावरण प्रदूषण रोकता है। समाज को सवास्थ्य देता है।
अन्न दान - खाना देना
अंग दान - अपने अंगो को किसी के लिये दान कर देना
कन्या दान - कन्या को विवाह के लिए वर को
देना
(श्लोक इत्यादि गूगल से साभार)
हरि ॐ हरि
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
Utam, yahi sarvatha uchit hai. Daan patr dekh kar de, samay dekh kar de. Apko koti koti namaskar vipul ji. Aise gyaan ke jarurat haibsamaj ko... Hare govind, hare govind.
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