मत करना कभी शिवोहम का जप
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब:
vipkavi.info , वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi “bullet"
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
मित्रो कभी शिवोहम का जप मत करना यह बहुत जल्दी भरमित कर देता है। इसका अर्थ
है कि मैं शिव हूं। यानी पहले दिन से आप रट रहे हो मैं शिव हूं। इसी प्रकार कृष्णोअहम, दुर्गाहम
इत्यादि।
यह एक अनुभूति है जो स्वत: होती है, एक निश्चित अवस्था
में पहुंचने के बाद। पातांजलि महाराज के मार्ग पर धारणा धर लो पहले करो कुछ नहीं। अत:
आध्यात्मिक दृष्टि से यह गलत है साथ ही साथ यह मोड़ भरमित करनेवाला होता है।
यदि
आपकी सोंच है पहले से की मैं शिव हूँ मैं भगवान हूँ मैं ओशो हूँ तो यह क्रिया आपकी
भावना को और प्रबल कर आपको पतन की ओर ले जाएगी। कारण आपके अधीन माया तो होती नहीं।
आप कृष्ण की तरह न सूर्य को ढक पाओगे और न जेल का गेट तोड़ पाओगे। अरे एक चीटी तो
मार न पाओगे। रहोगे माया के अधीन। एक आम आदमी की तरह ही। तो काहे के शिव काहे के
भगवान । हा तुम्हारी ऊर्जा जरूर बढ़ जाएगी कि दूसरे को क्रिया करा सको कुछ सीमा तक।
यदि बिना गुरु के हुए तो तुम्हारा यह
ऊर्जा स्तर भी गिरता जाएगा। तुम भरम में ही जियोगे। हो
सकता है एक दिन शक्तिहीन होकर किसी जेल में सडकर मर जाओ।
कारण स्पष्ट है। पात्तनजली ने धारणा ध्यान समाधि की बात की है। जो सत्य भी
है। यदि हम शिवोहम यानी मैं शिव हूँ। इस तरह का जप करेगे तो धारणा वैसी ही बनेगी।
अब जब हम ध्यान में जायेगे तो हम शिव है यही विचार भी जाएगा।
प्रत्येक साधना
में चाहे योग मार्ग में या किसी भी मार्ग में एक ऐसी अवस्था आती है जब आदमी का दिल
दिमाग सोंच सब जकड़ सी जाती है और अहमब्रह्मास्मि की एकोहम द्वेतियोनास्ती सोहम जैसी
भावना अनुभूति या क्रिया जो भी कह लो होती है। अब भ्रमित होकर अपने को भगवान मानो या
दास होकर प्रभु को समर्पित हो जाओ।
यदि
तुमने अपने को प्रभु का दास माना और यह धारणा पनपी तो सामान्य होते ही तुम सोहम की
गर्व क्रिया से बाहर आकर प्रभुलीला समझकर भक्ति में लीन हो जाओगे। तब यह अनुभूति
तुमको हमेशा या अक्सर होती रहेगी पर तुम भरमित न होंगे। बल्कि प्रभु को और समर्पित
होकर ऊपर ही जाओगे। क्योकि तुम्हारे अंदर सोहम का अहंकार नहीं आ पायेगा। और न तुम
सिध्दियों की ओर ध्यान दोगे।
जय गुरुदेव। जय महाकाल।
हरि ॐ हरि
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
Parnam prabhu.
ReplyDelete.
इतना दिव्य ज्ञान आपको कँहा से प्राप्त हुआ
Deleteआप महान हो भेंचो
ReplyDelete