क्या कुंडलनी जागरण से मिलती हैं सिद्दियां
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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मैं अक्सर देखता हूँ
कि चर्चा और पोस्ट में लोग यह समझते है कि कुण्डलनी जागरण तो सीधे सिध्दियां मिली।
मैं उनसे निवेदन करना चाहता हूँ। कि पहले वह कुण्डलनी शक्ति को ठीक से समझे।
मनुष्य के निर्माण के
बाद जो ऊर्जा बचती है वह एक कन्द के मूल में गुदा और योनि के मध्य जिसे मूलाधार
कहते है वहाँ सोई रहती है। जैसे पीपल का बीज कितना छोटा होता है पर उसमें पेड़ के
निर्माण की ऊर्जा समाहित होती है। उसी प्रकार मनुष्य शारीरिक और मानसिक विकास के
साथ यह ऊर्जा खत्म नही होती है। यू यदि देखे तो यह सम्पूर्ण जगत ऊर्जा का ही एक
रूप है। जहाँ सब तरफ ऊर्जा यानी शक्ति भरी पड़ी है। पर चूंकि मनुष्य के पिंजरे में
वह ऊर्जा सोई रहती है अतः मनुष्य महसूस नही कर पाता।
यदि हम इसको अलग करे।
तो ऊर्जा के दो प्रकार एक तो ब्रम्ह शक्ति दूसरी कुण्डलनी शक्ति। पहली वाली
सर्वत्र व्याप्त दूसरी हमारे अंदर। यू समझो जैसे पानी के भरे टब में कुछ पानी भरके
गुब्बारे छोड़ दिये। अब पानी तो गुबारे के अंदर भी है और बाहर भी पर कोई कनेक्शन
नही है।
दोनो में एक ही पानी
पर है अलग अलग। कुछ यही हाल है शक्ति का। यह ब्रह्म शक्ति मन्त्र जप से जागती है।
मनुष्य को अनुभूतियां देती है। एक समय के बाद यह शक्ति इतनी अधिक आंदोलित होती है
कि हमारी कुण्डलनी शक्ति को भी जागृत कर देती है। यह प्रायः जब होता तब मनुष्य को
साकार के देव दर्शन भी जाते है। निराकार की कुछ अनुभूतियाँ पर ज्ञान नही। हो जाता
है।
दैवत कारणों से यह
कुण्डलनी यदि जागकर किसी चक्र के कमलदल में पहुची और कुछ पंखुड़ियों को आंदोलित
किया तो कुछ आणिमाई सिध्दियां स्वतः हाथ लगती है। मूर्ख लोग इन सिद्दियों को पाकर
इन्ही में जुट जाते है। पर समझदार इन पर ध्यान न देकर अपनी भक्ति में लीन होकर
इनको कंकर पत्थर समझकर ध्यान न देकर आगे बढ़ जाते है।
यहाँ ध्यान देनेवाली
बात है कुण्डलनी पर। जो तीन अवस्थाओ को प्राप्त कर सकती है। पहली जग गई पर मुंह
औधाये पड़ी रही निष्क्रिय। दूसरी जग गई सुषुम्ना नाड़ी को छुआ और फिर मुंह उल्टा कर
सो गई। तीसरी सुषुम्ना नाडी में प्रवेश किया।
इन तीनो अवस्थाओ की क्रियाये और अनुभव अलग अलग हो
सकते है।
अब जब तीसरी अवस्था
मे कुण्डलनी सुषुम्ना में चढ़ने लगी तो दो अवस्थाये हो जाती है पहली वह चक्रो के
कमलदल को बीच से भेदे और आगे बढ़ जाये। इस अवस्था मे उस चक्र की क्रिया अनुभव होंगे
पर सिद्दी न मिलेगी। ज्ञान मिलेगा पर चमत्कार नही। पर आपकी साधना के कारण या किसी
अन्य कारण से जैसे आपकी सिद्दी प्राप्ति की धारणा या इच्छा के कारण यह उसी चक्र
में फंस गई और पुष्पदलो को उद्देलित करने लगी तो वह पुष्पदल भी जागृत हो कर आपको
उस चक्र की सिद्दी दे देंगे।
मैं समझता हूँ अब
आप समझे होंगे कि मात्र कुण्डलनी जागरण से सिध्दियां नही मिलती। यह एक अवस्था
है। बाकी आप पर निर्भर है कि आप ज्ञान लेकर ऊपर जाना चाहते हो या समय गंवाकर
सिद्दी प्राप्त करना चाहते हो।
अब बात चक्र साधना कि
चूंकि यह साधना है अतः इसको नमन पर है यह बेकार की वस्तु। क्यो। क्योकि आप इसमें
किसी विशेष चक्र को आंदोलित कर उनके पुष्प दलों को छेड़कर सिद्दी प्राप्त करना
चाहते है जो लंबे समय मे आपको भारी पड़ सकता है। मैंने कही पढा नही है। अपना अनुभव
लिख रहा हूँ। चक्र साधना में हम किसी विशेष चक्र को आंदोलित करते है। वहाँ आवश्यक
नही कि आप कुण्डलनी को जागृत कर रहे है। आप मन्त्र शक्ति से पुष्प दलों के बीज
मंत्र को छेड़ते है। कभी अज्ञान वश हम मूलाधार से आरम्भ न कर किसी ऊपर के चक्र को
आंदोलित कर बैठते है। अब न तो ऊपर के चक्र के और न नीचे के चक्र के पुष्पदल
आंदोलित है। सिर्फ एक विशेष चक्र आंदोलित हो गया यानी उसकी ऊर्जा बढ़ गई। अब निकले
कैसे। ऐसी अवस्था मे वह कोई भयानक रोग उतपन्न कर सकती है।
अतः साधना वही
सर्वश्रेष्ठ जिसमे जैसे शक्तिपात दीक्षा में पहले कुण्डलनी जागी फिर धीरे धीरे ऊपर
नीचे होकर सब ही चक्रो को भेदा उनकी ऊर्जा को सहने लायक बनाया। प्रत्येक चक्र की क्रिया
के माध्यम से संस्कारो को धोया । वहां तक शरीर शुध्द किया ऊर्जा सहने लायक सहज बनाया। फिर कुण्डलनी आगे बढ़ी।
कुण्डलनी जो तीन प्रकार से चलती है और उपर चढती है।
पहला चीटी की भांति। यानी पिपीलिका गति। दूसरी
मर्कट यानी बन्दर की भांति तुरन्त छलांग लगा कर एक चक्र से दूसरे में ऊपर नीचे।
तीसरी पाखी यानी पक्षी की भांति नीचे मूलाधार से उड़ी सीधे सहस्त्रसार पहुची। फिर
मन हुआ फुर्र से नीचे आ गई।
चीटी की चाल धीरे
धीरे पर स्थायी होती है। इसमें शरीर मे अधिक रोग इत्यादि नही होते है। बाकी दो तरह
की गति में किस चक्र में है मालूम नही। अधूरा छोड़कर कहां जाएगी पता नही। अतः कभी
भी कोई रोग प्रकट होगा। गायब होगा। कल कौन सा रोग उपस्थित होगा पता नही।
जो सद्गुरु कुण्डलनी को जगाता है तो शिष्य की
कुण्डलनी शक्ति का छोर गुरु की शक्ति से जुड़ जाता है अतः गुरु पर रोग चले जाने की संभावना हो जाती है क्योंकि गुरु की शक्ति आपसे अधिक है अतः प्रारब्ध गुरु को शक्तिहीन करने
की कोशिश करते है। गुरु शिष्य की क्रिया से समझ जाता है कि शिष्य को किस चक्र में
परेशानी है तो वह अपनी शक्ति से समस्या सुलझा देता है। अब आप समझे होंगे गुरु आप
पर कितना बड़ा एहसान करता है। वह भी सिर्फ गुरु आज्ञा का पालन करने हेतु विवश है
नही तो वह भी मुक्त विचरण करे। क्या जरूरत है सिरदर्द मोल लेने की। मैं भी इसी लिए
आपसे अनुभव और साधना पूछता हूँ ताकि आपको किस अवस्था के गुरु पर भेजने की जरूरत
है। मालूम कर सकू।
अब होता यह है जब
कुण्डलनी सहस्त्रसार में मिलती है। जहाँ 1062 पुष्पदल है। वहाँ वह किस पंखुड़ी को
छेड़ती है वैसी ही समाधि लगती है। समाधि तब ही लगती है जब ब्रह्म शक्ति और कुण्डलनी
शक्ति का मिलन सहस्त्रसार में होता है। यहां 11 प्रकार की समाधि के अनुभव हो सकते
हैं। आठ तो पंखुडियों की परतें , ब्रम्ह और सरस्वती लोक या वेद ज्ञान
लोक, शिव पार्वती सम्वाद लोक यानी ज्ञान लोक फिर रुद्र
काली लोक, जिसके ऊपर निराकार दुर्गा की धुंध और फिर आपके
कपाल की सीमा हड्डियां।
पर आजकल के अज्ञानी
ज्ञानी किसी भी ध्यान को समाधि बोल देते है। अब क्या बोलू। हा भक्तियोग के व्यक्ति
को यह सब योग क्या हो रहा मालूम नही पड़ता पर हो जाता है। पातंजलि महाराज ने समाधि
को योग शास्त्र और वाहीक ब्रह्म शक्ति से समझाया है। जो पांच वाहीक बाते कही। क्या
करे। क्या न करे। त्याग की आदत डालें। आसन ।प्रणायाम। यह अंदर की कुण्डलनी को भी जगा कर सहस्त्रसार में ले जा सकते है।
वही मन्त्र जाप
ब्रह्म शक्ति का जाप करके धारणा ध्यान समाधि तक वाहीक रूप से ले जाता है। अब समाधि एक
तो शरीर के चक्रो को भेदकर पहुचे जो कबीर साहब कहते है । दूसरा तुलसीदास कुछ नही
बोले पर समाधि का दिव्य अनुभव प्राप्त किया। पर दोनों का अंत एक।
महाभारत का युध्द समाप्त
हुआ एक दिन युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण से कहा प्रभु आप वह ज्ञान दे जो आपने अर्जुन को
युध्द भूमि में दिया था। भगवान श्री कृष्ण मुस्कुरा कर बोले है युधिष्ठिर कोई
भी मानव सदैव एक भाव मे नही रहता है। मैं इस समय युध्द के भाववाला वो ज्ञान जो
अर्जुन को दिया था। वह नही दे सकता। मेरा भाव वह नही है। तब युधिष्ठिर ने कुछ और
पूछा जो कृष्ण युधिष्ठिर गीता के नाम से जाना जाता है। यहां शिव पार्वती यानी
ज्ञान लोक में जो भाव जाता है शिव उसी भाव का ज्ञान पार्वती यानी अपनी शक्ति को
देने लगते हैं। शिव और पार्वती के चारो ओर चमदार 64 बिजलियां चमककर घूमती रहती है।
जो शिव की योगिनी है। यदि यह बिजली मनुष्य की बुद्दि पर गिर जाये तो मनुष्य को उस
योगिंनी की सिद्दी मिल जाती है। जो सबसे अलग और शक्तिशाली होती है। मनुष्य की
कुंडलनी किस पंखुडी के दल सदस्यो को छेडती हैं उस प्रकार की सिद्दीयां मिल जाती
हैं।
अत: साधक यह भ्रम न
पालें कि कुंडलनी जाग्रत तो कारु का खजाना मिला। यह सब निरन्तर अभ्यास साधना और स्थिरता
से ही होता है। प्रभु की कृपा और गुरु दया से मिलता है। आप खुद उल्टी सीधी साधना
करके यदि ध्यान समाधि के किसी द्वार में फंस गये तो बिना गुरु के बाहर न आ पाओगे।
न मरोगे न जिओगे। हलांकि यह लाखों में एक को होता है पर यह कहीं आप न हो।
आजकल व्हाट्सअप फेस बुक पर एक योगी की फोटो आती है जो वास्तव में समाधि के द्वार में फंसे हुये हैं न मर पा रहें और न चेतना में आकर जी पा रहें हैं। अब इनको कोई शक्तिशाली कौल गुरु ही अपनी शक्ति से चेतना में ला सकता है।
अत: मित्रों यदि अदीक्षित हो तो जो अच्छा लगे उस इष्ट देव का साकार मंत्र जप करो निरंतर अखंड और जब अनुभुतियां आरम्भ हो जाये तो शक्तिशाली कौल गुरु की प्रार्थना करो। जो तुमको प्रभु कृपा से अवश्य मिलेगा। पर अपने अनुभवों का तनिक भी अहंकार मत करना ये मार्ग में रुकावट बन खडा हो जायेगा और गुरु तो मिलेगा ही नहीं।
आजकल व्हाट्सअप फेस बुक पर एक योगी की फोटो आती है जो वास्तव में समाधि के द्वार में फंसे हुये हैं न मर पा रहें और न चेतना में आकर जी पा रहें हैं। अब इनको कोई शक्तिशाली कौल गुरु ही अपनी शक्ति से चेतना में ला सकता है।
अत: मित्रों यदि अदीक्षित हो तो जो अच्छा लगे उस इष्ट देव का साकार मंत्र जप करो निरंतर अखंड और जब अनुभुतियां आरम्भ हो जाये तो शक्तिशाली कौल गुरु की प्रार्थना करो। जो तुमको प्रभु कृपा से अवश्य मिलेगा। पर अपने अनुभवों का तनिक भी अहंकार मत करना ये मार्ग में रुकावट बन खडा हो जायेगा और गुरु तो मिलेगा ही नहीं।
ॐ हरि ॐ
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
बहुत सुंदर आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी तरह से समझाया आपने
जी धन्यवाद्। और भी पढे।
Deleteबहुत सुंदर आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी तरह से समझाया आपने
जी धन्यवाद्। और भी पढे।
DeleteJi naman aapko
ReplyDeleteजी धन्यवाद्। और भी पढे।
Deleteधन्यवाद्। और भी पढे।
ReplyDeleteजी धन्यवाद्। और भी पढे।
ReplyDeleteBahut bahut dhanyavaad vipul ji
ReplyDeleteधन्यवाद सर्। अन्य लेख भी पढ कर विचार व्यक्त करें।
ReplyDeleteBahut bahut dhanyavaad
ReplyDeleteबहुत ही प्रशंसनीय है। व्हाट्सएप फेसबुक पर कौन योगी फंसे हुए हैं ? क्या वह दर्शनीय है कहां पर मिलेंगे वह!
ReplyDeleteJi bahut sunder.. Naman apko bahut asaan tareeke se samjaya aapne.
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