अखिर गणेश है क्या
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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मेरे मन मे गणों पर कुछ चर्चा करने का मन हो रहा है। पहले कही कुछ पढा नही पर जो मैं सोंचता हूँ वह लिखता हूँ आप लोग कुछ कुछ गर्न्थो से भी बताये।
जब प्रत्येक मनुष्य जन्म लेता है तो उसके चारों ओर कुछ विभिन्न शक्तियां
जन्म जात रहती है जो उसकी मन बुध्दी को प्रेरित करती है। गुणों के हिसाब से यह मानवीय
राक्षसी या दैवीय हो सकती है। जो मनुष्य को बचपन से बचाती सजाती और सताती है। कभी कोई बालक या मनुष्य किसी दुर्घटना में साफ साफ बच जाता है या जरा सी
चोट के बहाने मर जाता है। वह सब इन गणों को खेल है।काम बनते बनते बिगड़ना या बिगड़ते
बिगड़ते बनना यह इन्ही गणों की वजह से होता है। यह सब एक सामान्य मनुष्य के लिये
है। इन्ही के कारण मनुष्य नास्तिक या आस्तिक बनता है।
किसी भी नास्तिक का गण देव नही हो सकता। आप ज्योतिषी से चेक करवाये।
अब मनुष्य के प्रारब्ध के कारण उसका झुकाव आध्यात्म की ओर हो जाता है। प्रारब्ध
वह होता है जो मनुष्य कर्मफल साथ लेकर धरती पर आता है। यानी प्रारम्भय लभ्यते स : प्रारब्ध: ।
अब इन्ही गणों के कारण बालक 8 वर्ष की आयु तक अपना भविषय तय कर लेता है। 8 वर्ष इस लिए क्योकि 8 वर्ष तक बच्चे की अपनी बुध्दी नही खुल पाती है। वह प्रेरित बुध्दी से काम करता है। हो सकता कुछ के लिए 7 या 6 हो। पर अधिकतम 8। अतः वाहीक वातावरण पाकर यह गण अपने को सक्रिय निष्क्रिय बनाते है। जिसके कारण बच्चे के अंदर साधु या शैतान के गुण विकसित होने लगते है। और यही गण मनुष्य में तेज वलय यानी औरा का निर्माण करते है।
श्री गणेश इन्ही गणों के अधिपति है। जिनका शरीर मॉनव का पर मुख शक्तिशाली जानवर हाथी का। यानी मनुष्य के मस्तिष्क में जानवर की भाँति विचार भरे रहते है।
इसी लिए सर्वप्रथम गणेश की आराधना यानी गणों को शांत करने की प्रार्थना की जाती
है। यही प्रावधान है। यह शिव और शक्ति के पुत्र है जो माता पिता यानी हमारे शरीर
की ही परिक्रमा कर प्रथम पूजनीय बने।
अतः मेरे हिसाब से बच्चे को श्री गणेश की पूजा करवानी चाहिए। श्री गनेश का मन्त्र इन गणों को सही दिशा देने को मजबूर करेगा। मेरी समझ मे यही गणेश का जन्म और सूरत की व्याख्या करता है। अब आप बताये क्या सही क्या गलत।
हरि ॐ हरि
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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