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Friday, October 16, 2020

दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

 दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों  को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।


चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं  करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा।


मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।


प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।

साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।

वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।

 

10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।

 

मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।


यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप।


अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”।


मेरे ब्लाग का पहला लेख जो “वैज्ञानिक” पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। उसको पढें और कुछ समझें कि मां काली क्या है।

 ब्रह्मांड की उत्पत्ति 

 

कुछ यूं समझना चाहिए इस सबसे पहले सिर्फ निराकार ऊर्जा फिर उस निराकार ऊर्जा में ध्वनि से सृष्टि का निर्माण और उस उर्जा में जब हल-चल आरंभ हुई वह बनी काली। E = MC 2 के अनुसार सृष्टि का निर्माण आरम्भ हुआ। 

 

फिर जब और आगे बढ़े तो जैसे धरा और आकाश होता है आकाश नीले रंग का माना जाता है उसने निर्माण किया तारा का वह एक शक्ति बनी फिर वह शक्ति ज्योति उसने पूरे विश्व को व्याप्त किया तो वही त्रिपुर सुंदरी जो महा माया बनी।  फिर यही शक्ति ने फिर पूरे विश्व को व्याप्त कर उसकी मालकिन बन गई और कहलाई भुवनेश्वरी लेकिन भुवनेश्वरी के साथ में कोई नहीं तो क्या करेंगे तो उसके लिए फिर बनी छिन्नमस्ता यानी भुवनेश्वरी ने ही अपने अंगों को काटकर एक तरीके से ऊर्जा को अलग कर विभिन्न सृष्टि के निर्माण की ओर एक कदम बढ़ाया लेकिन पालन पोषण हेतु बनी छिन्नमस्ता मतलब पूरी सृष्टि को इसी के द्वारा संचालित होना है यही पालनकर्ता का काली रू है। इसके पश्चात आई त्रिपुर भैरवी त्रिपुर भैरवी भैरवी यानी वहां पर कुछ नहीं तो एक यह भावना की यहां और कुछ नहीं है यदि कोई अकेला होता है तो उसे भय लगता ही है इसीलिए इसे भैरवी भी कहा गया इसके बाद आई धूमावती क्योंकि अभी भी सृष्टि निर्माण आरंभ हुआ था के प्रलय आ गई क्योकि धूमावती सब नष्ट करती है। अत: विनाश प्रलय की देवी यानि शक्ति कहलाईं। चारों और धुंध ही था फिर आई बगलामुखी।  बगलामुखी ने धूमावती के जो प्रलय के अंदाज़ को रोका और रोक करके वह बनी बगलामुखी और यह कथा में भी उनके हैं कि उन्होंने प्रलय को रोका था क्योंकि धूमावती एक तरह से पहले का प्रतीक अब इसके बाद जब सृष्टि की में विनाश होता है तो चारों और आपको इस तरह से गंदगी ही गंदगी दिखेगी चारों ओर सब चीज व्यस्त दिखेगी तो फिर निर्माण हुआ मातंगी।  मातंगी यानी सफाई हेतु वह शक्ति जो कि मनुष्य को सफाई करती है मनुष्य के ह्रदय से गंदी बातें निकालती है और इसके बाद आई कमला।  कमला यानी वैभव की देवी जो कि मनुष्य को रहने के लिए सारी सुविधाएं देती है इस तरीके से यह 10 विद्या का व्याख्यान हुआ।

 


सही बात तो यह है कि हमारा जो सनातन साहित्य है बहुत ही गूढ़ है और उसको लोगों ने केवल भौतिक रूप में देखा उसके अंदर जाने का प्रयास नहीं किया भौतिक रूप में उन शक्तियों की आराधना करें और सुख दुख प्राप्त किया अधिक से अधिक मोक्ष प्राप्त किया या स्वर्ग प्राप्त किया लेकिन वह शक्ति का नाम वह क्यों रखा गया उस शक्ति का काम क्या था इसके ऊपर किसी ने चिंतन नहीं किया इसलिए यह व्याख्यान किसी भी गूगल में नहीं दिया है किसी दवाब पुस्तकों में नहीं दिया है यहां तक कि कि संतों ने भी इस पर प्रकाश नहीं डाला है शायद पहुंचाना हो या समझ ना पाए हो।

 


अब यह स्पष्ट हो गया की काली ने इस ब्रह्मांड की सृष्टि का निर्माण आरंभ किया 10 विद्याओं के माध्यम से इसके पश्चात जब मनुष्य का निर्माण हुआ तब सभी देवों की शक्ति से दुर्गा का निर्माण होने के पश्चात उनके नौ रूप 9 चक्रों में स्थापित होकर मनुष्य के अंदर की शक्ति को संचालित करने लगी यानी 10 विद्या शरीर के बाहर की ऊर्जा की पूजा और नवरात्रि की पूजा यानी शरीर के अंदर की जो ऊर्जा है उसकी पूजा अब बात आती है गायत्री की जब मनुष्य का निर्माण हो गया तो उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए क्योंकि वह तो ब्रह्म का ही अंश है नर नारायण बराबर तो इसके लिए एक शक्ति ने जन्म लिया जिसको हम कहते हैं गायत्री गायत्री यानी इसने अपने मुख से तीन वेदों को जन्म दिया बाद में यह वेद चार बने बहुत सी जगह लिखा है कि गायत्री ने चारों मुख से चार वेद बोले वह गलत है मैं उसे बिल्कुल सहमत नहीं हूं क्योंकि तमाम साहित्य में यही लिखा हुआ है कि पहले तीन ही वे थे इसलिए त्रयपथी बोलते हैं वेद पहले तीन ही वे थे फिर बाद में वह चार हो गए कहने का मतलब यह है कि जो शक्ति का निर्माण का करम है सबसे पहले काली विद्या उसके बाद मानव के निर्माण के साथ गायत्री का निर्माण और दुर्गा का निर्माण जो मनुष्य के अंदर की बात है और 10 विद्या मनुष्य के बाहर की बात है।

 

गायत्री का प्रादुर्भाव कब हुआ विष्णु के क्षीरसागर के रूप का क्या अर्थ है विज्ञान में इनको कैसे व्याख्या कर सकते हैं यह सब मेरे ध्यान में है।

एक बहुत आनंददायक बात अभी हुई वह योग के संबंध में यह परिभाषा आपको बहुत अद्भुत लगेगी और मेरी कई बातें तो गूगल में मिलेगी नहीं किताबों में मिलेगी नहीं आपको।

 

मैं योग को यू परिभाषित करना चाहता हूं कि जब तुम्हारी दुर्गा शक्ति का काली मां की शक्ति से मिलन होता है तब योग घटित होता है।

क्योंकि योग की अनुभूति में क्या है इस पर कहीं कोई साहित्य नहीं है लेकिन योग का अनुभव साकार भी हो सकता है निराकार भी हो सकता है यह तो मेरी अनुभूति में है ही।

यह परिभाषा साकार योग के लिए है।

 

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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥


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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

 

जय गुरुदेव जय महाकाली।


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