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Saturday, October 31, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5 / brahm gyan kaya khand 5

 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"



26. योगी की पहचान क्या है???



किसी को देखकर आप मालूम कर सकते हैं। यदि योगी के अंदर समत्व की भावना यानी सबको एक समझता है न कोई छोटा न कोई बड़ा मानव जाति एक।
तो यह उसके व्यवहार से मालूम पड़ जाता है अक्सर गुरु लोग यह करते हैं जिसने बढ़िया चढ़ावा दिया उसको नारियल के साथ मिठाई का डिब्बा और जिसने सिर्फ प्रणाम किया उसको शक्कर के चार  योगीदाने। यह व्यवहार  योगी का नहीं है। वह सबके साथ समान व्यवहार करेगा दूसरी चीज वह कभी अपने को किसी भी प्रकार की क्रेडिट नहीं देगा वह यही कहेगा कि यह उसके गुरु की इच्छा हुई या उसके इष्ट की इच्छा है इसके अतिरिक्त वह किसी भी प्रश्न का उत्तर तुरंत देगा।



आइंस्टाइन ने कहा है जब तक मैं आपकी किसी भी विषय पर गहराई से पकड़ नहीं होगी अनुभव नहीं होगा तब तक आप सही व्याख्यान नहीं दे सकते।  आप एक प्रश्न पूछ लीजिए भले ही नेट से पूछ लीजिए यदि उसने सही सही उत्तर दे दिया और वह भी तुरंत उसको योग हो सकता है यह भगवान श्री कृष्ण की गीता के अनुसार कर्मेषु कौशलम् अपने कार्य को कुशलता से निपटा लेने वाला व्यक्ति योगी हो सकता है। 



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???



प्रश्न यह है कि आप कैसे जाने आपको योग हो गया तो इसका निर्णय तो आपको स्वयं करना है सबसे पहली बात यह है क्या आपके अंदर समानता की भावना आ गई क्या आपने सब कुछ ईश्वर ही करता है गुरु ही करता है आप कुछ नहीं करते हैं यह भावना आ गई। 



बसे बड़ी बात जो पतंजलि महाराज ने कहा है दूसरा श्लोक चित्त में वृद्धि का निरोध मतलब आपको किसी भी कार्य के होने के बाद उस कार्य के प्रति लगाव उस फल के प्रति दुराव या मलाल तो नहीं होता अपने कर्तव्य को पूरा करने के बाद किसी प्रकार का अपेक्षा तो नहीं रहती।

 

आपके लिए और यदि योग की सफलता की बात है तो क्या आप सदैव अपने इष्ट का स्मरण करते रहते हैं यह सब यदि आपके अंदर है तो आपको योग घटित हो गया।



 वेद महावाक्य  के अनुभव अलग-अलग होते हैं वह यदि आपको अहम् ब्रह्मास्मि का अनुभव हुआ तो आपके अंदर अहंकार की सर्वोच्च अवस्था जाएगी मतलब आप अपने को ब्रह्म के समान ही समझने लगेंगे और शरीर के अंदर मौजूद मन बुद्धि अहंकार सोच सभी कुछ यही कहने लगेगी कि मैं ही ब्रह्म हूं अब बात आती है अयम आत्मा ब्रह्म।  इसमें आपको अनुभूति इस तरह की होगी कि अचानक जैसे कि कोई आपके अंदर प्रकट होकर आपको समझा रहा है अरे मैं तुमसे अलग नहीं हूं क्या तुम मुझको अलग करना चाहते हो क्या तुम मुझको अलग देखना चाहते हो इस तरह की शब्दावली की बातचीत हो जाती है।



तीसरा तत्वमसि आपको यदि किसी भी प्रकार की छाया आकृति डरावनी या अंदर कुछ भी अगर दिखती है तो आप भयभीत नहीं होते हैं आपको भय नहीं पैदा होता आपके मन से आवाज आती है अरे यह सब तो ब्रह्म ही है फिर आता है ।प्रज्ञानं ब्रह्म। मतलब आपके अंदर कुछ भी जो उत्तर पैदा होता है या एक अचानक से प्रकट होता है भावों का जो आपने पहले कभी सोचा नहीं था फिर आप सोचने लगते अरे यह कौन था जो हमको भी समझा गया और यदि आध्यात्मिक होते हैं तो ध्यान के भाव में आकर आप यही कहते हैं कि जो कुछ भी मेरे अंदर से भाव आए वह हो ब्रह्म ने इन्हीं सब वेद महावाक्यों के द्वारा चिंतन मनन के द्वारा आपके अंदर यह भावना प्रकार हो जाती है सर्वत्र ब्रहृम सर्वस्य ब्रह्म। अर्थात जगत में सब कुछ ब्रह्म।


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6



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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
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