आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 8
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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एक अन्य सन्यासी द्वारा मेरी चर्चा।
Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 शायद यह भी वह ना समझ सके परंतु संतो को सम्मान देना हमारा कर्तव्य है । उनको मेरा प्रणाम है🙏
यह सन्यासी बहुत गंभीर रहते हैं और ग्रुप में बिल्कुल बोलते ही नहीं हैं यदा-कदा मुझसे बात कर लेते हैं बस।
कई बार ग्रुप छोड़ चुके हैं लेकिन मेरे निवेदन पर मैं उनको बाद में जोड़ लेता हूं।
माता जी प्रणाम आपने ग्रुप छोड़ क्यों दिया था।
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Hb 96 A A Dwivedi: समुह में मौजूद सभी संतों के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन
आप हमारे अवगुणों के लिए क्षमा करें हम अज्ञानी लोग हैं और सनसार में भटक रहे हैं आप लोग आशिर्वाद दे🙏🙏🙏👏
स्वामी जी प्रणाम आपने ग्रुप छोड़ क्यों दिया था।
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लेकिन मैं आपको छोड़ने वाला नहीं लाक डाउन के बाद वृंदावन आऊंगा आपके आश्रम में रहूंगा।
मान ना मान मैं तेरा मेहमान।
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Bhakt Shailendra Tripathi Gonda: Guru mata ko koti koti pranam
Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: शिवोहम का अर्थ
https://youtu.be/dNNUyi9KaO8
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सघन जटा प्रभाव बटा गंगाधर नाम है।
कंठ धो शीतल दे गंगा का ही काम है।।
विषलै नाग कण्ठ डाल डमरू तांडव करे।
ऐसे शिव शंकर सदा सबका ही हित करे।।
तीव्र धार कर प्रहार गंगा सिर पर आ रही।
अग्नि की प्रचंड ज्वाल तीव्र होती जा रही।।
बालचंद्र कीरीट शिर शोभा धारण करे।
ऐसे शिव शंकर सदा वास मम हृदय
और पढ़ना हो तो लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/01/blog-post_88.html
Bhakt Lokeshanand Swami: भगवान से किसी ने पूछा कि सब आपकी मानते हैं, आप भी किसी की मानते हैं? भगवान ने वाल्मीकि जी कि ओर इशारा कर दिया, मैं इनकी मानता हूँ। ये जैसा जैसा कहते हैं, मैं वैसा वैसा ही चलता हूँ।
वाल्मीकि जी वे हैं जो जीवभाव का तिरस्कार कर, परमात्मा को जानकर परमात्मा ही हो गए, ब्रह्म हो गए।
"जानत तुमहि तुमहि हो जाई"
"ब्रह्म जानेति ब्रह्मैव भवति"
संकेत मिलते हैं कि "वाल्मीकि तुलसी भए" वाल्मीकि जी ही तुलसीदास बनकर आए। स्वयं तुलसीदासजी ने लिखा-
"डिग बांदीपुरा बिच सीतामढ़ी,
जहाँ आसन मारत वृत्ति चढ़ी।
भूख न प्यास विचित्र दशा,
उर पूर्व जन्म प्रसंग बसा॥"
डींग और बाँदीपुरा के बीच सीतामढ़ी है, जहाँ बैठते ही मेरी वृत्ति आकाशीय हो गई। मुझे देह का भान न रहा, अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो आया। और हैरानी की बात है कि सीतामढ़ी ही वह स्थान है जहाँ वाल्मीकि भगवान का आश्रम था।
वाल्मीकि जी का जीवन उदाहरण है कि मन की दिशा बदल जाए तो जीवन की दशा बदल जाए। तुलसीदास जी लिखते हैं-
"उल्टा नाम जपत जग जाना।
वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना॥"
कहनेवाले कहते हैं वाल्मीकि जी ने उल्टा नाम जपा, "मरा-मरा" जपा। लोकेशानन्द कहता है कि उल्टा नाम का अर्थ "राम" का उल्टा "मरा" नहीं, बल्कि उल्टा माने जप की धारा को उलट दिया।
जैसे दिन का उल्टा रात है, दुख का उल्टा सुख है, जपा का उल्टा अजपा है। जपा को अजपा कर देना ही, जप की धारा को पलट देना है, नाम को उल्टा देना है। नामजप का इतना अभ्यास हो गया कि जप करना ही नहीं पड़ता, नाम अपनेआप चलने लगा। और यही तो विधि है।
आप ध्यान देकर समझें, जब भीतर नाम अपने से चलने लगा, और आपका ध्यान भटककर, कुछ समय कहीं बाहर ही घूमफिर कर, जब पुनः भीतर लौटकर आया, तब आपको लगा "अरे! मेरा ध्यान तो कहीं और था, फिर यहाँ ये नाम कौन जप रहा था?"
तब आपको पहली बार मालूम पड़ा कि मैं जपने वाला नहीं हूँ, मैं तो देखने वाला हूँ। मैं कर्ता नहीं था, कर्ता तो मन था, मैं तो द्रष्टा हूँ। योंही नामजप जपा से अजपा होकर धीरे धीरे अपनेआप ही द्रष्टाभाव में टिका देता है।
Hb 96 A A Dwivedi: मुम्बई पालधर में सैकड़ों की संख्या में लोग एक निहत्थे बुजुर्ग साधु को जानवरों की तरह मार रहे थे वो विनती कर रहे थे और पुकार रहें थे
हे बजरंगबली साधु संत के तुम रखवारे असुर निकनदन राम दुलारे
हनुमानजी बोले मैं नहीं आऊंगा तुम अपने कर्म फल को भोग रहे हो
मैं तो कथा वाचकों के बुलावे पर ही जाता हूं वहां मेरी कथा सुनकर लोग रोने लगते हैं और कहते हैं प्रेमाश्रु बह रहे हैं
बुजुर्ग पालधर के साधु ने फिर विनती की भगवती दुर्गा मां आओ भगवती दुर्गा ने कहा पुत्र मैं तो कण कण में विराजमान हु अपने चित्त को शुद्ध करने के बाद हमारे दर्शन का लाभ उठा सकते हो
ऐसा करते हुए लगभग आधे घंटे के बाद वो सनातन संस्कृति का लाल धरती पर पड़ा था और फेसबुक व्हाट्सएप पर लाखों जागे हुए हिन्दू उसकी निन्दा कठोर शब्दों में कर रहे थे कुछ तो इतना गुस्से में थे कि बस चलता तो मोबाइल तोड़ देते
फिर वो दिन आ गया जब लाखों की संख्या में सन्त महात्मा मुम्बई आ गये हमारे पुत्र ने पूछा कहां है दिखाई क्यों नहीं दे रहे हैं हमने कहा सब ईश्वर का अंश है कण कण में मौजूद हैं अपने चित्त की शुद्धि करो तभी दिखाई देंगे
वाह ये अद्भुत ज्ञान सनातन धर्म का परचम लहराने का काम कर रहा है अद्भुत नजारा है और मुझ पापी को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है
किसी को दिखाई दे रहा हो तो हमें भी आंखों देखा वर्णन कहें
थोड़ा और सो लो जल्दी ही गहरी नींद में सुलाने वाले निकल पड़े हैं
Hb 87 lokesh k verma bel banglore:
*एक: क्षमावतां दोषो द्वितियो नोपपद्यते ।*
*यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जन: ।।*
*सोअ्स्य दोषो न मनतव्य: क्षमा हि परमं बलम् ।*
*क्षमा गुणो ह्यशक्तानां , शक्तानां भूषणं क्षमा ।।*
स्वभाववान व्यक्तियों की एक ही कमजोरी है। *क्षमा करना*. ?
यह लज्जा की बात है कि हम ऐसे विशाल हृदय के व्यक्तियों को कमजोर मानते हैं।
क्षमा करना व्यक्ति की कमजोरी नहीं वरन् ताकत है। यह कमजोर का गुण व कठोर का गहना है।
The persons of a forgiving nature have only one shortcoming and no other. It is pity that a person of forgiving nature is considered to be weak.
A forgiving temperament is not a sign of weakness. Forgiveness is a sign of STRENGTH.It is virtue of the weak and an ornament of the strong.
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
निवेदन:
मित्रों ग्रुप बनाते समय गलती से कुछ सदस्य दो ग्रुप में ऐड हो जाते हैं अतः ग्रुप सदस्यों से निवेदन है कि यदि आप इसी ग्रुप के दूसरे विस्तार ग्रुप में सदस्य हैं तो एक ही ग्रुप के साथ रहे क्योंकि यह तीनों ग्रुप का उद्देश्य एक ही है।
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Bhakt Lokeshanand Swami: एक नवविवाहित समुराई योद्घा, अपनी पत्नी के साथ, प्रसन्नता पूर्वक, शिनानो नदी में, नौका विहार कर रहा था। कि अचानक बहुत भयंकर तूफान आया।
बड़ी बड़ी लहरें उस नौका से टकराने लगीं और नौका जोर से हिचकोले खाने लगी।
नौका डूबने के विचार से, मृत्यु सम्मुख देख कर, वह नवयुवती थर थर काँपने लगी और उस समुराई से चिपक गई।
समुराई योद्घा ने, अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा, और झटके से अपने से दूर हटा कर, अपनी तलवार निकाली और उस युवती के गले पर टिका दी।
युवती ने हैरान होकर, समुराई की आँखों में झाँका, और अचानक ही हंसने लगी।
समुराई ने कहा- मेरी तलवार तेरी गर्दन पर टिकी है, मेरा हाथ हिला कि तेरे प्राण गए। फिर भी तूं हंसती है, डरती नहीं है। क्या अब तुझे मृत्यु का भय नहीं है?
वह युवती बोली- हाँ मैं हंसती हूँ, मुझे इस तलवार से मृत्यु का भय नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तलवार मेरे प्रेमी के हाथ में है। मैं तलवार नहीं देखती, तलवार जिस हाथ में है, वह हाथ देखती हूँ।
समुराई ने तलवार म्यान में रखी, और प्रेमपूर्वक उस के पास बैठ गया। उसका हाथ पकड़ा और कहने लगा- जब तूं तलवार नहीं देखती, तब तूफान क्यों देखती है? क्या तूं नहीं जानती कि तूफान किसके हाथ में है। तुझे मेरे हाथ पर भरोसा है, उस परमात्मा पर भरोसा नहीं है?
नवयुवती मुस्कुराई, उसका भय और कंपन मिट गया, और अब वह शांतचित्त होकर बैठी रही।
कुछ ही समय में तूफान भी शांत हो गया।
लोकेशानन्द कहता है कि हम जगत पर तो भरोसा करते हैं, जगदीश पर भरोसा नहीं करते। यदि हमें जगदीश पर भरोसा हो जाए, तो प्रलय की अग्नि में भी हमारा चित्त कंपायमान न हो। क्या हम नहीं जानते-
"जाको राखे साँइया मार सके ना कोय।
बाल ना बाँका कर सके जो जग बैरी होय॥"
पता नहीं उन निर्दोष साधुओं के हत्यारों को कब दण्ड मिलेगा।
😣😣😕😕😞😞
Swami Toofangiri Bhairav Akhada: जिस तरह देश के अंदर इस्लाम धर्म के जमा क्यों की वजह से पूरा देश सजा भुगत रहा है अगर साधु संत महात्मा सड़कों पर आ जाते हैं तो यही कलंक उनके माथे पर भी लगना तय है
प्रभु उनको कोरोना से ही मार दो।
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हर चीज का समय तय है वह उसी समय होगी अब उन साधुओं की मृत्यु का दंड पूरा महाराष्ट्र भुगत रहा है
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।
Swami Pranav Anshuman Jee: https://www.facebook.com/372279763585667/posts/673967033416937/
Swami Pranav Anshuman Jee: श्रीहनुमानजी भक्त एवं सुन्दरकाण्ड प्रेमी आनंद लें ।जय श्रीराम🙏🙏🙏 ।
Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७६॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परम दैवतम्।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७७॥
अर्थ: ध्यान के मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा के मूल गुरुदेव के चरण कमल हैं। मंत्र का मूल गुरुदेव के वाक्य हैं। तथा मोक्ष का मूल गुरुदेव की कृपा है।
गुरु आदि है अनादि हैं और गुरु जी परम देवता है, एवं गुरु से बढ़कर और कोई नहीं है, ऐसे गुरुदेव को प्रणाम है।
व्याख्या: ध्यान के लिए किसी स्थूल आधार के आवश्यता रहती है और सबसे उत्तम आधार गुरुदेव का भौतिक चेतन शरीर ही होता है, श्री गुरु शऱीर में सूक्ष्माति सूक्ष्म गुरुतत्व, क्रियाशील होकर शिष्यों के कल्याण के लिए तत्पर रहता है। अतः गुरु मूर्ति का ध्यान सबसे उत्तम है।।
इसी प्रकार उपासकों के लिए सर्वश्रेष्ठ उपासना का माध्यम "गुरु चरणारविन्द है" क्योंकि गुरु चरण अरविंद में सभी देवताओं के शिव शक्ति आत्मक होने के कारण परम पूजनीय है।
मंत्र का मूल स्थान वाणी है, उसको जब गुरु तत्व का आश्रय मिल जाता है, तो उस वाणी से जो शब्द निकलते हैं वे भी मंत्र बन जाते हैं, इस प्रकार एक चेतन प्रकाशित तत्व द्वारा दिया गया मंत्र भी चेतन होता है और वही जप के योग्य होता है। कई स्थितियों में गुरु मंत्र का प्रभाव तत्काल देखा गया है।
जब मंत्र शक्ति शिष्य ने जागृत हो जाती है तो अक्षर समूह रूपी स्थूल मंत्र बाहर छूट जाता है, कई नवीन मंत्रों की स्फुरणा होती है, यह गुरुदेव द्वारा प्रदत्त वाणी का ही प्रभाव है।
मोक्ष का मूल गुरु कृपा को माना गया है। मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। संसार के आवागमन का चक्र, गुरु कृपा से ही मिट सकता है और मोक्ष स्थिति उपलब्ध हो सकती है।
जब गुरु तत्व मानव शरीर में विकसित होता है तो उसका आदि (प्रारंभ)अवश्य होता है, वैसे गुरु तत्व अनादितो है ही। गुरु ही परम देवता का अर्थ है, गुरु से बढ़कर कोई देवता नहीं है अर्थात जितने देवत्व हैं, वह सब परब्रह्म से शक्ति प्राप्त करते हैं, तब देवता कहलाते हैं, और गुरु तत्व स्वयं शक्ति युक्त होने से उसे किसी से शक्ति ग्रहण नहीं करनी पड़ती।
"गुरो: परतरं" पर पिछले श्लोकों में प्रकाश डाला जा चुका है।
उपरोक्त विभूतियुक्त गुरुदेव को प्रणाम है।।
छत्तीस गुण और चौसठ कलाओं के साथ पूर्ण पुरुष....पूर्णता ही जिनका मापदंड है....
कृष्ण जो काला है...जो सबको खुद में समाहित कर ले...जिसमे डूब के कुछ नही दिखता...रंग कोई भी हो...
प्रेम की परिपूर्णता...धर्म की परिपूर्णता....छल की पूर्णता...सहजता और सौम्यता की पूर्णता...खूबसूरती और सम्मोहन की परिपूर्णता....संगीत नृत्य और कला की पूर्णता...ज्ञान की पूर्णता...पौरुषता की पूर्णता...!!
कृष्ण की स्थिति ही पूर्णता में है....
जहां पूर्णता नही वहां कृष्ण नही.....
जिनके नाम से ही ये जगत पूर्ण हो जाता है..
Chintan Mali Ref R D 1: धन्यवाद 🙏🏻
मुझे काफी जिज्ञासा है।
में कौन हूं?
में क्यू हु?
में किसके लिए हु?
में कहा से आया हु? ओर मुझे कहा जाना है?
वेदों का अवतरण का मुख्य उद्देश्य था कि मनुष्य जान सके वह क्या है। ब्रह्म क्या है और मानव भी ब्रह्म है।
बाद में वेद समझ में नहीं आए तो लोगों ने उस पर शोध किए थीसिस लिखें वेदों की बातों को मानकर जो उनका शोध लिखा तो उपनिषद बने। इन्ही के साथ वेद महा वाक्यों का जन्म हुआ।
कुछ लोगों ने वेद की बातें सीधे न मानते हुए स्वयं प्रयोग किए तर्क दिए और फिर जो लिखा तो षड्दर्शन का निर्माण हुआ।
इन्हीं षट्दर्शन में पतंजलि द्वारा योगसूत्र का निर्माण हुआ जो अष्टांग योग कहलाया।
मतलब आठ अंगो यानी कर्म करने से मनुष्य को योग का अनुभव हो सकता है।
वेदांत महाभारत के अनुसार आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है। भगवान श्री कृष्ण ने इसीलिए कहा हे अर्जुन तू योगी बन।
यदि हम वेदों को गौशाला मानी तो उपनिषद उस में चरने वाली गाय हैं। षटदर्शन वृषभ है। उन गायों का दूध श्रीमद भगवत गीता है। उस दूध से निकला हुआ मक्खन रामचरितमानस है।
श्रीमद भगवत गीता की व्याख्या रामचरितमानस से अच्छी किसी ने नहीं की। श्रीमद्भगवद्गीता में केवल चरित्र बताए गए किंतु रामचरितमानस ने उन चरित्र को जीवन देकर उनकी गाथा का वर्णन किया।
और उन गायों से जो बछड़े पैदा हुई वे विभिन्न शास्त्र और पुराण बन गए।
अब आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे।
जय गुरुदेव जय महाकाली।
Bhakt Brijesh Singer: जय श्री राम
जय हनुमान
बहुत सुंदर प्रभु जी 👌
जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।
Rajesh Sharma Vashi Vinod: जय हो गुरु महाराज की
बहुत ही सुक्षम मे संपूर्ण दिखा दिया
बस इतने मे ही हम सब है 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
Swami Toofangiri Bhairav Akhada: https://youtu.be/-T5L20uWTRo
Swami Pranav Anshuman Jee: धन्यवाद बृजेश जी ।आपने श्रवण किया , प्रसन्नता हुई ।इसकी स्पष्टता एवं संतुलित संगीत के कारण मुझे देशके कई हिस्सो से फोन आये ।तो सोचा इस ग्रुप मे भी शेयर करूं ।इसमे मेरी कोई भी बडाई नही केवल हरि कृपा 🙏🙏🙏
यद्यपि किसी को कुछ भी अच्छा लगना या न लगने पर यही समझना चाहिये कि
*जेहि कर मन रम जाहि सन तेहि तेही सन* *काम*।सभी आदरणीय जनों को जय श्रीराम 🙏🙏🙏
चर्चा
Chintan Mali Ref R D 1: बहुत ही उत्तम भाई 🙏🏻
लेकिन मेरे प्रश्न तो ओर ही है।
में ब्रह्म हूं यह बात सदा स्मरण में नहीं रहेती इसके लिए हम क्या कर शक्ते है ?
पहला प्रश्न मैं कौन हूं तो मित्र आप ब्रह्म का ही रूप है। बस मैं यह जानता हूं आप यह नहीं जानते।
दूसरा प्रश्न क्यू हूं आप इसलिए है इस भौतिक शरीर में मन बुद्धि अहंकार के साथ इतना कि आप जान सके कि आप ही ब्रह्म का रूप हैं।
आपको अंत में उस ब्रह्म में ही ब्रह्मलीन होना है इसके लिए आप यहां पर हैं।
आप उस ब्रह्म के द्वारा रचित आत्मा के शरीर रूप में यहां पर मौजूद है।
मुझको कहां जाना है मुझको वास्तव में उसी ब्रह्म में विलीन होना है।
यही हमारा कर्म भी है यही हमारा लक्ष्य है और यही हमारा साधन।
जगत में मिले हुए सारे कर्म संबंध यह मात्र इसी दिशा में सहायक होने चाहिए।
वह किस प्रकार सहायक होंगी यह हमको भगवत गीता और रामचरितमानस अच्छी तरीके से समझाती है।
हमको यह शरीर हमारे कर्मफल के कारण प्राप्त हुआ है प्रारब्ध के कारण प्राप्त हुआ है हमको अपने सारे संस्कार नष्ट कर पुनः उस ब्रह्म में विलीन होना है।
🚩🚩🚩🚩
इसके लिए हमें सबसे पहले सदैव भौतिक रूप से प्रयास करना चाहिए कि हम अध्यात्म से जुड़े रहे।
जैसे भजन सुनिए घर में आरती कीजिए समय पास करने के लिए मंत्र जप कीजिए। आध्यात्मिक से जुड़ी जानकारी को नेट पर जाकर पढ़िए।
मन करे या न करे मन में श्रद्धा हो ना हो किंतु आप प्रयास करते रहे।
बेहद आरंभिक अवस्था के लिए आपको यदि यह प्रेरणा पैदा हुई तो इसके लिए नवधा भक्ति तुलसीदास के बताइए और भागवत में भी भगवान श्रीकृष्ण ने बताई है।
और यदि मैं भी मन नहीं लगता है तो आप अंतर्मुखी होने का अन्य प्रयास टाइम पास करने के लिए करें।
बिना योग का अनुभव किए यह याद रखना बहुत मुश्किल है।
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे अर्जुन तू योगी बन क्योंकि यदि एक बार तू योगी हो गया तुझे योग का अनुभव हो गया तो क्या करना है क्या नहीं करना है यह सारा ज्ञान तुझको तुरंत प्राप्त हो जाएगा तुम क्या हो तुम्हारा मूल रूप क्या है तुम कहां से आए हो तुमको कहां जाना है तुम्हारा कौन सा कर्म सही है गलत है यह सब कुछ अपने आप स्पष्ट हो जाएगा।
योगी होने के लिए कलयुग में मंत्र जप से सर्व श्रेष्ठ कुछ नहीं।
मंत्र जप के द्वारा हम सबसे आसानी से अंतर्मुखी हो सकते हैं।
और हम अपने सद्गुरु के द्वार तक पहुंच सकते हैं।
कलयुग में ईश्वर प्राप्ति और अपने को जानना सबसे आसान है यदि कलयुग में यह ना कर सके तो कभी ना कर सकोगे।
मैंने अपने लेखों में अंतर्मुखी होने की विधियां विस्तार से बताईं हैं।
श्री कृष्ण की प्रेरणा से उनकी दया से महाकाली की कृपा से सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि का भी निर्माण हो गया।
जिसको कोई भी महा आलसी महा कंजूस महा पापी अपने घर पर बिना गुरु के कर सकता है। लेकिन यह कलयुग की देन है कि हम अपना समय भी देना नहीं चाहते हैं। बकवास में नेट बाजी में सोशल मीडिया में टीवी पर सिर्फ और सिर्फ बकवास करना चाहते हैं कुछ करना नहीं चाहते हैं।
क्योंकि योगी होना अपने को जानना यह सब से खच्चर काम है।
हमें टीवी के बटन की तरह दबाकर सब कुछ सहजता से प्राप्त हो जाए। दारु पीने के लिए लाइन में लगने के लिए मटन मच्छी के लिए हरामखोरी करने के लिए हमारे पास बहुत समय है लेकिन ईश्वर की ओर हमारा आकर्षण समय की बर्बादी है क्योंकि हम आधुनिक हैं। मैं स्वयं वैज्ञानिक हूं इसीलिए मैं कहता हूं कि वैज्ञानिक जगत के सबसे बड़े धूर्त है। वह मशीनों पर यकीन कर लेंगे जिसको इंसान ने बनाया है लेकिन इंसान पर यकीन नहीं करेंगे।
किसी घटना के लिए वर्षों इंतजार कर लेंगे समय बर्बाद कर देंगे प्रोजेक्ट का प्रारूप तैयार करते रहे लेकिन उनसे कहो हमको केवल 6 दिन दे दो तो उसके लिए तैयार नहीं होगें।
यही कलयुग की विडंबना है। सतयुग में जहां पर सभी लोग ज्ञानी 75 से 100% लोग अच्छे थे सतगुणी थे ध्यानी थे वहां पर स्पर्धा बहुत अधिक थी इसलिए लोगों को हजारों साल तप करना पड़ता था।
त्रेता में जहां पर 50 से 75% लोग सात्विक होते हैं वहां पर उनको सैकड़ों वर्ष तपस्या करनी पड़ती थी।
द्वापर में जहां 25 से 50% लोग सात्विक होते हैं वहां पर कई दिनों तक तपस्या करनी पड़ती है कई महीनों तक तपस्या करनी पड़ती थी।
किन्तु कलयुग में जीरो से लेकर 25% तक अच्छे लोग हैं सात्विक लोग हैं इसलिए स्पर्धा बहुत कम है आप कुछ घंटे अगर ईश्वर का ध्यान कर ले तो ईश्वर आपके सामने खड़ा हो जाए।
Chintan Mali Ref R D 1: बहुत ही उत्तम ज्ञान है आपके पास
आपके गुरुदेव को मेरा प्रणाम 🙏🏻
जी यह बात तो पूरा सच है क्योंकि हमारे परम गुरु स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज ने अपने शिष्य हमारे दादा गुरु स्वामी शिवओमतीर्थ जी महाराज से एक चर्चा में बात की थी कि उनको स्त्री-पुरुष का भेद दिखना बंद हो गया। आप उनकी आध्यात्मिक ऊंचाई देख सकते हैं कि जो मात्र आत्म तत्त्व ही देखते थे दूसरों में। उनके लिए हम लोग जो स्तुति करते हैं वह लिखते ब्रह्मस्वरूपम् नील वर्णम श्री गुरुदेवम् ओम नमो विष्णु तीर्थम्।
💐💐🙏🏻🙏🏻
Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 शिष्य/साधक के गुरु के प्रति क्या २ कर्तव्य होते हैै। गुरु आश्रम के प्रति । साधक/शिष्य को कैसा होना चाहिए। गुरु एवं शिष्य के संबंध के विषय में बताएं।
http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_9.html?m=0
Bhakt Vikas Sharms: ✨👌🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐
Swami Sidhanand Giri Juna Akada Ujjain Mohali Punjab: साधना में थी बच्चे फोन भी खराब चल रहा है यही वजह से msz नही देख पाती हूँ।
हर हर महादेव
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई
चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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