आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 22
कोरोनाकाल कैद में ज्ञान
बेहद सुंदर और आवश्यक आत्म अवलोकन कृपया आप यह जरूर देखें।
मेरी मां नहीं है अब। २०११ मैं चली गई।
मत होना कभी निराश तुम, यदि कहीं घोर अंधेरा पाओ।
यह तुमको एक अवसर देता, बनो दीप तुम राह दिखाओ।।
यदि कहीं फंस जाओ विपुल तुम, तारों की इक भीड़ में।
तब तुमको यह अवसर होगा बनकर सूरज चमक दिखाओ।।
मैं मुंबई में रहने के कारण सेवा ना कर सका। हां पिताजी के लिए 21 दिन तक वार्ड बॉय बन गया था।
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: मित्र ,एक तरफ आप कहते है ,ब्राह्मण , गिनती पर गिने हुऐ है , दुसरी ओर उनगिने हुऐ ब्राह्मणो में , अपने आप को श्रेष्ठ ब्राह्मण घोषित कर रहे है, क्या ये तुम्हारे अनुसार की गयी ब्रम्ह को जानने वाले गिनती में गिने हुऐ ब्राह्मणो का अपमान नही , अपने को गिने हुऐ मे श्रेष्ठ घोषित करना , आप के अंदर बढ रहे अभिमान का संकेत नही , आप के इस सर्वश्रेष्ट की घोषणा को ग्रुप के ब्रम्ह को जानने वाले क्या , मित्र गण क्या उचित कहेगे , अपने मुह तुम आपन करनी बार अनेक भाँति बहु बरनी
आत्मा स्तुति
Bhakt Vipin Banni: कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है खुलकर कहने की, क्योकि वो बनावटी हैं, हाँ मैं ब्रम्ह को जानता हूँ
Bhakt 16 ref dandi: जन्म ही श्रेष्ठ है कर्म तो बनते बिगड़ते रहते हैं
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: पुस्तक का ज्ञान , घर में रखा धन , परदेश में काम नही आता , मित्र सेन जी आप ने अपने को सबसे श्रेष्ट घोषित कर दिया , यदि आप के हाथ मे स्मार्ट फोन न हो तो ,एक मित्रता के नाते सच बताना , कितने समय तक , समाज की एकता , समृद्धि , उत्तम संस्कार , सरता , उदरता ,प्रेम , भाव , क्षमा , शान्ति , आदि बिन्दुओ पर बोल कर ,राष्ट्र , समाज , व विश्व को एक सुत्र बाँध का , कार्य सकते
कर्म श्रेष्ठ है ,जन्म तो अनगिन्त बार ले चुके है , वो जन्म श्रेष्ट जिसमें कर्म श्रेष्ट थे , जैसे विदुर , शवरी , केवट ,
देखना है तो नजदीक आकर देखिए।
प्यार भी हो जाएगा नजरें मिलाकर देखिए।।
मैं ब्राह्मण हूं और मैं भी श्रेष्ठ तो कहने में क्या आपत्ति है आपने पूछा तो कह दिया।
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और हां जी मैं निष्ठा पूर्वक कह सकता हूं यह मैंने अहंकार रहित परिचय दिया है। क्योंकि मैं अहंकार को जानता हूं और अहंकार के साथ रहता हूं।
जो सूझे वह है विज्ञानी।
जो समझे वह तो है ज्ञानी।।
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: अब आप अपनी पोष्ट का मुल्यांकन भी खुद करने लगे
बस यही तो समझ का फेर है।
मित्र आप सभी से अनुरोध करता हूं आप किसी अन्य पर बिल्कुल यकीन न करें सिर्फ आपके अनुभव आपके अनुभूतियां ही सत्य है आपके लिए और यह भी मैं दावा करता हूं कि हमारी भगवत गीता में या अन्य जगह जो भी बातें की हुई है उनके अनुभव किए जा सकते हैं लेकिन मनुष्य को उसके लिए लगन के साथ मेहनत करनी पड़ती है।
कभी भी किसी को मानो मत जानो। जानने से ही तुम ज्ञानी बन पाओगे।
किन्तु सेन जी ये तो आप को मानना ही पडेगा , कभी कभी आप उचित शब्द का चयन करने मे जल्द बाजी करदेते है , जिससे भाव बदल जाता है ,
Swami Veetragi R Sadhna Mishra: <Media omitted>
Bhakt Lokeshanand Swami: भरतजी कहते हैं, गुरुजी! मैं आर्त हूँ, ठगा गया हूँ, विधि ने मुझे ठगा है, ऐसा कौन सा कुकर्म है जो मैं नहीं कर सकता।
गुरुजी, लोग मेरे लिए चाहे जैसा बोलते हों, मुझे दुख नहीं, पिताजी स्वर्ग चले गए, उसका भी मुझे दुख नहीं, आपके सम्मुख उत्तर देता हूँ और मेरा हृदय फट नहीं जाता, इसका भी दुख नहीं।
पर मुझे एक बात का दुख है कि श्रीसीतारामजी को मेरे कारण कष्ट सहना पड़ रहा है, इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूँ। कैकेयी का पुत्र कैकेयी से भी अधम है क्योंकि कारण से कार्य कठिन होता ही है।
यह तो वह सिंहासन है जिस पर भागीरथ बैठते थे, दिलीप, हरीशचंद्र, महाराज रघु बैठते थे, इसपर मुझ पापी को बिठाइएगा तो पृथ्वी रसातल में डूब जाएगी। मैं ही अयोध्या के दुख का एकमात्र कारण हूँ, मेरे में इसे हाथ से छूने भर की भी योग्यता नहीं है।
गुरुजी ने पूछा, भरत! इस पृथ्वी पर हिरण्यकशिपु जैसे राजा हो गए, रावण जैसे राजा हैं, तब भी पृथ्वी रसातल को नहीं गई, तुम्हारे बैठने से चली जाएगी? भरतजी ने कहा, गुरुजी! वो तो रामजी के कुछ नहीं थे, वे पाप करके राजा हो गए इसमें हैरानी नहीं, पर यदि राम का भाई भी वैसा ही करेगा तब तो पृथ्वी रसातल को चली ही जाएगी।
फिर भी गुरुजी, यदि पिताजी की आज्ञा मानने न मानने का प्रश्न है, तो उन्होंने स्वयं मुझे राजपद दिया है, माने राजा का पद दिया है, राजा तो रामचन्द्रजी हैं, और आपने ही पढ़ाया था कि पद माने चरण होता है, मुझे तो प्रिय पिताजी ने रामचन्द्रजी के चरणों की सेवा दी है।
मैं तो उन्हीं चरणों में जाऊँगा गुरुजी! मैं सिंहासन पर नहीं बैठूंगा।
देखें, किस प्रकार से सच्चा संत बड़े से बड़े सिंहासन को भी ठोकर मार कर, रामजी जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग का अवलम्बन करता है।
अब विडियो देखें- भरत वशिष्ठ संवाद
https://youtu.be/Prno51D86U0
Bhakt Lokeshanand Swami: मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।
झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था। किसी ने पूछ लिया कि झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा? तो झन्नु झनझना जाता और कहता- यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।
अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।
कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- बेटा! संत को भोजन करा देगा?
अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।
संत मुस्कुराए और बोले- मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।
झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- क्या मतलब?
संत उसके पास बैठ गए। बोले- बेटा! मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।
अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।
झन्नु बोला- महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।
संत बोले- खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।
झन्नु बोला- महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।
संत बोले- झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है।
चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?
झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या
Npc Narendra Parihar: राम नवमी पर आप सभी को शुभ कामनाएं ।
धीरज, धर्म , मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बन्धुओं!
आपत काल यानी मुसीबत में ही आदमी के धैर्य , धर्म , मित्रों और पत्नी की पहचान होती है।
राष्ट्र हित में मंदिरों में भव्य आयोजन नहीं हो पा रहें हैं। परन्तु अगर आप रामभक्त हैं तो सबसे बड़ा मंदिर तो आपका घर है और देवता तो आपके हृदय में है।
क्या आप इतने मजबूर हैं कि, अपने सबसे बड़े आराध्य के जन्म दिन पर भी इसे भी सूना रखेंगे?
आज शाम अपने घर में कम से कम सात दीप जलाकर बालकनी या घर से बाहर रखें। दीप के तेल में थोड़ा सा कपूर का चूरा भी मिला दें , जो कि वातावरण को शुध्द करेगा।
आइये अपने हृदय में राम को धारण करें और जोर से बोलें
*जय श्री राम!*
Bhakt Parv Mittal Hariyana: दूरदर्शन पर चाणक्य नाटक का प्रसारण चल रहा है। बचपन मे अक्सर देखा करते थे। जो बीच मे ही रोक दिया गया था। तब बड़ा दुख हुआ था। निश्चित ही अब देखने के अवसर प्राप्त होगा। बहुत ज्ञानवर्धक सीरियल है
अथ श्रीगुरुगीता...
गुकारं च गुणातीतं, रुकारं रूप वर्जितम्।
गुणातीत स्वरूपं च, यो दघात् स गुरु: स्मृत:।। 46 ।।
अर्थ: गुरु शब्द में "गु" कार अक्षर गुणातीत का बोधक है और "रु" कार रूपातीत का बोधक है, ऐसे जो गुणातीत और रूपातीत स्वरूप के प्रदाता है, उन्हें गुरु कहा जाता है।
व्याख्या: श्रीगुरु शक्ति, सत्व, रज, तथा तम इन तीनों से अतीत है, बाकी सारा जगत त्रिगुणात्मक है, माया के अधीन है। गुरु शक्ति का कोई रूप भी नही है, वह निराकार, गुणातीत, रूपातीत है। यही स्वरूप परब्रह्म परमेश्वर का भी कहा जाता है, अतः गुरु एवं परब्रह्म एक ही है, जब परब्रह्म शिष्यों के कल्याण के लिये तत्पर होता है, तो उसे ही श्रीगुरु कहा जाता है। जब वह गुरु शक्ति किसी मनुष्य शरीर मे जाग्रत व प्रकाशित होती है तब उसे ही सद्गुरु कहा जाता है। वही गुरु-शक्ति मंगलमयी बनकर शिष्यों में जाग्रत व प्रकाशित हो उठतीं है। इसे ही यहाँ गुणातीत स्वरूप का दान समझना चाहिए। गुरु शक्ति ही जाग्रत होने पर संस्कारो को क्षीण करती है, विकारों को मिटाती है, चित्त को शुद्ध करती है, और शिष्य के चित्त पर से अविद्यादि पंच क्लेशो को दूर करती है। चित्त शुद्ध हो जाने पर नित्य, शुद्ध, बुद्ध, सच्चिदानन्द स्वरूप आत्मा का अंतर में ज्ञान होता है, आत्मा के निराकार एवं गुणातीत स्वरूप का बोध होता है, तब नाना नाम रूपात्मक जगत विलीन हो जाता है। जब पुनः व्युत्थान दशा आती है, तब जगत का ज्ञान होता है, इसके बाद जगत का मिथ्यात्त्व स्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार के बोध देने वाले ही सद्गुरु कहलाने के अधिकारी है, शेष तो मिथ्या गुरु की सीमा में ही आते है।
आप हैं हमारे गुरूदेव स्वामी नित्यबोधानंद जी महाराज। जिनके पास में स्वप्न और ध्यान के माध्यम से गया था।
Hb 87 lokesh k verma bel banglore*भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टवा अ्ं सस्तनूभिव्यशेमहि
देवहितं यदायुः ।।
*RIGVED :1/89/8*
*YAJURVED: 25/21*
*SAMVED : 1874*
विद्वत लोगों की संगति मे हम सत्य एवं ईश्वर की प्राथना करें जिससे हमारी आयु बढे।
हम असत्य न सुने ,नही बोलें ।
ईश्वर हमें शक्ति दे कि हम अपने आचरण को संयमित कर सकें ।
In the company of learned men , let us hear beautiful words, see the truth & worship God, so that our longevity may increase. Let us not speak untruth, nor hear words of false praise nor see what is bad .
May God grant us the power to keep our senses under control.
*शुभोदयम्!लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
श्री सद् गुरूवे नमः
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः
+91 99260 92451: निज सरल सहज मुस्कान लिये श्री गुरूदेव नित्य बोधाननद तिर्थ जी महाराज के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
Npc Narendra Parihar: ताला बन्दी 2
बाहर बन्द ज़रूर हुआ पर दिमाग़ खुल गए।
1. वातावरण स्वच्छ रखने के लिए अरबों खरबों खर्च करवाने वाले किताबी विद्वानों को मुफ्त में ये काम करने का रास्ता दिख गया।
बैठे बिठाए हवा स्वच्छ हो गई, नदियां स्वच्छ हो गईं औऱ सारा वातावरण स्वच्छ हो गया।
2. आदमी को पता लग गया , जीने के लिए सिर्फ दो ही चीजे ज़रूरी हैं, परिवार और दाल रोटी।
बांकी सब फ़िज़ूल है। जिसके पास ये है वही अमीर है।
3. ऊपर वाले ने, लाठी मार कर, समझा दिया कि वो न मंदिर में रहता है, न मस्ज़िद में न गुरुद्वारे में ! वो तो आपके दिल में रहता है।
4. देशवाशियों को मित्रों और दुश्मनों की पहचान हो गई । समझदार और बेवकूफों का पता लग गया।
5. पता लग गया कि मुसीबत में भव्य धार्मिक स्थलों से ज्यादा भव्य अस्पतालों की जरूरत पड़ती है।
हम देश के लाखों करोड़ों धार्मिक स्थलों की जगह , अगर हम अपना दान , उससे चौथाई संख्या में भी अस्पताल बनाने में दें, तो देश में सबको मुफ्त उपचार मिल सकता है।
हर मुसीबत एक अवसर लाती है,,,सुना था ,,,,पर देखा तालाबंदी में,,
जय हिंद।
नरेंद्र परिहार।
Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: एक मोमबत्ती 2 कॅलरी उष्मा देती है
मोबाईल का टॉर्च 0.5 कॅलरी उष्मा देता है
तेल वाला दिया 3 कॅलरी उष्मा देता है
तो समझो 130 करोड भारतीय मेसे 70 करोड भारतीय ने भी 30 करोड़ मोमबत्ती,20 करोड़ मोबाइल टॉर्च,20 करोड़ तेल वाला दिया जलाया तो लगभग 1 मिनिट में 125 कॅलरी उष्मा पैदा होगी
और
कोरोना व्हायरस तो 10 कॅलरी मे ही मर जायेगा
ये है इसके पीछे का विज्ञान 5 अप्रैल को रात को 9 बजे 9 मिनिटं दिये,मोमबत्तिया, मोबाईल टॉर्च जरूर जलाये
BVP GAGAN Panday: People were expecting harsh and tough message from PM after Nijamuddin incident in Delhi , followers are disappointed and opposition is making fun.
Law and order is state subject and possibly under Home ministry , PM is on constitutional posts not on political post to entertain people with his speeches and it's emergency not election season , people are watching Ramayana and Mahabharata these days which is defining the ideal role and responsibilities of authorities under different circumstances and situations.
PM has asked to switch off the electric lights on 5th April at 9 PM and to light Dias , candles , Mobile light etc , he might be doing satellite (light) mapping to gauge the effect of his appeal , wherever appeal is followed only health ministry may entertain , otherwise health ministry may entertain along with home ministry.
Hb 96 A A Dwivedi: शब्द स्पर्श रूप रस गंध यह सभी हमारे पांच तत्वों को निर्दिष्ट करते हैं और इनको हमारा शरीर इन्द्रिय के द्वारा जानता है और जो विषय पहले से ही संस्कार के रूप में मौजूद होते हैं तो उसके अनुसार हम कर्म करते हैं।।
मतलब अगर संस्कार संचित कम होने लगे तो विषयों के अभाव में हम शान्त रहने लगेंगे।।
संस्कार नष्ट मतलब क्रिया के द्वारा ध्यान में
शरीर जड है और इसलिए इस बारे में लगातार चिन्तन करते रहना चाहिए जड़ पदार्थ से हमारा कोई भी सम्बन्ध नहीं है क्योंकि हम चैतन्य चित्र रहित ज्योतिर्मय आनन्द रुप आत्मा है।।
सवाल यह है कि मानने से काम नहीं चलता है तो इसलिए हमारे ऋषियों ने अभ्यास के लिए बहुत जोर दिया है और जो भी विषय हमारे विकार के कारण है वो सबसे पहले चित्त में उठते हैं उसे मन घटा या बढ़ा देता है इसलिए उस विचार रुपी विकार को मन से ही मारो।।
मारो यानी यह चिन्तन की इन्द्रियों का विषय यह शरीर है जो कि जड है और हम ईश्वर लीन चैतन्य निर्विकार निराकार अजन्मा आतमरुप है।।
लगातार आतमरुप के चिन्तन से विचारों में बहुत ही जल्दी शुद्धि होने लगती है और आत्माराम जागरण शुरू हो जाता है।।
विश्वास करें जितना अधिक आत्माराम का चिन्तन करते हैं वो हमारे सामने प्रतयक्ष ऐसी स्थिति खडि करने लगता है जो हमें भवसागर से पार लगाती है।।
जितना भी नाम जप है वो सभी आत्माराम यानी आतमरुप के लिए ही है।।
यह विषय बहुत ही ध्यान से समझिए और इसके भीतर उतरने पर आत्माराम निश्चित ही हाथ पकड़ लेता है।।
जय गुरुदेव🙏👏😊🌹
Bhakt Anil Kumar: क्या आत्माराम का चिंतन ,बिना शक्ति जाग्रति के भी काम करेगा
Hb 96 A A Dwivedi: जगत कैसे उत्पन्न हुआ है यह जानने की विधि है तत्व ज्ञान और जिससे यह पता चलता है कि कुछ भी न उत्पन्न हो रहा है और न ही नष्ट हो रहा है।।
जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो भ्रम मात्र है और सबकुछ आत्मतत्व में चैतन्य शक्ति में मन के फुरने से हो रहा है जिसे संकल्प भी कहते हैं।।
ब्रहम सत्य जगत मिथ्या
जब हम शरीर को अपना अस्तित्व मान लेते हैं जो कि सत्य प्रतीत होता है तो शक्ति के कार्य को अपने से अलग नहीं देख पाते हैं शक्ति जागरण के बाद भी तो ऐसे में मन की शक्ति जो चंचलता है उसे विचारों के द्वारा काटकर तीव्र गति प्रापत होती है।।
जैसे लोहे को लोहा काटता है वैसे ही मन में उठ रहे विचारों को आत्मचिंतन से समाप्त करने की विधि कारगर है और शासत्र सम्वत है।।
जब तक आतमरुप के दर्शन नहीं होते हैं और चित्त में संस्कार रहते हैं या फिर हम अज्ञानवश इसे छोड़ रहे हैं तो शक्ति जागरण के पहले और बाद दोनों ही स्थितियों में आत्मचिंतन बहुत ही श्रेष्ठ साधन है और त्वरित परिणाम मिलता है।।
जय गुरुदेव👏🙏😊🌹
Bhakt Anil Kumar: स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज
गुरुदेव ने कहा है कि चिंतन मनन सब शंक्ति जाग्रति कै बाद ही काम करेंगे
Hb 96 A A Dwivedi: गुरुदेव ने ऐसा कहा है जिसका अर्थ है पुरुषार्थ से शक्ति का सदुपयोग।।
शक्ति हि सबकुछ करती है यह अज्ञानता है शक्ति को वह समय और उचित आत्मचिंतन लगातार करना पड़ता है।।
अन्तर जागरण में शक्ति प्रतयक्ष ध्यान में कार्य करती है लेकिन जगत के व्यवहार में हमारे अनुभव जिसे बुद्धि कहा गया है उसका हि उपयोग आत्मचिंतन है और यह करम करने के कारण प्रारब्ध काटने और नये पैदा न हो इसका मार्ग प्रशस्त करती है।।
जय गुरुदेव👏🙏😊🌹
Bhakt Brijesh Singer: श्री मदभगवत् गीता....
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश -- ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार -- यह आठ प्रकारके भेदोंवाली मेरी अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो ! इस 'अपरा' प्रकृतिसे भिन्न मेरी जीवरूपा बनी हुुई मेरी 'परा' प्रकृतिको जान, जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है।
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।
यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञरूप दोनों परा और अपरा प्रकृति ही जिनकी योनि कारण है ऐसे ये समस्त भूतप्राणी प्रकृतिरूप कारणसे ही उत्पन्न हुए हैं ऐसा जान। क्योंकि मेरी दोनों प्रकृतियाँ ही समस्त भूतोंकी योनि यानी कारण हैं इसलिये समस्त जगत्का प्रभव उत्पत्ति और प्रलय विनाश मैं ही हूँ अर्थात् इन दोनों प्रकृतियोंद्वारा मैं सर्वज्ञ ईश्वर ही समस्त जगत्का कारण हूँ।
Bhakt Anil Kumar: पुरुषार्थ शक्ति का है या जीव का
Npc Narendra Parihar: इस मंच के महानुभावों का, काफी प्रचारित हो रहे , इस सन्देश पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा।
क्या ऐसा कोई संयोग है?
वाह मोदी जी वाह!
क्या तोड़ निकाल कर लाए।
हम सोच रहे थे यह 5 तारीख को रात 9 बजे 9 दिए लगाने से क्या होगा?
इसी विषय पर लगभग आधा घँटे से *मनो मंथन* कर रहे थे। अंत में निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि।
तंत्र में प्रदोष का बहुत महत्व है। और 8 तारीख को आने वाले हनुमान जयंती अवसर के पूर्व 5 तारीख को मदन द्वादशी का प्रदोष काल अति महत्वपूर्ण काल है।
तंत्र मतानुसार प्रदोष काल में कोई अपने घर के सामने या छत पर चौमुखी दीपक सरसों के तेल से लगाए तो उस घर के आसपास संक्रमण समाप्त हो जाता है।
अगर चौमुखी न हो तो 9 दीपक लगाएं।
यह सब जानकर हम आश्चर्य चकित रह गए कि मोदी जी हर क्षेत्र में आगे है।
धन्य है हम ऐसा प्रधानमंत्री पाकर ।
जो आध्यात्म की पराकाष्ठा को छूता हो।
सनातन धर्म की जय हो।
🌹🌹🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 2 3
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