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Tuesday, September 15, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 23 | 9 का चक्कर या घनचक्कर

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 23 

9 का चक्कर या घनचक्कर


Npc Narendra Parihar: जिज्ञासा शान्ति हेतु ही यह सन्देश यहां उध्दृत किया गया है।

धन्यवाद।

Amita Bhabhi: PM’s numerology

1. Came at 9:00 am

2. Speech for 9 mins

3. Date 5th April i.e. 5+4=9

4. At 9:00 pm for 9 mins

5. 9 days of lockdown today

6. 9 days will be left on 5th April

 5 Apr (5+4) = 9*

9* pm

9* Mins

9* number is Mars (मंगल)

Light, Fire = Mars

Modi ji Activating energy of planet.

Also

5+4=9, 9 pm, 9 mins.

3 multiplied by 9 = 27 i.e. 2+7 = 9.

Navgruha aaradhana means pleasing the nine planets to save life.

*सब का  मंगल  हो*

Very nicely explained by Jaya Madan why modiji informed and wish to do Diya on particular time n date...9.Hats off to such a PM.

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी पूरे दिन में सूर्य न जाने कितने क्लोरी ऊर्जा उत्सर्जन करता है।

पूरे भारत वाशी प्रति दिन रसोई, पूजा पाठ आदि में भी ऊर्जा का उत्सर्जन करते है।

उस वक्त लाइट आदि बन्द करने को कहा गया है जबकि यह लाइट  तो ऊर्जा का काफी उत्सर्जन करते है।

फिर कौन सी ऐसी ऊर्जा यह दीया, टॉर्च, मोबाइल है जोकि इस विषाणु को मारेगी। यह बिल्कुल कोई ऐसी ऊर्जा का उत्सर्जन नही कर रहा। सिवाय एक के।


हमारा समाज एक और विसानु से लड़ रहा है वो है मुहजिदो से। वरना कोई कारण नही था प्रधानमंत्री का लॉकडाउन के मध्य में आना और कोई विशेष दिशा निर्देश दिए बिना केवल यह कार्य के लिये कहना। यहाँ यह आवश्यक था कि इन मुहजिदो को बताना की समस्त प्रजा राजा के साथ है, इसलिये संगठन की ऊर्जा को निसर्जित करना आवश्यक है। आप क्या मानते है, मोदी जी या प्रसाशन का कोई व्यक्ति आपको देखने आएगा कि आपने दीया जलाया या नही। नही। कोई नही आएगा, लेकिन एक व्यक्ति जरूर देखेगा। मुहजिद।

वो देशद्रोही जो किसी न किसी रूप में आपके हमारे मध्य है। उसे जरूर एहसास होगा, संगठन का। वो छिटक कर समाज के सामने भी आ जायेगा ठीक पॉपकॉर्न की तरह।

इसलिये यह तनिक सी ऊर्जा का उत्सर्जन आवश्यक है। कोरोना का वायरस तो बाल का भी हजारवाँ हिस्सा है उसे नजर नही आएगा कि अमुक व्यक्ति ने ऊर्जा की या नही की। लेकिन बगदादी की औलादों को ठीक ठीक नजर आएगा।

जय गुरुदेव।

जय श्री कृष्णा

Pragya del: लीजिए आनंद उस दृश्य का जिसके लिए विश्व का हर रामभक्त 70 बरस से प्रतीक्षारत था

(लोग मास्क लगाए खड़े हैं और सोशल डिस्टेनसिंग का भी काफी ध्यान रखा जा रहा है)

तो बोलो

*सिया वर राम चन्द्र की - जय*

🚩जय श्री राम🚩

Pragya del: <Media omitted>

यक्ष प्रतिज्ञा।

विपुल लखनवी नवी मुंबई।


आओ मिलकर दिया जलाएं

दीया जलाकर देश बचाएं

दुनिया के आदर्श बन जाए

जहां आग हो उसे बुझाएं


धर्म संग मानवता जाने

घर के दुश्मन को पहिचाने

राष्ट्र चले विकास पथ पर

विकासशील देश कहलाएं


विपुल सबल जब राष्ट्र बनेगा

तब तक हम को चलना होगा

बाधाएं कितनी हो पथ पर

हर बाधाओं से टकराएं

Bhakt Lokeshanand Swami: बड़ी पुरानी घटना है। लाहौर में एक भक्त रहते थे, नाम था छज्जू। वे बड़े प्रभु-प्रेमी थे। एक दिन वे अपने चौबारे में सत्संगियों के साथ बैठे थे।

ज्ञान-ध्यान की बातें चल रही थीं कि नीचे संगतरे बेचनेवाला आया और ऊँची आवाज़ से कहने लगा-"अच्छे संगतरे! अच्छे संगतरे!"

छज्जू भक्त ने सत्संगियों से पूछा- "भक्तों! यह नीचे से क्या आवाज़ आ रही है?"

सत्संगी- "महाराज! संगतरे बेचनेवाला संगतरों का गुण बता रहा है।"

छज्जू भक्त- "ठीक है, परन्तु कहता क्या है? ध्यान से सुनो तो सही!"

इतने में फिर आवाज़ आई- "अच्छे संगतरे!"

सत्संगी- "महाराज! अच्छे संगतरे ही कह रहा है।"

छज्जू भक्त- "हाँ, यही कहता है। समझो! अच्छे संग तरे, जो अच्छों की संगति करता है, वह तर जाता है। अच्छे संग तरे!"

Bhakt Lokeshanand Swami: <Media omitted>

Bhakt Lokeshanand Swami: जनकजी के हृदय आँगन में खेलते खेलते भक्ति देवी, वृद्धि को प्राप्त हो गईं, युवा हो गईं। बस अब यह उन्हें सौंप दें, जिनकी धरोहर है, तो जीवन का संपूर्ण लाभ मिल जाए।

और इसके लिए कुछ करना नहीं है, बस प्रतीक्षा मात्र करनी है।

भीतर तक, वर्षा की टपाटप आवाज आ रही है, बाहर आकाश में घनघोर काले बादल होंगे ही, इसमें संशय कैसा? यहाँ भक्ति उफान पर है, तो भगवान आएँगे ही, इसमें भी संशय न करें।

पर भगवान कैसे आएँ? अभी तक गुरुजी नहीं आए ना। बस गुरुजी के आने की देरी है, भगवान के आने में देरी नहीं है।

आज संदेशवाहक दौड़े आए। संदेश दिया कि मुनि विश्वामित्रजी आ रहे हैं। बस जनकजी सिंहासन से उतर गए। उतरना ही था। जिन संत का हृदय पटल, उन अखिल कोटि ब्रहमाण्ड नायक आनन्दकंद भगवान श्री रामचंद्र जी का सिंहासन हो गया हो, उनके सामने जगत का बड़े से बड़ा सिंहासन भी मिट्टी है। जहाँ हीरा मिल रहा हो, वहाँ कौन मुट्ठियों में मिट्टी पकड़े रहे?

जनकजी मंत्रिमंडल सहित नगर के बाहर आ खड़े हुए।

जन्मों की प्यास बुझने को तैयार है, अब तो गुरुजी आ जाएँ बस। एक एक पल बरस सा बीत रहा था, कि सामने से गुरुजी आते दिखाई दिए। जनकजी दौड़ कर चरणों से लिपट गए।

गुरुजी ने उठाया, जनकजी उठे। बस उठते ही आँखें भगवान की आँखों से मिल गईं, जनकजी खड़े के खड़े रह गए।

आप सुधि पाठकजन विचार करें कि आपके पास गुरुजी तो हों, पर आपके हृदय आँगन में भक्ति देवी ही न खेलती हों, वहाँ कामना पिशाचिनी का वास हो, वासना का नंगा नाच चलता हो, तो गुरुजी भी क्या करें? कैसे भगवान से आपको मिला दें?

अब विडियो देखें- सीताजी का प्राकट्य-2

https://youtu.be/puXXKlOkPoc

प्रैल 2020, एक बड़ी चुनौती है विद्युत विभाग के सामने कि भारत के माननीये  प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषित 9 मिनट तक दीपक या मोमबत्ती के रोशनी में रहना है। उससे बडी और एक ऐतहासिक चुनौती विद्युत विभाग के सामने है विद्युत ग्रिड को बचाने की। जब विद्युत मांग लगभग शून्य हो जाएगी और ठीक 9 मिनट के बाद जब दोबारा रोशनी चालू होगी, तब ग्रिड कैसे व्यवहार करेगा? ये सब एक बड़ी चुनौती है। अतः अनुरोध है कि मा0 प्रधानमंत्री जी के आवाहन का क्रियान्वयन करते समय अपने घर के अन्य उपकरण जैसे पंखा, कूलर, फ्रिज, वातानुकूलन यंत्र आदि चालू रखें ताकि ग्रिड पर लोड शून्य न हो जाए। दीया प्रज्वलन की अवधि के उपरान्त घर के पूर्व चलित उपकरणों में से कुछ उपकरण बन्द कर दें एवं घर में प्रकाश व्यवस्था हेतु लगे उपकरणों को एक एक करके कुछ समयावधि अन्तराल पर चालू करें ताकि ग्रिड फ़ेल होने से बचाया जा सके।

हम सब सुरक्षित रहें,

हमारा देश सुरक्षित रहे यही कामना है।

🙏जय हिंद🙏

सौजन्य से- बिजली विभाग😊

http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_25.html?m=1

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

अ-त्रिनेत्र: सर्व साक्षी, अ-चतुर्बाहुरच्युत:।

अ-चतुर्वदनो ब्रह्मा, श्रीगुरु कथित: प्रिये।।47।।

अर्थ: हे प्रिये (पार्वती)!  बिना तीन नेत्रों के जो सर्व साक्षी शिव का स्वरूप है, बिना चार हाथ के जो भगवान विष्णु है और बिना चार मुख के जो चार मुख वाले ब्रह्मा के समान है। ऐसे गुरुदेव को ब्रह्मा विष्णु एवं शिव रूप कहा गया है।

व्याख्या: भाव यह है कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव तीनों परब्रह्म की शक्ति के आधार पर ही देवत्त्व धारण किये हुए है, उसी शक्ति के प्रभाव से सृजन, पालन, संहार आदि कार्य करने में समर्थ होते है। प्रकारान्तर से, ये तीनों देवता उस शक्ति का ही स्वरूप है।

किंतु यहाँ गुरुतत्व की शक्ति से विभूषित गुरुदेव को, इन तीनो देवताओं के प्रतीकात्मक चिन्हों के न होने पर भी इन तीनों देवताओ की सम्मिलित शक्ति का प्रतीक मान कर स्तुति की गई है। वैसे गुरु शक्ति का क्षेत्र इतना व्यापक है, कि जगत के जितने प्राणी है, उनकी इंद्रियां तथा मन आदि की सभी क्रियाएं, इस गुरुशक्ति के द्वारा ही कार्य करने में समर्थ होती है। भगवान शंकर की उपमा देते हुए यहाँ गुरुदेव को सर्वसाक्षी के विशेषण से विभूषित किया गया है। सब प्राणियों के जितने भी कार्य कलाप है, इसी गुरुशक्ति से संचालित होने के कारण उन सब कार्य कलापों के साक्षी भी वे गुरु देव है। यहाँ भगवान विष्णु के स्थान पर "अच्युत" शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ होता है "जिसे कोई शक्ति, अपने स्थान से च्युत नही कर सकती अर्थात हटा नही सकती" ब्रह्मा, जिस प्रकार सृजन कार्य करते है, उसी प्रकार गुरुदेव भी साधकों के निर्माण करते है, अतः ब्रह्मा है।

Vipul Sen: <Media omitted>

यह दीप ज्योति की प्रार्थना आपके लिए ढूंढ कर लाया हूं कल आप लोग रात 9:00 बजे इसको अपने साउंड बॉक्स पर बजाने का अनुरोध है।

निवेदक विपुल लखनवी नवी मुंबई।

- Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*अवश्यमनुभोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।*

*नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटि शतैरपि ।।*

मनुष्य अपने अच्छे व बुरे कर्मों का परिणाम अवश्य प्राप्त करता है ।  अतः सत्कर्म का सतत् प्रयासरत रहे।

Man is bound to experience the fruit of his good and bad actions. The KARMA doesn't diminish even after billions of days unless one experienced the fruits of KARMA(Action) .

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

*Be Alert* 🔴

Humble Request


*Those of you who plan to burn "Diya/Candle" on 5th April 2020 @ 9 pm, please do ensure that there is no Sanitizer on your Hand*

Pass on this message to maximum groups / your contacts.

As sanitisers are made from ethanol, a highly inflmable chemical. Mixed with hydrogen peroxide, which gives necessant oxygen, help for burning.

Glycerine is also flammable organic chemical.

Hence washing hands with soap is recommended before Diya lightening.

Mr. MK Mathur

Associate Director, NPCIL

*(Nuclear Power Corporation of India  Limited*):-

Pl keep all Fans ON for fifteen minutes on dated 5/4/20 (8:55pm to 9:10pm) to maintain Grid-stability.

With Regards.....

Send this message in all groups.

+91 99260 92451: *गुलजार साहब की यह कविता आज बहुत याद आ रही है...👏👏*

*"बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है......."*

*"........मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है...."*

*"सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल......."*

*".......यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है...."*

*"ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो......."*

*"........क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है...."*

*"दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी......."*

*".......यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है"......👍*

*Stay  at  HOME.....🏠*

*..........Stay  SAFE..... 😍


*_➡मंदिर तक पहुँचना तन का विषय है..!_*

*_✅लेकिन ईश्वर तक पहुँचना मन का विषय है..!!_*

*_🌿🍁गुरुदेव दत्त🍁🌿_*

+91 99260 92451: "मनुष्य उतना दुःखी किसी बड़ी दुर्घटना से भी नहीं होता, जितना अपनी स्मृतियों से होता है ।गड़े मुद्दे उखाड़ कर वह स्वयं परेशानी मोल लेता है ।उसके दूषित सन्स्कार चित्त को अशांत करते रहते है ।अपने आनन्दमय कोष पर परदा डालकर वह जिवन भर रोता ही रहता है ।"

    *स्वामी विष्णुतिर्थ *

"मनुष्य अपनी वासनाऔ को जितना बढ़ाता है और अपने मन के संकल्पो को जितना अधिक उलझन में डालता है, उतना ही वह अपनी कुण्डलिनी शक्ति के कुण्डलो को मजबूत करता है ।जिनकी सब गांठें खुल गई हो, मन संकल्प- विकल्प रहीत बन गया हो और वासनाये नष्ट हो गई हों, वही योगी हैं ।"

      *स्वामी विष्णुतीर्थ*

"जिस मनुष्य के व्दारा संसार में उत्तेजना नहीं फेलती और जो स्वयं किसी भी स्थिति में उत्तेजित नहीं होता, -ऐसा हर्ष, शोक और भय के उव्देगो से मुक्त मनुष्य शिव रूप होता है ।"

**स्वामी विष्णु तिर्थ **

मित्रों कल जब आप 9:00 बजे दीप जलाएं उसके पश्चात आप यदि चाहे तो रात को सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करें क्योंकि कल सभी आध्यात्मिक शक्तियों का आवाहन देश की जनता 9 मिनट तक करेगी अंत: आपको हो सकता है एक बार में ही कुछ अनुभव हो जाए।

Bhakt Lokeshanand Swami: देखो, भगवान आ तो जाते हैं, पर टिकते नहीं, निकल निकल जाते हैं। भगवान को ठहरा लेना हर किसी के बस की बात नहीं।

ध्यान दो, भगवान आए तो जनकजी की आँखें रामजी पर से हटाए नहीं हटतीं। हटाते हैं, पर फिर फिर उन्हीं पर टिक जाती हैं। जनकजी विचार में पड़ गए।

बड़ी कीमती बात है, महापुरुष के जीवन में दूसरे की बात नहीं, अपना अंतःकरण ही प्रमाण होता है। जनकजी अपने मन को जानने वाले हैं।

वे विचार करने लगे कि जो मन लौकिक सौंदर्य पर रीझ नहीं सकता, इन पर से हटता क्यों नहीं? ऐसा पहले कभी हुआ नहीं, होने की संभावना नहीं, फिर क्यों हो रहा है? जनकजी ने निर्णय लिया, कि मेरा मन ही प्रमाण दे रहा है कि ये लौकिक नहीं हैं, इस लोक के नहीं हैं, अलौकिक हैं, परतत्व हैं, परमात्मा हैं।

बस परमात्मा पहचाना गया, रोम रोम हर्षित हो, बार बार गुरुजी के चरणों में गिरते हैं। "बड़ी कृपा की, बड़ी कृपा की" ऐसा बार बार कहते हैं। प्रभु के दर्शन हो गए, जीवन सफल हो गया, आँखों का लाभ मिल गया।

भगवान तो आ गए, अब प्रश्न पैदा हुआ कि भगवान को ठहराऊँ कहाँ? जनकपुर में आलीशान महलों की कोई कमी नहीं है, सामान्य जन और स्वयं जनकजी लगभग एक जैसे भवनों में रहते हैं। पर ईश्वर को सांसारिक ऐश्वर्य नहीं रोक सकता। इन्हें तो किसी विशेष भवन में ठहराना चाहिए। कहाँ? भक्ति के भवन में ठहराना चाहिए।

बस जनकजी को सीताजी की याद आ गई, सीताजी को बुलाया। जानकी! कुछ समय के लिए तुम्हारा भवन चाहिए, मैं वहाँ रामजी को ठहराना चाहता हूँ। और ऐसा ही हुआ, रामजी सुखपूर्वक ठहर गए। जनकजी का मनोरथ पूरा होने को ही है।

आप भी अपना मन भक्ति का भवन बना लें, भगवान स्वयं आकर ठहर जाएँगे, आपका भी मनोरथ पूरा हो जाएगा।

और मन को भक्ति का भवन कैसे बनाएँ, इसके लिए अब विडियो देखें-

https://youtu.be/ESPnyWtrLSA

Bhakt Lokeshanand Swami: <Media omitted>

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी।

विद्या कामदुघा धेनु: सन्तोषो नन्दनं वनम्॥

क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है।

Anger is like King of Death. Greed is like turbulent river of hell. Knowledge is all fulfilling cow and contentment is the heaven's paradise.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Bhakt Anil Kumar: होइहि सोई जो राम रचि राखा

को करि तर्क बढावै शाखा

सब कुछ ईश्वर की इच्छा हो रहा है

इसलिए जिनको यह लगता है कि उनसे कोई गलती हुई तो वह गलत

और कोई यह कहे कि अध्यात्म में मैंने काफी ऊंची अवस्था को प्राप्त कर लिया तो ये भी गलत

इसलिए इस ग्रुप में कोई कहता है कि हमारे हाथ में केवल प्रयास करना है फल ईश्वर के हाथ

पुरुषार्थ उसका☝🏻समर्पण भी उसको।

हर काम उसका☝🏻सब अर्पित हो उसको।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

अयं मयान्ज्लिर्बद्धो, दया सागरवृद्धये।

यदनुग्रहतो जन्तुश्चित्रसंसार मुक्तिभाक्।।48।।

अर्थ: अपनी सर्वतोमुखी वृद्धि (उन्नति) के लिये दयासागर इन गुरुदेव की बद्धाजंलि होकर (प्रार्थना-करना चाहिये कि हे दया सागर! आप मेरी साधना की वृद्धि में सहायक हो।) प्रणाम करना चाहिये। जिनके अनुग्रह प्राप्ति के बाद प्राणी इस चित्र (विविधता से भरा हुए)  संसार से मुक्ति का भागी बनता है।

व्याख्या: गुरुदेव तो दया के सागर होते ही है। उनका प्रकाट्य ही शिष्यों के कल्याण के लिये होता है, किंतु शिष्यों को उनके समक्ष बद्धाजंलि होकर, अर्थात विनम्रता पूर्वक श्रद्धा सहित प्रणाम की मुद्रा में प्रस्तुत होना चाहिये। बद्धाजंलि का एक अर्थ और लिया जा सकता है, जब तक खुले हाथ होते है द्वैत का प्रतीक है, और जब दोनों हाथ मिल जाते है, तो अद्वैत भाव की मुद्रा बन जाती है, जिसका अर्थ होता है कि संसार के प्रति मेरी जो द्वैत भावना है, उसका आप नाश कर दे।

"चित्र संसार मुक्ति भाक्" का अर्थ होता है कि यह संसार नाना प्रकार की विविधता से युक्त होने के कारण चित्र की भांति सबको अपनी ओर आकर्षित करता रहता है और इस प्रकार के संस्कारों को जन्म देता है, जो बन्धन के कारण होते है एवं इसी कारण आवागमन के चक्र से मुक्ति नही मिल पाती। यहाँ गुरु शक्ति के अनुग्रह प्राप्ति की प्रार्थना करते हुए, संचित संस्कारो के क्षीण करने हेतु एवं अपने अभ्युदय के लिये प्रार्थना कर रहा है। मुक्ति की याचना कर रहा है

Vipul Sen: <Media omitted>

ये प्रार्थना स्वास्तिक की प्रार्थना है इसको भी आप शाम को बजा सकते हैं।

Hb 96 A A Dwivedi: पता नहीं क्यों तुम बार बार हमारी गाली खाने आ जाते हो और जानते हो कि हमारे हृदय में तुम्हारे लिए गालीयां है।।

राम यानी हमारे पुरूषार्थ

पुरुषार्थ यानी समर्पण भाव जो ध्यान में शक्ति के सम्मुख हम करते हैं और उससे हि चित्त की सफाई होती है और संस्कार नष्ट होते हैं।।

वैसे तो संसार में सबकुछ शक्ति का खेल चल रहा है लेकिन जब हम जगत व्यवहार में होते हैं तो अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं और उस समय शरीर क्रिया करता है जो कि संस्कार के अनुसार गति करता है।।

यह गुढ बात समझ आना जरूरी है।।

बगैर ध्यान साधना के लोग सबकुछ शक्ति के भरोसे छोड़ देते हैं जो सही नहीं है और शरीर से क्रिया तथा मन से कर्म करते हुए नये संस्कार जोड़ने लगते हैं।।

अजपा जप जिसे कहा गया है वो भी शक्ति के द्वारा ही होता है और जब हम इसमें अहम भाव जोड़ लेते हैं तो उससे भी संस्कार संचित होते हैं।।

राम यानी पुरूषार्थ के द्वारा प्रारब्ध कर्म फल को भी कम किया जा सकता है यही करम का सिद्धांत है।।

अध्यात्म में ऊंचाई जैसी कोई चीज नहीं होती है कारण ऊंचाई पर स्थित होने पर जगत हि नहि रह जाता है।।

कोई ऊंचाई पर स्थित है तो हम सबको दर्शन का लाभ करवाओ

 Bhakt Anil Kumar: लेकिन आप गाली तो देते नहीं कभी

 पुरुषार्थ और समर्पण

दोंनों को ठीक से समझाइये

और अन्य लोग भी चर्चा में सम्मिलित हों तो निष्कर्ष पर जल्दी पहुंच सकते हैं

Hb 96 A A Dwivedi: आत्मा, ईश्वर इसको शास्त्रों में पुरुष कहा गया है और उसके दृष्टा भाव में स्थित होने पर जो भी कार्य होते हैं उसे हि समर्पण कहते हैं।।

ध्यान में जब हम अपने स्वयं के प्रयास बन्द कर देते हैं और साक्षी भाव से क्रियाओ का अवलोकन करते हैं उसे हि समर्पण कहते हैं।।

मतलब जीव भाव का पुरुष भाव में आना

इसलिए पुरुषार्थ और समर्पण एक ही है।।

यह बड़े महाराज जी ने कहा भी है शायद पुस्तक मिलती है तो लेख भेजते हैं

🌹😊👏🙏

Bhakt Anil Kumar: पुरुषार्थ और समर्पण दोंनों एक ही हैं

☝🏻इस पर विपुल सर आप भी अपने विचार रखें

क्या कोई और अधिक अच्छे से नहीं समझा सकता

क्या ग्रुप में कोई भी नहीं जो सही से समझा सके

अंतर मात्र भाव का है भाव ही पुरुषार्थ को समर्पण का रूप दे देता है और भाव ही पुरुषार्थ को गर्व यानी अहंकार का रूप भी बना देता है निर्भर यह करता है हम किस भाव में रहते हैं।

पुरुषार्थ के कई अर्थ होते हैं लेकिन वास्तविक अर्थ यह है कि तुम अपने को पहचानो और वह सारे अर्थ जो तुम्हारी पहचान में रुकावट डालते हैं वह पुरुषार्थ नहीं गर्व है यानी अहंकार है।

अहंकार भी कई अर्थ लिए होता है इसीलिए मैं गर्व वाला अहंकार लिख रहा हूं।

अपने को जानना ही अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना ही वास्तविक अहंकार है भौतिक रूप में अपनी पहचान बनाना और उस में लिप्त हो जाना यह गर्व वाला अहंकार है।



आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 2 4

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