आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 34
Printer Raman Mishra: न्यूटन ने कहा है कि जैसे सागर के किनारे कुछ सीप बीन ली हों, कुछ रेत पर मुट्ठी बांध ली हो, ऐसा मेरा ज्ञान है। सागर के किनारे अनंत-अनंत बालू-कणों के बीच थोड़ी सी रेत पर मुट्ठी बांध ली है; थोड़े जैसे बच्चों ने सीपें, सागर के शंख बीन लिए हों, ऐसे ही कुछ शंख बीन लिए हैं--ऐसा मेरा ज्ञान है। जो मैं जानता हूं, वे मेरी मुट्ठी के रेत-कण हैं। और जो मैं नहीं जानता हूं, वे इस सागर के रेत-कण हैं।
लेकिन न्यूटन कह सकता है। न्यूटन गंवार नहीं है। न्यूटन जैसे-जैसे जानने लगा, वैसे-वैसे अज्ञान प्रगाढ़ और स्पष्ट होने लगा। लेकिन किसी गंवार को पूछें, वह इतना भी मानने को राजी न होगा कि मेरी मुट्ठी में जितने कण हैं, उतना भी मेरा अज्ञान है। जितने सागर में कण हैं, वह तो मेरा ज्ञान है ही; लेकिन जितने मेरी मुट्ठी में हैं, इतना भी मेरा अज्ञान है, यह भी मानने को राजी न होगा।
इसलिए मूढ़ बड़े सुनिश्चित होते हैं। और इन सुनिश्चित मूढ़ों के कारण जगत में इतना उपद्रव है जिसका हिसाब लगाना कठिन है। क्योंकि वे बिलकुल निश्चित हैं। जगत में दो ही कठिनाइयां हैं: मूढ़ों का निश्चित होना, ज्ञानियों का अनिश्चित होना। इसलिए मूढ़ कार्य करने में बड़े कुशल होते हैं। ज्ञानी निष्क्रिय होते मालूम पड़ते हैं। ज्ञानी इतना अनिश्चित होता है, कोहराछन्न होता है, रहस्य में डूबा होता है, इतने काव्य से घिरा होता है कि गणित की भाषा में सोच नहीं सकता। मूढ़ आंख बंद करके वहां प्रवेश कर जाते हैं, जहां देवता भी प्रवेश करने में डरें। मूढ़ काफी सक्रिय होते हैं। उनकी सक्रियता उपद्रव लाती है।
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गणपति बप्पा मोरिया।
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।
हिंदुत्व की कब्र देखकर। विवेकानंद ही रो रिया॥
साधु बाबा हत्या केस में। हत्यारों को छोड़ दिया।
जाने कितने पकड़ लिए थे। कर सम्मानित छोर दिया॥
जो हिंदु के रक्षक कभी थे। अब भक्षक ही बन बैठे।
सत्ता कुर्सी की खातिर वो। हिंदू विरोधी हो रिया॥
हिंदू सब कुछ सहन करे। पर उसको मारा जाता।
जो बेचारा शांतिदूत है। कतल उसी का हो रिया॥
जो हिंदु के अतिथि बने थे। उसको ही खसोट रहे।
राजनीति करने वाले भी। उसको ही है लूट रिया॥
तेल कान में डाले बैठे। हिंदू मूरख समझ है ऐठे।
अब कितने दिन मौज रहेगी। न कोई ये सोच रिया॥
चार दिनों का जीवन अपना। चार दिनों दुनियादारी।
मार काट इसी में मचाई। नहीं समझ यह कोई रिया॥
कैसा यह अंधेर मचाया। किसको मारा किसे बचाया।
जो सद् जन दुर्जन है पीटे। पक्ष उसी का हो रिया॥
गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।।
Printer Raman Mishra: संविधान के 'मूल संरचना सिद्धांत' को निर्धारित करने वाले ऐतिहासिक फ़ैसले के प्रमुख याचिकाकर्ता रहे केशवानंद भारती का निधन हो गया है. वे 79 वर्ष के थे.
उन्होंने रविवार सुबह केरल के उत्तरी ज़िले कासरगोड में स्थित इडनीर के अपने आश्रम में अंतिम साँस ली.
केशवानंद भारती इडनीर मठ के प्रमुख थे. मठ के वकील आई वी भट ने बीबीसी को बताया, "अगले हफ़्ते भारती की हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी होनी थी, लेकिन रविवार सुबह अचानक उनकी मृत्यु हो गई."
केशवानंद भारती का नाम भारत के इतिहास में दर्ज रहेगा. 47 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था जिसके अनुसार 'संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता.'
इस फ़ैसले के कारण उन्हें 'संविधान का रक्षक' भी कहा जाता था.
Bhakt Lokeshanand Swami: लोकेशानन्द कहता है कि भगवान की अनन्त कृपा और कोटि कोटि जन्मों में किए सत्कर्मों के फल स्वरूप, नौ द्वार वाले इस मनुष्य शरीर रूपी अयोध्या के, हृदय रूपी राज सिंहासन पर, परमात्मा राम का राज्याभिषेक होता है।
आज इस कथा में वही प्रसंग आया है, तो दो सद्गुरुओं की चर्चा।
रामजी सीताजी के साथ सिंहासन पर विराज रहे हैं। सब ओर हर्षोल्लास है, उमंग उत्साह है। पर न मालूम क्यों, भगवान के मुखमंडल पर प्रतीक्षा का भाव है। आँखें हर एक आने वाले की ओर उठती हैं, और बार बार निराश होकर झुक जाती हैं।
हनुमानजी को चिंता लगी। पूछने लगे- प्रभु! आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?
भगवान की आँखों की कोर में नमीं स्पष्ट मालूम पड़ती है। भगवान ने कहा- हनुमान! केवट नहीं आए।
सद्गुरू ही केवट हैं, वही नाम रूपी नाव, और नियम रूपी चप्पू द्वारा पार कराते हैं।
उन्होंने मुझे पार लगाया, मैं उनकी कोई सेवा नहीं कर पाया, वे नहीं आए।
हनुमानजी ने चारों ओर नजर दौड़ाई, तो उन्हें एक बात का बड़ा आश्चर्य हुआ, केवट तो वहाँ थे ही नहीं, भरत लाल जी भी नहीं थे।
विस्मित स्वर से हनुमानजी भगवान से पूछते हैं- प्रभु! यहाँ तो भरतजी भी नजर नहीं आ रहे हैं, आपको उनका खयाल नहीं है? वे कहाँ हैं?
भगवान ने कहा- हनुमान! जिस सिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होने जा रहा है, इस पर लगा यह छत्र देख रहे हो? जिस छत्र की छत्रछाया में मैं बैठा हूँ। भरतजी इसी छत्र का दण्ड पकड़ कर, इस सिंहासन के पीछे खड़े हैं।
हनुमानजी ने पीछे जाकर देखा तो भरतजी वहीं थे, और रो रहे थे। हनुमानजी ने भगवान से कहा- प्रभु! भरतजी तो रो रहे हैं। भगवान! जब आप जानते हैं कि भरतजी पीछे खड़े हैं, तो आपको नहीं चाहिए कि उनको आगे बुला लें। जिनकी आँखें आपके राज्याभिषेक को देखने को तरस रही थीं, वे इस दृश्य से वंचित क्यों रहें?
भगवान ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही। बोले- हनुमान! भरतजी अगर आगे आ जाएँगे तो इस छत्र का दण्ड कौन पकड़ेगा? हनुमानजी ने कहा- उसे तो कोई भी पकड़ लेगा प्रभु। भगवान ने कहा- भरतजी यदि उस दण्ड को छोड़ देंगे, तो मेरा राज्याभिषेक आज भी टल जाएगा।
भगवान कहते हैं- मैं दुनियावालों को बताना चाहता हूँ कि अ दुनियावालों! यदि अपने हृदय के राजसिंहासन पर मुझ परमात्मा राम का राज्याभिषेक कराना चाहते हो, तो यह बात ध्यान रखना कि उसी के हृदय रूपी राजसिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होना संभव है, जिसके हृदय पर भरत जैसे किसी संत की छत्रछाया हो।
अब विडियो देखें- राम राज्याभिषेक प्रसंग
https://youtu.be/HIlxud89idk
भवन्ति नम्रास्तरवो फलागमै,
र्नवाम्बुभिभ्रूम्यवलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धता सत्पुरुषा समृद्धिषु ,
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम।।
फलों के भार से वृक्ष झुक जाते हैं, पानी से भरे हुए मेघ भी नीचे ही आते हैं ।
जो प्रतिष्ठित, समर्थ एवं परोपकारी होते हैं वे अपने वैभव का अभियान नहीं करते और नमृता धारण करते हैं
Tree full of fruits will always bow down, same way clouds full of water.
*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
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*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*
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Bhakt Lokeshanand Swami: "समर्पण"
परम पिता परमात्मा श्रीसीतारामजी की असीम अनुकम्पा से यहाँ चल रही रामकथा, कल के राम राज्याभिषेक के प्रसंग से संपूर्ण हुई।
यह लोकेशानन्द, मनुष्य की देह धारण करके समस्त भारतीय भूमण्डल पर विचरण करते परमात्मा, मेरे सद्गुरुदेव भगवान, मेरे प्राणस्वरूप स्वामी मित्रानन्द जी महाराज के चरणों में कोटि कोटि दण्डवत प्रणाम करते हुए, समस्त संत जगत के प्रति श्रद्धा अर्पित करता है।
अनन्त पूर्वजन्मों के अज्ञात संतवृंद, और वर्तमान जन्म की 50 वर्ष की यात्रा में इस लोकेशानन्द को गुरुदेव के साथ साथ, जिन जिन संतों का ज्ञात अज्ञात रूप से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, यथा सर्वस्वामीश्रीमहाराज अड़गड़ानंदजी, माधवानंदजी, राजेश्वरानंदजी, रामकिंकरजी, दीनदयालुजी, शाश्वतानंदजी, आचार्य रजनीश, कृपालुजी, डा०विश्वामित्रजी, रामभद्राचार्यजी, विद्यारण्यशास्त्रीजी, अखण्डानंदजी, शरणानंदजी, रामसुखदासजी और भी अन्यान्य विस्मृत महापुरुषों के चरणों में, वह कोटि कोटि प्रणाम करता है।
भगवान श्रीसीतारामजी इससे जिस जिस रूप से, शत्रु-मित्र भाव से आ-आकर मिले, जिन्होंने कभी प्रेम तो कभी घृणा दिखाकर ही, इसका मार्ग प्रशस्त किया, उन समस्त रूपों को यह साष्टांग प्रणाम करता है।
जिन्होंने अपने विचारों से उत्साहपूर्वक इस कथायज्ञ में सहयोग दिया, उन यहाँ के पाठकजन के श्रीचरणों में भी लोकेशानन्द का प्रणाम स्वीकार हो।
अंत में यहाँ जो भी लिखा गया, उसे वह अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक आनन्दकंद भगवान श्रीरामचंद्र जी के चरणों में समर्पित करता है, और आप सभी का हृदय से धन्यवाद करता है, जिन्होंने इसकी कड़वी खट्टी टेढी मेढी बातों को इतनी गहनता और प्रेम से पढ़ा।
"सियाराम मय सब जग जानि।
करऊँ प्रणाम जोरि जुग पानि॥"
🚩जय श्री सीताराम॥
इस प्रकार 5 मार्च 2020 से प्रारंभ हुई यह रामकथा, अनवरत 187 दिन में संपूर्ण हुई। आप अपने स्थान पर ही रामायण जी की आरती करें और दक्षिणा स्वरूप श्रद्धा प्रेषित करें।
*वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचोवाच:।*
*करणं परोपकरणं येषां केषां न ते वन्द्या: ॥*
जिस के मुखपर सदैव प्रसन्नता है, हृदय मे करुणा है, वाणी मे मधुरता है, कर्म परोपकार के है, ऐसा व्यक्ति किसे वंदनीय नही ?
One who is always happy & having smile in his face, compassionate, soft spoken, always ready to help others ; automatically gets respect from every one in society.
*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा ( L K Verma)*
Jb Ashutosh C: One Should Not Punish Oneself For Someone Else Wrong Doing
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Jb Lokesh Sharma: ऑनलाइन कक्षाएं: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा, स्कूलों को ट्यूशन फीस से वंचित नहीं किया जा सकता, 70% ट्यूशन फीस 3 किस्तों में लेने की अनुमति दी
भ्रष्टाचार हटा पाओगे एक सपना है।
दिन में तारे गिन पाओगे एक सपना है।।
देश को लूटा खसोटा साल साठ में बेच दिया।
फिर से उनको ला पाओगे एक सपना है।।
जो पैदाइशी गधा बना घोड़ा कभी न हो सकता।
खच्चर को दौड़ा पाओगे एक सपना है।।
जिसको हिंदी आती नहीं है वह हिंद पर राज करें।
मूरख को विद्वान बनाओ एक सपना है।।
राम नाम की माला जिसने वक्त चुनाव में डाली।
शठ बुद्धी को पाठ सिखाओ एक सपना है।।
हिंदू मुस्लिम कर के लड़ाया देश चीन को बेच दिया।
देशभक्ति सिखला पाओगे एक सपना है।।
हिंदू हिंदू गाकर तुमने सत्ता की कुर्सी पाई।
पांच साल तक इसे चलाओ एक सपना है।।
निरिह साधु की हत्या तुमने करवाई है शासन में।
चैन से तुम अब सो पाओगे एक सपना है।।
शेर के घर गीदड़ हो पैदा ऐसा सम्भव नहीं हुआ।
ऐसा भी कर दिखाओगे या सपना है।
बुलेट विपुल की कलम चलेगी इसको कैसे रोकोगे।
उसकी कविता छुपा पाओगे एक सपना है।।
*4 मिनट 28 सेकंड आपके जीवन के अपने घर के बुजुर्गों के लिए*
*******कौवा बन कर नहीं आऊंगा श्राद्ध खाने , जो खिलाना है जीते जी खिला दे*********
मैं भारत की सनातन परंपरा के साथ हूँ , हर तीज - त्यौहार-कर्म किसी विशेष कारण से ही होता है । पर आज के समय में जब घर में बुजुर्ग सम्मान खोते जा रहे है , और दिखावे के लिए उनके जाने के बाद बड़े बड़े आयोजन हो रहे हो , तब आज के समय की जरूरत है ये वीडियो ।
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आंखों में आंसू लाने वाली एक कहानी मेरी आवाज में
साभार
प्रतीक दवे रतलामी
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रामदेव बाबा को एक पत्र ई-मेल से भेजा।
Sub: Need no money for technical knowledge for making Ayurvedic cotton from turmeric plant. Farmers can double their income.
परम पूजनीय बाबा रामदेव महाराज जी को कोटि नमन।
मैं पेशे से एक परमाणु वैज्ञानिक हूं और पोस्ट ग्रैजुएट केमिकल इंजीनियर हूं।
कोरोना काल में घर में बैठकर मैंने कुछ शोध कर डाली जिसमें आर्युवेदिक कापुस का निर्माण अनायास हो गया।
यह कापुस शुद्ध आयुर्वेदिक है और हल्दी के गुणों से परिपूर्ण है इसका फाहा बनाकर यदि चोट पर लगाया जाए तो फायदा कर सकता है लेकिन इस पर शोध करना बाकी है।
मैं जन सेवा हेतु यह तकनीकी आपको देना चाहता हूं।
मुझे कोई धन नहीं चाहिए।
मेरी अन्य अविष्कार मैंने सार्वजनिक कर दिए थे जैसे की स्पीड बगैर से विद्युत का निर्माण और शहरी अपशिष्ट जल का शुद्धिकरण।
कई कंपनी के सीएमडी को भेजा तो लोगों ने अपने नाम से पेटेंट करा लिया और उसको सीमित कर दिया।
आशा है आप मेरी शोध को जन सेवा हेतु प्रयोग करने में सहायक हो सकते हैं।
पुनः निवेदन करता हूं कि मुझे कोई धन नहीं चाहिए लेकिन कुछ शर्ते तो अवश्य होगी।
आपको पुनः नमन और प्रणाम।
आपका चाहने वाला
विपुल सेन
उर्फ विपुल लखनवी कविता और वैज्ञानिक लेखन हेतु
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" आध्यात्मिक लेखन हेतु।
ब्लाग: freedhtan.blogspot.com.
जिस पर सनातन संबंधी 400 लेख दिए हुए हैं और सभी अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।
वेब चैनल : vipkavi
वेब: vipkavi.info
Fb :vipul luckhnavi "bullet"
10 काव्य संग्रह प्रकाशित।
जीवन उद्देश्य और लक्ष्य : सनातन का प्रचार करना और जनमानस को हिंदुत्व की सही व्याख्या समझाना।
अवस्था: अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट। क्योंकि वह मिला जिसके लिए मनुष्य हजारो जन्म लेता है।
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 35 (काहे का रोना / हिंदू बनो )
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