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Wednesday, September 16, 2020

विपुल लखनवी के 11 गणपति दोहे

 विपुल लखनवी के 11 गणपति दोहे

 

नहीं बजे इस साल में, कहीं शोर नाहीं ढोल ।

सब अपने मन में भजे, गणपति गणेश बोल।।

तेरा जन स्वागत करें,  दिवस बीतता जाय।

काल करोना आ गया, सबको रहा डराय।।

शानेशौकत न मिले,  मिलेगा मन का भाव।

हे प्रभु घर आंगन बसो, नहीं प्रेम अभाव।।

भक्ति भावना हीन हम, विपुल विकल है भाव।

हे गणपति हिरदय बसो, काग समान मुझ कांव।।

एक दन्त लीला तेरी, जगत समझ न पाय।

समझे जन लीला विपुल, बिरला जग कहलाय।।

शिव शक्ति के पुत्र तुम, जग के पालनहार।

रूप न्यारा अद्भुत धरा, करने दुष्ट संहार।।

मूषक वाहन कर लिया, काटे जग जंजाल।

वरद हस्त जिसको मिला, उसे नहीं भय काल।।

हे गणपति विनती विपुल, तारण तेरो नाम।

सदा ध्यान तेरा करूं, विपुल कोटि प्रणाम।।

रिद्धि सिद्धि संग में तेरे, सदा विराजे श्री धाम।

पंच देव हिरदय बसें, सदा करूं मैं ध्यान।।

प्रभु आये घर मेरे, मत जाना अब छोड़।

निराकार तुझ रूप है, रूप सकार निचोड़।।

ग्यारह पुष्प शब्द लिखे, तुम्हें समरपित आज।

विपुल अश्रु चरनन तेरे, रखियो अपनी लाज।।


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