क्या सद्गुरू होना एक कष्टप्रद भोग है
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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गुरू नहीं है लायक न, न रखे ब्रह्म का ज्ञान।
गुरू जबरिया बन गये, खोले
धरम दुकान।।
पाप पुण्य की बात कह, शिष्यन
मन भरमाय।
अइसन नरकी गुरू धर, हर
गलियन मिल जाय।।
समझदार वो जनै कहूं, परखे गुरु पहिचान।
असली नकली देखकर, गुरजन
मांगे ज्ञान।।
नकली यह दुनिया दिखै, नकल मिलै
भगवान।
असली तो द्वारे खडा, मूरख
कुछ पहिचान।।
वेद शास्त्र तो रट लिये, माथे
तिलक लगाय।
ज्ञानी गुर के वेश धर, पापी
जग भरमाय।।
जगतगुरू का पद मिला, धन दौलत
सनमान।
धरम दुकानैं चल गयीं, भूल गये सब ज्ञान।।
थोथी बातें ज्ञान की, शिष्यन
को भरमाय।
ऐसो पापी गुरन को, धरा नरक मिल जाय।।
इस मानव की देह को, मूर्ख
कहे भगवान।
वह पापी सम दुष्ट है, न
गीता का ज्ञान।।
मित्रो मैं नकली जगत गुरुओं जगत माताओं शंकराचार्य महन्तों
मठाधीश दुकानदारों की बात नही कर रहा हूँ। मै उन समर्थ गुरूओ की बात कर रहा हूँ।
जिनको नामपट्ट भी न चाहिए। जो शक्ति और अनुभव सम्पन्न बिना प्रचार प्रसार के शिव
के सहारे जीते है। मैं अपनी परम्पराओ के गुरूओ को देखता हूँ। कितना संयम नियम
पात्तनजली के यम नियम शम प्रत्याहार के
साथ रहना पड़ता है। फिर चेलो के कर्मो दुष्मकर्मो का फल भी भोगना पड़ता है। अपना
साधन के लिए समय निकालना दुष्कर होता है। मैं उनकी पीड़ाओं को समझता हूँ महसूस करता
हूँ। मुझे सब कर्म छोड़कर जंगल जाने का मन करता है। ऐसे उन गुरूओ को भी होता होगा।
पर उनके गुरु की आज्ञा की मजबूरी और पालन किस प्रकार निभाना पड़ता है। मुझे अक्सर
एहसास होता है। अपनी पीड़ा को छिपाए जगत कल्याण की सोंचो। शायद इससे बड़ा दन्ड न हॉगा।
सत्य को पहिचान कर भी सत्य के पास न जा सको। अपनी अर्जित शक्ति को शिष्यों पर लुटा
दो ताकि उनकी कुंडलनी जागृत हो उनको अनुभव हो। शिष्य तो आनन्दित ही मजे में घूमता है
पर गुरु शिष्य का ध्यान रखे। अपना नही शिष्य का ध्यान रखे।
मित्रो मैं तो मैं यही समझता हूँ। शिव ने जगत कल्याण
के लिए कुछ लोगो को सत्वगुणी दन्ड दिया है जो कौल गुरु बनते है। है प्रभु जब मैं
अपने ब्रह्मलीन गुरु शिवोम तीर्थ जी महाराज को सोंचता हूँ तो अहसास होता है। मेरे
कारण कितने कष्ट उठाये होंगे। आज भी उनको सूछम रूप में मेरी सहायता करने की मजबूरी
है।
है प्रभु मुझे तो कभी गुरु न बनाये। मुक्त रहने दे। जगत के प्रपंच से
मुक्ति दे। यही प्रार्थना है।
सबसे अधिक संयम जो पातंजली ने बताये है अष्टांग के यम
नियम प्रत्याहार अपरिग्रह शौच के अतिरिक्त आंतरिक ध्यान धारणा समाधि। तप संयम और
अहिंसा असीमित पराकाष्ठा है जैन मुनि। वह भी दिगम्बर मुनि। हे प्रभू बस। फिर
श्वेताम्बर। फिर नागा जो समाज से दूर रहते है। बाद में बाकी सब। नकली गुरु भले ही
मजा मारे पर कितने बन्धन है सद्गुरुओ पर। समाज के उत्थान हेतु कितना कष्ट सहते है।
आप सभी गुरु सनातन के प्रचार हेतु ही जन्मते है। आपको कोटिशः नमन।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल