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Wednesday, April 4, 2018

क्या सद्गुरू होना एक कष्टप्रद भोग है


क्या सद्गुरू होना एक कष्टप्रद भोग है


                                                       


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/




गुरू नहीं है लायक न, न रखे ब्रह्म का ज्ञान।
गुरू जबरिया बन गये, खोले धरम दुकान।।
पाप पुण्य की बात कह, शिष्यन मन भरमाय।
अइसन नरकी गुरू धर, हर गलियन मिल जाय।।
समझदार वो जनै कहूं,  परखे गुरु पहिचान।
असली नकली देखकर, गुरजन मांगे ज्ञान।।
नकली यह दुनिया दिखै, नकल मिलै भगवान।
असली तो द्वारे खडा, मूरख कुछ पहिचान।।
वेद शास्त्र तो रट लिये, माथे तिलक लगाय।
ज्ञानी गुर के वेश धर, पापी जग भरमाय।।
जगतगुरू का पद मिला, धन दौलत सनमान।
धरम दुकानैं चल गयींभूल गये सब ज्ञान।।
थोथी बातें ज्ञान की, शिष्यन को भरमाय।
ऐसो पापी गुरन को, धरा नरक मिल जाय।।
इस मानव की देह को, मूर्ख कहे भगवान।
वह पापी सम दुष्ट है, न गीता का ज्ञान।।

मित्रो मैं नकली जगत गुरुओं जगत माताओं शंकराचार्य महन्तों मठाधीश दुकानदारों की बात नही कर रहा हूँ। मै उन समर्थ गुरूओ की बात कर रहा हूँ। जिनको नामपट्ट भी न चाहिए। जो शक्ति और अनुभव सम्पन्न बिना प्रचार प्रसार के शिव के सहारे जीते है। मैं अपनी परम्पराओ के गुरूओ को देखता हूँ। कितना संयम नियम पात्तनजली के यम  नियम शम प्रत्याहार के साथ रहना पड़ता है। फिर चेलो के कर्मो दुष्मकर्मो का फल भी भोगना पड़ता है। अपना साधन के लिए समय निकालना दुष्कर होता है। मैं उनकी पीड़ाओं को समझता हूँ महसूस करता हूँ। मुझे सब कर्म छोड़कर जंगल जाने का मन करता है। ऐसे उन गुरूओ को भी होता होगा। पर उनके गुरु की आज्ञा की मजबूरी और पालन किस प्रकार निभाना पड़ता है। मुझे अक्सर एहसास होता है। अपनी पीड़ा को छिपाए जगत कल्याण की सोंचो। शायद इससे बड़ा दन्ड न हॉगा। सत्य को पहिचान कर भी सत्य के पास न जा सको। अपनी अर्जित शक्ति को शिष्यों पर लुटा दो ताकि उनकी कुंडलनी जागृत हो उनको अनुभव हो। शिष्य तो आनन्दित ही मजे में घूमता है पर गुरु शिष्य का ध्यान रखे। अपना नही शिष्य का ध्यान रखे।

मित्रो मैं तो मैं यही समझता हूँ। शिव ने जगत कल्याण के लिए कुछ लोगो को सत्वगुणी दन्ड दिया है जो कौल गुरु बनते है। है प्रभु जब मैं अपने ब्रह्मलीन गुरु शिवोम तीर्थ जी महाराज को सोंचता हूँ तो अहसास होता है। मेरे कारण कितने कष्ट उठाये होंगे। आज भी उनको सूछम रूप में मेरी सहायता करने की मजबूरी है।
है प्रभु मुझे तो कभी गुरु न बनाये। मुक्त रहने दे। जगत के प्रपंच से मुक्ति दे। यही प्रार्थना है।

सबसे अधिक संयम जो पातंजली ने बताये है अष्टांग के यम नियम प्रत्याहार अपरिग्रह शौच के अतिरिक्त आंतरिक ध्यान धारणा समाधि। तप संयम और अहिंसा असीमित पराकाष्ठा है जैन मुनि। वह भी दिगम्बर मुनि। हे प्रभू बस। फिर श्वेताम्बर। फिर नागा जो समाज से दूर रहते है। बाद में बाकी सब। नकली गुरु भले ही मजा मारे पर कितने बन्धन है सद्गुरुओ पर। समाज के उत्थान हेतु कितना कष्ट सहते है। 
आप सभी गुरु सनातन के प्रचार हेतु ही जन्मते है। आपको कोटिशः नमन।

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल  


सन्यासी होना न मजाक है न खेल



सन्यासी होना न मजाक है न खेल

                                                                          

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
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यह दुखद है कि कुछ लोग जरा सी ईश्वरिय अनुभूति होने पर अपने को सन्यासी मानकर अपना नामपट्ट खुद धरकर गुरु बनने की चेष्टा करते हैं। वास्तव में वे सनातन का अर्थ न समझ कर जाने अनजाने में महापाप कर र्हें. ब्रह्मचारी और सन्यास यह सनातन के प्रमुख  स्तम्भ हैं। अत: इन नामों का नामपट्ट  गृहस्थ्य को नहीं लगाना चाहिये।   

एक इंसान छोटे से बड़ा होता है फिर शादी करता है। जिंदगी में बहुत कुछ खोता भी है और पाता भी है लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब उसे परिवार यार दोस्त रिश्तेदार होते हुए भी बिल्कुल अकेला सा हो जाता है. उस समय उसे परमात्मा की याद आती है और उस इंसान को लगता है कि दुनिया की सारी मोहमाया बेकार है सच है तो सिर्फ भगवानइसलिए वो चला जाता है सनातन धर्म में सन्यासी बनकर।  

    सनातन धर्म में सन्यास का बहुत ज्यादा महत्व है. इस धर्म में सन्यासी को शिव के समान माना जाता है। वैसे तो सन्यास का अर्थ होता है इंद्रियों पर खुद का काबू करना और सांख्य योग में रहना (देखिये अलग लेख क्या है सांख्ययोग) आज हम चर्चा करेंगे कि कैसे एक व्यक्ति सन्यास के जीवन में प्रवेश कर सकता है…

1. आसान नहीं है सन्यास। सन्यासी जीवन बहुत कठिन होता है, जिसमें जाने के लिए बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सभी इंद्रियों सहित काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार और तृष्णा को समाप्त कर चित्त को ईष्ट की आराधना में तल्लीन करना होता है। सेवा भाव, ध्यान के प्रति समर्पण, मोक्ष की कामना और शून्यता की ओर लगातार अग्रसर होना सन्यासी की दिनचर्या में शामिल होते हैं।

2. बहुत सी चीजों का त्याग करना पड़ता है : सन्यास का मतलब सिर्फ घर छोड़ना नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि गृहस्थ रहते हुए संसार की कई चीजों से मुक्ति पाना और पूरी तरह से सबकुछ छोड़ना बहुत कठिन होता है। शायद यही वजह है कि वानप्रस्थ आश्रम हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है. तभी सन्यासी घर छोड़कर मठों या कहीं एकांत में रहते हैं। नागा साधू तो जंगलों और कंदराओं में रहते हैं।

3. कठिन है मार्ग : सन्यास का मार्ग कठिन होता है. यहां बहुत से नियमों का पालन करना होता है। ब्रह्मचर्य का पालन, सेवा भाव, वस्त्रों का त्याग, एक समय भोजन, जमीन पर सोना, बस्ती के बाहर रहना, भीक्षा मांगकर भोजन, ज्यादातर सात घर में भीक्षा और कुछ न मिलने पर भूखे सोना सहित अन्य बहुत से कठिन नियम हैं जिनका पालन सन्यासियों को करना पड़ता है।

4. हर किसी को नहीं दी जाती दीक्षा : सन्यास की दीक्षा हर किसी को नहीं दी जाती है। कोई दीक्षा लेने के लिए अखाड़ा जाता भी है तो अखाड़ा अपने स्तर पर तहकीकात करता है कि वह व्यक्ति सन्यास देने लायक है या नहीं. अगर वो तहकीकात में वह पास भी हो गया तो उसके बाद उसे ब्रहचर्य की परीक्षा में पास होना पड़ता है। अखाड़े के लोग उस पर नजर रखते हैं। कहा जाता है कि इस परीक्षा को पास करने में 6 महीने से 12 साल तक का समय भी लग जाता है।

5. सबसे पहले पंच गुरू दीक्षा :सबसे पहले पंच गुरू दीक्षा दी जाती है. इसमें शिष्य को चोटी, भगवा, रुद्राक्ष, लंगोटी और भभूत दी एवं लगाई जाती है. जो गुरु ऐसा करवाते हैं वह चोटी गुरु, भगवा गुरु, रुद्राक्ष गुरु, लंगोटी गुरु और भभूत गुरु कहलाते हैं।

6. विर्जा हवन दीक्षा:  जब विर्जा हवन दीक्षा दी जाती है, तब व्यक्ति जनेऊ पहनकर, हाथ में दण्ड व जलपात्र लेकर नदी के तट पर जाकर उसे अपने परिवार के सदस्यों सहित खुद का पिण्डदान करना होता है।  खुद का पिण्डदान करने के बाद उस महापुरुष का सन्यास जीवन में प्रवेश होता है और तब वह सन्यासी कहलाता है।

7. धूनी तपन संस्कार : रात भर धूनी तपाई जाती है और उस महापुरुष सन्यासी को उस धूनी के पास बैठना होता है।  इसके बाद सूर्य निकलने के पहले सुबह ही अचार्य महामण्डलेश्वर उस सन्यासी को आमंत्रित करते हैं, वैदिक मंत्रो से उसे नया नाम दिया जाता है। उसके बाद वह पुरुष अवधूत सन्यासी बन जाता है।

8. दिगंबर दीक्षा : अवधूत सन्यासी को दिगम्बर दीक्षा देने वाले गुरु छठवें गुरु कहलाते हैं। यह दीक्षा धर्म ध्वजा के नीचे दी जाती है।  इसके बाद सन्यासी दिगम्बर साधू कहलाता है।  कहते हैं इसमें सन्यासी को अखाड़े में ध्वजा के नीचे 24 घन्टे तक हाथ में दण्ड और मिट्टी का कमण्डल लेकर खड़ा रहना पड़ता है।  इसके बाद वरिष्ठ सन्यासी झटके देकर उसका लिंग भंग करता है.

9. श्री दिगंबर दीक्षा : सन्यासी को ये दीक्षा खुद की इच्छा या गुरु की इच्छा से मिलती है।  इसमें दिगम्बर सन्यासी को गुरुदक्षिणा देनी पड़ती है. फिर उस  साधु के नाम के आगे श्री दिगम्बर जुड़ जाता है।  इस दीक्षा के बाद न तो वह सन्यासी पलंग पर सो सकता है और ना ही सिले हुए कपड़े ही पहन सकता है।  इस दीक्षा के बाद साधू की पूजा शिव समान होती है।

10. गुप्त रहती है सारी प्रक्रियाएं : सन्यास बनने की बातों को गुप्त रखा जाता है जिसे किसी को नहीं बताया जाता।  साथ ही सभी अखाड़ों के अपने अलग नियम होते हैं। यह जानकारी कई अलग-अलग रिपोर्ट्स पर आधारित है. इनमें फेरबदल हो सकता है। इन्हें आप तक सिर्फ आपकी जानकारी को बढ़ाने के लिए पहुंचाया है।                                             (गूगल से संकलन साभार)

                                                    हरि ॐ हरि 



"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल  


 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...