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Monday, April 9, 2018

बच्चों का भविष्य का कैसे हो निर्माण



बच्चों का भविष्य का कैसे हो निर्माण 


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
यह प्रश्न एक यक्ष प्रश्न है। बच्चा क्या बने। एक आम आदमी का स्वप्न है। कि वो खूब पढ़े। खूब पैसा कमाये। संस्कारों सहित मां बाप बडों की सेवा करे। एक सुंदर सी खूब पैसों के साथ बहू लाये। जो पढ़ी लिखी हो संस्कारो वाली हो। सास के पैर रोज दबाए। ससुर जी से पर्दा करे। पैसे कमा के लाये तो सास ससुर के हाथ पर रखे। कोई काम करे तो उनसे पूछकर करे। डर कर रहे। जबकि खुद की बेटी यदि ऐसे माहौल में है तो उस पर अत्याचार हो रहे है। मतलब सारे गुणवाली बहू। हमने भली ही अपनी सास ससुर को नॉकर समझ हो पर बेटा श्रवनकुमार बहू सीता सी।

मैं एक बात पूछना चाहता हूँ एक भी व्यक्ति बताओ जो सुख न चाहता हो। एक भी व्यक्ति बताओ जो दुख चाहता हो। एक चोर रिश्वतखोर भी अपना नॉकर ईमानदार ही चाहेगा। दाऊद भी चाहेगा कि उसके आदमी ईमानदार वफादार हो। चाहै उसने कितनी भी गद्दारी की हो।

अब प्रश्न यह है कि क्या किया जाए। माँ बाप अपना सबकुछ लगाकर बच्चों को विदेश भी भेज देते है। पर प्रायः बच्चे भूल जाते है। मुम्बई जैसे शहरों में अनेको किस्से होते है जहाँ अकेले माँ बाप की लाशें सड़कर करोड़ो के फ्लैट में पड़ी रहती है पर बेटे को सुध नही वह विदेश की रंगीनियों और अपना जॉब प्रोफ़ाइल बनाने में पड़ा रहता है। यह प्रश्न और उत्तर हर माँ बाप के मन मे यक्ष प्रश्न बन कर अधेड़ावस्था में उभरने लगता है।

मैं इस लेख के माध्यम से 58 वर्ष की आयु जिसमे 33 वर्ष परिवारिक दायित्व के,  37 वर्ष तकनीकी अनुभव के और लगभग 50 वर्ष भगवान को पूजते साधना और सब करते बीत गए है। उन अनुभवों के आधार पर कहना चाहता हूँ कि मैं वह लिख रहा हूँ जो मैंने देखा,  अनुभव किया,  अपने माँ बाप को देखा और विश्लेषण किया। मेरी सलाह बात उनपर लागू हो सकती है जो विवाह करने जा रहे हो, माँ बाप बनने जा रहे हो अथवा छोटे बच्चे के माता पिता हैं।

कुछ बातों पर ध्यान देकर हम बच्चों में अच्छे संस्कार डाल सकते हैं

पहली बात अपनी पत्नी के साथ दर्शन चितन और आध्यात्म की बाते सोते समय जरूर करे। इससे यदि पत्नी गर्भवती होने की इच्छुक हो या हो गई हो तो धार्मिक संस्कार के गुण आनेवाले बच्चे के अंदर प्रविष्ट हो।  गर्भवती पत्नी को धार्मिक पुस्तके प्रायः जिसमे भक्ति की बात हो या बीज मन्त्रो का समावेश हो वह पढने को अवश्य दें। मेरी मां जब मैं गर्भ में था तो रामायण,  गीता सहित धार्मिक पुस्तकें अधिक पढती थीं। जिसके कारण मेरे अंदर 8 वर्ष की आयु में आध्यात्म में रुचि हो गई जो वैज्ञानिक बनने के बाद और बढ गई। 

दूसरी बात यदि सम्भव हो तो पत्नी के सामने पान बीड़ी सिगरेट नशे का प्रयोग न करे। इससे गर्भ के बच्चे पर माँ के माध्यम से विकार आ जाते है।

तीसरी बात यदि सम्भव हो तो पत्नी के पेट के गर्भ पर हाथ रख कर उसे प्रेम से सहलाये और किसी भी कवच मन्त्र का हनुमान चालीसा दुर्गा चालीसा इत्यादि। इससे बच्चे के गर्भी के अनिष्ट दूर होने के साथ बच्चे में प्रेम और भक्ति उतपन्न होगी।

जब बच्चा पेट के बल चलने लायक हो जाये तो उसके सामने कुछ दूरी पर धार्मिक पुस्तकें खाने पीने की वस्तुएं खेल के अलग अलग सामान इत्यादि रख दे। बच्चा अपने स्वभाव और गुण के कारण अपनी पसंद की वस्तु पकड़ेगा। आप बच्चे की भविष्य की रुचि को जान सकते हैं। बेहतर है बच्चे को उसी दिशा में ले जायें। अन्नप्राशन संस्कार में ये करवाया जाता है, बच्चे की रूचि जानने के लिए। ये बिल्कुल सही है। बच्चा क्या बनेगा। उसकी सोंच क्या है यह मालूम पड़ जाएगी।

बच्चे के सामने कोई दुर्गुणात्मक कार्य न करे। जब 2 या 3 साल का बोलने लायक हो जाये तो उसे विभिन्न मन्त्र इत्यादि खेल खेल में सिखाये। बच्चे को 8 साल की उम्र तक किसी एक मन्त्र का जप करना सीखा दे।

आपके हाथ मे बच्चा 8 साल तक ही है। उसके बाद उसका प्रारब्ध चालू हो जाता है। आपके चाहने से कुछ नही होता। हा आप उसको साधन मुहैय्या करा सकते है और कुछ नही।
यह आपका भरम है कि आप कुछ बना सकते है। याद रखें उसको मन्त्र जप ही आगे ले जाएगा। आप कुछ नही कर सकते।

इन्ही सब प्रयासों और कर्मों से वह आपके प्रति आदर और सम्मान को देनेवाला एक श्रवणकुमार बन सकता है। बाकी हमारी आपकी हाथ में नही कि हम कुछ कर सके।
                      
ॐ हरि ॐ



 "MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

Wednesday, April 4, 2018

मत करना कभी शिवोहम का जप



            मत करना कभी शिवोहम का जप 
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

मित्रो कभी शिवोहम का जप मत करना यह बहुत जल्दी भरमित कर देता है। इसका अर्थ है कि मैं शिव हूं। यानी पहले दिन से आप रट रहे हो मैं शिव हूं। इसी प्रकार कृष्णोअहम, दुर्गाहम इत्यादि। 

यह एक अनुभूति है जो स्वत: होती है, एक निश्चित अवस्था में पहुंचने के बाद। पातांजलि महाराज के मार्ग पर धारणा धर लो पहले करो कुछ नहीं। अत: आध्यात्मिक दृष्टि से यह गलत है साथ ही साथ यह मोड़ भरमित करनेवाला होता है। 

यदि आपकी सोंच है पहले से की मैं शिव हूँ मैं भगवान हूँ मैं ओशो हूँ तो यह क्रिया आपकी भावना को और प्रबल कर आपको पतन की ओर ले जाएगी। कारण आपके अधीन माया तो होती नहीं। आप कृष्ण की तरह न सूर्य को ढक पाओगे और न जेल का गेट तोड़ पाओगे। अरे एक चीटी तो मार न पाओगे। रहोगे माया के अधीन। एक आम आदमी की तरह ही। तो काहे के शिव काहे के भगवान । हा तुम्हारी ऊर्जा जरूर बढ़ जाएगी कि दूसरे को क्रिया करा सको कुछ सीमा तक।  यदि बिना गुरु के हुए तो तुम्हारा यह ऊर्जा स्तर भी  गिरता जाएगा। तुम भरम में ही जियोगे। हो सकता है एक दिन शक्तिहीन होकर किसी जेल में सडकर मर जाओ।  



कारण स्पष्ट है। पात्तनजली ने धारणा ध्यान समाधि की बात की है। जो सत्य भी है। यदि हम शिवोहम यानी मैं शिव हूँ। इस तरह का जप करेगे तो धारणा वैसी ही बनेगी। अब जब हम ध्यान में जायेगे तो हम शिव है यही विचार भी जाएगा। 

 प्रत्येक साधना में चाहे योग मार्ग में या किसी भी मार्ग में एक ऐसी अवस्था आती है जब आदमी का दिल दिमाग सोंच सब जकड़ सी जाती है और अहमब्रह्मास्मि की एकोहम द्वेतियोनास्ती सोहम जैसी भावना अनुभूति या क्रिया जो भी कह लो होती है। अब भ्रमित होकर अपने को भगवान मानो या दास होकर प्रभु को समर्पित हो जाओ।   

यदि तुमने अपने को प्रभु का दास माना और यह धारणा पनपी तो सामान्य होते ही तुम सोहम की गर्व क्रिया से बाहर आकर प्रभुलीला समझकर भक्ति में लीन हो जाओगे। तब यह अनुभूति तुमको हमेशा या अक्सर होती रहेगी पर तुम भरमित न होंगे। बल्कि प्रभु को और समर्पित होकर ऊपर ही जाओगे। क्योकि तुम्हारे अंदर सोहम का अहंकार नहीं आ पायेगा। और न तुम सिध्दियों की ओर ध्यान दोगे।



जय गुरुदेव। जय महाकाल।

           हरि ॐ हरि 


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल  

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...