एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 2
सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"
शोध निष्कर्ष
आगे बढने के
पूर्व मैं अपने अनुभवो से क्या निष्कर्ष निकाल सकता हूं।
पहला सत्य सनातन
सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप
मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की
महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। और मैनें सन
1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की।
अत: मित्रों आप
भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु
कृपा कर दें।
मेरे अनुभव से
सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के
तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को
मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की
चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि
तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु
समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना
इच्छा के हो जायेगा।
वैज्ञानिकों को
चुनौती
वैज्ञानिकों तुम
दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते
हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षॉं दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के
अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो
मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने के जरिया इस भारत की भूमि के
एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते
हुये भी ईश को नहीं मानता है।
तर्कशास्त्रियों
अभी आगे अनुभव देखोगे तो पागल हो जाओगे पर पहले कुछ मित्रों को याद कर लूं जो भाग
1 में स्थान न दे सका।
मेरे जीवन में
काव्य पडाव
मेरा कवि के रूप
में पहला कवि सम्मेलन वर्तमान सांसद हरिवंश सिंह की वाशी रामलीला के मंच पर 1991
में हुआ था जहां उनके दाहिने हाथ रोहित राय, पत्रकार विनोद प्रधान,
स्व. मेजर एस.पी.सिंह, स्व. चिम्मन सिंघवी,
जिनके ज्वेलर्स एसोशियेशन के कार्यक्रम में अबाट होटल में कद्दावर
नेता श्री गणेश नाईक, स्व. डा. एल.एन.दीक्षित, यू पी कोल्ड स्टोरेज के प्रबन्धक डी.के.शर्मा, साईनाथ
हिंदी हाई स्कूल के प्राचार्य के.पी.सिंह, टी.पी.सिंह,
स्व. आत्माराम तिवारी इत्यादि से मुलाकात हुई। विज्ञान लेखन में
नवभारत टाइम्स के मिलिंद खांडेकर, जो अभी एबीपी न्युज के
समाचार सम्पादक हैं।
तांत्रिक से
मुलाकात
खैर दर्शनाभूति
के पश्चात कुछ दिन ऐसे ही चलते रहे कि मई के महीने में एक दिन मैं वाशी सेक्टर 9
और 10 के साईनाथ हिंदी हाई स्कूल के सामने से शाम के समय
पत्नी सहित टहल रहा था कि अचानक मुझे लगा कहीं आसपास मां दुर्गा का पूजन हो रहा है
मैंनें उत्सुकतावश किसी से पूछा तो उसने बताया कि हां साईनाथ हिंदी हाई स्कूल बंद
है प्रथम तल पर एक कक्षा में एक पंडित जी आये हुये हैं जो लोगों को भविष्य बताते
हैं।
मैं गुरू के लिये भटक रहा था अत: मैं वहां पहुंच गया। देखा कमरे के कोने में माता जी की फोटो रखी है सामने सांवले रंग के हट्टे कट्टे कोई 45 – 50 के आसपास के पंडित जी टीका इत्यादि लगा कर धूनी लगाये हैं। सामने कुछ दूर लोग बैठे थे और उनके तीन चेले भी थे। कुल मिलाकर प्रभाव पडना लाजिमी थी। मैं भी बैठ गया। उन्होने बुलाया। उनके सामने जाकर मैंने दंडवत किया बातचीत में मालूम हुआ, उन्होने कार्ड भी दिया जिस पर सुदामा शरण उपाध्याय, शायद गोरखपुर के आसपास का गांव लिखा था और छपा था तंत्र विशेषज्ञ, ज्योतिष विद्दान।
मेरी कथा सुनकर वे बोले बस अब तुम मेरे चेले बन जाओ। मैं कुछ बोलता कि अंदर से आवाज आई। सम्भलकर यह तांत्रिक है तुमको घर द्वार छोडना पडेगा। तुम भक्ति मार्ग पर चलो वो ही सर्वश्रेष्ठ है। मैं बोला “ आप माता जी से कहलवा दीजिये मैं आपका चेला बन जाऊंग़ा”। जिस पर उसने जो बोला वह कुछ हैरान करनेवाला था। उसने माता जी की ओर इशारा कर बोला “अरे इनके भी बाप हैं दुनिया में”। मैं मन ही मन सोंचने लगा जो सृष्टि को चलाती है। उस शक्ति का बाप कौन होगा।
मैं कुछ देर बैठा फिर पत्नी के साथ रास्ते भर यही डायलाग कि देवी जी का बाप कौन है, बातचीत करता घर आया। घर पर आरती की। पूजा कर सो गया। हां एक बात और दर्शनाभूति के बाद मैंनें घर पर अखंड ज्योति जला दी थी क्योकि ज्योति में मां काली के दर्शन होते थे। पैसों का अभाव था अत: सरसों के तेल का पीपा एपीएमसी मार्केट से ले आया और दिया जला दिया।
इसके साथ ही मुझे कई सिद्दियां हाथ लग गई। आत्म गुरू जिसे अल्लह की बोली कहते है वह भी मिल गई। मैं खेल खेल में ध्यान लगाता और अपने को जहां चाहे खडा पाता बाद में उनको फोन कर कहता आप यह कर रहे थे। कुछ घटनाओं का पूर्वाभास होता। किसी मंदिर को देखकर वहां के तेज का पता लगता। सिर में नशा छाया रहता। सहस्त्रसार से कुछ टपकता नशा और तेज हो जाता। किसी को छूकर अपने शरीर के कम्पन को मिलाकर प्रार्थना करता तो वह ठीक हो जाता। सोंचो बस रूक जाये तो वह रूक जाती थी। दूसरे के मन को पढ लेता। वगैरह वगैरह। मैंनें सबके प्रयोग किये पर इन सिद्दियों पर ध्यान न दिया। जग कल्यान की भावना पैदा हो गई। कुल मिलाकर जैसा मेरी मां ने बोला था “तुम सिड़ी,पागल दिखते हो”। वैसा ही हो गया था। फिल्मी गाने सुनकर वह भजन लगते थे। हर जगह ईश दिखता था। मजे कि बात यह इनमें से कुछ अनुभव पत्नि को भी होते थे। अत: वह मेरी चेली की तरह सेवा करने लगी। पर जब शक्तिहीन हों तो बस ऐसा लगे अभी मरे।
तांत्रिक का
गर्व चूर
पत्नि से देवी
जी का बाप कौन है जैसा तांत्रिक बोलता है। बातचीत करते करते सो गया। दूसरे दिन
शिफ्ट आफ था अत: सुबह 11 बजे तांत्रिक महोदय के पास पहुच गया। तांत्रिक ने बुलाया
सामने बैठाल कर प्रसाद में केला लौंग इत्यादि दी और चेला बनने को कहने लगा।
अब मेरे साथ जीवन की अद्भुत विज्ञान की सीमाओं से परे घटना घटी। अचानक मेरे हाथ कोहनी पर से पंजो की मुद्रा में उठ गये और ऐसा लगा, जिसको सोंचकर आज भी रोंगटे खडे हो जाते हैं। मेरे हाथों में कुछ शक्तिशाली कोहनी से आगे घुस गया। मुख से शेर की भयंकर दहाड़ निकलने लगी मैं बेकाबू हो गया पर ऐसा लगा मां सरस्वती मेरी बुद्दि को सम्भाल रही है अत: सब देखता रहा पर शरीर बेकाबू। मुख से स्त्री की आवाज निकली “रे मूर्ख अब बता मेरा बाप कौन है। आज मैं तुमको मार डालूंगी”। साथ ही शेर की प्रचंड दहाड़। जिसे सुनकर कमरे से सब भागने लगे। तांत्रिक के चेले कमरे के बाहर चले गये और भय से कांपकर छुप गये। उधर मुझे लगे कि मैं छलांग मारूं और इसका टिटुआ दबा दूं। मुझे लगे कि मैं भयानक शेर बन गया हूं।
यह सब देखकर
तांत्रिक पैर पकड़ने लगा कहने लगा “ माता जी मैं गटर का कीड़ा हूं। नाली की विष्ठा
हूं। मुझसे गलती हो गई। माफ करो। इत्यादि इत्यादि। काफी देर तक यह चलता रहा फिर
अचानक सब शांत हो गया पर मेरे हाथों में कोहनी से हथेली तक दर्द हो रहा था। सब
सामान्य होने के बाद मैंने तांत्रिक को प्रणाम किया और सपत्निक घर लौट आया।
अब बताओ यह क्या
था। इस घटना के कई गवाह वाशी में मौजूद हैं। इसको मूर्ख तर्क शास्त्री क्या
कहेंगे। वो बोलेगें मेरा मनोविज्ञान। बस उन पर हंस ही सकता हूं।
40 पूड़ी किसने
खाई
तांत्रिक के पास
मेरा जाना आना विधिवत रहा मैंनें उसको दान इत्यादि भी दिया। वह कभी 5 लीटर सरसों
का तेल, कभी चावल, कभी पूजन साम्रगी
मंगवाता। मैं लाकर देता था। मुझे यह लगता मेरे द्वारा इनका अपमान हुआ है। अत: मुझे
प्रायश्चित करना चाहिये।
एक दिन रमा
सक्सेना आंटी ने तांत्रिक को चेलों सहित भोजन पर बुलाया। संयोगवश मैं भी पहुंच
गया। आंटी ने उनको भोजन हेतु बैठाया तो तांत्रिक बोला विपुल जी को भी मेरे साथ
बैठायें। मैं बैठ गया। तांत्रिक बोला विपुल जी ठीक से भोजन करें। मैं भोजन करने
लगा। करीबन 40 पूड़ी खा गया फिर भी पेट न भरा। आंटी ने कई बार आटा मढ़ा। फिर भोजन
में लौंग़ और तुलसी दी तो मुझे पेट भर गया। ऐसा लगा।
अब बताओ मैं 40 पूड़ी कैसे खा गया????
तांत्रिक से
तंत्र युद्ध
एक दिन तांत्रिक
बोला विपुल जी आपको साक्षात मां का दर्शन बकरा खाते हुये दिखाऊंगा। मैं बोला
दिखाइये। अच्छा इधर यह होता था मैं अचानक रात को 12 बजे 1 बजे उठकर पत्नि को कहता
हवन की तैयारी करो। पत्नि बेचारी पोंछा झाड़ू लगाकर फर्श साफ करती मैं पता नहीं
क्या क्या रंगोली बनाता और सरसों के तेल से हवन करता। पता नहीं क्या क्या मंत्र पढ़ता। कुछ याद नहीं। एक दिन मैं सुबह तीन घंटे तक हवन करता रहा। दूसरे दिन
तांत्रिक के चेले से पता चला कि उनके गुरू जी यानी तांत्रिक रात भर कुछ तंत्र कर
रहे थे। चेलो को नहीं मालूम क्यों। मित्रों होता यह था वह मुझे चेला बनाने और वश
में करने के लिये असफल प्रयोग करता था।
तांत्रिक का
निवास सेक्टर 29 वाशी की किसी दुकान नुमा फ्लैट में था जो उसको रमेश शर्मा नामक
व्यापारी ने यूं ही कुछ दिन रहने के लिये दे दिया था।
एक दिन तांत्रिक
ने बोला मेरे घर रात्रि भोज पर आओ। मैं अकेला उस पते पर स्कूटर से पहुंच गया। भोजन
में कढ़ी, भंयकर लौग, कपूर युक्त उर्द दाल
पता नही क्या क्या जो तंत्र में प्रयोग होता उसका भोजन कराया। मैनें भी दबाकर
खाया। दूसरे दिन पुन: तांत्रिक के दरबार गया तो तांत्रिक कुछ आश्चर्यचकित होकर
बोला सब ठीक है। नींद ठीक आई क्या। मैं अनजान बनकर बोला कि सब आपका आशीर्वाद है।
तांत्रिक का
पलायन
मुझे क्या मालूम
था खेल ही खेल में इस तांत्रिक से मेरा तंत्र युद्ध भी हो जायेगा। और यह निर्णायक
होगा। हुआ यूं रात को दिव्तीय पारी से करीबन 12 बजे घर पहुंचा तो ऐसा लगा मां काली
बोल रहीं है रे मूर्ख हवन कर। मैं तुरंत हवन में बैठ गया जैसा आदेश मिलता गया
रंगोली बनाई। उस दिन काली सरसों से सरसों के तेल से विराट हवन किया। बता दूं माता
के आदेश से मैंनें घर में उनके निर्देशानुसार तंत्र का सारा सामान खरीद कर रख लिया
था। अचानक ध्यान में मां काली आईं और बोली अब इस मंत्र की आहूति दे। यह मंत्र पढ़
मैं उसको मार डालूग़ी। वह दुष्ट है अभी भी नहीं समझा है उसके प्राण लेने पडेगें।
मैं उसकी ही बलि ले लेती हूं। मैंनें प्रार्थना कि मां मैं तुम्हारी भक्ति चाहता
हूं। भक्ति मार्ग का आदमी मुझे हिंसा अच्छी नहीं लगती। मां प्राण मत लो बाकी जो
करना है करो। एक विनती है, अंग भंग भी मत करो। बस ये ही चलता रहा करीबन दो
घंटे।
दूसरे दिन पता
चला तांत्रिक वाशी सेक्टर 9 के जैन मंदिर के पीछे वाले अस्पताल में भर्ती है। मुझे
अस्पताल का नाम याद नहीं आ रहा। शायद स्टर्लिंग है। मैं फल फूल लेकर देखने गया।
मुझे देखकर तांत्रिक हाथ जोडने लगा और कहने लगा। अरे बाप रे कल रात को कोई मेरा गला
दबा रहा था। अरे मेरी जो दुर्गति वाशी में हुई है वह कहीं नहीं हुई। पूरा देश घूमा
हूं। यहां पर पता नहीं मेरा क्या हाल हो गया। अब मैं ठीक होते ही भाग जाऊंगा। फिर
कभी वाशी न आऊंगा।
अब आप सोंचे
विज्ञान के इस युग में एक परमाणु वैज्ञानिक पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर के साथ यह
क्या हो रहा है। सत्य सनातन की शक्ति, श्री मार्कण्डेय ऋषि
का भक्ति ज्ञान क्या सत्य नहीं। क्या ईश्वर साकार नहीं ???
तबियत खराब
सुनकर बडे भाई डा. अतुल सेन, आई.आई.टी कानपुर से फिजिक्स में पी.एच.डी, आई.आई.टी मद्रास से डी.एस.सी, त्रिचि से एम.बी,ए. डा. कलाम के अधीन डी.आर.डी.एल. में कार्यरत और जिनके डा. कलाम से मधुर सम्बंध। छोटा भाई राहुल, एल.एल.एम. देखने
आये। कुछ कर न सके सब देखकर अचम्भित होकर सिर्फ़ लौट गये।
गुरू की खोज
इसी बीच मेरी
दुर्दशा और पत्नि की चिंता बढती जा रही थी। कि कार्यालय की प्रयोगशाला में श्री
रेगे धार्मिक किस्म के व्यक्ति थे। उन्होने माहुल गांव में सिद्ध ब्रह्मचारी दत्त
माउलेश्वर महाराज जो गुरू पांचलेगांवकर महाराज के शिष्य थे, उनका पता बताया। मैं उनके पास अकेला ही गया। गलियों के बीच कच्चे पक्के
मकानों में एक दुबले पतले साधक ब्रह्मचारी दत्त माउलेश्वर महाराज, जिनको मैं कोटिश: नमन करता हूं क्योकि उनकी कृपा से मैं गुरू महाराज तक
पहुंचा, उनको प्रणाम कर बताया। तब उन्होने मेरी हथेली पर
जीनिया का एक फूल रखा। मुझे ध्यान लगाने को बोलकर वह भी ध्यान पर बैठ गये। मुझे
लगा मेरी हथेली पर वह फूल घूनमे लगा।
मैनें आंख खोल दी पर वह ध्यानमग्न हो गये। करीब आधे घंटे बाद उन्होने आंखे खोली और बोले मैं तुम्हारा गुरू नही बन सकता क्योकिं मैं तुमको सम्भाल नहीं पाऊंगा। पर मैं तुम्हे तुम्हारे गुरू तक पहुंचा देता हूं। यह कहकर उन्होने अपने शिष्यों को इशारा किया मुझे उठाओ। हुआ यह था कि शायद उन्होने कुछ शक्तियों का आह्वाहन किया था जिसके कारण उनका शरीर भारी हो गया था। महाराज जी उठे। मुझे उठकर भभूत दी बोले इसे खाकर लगाकर ध्यान लगाना तो तुम्हे गुरू दिख जायेंगे।
जब मां काली को
गालियां दी
खुशी खुशी मैं
घर आया और भभूत चखकर ध्यान में बैठा तो सामने लम्बे चेहरे गोरे गोरे सफेद लम्बी
दाढ़ी वाले ध्यान मग्न सफेद कपड़े पहने दिव्य पुरूष दिखाई दिये। आवाज आई यह तुम्हारे
गुरू हैं। मैंने सोंचा यह तो हिमालय पर्वत पर ही मिलेगें। यहां कैसे ढूढूं। फिर
मुझे शक्तिहीनता आ गई।
अब मेरे सब्र की सीमा टूट चुकी थी। मैंने मां काली को गालियां देना चालू किया और विनती की मां अब मुझे मार दो। मैं पागल हो गया हूं। खूब बुरा भला कहा। रोते रोते गालियां देते देते रात्रि में सो गया। स्वप्न में मैंनें देखा मैं ट्रेन में एक गेरुआ वस्त्र धारी पुरुष के पैर दबा रहा हूं फिर वह दुबले पतले महात्मा स्त्री बन गये। वास्तव में जो पहले दिखे थे वह मेरे पूर्व जन्म के गुरु महाराज स्वामी नारायण देव तीर्थ जी महाराज थे। और ट्रेनवाले स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज।
मैंने दूसरे दिन ध्यान में फिर प्रश्न किया यह कौन थे यदि यह गुरू है तो मैं पहुंचू कैसे। फिर रात में स्वप्न में दिखाई दिया एक पुरूष सफेद धोती अधोवस्त्र टीका लगाये आधी काली (जहां मुझे मां काली ने लात मारी थी उसके ऊपर की काली मां) मां की फोटो की पूजा कर रहे हैं। साथ में गेरुआ अधोवस्त्र में एक और खड़े हैं। बगल में रमा सक्सेना आंटी माता जी के भजन गा रहीं है। वास्तव में यह देवी भक्त मुम्बई आश्रम के स्थापक स्व. कालीदास साथ में मेरे गुरू महाराज स्वामी नित्य बोधानंद तीर्थ जी महाराज थे। मैं कुछ समझा और पत्नि से चर्चा कर रमा आंटी के घर गया। तो उन्होने अपना किस्सा बताया और बोला चेम्बूर के घाटला विलेज रोड पर एक संत देवी भक्त कालीदास रहते हैं। आप उनके पास जाओ।
चार किलो खीर
किसने खाई
अगले दिन
मरणासन्न अवस्था में किसी प्रकार टैक्सी में लादकर पत्नि रोते रोते चेम्बूर
कालीदास जी के घर पहुंची। कालीदास जी हर रविवार चण्डीपाठ करते थे। दरबार लगाकर
लोगों की समस्यायें हल करते थे। पत्नी ने उनसे मुझे बचाने की प्रार्थना की।
कालीदास बोले फीस क्या दोगी। पत्नि ने अपने सब गहने उतार कर हाथ में दे दिये। बोले
यह सब आप रखे बस इनको बचाये। कालीदास ने मुस्कुराते हुये सब वापिस कर दिया और
प्रसाद स्वरूप वस्त्र और 21 रूपये पत्नी को और 21 रूपये मुझको दिये। अचानक मेरे
मुख से फिर शेर की दहाड़ निकलने लगी। जिसको सुनकर उनका भारी भरकम कुत्ता कूं कूं कर
भाग कर छुप गया। खैर कुछ शक्ति आई। कालीदास जी ने देवी हवन हेतु गुड़ की खीर बनाई
वह मुझे खाने को दी। देखते देखते मैं पूरा भगौना खीर खा गया। साथ में हवन की सब
पूड़ी भी। इस बात का ताना कालीदास अक्सर दिया करते थे। यह मेरी सारी खीर खा गया।
प्रसाद तक न छोड़ा।
अब आप बताये चार
किलो खीर कोई कैसे खा सकता है पर मैं खा गया पूड़ीयो के साथ। यह क्या था मैं तो मां
काली की लीला ही कहूंगा।
गुरू के द्वार
खैर कालीदास जी
के घर जिन महापुरूष की बड़ी सी फोटो लगी थी। वह वो ही थे जो मुझे स्वप्न में दिखे
थे। फर्क इतना था कि इस फोटो में बाल काले और वस्त्र गेरूआ थे। पर स्वप्न में दाढ़ी
सफेद और वस्त्र सफेद थे। हो सकता है चित्रकार ने कुछ बदलाव किया हो। वे मेरे आदि गुरू पूर्व जन्म के गुरू महाराज स्वामी नारायण तीर्थ जी महाराज थे। कालीदास जी से मुम्ब्रा आश्रम का पता मिला। जहां गया तो ब्रह्मचारी शेखर और ब्रह्मचारी निर्मल महाराज से भेंट हुई।
सफेद और वस्त्र सफेद थे। हो सकता है चित्रकार ने कुछ बदलाव किया हो। वे मेरे आदि गुरू पूर्व जन्म के गुरू महाराज स्वामी नारायण तीर्थ जी महाराज थे। कालीदास जी से मुम्ब्रा आश्रम का पता मिला। जहां गया तो ब्रह्मचारी शेखर और ब्रह्मचारी निर्मल महाराज से भेंट हुई।
कुछ देर बाद स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज आये और मुझे
भोजन कराने को कहा। ब्रह्मचारी शेखर ने मुझे भोजन कराया। तब मैं सबको पंडित जी
कहकर सम्बोधन कर बात कर रहा था। क्योकि मैं गुरू को मानता नहीं था पर मजबूरी में
जान बचाने के लिये आश्रम गया था। मुझे पता नहीं दीक्षा क्या होती है। वहां स्वामी
जी ने मुझे बोला दीक्षा तो दिसम्बर में होगी तब तक तुम कुछ परम्परा की पुस्तकें
पढों। मैं पुस्तकें खरीदकर ले आया और सब पढ़ने लगा। बीच बीच में एकाध बार सपरिवार
आश्रम भी गया।
.......................
क्रमश:................................
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल