एक
वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 8
सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"
आपने भाग 1 से 7 में
पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके
बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ
जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला
बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था
कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो
नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के
माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस
प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ
लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और
कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास
विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह
बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी
क्रिया बन्द हो गई। पर उनका आशीर्वाद भजान के रूप में दिखता रहा। एक सन्यासी का भी
पुत्र प्राप्ति का प्रण टूट गया। बचपन में घर से भागा। भगवान को मिलने के लिये।
बेटी को सरकारी नौकरी किस प्रकार मिली।
अब आगे
.......................
शोध निष्कर्ष
आगे बढने के पूर्व
मैं अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं।
पहला सत्य - सनातन
पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति
“मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है।
नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं।
मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की।
बजरंग बली किसी की भी पूजा करो हमेशा सहायक होते हैं। बस उनको पुकारो तो।
अत: मित्रों आप भी
प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु
कृपा कर दें।
मेरे अनुभव से सिद्द
हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के
तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को
मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की
चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि
तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु
समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना
इच्छा के हो जायेगा।
वैज्ञानिकों को
चुनौती
वैज्ञानिकों तुम
दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते
हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के
अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो
मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के
एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते
हुये भी ईश को नहीं मानता है।
डा सत्यपाल सिंह
की सहायता से बेटी विदेश जा पाई।
वर्ष 2012, सुबह 11 बजे कार्यालय में बेटी का फोन रोते हुये आया पापा जी सी ई ओ ने
बोला है तुम्हारा पुलिस वेरीफिकेशन अभी तक नहीं आया अत: तुम आस्ट्रिया जानेवाली
टीम में नाम होते हुये नहीं जा सकती। आज शाम तक यदि पुलिस वेरीफिकेशन आ जाये तो
तुम जा पाओगी। मैं कुछ सोंचकर उठा और चीता कैम्प पुलिस स्टेशन गया। वहां एक हवलदार
को बात समस्या बताई। वह वेरीफिकेशन में ही था। उसने लिस्ट देखी कहीं नाम नहीं। उधर
सितार तीन रिमाइंडर भेज चुका था। खैर एक जगह बहुत ढूढने पर नाम मिला। पर
वेरिफिकेशन तो फोर्ट स्थित मुख्यालय से मिलना है। इतिफाक से पुलिस इस्पेक्टर भी आ
गये जो इंचार्ज थे। मैंने उन्ही के सामने मुम्बई पुलिस कमिश्नर डा सत्यपाल सिंह को
कार्यालय फोन लगाया। पता चला वह मींटिंग में। अत: मैंने उनके मोबाइअल पर समस्या
बताते हुये एस एम एस किया। इअधर जब इंसपेक्टर ने कमिश्नर के पी ए बात करते देखा तो
पूरी तरह सहयोग करने लगा। दूसरी वेरिफिकेशन रिपोर्ट बनने लगी। तब ही डा सत्यपाल
सिंह का फोन आया। आप घबरायें नहीं बेटी जरूर आस्ट्रिया जायेगी। मैंनें आयुक्त नवल
बजाज से बोला है वह सब कर देंगें। मैंने कहा सर मैं खुद आ रहा हूं। बोले स्वागत
है। फिर मैं हाथोंहाथ एक सील्ड पत्र लेकर हवलादार को साथ लेकर गया और दो बजे पुलिस
वेरिफिकेशन फैक्स हो गया। मूल प्रति बाद में पहुंची पर काम हो गया। मेरी बेटी
सिर्फ डा सत्यपाल सिंह के सहयोग से ही जा पाई।
पुलिस भी अच्छी
होती है। हमेशा विलेन नहीं।
वर्ष 1991 में साईनाथ
हिंदी हाईस्कूल वाशी में एक कार्यक्रम में ठाणे जिले पुलिस उपायुक्त श्री विजय आर.
काम्बले जी से परिचय हुआ। बेहद शांत, मीडिया से दूर और
न्यूज से अलग रहनेवाले, सिर्फ काम से मतलब श्री विजय आर.
काम्बले डा. सत्यपाल सिंह के बैचमेट है। बाद में नवी मुम्बई कमिश्नर होकर, महाराष्ट्र अंटी करेप्शन के डी.जी. होकर सेवानिवृत हुये। अभी वे
महाराष्ट्र अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के अध्यक्ष हैं। आपने ने भी मेरी कई बार
सहायता की। इन्हीं के एक और बैचमेट श्री अतुल माथुर सी आई एस एफ के वेस्ट्रर्न जोन
के आई.जी होकर मुम्बई आये थे। एक समय था तीनों बैचमेट एक साथ कोकण भवन बेलापुर में
बैठते थे। काम्बले साहब नवी मुम्बई पुलिस कमिश्नर। डा. सत्यपाल सिंह कोकण के आई.जी. और माथुर साहब सी
आई एस एफ के आई.जी। माथुर साहब एक अच्छे कवि थे अत: मित्रता हुई थी। मोटे चौडे
माथुर साहब ने मुझे एक कवि सम्मेलन में बताया था कि विपुल यदि तुम सुबह एक चम्मच
मेथी खाओगे तो तुम्हे कभी ज्वाइंट पेन नहीं होगा। मैं आज तक उनकी बात मानकर सुबह
एक चम्म्च मेथी खा रहा हूं। आप भी खाइये। दर्द न होने दीजिये। फिर पता नहीं माथुर
साहब वापिस मेघालय चले गये। पर अपनी मां वाली कविता और यादें मुझे दे गये।
कहने का अर्थ यह
है कि सब पुलिसवाले खराब नहीं होते। फिल्मवाले जबर्दस्ती पुलिस की इमेज बिगाडते
हैं। मुझे इन तीनों में इंसानियत और भारतीयता के साथ एक साधु ही दिखाई दिया। आज तक
निर्विवाद रहे यह तीनों पुलिस की एक मिसाल हैं।
काम्बले साहब की बिटिया की शादी और मेरी बिटिया की शादी एक ही तिथि को हुई।
शादी में छूटे
बाराती
मुझे मेरी शादी
का हास्यादपद किस्सा याद आ रहा है जो शायद एक रिकार्ड होगा। हुआ यूं हमारे बाबा
यानी परदादा जिरौनिया गांव पीलीभीत के जमींदार थे। ये सब कुल चार भाई थे। जिनके कई
पुत्र हुये। एक बाबा भाई के तो स्व.देवेंद्र सेन, जो इंदिरा गांधी के दाहिने हाथ थे वे अंग्रेजो के समय के पी.पी थे। उनके
छोटे भाई स्व. निगमेंद्र सेन सक्सेना, जिनको यू.पी.पुलिस का
क्रियेटर कहा जाता था। उनकी लिखी पुस्तकें ट्रेनिंग में पढाई जाती हैं। वे अंग्रेजो
के समय के आई.पी. थे। यू.पी.एस.सी की समितियों के अध्यक्ष हुआ करते थे। मेरे पिता
जी की मां जब वे 2 साल के थे तो स्वतंत्रता संग्राम में घायल होकर बीमार होकर चल
बसी थी। पिता जी के बडे भाई जो पिता जी से 15 साल बडे थे। वे कस्टम एक्साइज में
बडी पोस्ट पर थे और मेरी शादी तक सेवा निवृत्त हो चुके थे। एकदम कडगी कांप और समय
के पाबंद। यहां तक अपनी लडकी की शादी में समय पर खाना खाकर सोने चले गये। ताई जी
ने अकेले सब किया था। वे और पिता जी शादी में गये। अब लडके के ताऊ जी। सब चमचागीरी
करे। दोनों भाई बारात के बाद खा कर सो गये।
लडकीवालों की
तरफ से बोला गया सुबह 9 बजे बिदाई होगी। उधर कुछ बारात में गये युवा गोरखपुर मंदिर
इत्यादि घूमने चले गये। 10 बजे तक नाश्ता बिदाई हो गई। करीबन 7/8 बराती बस में
गायब। ताऊ जी और पिता जी ने चिल्लाना चालू किया और बस बिना उन बारातियों के लखनऊ
के लिये चल दी। बाद में कुछ बाराती ट्रेन से लौटे। बातचीत में मां को शर्मिंदगी
उठानी पडी। यह कैसी बारात जिसमें बाराती छोड दिये गये??
मां ने बेटी का
विवाह करावाया
इसी तरह जीवन
चलता रहा पुत्री के विवाह की सोंची। मुझे इतनी फिक्र न थी पर पत्नी की बातों से
चिंता हुई। वेब साइट पर डाला। अब चूंकि पुत्री बंगलोर में तो वहीं का लडका ढूंढा
जाये। कुल 9 लडको को पसंद किया। बंगलोर एक हफ्ता र्हे। रोज एक लडके वालों को लंच
या डिनर पर बुलवाते बात होती। कुछ के मां बाप अपने बेटे के विदेश होने के मारे तो
कुछ पैसे की चमक के मारे दबे जा रहे थे। मेरा तो चयन गुण यह था कि लडका सात्विक और
धार्मिक हो। मांसाहार मद्यपान से दूर हो। कोई लत न हो जैसे पान, बीडी, सिगरेट इत्यादि। साथ में एक डिग्री आई.आई.टी
या आई.आई.एक. की हो। मां बाप साथ रहने को राजी हों। पैसा मेरा गौण था। इसके अलावा
और कोई चुनाव बिंदू नहीं। मेरा अनुभव यह रहा कि बिहार में शादी ब्याह में झूठ
बोलना और यही दूसरे के बारे में सोंचना लगभग एक परम्परा है। कुल तीन लोगों ने झूठ
बोला कि लडका सात्विक है पर मैंने पकड लिया। दो ने आयु कम गलत बताई। एक को पैसे का
घमंड। एक के घर में सब बैंक में पर बहुओं को आजादी नहीं। मेरी एक लडके से कुण्डलनी
और अनुभव पर बात हुई। उसने बिना आशचर्य चकित होते हुये बातचीत आरम्भ की। यदि बात
धन की करें तो मुझे संकोच न होगा कि बेहद साधारण और मध्यम वर्ग़ के घरवाले पर लडका
आई.आई.टी. खडगपुर से बी.टेक. जिसने बाद में नासर मनजी से एम.बी.ए.भी कर लिया। वहीं
पर सुई फंस गई। मेरे घरवाले भाई बहिन और अन्य रिश्तेदार अरे यह क्या कहां बेटी को
फंसा रहे हो। न धन न दौलत, मां बाप साथ रहेंगे। एक ने तो यह तक
कह दिया। नाम न लूंगा उनके खुद लडका है कि सास ससुर को तो डस्ट बिन तक बोलते हैं।
तुम्हारी बेटी सुन्दर है सरकारी नौकरी है धन भी ठीक ठाक है वगैरह वगैरह्। एक पूर्व
आई.ए.एस. के लडके के लिये बात हुई थी। वो मांसाहारी थे। बहुत अच्छे लोग मैं घर
जाकर खाना भी खाकर आया था। पर बेटी ने मांसाहार पर आपत्ति कर दी। मेरे लिये बेटी
की पसंद परम आवश्यक थी।
गंदी सोंच: मां
बाप एक बोझ
मुझे एक बात
अखरती थी क्या जमाना आया मां बाप सास ससुर एक बोझ। मैंनें शगुन और गोद भराई लखनऊ
में कर दी। सिर्फ एक कारण था मुझे मां पर विश्वास और ईश पर श्रद्धा।
जब पंखा गिरा
एक बडी विचित्र
घटना घटी मैं यात्रा अवकाश भत्ता लेकर वाया बनारस-गोरखपुर-लखनऊ होते हुये। बनारस
में अपनी मासेरी बहिन से वर्षों बाद मिलकर आमन्त्रण देते हुये आने का प्लान बनाया। बनारस
तीन दिन रूका। कुम्भ मेले का अंतिम चरण था। बेहद भीड थी। मैंनें सोंचा विवाह पवित्र
भूमि बनारस से लिये जायें। जिन्हें मुम्बई में छपवा लेंगें। जीजा जी के साथ कार्ड
लेने दुकान पर गया। अचानक ऊपर घूमता हुआ पंखा मेरी पीठ को छूते हुये नीचे गिर गया।
मन शंका से भर गया। यह बहुत कम होता है। पंखा नीचे गिरे। पर माता जी को याद करते
हुये ध्यान किया तो यह ही लगा कि कोई बला टल गई।
लखनऊ बारादरी
में विवाह के साथ और समुदायिक कक्ष मुम्बई में भोज हुआ। इस भोज में महाराष्ट्र के
पूर्व मंत्री नवाब मलिक और सासंद संजीव नाईक भी आये। इसी दिन काम्बले साहब की बेटी
का विवाह भी समपन्न हुआ।
...................... क्रमश:
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भाग 9 का लिंक
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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