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Wednesday, June 20, 2018

भाग- 9 : एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा

एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 9   

सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"





आपने भाग 1 से 8  में पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी क्रिया बन्द हो गई। पर उनका आशीर्वाद भजान के रूप में दिखता रहा। एक सन्यासी का भी पुत्र प्राप्ति का प्रण टूट गया। बचपन में घर से भागा। भगवान को मिलने के लिये। बेटी को सरकारी नौकरी किस प्रकार मिली। सास ससुर के प्रति लोगों की भावनायें सुनकर मन आहत हुआ किंतु पुत्री का विवाह वहीं क्या जहां धन सम्पत्ति नही सदगुण मिले।  
अब आगे .......................

शोध निष्कर्ष 


              आगे बढने के पूर्व मैं अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं।

पहला सत्य - सनातन पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की। बजरंग बली किसी की भी पूजा करो हमेशा सहायक होते हैं। बस उनको पुकारो तो।

अत: मित्रों आप भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु कृपा कर दें। 
 
 

मेरे अनुभव से सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना इच्छा के हो जायेगा।


वैज्ञानिकों को चुनौती  


वैज्ञानिकों तुम दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते हुये भी ईश को नहीं मानता है। 
 
 

गरीबी में आटा गीला 
 
 

अपनी कथा में नवी मुम्बई के निवासी मोहम्मद सलीम शेख का जिक्र न करूं तो बेईमानी होगी। मैं जब वर्ष 1986 में सेक्टर 10 वाशी के मकान में कुछ दिन रहा तो मेरी पत्नि गर्भवती थी। उस समय मुम्बई में मैं अकेला और सतत पारी में आता जाता था। अत: मेरी ड्यूटी का कोई ठिकाना नहीं। उस समय मेरे पडोस में एक मुस्लिम परिवार रहता था जिसकी मुखिया को सब लोग आपा कहते थे। वह कभी कभी पत्नि की देखभाल कर देती थीं अत: पहिचान हो गई थी। उन्ही के कहने पर मैंनें एक मुस्लिम युवक जो दिल्ली का था। जिसका नाम मोहम्मद सलीम अंसारी था। उसकी 25,000 की जमानत सारस्वत बैंक वाशी में ले ली थी। साथ अपने मित्र अजय कुमार सक्सेना और विपिन कुमार गुप्ता को भी गारंटर बना दिया था। उस समय लोन लेना बहुत मुश्किल काम था। पगार थी मात्र 1680 रूपये। 25,000 के लिये तीन गारंटर। सलीम अंसारी गारमेंट्स का निर्माण कर दुबई भेजना चाहता था। अत: लोन लिया था। बात आई गई हो गई। वर्ष 1992 आया कि कार्यालय में कुल वेतन 3,000 में से 1200 कट कर पगार आई। मालूम पडा। सलीम अंसारी ने बैंक में एक भी किश्त न भरी अत: गारंटर की पगार से पैसे कटेगें। और वह लोन 50,000 से ऊपर का हो गया है। इधर  विपिन गुप्ता और अजय परेशान क्योकि उनकी भी पगार कटना चालू। कुछ दिन परेशानी में बीते। आपा को धमकाया पर कोई फायदा नहीं बोले “मैं देगी न। काहेव परेशान कर रहे है। काम्बले साहब से मिला। बोले किसी इंस्पेकटर को बोल दूंगा। हो जायेगा। पर बार बार दौडे कौन। 
 
 

डूबा पैसा मिला
 
 

हुआ यूं था वर्ष 1990 से मैनें वाशी के एकमात्र हिंदी साफ्ताहिक “ महानगरी एक्प्रेस” में लिखना चालू किया था तो उसके प्रबंध सम्पादक श्री मोहम्मद सलीम  शेख थे। अत: पहिचान हो गई थी। सलीम भाई कवियों की शायरों की बहुत इज्जत करते थे और खुद एक मराठी साफ्ताहिक निकालते थे। प्रगतिशील उदारवादी मुस्लिम सलीम भाई ने अपनी बेटी को जिसका नाम शहनाज शेख था। उस जमाने में सम्पादन का कार्य देकर महिला सशक्तिकरण का प्रयास किया था। मैंनें उनको बोला। बस सलीम भाई ने आपा के देवर रियाजुद्दीन को जो कांदा बटाटा (आलू-प्याज) होल सेल मार्केट में काम करता था। एक बार बोला वह डायलाग मुझे आज भी याद है। “हेअ कवियों का पैसा मारता है। दे दे। दुबारा नहीं बोलना पडे”। इतना ही बोला था कि आपा के घर में ऊपर से नीचे हडकम्प मच गया। सलीम भाई का समाज में बहुत रूतबा और मुस्लिम समाज में स्थान था। फिर क्या एक महीने से कम समय में दुबई से सलीम अंसारी का एक लाख का चेक आपा को आ गया। सारा पैसा चुक गया और अपनी जो तीन किश्त कट चुकी वह भी हम तीनों को वापिस। बाद में सारस्वत बैंक का मैंनेजर जमानत छोडते हुये बोला। मेरे सामने यह पहला केस है जब लोन का पूरा पैसा एक बार में वापिस आ गया वह भी बारोअर के द्वारा। 
 
 

यह सब प्रभु की कृपा थी। जिसकी कृपा से सलीम भाई ने उबारा। बाद में मैं एक किलो काजू कतरी लेकर बिग स्पैलैश के कार्यालय गया। सलीम भाई बाहर मिल गये और हंसते हुये मिठाई ली और गुजराती पत्रकार जीतेंद्र पारिख को पकडाते हुये बोले यह लखनवी की ओर से बांट दो। और मुझसे बोले “देखो किसी को दस हजार भी दे देना पर कभी जामिन मत लेना, फंस जाओगे” । आज भी मैं सलीम भाई का ऋणी हूं। बडे भाई का स्थान देता हूं। वे मेरी बेटी की शादी में भी आये थे। मैं उनके द्वारा आयोजित रोजा अफ्तार पार्टी में बिना नागा जाता हूं। 
 
 

इसी तरह अनेक किस्से हैं मैं अपनी बेवकूफी से फंसता रहा पर मां की कृपा से बचता रहा। मेरे सम्बंध भी मां की कृपा से हाई फाई होने लगे। अपनी जिंदगी चलती रही। मैने कभी अपने स्वार्थ के लिये सम्बंध प्रयोग न किये। पर दूसरों की सहायता करने की कोशिश जरूर की। नतीजा यह है कि मैं जंगल में भी फंस जाऊं तो ईश मेरी सहायता का रास्ता निकाल देगा। यह कई बार हुआ है। 
 
 

वाच मैंन के रूम पर सोया 
 
 

याद पडता है वर्ष 1985 में मैं विवाह के पूर्व शा वैलेस कोलकाता साक्षात्कार हेतु गया था। वहां ट्रैन लेट होने की वजह से रात्रि 8 बजे कार्यालय पहुंचा। दूसरे दिन साक्षात्कार। आज रहने की जगह नहीं तो वाच मैंन ने अपना छोटा सा रूम जिसमें एक ही बेड था। मुझे ठहरा दिया था। बोला बाबा मेरी नाइट ड्यूटी है। आप सो जाओ। मुम्बई में ज्वाइन किया। ठहरने को कोई जगह नहीं एक दूर के रिश्तेदार के घर ठहरा। इस तरह हर जगह देवदूत मिल जाते हैं।
यह बात बार बार सिद्ध होती है कि “कर भला तो हो भला” । अत: दूसरे की सहायता की आदत बनाओ। 
 
 

दुआयें लो। काम आती हैं 
 
 

मुझको याद है कालोनी में मैं नालंदा गणपति की लाइन में लगा था, अचानक  एक बुजुर्ग महिला मेरी पत्नि से मराठी बोली “तुम्चा नवडा आहे का” यानि ये क्या तुम्हारा पति है। पत्नि बोली हां। तो वह महिला तमाम आशीर्वाद देती हुई  बोली “ भला मानुस आहे, मी देवाचा चांगली आयु चे विनती करा”। यानी यह तो बहुत भला है देव इसको लम्बी आयु दे”। कारण यह था कि उन दिनों कालोनी का अस्पताल गेट सिफ कालोनी वालो के लिये खुला था। आटो वगैरह की भी अनुमति नहीं थी। मैं स्कूटर से केम्बूर से आ रहा था। गेट पर आटो छोडकर एक अधेड महिला दो भारी बैग नहीं उठा पा रही थी। मैंने उनको चिदम्बरम बिल्डिंग तक स्कूटर से छोड दिया। य्ह लगभग एक किलोमीटर तो पड ही जाता होगा। इस बात को मैं भूल गया पर उन माताजी को याद था। एक जरा सी सहायता और जिंदगी भर की दुआ।
 
 

वर्ष 1981 में मैंने कानपुर से ट्रेन से आते वक्त एक बुजुर्ग दम्पती का सामान लखनऊ के बडे प्लेटफार्म से छोटे प्लेट्फार्म पहुंचा दिया था। मैं भूल गया पर बाद में वह मुझे पहिचान गये क्योंकि वे मेरे इंजीनियरिंग के सहपाठी विनायक जोशी के मां बाप थे। 
 
 
 

सहयोग के कटु अनुभव भी 
 
 

ऐसे अनेक किस्से हुये। पर जिसकी आप सहायता करना चाह्ते हैं आवश्यक नहीं वह आपका शुक्रगुजार हो। यह कलियुग है। सिर्फ एक अनुभव मेरे जीवन का काला अनुभव है। जब मैंनें अपने कार्यालय में तारापुर से आये एक मित्र को अपने कवि सम्मेलन में संचालन करा कर उनको मुम्बई में जगह दी। एक संस्था में अपना पद छोडकर उनको नामित करवाया। तकनीकि साहित्य तक से सहायता की। किंतु इंसान की फितरत मेरे साथ इतने दगा किये कि एक किताब लिख जाये पर मैं सोंचता रहा कभी तो बदलेगा पर दुखद मुझे ही अलग होना पडा। क्योकिं बिच्छू बेचारा क्या करे उसका स्वभाव है काटना। पूंछ में विष का वास हो तो कैसे विश्वासघात न होगा। मैं सत्य कहता हूं इस तरह की फितरत शायद दुनिया में हो पर मेरा पाला न पडा था। लेकिन मैं नहीं बदलूंगा। यह मेरा प्रयास है। मेरे हृदय में उनके प्रति अब कोई कलुषित भाव नहीं। पर प्रसंगवश लिख दिया।
 
 

गुरूदेव की सहनशीलता
 
 

याद आता है कि बडे महाराज शिवोम तीर्थ जी महाराज के आज से 50 साल पहले जब रूपये की की कीमत थी एक शिष्या ने पच्चीस हजार जो आश्रम निर्मान के लिये महाराज जी ने रखे थे। वापिस न किये। लोगों ने पुलिस शिकायत की सलाह दी पर महाराज जी ने बोला” मुझसे अधिक उसको आवश्यकता होगी।

महाराज जी की लिखी एक प्रार्थना तो सर से पैर तक हिला देती है। जिससे मैं कोसों दूर हैं। 
 

सहन शक्ति दे मुझे, मेरे प्रभु गुरूदेव जी।
सहता रहूं, सहता रहूं, सहता रहूं गुरूदेव जी॥
सहन मैं इतना करूं, अभिमान चकनाचूर हो।
न रहे मुझ में तनिक भी, कर कृपा गुरूदेव जी।।
सहन मैं इतना करूं, उदिग्न न हो मन मेरा।
कामना मंगल सभी की, मांगता गुरूदेव जी।।
सहन मैं इतना करू, प्रतिकार कुछ भी न करूं।
उफ तक निकालूं मुख से न, आशीष दो गुरूदेव जी।।
सहन करना साधना है, करती निर्मल है शिवोम्।
कृपा तेरी इस लिये, पाता रहूं गुरूदेव जी।। 
 
 

यह सहनशीलता सिख गुरूओं में दिखती है। बंदा बैरागी का शीश मुगलों द्वारा बीच से काट दिया गया पर उफ तक न की। अब प्रश्नकर्ता समझ गये होंगे कि समर्थ सिद्ध पुरूष सब ईश कृपा मानकर उसका दण्ड मानकर सामर्थ्य होते हुये भी अपनी शक्तियों द्वारा कुछ प्रतिकार नहीं करते हैं। जब औरंगजेब ने उनके सर पैर रख अपमान किया तो उन्होने उसका मूत्रत्याग तप से रोक दिया। बाद में औरंगजेब ने माफी मांगी तो माफ भी कर दिया। यह तप का उदाहरण है। 
 
 

सब एक हैं। ईश को याद तो करो 
 
 

मुझे याद पडता है वर्ष 1996 (ठीक से वर्ष याद नहीं) में जब हमारे एक वरिष्ठ सहकर्मी श्री हृषिकेश मिष्रा की पत्नि श्रीमती साधना मिष्रा को कुछ विशेष अनुभूतियां हुईं थी। भाभी जी की अनुभूतियां मैं प्रकाशित तो नहीं सकता पर अद्भुत थीं। लम्बी वार्ता हुई थी। भाभी जी तो मां दुर्गा की आराधना करती थी पर कुछ ऐसी कृष्ण अनूभुतियां हुई कि वह आज माता साधना के नाम से अमेरिका तक में कृष्ण भक्ति रस का पान करा रहीं हैं। मतलब आवश्यक नहीं जिसकी आराधना करो उसी रूप में ईश कृपा करे।  
 
 

यहां यह प्रसंग जरूरी है क्योकिं लोग मेरे ग्रुप में पूछते हैं कि नाम जप मंत्र ज्प किसका करूं। भाई आपको जो अच्छा लगे करो। पर करो सतत अखंड निरंतर निर्बाध। यही मंत्र जप आपको गुरू के साथ सब कुछ दिला देगा पर करो तो। 
 
 

प्रचार प्रसार के खिलाफ 
 
 

वैसे अभी तक मेरे माध्यम से गिनती के लोग जिनमें श्री शोभनाथ मिश्र, जनक कविरत्न, डा. अमर कुमार ही आश्रम तक पहुंच पायें थे। कारण एक बार 1996 में बडे महाराज पुन: मुम्ब्रा आये थे। तो मैंनें शिव रात्रि महोत्सव का समाचार न्यूज पेपर में दे दिया था। उस बात पर महाराज जी ने मेरी चम्पी की थी। उनका मानना था कि आश्रम शिव का है। यहां वो ही आयेगा जिसको शिव भेजेगे। अनावश्यक प्रचार से पवित्रता नष्ट होती है। पहले साबुन तेल कंघी बनती है फिर सबका ध्यान व्यापार पर अधिक साधन पर नहीं लगता है। आश्रम आत्म उत्थान हेतु होते हैं। व्यापार हेतु नहीं। 
 
 

इस बात का कारण यह हो सकता है बढ़ती प्रसिध्दी और धन के साथ माया अपना प्रभाव डालने में सफल हो जाती है। विभिन्न प्रपंचो में उलझे रहने के कारण स्वयं संत को तप का साधन का समय निकालना कठिन होता जाता है। अतः सन्त तक फिसलने लगता है। जो आज दिख रहा है। माया के अधीन होकर वह मनमाना व्यवहार करने लगता है। कभी कभी कानून में कई बार बचने के बाद भी फंस जाता है। शायद इसी लिए स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज प्रचार प्रसार और शो बाजी के बिल्कुल खिलाफ थे। यहाँ तक प्रवचन में सजावट अधिक हो गई तो जाते ही नही थे। उनका मत था। आश्रम में यदि तेल साबुन बनाना चालू करोगे तो यह व्यापार पर अधिक साधन और शिष्य की उन्नति पर ध्यान नही देगा। महाराज जी कहते थे पहले एक फिर दो और कुछ वर्षों बाद समाधि तक पर  दुकानदारी शुरू हो जाएगी। अत: हमारी परम्परा में गुरूओं की समाधि तक नहीं बनती। गंगा में प्रवाहित करते हैं। आजकल यह भी बंद हो गया तो क्या होगा राम जाने। 
 
 
 

ऐसे ही मैंनें अपने मित्र की दीक्षा की सिफारिश अपने गुरू महाराज से की थी। तब गुरू महाराज ने खिचाईं करते हुये बोला था “अब आप मुझे बतायेंगे किस को दीक्षा दूं। बाद में वर्ष 1998 में बडे महाराज जी ने मुम्ब्रा आश्रम से हमारे गुरू महाराज स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज को अमलनेर जाने का आदेश दे दिया।   

...................... क्रमश: .......................




"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 



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