सनातन ही सर्व श्रेष्ठ
मार्ग है
कुछ उत्तर
जी यही महानता है
सनातन की। सनातन ही श्रेष्ठ मार्ग है । गीता ही ज्ञान। वेद ही सत्य वाणी।
सनातन इसलिए विशाल
है
क्योकि यह प्रत्येक
मनुष्य की बुद्धी खुलने के आयाम और स्वतन्त्रा देती है।
अनेको पुस्तको और
ज्ञान के भंडार को खुद समझ कर अपनी गीता खुद लिखने की छूट देती है। चार्वाक ने
भगवान नहीं माना उनको भी ऋषि होने का सम्मान दिया। इस्लाम तो गला काटते हैं। ईश
निंदा पर सजाये मौत।
वही अन्य किताब
बाइबिल या कुरान या एंजिल अपने से बाहर सोंचने देखने की अनुमति नही देते है।
ईश तक पहुचने के
मार्ग तुम खुद सोंच सकते हो पसन्द कर सकते हो, यह कहता है सनातन। यह मात्र सनातन ही छूट देता है।
सनातन दोष नहीं अपूर्णता बताता है। हमारे द्वारा अपूर्णता
देखना दोष नही होता है।
पूर्ण सिर्फ सनातन जो साकार से निराकार सगुन से
निर्गुण तक का भी ज्ञान देती है।
बाइबिल साकार जीसस की बात करते हैं मुस्लिम निराकार अल्लह की। कहते हैं कि सिर्फ
यही सही, बाकी गलत जो इनको संकुचित कर छोटा बना देता है। यह क्या है
कि यहाँ तक दूसरी पद्दति के प्रसाद तक को खाने को मना।
सनातन तो कहता है mmst में
विधि दी है। आप अपनी पूजा करके भी ईश को प्राप्त कर सकते हो।
इनके नही मुक्ती नही स्वर्ग मिलता है। मुक्ति सिर्फ
सनातन मानता है। बाकी के लिये स्वर्ग से ऊपर कुछ नही।
इसी लिए भोजन शुध्द बताया है शरीर की ऊर्जा सहन नही होती है और क्रोध में निकलती है।
निर्भर करता है मनुष्य की शारीरिक और तासीर पर।
मनुष्य की धारणा और सोंच बहुत बड़ी सहयोगी और बाधक है।
यदि आप बचपन से मुक्ति की नही सोंचेंगे आप मुक्त नही हो सकते। आप स्वर्ग नरक में फंसे तो नही फंसेंगे। इसी कारण मुस्लिम में और ईसाई में
पीर इत्यादि बहुत होते है। क्योंकि वे सन्त होते हुए भी मुक्ति को नही सोंच पाते
तो यही तो यहीं भटकते है। स्वर्ग नही मिला तो धरती पर भटके।
इसी लिए मेरा मानना है कि प्रत्येक मनुष्य अपने मरने
के प्रकार की तैयारी करता है।
गंगा जी का तट हो सावरा निकट हो जब प्राण तन से
निकले।
यह क्या है मौत का रिहर्सल।
नही उसका बिलकुल नही। बिना हमारी इच्छा के।
नही यह बात समझने की नही अनुभव की है। जैसे ईश ने कहा
मुक्त हो तुमने कहा नही तो मुक्ति नही।
मित्रो यह चर्चा है ज्ञान हेतु पर इसको हर व्यक्ति समझ नही सकता जब तक अनुभव न हो।
अतः मित्रो यह मात्र बौध्दिक विलास और व्यर्थ की ही
है।
बाते बड़ी बड़ी करनी कुछ नही। दिन भर मोबाइल पर रहो
साधन साधना मत करो। बाते ज्ञान की करना मात्र बकवास की श्रेणी में आता है।
गूगल पर जाए सब वाक्य दिए है। समझो या न समझो।
मैं तो कहता हूँ करो सिर्फ करो। सब स्पष्ट हो जाएगा।
जो अभी पश्यंती तक मे गया नही उसे स्थित प्रज्ञ स्थिर
बुद्दी समझ मे आएगी।
कृष्ण को केवल कुछ लोग समझे थे। बाकी तो ग्वाला अहीर
समझते थे।
इनको जो बोला गया था। कुछ भी नही किया होगा। जो
व्यक्ति खुद समर्थ नही होना चाहता सब दूसरों से उम्मीद करता हो वह जीवन मे सफल नही
हो सकता।
विगत तीन वर्षों में कितने लोगो ने जो कुछ भी बताया
वह कुछ नही किया उल्टे उन्हें बुराई मिली। अब यह बताओ ऐसे व्यक्ति की
सहायता तो भगवान भी नही कर सकते।जो सबको गलत माने कुछ समझे नही कुछ करे नही। जो
स्त्री शक्ति शापित हो उसे कोई क्या कर सकता है।मुझे भी सुनने के लिए तैयार होना
चाहिए।मेरी बातों को इस ग्रुप में कुछ लोगो ने माना बिना तर्क आरम्भ किया। उन सबको
फायदा हुआ।उन्होंने बिना प्रश्न किये बताये गए मार्ग और पूजा को किया और कर रहे है
वह सफल हो रहे है।जो सन्देह करे। अपने को विद्धान माने। भक्त समझे। बतानेवाले को
मूर्ख समझे। उसका भला मन्त्र कैसे करेगा। विश्वास श्रध्दा और समर्पण से धरती तक
हिल सकती है। पर हो तो।
रिपोस्ट करता हूँ। ध्यान से पढो और समझो।
।। गुप्त मन्त्र साधना रहस्य ।।
एक मनुष्य ने सुन रखा था कि आध्यात्मिक जगत में कुछ
ऐसे गुप्त मंत्र हैं जो यदि किसी को सिद्ध हो जावें तो उसे बहुत सिद्धियाँ मिल
सकती हैं। मन्त्रों की अद्भुत शक्तियों के बारे में उसने बहुत कुछ सुन रक्खा था और
बहुत कुछ देखा था इसलिए उसे बड़ी प्रबल उत्कंठा थी कि किसी प्रकार कोई मन्त्र
सिद्ध कर लें, तो आराम से जिन्दगी बीते और गुणवान तथा यशस्वी बन जावें।
गुप्त मन्त्र की दीक्षा लेने के विचार से गुरुओं को
तलाश करता हुआ, वह दूर-दूर मारा फिरने लगा। एक दिन एक सुयोग्य गुरु का उसे
पता चला और वह उनके पास जा पहुँचा। वह महानुभाव दीक्षा देने के लिये तैयार न होते
थे। पर जब उस मनुष्य ने बहुत प्रार्थना की और चरणों पर गिरा तो उन महानुभाव ने उसे
शिष्य बना लिया। कुछ दिन के उपरान्त उसे गुप्त मंत्र बताने की तिथि नियत की गई। उस
दिन उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा दे दी और आदेश कर दिया कि इस मंत्र को गुप्त रखना,
यह अलभ्य मंत्र औरों को मालूम नहीं है, तू
इसका निष्ठापूर्वक जप कर ले तो बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त हो जावेंगी।
शिष्य उस मंत्र का जप करने लगा। एक दिन वह नदी किनारे
गया तो देखा कि कुछ लोग गायत्री मंत्र को जोर-जोर से उच्चारण करके गा रहे थे।
शिष्य को सन्देह हुआ कि इसे तो और लोग भी जानते हैं, इसमें
गुप्त बात क्या है। इसी सोच विचार में वह आगे नगर में गया तो दिखा कि कितनी ही
दीवारों पर गायत्री मंत्र लिखा हुआ है। वह और आगे चला तो एक पुस्तक विक्रेता की
दुकान पर गायत्री सम्बन्धी कई पुस्तकें देखीं, जिनमें वह
मंत्र छपा हुआ था। अब उसका सन्देह दृढ़ होने लगा। वह सोचने लगा यह तो मामूली मंत्र
है और सब पर प्रकट है। गुरुजी ने मुझे योंही बहका दिया है। भला इससे क्या लाभ हो
सकता है?
इन सन्देहों के साथ वह गुरुजी के पास पहुँचा और क्रोध
पूर्वक उनसे कहने लगा कि आप ने व्यर्थ ही मुझे उलझा रखा है और एक मामूली मंत्र को
गुप्त एवं रहस्यपूर्ण बताया है।
गुरु जी बड़े उदार और क्षमाशील थे। उतावले शिष्य को
क्रोधपूर्वक वैसी ही उतावली का उत्तर देने की अपेक्षा उसे समझा कर सन्तोष करा देना
ही उचित समझा। उन्होंने उस समय उससे कुछ न कहा और चुप हो गये। दूसरे दिन उन्होंने
उस शिष्य को बुलाकर एक हीरा दिया और कहा इसे क्रमशः कुँजड़े, पंसारी,
सुनार, महाजन और जौहरी के पास ले जाओ और वे जो
इसका मूल्य बतावें उसे आकर मुझे बताओ। शिष्य गुरु जी की आज्ञानुसार चल दिया। पहले
वह कुँजड़े के पास पहुँचा और उसे दिखाते हुए कहा इस वस्तु का क्या मूल्य दे सकते
हो? कुँजड़े ने उसे देखा और कहा-काँच की गोली है, पड़ी रहेगी, बच्चे खेलते रहेंगे, इसके बदले में पाव भर साग ले जाओ। इसके बाद वह उसे पंसारी के यहाँ ले गया।
पंसारी ने देखा काँच चमकदार है, तोलने के लिए बाँट अच्छा
रहेगा। उसने कहा भाई, इसके बदले में एक सेर नमक ले सकते हो।
शिष्य फिर आगे बढ़ा और एक सुनार के पास पहुँचा। सुनार ने देखा कोई अच्छा पत्थर है।
जेवरों में नग लगाने के लिए अच्छा रहेगा। उसने कहा-इसकी कीमत 50 दे सकता हूँ। इसके बाद वह महाजन के पास पहुँचा। महाजन पहचान गया कि यह
हीरा है पर यह न समझ सका किस जाति का है, तब भी उसने अपनी
बुद्धि के अनुसार उसका मूल्य एक हजार रुपया लगा दिया। अन्त में शिष्य जब जौहरी के
पास पहुँचा तो उसने दस हजार रुपया दाम लगाया। इन सब के उत्तरों को लेकर वह गुरु जी
के पास पहुँचा और जिसने जो कीमत लगाई थी वह उन्हें कह सुनाई।
गुरु ने कहा-यही तुम्हारी संदेहों का उत्तर है। एक
वस्तु को देखा तो सब ने, पर मूल्य अपनी बुद्धि के अनुसार आँका। मंत्र साधारण मालूम
पड़ता है और उसे सब कोई जानते हैं, पर उसका असली मूल्य जान
लेना सब के लिए संभव नहीं है। जो उसके गुप्त तत्व को जान लेता है, वही अपनी श्रद्धा के अनुसार लाभ उठा लेता है।
यथार्थ में मंत्रानुष्ठान और आध्यात्मिक क्रियाओं को
स्थूल दृष्टि से देखा जाये, तो वे वैसी ही मामूली और तुच्छ
प्रतीत होती हैं जैसी कि कुँजड़े को वह काँच की गोली प्रतीत हुई थी, किन्तु श्रद्धा और निष्ठा के द्वारा जिसने अपना मन जौहरी बना लिया है,
उसके लिये वह साधनाएं बड़ा महत्व रखती हैं और इच्छानुसार फल भी देती
है। सारा महत्व श्रद्धा और विश्वास में है। विश्वास के साथ की गई एक छोटी सी
क्रिया भी विचित्र फल दिखाती है, किन्तु अविश्वास और
अश्रद्धा के साथ किया हुआ अश्वमेध भी निष्फल है। यही गुप्त साधनाओं का रहस्य है।
यह शिष्य के समर्पण, उसकी
आस्था श्रध्दा और स्वयं की पूर्व आराधना शक्ति पर निर्भर होता है।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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