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Sunday, June 24, 2018

सनातन ही सर्व श्रेष्ठ मार्ग है कुछ उत्तर



सनातन ही सर्व श्रेष्ठ मार्ग है
कुछ उत्तर 
खोजी देवीदास विपुल

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

जी यही महानता है सनातन की। सनातन ही श्रेष्ठ मार्ग है  । गीता ही ज्ञान। वेद ही सत्य वाणी।
सनातन इसलिए विशाल है
क्योकि यह प्रत्येक मनुष्य की बुद्धी खुलने के आयाम और स्वतन्त्रा देती है।
अनेको पुस्तको और ज्ञान के भंडार को खुद समझ कर अपनी गीता खुद लिखने की छूट देती है। चार्वाक ने भगवान नहीं माना उनको भी ऋषि होने का सम्मान दिया। इस्लाम तो गला काटते हैं। ईश निंदा पर सजाये मौत।
वही अन्य किताब बाइबिल या कुरान या एंजिल अपने से बाहर सोंचने देखने की अनुमति नही देते है।

ईश तक पहुचने के मार्ग तुम खुद सोंच सकते हो पसन्द कर सकते हो, यह कहता है सनातन। यह मात्र सनातन ही छूट देता है।
सनातन दोष नहीं अपूर्णता बताता है। हमारे द्वारा अपूर्णता देखना दोष नही होता है।
पूर्ण सिर्फ सनातन जो साकार से निराकार सगुन से निर्गुण तक का भी ज्ञान देती है।
बाइबिल साकार जीसस की बात करते हैं  मुस्लिम निराकार अल्लह की। कहते हैं कि सिर्फ यही सही, बाकी गलत जो इनको संकुचित कर छोटा बना देता है। यह क्या है कि यहाँ तक दूसरी पद्दति के प्रसाद तक को खाने को मना।

सनातन तो कहता है mmst में विधि दी है। आप अपनी पूजा करके भी ईश को प्राप्त कर सकते हो।
इनके नही मुक्ती नही स्वर्ग मिलता है। मुक्ति सिर्फ सनातन मानता है। बाकी के लिये स्वर्ग से ऊपर कुछ नही।
इसी लिए भोजन शुध्द बताया है  शरीर की ऊर्जा सहन नही होती है और क्रोध में निकलती है।
निर्भर करता है मनुष्य की शारीरिक और तासीर पर।
मनुष्य की धारणा और सोंच बहुत बड़ी सहयोगी और बाधक है। यदि आप बचपन से मुक्ति की नही सोंचेंगे आप मुक्त नही हो सकते।   आप स्वर्ग नरक में फंसे तो नही फंसेंगे। इसी कारण मुस्लिम में और ईसाई में पीर इत्यादि बहुत होते है। क्योंकि वे सन्त होते हुए भी मुक्ति को नही सोंच पाते तो यही तो यहीं भटकते है। स्वर्ग नही मिला तो धरती पर भटके।

इसी लिए मेरा मानना है कि प्रत्येक मनुष्य अपने मरने के प्रकार की तैयारी करता है। 
गंगा जी का तट हो सावरा निकट हो जब प्राण तन से निकले।
यह क्या है मौत का रिहर्सल।
नही उसका बिलकुल नही। बिना हमारी इच्छा के।
नही यह बात समझने की नही अनुभव की है। जैसे ईश ने कहा मुक्त हो तुमने कहा नही तो मुक्ति नही।
मित्रो यह चर्चा है ज्ञान हेतु पर इसको हर व्यक्ति  समझ नही सकता जब तक अनुभव न हो।
अतः मित्रो यह मात्र बौध्दिक विलास और व्यर्थ की ही है।
बाते बड़ी बड़ी करनी कुछ नही। दिन भर मोबाइल पर रहो साधन साधना मत करो। बाते ज्ञान की करना मात्र बकवास की श्रेणी में आता है।

गूगल पर जाए सब वाक्य दिए है। समझो या न समझो।
मैं तो कहता हूँ करो सिर्फ करो। सब स्पष्ट हो जाएगा।
जो अभी पश्यंती तक मे गया नही उसे स्थित प्रज्ञ स्थिर बुद्दी समझ मे आएगी।
कृष्ण को केवल कुछ लोग समझे थे। बाकी तो ग्वाला अहीर समझते थे।
इनको जो बोला गया था। कुछ भी नही किया होगा। जो व्यक्ति खुद समर्थ नही होना चाहता सब दूसरों से उम्मीद करता हो वह जीवन मे सफल नही हो सकता।

विगत तीन वर्षों में कितने लोगो ने जो कुछ भी बताया वह कुछ नही किया उल्टे उन्हें बुराई मिली। अब यह बताओ ऐसे व्यक्ति की सहायता तो भगवान भी नही कर सकते।जो सबको गलत माने कुछ समझे नही कुछ करे नही। जो स्त्री शक्ति शापित हो उसे कोई क्या कर सकता है।मुझे भी सुनने के लिए तैयार होना चाहिए।मेरी बातों को इस ग्रुप में कुछ लोगो ने माना बिना तर्क आरम्भ किया। उन सबको फायदा हुआ।उन्होंने बिना प्रश्न किये बताये गए मार्ग और पूजा को किया और कर रहे है वह सफल हो रहे है।जो सन्देह करे। अपने को विद्धान माने। भक्त समझे। बतानेवाले को मूर्ख समझे। उसका भला मन्त्र कैसे करेगा। विश्वास श्रध्दा और समर्पण से धरती तक हिल सकती है। पर हो तो।
रिपोस्ट करता हूँ। ध्यान से पढो और समझो।

।।  गुप्त मन्त्र साधना रहस्य ।।
एक मनुष्य ने सुन रखा था कि आध्यात्मिक जगत में कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हैं जो यदि किसी को सिद्ध हो जावें तो उसे बहुत सिद्धियाँ मिल सकती हैं। मन्त्रों की अद्भुत शक्तियों के बारे में उसने बहुत कुछ सुन रक्खा था और बहुत कुछ देखा था इसलिए उसे बड़ी प्रबल उत्कंठा थी कि किसी प्रकार कोई मन्त्र सिद्ध कर लें, तो आराम से जिन्दगी बीते और गुणवान तथा यशस्वी बन जावें।

गुप्त मन्त्र की दीक्षा लेने के विचार से गुरुओं को तलाश करता हुआ, वह दूर-दूर मारा फिरने लगा। एक दिन एक सुयोग्य गुरु का उसे पता चला और वह उनके पास जा पहुँचा। वह महानुभाव दीक्षा देने के लिये तैयार न होते थे। पर जब उस मनुष्य ने बहुत प्रार्थना की और चरणों पर गिरा तो उन महानुभाव ने उसे शिष्य बना लिया। कुछ दिन के उपरान्त उसे गुप्त मंत्र बताने की तिथि नियत की गई। उस दिन उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा दे दी और आदेश कर दिया कि इस मंत्र को गुप्त रखना, यह अलभ्य मंत्र औरों को मालूम नहीं है, तू इसका निष्ठापूर्वक जप कर ले तो बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त हो जावेंगी।

शिष्य उस मंत्र का जप करने लगा। एक दिन वह नदी किनारे गया तो देखा कि कुछ लोग गायत्री मंत्र को जोर-जोर से उच्चारण करके गा रहे थे। शिष्य को सन्देह हुआ कि इसे तो और लोग भी जानते हैं, इसमें गुप्त बात क्या है। इसी सोच विचार में वह आगे नगर में गया तो दिखा कि कितनी ही दीवारों पर गायत्री मंत्र लिखा हुआ है। वह और आगे चला तो एक पुस्तक विक्रेता की दुकान पर गायत्री सम्बन्धी कई पुस्तकें देखीं, जिनमें वह मंत्र छपा हुआ था। अब उसका सन्देह दृढ़ होने लगा। वह सोचने लगा यह तो मामूली मंत्र है और सब पर प्रकट है। गुरुजी ने मुझे योंही बहका दिया है। भला इससे क्या लाभ हो सकता है?

इन सन्देहों के साथ वह गुरुजी के पास पहुँचा और क्रोध पूर्वक उनसे कहने लगा कि आप ने व्यर्थ ही मुझे उलझा रखा है और एक मामूली मंत्र को गुप्त एवं रहस्यपूर्ण बताया है।

गुरु जी बड़े उदार और क्षमाशील थे। उतावले शिष्य को क्रोधपूर्वक वैसी ही उतावली का उत्तर देने की अपेक्षा उसे समझा कर सन्तोष करा देना ही उचित समझा। उन्होंने उस समय उससे कुछ न कहा और चुप हो गये। दूसरे दिन उन्होंने उस शिष्य को बुलाकर एक हीरा दिया और कहा इसे क्रमशः कुँजड़े, पंसारी, सुनार, महाजन और जौहरी के पास ले जाओ और वे जो इसका मूल्य बतावें उसे आकर मुझे बताओ। शिष्य गुरु जी की आज्ञानुसार चल दिया। पहले वह कुँजड़े के पास पहुँचा और उसे दिखाते हुए कहा इस वस्तु का क्या मूल्य दे सकते हो? कुँजड़े ने उसे देखा और कहा-काँच की गोली है, पड़ी रहेगी, बच्चे खेलते रहेंगे, इसके बदले में पाव भर साग ले जाओ। इसके बाद वह उसे पंसारी के यहाँ ले गया। पंसारी ने देखा काँच चमकदार है, तोलने के लिए बाँट अच्छा रहेगा। उसने कहा भाई, इसके बदले में एक सेर नमक ले सकते हो। शिष्य फिर आगे बढ़ा और एक सुनार के पास पहुँचा। सुनार ने देखा कोई अच्छा पत्थर है। जेवरों में नग लगाने के लिए अच्छा रहेगा। उसने कहा-इसकी कीमत 50 दे सकता हूँ। इसके बाद वह महाजन के पास पहुँचा। महाजन पहचान गया कि यह हीरा है पर यह न समझ सका किस जाति का है, तब भी उसने अपनी बुद्धि के अनुसार उसका मूल्य एक हजार रुपया लगा दिया। अन्त में शिष्य जब जौहरी के पास पहुँचा तो उसने दस हजार रुपया दाम लगाया। इन सब के उत्तरों को लेकर वह गुरु जी के पास पहुँचा और जिसने जो कीमत लगाई थी वह उन्हें कह सुनाई।

गुरु ने कहा-यही तुम्हारी संदेहों का उत्तर है। एक वस्तु को देखा तो सब ने, पर मूल्य अपनी बुद्धि के अनुसार आँका। मंत्र साधारण मालूम पड़ता है और उसे सब कोई जानते हैं, पर उसका असली मूल्य जान लेना सब के लिए संभव नहीं है। जो उसके गुप्त तत्व को जान लेता है, वही अपनी श्रद्धा के अनुसार लाभ उठा लेता है।

यथार्थ में मंत्रानुष्ठान और आध्यात्मिक क्रियाओं को स्थूल दृष्टि से देखा जाये, तो वे वैसी ही मामूली और तुच्छ प्रतीत होती हैं जैसी कि कुँजड़े को वह काँच की गोली प्रतीत हुई थी, किन्तु श्रद्धा और निष्ठा के द्वारा जिसने अपना मन जौहरी बना लिया है, उसके लिये वह साधनाएं बड़ा महत्व रखती हैं और इच्छानुसार फल भी देती है। सारा महत्व श्रद्धा और विश्वास में है। विश्वास के साथ की गई एक छोटी सी क्रिया भी विचित्र फल दिखाती है, किन्तु अविश्वास और अश्रद्धा के साथ किया हुआ अश्वमेध भी निष्फल है। यही गुप्त साधनाओं का रहस्य है।


यह शिष्य के समर्पण, उसकी आस्था श्रध्दा और स्वयं की पूर्व आराधना शक्ति पर निर्भर होता है।  



"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
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Friday, June 22, 2018

भाग- 10 : एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा



एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 10   


सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"



आपने भाग 1 से 9  में पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी क्रिया बन्द हो गई। पर उनका आशीर्वाद भजान के रूप में दिखता रहा। एक सन्यासी का भी पुत्र प्राप्ति का प्रण टूट गया। बचपन में घर से भागा। भगवान को मिलने के लिये। बेटी को सरकारी नौकरी किस प्रकार मिली। सास ससुर के प्रति लोगों की भावनायें सुनकर मन आहत हुआ किंतु पुत्री का विवाह वहीं क्या जहां धन सम्पत्ति नही सदगुण मिले। किस प्रकार मां दुर्गा की पूजा करते करते कृष्ण मिल गये। बडे महाराज जी मुझे प्रचार हेतु फटकारा। प्रचार प्रसार के सख्त खिलाफ बडे महाराज के स्तर का यह भजन शायद किसी ने लिखा हो।    

अब आगे .......................


शोध निष्कर्ष 

              आगे बढने के पूर्व मैं अभिमान रहित होकर अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं।


पहला सत्य - सनातन पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की। बजरंग बली किसी की भी पूजा करो हमेशा सहायक होते हैं। बस उनको पुकारो तो।


अत: मित्रों आप भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु कृपा कर दें।


मेरे अनुभव से सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना इच्छा के हो जायेगा।


वैज्ञानिकों को चुनौती  


वैज्ञानिकों तुम दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते हुये भी ईश को नहीं मानता है। 

 

 

बिना कर्तव्य साधन नहीं


बात 1996 की थी। सेक्टर 4 स्थित मेरे निवास पर, मेरा एक लेख “भगवान की खोज” पढकर मेरे पूर्व परिचित राम आसरे पाण्डेय के साथ पूर्व आर्मी मैंन और वर्तमान में सुरक्षा एजेंसी चलाने शोभनाथ मिश्र पधारे। जो अभी आत्म अवलोकन ग्रुप के सदस्य भी हैं। मिश्रा जी को रात्रि में प्रलय के साथ कुछ कुछ निराकार की अनुभूति हो गई थी। अत: बौरा गये थे। आवेग सम्भल नहीं रहा था। अपने अनुभव बताये। मैंनें आश्रम का पता दे दिया। बाद में कुछ समय बाद उनकी भी दीक्षा हुई। कहावत है “नया मुसलमान प्याज ज्यादा खाता है”। अत: मिश्रा जी रंग में रंग गये और अपनी पत्नि को गांव छोडकर आश्रम में रहने लगे। एक दिन गुरू महाराज बात ही बात में व्यंग्य से बोले “ अरे मैं क्या हूं। महान साधक तो यह है। जो बीबी को भी छोटे छोटे बच्चों के साथ छोडकर यहां पडा है”। फिर डांटते हुये बोले। तुरंत यहां से निकलो और पत्नि बच्चों को लेकर आओ। यह क्या तमाशा है।


ॐ और रूद्राक्ष


कारण साफ है जगत की जिम्मेदारियों से भागना कायरता है। अपने प्रारब्ध भोगो। सब कर्तव्यों का निर्वाह करो फिर राम राम में आगे बढो। इसी कारण हमारे यहां रुद्राक्ष की माला और ॐ का जाप गृहस्थ्य को मना करते हैं। क्योकिं मात्र ॐ जाप से तीव्र वैराग्य पैदा होता है जो गृहस्थय जीवन में बाधा पैदा कर कर्तव्य विमुख कर सकता है। रूद्राक्ष में शुद्ध्ता अति आवश्यक है जो गृहस्थ्य में नहीं हो पाती अत: यह दोनों और गेरूआ वस्त्र ब्रह्मचारी और सन्यासी के लिये है।


ध्यान में “बेवकूफ़”


ऐसे ही वर्ष 1999 मेरा लेख “भगवान की खोज” पढकर एक रविवार की सुबह भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन के जन सम्पर्क अधिकारी श्री जनक कविरत्न का फोन आया। करीबन तीन घंटे बात हुई। अगले संडे वो सुबह 11 बजे सपरिवार घर आ गये। रात को 9 बजे तक भगवतचर्चा होती रही। फिर वे गये। होता यूं था वह तमाम प्रणायाम और खेचरी करते थे। सब ग्रंथों का पठन और फिर हरियाणा के ब्राह्मण, घमंड होना लाजिमी। पर जब वो खेचरी मुद्रा का प्रयास करें तो कुछ ऐसी ही आवाज सुनाई दे ”बेवकूफ़ है तू”। यह एक बार नहीं कई बार हुआ। जनक जी परेशान होते थे। मैंनें “महायोग विज्ञान” देते हुये बोला कि आप इअसे पढें और यदि इअस तरह के ज्ञान की पुस्तक के आप द्स किलोमीटर के दायरे में भी आये हों। तो आप बतायें।  मैंने समवैध्यावि की तरह कुछ करने को बताया। पहली रात कुछ न हुआ। पर दूसरी रात उनको क्रिया के साथ विशेष अनुभूति चालू। खैर किसी तरह अमलनेर गये और उनकी दीक्षा सम्पन्न हुई। बाद में जनक जी बोले “मुझे बचपन से बताया गया कि तुम ब्राह्मण हो पैदायशी पंडित। मुझे अपने ज्ञान का गर्व था। अब मुझे मेरी औकात मालूम पडी”।


महाराज जी की डांट


जनक जी इतने प्रसन्न हुये कि एक बार अमलनेर में डी.जी. सेट लेकर पहुंच गये। गुरू महाराज को मालूम हुआ तो पूछा यह कौन लाया। पता चला जनक जी। पूछा क्यों लाये हो। “महाराज जी लाइट की समस्या है। सोंचा ले लूं”। जनक जी ने उत्तर दिया। “देखो आश्रम सुख सुविधाओं हेतु नहीं साधन हेतु होता है। जिसको तकलीफ़ होती हो न आये। पर यह सब न चलेगा”। महाराज जी ने डांटते हुये कहा “वापिस कर आओ”। बाद में माफी मांगने पर औरों की विनती पर महाराज शांत हुये। कहने का अर्थ है आश्रम में हम सबको अनुशासन में रहकर गुरू आज्ञा के बिना कुछ नहीं करना चाहिये।


साधक और मजदूर


वर्ष 1996 में बडे महाराज मुम्ब्रा पनवेल स्थित नवाली गांव, दहिसर के आश्रम फिर आये थे। इस बार ब्रह्मचारी पंकज प्रकाश को मुख्य मिस्त्री और हम सब शिष्यों को मजदूर बनाकर आश्रम का निर्माण किया था। खुद भी घंटो बैठकर निर्देशित करते रहते थे।


बिना भोजन 12 दिन


वर्ष 1998 में बडे महाराज जी के हाथों श्री विष्णुतीर्थ आध्यात्मिक पुस्तक लेखन पुरस्कार समारोह का आयोजन इंदौर के इनडोर स्टेडियम में हुआ था। 1998 या आसपास ठीक से याद नहीं पर अपना भी जाना हुआ। वहां साधु सन्यासियों का जमघट। वहां 98 साल के स्वामी केशवानंद भी गुजरात में आये थे। जो नित्य दाढी बनाकर जूते में पालिश कर रहते थे। उनके एक चेले ने बताया कि एक बार आप दिल्ली गये। वहां शुद्ध्ता नहीं थी। अत: 12 दिन सिर्फ चाय पीकर रह गये।


जीते जी मृत्यु का ई सी जी


ऐसे ही एक स्वामी जी जो राजकुमार थे। अपना सब धन वैभव छोडकर सन्यासी होकर चम्बल के पास के आश्रम में रहते थे। वह भी आये थे। अपनी परम्परा के 86 साल के सन्यासी पर लगते न थे। (नाम मुझे याद नहीं पूछ्कर लिखूंगा)  मुझसे बोले ऐ मैं तेरे गुरू से बडा हूं। वे 74 के मैं 86 का हूं। फिर बात करते करते बोले। “ मेरी नब्ज देखो” ( नब्ज यानी कलाई के कोने में बडी नस जो धडकती है और पल्स रेट इसी से नापा जाता है। पहले डाक्टर इसी से बुखार भी परख लेते थे)। मैनें देखी तो वह नवजात बच्चे की तरह जोर जोर से धडक रही थी। फिर हाथ ऊपर किया, झटका दिया और बोले अब देखो। ताज्जुब, “महाराज जी यह तो बंद है”। मैं बोला। वे मुसकुरा कर चले गये। बाद में उनके शिष्य ने बताया एक बार मद्रास जाते समय उन्होने कुछ विदेशीजन को बौरा दिया था। हुआ यूं ट्रैन में आपकी मुलाकात कुछ विदेशियों से हुई जो भारत भ्रमण पर आये थे। वे भारत की चर्चा कर रहे थे। बातचीत के बाद वे महाराज जी को अस्पताल ले गये। अपने खर्चे पर ई सी जी निकाला। कभी जवान कभी मृत की रीडिंग आने लगी। कई बार मशीन बदली पर वो ही नतीजा। बाद में वे विदेशी महाराज जी को प्रणाम कर चले गये। वैसे यह चमत्कार तो मैंनें भी देखा कि जब कभी आश्रम में कोई उत्सव होता था तो बडे महाराज खाने के पात्रों में झांक लेते थे। फिर वह खाना कम न पडता। चाहे कितने आदमी क्या पूरा गांव ही क्यों न खा ले। भोजन की कोई वस्तु कम पड जाये भला। दोपहर से शाम तक खाते रहो। वस्तु कम न पडेगी। लोग कहते थे बडे महाराज जी को मां अन्नपूर्णा की सिद्धी थी।


स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज के प्रवचन जो समझे वह ज्ञानी


बडे महाराज जी के चमत्कार की अनेकों कहाँनियां हैं पर कुछ ऐसा भी हुआ कुछ बहुत कम लोगों की इच्छा पूरी न हुई। बल्की वह कर्मफल भोग कर समय के पूर्व राम राम करते चले गये। कहने का अर्थ यह है। गुरू और इष्ट में यही अंतर है इष्ट अनुष्ठान के बाद प्रसन्न होकर मनमाना कर देंगे फिर गायब पर गुरू वो ही करेगा जिसमें शिष्य का कल्याण हो। जैसे लोग शक्ति को आधीन कर मारण  मोहन जैसे कर्म कर लेते हैं पर सद्गुरू कभी इन की अनुमति न देगा। जहां तक  मुझे लगता है कि अपनी परम्परा मे गुरू आपके संस्कार क्षीण कर आपको मुक्ति यानी मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। भौतिक वस्तुयें तो देता है पर जगत को छुडाने का मार्ग दिखाता है। हमारा अंतिम लक्ष्य क्या है, जो मुक्ति है परमपद है ज्ञान है वहां तक पहुंचाने का प्रयास करता है। मार्ग बताता है। बडे महाराज जी के कुछ प्रवचन 👉👉गुरुदेव स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज👈👈 पर यू ट्यूब पर मिल जायेगें। 

 

इन प्रवचनों को समझने के लिये एक स्तर और अनुभव चाहिये। साधारण इंसान तो समझ ही न पायेगा क्या कहा जा रहा है। 


पतित होते सन्यासी और गुरू


वैसे एक बात स्पष्ट कहूं जो शायद छोटे मुंह बडी बात होगी पर मै अपने मन में कुछ रखना नहीं चाहता। जो दिल में वह मुंह पर। मुझे आज के  सन्यासियों में भी वह तेज, समर्पण और तप नहीं दिखता है। कुछ के भीतर जगत के विकार नजर आते हैं। बडे महाराज जी के पैरों की धूल के कण के बराबर न लगते हैं। यद्यपि सांसारिक कर्म बंधन सब निभा रहे हैं पर कुछ तो शायद अभी भी सांसारिक सोंच से मुक्त नहीं हुये हैं। 

 

 

फिर भी संतोष है अन्य परम्पराओं के गुरूओं और सन्यासियों से लाख गुणा अच्छे।  यदा कदा ही सन्यासी सत्य लगते हैं। फेस बुक पर पोस्ट करो तो बातचीत में ही अहंकार, जलन, अपने को बडा मानना जैसे अवगुण भरे पडे हैं। 

 

बिना अनुभव, शक्तिहीन ये लोग सनातन का युद्ध कैसे लडेगे। प्रचार करेगें। 

 

अपने नाम के आगे भगवान, ओशो, जगत्गुरू, महामंडलेशवर, जगतपिता, जगत्माता जैसे नाम पट्ट लेकर मात्र अहंकार की ही पुष्टि कर रहें हैं। 

 

मन करता है इनको चुनौती दूं। धर्म, शक्ति और ज्ञान की, अनुभव की। 

 

किसी को मां काली का आशीष मिला तो बन बैठा सर्वशक्तिमान और दुकान खोल कर बैठ गया। आओ पाप करा लो। मूठकर्णी, वशीकरण, मोहन जैसे पापिक कर्म। 

 

चलो भाई किसी को प्रेत बाधा है तो ठीक कर दी। कष्ट दूर कर दिया पर किसी को कष्ट पहुंचाने के लिये शक्ति का दुरूपयोग यह पाप नहीं तो क्या है। 

 

शायद इसी लिये तांत्रिकों की मौत बहुत गंदी होती है।


समवैध्यावि के शत प्रतिशत नतीजे


एक बात और मैं खोजी हूं। वस्तुओं की खोज करना स्वभाव है। कोई यह  न   समझे  मैं गुरू हूं। या धर्म की दुकान खोलूंगा। बिल्कुल नहीं। मेरा सब भविष्य का खर्च पेंशन के रूप में भारत सरकार उठायेगी। अत:  मुझे नाटकगीरी की कोई जरूरत नहीं। 

 

बस संयोगवश कुछ ऐसा हुआ कि सनातन की सत्यता और गीता के ज्ञान व वेद की वाणी को प्रचारित करो। यह आदेश मिला। इस कार्य में मुझे मातृ शक्तियों की पूरी सहायता मिल रही है। इसीलिये सचल मन वैज्ञानिक ध्यान की विधियां उत्पन्न हो गईं। जिनका नतीजा अभी तक शत प्रतिशत है। यह सब ईश कृपा के बिना सम्भव नहीं। एक बार फिर इस पर चुनौतीपूर्ण तरीके से बात रखता हूं।


कडवी बात और खोज 


आधुनिक समय की आपाधापी को देखते हुये यह आवश्यक है कि ध्यान की किसी ऐसी विधि को विकसित किया जाये जिसे आप अपने घर पर ही कर सकें और साथ ही आपको अपनी पूजा पद्ध्ति को बदलना भी न पडे। गुरू के लिये कहीं भटकना न पडे। कहीं धन भी व्यय न हो और साथ ही साथ ईश शक्ति का भी अनुभव हो। आनंद की प्राप्ति हो। हमें अनुभव हो सके हम क्या हैं।

 

सचल मन वैज्ञानिक ध्यान इसी प्रकार की एक विकसित सनातन प्रणाली है। जिसमें आप अपनी ही पूजा प्रणाली में थोडा बदलाव कर ईश शक्ति का अनुभव करेगें। यह मेरा दावा है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये। 

 

यह विधियां  पूर्ण वैज्ञानिक है जिसमें आपकी एकाग्रता, शारीरिक क्षमता क्षमता, इंद्रियो की तीव्रता, आपकी सोंच और विचार, मनोविज्ञान और विश्वास की नींव सहायक होती है। आपकी सकारात्मक सोंच परिणाम का समय कम करती है। 


मित्रों इस विधि में आप मंत्र जप और शरीर के विभिन्न अंगों का साथ लेकर ध्यान की गहरी अवस्था में जा सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य के ध्यान की विधि अलग अलग उसके कर्म के हिसाब से होगी। कुछ की कुंडलनी भी जागृत हो सकती है। कुछ विशेष भयानक अनुभव भी हो सकते हैं। पर आप डरें मत। हर समस्या का समाधान होगा। हर हाल में आपकी धार्मिकता बढेगी। यह विधियां हर जाति धर्म समुदाय चाहे मुस्लिम हो ईसाई हो जैन हो बौद्द हो कोई भी हो सबके लिये कारगर है। जो जिस धर्म का होगा उसको उसी के धर्म के हिसाब से ध्यान बताया जायेगा। 


यह सत्य है कलियुग में ईश प्राप्ति बेहद आसान है। पर इतनी आसान भी नहीं कि किसी के पिता की सम्पत्ति कि जैसे चाहो बेच दो। एक साधारण से ध्यान को, जिसमें प्रभु समर्पण बेहद आवश्यक है, उसको नये नये नाम देकर कहीं त्राटक तो कहीं विपश्यना, तो कहीं शब्द योग, नाद योग, राजयोग पता नहीं किन किन नामों से बडी बडी दुकानें चल रहीं हैं। मेरा उनसे निवेदन है कि धन सम्पत्ति सब प्रभु ऐसे ही दे देता है। 

 

हां यदि आप यह करते हैं तो कुछ तो शुल्क देना होगा तब ही जल्दी फलित होगा)। तो आप दक्षिना स्वरुप किसी गरीब की सहायता कर दे। किसी बालक को पढने हेतु साम्रगी दे दे। गौ को गरीब को भोजन करा दे। मंदिर में मिठाई भोजन बांट दे। प्याउ खोल दें। किसी सनातन प्रचारक साधु संत को कुछ देदे। पर किसी हट्टे कट्टे धर्म के ठेकेदार को न दें। 


मैं गुरु नहीं हूं और न अपने को कहलाना पसंद करुंगा। मैं दास हूं प्रभु का वोही कहलाना पसंद करुंगा।  जैसे प्रभुदास, देवीदास, सर, विपुल जी या विपुल भी चलेगा। 


आज बडी बडी फीस लेकर और नकली गुरुओ की दुकानें प्राय: भोली जनता को भ्रमित कर देते हैं। कहीं ब्रह्म विद्या की कहीं कुंडलनी की कहीं सिद्दी की तमाम दुकानें खुली हुई हैं। पैसे दो ज्ञान लो। यह सत्य है कलियुग में ईश प्राप्ति बेहद आसान है। पर इतनी आसान भी नहीं कि किसी के पिता की सम्पत्ति कि जैसे चाहो बेच दो। एक साधारण से ध्यान को, जिसमें प्रभु समर्पण बेहद आवश्यक है, जो पैसा जन सेवा में लगना चाहिये उसको प्रचार में लगा कर अपनी दुकान चमकाने की होड लगी है। अनुभव जरा सा हुआ कि दुकान सजा ली बिना परम्परा के गुरु बन बैठे। आज मेरे 1 करोड,  मेरे 50 लाख दुनिया में अनुयायी हैं। बस इसी बात का गर्व। इन नकली अनुभवहीन दुकानदारों से पूछो कि अहम ब्रम्हास्मि या एकोअहम द्वितियोनास्ति या सोहम अनुभूति में क्या होता है तो सब के सब बगलें झाकेंगे। चलो देव दर्शन की अनुभुति कैसे होती है तो मुंह चुरायेगे। यह पापी जानते नहीं कि जब योग होता है तो कैसा लगता है तो किताबों में देखेंगे। इन दुष्टों से पूछो चलो किसी चेले को आगे क्या होगा तो भाग ही जायेंगे या हरि ओम बोलकर कन्नी काट लेंगें। जगत गुरु, जगतमाता, अखंडमंडलाकार, योगीराज जैसे नामपट्ट वाले ढोग़ी पहले खुद जाने कि ब्रह्म क्या है। जिस दिन जान लेंगे उस दिन यह नामपट्ट हटा लेंगें। पर इनको न जानना है न इसकी इच्छा है। इनको तो भगवान के नाम पर दुकान चलाकर शोहरत पैसा और भोग चाहिये। भले ही बाद में नरक भोंगे। ओशो की तरह प्रेत योनि में भटके पर अभी तो मजा ले ले। 



अरे मूर्खों सरल बनो भोली भाली जनता को ठगो मत। धन सम्पत्ति सब प्रभु ऐसे ही दे देता है। दुष्टो श्रेष्ठ सनातन का प्रचार करो। श्रीमदभग्वदगीता को जन जन तक कल्यान के लिये पहुचाओ। वेद वाणी बिना स्वार्थ के प्रसारित करो। ईश का अनुभव बिना शुल्क बिना गुरु बने कराओ। रे पगलों पाप के भागीदार मत बनों। आंखें खोलो जाग जाओ। 



                  
              
...................... क्रमश: ..........................



"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

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