क्रिया स्वत: होती है कोई कर नहीं सकता
कुछ उत्तर
खोजी देवीदास विपुल
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब:
vipkavi.info , वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi “bullet"
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
अली भाई। आप
जो सोंचे सब सही है। पर ऐसा नही है। मनुष्य खुद क्रिया नही कर सकता। कुछ ही देर में थक जाएगा। यह स्वतः होती है।
जब आपकी
कुण्डलनी जागृत होती है।
तो आपके
चित्त के संस्कार भी उदित होते है।
यह संस्कार
आपमें सोए रहते है जो उदित होने पर बाहर निकलते है। वास्तव में यह प्रोग्राम्ड ऊर्जा कह सकते हो।
यह बाहर
निकलते समय शरीर के साथ कुछ उनयूसल करती है।
जिसे क्रिया
कहते है।
यह स्वतः
होती है
तब मनुष्य
को शक्ति का खेल समझ मे आता है।
जब हम यह
नही कर रहे तो कौन कर रहा है।
प्रत्येक
चक्र की क्रिया अलग होती है।
जिसके
द्वारा साधक को मापा जा सकता है।
कोई कोई
अनजानी भाषा बोलने लगता है।
कोई पंडित
कुरान पढ़ने लगता है।
तो मुस्लिम
संस्कृत श्लोक बोलने लगता है।
कोई मेढक की
तरह उछलने लगता है।
किसी का आसन
उठने लगता है।
कोई शेर बन
गुर्राता है कोई घोड़ा बन हिनहिनाता है।
जो जानकार
नही वह देखे तो सबको मानसिक रोगी समझेगा।
इसी लिए यह
साधन एकांत में करते है। दुनिया समझ नही पाती है इसलिये।
ग्रुप के
राजकिशोर साहू तो एक महीना अस्पताल में भर्ती हुए।
साहू जी खुद
बताये।
साहू
जीनिवेदन है खुद बताये।
यह अली भाई
अपने अनुभव क्यो नही बोलते। अब बताने से
क्यो परहेज कर रहे हो।
ऐसा नही है।
क्रिया आंतरिक और वाहीक दोनो हो सकती है। और एक साथ भी हो सकती है। यह निर्भर करता है कि आप की कुण्डलनी कितनी जगी कितनी आगे बढ़ी और कहाँ पहुची।
दूसरा यह
आपके संचित सस्कारों पर भी निर्भर करता है।
अब आप अरूण
दद्दा का केस ले। इन्होंने सोमवार को mmst आरम्भ किया। शुक्रवार को यह मन्त्र जाप की वैखरी मध्यमा पश्यंती को भी पारकर परा पश्यंती में पहुंच गए। यह इनकी पूर्व
साधनाओ की ओर और इनके मन की शुध्दता की ओर इशारा करता है।
अब यह इसके
आगे पीछे इनको कम्पन तक होने लगे।
यह चिन्ह है
कि अब इनकी कुण्डलनी तक जागृत होनेवाली है। इनको साक्षात्कार तक भी हो सकता है।
कुछ आगे पीछे।
यानी इनकी
ऊर्जा अब निकलनेवाली है। अतः इनको समर्थ गुरू की दीक्षा के अलावा लगातार मेरे सम्पर्क
में रहना होगा।
क्योकि
ऊर्जा ग्रंथ खुल गया तो यह हो सकता है सहन न कर पाए।
🕉🕉🕉
क्रियाओं और
साक्षात्कार हेतु मन गधे की तरह स्वामी भक्त और बैल की तरह शांत सहनशील परोपकारी
होना चाहिए।
चतुर सयाने
गर्वित यह कभी प्राप्त नही कर सकते।
आपको बहुत
सतर्कता बरतनी होगी। आप दीक्षित नही है।
ध्यान रखना
होगा यदि किसी से शक्ति संक्रमण हो गया तो आपको पता भी न चलेगा उसका रोग आपको लग
जायेगा।
खैर आप
ग्रुप सदस्य है आपको सलाह मिलती रहेगी।
पहले आप
जांचे परखे तब ही आगे बढ़े। आपको विश्वास की कमी है। वैसे यह सही भी है दुनिया ठगों
से भरी पड़ी है।
जी आरूध्द
करना होता है।
कुछ रोग
बहुत शक्तिशाली होते है। ऊर्जा कम पड़ सकती है। रोग के साथ आदमी भी निगेटिव होता
है। तब परेशानी।
क्यो । मैं
भी ठग हो सकता हूँ।
स्वतः
आरूध्द करने की कला है।
जैसे ग्रुप में कुछ लोग बहुत पीड़ित है। मैं उनपर दया रखता
हूँ। विधि बता देता हूँ। पर
संकल्प और भाव पैदा नही होते । यह स्वतः निरूध्द है।
पर कुछ पर
हो जाते है। तो उनको क्रियाये और भयानक अनुभव हो गए।
अतः और सख्त
होना पड़ा।
नही बहिन जी
मैं गुरु नही मैं सेवक।
अब बोलो
कर्महीन की सहायता कैसे होगी। तुम अधिक समझदार हो। अतः कुछ समझते नही। तुम्हारे अलावा जिसने बात
मानी वह प्रसन्न हो गया।
पूछो अतुल
अग्रवाल जी से। पूछो असशीष यादव से और भी है। बिना कुछ पूछे जो बोला किया सब ठीक
हो गया।
पर किया
उन्होंने।
यह मैं नही
जानता न जानना चाहता हूँ। पर तुम्हारे कर्मफल मैं क्यो लू। तुम कौन हो हमारे। किसी पर यकीन नही सिर्फ तर्क।
देखो शठ
मूर्ख और पागल को विष्णु भी भाग्य नही दे सकते।
चम्मच से
खाना मुह में दे। नॉकरी छोड़कर उनके घर जाए।
देखो जो
लेना चाहता है मिलता है।
एक महीने
पहले से मैं व्यक्तिगत पोस्ट पर बोल रहा था।
नही जो करना
चाहे तब न।
सब बताया।
महापुरुष की फोटो तक तो लगा न पाए।पूजा बण्डा करते।
जिसने mmst खुद की जाना।
जिसने बताई
पूजा खुद की वह बच गया और प्रसन्न है।
इनका स्थान
स्त्री शापित है। दूसरे पीर इत्यादि ब्रह्मराक्षस इत्यादि जैसी समस्याएं है।
गरज आपकी
जाना आपको पड़ेगा।
समझे न।
बिना करे सब हो।
बिना हाथ
बढ़ाये सब मुह में उतर जाए।
यह समझे तब
न।
सब दूसरा
करे हम बस अतीत को लेकर पहले के
प्रयासों को गाकर रोते रहे।
आप क्या
भगवान विष्णु भी कर्महीन का भला नही कर सकते। जो हम करे वह सही। दूसरा बोले तो सुनो रुओ लो। करो
कुछ मत।
यार किसी को
कुछ पता है सब ज्ञानी बन कर कयास लगा रहे हो। बस
कुछ नही पता
किसी को।
बस ज्यादा
बोलना ठीक नही।
बस इतना
समझो जिसको गुरु गोरखनाथ के समकक्ष कुछ न करवा सका। उसका हमारे जैसे तुच्छ क्या करवा पाएंगे। बस
इतना ही।
जी मरती हुई
स्त्री का श्राप भी है।
देखो जरूरी
नही है मैं किसी की बखिया उधेडू इस लिए मैं ऐसी अवस्था मे चुप हो जाता हूँ।
क्रोध एक आ
आवश्यक प्रक्रिया है इस शरीर की। वास्तव में हमे वास्तविक क्रोध का पता नही होता है अतः हम चीखने
चिल्लाने मार पीट को क्रोध समझ
लेते है। यह क्रोध नही है यह मनोभावों के वश में होना है। अर्थात आपकी बुद्धि मन के नीचे चले गईं।
क्रोध का
अर्थ जो मैं समझता हूँ कि कर्म अवरूध्द धी यानी बुध्दि। इससे बनता है क्रोध। जो आम
जगत में दिखता है। और लोग समझते है।
यदि पातंजली को देखे तो क्रोध के भावों से मन मे तरंग
उतपन्न न हो और चित्त में संस्कार
न पैदा हो। वो ही योगी का क्रोध है। अर्थात साँप का फुफकारना उसका काटना नही होता। अक्सर अनुशासन रखने हेतु इसे
प्रदरशित करना पड़ता है।
क्रोध तो
शिव का रूद्र अवतार है। क्रोध तो कृष्ण ने भी किया किंतु समाज हित मे पापी को दण्ड
देने हेतु।
युध्द में
यदि क्रोध न आये तो आप युध्द जीत ही नही सकते किंतु क्रोध के वशीभूत होना गलत है।
यानी क्रोध
मन की सतह को छू भी न सके। अतः हमको क्रोध को त्यागना नही सुरक्षित रखना है। किंतु
हर समय आपा खोना तो नादानी ही है।
तुम मेरे
सामने आओ तो कुछ बात बने,
तुम मुझे भी
अपनाओ तो कुछ बात बने।
प्यार का
सागर उमड़ता है मेरे दिल में,
मेरे आंसूओ
से नहाओ, तो कुछ बात बने।।
दोस्ती यू न
चलेगी लंबी एकतरफा सुन लो,
कुछ मेरी
कुछ तेरी सुनाओ तो कुछ बात बने।।
भाव का अभाव
है या
अभाव का ही
भाव है।
भाव क्या
अभाव का,
यह भाव कर
लीजिए।।
भाव में जब
ताव नही,
ताव में है
भाव नही।
ऐसे भाव का
फिर भाव,
कैसे कर
दीजिए।।
भाव पर तो
भक्ति सारी,
भक्ति की
अभक्ति हारी।
ऐसे ही भाव
से,
खुद को भर
लीजिए।
कहते है
ज्ञानीजन,
सुनते है
मानीजन।
ऐसे भाव का
ही भाव,
अभाव मत
कीजिये।।
वही
तुम्हारे भाव के अभाव का चेन रिएक्शन।
विषय के
ध्यान से क्रोध और फिर बुद्दीनाश तक का समीकरण।
सत: संगति
सत्संगति कथ्यते।
किसी विषय
वासना के ध्यान से मनुष्य उसको प्राप्त करने की चेष्टा करता है। वह प्राप्त न होने पर उसके प्रति
आए आकर्षण होता है। उसको पाने
की इच्छा पूरी न होने पर क्रोध उतपन्न होता है। क्रोध के भाव से सम्मोहन पैदा होता है। सम्मोहन से मनुष्य का विविक और
फिर बुद्दी भृष्ट हो जाती है।
बुद्दी के नष्ट होने से मनुष्य संकट में पड़ सकता है।
यह टूटा
फूटा अर्थ जो मैंने समझा।
यार यह सब
बेकार की सोंच और प्रश्न है। जो ईश बनाकर भेजता है वोही बन सकते है। हमारे चाहने से कुछ न होगा। बस हम प्रयास कर सकते है।
अपनी साधन
और मन्त्र जप करो। इधर उधर सोंचना बकवास है।
तुमको यदि
बनना है तो पहले अपना मोबाइल ट्रेन की पटरी के नीचे रख दो।
दूसरा तरीका
है मिकसर में पीस कर चटनी बनाकर पेड़ो में डाल दो।
तुम
स्थितप्रज्ञ हो पर मोबाइल में तुम्हारी प्रज्ञा और बुद्दी स्थित है।
कोई
आवश्यकता नही। 25 पैसे का पोस्ट कॉर्ड डाल देना।
योग की
अवस्थाये।
देखो मित्र मैं गुरू नही प्रवचक नही और न ही सन्यासी हूँ। मैं एक खोजी हूँ। जिनको अपने
अनुभवों से भय होने कारण साधनाये छोड़ देते है या जिनके भीषण अनुभव होते है उनको सही मार्ग दिखाता हूँ।
जो नकली गुरू दुकानदार है उनको पर्दाफाश करता हूँ।
जो अपने नाम के आगे बड़े बड़े पट्ट लगाते है उनसे पिलता
हूँ।
जिनको सदगुरू की आवश्यकता होती है उनको अनुभव के
अनुसार सदगुरूओं तक पहुचाता हूँ।
बिना अनुभव के ज्ञानियों से किताबी बहस शुरू होने के
पहले ही हार मान लेता हूँ। बकवास का अंत नही। अनुभव की सीमा नही।
मैं सनातन का सेवक हूँ।
अपने ज्ञान का गर्व मनुष्य को सीखने का मार्ग अवरूध्द कर देता है। अतः मनुष्य की उन्नति
रूक जाती है । अतः मूर्ख बनो तब ही ज्ञान प्राप्त कर पाओगे। ज्ञानी बने तो अज्ञानी कहलाओगे। ........ देवीदास विपुल।
किसी से पूछो तुम कैसे देखते हो वह कहेगा आखों से।
यानी आंख फोड़ दे तो नही दिखेगा। पर जब मनुष्य को मर जाना कहते है तो न देख पाता न सुन पाता कुछ कर्म नही कर पाता। इसका क्या अर्थ हुआ। जो शक्ति आपसे
कर्म करवा रही थी वह चली गई। शरीर के बाहर। इसी को आत्मा कहते है। विज्ञान वाइटल फोर्स कहता है।
इसी आत्मा को जानना है आत्मबोध। जब हमें यह अनुभव
होता है कि कर्ता हम नही वह तो कोई और है तो आत्मबोध होता है।
मनुष्य प्रायः इस भौतिक जगत में इतना लिप्त हो जाता
है कि उसे ध्यान नही रहता कि वह कौन है। कौन उसके कार्य करता है। वह सोंचता है मैं ज्ञानी मैं कर्ता मैं भर्ता
यही कारण उसकी भटकन बन जाता है। बाद में वह वाहीक जगत में सुख खोजता है।
जो मनुष्य अंतर्मुखी होने का प्रयास करेगा। उसको आज
नही तो कल आत्मबोध हो ही जायेगा। mmstm इसी लिए निर्मित हुई है कि आदमी आत्मबोध करे।
सरल सहज मार्ग प्रत्येक मनुष्य के लिए अलग अलग है। इस पर विस्तार से चर्चा लेख
अन्तर्मुखी कैसे हो। इस मे समझाई गई है।
वैसे मन्त्र जप सबसे सस्ता सुदर टिकाऊ मार्ग है।
हम अपने को ज्ञानी और दूसरे को मूर्ख समझने की भूल कर
बैठते है यही अज्ञानता की जन्मदाता है।
हम सही दूजे गलत यह मूर्खता है।
जब तक हम मूर्ख नही बनेंगे। जगत से कुछ सीख न पाएंगे।
जिसकी कुण्डलनी जागृत हो जाती वह यह सब आरम्भिक प्रश्नों को अनुभव कर ब्रह्मज्ञान
की ओर प्रशस्त हो जाता है।
आपके प्रश्नों के साधारण तरीक़े उत्तर।
आप ग्रुप में अपनी धर्म की दुकान जिसे करोड़ो लोगो को मूर्ख बनाकर सनातन की धज्जियां
उड़ाकर पूर्वाग्रही लोग चला रहे है। उसके प्रचार हेतु विभिन्न ग्रुप में शामिल होते है। आप इस ग्रुप में किसी को भी प्रभावित नही कर पाएंगे।
आप गुरू मानते नही।
आप कुण्डनलनी मानते नही।
और दोसरो को त्राटक को राजयोग बताकर पागल बनाकर छोड़
देते है।
काम को आप गलत मानते है पति पत्नी को भाई बहन बनाते है।
यह सोंचो तुम्हारे जनक ने क्या पाप किया जो तुम आये
थे।
यार तुम्हारे पूर्वज बड़े तांत्रिक थे। उनको मुक्ति
हेतु प्रयास करो। वह यही सन्देश दे रहे है। जाने के पहले अपनी शक्तियां और सिध्दियां किसी को दे नही पाए।
आप ग्रुप के नानू सिंह से निवेदन करे। शायद वह अपने
गुरु के माध्यम से कुछ कर सके।
या कोई सिध्द पुरुष अपनी संकल्प शक्ति से मुक्त करे। या तुम ही देवी हवन कर आह्वाहन कर उनसे मुक्ति का मार्ग
पूछो। वह स्वप्न में बता देंगे।
दुर्गा सप्तशती में दी गई विधि अनुसार नवार्ण मन्त्र
से हवन करो। संकल्प में पितृ मुक्ति बोलोते रहो।
स्वप्न या ध्यान में वह आकर बात कर सकते है। बहिन को भी बोल सकते है। किसी को भी जो उनके बारे में स्वप्न में सोंचता होगा बात कर लेंगे।
यह लोग जिद्दी शठ और पूर्वाग्रही होते है बिल्कुल
कट्टर मुस्लिम आतंकवादी जैसे।
किसी न सुनगे। न कुछ पढेंगे। सिर्फ अपनी सुनाना
चाहगे। प्रश्नों से दूसरों पर प्रभाव डालने की कोशिश।
सही है आतंकवाद हर धर्म जाती में होती है। कही कम कही
ज्यादा।
कही धर्म के नाम पर कही भाषा के नाम पर कही गरीबी
अमीरी के नाम पर।
नक्सलवाद क्या है जो अपनी तानाशाही चलाने हेतु आतंक करता है।
हिटलर ने जाति के नाम पर हिंसा की।
मुसोलनी ने गरीबी अमीरी के नाम पर।
Isi ने धर्म के नाम पर।
1984 के दंगे सिर्फ कौम के नाम पर।
बंगाल में केरल में धर्म के नाप हिंसाएं हो रही है।दुनिया मे सबसे अधिक हिंसा धर्म
के नाम पर और हत्याएं भी धर्म के नाप होती है।
और मेरे जैसे महामूर्खों को ओशो जैसा महापापी पुच्छल 1000 साल में जन्मा नही दिखाई देता है। जिसने सनातन की धज्जियां उड़ाकर
अपने को भगवान घोषित कर प्रेत योनि में भटकना स्वीकार किया।
क्रिया की आड़ में व्यभिचार और सम्भोग को बढ़ावा देकर
विनोद खन्ना ऐसा पागल किया और फिर एड्स से मरवा दिया।
जिसको गीता की समझ थी ही नही पर गीता पर ज्ञान दिया।
यह तो मैं भी कहता हूँ।
नही अनुभव
सनातन ही सभी विधियों का जन्म दाता है।
अच्छा अब चर्चा बन्द करे। यह व्यर्थ की खत्म न होने
वाली बहस है।
Janak kaviratna: विपुल भाई, एक बार आचार्य रजनीश की आत्मा को बुलाने के बारे में मैंने प्रतिष्ठित पत्रिका कादम्बिनी में एक लेख में कुछ पढ़ा था। आज वो
पत्रिका मेरे हाथ लग गई।सन 1992 का अंक है। उसका मुखपृष्ठ, और वो लेख, दोनों की स्कैन कॉपी यहाँ दे रहा हूँ।
यार यह बताओ ओशो को इसके मतलब मुक्ति नही मिली।
मेरे हिसाब से वह प्रेत के रूप में भटक रहा है। एक
कमरे में बन्द है।
इस बात का कारण यह हो सकता है बढ़ती प्रसिध्दी और धन
के साथ माया अपना प्रभाव डालने में सफल हो जाती है। विभिन्न प्रपंचो में उलझे रहने के कारण स्वयं को तप का साधन
का समय निकालना कठिन होता जाता है। अतः वह सन्त फिसलने लगता है। माया के अधीन होकर वह मनमाना व्यवहार करने लगता है। कभी कभी कानून में कई बार बचने
के बाद भी फंस जाता है।
इसी लिए स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज प्रचार प्रसार
और शो बाजी के बिल्कुल खिलाफ थे।
यहाँ तक प्रवचन में सजावट अधिक हो गई तो जाते ही नही
थे।
उनका मत था। आश्रम में यदि तेल साबुन बनना चालू करोगे तो यह व्यापार पर अधिक साधन और
शिष्य की उन्नति पर ध्यान नही देगा।
महाराज जी कहते थे पहले एक फिर दो और कुछ वर्षों बाद
समाधि दुकानदारी हो जाएगी।
मेरा अनुभव है मैं जरा सा ग्रुप सम्भाल नही पा रहा
हूँ। मुझे मेरी साधना हेतु समय नही निकल पाता। सोने के समय को काटकर कर पाता हूँ। वह भी बिगड़ गई है। क्योंकि
जगत के व्यवहार। तो इन गुरुओ को समय कब मिलता होगा।
वहाँ तो गुरू मो मर्यादा में भी रहना होता है।
भाई इसी लिए मा शक्ति ने शिव कृपा से mmstm बनवाकर आशीष दिया। जाओ सब घर पर करो। कोई गुरु
चेला का चक्कर नही। जब समय होगा गुरू मिल जाएगा
अपने उत्थान पर ध्यान दो।
मित्रो मैं
यही कहूंगा। पुनः सुझाव दूँगा कि आप श्रीमददुर्गासप्तशती का महत्व समझे और इसका पाठ करें। इसे मात्र कहानी समझ कर भृमित न हो। यह मन्त्र से लेकर तन्त्र तक ज्ञान से
लेकर अनन्त तक की वाणी और शब्द समेटे हुए है। यह
परमाणु से परमाणु बम तक शक्तिशाली पुस्तक है। मार्कण्डेय ऋषि ने मानव जाति को उस पर शक्ति के बेहद नजदीक जाने का रहस्य इस पुस्तक में दिया है।
मार्कण्डेय
विज्ञानी को कोटिशः नमन।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/