कहूं कैसे आजादी है
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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vipul luckhnavi “bullet"
जब सम्मान कानून समान न होवे।
कहूं कैसे आजादी है।।
जब विश्वास न्याय न होवे।
कहूं कैसे आजादी है।।
ये ही बाते करते सुनते।
वर्ष इकहत्तर बीत गये।।
पर अपनो से लुटे है कितने।
किस्से कैसे रीत गये।।
देश भक्ति की बातें सुंदर।
वर्ष में दो बार करते हैं।।
फिर अपनी करनी में आकर।
कार्य विरोधी करते हैं।।
कही सड़क पर गुटका थूका।
कहीं कोने में कर बैठे।।
रद्दी कागज सडक पे फेके।
ऐठ के घर मे हम बैठे।।
क्या मानस तनिक भी अपना।
देश की सोंचा करते हैं।।
राष्ट्र भक्ति की बातें करके।
उल्लू सीधा करते है।।
जब तक जन मानस में।
यह विचार न आयेगा।।
देश हमारा धर्म से ऊपर।
ये न समझाया जाएगा।।
तब तक सब खोखलापन है।
सच्ची आजादी न होगी।।
विपुल कलम भारी मन लेकर।
जय हिंद बोली होगी।।