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Wednesday, September 5, 2018

सभी धर्मों की संक्षिप्त तुलना



सभी धर्मों की संक्षिप्त तुलना

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"

मित्रों, मैं सनातन के ग्रन्थ, जैन और बौद्ध धर्म की विशालता के कारण हर ग्रन्थ न पढ सका। किंतु मैंनें कुरान और बाईबिल के दोनो टेस्टमेंट पढ डाले हैं। एक वैज्ञानिक यानी खोजी होने होने के कारण इन धर्मों पर बिना पूरवाग्रहित हुये चर्चा करना चाहता हूं। मेरा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है अपितु विज्ञान के इस युग में विभिन्न धर्मों के सार का वैज्ञानिक विश्लेषण करना आवश्यक है। 

हम मानव जीवन को दो भागों बांट सकते हैं पहला वाहिक जीवन जो हम आंख खोलकर जगत में व्यवहार करते हैं। दूसरा आंतरिक जो हम आंख बंद कर महसूस करते हैं अनुभव करते हैं। इसमें निद्रा भी शामिल है।

अपनी कुरान और बाईबिल के अध्ययन के बाद मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि यह दोनों पुस्तकें सिर्फ और सिर्फ वाहिक जगत की बातें करती है और समझाती हैं। जैसे कैसे रहे, शादी करें, क्या खायें, दुश्मन के साथ क्या करें। दुनिया में कैसे रहें। सिर्फ इस तरह की वाहिक बातें जो मानव के जीवन रूपी समुद्र की सतह पर रहतीं हैं। जैन और बौद्ध कुछ कुछ आंतरिक बताते हैं पर पूर्णतय: नहीं। यह भी बताते हैं कि वाहिक क्या करें कि हमारा आंतरिक जीवन सुखमय और कल्याणकारी हो। हम कैसे शान्ति प्राप्त करें। वहीं सनातन एक विशाल महासागर। जिसके चार खंड चारो वेद। जिसमें गीता एक विशाल जहाज। बाकी शास्त्र इत्यादि उल्टी सीधी लकडी के पतरों से बनी नाव। जो डुबा भी सकती है।

सनातन वाहिक के अलावा आंतरिक विज्ञान को वहां तक बताता है जो मनुष्य द्वारा प्रयोगिक है और अनुभवित भी है। अंदर से यह इतना गहरा और विशाल कि इसके आंतरिक विज्ञान को कुरान या बाईबिल न सोंच सकते हैं और न कुछ बोल सकते हैं। हां जैन और बौद्ध कुछ कुछ थाह लगा लेते हैं पर गहराई तक नहीं पहुंच पाते हैं।

अपने सालों के अध्ययन के बाद मैं महसूस करता हूं कि दुनिया में शून्य के इर्द गिर्द ही लोग होंगे जो आंतरिक विज्ञान की सोंचते होंगे। कारण कुरान और बाईबिल अंदर की बात ही नहीं करते। ये तो सिर्फ वाहिक और वाहिक जगत में ही लिप्त रहने की कला सिखाते हैं। फिर कहां से से इनके अनुयायी आंतरिक विज्ञान को समझ पायेगें।

मित्रों मैं आपको लिंक देता हूं आप स्वयं धर्म ग्रंथों को पढे और मुझे समझायें कि मैं सही हूं कि गलत। 




कुरान का लिंक :




बाइबिल का लिंक :




श्रीमदभगवद्गीता (कृष्ण)




जैन :




बौद्ध:



Friday, August 31, 2018

ईसाइयत में सिर्फ अवैज्ञानिक कहाँनियां हैं। जिनको मानो जानो नहीं।



ईसाइयत में सिर्फ अवैज्ञानिक कहाँनियां हैं। 
जिनको मानो जानो नहीं। ?


सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi


मित्रॉ मैंने सनातन, बाइबिल और कुरान के अतिरिक्त और बहुत कुछ पढा है। मैं एक वैज्ञानिक हूं। खोजी हूं। समाज की धर्मों की अवैज्ञानिक बातों को जन मानस तक इस ब्लाग के माध्यम से लाने का कार्य कर रहा हूं। आपकी चर्चाओं और सूचनाओं का स्वागत है। 

https://www.everystudent.in/a/bible.html  के अनुसार बाइबल 40 लेखकों के द्वारा, 1500 साल की अवधि के दौरान लिखी गई। नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) के चार लेखकों ने यीशु मसीह के जीवन पर अपनी जीवनी लिखी है। इन्हें, चार सुसमाचार कहा जाता है - ‘नया नियम’ की पहली चार किताबें।
अब कुछ आरम्भिक जानकारी देखें। 

https://www.wordproject.org/  के अनुसार न्यू टेसटमेंट  से 
अध्याय 1
16 और याकूब से यूसुफ उत्पन्न हुआ; जो मरियम का पति था जिस से यीशु जो मसीह कहलाता है उत्पन्न हुआ॥
17 इब्राहीम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई और दाऊद से बाबुल को बन्दी होकर पहुंचाए जाने तक चौदह पीढ़ी और बन्दी होकर बाबुल को पहुंचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई॥
18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई।
19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की।
20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है।
21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा।
22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो।
23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”।
24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहां ले आया।
25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उस ने उसका नाम यीशु रखा॥

ओल्ड टेसटमेंट : https://www.wordproject.org/

उत्पत्ति
अध्याय 17 

10 मेरे साथ बान्धी हुई वाचा, जो तुझे और तेरे पश्चात तेरे वंश को पालनी पड़ेगी, सो यह है, कि तुम में से एक एक पुरूष का खतना हो।
11 तुम अपनी अपनी खलड़ी का खतना करा लेना; जो वाचा मेरे और तुम्हारे बीच में है, उसका यही चिन्ह होगा।
12 पीढ़ी पीढ़ी में केवल तेरे वंश ही के लोग नहीं पर जो तेरे घर में उत्पन्न हों, वा परदेशियों को रुपा देकर मोल लिये जाए, ऐसे सब पुरूष भी जब आठ दिन के हो जाए, तब उनका खतना किया जाए।
13 जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अथवा तेरे रुपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; सो मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग युग रहेगी।
14 जो पुरूष खतनारहित रहे, अर्थात जिसकी खलड़ी का खतना न हो, वह प्राणी अपने लोगों मे से नाश किया जाए, क्योंकि उसने मेरे साथ बान्धी हुई वाचा को तोड़ दिया॥

23 तब इब्राहीम ने अपने पुत्र इश्माएल को, उसके घर में जितने उत्पन्न हुए थे, और जितने उसके रुपे से मोल लिये गए थे, निदान उसके घर में जितने पुरूष थे, उन सभों को लेके उसी दिन परमेश्वर के वचन के अनुसार उनकी खलड़ी का खतना किया।
24 जब इब्राहीम की खलड़ी का खतना हुआ तब वह निन्नानवे वर्ष का था।
25 और जब उसके पुत्र इश्माएल की खलड़ी का खतना हुआ तब वह तेरह वर्ष का था।
26 इब्राहीम और उसके पुत्र इश्माएल दोनों का खतना एक ही दिन हुआ।
27 और उसके घर में जितने पुरूष थे जो घर में उत्पन्न हुए, तथा जो परदेशियों के हाथ से मोल लिये गए थे, सब का खतना उसके साथ ही हुआ॥


अध्याय 18 

1 इब्राहीम माम्रे के बांजो के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया:
2 और उसने आंख उठा कर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरूष उसके साम्हने खड़े हैं: जब उसने उन्हे देखा तब वह उन से भेंट करने के लिये तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत की और कहने लगा,
3 हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपने दास के पास से चले न जाना।
4 मैं थोड़ा सा जल लाता हूं और आप अपने पांव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें।
5 फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उससे आप अपने जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात आगे बढें: क्योंकि आप अपने दास के पास इसी लिये पधारे हैं। उन्होंने कहा, जैसा तू कहता है वैसा ही कर।
6 सो इब्राहीम ने तम्बू में सारा के पास फुर्ती से जा कर कहा, तीन सआ मैदा फुर्ती से गून्ध, और फुलके बना।
7 फिर इब्राहीम गाय बैल के झुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा ले कर अपने सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया।
8 तब उसने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उसने पकवाया था, ले कर उनके आगे परोस दिया; और आप वृक्ष के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे।
9 उन्होंने उससे पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उसने कहा, वह तो तम्बू में है।
10 उसने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे था सुन रही थी।


अध्याय 19 

30 और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था: इसलिये वह और उसकी दोनों बेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे।
31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए:
32 सो आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिला कर, उसके साथ सोएं, जिस से कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें।
33 सो उन्होंने उसी दिन रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जा कर अपने पिता के पास लेट गई; पर उसने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई।
34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई: सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जा कर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें।
35 सो उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया: और छोटी बेटी जा कर उसके पास लेट गई: पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न था।
36 इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुई।
37 और बड़ी एक पुत्र जनी, और उसका नाम मोआब रखा: वह मोआब नाम जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ।
38 और छोटी भी एक पुत्र जनी, और उसका नाम बेनम्मी रखा; वह अम्मोन वंशियों का जो आज तक हैं मूलपिता हुआ॥



आप पूर्वाग्रह छोडकर बतायें कि आप किसी भी ग्रंथ की पवित्रता किस आधार पर तय करेगें। मानवीय आधारों पर, प्रोयोगिक आधारों पर या सिर्फ इसी लिये कि आप उस धर्म के हैं।
यदि किसी धर्मग्रन्थ में गैर चरित्रिक गैर समाजिक बात होगी तो क्या आप उसको भी मानेंगे।
कुंआरी लडकी जिसके गर्भ हो गया वह बोल दे कि सपने में एक देव दूत गर्भित कर गया। तो आप उस सपने को हजारों साल तक मानते चले आयेंगे। इस सोंच को क्या कहा जाये। भगवान के सभी पाप माफ। एक व्यक्ति आपको भगवान मानकर अपना बछडा तक काटकर खिलाता है। आपको ईश तुल्य मानकर खातिर करता है। और आप उसकी पत्नी से सम्बंध बनाने की बात करते हैं। क्या इसको नमक हरामियत नहीं कहेंगें। वहीं उमर न निकल जाये इसी लिये दो कुंआरी लडकियां अपने बाप को बेहोश कर उससे गर्भ धारण करती हैं और आप उनका गुणगान करते हैं।
यह तो चंद उदाहरण है जिनसे आज का समाज हिल जाये। पर आप ईश की लीला बताकर उन ग्रंथों को महान बताते हैं। अपनी बुद्धि और सोंच ताक पर रख कर दूसरों का मजाक बनाते हैं। जरा सोंचे क्या यह सही है। 

यह कुछ उदाहरण यह सोंचने को बाध्य करते हैं कि आप कहीं गलत तरह से तो भगवान को नहीं मानते हैं। आप भगवान को जानते तो हैं नहीं बस मानते हैं क्योंकि दूसरों ने कहा। 

यदि आप भगवान को जानना चाहते हैं। ईश शक्ति का अनुभव करना चाह्ते हैं तो सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करें। लिंक है:   https://www.blogger.com/blogger.g?tab=mj&blogID=2306888832299223218#editor/target=post;postID=4948385066257948154;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=74;src=postname
तो आपको अनुभव होगा कि आप कितना गलत मानते हैं। एक बार जान लो तो खुद सब समझ जाओगे कि क्या सही है क्या गलत। 

अब यह है कि बाइबिल (Bible) एक ईश्वरीय ग्रन्थ है या नहीं, बल्कि यह है कि यदि पुस्तक सच्ची किताब है, तो इसको ईश्वर प्रेरित होने की आवश्यकता नहीं हैं । यदि यह सच्च है तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसे किसी अच्छे आदमी ने लिखा था, या ईश्वर प्ररित है । गुणांक तालिका (जैसे 2*2) उतनी ही उपयोगी और सच्ची है मानों ने इसके अंकों को परमेश्वर ने बनाया हो ।

यदि बाइबिल (Bible) वास्तव में सच्ची है, तो इसके सच्चे होने के दावे को ईश्वर प्रेरित कहने की आवश्यकता नहीं है, और यदि यह सच्ची नहीं हैं, तो इसके ईश्वर प्रेरित होने की सच्चाई को साबित करना मुश्किल हो जायेगा । वास्तविकता तो यह है कि सच्चाई को ईश्वर प्रेरित होने की आवश्यकता नहीं है । झूठ या किसी गलती के अलावा, कसी और को, ईश्वर प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती है। जहाँ सच्चाई समाप्त हो जाती है, तथा जहाँ संभावना रुक जाती हैं वहीँ ईश्वर प्रेरणा की आवश्यकता होती हैं ।

सच्चाई ने किसी चमत्कार के साथ साझेदारी नहीं की है । सच्चाई को किसी प्रकार के चमत्कार की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है । विश्वभर में एक सच्चाई प्रत्येक दूसरी सच्चाई के साथ अनुकूल सिद्ध होगी क्योंकि सब दूसरी सच्चाईयों का परिणाम है ।मगर एक झूठ, एक दूसरे झूठ के अलावा किसी अन्य के साथ अनुकूल नहीं हो सकेगा । क्योंकि वह इसी उद्देश्य के लिए गढ़ा गया है ।

यदि बाइबिल  (Bible) वास्तव में ईश्वर की रचना है, तो इसमें उदात्त और महानतम सत्यों का समावेश होना चाहिए । इसे, हर दृष्टि से, मानव कृतियों से श्रेष्ठतर होना चाहिए । इस पुस्तक के अन्दर, न्याय की सर्वश्रेष्ठ और उदारतम परिभाषाएं, तथा मानव स्वतंत्रता की सबसे अधिक सत्यपूर्ण अवधारणायें तथा कर्तव्य पालन की सुस्पष्ट रूपरेखाएँ, एवं उदारतम, उच्चतम और श्रेष्ठतम विचार होने चाहिए, न कि वे जिन्हें मानव मस्तिष्क ने विकसित किया है, बल्कि वे जिन्हें कि मानव मस्तिष्क आत्मसात करने योग्य हैं । ईश्वरीय पुस्तक के प्रत्येक पन्ने पर इसके दैवी उत्पत्ति होने से सुपष्ट प्रमाण मिलने चाहिए । (प्रस्तावना, दी बाइबिल हैंड बुक, पृ. *1)

इस सन्दर्भ में एलिजा बेथ कैडी स्टानटन कहती है: बाइबिल (Bible) इतिहासकार ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट में विशेष दैवी प्रेरणा का दावा करते है जबकि इन पुस्तकों में उसी घटना के विषय में चमत्कारों, जोकि सुप्रसिद्ध नियमों के विरुद्ध है, एवं उन नीति रिवाजों जो कि स्त्रियों को अवमानित करती हैं, के विषय में अत्यधिक परस्पर विरोधी कथन विद्यमान है । ये कथन आपतिजनक भाषा में है जिसे कि किसी स्वछन्द सभा में नहीं पढ़ा जा सकता है, और फिर भी इसे ‘दैवी वचन’ कहा जाता है” (वोमेन्स बाइबिल इंट्रो पृ. 12)

चलिये एक उदाहरण और देखें। खुद समझें और हमें भी बतायें ।

बेहतर है आप खुद लिन्क पर जाकर यह पढें और यदि कुछ जानने योग्य हो तो बताने का कष्ट ह्रें। आप खुद  भ्र्मित हो जायेगें।  इन कहाँनियों को पढकर। तनिक सोंचे इनमें विज्ञान कहां  है। सत्यता  कहां है।सब एक फैंटेसी दुनिया की कहाँनियां है और इन कहाँनियों पर दूसरे धर्मों के लोगों को बरगला कर धर्म परिवर्तन किया जाता है और वह भी झूठ और फरेब से।

https://www.wordproject.org/


अध्याय 9    न्यू  टेस्टमेंट

1 और जब पांचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, तो मैं ने स्वर्ग से पृथ्वी पर एक तारा गिरता हुआ देखा, और उसे अथाह कुण्ड की कुंजी दी गई।
2 और उस ने अथाह कुण्ड को खोला, और कुण्ड में से बड़ी भट्टी का सा धुआं उठा, और कुण्ड के धुएं से सूर्य और वायु अन्धयारी हो गई।
3 और उस धुएं में से पृथ्वी पर टिड्डियाँ निकलीं, और उन्हें पृथ्वी के बिच्छुओं की सी शक्ति दी गई।
4 और उन से कहा गया, कि न पृथ्वी की घास को, न किसी हरियाली को, न किसी पेड़ को हानि पहुंचाओ, केवल उन मनुष्यों को जिन के माथे पर परमेश्वर की मुहर नहीं है।
5 और उन्हें मार डालने का तो नहीं, पर पांच महीने तक लोगों को पीड़ा देने का अधिकार दिया गया: और उन की पीड़ा ऐसी थी, जैसे बिच्छू के डंक मारने से मनुष्य को होती है।
6 उन दिनों में मनुष्य मृत्यु को ढूंढ़ेंगे, ओर न पाएंगे; और मरने की लालसा करेंगे, और मृत्यु उन से भागेगी।
7 और उन टिड्डियों के आकार लड़ाई के लिये तैयार किए हुए घोड़ों के से थे, और उन के सिरों पर मानों सोने के मुकुट थे; और उसके मुंह मनुष्यों के से थे।
8 और उन के बाल स्त्रियों के से, और दांत सिहों के से थे।
9 और वे लोहे की सी झिलम पहिने थे, और उन के पंखों का शब्द ऐसा था जैसा रथों और बहुत से घोड़ों का जो लड़ाई में दौड़ते हों।
10 और उन की पूंछ बिच्छुओं की सी थीं, और उन में डंक थे, और उन्हें पांच महीने तक मनुष्यों को दुख पहुंचाने की जो सामर्थ थी, वह उन की पूंछों में थी।
11 अथाह कुण्ड का दूत उन पर राजा था, उसका नाम इब्रानी में अबद्दोन, और यूनानी में अपुल्लयोन है॥
12 पहिली विपत्ति बीत चुकी, देखो अब इन के बाद दो विपत्तियां और होने वाली हैं॥
13 और जब छठवें स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी तो जो सोने की वेदी परमेश्वर के साम्हने है उसके सींगो में से मैं ने ऐसा शब्द सुना।
14 मानों कोई छठवें स्वर्गदूत से जिस के पास तुरही थी कह रहा है कि उन चार स्वर्गदूतों को जो बड़ी नदी फुरात के पास बन्धे हुए हैं, खोल दे।
15 और वे चारों दूत खोल दिए गए जो उस घड़ी, और दिन, और महीने, और वर्ष के लिये मनुष्यों की एक तिहाई के मार डालने को तैयार किए गए थे।
16 और फौजों के सवारों की गिनती बीस करोड़ थी; मैं ने उन की गिनती सुनी।
17 और मुझे इस दर्शन में घोड़े और उन के ऐसे सवार दिखाई दिए, जिन की झिलमें आग, और धूम्रकान्त, और गन्धक की सी थीं, और उन घोड़ों के सिर सिंहों के सिरों के से थे: और उन के मुंह से आग, और धुआं, और गन्धक निकलती थी।
18 इन तीनों मरियों; अर्थात आग, और धुएं, और गन्धक से जो उसके मुंह से निकलती थीं, मनुष्यों की एक तिहाई मार डाली गई।
19 क्योंकि उन घोड़ों की सामर्थ उन के मुंह, और उन की पूंछों में थी; इसलिये कि उन की पूंछे सांपों की सी थीं, और उन पूंछों के सिर भी थे, और इन्हीं से वे पीड़ा पहुंचाते थे।
20 और बाकी मनुष्यों ने जो उन मरियों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया, कि दुष्टात्माओं की, और सोने और चान्दी, और पीतल, और पत्थर, और काठ की मूरतों की पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं।
21 और जो खून, और टोना, और व्यभिचार, और चोरियां, उन्होंने की थीं, उन से मन न फिराया॥


(गूगल और http://www.vedicpress.com/ से साभार कुछ अंश)

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...