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Tuesday, September 25, 2018

सफलता, भोजन और कर्म : शंका समाधान



सफलता, भोजन और कर्म : शंका समाधान


सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"

अधितर लोग सफलता का अर्थ भौतिक सुखों को किसने अधिक प्राप्त किया उस बात से लगाते है। जैसे पैसा शोहरत सन्तान इत्यादि।

कुछ लोग स्वस्थ्यमय जीवन से लगाते है।

सफलतापूर्वक मर गए अपने बच्चों का शादी ब्याह कर के । तो वे सफल हो गए।

पर मैं इसे पूर्ण सफलता नही मानता हूँ।

यो स फल: स सफल:. यानी जिसने उसको या वो फल प्राप्त किया वह सफल हुआ। स के कई अर्थ हो सकते है हर मनुष्य के लिए अलग अलग। ऊपर दो प्रकार के लोग बताये जो निम्न और मध्यम प्रवृति के हुए।

उत्तम प्रकृति पुरुष में इसके अर्थ अलग होते है। जिसने वह फल पाया। जिसको वह फल फलित हुआ। बाबा कौन सा फल। जिसने आत्म रुपी फल को प्राप्त किया वह उत्तम पुरुष। जिसने इस जीवन को वास्तव में सफल बनाया वह उत्तम पुरुष। अर्थात जिसने नश्वर पाया वह निम्न और जिसने नश्वर पाया और अनश्वर को जाना या प्रयास किया वह मध्यम पुरुष। जिसने अनश्वर को पाया। वह उत्तम पुरुष।

प्रायः उच्च मध्यम पुरुष आजकल गुरु बन जाते है। प्रवाचक बन जाते है। दुकान खोल कर प्रचार करते है पर फिर गिर जाते है। क्योंकि उनका पुण्य प्रताप नष्ट होने लगता है। वह चेलो की गिनती और आश्रमो की संख्या में पड़कर अपनी साधना से विमुख हो जाते है। मन भटक जाता है। धीरे धीरे आम मनुष्य की भांति उनकी बुद्धि मन के अधीन हो जाती है और वह फिर इसी जगत में फंस कर रह जाते है।

निम्न पुरुष अनश्वर की सोंचते ही नहीं। वे मानव योनि के भी नीचे गिरकर पतित होकर अधोमुखी होकर दुःख में लिप्त होकर कष्ट भोगते है।

उत्तम पुरुष किसी उच्च लोक में जाकर फिर वापस आ सकते है या निर्वाण यानि मोक्ष प्राप्त कर लेते है।


अब यह सब प्राप्त कैसे हो। कलियुग में अनश्वर को जानना और पाना बेहद आसान है।  जिसके लिए भक्तियोग भक्तिमार्ग सर्वश्रेष्ठ। और इसके लिए सर्वप्रथम मन्त्र जप नाम जप। जो इष्ट अच्छा लगे। नही तो अपना ही नाम। जपो। अखण्ड सतत निरन्तर। जबरिया जपो। धीरे धीरे मन लगने लगेगा। और तुम्हारे अंदर भक्ति उदित होकर कल्याणकारी मार्ग पर ले जाएगी। अपने नाम जपने से समय लग सकता है पर फल मिलेगा। क्योकि मानसिक एकाग्रता तो बढ़ेगी। और अक्षर ही ब्रम्ह है। ब्रह्मांड की उतपति का कारण एक अक्षर ही है। जिसे ॐ कहते है। 

अतः यदि मुक्ति चाहते हो तो आज से अभी से जुट जाओ। सतत निरन्तर अखण्ड जप में नाम स्मरण में।

गुरू महाराज की पंक्तियां। 

कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।

मुझे मेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।

कभी छूट जायेगे ये सारे बन्धन।

मुझे मेरा अपना एक द्वारा मिलेगा।।



भोजन मनुष्य के शरीर के साथ उसकी सोंच और कर्म को भी प्रभावित करता है। अतः आध्यात्म के मार्ग पर चल कर अपनी उन्नति चाहने वाले को जहां तक सम्भव हो भोजन की शुध्दता और शाकाहारी भोजन का प्रयास करना चाहिए। नशा, पान, तम्बाकू इत्यादि विष का काम करते है।

मुझे याद पड़ता है कि किस प्रकार मैं शक्तिहीन होकर मरणासन्न हो जाता था। कारण मैं निरामिष भोजन और मदिरापान भी करता था। किंतु जाप के कारण और माँ काली के प्रहार से कुण्डलनी जागृत हुई तो उसकी ऊर्जा यह शरीर अपवित्र होने के कारण न सहन कर सका। 

बाकी तो स्वकथा में लिख रखा है। अतः अपने शरीर को भोजन के द्वारा शुध्द रखे। कही अचानक आपकी शक्ति जागृत हो गई तो कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

बस इसी कारण से ग्रुप बनाया ताकि मेरी तरह अन्य को इतने कष्ट और समस्याएं न झेलनी पड़े।


शक्तिपात दीक्षा के बाद अपने ही ग्रुप में कुछ लोगो को खेचरी उड्डयन और जालंधर बन्ध स्वतः ऐसे लगते है जैसे बच्चों का खेल हो।

कुण्डलनी शक्ति जो आवश्यक होता है वही क्रिया करवा कर आगे बढ़ जाती है। 

अतः चिंता न करे।


यह क्रिया आपके पूर्व जन्म के आकाश भृमण की क्रिया है। शायद आप पक्षी थे। 



मित्रो पिछले दिनों मैने जिक्र किया था कि मैं बस में वहाँ पहुँचा जहाँ से आने में मुश्किल हो रही थी। मुझे लगा कि शायद यह समाधि की तरफ जाएगी। पर मैं गलत निकला। यह तो चिर समाधि का द्वार है।


हुआ यूँ इसको जानने के लिए मैंने कोशिश की पर साधन पर जब बैठते है तो गुरू शक्ति अपना कार्य करती है और परा पश्यंती तक नही हो पाती है। अतः जब क्रिया न हो यानी गुरू शक्ति शांत हो तब अपने ध्यान से परा  पश्यंती में ही पहुँच सकते है। नही तो नही। यह हो पाता है बस में। क्योकि बस में आसन होता नही अतः गुरू शक्ति की क्रिया नही हो पाती है। उस समय ध्यान लगाकर परा पश्यंती में तुंरन्त पहुँच कर मन्त्र को घुमाकर अपने तालु के द्वार पर दस्तक दे सकते है। जब मैंने यह प्रयास किया तो पुनः उस अवस्था मे यानी फंसने की अवस्था मे न पहुचा पर मुझे सोने के सींग वाले भैंसे के दर्शन हुए। दुबारा फिर वही। तिबारा साक्षात बड़े सींग वाले भैंसे और उस पर धुंधली आकृति। अच्छा यह सब एक महलनुमा भवन जिसमे तमाम सुंदर नक्काशी सोने चांदी के खम्भे और चित्र लगे थे।

मैं विस्मित हुआ। अचानक आत्मगुरु बोले यह यम का भवन है। यमराज। तुम जहाँ आये थे वह स्थान तालु के नीचे होता है। जहां से प्राण यानी आत्मा गर्भ में बच्चे में प्रवेश करती है। फिर उस छिद्र पर खाल चढ़ जाती है। आप नवजात को देखे तो उसके तालु पर हड्डी नहे सिर्फ खाल होती है। अतः योगी मृत्यु के समय वहाँ प्राण चेतना ले जाकर वही से निकलते है। जहाँ उनका स्वागत होता है।

मतलब मनुष्य के प्राण की रक्षा यम द्वारा की जाती है। इसीलिए सनातन में मृतक की कपाल क्रिया करते है ताकि यम की नगरी नष्ट हो जाये।

बाप रे बाप। मनुष्य का शरीर कितना रहस्यमयी है। क्या क्या है यहाँ पर।

अब आप ज्ञानियों की राय जाननी है। यह शायद पहली बार कोई लिख रहा होगा। अतः मेरे मन का भरम भी हो सकता है। पर मैं व्याख्या से सन्तुष्ट हूँ।

जय माँ काली। तेरी शक्ति निराली।


मुझे खुद आश्चर्य होता है। जिस को समझने के लिए लोग बाग इतना समय लगाते है। माँ काली कुछ पलों में आकर सब लीला दिखा जाती है। जैसे सहस्त्रसार तक मैंने कभी सपने में न सोंचा था। वहाँ भी दृष्टा भाव से खड़ा कर दिया। पलो में। ब्रह्मांड की उत्तपत्ति समझाया दी क्षणों में।



प्रभु की लीला प्रभु जाने। हम तो बस गधे से अधिक कुछ नही।

प्रकाश तो ऐसा लगता है कभी कभी कान के पीछे से कोई आगे टार्च मारता हो एकदम सफेद प्रकाश की। कभी कभार तो इतना तीव्र सफेद प्रकॉश जो असहनीय होकर आंख तक खुल जाती है। यह प्रकाश ऊपर ने नीचे आता हुआ कभी कभार दिखा है।

हो सकता है यह मन का भरम हो।

वैसे यह विचार मैंने न कभी सुने और न सोंचे।

पहली बार लगा कि यम शरीर मे है।

सर जी मैं वहाँ पलो में पहुच जाता हूँ। जबकि लोग कहते है समय लगता है। मुझे तो किसी अनुभव में कोई समय नही लगा।???

राम जाने सब सही है या भरम।


मैं कही और तो नही जाता। क्योकि मैं तो मन्त्र को परा पश्यंती में जाता हूँ। मन्त्र से साथ ध्यान को शरीर के किसी भी हिस्से में ले जा सकता हूँ। इसका नतीजा यह होता है सर कनपटी से भारी हो जाता है। प्रायः मैं मन्त्र सर में चक्कर कर घुमाता भी हूँ।

बुरा लग गया लालचन्द को। देखो मेरे प्रकाशित पोस्ट खूब शेयर करो। कविता भी शेयर करो।पर जो कच्चे अधूरे और बातचीत के पोस्ट है। वह अभी अपरिपक्व है। उनको पोस्ट करने से मात्र जग हंसाई ही होती है। या फिर आत्म श्लाघा लगती है।  आशा है समझ गए होंगे।


आप सभी मित्रो का स्वागत है। इस ग्रुप में आप अपने साधना के अनुभव जो आपको समझ मे न आते हो परेशान करते। वे सब बता सकते है। उनका समाधान होगा। 

इस ग्रुप में स्वयं के अनुभव और स्वयं की साधना में आने वाली परेशानी का निवारण होगा। बाकी अन्य कोई सन्देश पोस्ट न करे। किसी भी तरह का बधाई संदेश, गुड मॉर्निंग , इवनिंग, शेरो शायरी, पर जो आप लिखते है जैसे भजन दोहे इत्यादि उनको लिखने में प्रेरणा मिलेगी।  

कुल मिलाकर कट पेस्ट न पोस्ट करे सिर्फ अनुभव और अनुभूति या स्वयं का लेखन।

वैसे आपसे अनुरोध है कि पहले ब्लाग पर जाकर कुछ लेख पढ़ ले। जिससे आपके प्रश्न और जिज्ञासाएं शांत हो जाएगी।

साथ ही यदि आप अदीक्षित है तो mmstm यानी सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि अपने घर पर करे। ताकि आपको ईश शक्ति का अनुभव हो सके।

बिन्दु जी आपको हुआ क्या था। और क्या परेशानी है। वह बताये। बिना डरे या क्रोध के।

मैं देख रहा हूँ। सब फिर किताबी ज्ञान के लिए भटकने लगे। यह किताबे सिर्फ बौद्धिक बहस और चर्चा करने में अवश्य सहायक होती है।

मैंने कितनी बार निवेदन किया है। किताबी कट पेस्ट न डाले। पर लोग नही मानते है। मुझे बाध्य होना पड़ेगा।

मित्रो ब्लाग मेरा है। जिस पर आप लोगो की सुविधाओं हेतु अनुभवित लेख लिखे है। उसका प्रचार तो अपने आप होगा पर उससे अधिक आवश्यक है ग्रुप के लोगो का फायदा।


आप लोग सिर्फ अपने अनुभव ही लिखे। किताबी कट पेस्ट न करे।

आजकल कोई समस्या नही लिख रहा है। इधर उधर के कट पेस्ट जायदा।

यह अच्छी बात नही है। सिगरेट बीड़ी बदबू यह आना किसी अतृप्त शक्तियों का संकेत है। यह बुरी भी हो सकती है।

आप फिलहाल क्या पूजा कर रहे है।

मित्र। यदि जब तक हम निंदा सुनना नही सीख पाते। अपमान नही सह सकते तब तक हम आधायतम में उन्नति नही कर सकते। 

मुझे तो यह लगता है कि प्रशंसा तो मेरी नही प्रभु की हो रही है। तो गाली और अपमान भी उन्ही का। मैं कौन वह निबटे। अतः लोगो की निंदा को बुराई को सहना सीखो।

आपको जो आध्यात्मिक प्रश्न पूछने हो। कृपया पोस्ट कर दे। उचित समय मिलने पर उत्तर मिल जायेंगे। मेरे कार्यालय में मोबाइल की अनुमति नही है। अतः सोम से शुक्र सुबह 7 से शाम 7 तक नो मोबाइल।



आप क्या करते थे। क्या करते है।

यह मन मे क्यो आता है।

मित्र मैं खोजी हूँ। वैज्ञानिक हूँ। आप मेरा नाम ले सकते है मैं गुरु नही।

ऐसा करे। आप पूरा विवरण आराम से लिख दे। मैं जवाब दे दूंगा। मेरी रात्रि पूजा का समय हो गया है।

क्या आपको क्रिया हुआ। जो अनुभव हुए हो बताये।

कृपया फिर लिख दे। अनुभव और क्रिया।

देखिये गुरू शरीर नही। शक्ति होती है तत्व हित है। आप ध्यान में उनसे गाइडेन्स ले सकते है। गुरू हर शिष्य को संभालते है

ध्यान में गुरू का आह्वाहन करे।

मित्र मैं तो शक्तिपात का हूँ। अपने गुरू महाराज ध्यान या स्वप्न में आ जाते है।

तो आप mmstm करे। गुरू के चित्र के साथ। अपने मन्त्र के साथ। गुरू आह्वाहन के साथ। वे स्वप्न में आ जायेंगे। आपको शुभ कामनाएं।

यह अच्छी स्थिति है। जगत से विमुखता हो रही है। अब आप अपना मन साकार भक्ति में लगाकर आनन्द ले। ददी आपके भाव सत्य है तो गुरु को बताकर ब्रह्मचर्य की दीक्षा ले सकते है। 

अपने समय और अनुभव को सनातन की सेवा में लगाये। जगत कल्याण करे।

वैसे यह लक्षण डरिप्रेशन के भी होते है। क्या आप कामेच्छा होती है।

क्रोध आता है। लालच आता है।

आप कहाँ रहते है।

आप परिवारिक दायित्व है क्या।

गुरू मेरे पास है।

क्या घरवाले परिवार छोडने देंगे।

आप सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करे। इष्ट के मन्त्र के साथ। वह स्वयम प्रकट होकर आपको मार्ग बता सकते है।

प्रश्न: में अपने मन को स्थिर नही कर पता कुछ दिन महीने में भटक जाता है consistency नही आ पाती सांसारिक आकर्षण के अधीन हो जाता विचलित हो जाता अटक जाता है

कृपा मेरा मार्गदर्शन करें सर में अपने diagnose बताना चाहता हु जिससे आप समझ सके आंकलन के बाद कि सही सही मुझे क्या करना चाइये मुझे हमेशा भ्रम रहता है कि अपने निर्णय पर सही गलत का फैसला करना मुश्किल होता है कभी लगता है ये पंत सही है कभी लगता है वो सही है कभी लगता है वो गुरु सही है कभी लगता है वो सही है  जितनी जोर से साधना भक्ति का जोश चढ़ता है उतनी ही जोरो से उतर भी जाता है फिर आलस्य और निराशा रह जाती है लगता है कुछ नही कर सकता जीवन मे आलस्य मेरा शत्रु बनता जा रहा है कभी सोचता है ये मंत्र कर या कोई और करू बस इनी सब कारणों से अटका रहता हूं।



ये सब गलत है। आप सिर्फ एक मन्त्र पकड़े। उसका ही सिर्फ उसका ही सघन निरन्तर सतत मन्त्र जप करे। 

मन्त्र का चुनाव ऐसे करे।

1 जो आपका इष्ट हो। 2 जो आपको प्रिय हो 3 संकट में जो याद आता हो।

4 जीवन मे कभी जिसने सहायता की हो 5 जिसका जप अधिक किया हो।

नही तो mmstm करे। और पूछे संकल्प के साथ मेरा इष्ट कौन है। जो देव का मन विचार चित्र ध्यान में आये। उसका जाप करे। फिर उसी से mmstm करे। और वह मन्त्र आपका इष्ट हो गया।


मित्रो क्या ग्रुप समाप्त कर दूं। लोग बाग बकवास सुनकर चले जाते है। बड़ी आशा लेकर गम्भीरता और अनुभव को सुनना और समझना चाहते है पर हमारा मन बकवास और किताब में अधिक। ध्यान में कम लगता है। ये ही विडम्बना है।

अपना थोथा किताबी ज्ञान बखारने के लिए कुछ न कुछ बोलना जरूरी है। चाहे बेदिर पैर की बाते या बकवास हो। पर चुकी हमने पढा तो काबिलियत दिखाना जरूरी है।

औकात और दम है इतना ही ज्ञान का तो अनुभव के प्रश्न पूछो। बकवास के क्या उत्तर कि किसके पीछे कौन भागा। नाथ कहा से आये। अरे यह जानो तुम कहाँ से आये और कहाँ जाओगे।


बाकी जो आप सोंच सकते है। समझ सकते है सबके उत्तर ब्लाग में मिल जायेंगे। पर उसको भी पढ़े कौन। हमको तो अपनी वित्ती भर ज्ञान की बाते बतानी है।

मुझे लगता है अब मेरे वैराग्य का समय आ गया। ईश प्रार्थना कर बैठ जाऊंगा सब छोड़कर। भगवान से माफी मांग लूंगा। मुझसे कोई सेवा न हो पाएगी। तुमको जो दण्ड देना हो दो। मैं चला।

जीने नही देते है चैन से ये दुनिया वाले।

मरने जाओ तो जीने की कसम दिलाते हैं।



सिर के मध्य भाग के पीछे अंदर से खुजली। शरीर पर अचानक खुजली होकर दाने प्रकट होना फिर स्वतः गायब होंना। पीठ कर त्वचा के नीचे कभी कभी खुजली का एहसास। क्या एक सब ऊर्जा उतपति के लक्षण है।

देखो गुरू कोई शरीर या देह नही। देह तो माध्यम होती है बस। असली माल मसाला तो गुरु तत्व है जो हमको मिल जाता है पर हम अनुभूति नही कर पाते। कारण स्वार्थ और कर्महीन होना।

न हम साधन करते न हम उनकी बातों पर चिंतन करते। न हम स्वाध्याय करते। हम बस चमत्कारों और उल जलूल बकवास में व्यस्त रहते है।

जैसे मेरे केस में। मेरी पहली गुरु माँ काली जिन्होंने ने शक्ति दी दीक्षा दी। मैं न सम्भल सका तो गुरु महाराज स्वप्न और धतान के माध्यम से अपने पास तक खींच लाये। शक्ति को और मेरे शरीर को संभाला। वह भी काली भक्त। यहाँ तक आऐडी गुरु जो मेरे पूर्व जन्म के भी गुरु थे वह भी काली भक्त।

लोग बाग गुरु शरीर को एक मूर्ति जी तरह पूज कर इतिश्री कर लेते है। जिसके कारण उनका उत्थान नही हो पाता है।

सही है। यह नाता जन्मो का है।

यह शरीर नष्ट हो जाता है। पर गुरु तत्व अनन्त तक रहता है।

सही है। कर सकते है।

मैं सिर्फ एक मात्र इस ग्रुप का सदस्य ही हूँ।

शिष्य गुरू के पैर की जंजीर है। प्रायः गुरू इसी कारण मुक्त नही हो पाते वह गुरू लोक में तप करने लगते है।

यदि हमें मुक्त होना है तो गुरू के तत्व को समझकर उसकी ही शक्ति से उसे भी छोड़कर और आगे बढ़ना है।


वह कहलाता है मोक्ष या निर्वाण। यह तब होता है जब हम निराकार का अनुभव कर निराकार निर्गुण को प्राप्त कर लेते है। मतलब मोक्ष का मार्ग ज्ञान योग और अद्वैत का अनुभव।

लेकिन मजा केवल और केवल साकार सगुन और द्वैत में ही होता है।

देखो पहला। आत्मा में परमात्मा का अनुभव हुआ योग। जो भक्ति और कर्म योग का जनक।

दूसरा । मैं ही आत्म स्वरूप हूँ। परमात्मा हूँ। यह हुआ ज्ञान योग। 

तीसरा। यह जो मेरी आत्मा है इसी में साकार और निराकार का वास।

इस अंतिम अवस्था मे आप अपनी मर्जी से साकार या निराकार की भक्ति या अनुभूति कर उस मे रम सकते है।

अनुभव को सोंचने से नही होता। क्योकि उत्सुकता ध्यान की गम्भीरता कम कर देती है।

देखो देहभान जब तक है। तब तक कुछ मिलना मुश्किल।

लीन हो मन्त्र जप में। अंत मे यह भी बन्द होकर नींद जैसी पर जागृत अवस्था मे ले जाता है।

सर जी आप दीक्षित भी है। फिर रकीं के उस्ताद।

वास्तव में रात्रि सोने के पहले साधन पर बैठ जाओ। फिर उसी में सो जाओ। यह ध्यान निद्रा का रूप ले लेगी। और स्वप्न भी नही आएंगे। यदी आएंगे तो अनुभव दे जायेगे।

यहाँ तक तमाम लोक। मन्त्र। दर्शन पता नही क्या क्या।

मैं भी इसी वक्त आरती करता हूँ।

रात में ही मजा आता है। वह भी 12 के बाद।

आप पहले ज्योत जलाए आरती करें। फिर बैठे।

उल्टा कर्म कर दे। यदि निश्चित जाप करते है तो माला ठीक वरना माला छोड़कर पश्यंती करे। तब ही आनन्द और उत्थान होगा। माला अनुष्ठानिक के लिए ठीक है पर ध्यान के लिए बन्धन।

यार इतने वरिष्ठ हो। उंगलियों पर कर लो। बन्धन तो बन्धन

ध्यान में तीव्रता हेतु कुछ नही। न माला न टीका न बिंदी न कुछ भी। सिर्फ और सिर्फ मैं और मेरा मन्त्र। फिर वह भी छूटा।

नही मोक्ष निर्वाण मतलब उस अनन्त सुप्त ऊर्जा में विलीन हो जाना। जिसे निराकार कृष्ण अल्लह या गाड कहते है। यह अंतिम है। पर वहाँ तक लोग पहुचते बहुत कम है। उसके पहले तमाम लोक होते है। पहले निराकार सुप्त ऊर्जा। फिर निराकार दुर्गा। फिर ब्रह्म। फिर विष्णु और रुद्र। फिर शिव और गुरु लोक। फिर तमाम साकार। फिर तेज लोक। गायत्री लोक। फिर अन्य देव लोक। फिर स्वर्ग और नर्क। फिर तीन प्रकार के शरीर। फिर धरा।

अब आपको mmstm की जरूरत नही। आप दीक्षित है। वह तो सिर्फ आपको अनुभव हेतु बताया था।

आप सीधे सीधे गुरु मन्त्र करे आरती के बाद। अब सारे नाटक बन्द। सिर्फ और सिर्फ गुरु शक्ति।

जैसी आपकी सामर्थ्य और प्रभु की इच्छा साथ ही गुरू का आशीष।

मोक्ष अपनी विरासत नही है कि हमारी इच्छा अनिच्छा से मिलेगी।

नही। फिर वापिस ही न आना।

तब अपनी सोंच प्रगाढ़ करो और साकार भक्ति में ही लगे रहो। अंत समय मे यदि शून्य मस्तिष्क हुए तो समझो निर्वाण पक्का। इसी लिए किसी साकार देव को या गुरू को याद करना तो वह लोक। बच्चों को याद करना तो भू लोक। लेकिन यदि ममता या मोह हुआ तो वही योनि। धन सोना तो सर्प। बच्चे मोह तो सुअर या कुत्ती। और कुछ सोंचा तो बस वोही रूप।


सोंच और अनुभव में अंतर है। मैं सोंच नही अनुभव से बात कर रहा हूँ।

अनुभव से बड़ा कुछ नही

योग के बाद ही यह सब अनुभव होते है। योग तो प्राथमिक द्वार है।

देखो जब आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव होता है। तब हमे दर्शनाभूति या ऐसा ही कुछ निराकार उपासक को कुछ और अनुभव के आगे पीछे अहम ब्रह्मास्मि की अनुभूति के साथ हमारे पांचवे तत्व यानी आकाश तत्व के द्वार खुल जाते है। जहाँ पर हम ध्यान के द्वारा आगे बढ़कर नए नए अनुभव और ज्ञान प्राप्त करते है। साथ ही आत्मगुरु जागकर मार्गदर्शन करता है। पर सावधान मन गुरु भी जाग कर भटकाने का प्रयास करता है।

यह सब क्षणिक होकर भी जीवन भर याद रहता है। फिर योग की अवधि धीरे धीरे बढ़कर हमे कृष्ण द्वारा वर्णित कर्म योग करवाता है। उसी के अनुसार लक्षण होने लगते है। सबसे अंत मे पातञ्जलि की वाणी यानी चित्त में वृत्ति का निरोध आ भी सकता है और नहीं भी। यह अंतिम कैवल्य अवस्था है।

इसी के बीच द्वैत से अद्वैत का अनुभव और एकोअहम दिवतीयोनास्ती हमे ज्ञान योग का अनुभव करा देता है। पर यह सब होने के बाद भी अधिकतर पातञ्जलि परिभाषित योग को नही प्राप्त हो पाते।

जी ऐसा नही बिल्कुल नही।

कर्तव्य विमुख होना जिम्मेदारियों से भागना कायरता है। आपको मोक्ष नही मिल सकता। जिम्मेदारी को आप कम ज्यादा नही कर सकते। बस उसको निभाते हुए लिप्त न हो। साक्षी और द्रष्टा भाव रहने का प्रयास कर सकते है।

इसका सबसे आसान उपाय है सघन सतत मन्त्र जप। कर्म करते हुए भी मन्त्र में लीन रहने से लिपपता कम हो जाती है।

यद्यपि यह भी संस्कार संचित करता है। पर यह सत्वगुणी है अतः अपने को खुद विलीन कर लेता है।

जब समय मिले गुरु प्रददत साधन संस्कारविहीन होने के लिए। बाकी समय जप।

क्योकि यह शक्ति को बांधकर अपने वश में करने का सबसे जल्दी उपलब्ध मार्ग है।

किसी दिन अचानक मन्त्र जप करते करते आपके अंदर आवेग आता है। मन मस्तिष्क सब सुन्न सा हो जाता है। हाथ पैर भीचने से लगते है। मन मे प्राण में हर तरफ यह विचार आने लगता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ। शिव हूँ विष्णु हूँ इत्यादि साथ उन देवो की भांति ऐसा लगता है मुख खुल गया। उंगली में चक्र आ गया। हाथ मे त्रिशूल आ गया। वैगेरह वगैरह। और इसके साथ कुछ अनुभूतिया भी होने लगती है। जैसे मेरा आकार बढ़ने लगा है। बोली भी बदल जाती है। मुख से निकलने लगता है कि मैं यह हूँ वह हूँ।।

फिर धीरे धीरे सब शांत हो जाता है।

शिव लोक मिलेगा। मोक्ष नही। शिव एक पद मात्र है।

हर देव के तन्त्र है।

जिससे वह लोके मिल जाता है।

पर मोक्ष निराकार से ही मिलता है। क्योकि तन्त्र साकार है। सगुण है इसीलिए।

दक्षिण मार्ग अहिंसक मार्ग। भक्ति मार्ग है समर्पण का दासत्व भाव का साकार का।

वाम मार्गी हिंसक और शक्ति को वश में करने का।

कॉल मार्ग सबका बाप।

क्योकि इसमें आनन्द है। अहंकार की संभावना कम है। दासत्व भाव है। समर्पण है।

हॉ यही है। पर इसके पहले दर्शन जरूरी है या निराकार का कोई अनुभव।

सर्वश्रेष्ठ है और सर्वहित है। भक्तिमार्ग। निसमे आनन्द के जीवन मूल्यों का पता चलता है। प्रभु खुद सहायता करते है।

ढोंग से ही सही। यदि अदीक्षित हो तो जबरदस्ती नाम जप मन्त्र जप करते रहो। पाठ इत्यादि करते रहो। एक नियम बना और पालन करो। 

औषधि मरीज को जबरदस्ती देनी पड़ती है। वह फायदा कर जाती है। प्रभु का नाम जप भी औषधि है।


लेख को पढ़कर, कविता को लिख कर।



नीति को प्यार कर, अनीति प्रहार कर।।

प्रभु को जान कर, सनातन को मान कर।

आहट को भानकर, गीत को गानकर।।

जीतना चाहिए, जीतना चाहिए।।


एक बहस फेस बुक से मेरा उत्तर गुरु हेतु।

कृष्ण के संदीपन। बचपन के। कबीर के रामानन्द। रविदास कबीर के गुरुभाई थे। अतः दोनो पूर्ण ज्ञानी थे। क्योकि दोनो ने साकार से निराकार की यात्रा की। जो सनातन कहता है। ईश एक है। उस तक जाने के मार्ग अनन्त। महावीर स्वामी तो गुरु शिष्य परम्परा की जैन दर्शन की पराकाष्ठा थे। वे 24 वे तीर्थयनकर थे। यानी 24 वे शिष्य जो जिन हुए। मतलब जिनकी आराधना से निर्वाण मिल सकता है। बुध्द के दो गुरु थे। दूसरे सनातनी थे। जिनका नाम रुद्ररामदतपुत्त था। पहले अलाराकलाम थे। दूसरे गुरु ने उनको विपश्यना यानी श्वासोश्वास करना सिखाया था। जेसस ने बौद्ध लामाओं से शिक्षा ली थी।

बाकी अपूर्ण ज्ञानी क्योकि सिर्फ एक ही मार्ग की बात की।  क्योकि सनातन कहे पूरा सर्किल सब विधि एक ईश तक जाती है


महावीर जैन परम्परा जो सनातन की गुरु शिष्य शाखा। अनीश्वरवादी पर देवो की तरह जिन की पूजा से उद्धार। बौध्द अनीश्वर पर सारे सिद्दांत सनाटन के अष्टकर्म तो पातञ्जलि के। अप्रिमितताये गीता से और उपनिषद से। हा भाषा अलग पाली में सँस्कृत नही।

जेसस वेरी नैरो सिर्फ मेरे पीछे चलो। मोहहमद और नैरो मेरे पीछे आओ नही तो कत्ल हो जाओ।



जय हो महाकाली गुरूदेव्। जय महाकाल 

"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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