क्रिया कर्ता कर्म और गुरू : चर्चा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
एक सुंदर वृतांत।
*एक अनुभवी साधक और एक मित्र का वार्तालाप -*
*मित्र का प्रश्न:* सभी बड़ी और महत्वपूर्ण साधनाओं का मुझे
ज्ञान है और मैं रोज साधना करता भी हूँ । पर फिर भी जीवन मे कुछ कमी है क्यों?
सबके सामने तो खुश हूं पर दिल मे अंदर कुछ तृष्णा अभी भी है क्यों ? मैं भी कई सिद्धियां हासिल
करना चाहता हूँ । में सभी शिविर भी करता हूँ । और भी बहुत कुछ करता हूँ पर कहाँ
कमी रह गयी ? क्या गलत किया ? और क्या
करूँ ?
*(- "अच्छा आप बहुत बड़े लेवल के साधक हो?"*
हाँ जी सबसे बड़े लेवल की साधना सीख ली है मैने ।
*-"बहुत सारे शिविर भी किये ?"*
*हाँ जी A category में बिल्कुल आगे
बैठ कर करता हूँ ।*
*-"सिद्धियाँ भी आ गयी होगी कुछ?"*
वो तो सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता
हूँ कि मुझे सिद्धि मिल गयी पर ईमानदारी से कहूं तो कुछ नही है
*-"साधना करते हो तो कई बड़े बड़े अनुभव भी हुए होंगे
आपको?"*
सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता हूँ कि
मुझे कोई अनोखा अनुभव हुआ पर ईमानदारी से कहूं तो शायद कुछ नही है । कृपया बताएं
क्या कमी है ? लेवल 5
या 6 सीख लूं तो ज्यादा सिद्धि मिलेगी ?
*-"हा हा हा, अच्छा क्योंकि लेवल 6,
लेवल 2 से ज्यादा बेहतर है ना ? सही कहा ना जी ?"*
क्यों जी, नही है क्या? बाहर सभी लोग तो यही
मानते है ।
*अनुभवी साधक -*"अब ध्यान से सुनिए प्रिय मित्र - आप के
प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है -
*(1) मैं यह नही मान सकता कि साधना की पर कुछ असर नही हुआ ।
हाँ ये मान सकता हूँ कि जो असर हुआ वो आपको दिखा नही । या फिर साधना सच्चे तरीके से नही हो रही बस दिखावा हो रहा है ।*
*(2) ये बडा ही स्पष्ट है कि हर बार साधना के साथ आप का
अहंकार बढ़ता जा रहा है , जैसे कि आप किसी प्रतियोगिता में
शामिल हैं । हर बार जो भी करते हो साथ मे अपना अहंकार और बढ़ा लेते हो कि आप कोई
बड़े योगी सिद्ध हो गए*
*(3) दूसरे लोगो को नीची दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है ।
तुमने साधना और शिविर को प्रतियोगिता बना लिया है और हर चीज में अहंकार बढ़ता ही जा
रहा है ।*
*(4) जितना अहंकार बढ़ता जाएगा उतना तुम गुरु से और भगवान से
बहुत दूर होते जाओगे। जितना सिद्धि के पीछे भागोगे उतना भगवान से दूर जा रहे हो ।*
*(5) क्या करोगे सिद्धि का? दूसरों पे
रौब दिखाओगे? जैसे अभी अपने बड़े साधक होने का रौब दिखाते हो?*
*(6) हज़ार बार गुरु जी कहते हैं, गुरु
के भौतिक शरीर के पीछे मत भागो । इस अहंकार को और मत बढ़ाओ । प्रतियोगिता नही करो ।
क्या कभी गुरु की बातें ध्यान से सुनते भी हो ?*
*(7) जीवन मे सरलता लाओ । जितना सरल और निच्छल रहोगे उतना
साधना सफल होगी । अहंकार और प्रतियोगिता नही है तुम्हारा उद्देश्य । सेवा करो । प्रेम करो ।*
*(8) खुद को शिष्य कहते हो तो गुरु की प्रतिष्ठा का ध्यान
रखो, गुरु ने कभी नही कहा कि मूर्ख अहंकारी बन के दुसरो पे
रौब दिखाओ । क्या ये प्रतियोगिता करना गुरु ने सिखाया
है ?*
*(9) जब गुरु कहते हैं कि उच्च लेवल की साधना करवाऊंगा तो
उसका मतलब ये नही कि पुरानी साधना कोई कम थी । उसका अर्थ ये होता है कि अब तुमको
और अधिक मेहनत करनी होगी और सरल और निच्छल साधक बनना होगा और शुद्धि लानी होगी ।
कोई साधना किसी से कम या ज्यादा नही होती । जो तुमको सिखाया है उसी को सच्चे दिल
से रोज करो । पर तुम ने हर चीज को अपना अहंकार की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है
। एकदम उल्टी दिशा में जा रहे हो ।*
*(10) हाँथ जोड़ के प्रार्थना करता हूँ गुरु का नाम और
साधनाओं को बदनाम नही करना । अहंकारी मत बन जाना, प्रतियोगिता
और रौब नही दिखाना । किसी सच्चे का दिल ना दुखाना । तुम सरल बनो । निच्छल प्रेमी
बनो । सेवक बनो । सच्चे साधक बनो । एक शब्द राम नाम भी सरल सच्चे मन से जप ले,
पार हो जाएगा ।*
*और ये वचन सुन कर जो बुरा लगे तो मुझे माफ करना पर ये समझ
लेना, मित्र आपके अंदर छुपे उस अहंकार को चोट लगी है,
पर जब वो हटेगा तो ही आप की सही मायनों में मुक्ति होगी ।*
*गुरु या आपका अहंकार - किसी एक को चुन लो , दोनो में से कोई एक ही आपके जीवन मे रह सकता है ।*
*जो गुरु सिखाता है उसको ध्यान से समझो । निष्काम सेवा,
साधना, निश्छलता, प्रेम
और सरलता को जीवन मे लाओ । ये बखान करना बंद करो और शांत मन से सच्चा कर्म करो ।*
*और जब तक सच्चे साधक न बनो तब तक उनको अपना गुरु ना कहना ।
क्योंकि गुरु किसी को कभी नही सिखाता ये अहंकार, प्रतियोगिता
और अराजकता
*भगवान और गुरु हम सबको सदबुद्धि दे ।
पहले पांच अवगुण होते थे जिनसे छुटकारा पाना बहुत
कठिन होता था।
क्राम, क्रोध, लोभ, मोह,
अहंकार,
अब सात हो गये
क्राम, क्रोध, लोभ, मोह,
अहंकार, फेसबुक और व्हाटसैप
मित्रो बुरा न लगे। हर समय मोबाइल को साथ रखना और
ध्यान देना ईश प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।
आपको
बुरा लगा तो क्षमा मांगता हूँ। पर अनुभव में क्रिया बहुत प्रचलित शब्द है। सब
जानते है।
यहाँ
शब्दावली की प्रतियोगता नही थी।
सर
कलियुग में गूगल गुरू अनन्त भौतिक ज्ञान समेटे हुए है।
मुझसे
बेहतर गूगल समझाएंगे।
योग
नही। क्रिया और योग।
दोनो
अलग है।
क्रिया
योग का प्रचार महावतार बाबा के शिष्य श्यामाचरन लाहिड़ी महाराज ने किया।
उसी
परम्परा में an autography of himalayan yogi लिखी गई है।
मैंने
यह कहा क्रिया और योग अलग है। जबकि क्रिया योग एक अंतर्मुखी होने की विधि।
क्रिया
: वह जो कुण्डलनी जागरण के पश्चात अनिको अनुभव देता है। आंतरिक और भौतिक।
योग
: आप जानते है।
वेदांत
: आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव
श्री
कृष्ण और पातंजली ने तुलसीदास ने लक्षण बताये है।
क्रिया
योग: कुंभक रेचक और पूरक के साथ मन्त्र जप।
एक
विधि अन्यर्मुखी होने की।
मित्र हमारी परम्परा में सब सम्मिलित है। मुझे
पातञ्जलि का अष्टांग योग पता है। मैं उनकी धारणा विधि के माध्यम से ही कई रहस्य
जान पाया।
हा मुझे किताबी ज्ञान बेहद सीमित है। जो अनुभव है उसी
के सहारे जबाब देता हूँ।
आप कृपया पातञ्जलि की क्रिया योग विधि बताने का कष्ट
करें।
नई जानकारी हेतु नमन एडवांस में।
हमारी परम्परा में कोई उपदेश नही। सीधे सीधे शिष्य की
कुण्डलनी जागृत। जो अनेकों अनुभव देने लगती है। बस।
कुछ सदस्यों की दीक्षा ग्रुप में हुई है। लगभग सभी बौराये
बैठे है । आनन्द और अनुभव की सीमाएं लांघ गए है। कभी कभी मुझे भी दुआएं दे देते
है।
मित्र अभी आप मन्त्र के विषय मे कुछ नही सीख पाए है
अतः मन्त्रो की दुनिया की सलाह न दे।
अधूरा ज्ञान गलत हो सकता है।
आप पहले किसी भी मन्त्र से जो आपका इष्ट या कुल का
हो। उससे mmstm करे। जो
अनुभव हो बताये फिर आगे बात हो।
देखिये कोई भी हो पहले mmstm करे। जो अनुभव हो वो बताये। ताकि
आपके स्तर को समझा जा सके।
बिल्कुल। एक तरह से यह बेसिक परीक्षा हैं जो उत्तीर्ण
होना आवषयक है।
ओह। उस परम्परा के सन्यासी को मैं समझता हूँ। बिना
अनुभव सन्यासी बन बैठते है।
मेरे सम्पर्क में एक आये थे बोले 16 साल से ओशो सन्यासी हूँ लोगो को
सिखाता हूँ। पर कोई अनुभव नही।
धाकड़ जी आप भाई से पूछ लें क्या वह मुक्ति चाहते है।
यार यह ग्रुप के सदस्य है इनकी माता जी को देवी का सायुज्य
प्राप्त है। इनकी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं है। जो विज्ञान नही मानता पर घट रही है।
तुम mmstm
करो जान जाओगे। मैं तो अंगूठा भी नही रखता। क्या बोलू। ग्रुप के पहले
के कुछ सदस्यों को सिर्फ बोलकर क्या से क्या हो गया था।
गुरोके कर्म मर्यादा असीमित है।
यदि अनुभव न हो तो कर के देख लो। अपने गुरू मन्त्र के
साथ। अनुभव है तो अपनी गुरू शक्ति या शिव या कृष्ण या किसी देव से पूछ लेना। बस।
यह सब सिद्धियां है जो मार्ग की भारी रुकावट है।
सिद्धया सिद्ध पुरुष के साथ खुद हो जाती है। पर यह
बन्धनकारी और विनाशक होती है।
सर जी इस ग्रुप में ही कई प्रकार के ओशो के बाप लोग
मौजूद है।
ओशो एक भटका अपूर्ण ज्ञानी बच्चा ही था।
रावण ज्ञानी था पर था पापी। फिर उसका तिरस्कार क्यो।
ओशो भी उसी कैडर का था।
प्रायः लोग उसके लेख पढ़कर प्रवचन सुनकर मोहित हो जाते
है। पर उसकी सोंच और आंतरिक कर्म तक नही पहुँच पाते।
यह अहंकार नही है। जगत को सत्य बताना है।
कैकेई ने जगत पर कल्याण किया। राम को वन भेजकर रावण
के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर राम की महानता को जगत को सामने आने का मौका दिया।
शबरी ने प्रेमल भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। दोनो
की कोई तुलना नही।
जिस भांति कौओं के मुख से वेद वाणी नही सुहाती उसी
प्रकार पापी के मुख से ज्ञान शोभा नही देता।
ओशो को मैं पापी भटका अपूर्ण ज्ञानी मानता हूं।
हर गुरू परम्परा की शक्ति अलग होती है। जब वे टकराती
है तो शिष्य का नुकसान हो सकता है।
यदि एक साधारण गुरू हो तो परेशानी नही होती है क्योंकि शक्तिपात के कौल गुरू
से अधिक कोई शक्तिशाली नही होता है। अतः किसी भी दीक्षा के बाद शक्तिपात दीक्षा
में कोई हर्ज नही। पर अन्य परम्पराओं में यह बात नही होती है।
यू समझो पी एच डी वाला किसी का गाइड बन सकता है। शक्तिपात
पी एच डी होती है।
क्या बात।
कबीरा इस बाजार में। दुखिया सब संसार।।
विपुल पापी संसार मे। रोवे सभी संसार।।
नही सोंच जब समय था। इतना कम जप यार।।
कोमल जी सिर्फ भटक रही है इसीलिए भुगत रही है। स्पष्ट
है। जो बोला वह करना नही। जो करना नही वह पूछना। व्यर्थ की बकवास कर समय नष्ट
करना।
और अधिक क्या बोलू।
आप जिसको संकट में याद करे। जिसका नाम निकले वह आपका
इष्ट।
जिसका जप जाने अनजाने कर चुके है कर रहे है वह इष्ट।
जो अच्छा लगे वह इष्ट।
जिसका नाम आनन्द दे वह इष्ट।
आपकी शक्ति का समार्थ्य मैंने देखा। मुझे मुरारी बापू
गुरू दत्त मौलेश्वर महाराज आसाराम बापू सहित तमाम लोगो ने सिर पर हाथ रखने से मना
कर दिया था। मैं जब मरनासन्न होता था। तब मेरे प्रथम गुरू महाकाली की शक्ति को जब
प्रथम देही गुरू स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज सम्भाल न पाए थे। तब आपने
तीन बार तालू पर हाथ मारकर मेरी क्रियाओं और शक्तियों को दबा दिया था।
जो बाद में 24 साल के जप के बाद पुनः सक्रिय हुई।
स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज उस स्तर की
विशेष दीक्षा देते थे। उस शक्ति से किसी साधारण को हाथ रख दे तो सामनेवाले की मौत
तक हो जाये।
शक्ति के खेल का अनुभव मैं समझता हूँ मुझसे अधिक किसी
ने न देखा होगा।
जय गुरूदेव।
आपकी फोटो देखकर लोगो को क्रियाये आरम्भ हो जाती थी।
आप महाराज जी की फोटो पर त्राटक कर खुद ही देख ले।
मेरी बात के गवाह कुछ लोग ग्रुप के सदस्य भी है।
किसी न किसी फेस बुक पर भिडंत हो ही जाती है। और वे
अपनी शक्ति का प्रयोग आरम्भ कर देते है। अपने को मालूम पड़ जाता है। बस सुरक्षा हो
जाती है।
मित्रो। आज एक खोज की बात कर रहा हूँ। यद्यपि लोग
अपने आध्यात्मिक अनुभव गूप्त रखते है किंतु मुझसे सनातन की शक्ति प्रदर्शन हेतु ध्यान की विधि mmstm
का निर्माण करवाया गया। जिसके परिणाम अभी तक शत प्रतिशत और
आश्चर्यजनक आये है।
आज मैं वह नाम जप सार्वजनिक कर रहा हूँ। जिसने
महाराष्ट्र के अनेको सन्तो को तारा। नाम देव तुकाराम राखू बाई गोरा कुम्भार सेन
नाई सहित तमाम नाम है।
जो अदीक्षित है उनके लिए कह रहा हूँ। दीक्षित के मन
पर है।
यह नाम जप चमत्कारिक है। आप सिर्फ कुछ मिनट ताली के
साथ हल्की ताली बजाकर गाये। आपको आनन्द का अनुभव होगा।यह मेरा विश्वास है।
नाम जप
बिठ्ठला बिठ्ठला
पांडुरंग पांडुरंग
यह बोलते हुए आंख बंद कर लीन हो जाये। फिर इसका
चमत्कार देखे।
जय विठ्ठल श्री हरि।
मित्रो जहाँ लाभ मिले। निसंकोच ले लेना चाहिए।
स्वर योग शब्द योग मार्ग का दूसरा नाम है। मैं समझता
हूँ। दयालबाग राधा स्वामी मत भी शब्द योग के मार्ग से अंतर्मुखी करते है। अक्षर
ब्रह्म है। स्वर भी अक्षर है अतः यह भी ब्रह्म है। अदीक्षित लोग अवश्य इससे बेहद
लाभान्वित हो सकते है।
जय गुरुदेव।
यह सही है। पर इस नाम जप की विशेषता खोजी है। तब ही
पुनः लोगो को प्रेरित करने का प्रयास किया है।
मैंने ज्वाइन करने की सोंची थी पर इस कारण ज्वाइन नही
किया।
मुस्लिम और ईसाई में सिर्फ मानो और मानो। अपनी बुद्धि
न लगाओ। न कुछ प्रयोग करो न कुछ जानो। जो बोला उसी सीमित दायरे में रह कर असीमित
की बात करो।
यह तो बेईमानी है।
सनातन का सिध्दांत तुमको असीमित बनाता है। अपना अनुभव
करो। अपनी गीता का निर्माण खुद कर सकते हो। चाहे रामपाल जैसे उल्टी खोपड़ी वाले
क्यो न हो।
एक उत्तर फेस बुक पर। जो मैंने दिया।
जय गुरुदेव। जय महाकाली। जय महाकाल।
मेरे शब्दों में द्वैत से अद्वैत की भावना का अनुभव
करना ही अहम ब्रम्हास्मि है।
मित्रो मेरे ब्लॉग पर मॉर्च से अब तक 114 लेख संकलित हो चुके है। लोगो ने
सुंदर टिप्पणियां लिखी है।
सदस्यों से अनुरोध है कि लेख पढ़कर अपने भरमो का
निवारण करे। सत्य से परिचित हो। अपनी टिप्पणी भी दे। ताकि सुधार हो सके।
धन्यवाद।
ब्लाग : freedhyan.blogspot.com
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: https://freedhyan.blogspot.com/
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की
वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास
विपुल खोजी