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Wednesday, September 26, 2018

क्रिया कर्ता कर्म और गुरू : चर्चा


क्रिया कर्ता कर्म और गुरू : चर्चा

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"



एक सुंदर वृतांत।
*एक अनुभवी साधक और एक मित्र का वार्तालाप -*

*मित्र का प्रश्न:* सभी बड़ी और महत्वपूर्ण साधनाओं का मुझे ज्ञान है और मैं रोज साधना करता भी हूँ । पर फिर भी जीवन मे कुछ कमी है क्यों? सबके सामने तो खुश हूं पर दिल मे अंदर कुछ  तृष्णा अभी भी है क्यों ? मैं भी कई सिद्धियां हासिल करना चाहता हूँ । में सभी शिविर भी करता हूँ । और भी बहुत कुछ करता हूँ पर कहाँ कमी रह गयी ? क्या गलत किया ? और क्या करूँ ?

*(- "अच्छा आप बहुत बड़े लेवल के साधक हो?"*

हाँ जी सबसे बड़े लेवल की साधना सीख ली है मैने ।

*-"बहुत सारे शिविर भी किये ?"*

*हाँ जी A category में बिल्कुल आगे बैठ कर करता हूँ ।*

*-"सिद्धियाँ भी आ गयी होगी कुछ?"*

वो तो सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता हूँ कि मुझे सिद्धि मिल गयी पर ईमानदारी से कहूं तो कुछ नही है 

*-"साधना करते हो तो कई बड़े बड़े अनुभव भी हुए होंगे आपको?"*

सच कहूँ तो बस लोगो को बताने के लिए बोल देता हूँ कि मुझे कोई अनोखा अनुभव हुआ पर ईमानदारी से कहूं तो शायद कुछ नही है । कृपया बताएं क्या कमी है ? लेवल 5 या 6 सीख लूं तो ज्यादा सिद्धि मिलेगी

*-"हा हा हा, अच्छा क्योंकि लेवल 6, लेवल 2 से ज्यादा बेहतर है ना ? सही कहा ना जी ?"*

क्यों जी, नही है क्या? बाहर सभी लोग तो यही मानते है । 

*अनुभवी साधक -*"अब ध्यान से सुनिए प्रिय मित्र - आप के प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है - 

*(1) मैं यह नही मान सकता कि साधना की पर कुछ असर नही हुआ । हाँ ये मान सकता हूँ कि जो असर हुआ वो आपको दिखा नही ।  या फिर साधना सच्चे तरीके से नही हो रही बस दिखावा हो रहा है ।* 

*(2) ये बडा ही स्पष्ट है कि हर बार साधना के साथ आप का अहंकार बढ़ता जा रहा है , जैसे कि आप किसी प्रतियोगिता में शामिल हैं । हर बार जो भी करते हो साथ मे अपना अहंकार और बढ़ा लेते हो कि आप कोई बड़े योगी सिद्ध हो गए*

*(3) दूसरे लोगो को नीची दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है । तुमने साधना और शिविर को प्रतियोगिता बना लिया है और हर चीज में अहंकार बढ़ता ही जा रहा है ।* 

*(4) जितना अहंकार बढ़ता जाएगा उतना तुम गुरु से और भगवान से बहुत दूर होते जाओगे। जितना सिद्धि के पीछे भागोगे उतना भगवान से दूर जा रहे हो ।*

*(5) क्या करोगे सिद्धि का? दूसरों पे रौब दिखाओगे? जैसे अभी अपने बड़े साधक होने का रौब दिखाते हो?* 

*(6) हज़ार बार गुरु जी कहते हैं, गुरु के भौतिक शरीर के पीछे मत भागो । इस अहंकार को और मत बढ़ाओ । प्रतियोगिता नही करो । क्या कभी गुरु की बातें ध्यान से सुनते भी हो ?* 

*(7) जीवन मे सरलता लाओ । जितना सरल और निच्छल रहोगे उतना साधना सफल होगी । अहंकार और प्रतियोगिता नही है तुम्हारा उद्देश्य ।  सेवा करो ।  प्रेम करो ।*  

*(8) खुद को शिष्य कहते हो तो गुरु की प्रतिष्ठा का ध्यान रखो, गुरु ने कभी नही कहा कि मूर्ख अहंकारी बन के दुसरो पे रौब दिखाओ ।  क्या ये प्रतियोगिता करना गुरु ने सिखाया है ?* 

*(9) जब गुरु कहते हैं कि उच्च लेवल की साधना करवाऊंगा तो उसका मतलब ये नही कि पुरानी साधना कोई कम थी । उसका अर्थ ये होता है कि अब तुमको और अधिक मेहनत करनी होगी और सरल और निच्छल साधक बनना होगा और शुद्धि लानी होगी । कोई साधना किसी से कम या ज्यादा नही होती । जो तुमको सिखाया है उसी को सच्चे दिल से रोज करो । पर तुम ने हर चीज को अपना अहंकार की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है । एकदम उल्टी दिशा में जा रहे हो ।* 

*(10) हाँथ जोड़ के प्रार्थना करता हूँ गुरु का नाम और साधनाओं को बदनाम नही करना । अहंकारी मत बन जाना, प्रतियोगिता और रौब नही दिखाना । किसी सच्चे का दिल ना दुखाना । तुम सरल बनो । निच्छल प्रेमी बनो । सेवक बनो । सच्चे साधक बनो । एक शब्द राम नाम भी सरल सच्चे मन से जप ले, पार हो जाएगा ।*

*और ये वचन सुन कर जो बुरा लगे तो मुझे माफ करना पर ये समझ लेना, मित्र आपके अंदर छुपे उस अहंकार को चोट लगी है, पर जब वो हटेगा तो ही आप की सही मायनों में मुक्ति होगी ।* 

*गुरु या आपका अहंकार - किसी एक को चुन लो , दोनो में से कोई एक ही आपके जीवन मे रह सकता है ।* 

 *जो गुरु सिखाता है उसको ध्यान से समझो । निष्काम सेवा, साधना, निश्छलता, प्रेम और सरलता को जीवन मे लाओ । ये बखान करना बंद करो और शांत मन से सच्चा कर्म करो ।*

*और जब तक सच्चे साधक न बनो तब तक उनको अपना गुरु ना कहना । क्योंकि गुरु किसी को कभी नही सिखाता ये अहंकार, प्रतियोगिता और अराजकता
*भगवान और गुरु हम सबको सदबुद्धि दे ।

पहले पांच अवगुण होते थे जिनसे छुटकारा पाना बहुत कठिन होता था।
क्राम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार
अब सात हो गये
क्राम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, फेसबुक और व्हाटसैप

मित्रो बुरा न लगे। हर समय मोबाइल को साथ रखना और ध्यान देना ईश प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।

आपको बुरा लगा तो क्षमा मांगता हूँ। पर अनुभव में क्रिया बहुत प्रचलित शब्द है। सब जानते है।
यहाँ शब्दावली की प्रतियोगता नही थी।
सर कलियुग में गूगल गुरू अनन्त भौतिक ज्ञान समेटे हुए है।
मुझसे बेहतर गूगल समझाएंगे।
योग नही। क्रिया और योग।
दोनो अलग है।
क्रिया योग का प्रचार महावतार बाबा के शिष्य श्यामाचरन लाहिड़ी महाराज ने किया।
उसी परम्परा में an autography of himalayan yogi लिखी गई है।
मैंने यह कहा क्रिया और योग अलग है। जबकि क्रिया योग एक अंतर्मुखी होने की विधि।
क्रिया : वह जो कुण्डलनी जागरण के पश्चात अनिको अनुभव देता है। आंतरिक और भौतिक।
योग : आप जानते है।
वेदांत : आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव
श्री कृष्ण और पातंजली ने तुलसीदास ने लक्षण बताये है।
क्रिया योग: कुंभक रेचक और पूरक के साथ मन्त्र जप।
एक विधि अन्यर्मुखी होने की।


मित्र हमारी परम्परा में सब सम्मिलित है। मुझे पातञ्जलि का अष्टांग योग पता है। मैं उनकी धारणा विधि के माध्यम से ही कई रहस्य जान पाया।
हा मुझे किताबी ज्ञान बेहद सीमित है। जो अनुभव है उसी के सहारे जबाब देता हूँ।
आप कृपया पातञ्जलि की क्रिया योग विधि बताने का कष्ट करें।
नई जानकारी हेतु नमन एडवांस में।
हमारी परम्परा में कोई उपदेश नही। सीधे सीधे शिष्य की कुण्डलनी जागृत। जो अनेकों अनुभव देने लगती है। बस।
कुछ सदस्यों की दीक्षा ग्रुप में हुई है। लगभग सभी बौराये बैठे है । आनन्द और अनुभव की सीमाएं लांघ गए है। कभी कभी मुझे भी दुआएं दे देते है।
मित्र अभी आप मन्त्र के विषय मे कुछ नही सीख पाए है अतः मन्त्रो की दुनिया की सलाह न दे।
अधूरा ज्ञान गलत हो सकता है।
आप पहले किसी भी मन्त्र से जो आपका इष्ट या कुल का हो। उससे mmstm करे। जो अनुभव हो बताये फिर आगे बात हो।
देखिये कोई भी हो पहले mmstm करे। जो अनुभव हो वो बताये। ताकि आपके स्तर को समझा जा सके।
बिल्कुल। एक तरह से यह बेसिक परीक्षा हैं जो उत्तीर्ण होना आवषयक है।
ओह। उस परम्परा के सन्यासी को मैं समझता हूँ। बिना अनुभव सन्यासी बन बैठते है।
मेरे सम्पर्क में एक आये थे बोले 16 साल से ओशो सन्यासी हूँ लोगो को सिखाता हूँ। पर कोई अनुभव नही।
धाकड़ जी आप भाई से पूछ लें क्या वह मुक्ति चाहते है।
यार यह ग्रुप के सदस्य है इनकी माता जी को देवी का सायुज्य प्राप्त है। इनकी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं है। जो विज्ञान नही मानता पर घट रही है।
तुम mmstm करो जान जाओगे। मैं तो अंगूठा भी नही रखता। क्या बोलू। ग्रुप के पहले के कुछ सदस्यों को सिर्फ बोलकर क्या से क्या हो गया था।
गुरोके कर्म मर्यादा असीमित है।
यदि अनुभव न हो तो कर के देख लो। अपने गुरू मन्त्र के साथ। अनुभव है तो अपनी गुरू शक्ति या शिव या कृष्ण या किसी देव से पूछ लेना। बस।
यह सब सिद्धियां है जो मार्ग की भारी रुकावट है।
सिद्धया सिद्ध पुरुष के साथ खुद हो जाती है। पर यह बन्धनकारी और विनाक होती है।
सर जी इस ग्रुप में ही कई प्रकार के ओशो के बाप लोग मौजूद है।
ओशो एक भटका अपूर्ण ज्ञानी बच्चा ही था।
रावण ज्ञानी था पर था पापी। फिर उसका तिरस्कार क्यो। ओशो भी उसी कैडर का था।
प्रायः लोग उसके लेख पढ़कर प्रवचन सुनकर मोहित हो जाते है। पर उसकी सोंच और आंतरिक कर्म तक नही पहुँच पाते।
यह अहंकार नही है। जगत को सत्य बताना है।
कैकेई ने जगत पर कल्याण किया। राम को वन भेजकर रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर राम की महानता को जगत को सामने आने का मौका दिया।
शबरी ने प्रेमल भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। दोनो की कोई तुलना नही।
जिस भांति कौओं के मुख से वेद वाणी नही सुहाती उसी प्रकार पापी के मुख से ज्ञान शोभा नही देता।


ओशो को मैं पापी भटका अपूर्ण ज्ञानी मानता हूं।
हर गुरू परम्परा की शक्ति अलग होती है। जब वे टकराती है तो शिष्य का नुकसान हो सकता है।
यदि एक साधारण गुरू हो तो परेशानी नही होती है  क्योंकि शक्तिपात के कौल गुरू से अधिक कोई शक्तिशाली नही होता है। अतः किसी भी दीक्षा के बाद शक्तिपात दीक्षा में कोई हर्ज नही। पर अन्य परम्पराओं में यह बात नही होती है।
यू समझो पी एच डी वाला किसी का गाइड बन सकता है। शक्तिपात पी एच डी होती है।


क्या बात।
कबीरा इस बाजार में। दुखिया सब संसार।।
विपुल पापी संसार मे। रोवे सभी संसार।।
नही सोंच जब समय था। इतना कम जप यार।।


कोमल जी सिर्फ भटक रही है इसीलिए भुगत रही है। स्पष्ट है। जो बोला वह करना नही। जो करना नही वह पूछना। व्यर्थ की बकवास कर समय नष्ट करना।
और अधिक क्या बोलू।
आप जिसको संकट में याद करे। जिसका नाम निकले वह आपका इष्ट।
जिसका जप जाने अनजाने कर चुके है कर रहे है वह इष्ट।
जो अच्छा लगे वह इष्ट।
जिसका नाम आनन्द दे वह इष्ट।
आपकी शक्ति का समार्थ्य मैंने देखा। मुझे मुरारी बापू गुरू दत्त मौलेश्वर महाराज आसाराम बापू सहित तमाम लोगो ने सिर पर हाथ रखने से मना कर दिया था। मैं जब मरनासन्न होता था। तब मेरे प्रथम गुरू महाकाली की शक्ति को जब प्रथम देही गुरू स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज सम्भाल न पाए थे। तब आपने तीन बार तालू पर हाथ मारकर मेरी क्रियाओं और शक्तियों को दबा दिया था।
जो बाद में 24 साल के जप के बाद पुनः सक्रिय हुई।
स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज उस स्तर की विशेष दीक्षा देते थे। उस शक्ति से किसी साधारण को हाथ रख दे तो सामनेवाले की मौत तक हो जाये।
शक्ति के खेल का अनुभव मैं समझता हूँ मुझसे अधिक किसी ने न देखा होगा।
जय गुरूदेव।
आपकी फोटो देखकर लोगो को क्रियाये आरम्भ हो जाती थी।
आप महाराज जी की फोटो पर त्राटक कर खुद ही देख ले।
मेरी बात के गवाह कुछ लोग ग्रुप के सदस्य भी है।


किसी न किसी फेस बुक पर भिडंत हो ही जाती है। और वे अपनी शक्ति का प्रयोग आरम्भ कर देते है। अपने को मालूम पड़ जाता है। बस सुरक्षा हो जाती है।
मित्रो। आज एक खोज की बात कर रहा हूँ। यद्यपि लोग अपने आध्यात्मिक अनुभव गूप्त रखते है किंतु मुझसे सनातन की शक्ति प्रदर्शन  हेतु ध्यान की विधि mmstm का निर्माण करवाया गया। जिसके परिणाम अभी तक शत प्रतिशत और आश्चर्यजनक आये है।
आज मैं वह नाम जप सार्वजनिक कर रहा हूँ। जिसने महाराष्ट्र के अनेको सन्तो को तारा। नाम देव तुकाराम राखू बाई गोरा कुम्भार सेन नाई सहित तमाम नाम है।
जो अदीक्षित है उनके लिए कह रहा हूँ। दीक्षित के मन पर है।
यह नाम जप चमत्कारिक है। आप सिर्फ कुछ मिनट ताली के साथ हल्की ताली बजाकर गाये। आपको आनन्द का अनुभव होगा।यह मेरा विश्वास है।
नाम जप
बिठ्ठला बिठ्ठला 
पांडुरंग पांडुरंग
यह बोलते हुए आंख बंद कर लीन हो जाये। फिर इसका चमत्कार देखे।
जय विठ्ठल श्री हरि।

मित्रो जहाँ लाभ मिले। निसंकोच ले लेना चाहिए। 
स्वर योग शब्द योग मार्ग का दूसरा नाम है। मैं समझता हूँ। दयालबाग राधा स्वामी मत भी शब्द योग के मार्ग से अंतर्मुखी करते है। अक्षर ब्रह्म है। स्वर भी अक्षर है अतः यह भी ब्रह्म है। अदीक्षित लोग अवश्य इससे बेहद लाभान्वित हो सकते है।
जय गुरुदेव।


यह सही है। पर इस नाम जप की विशेषता खोजी है। तब ही पुनः लोगो को प्रेरित करने का प्रयास किया है।
मैंने ज्वाइन करने की सोंची थी पर इस कारण ज्वाइन नही किया।

मुस्लिम और ईसाई में सिर्फ मानो और मानो। अपनी बुद्धि न लगाओ। न कुछ प्रयोग करो न कुछ जानो। जो बोला उसी सीमित दायरे में रह कर असीमित की बात करो।
यह तो बेईमानी है।
सनातन का सिध्दांत तुमको असीमित बनाता है। अपना अनुभव करो। अपनी गीता का निर्माण खुद कर सकते हो। चाहे रामपाल जैसे उल्टी खोपड़ी वाले क्यो न हो।


एक उत्तर फेस बुक पर। जो मैंने दिया।
जय गुरुदेव। जय महाकाली। जय महाकाल।
मेरे शब्दों में द्वैत से अद्वैत की भावना का अनुभव करना ही अहम ब्रम्हास्मि है।
मित्रो मेरे ब्लॉग पर मॉर्च से अब तक 114 लेख संकलित हो चुके है। लोगो ने सुंदर टिप्पणियां लिखी है।
सदस्यों से अनुरोध है कि लेख पढ़कर अपने भरमो का निवारण करे। सत्य से परिचित हो। अपनी टिप्पणी भी दे। ताकि सुधार हो सके।
धन्यवाद।
ब्लाग : freedhyan.blogspot.com




"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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विश्‍वमन और विश्‍वबुद्धि



विश्‍वमन और विश्‍वबुद्धि

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

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जिस प्रकार ईश्‍वरद्वारा निर्मित मनुष्य, प्राणी आदिको मन एवं बुद्धि होती है, उसी प्रकार ईश्‍वरद्वारा निर्मित संपूर्ण विश्‍वके विश्‍वमन और विश्‍वबुद्धि होते हैं, जिनमें विश्‍वके सम्बंधमें पूर्णतः विशुद्ध (सत्य) जानकारी संग्रहित होती है । इसे ईश्‍वरीय मन तथा बुद्धि भी कहा जा सकता है । जैसे ही किसीका आध्यात्मिक विकास आरंभ होने लगता है, उसके सूक्ष्म मन एवं बुद्धि विश्‍वमन एवं विश्‍वबुद्धिमें विलीन होने लगते हैं । इसी माध्यमसे व्यक्तिको ईश्‍वरकी निर्मितीका ज्ञान पता चलने लगता है ।

मित्र यह आपका स्नेहवश भरम है। मैं कोई गुरु नही हूँ। हा सनातन का सेवक बनने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सब प्रभु कृपा है गुरू महाराज की दया है कि मुझे सनातन की शक्ति को प्रचारित करने का सौभाग्य मिला।
आप सबका आशीष और सहयोग मिलता रहे। बस यही कामना है।
मित्रो मैं उन सदस्यों को कुछ कहना चाहता हूँ जो दीक्षित है। खासतौर पर उनको जिनको दीक्षा के पहले कुछ अनुभव हुए थे। वो भी जिनको नही थे और बाद में भी शांत अनुभव हो रहे है।
आप गुरू की महत्ता नही जानते है। न समझते है। क्योंकि जिनकी दीक्षा को मैंने देखा वो भी आज न दिखे। जबकि आज गुरू पूर्णिमा है। मित्रो यूं तो यदि आपका गुरू आपसे भौतिक रूप में दूर है पर वह सदैव आपके साथ हैं। आप अनुभव कर लेना कभी।
जिनके गुरू कुछ दूरी पर है और आप जा सकते है आपको जाना चाहिए क्योंकि गुरू का भौतिक आशीष दूर के आशीष से अधिक प्रभावशाली होता है। नही तो कम से गुरु पूर्णिमा और महा शिव रात्रि को तो जाना ही चाहिए।
आप कोई भी कर्म सनातन संगत नही करते पर आपको अनुभव और आशीष सब चाहिए।
आप मेरी एक बात गांठ बांध लें आप कुछ भी पर बिना गुरू श्रध्दा आप सबकुछ पाकर भी खाली हाथ है । आपको ज्ञान ध्यान थोड़ा बहुत मिल सकता है परंतु परमपद कभी नही।
यह क्या रोना धोना। अरे आना था तो प्लान कर टिकट लेकर आ नही सकते। पर करना कुछ नही रोना धोना।
अरे गर्मी की छुट्टी इतनी मिलती है। क्या किया। क्या सोंचा।
कभी भी छुट्टी मिले प्रयास करो। प्लान करो।
करो कुछ नही। इधर उधर भटको यह अनुभव दो वो दो। अरे गुरू पर श्रदा करो। उसके द्वारा प्रदत्त साधन करो। समय आने पर सब मिल जाता है।
मुझको ही देखते हो। इतने अनुभव होने के बाद भी 25 साल तक सिर्फ गुरू प्रदत्त साधन और मन्त्र जप चुपचाप करता रहा। तुम लोग तो जरा से अनुभव से पागल होकर बहकने लगते हो। तुर्रमखां हो जाते हो।
मेरे बारे में कोई नही जानता था जब तक मैं खुद न बोला।
फिर बकवास। बहुत महान हो सूक्ष्म में मिलोगे। दुनिया मे ढिढोरा पिटोगे।
जब ट्रेन गाड़ी है तो उसकी बात क्यो नही। हर जगह बकवास और आधायतम की बखिया उधेड़ोगे।
तुमको हुआ क्या। यह सब पड़ाव है। अनुभव है । अनुभव सिर्फ एक पड़ाव होते है। इनमे फंसना यानी गाड़ी रुक जाना।
चुपचाप साधन करते रहो। बस।
कही कुछ नही। अपने पिता जी का घर नही। सब मन की चालबाजियों है।
क्या मुक्ति । बकवास से मोबाइल से मुक्त नही हुए। जीवन से मुक्ति। महा बकवास है यह सोंच।


रहा सवाल मन्त्रो का। गुरू मन्त्र एक अवस्था के बाद वहां पहुचाता है कि मन्त्र ज्ञान सब खुद प्रकट होते है। मन्त्र खुद निवेदन करते है। यह करो यह सिद्दी मिलेगी। वह होगा। पर यह भी बन्धन है।
सिध्दियां ज्ञान और मुक्ति की सबसे बड़ी रुकावटे है।
बिना इनको किसी को दिए आप मुक्त ही नही हो सकते।
अतः सिद्दियों का चक्कर छोड़ो। यह गहन चक्कर बना देगा। 
देखा नही सिध्द लोग सैकड़ो साल तक धरती पर सत्वगुणी भटकाव करते रहते है। चाहे गोरखनाथ हो या महावतार बाबा हो चाहे तमाम सिध्द पुरुष।
आप लोग गूगल पर सर्च करके अपना भौतिक ज्ञान बढ़ाये। विभिन्न सन्तो की फिल्में भी दी है।    वह भी आप देखे। तमाम वेद गीता का किताबी ज्ञान भी भरा है उसको देखे पढ़े अवलोकन करें।
इससे आपकी तमाम बातें और प्रश्न स्पष्ट होंगे।
हा नकली और गन्दा साहित्य भी है तो आप जरा बच कर ही रहे।
गूगल गुरू को मेरा कोटिशः प्रणाम।
यदि नही ली है तो तुंरन्त ले। यह आपको क्रिया  होती है। शक्तिपात गुरू से दीक्षा ले। इसे नियंत्रित करना सीखें। अनियंत्रित ऊर्जा प्रायः भारी पड़ जाती है। मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। या मनुष्य पागल हो सकता है।
आप तुंरन्त मुझे व्यक्तिगत सन्देश से सम्पर्क करें।


यह प्रणायाम का रूप है। आप mmstm करे फिर बताये। आपको दीर्घ कुम्भक लग रहा है
जय हो। बेहद सुंदर बात। श्रीराम शर्मा आचार्य तेजस्वी महापुरुष थे। उनका जन्म गायत्री प्रचार हेतु ही हुआ था। वे गायत्री के दूसरे रूप ही बन गए थे।
पहले यह बोलते थे कि गायत्री पर सिर्फ ब्राह्मणों का अधिकार है।
किसी की गुरू आस्था को ठेस लगाना उचित नही।यह गलत है।
क्रोध से विवेक का नाश होता है। जिससे बुद्धी नष्ट हो जाती है और मनुष्य मतिमूढ़ होकर


मित्रो बाल गीतों की यह पुस्तक, जिसके कुछ गीत तो बेहद अनूठे है। जिसमे महापुरूषो सन्तो और प्रकृति की कुल 51 कविताएं दी है। आज छपकर आ गई। 
यदि आप इसको प्राप्त करना चाहते है और अपने नौनिहालों को प्रकृति और देश प्रेम के साथ अच्छे संस्कार देना चाहते है तो इस पुस्तक की कविताएं बच्चों को याद करवाये।
मेरा दावा है आपका बच्चा विद्यालय में पुरुस्कार तो अवश्य जीतकर लाएगा।
फ़ॉर कलर चित्रों युक्त इस पुस्तक का मूल्य मात्र 125 रुपये है।
जी इस पुस्तक का आरम्भ आध्यात्मिक ज्ञान से ही हुआ है। बच्चों को संस्कारी कैसे बनाये। इस पर भी चर्चा है। यह पुस्तक बच्चों में भारतीय संस्कार, देश प्रेम और प्रकृति से प्रेम करना सिखाएगा।
जो व्यक्ति प्रकृति से प्रेम नही करता। वह आध्यात्मिक हो ही नही सकता।
गणेश जी की बाल वंदना देख ले।
श्रीकृष्ण की बाल वंदना।
श्री गुरुवर की बाल प्रार्थना।
माँ सरस्वती की वंदना।
विपश्यना में सांस पर ध्यान लगाते है और अप्रत्यक्ष रूप में सो अहम का जाप ही करते है। पर लोग मन्त्र जानते नही अनजाने में अजपा जप करते है
कुछ भी हो यह भारतीय सनातन की जीत और प्रतिष्ठा को बढ़ाती है।
अपने को देखो। जगत को देखना बन्द करो। इसी में कल्याण है।

जी क्रिया आंख खोलकर बिना ध्यान के भी हो सकती है। जिसे गुरू नियंत्रित करना सिखाता है।
यार यह तो आप ही सोंच सकते है। मैं कैसे बताऊँ। क्या आप बिना विचार के सब देखते है तो दृष्टा भाव है।
यह सबसे अच्छा है। यदि आपकी बुद्धि प्लेन है। उल्टे सीधे षडयंत्रो से मुक्त है। आप झूठ नही बोलते तो ईश कृपा जल्दी होती है।
कभी भी बहुत चतुर स्याना व्यक्ति ईश को प्राप्त नही कर सकता। धूर्त और झूठा तो कभी नही।
लोग तर्क जीतने के लिए झूठ का सहारा लेते है।
हमेशा जो ह्रदय है वो ही बाहर रखो।
मन मे कुछ जीभ पर कुछ है तो कभी प्रभु कृपा न मिलेगी।
गधे सी बुध्दि ही ईश्वर को प्रिय है। घोड़े या सियार की नही।
प्रयास करो साथ न दो। मतलब सिर्फ मित्रता रखो।
मतलब उनके लिए तुम झूठ न बोलो।
देखो प्राण रक्षा हेतु या धर्म रक्षा हेतु झूठ माफ है
सबकी बुद्दी सबका ज्ञान। सबका अनुभव एक सा नही होता है।
यह सही है। कलियुग इसी का नाम है।
दरवाजे पर भगवान बैठा है। जरा सा द्वार खोलो। पर कोई विश्वास नही करता
यह  प्रतीयमान जगत,विचार के सिवा अन्य कुछ भी नहीं है। जब मन सभी प्रकार के विचारों से मुक्त हो जाता है, उस समय व्यक्ति की दृष्टि से यह जगत-प्रपंच भी ओझल हो जाता है, और मन - निजानन्द या स्वयं के  आनंद का भोग करता है।
मित्र। विज्ञान कभी सोंच को नही रोकता बल्कि संतुष्ट करता है।
मैंने ग्रुप में पच्चीसों admin बनाये है। जो अनुशासित हैं।
प्रश्न पूछने का अधिकार होना ही चाहिए। यह मेरा विचार है।
जो गलत पोस्ट करे। आप निसंकोच निकाल के बाहर कर दे।
यदि वह माफी मांगे तो फिर जोड़ दे।
जी मतलब वह पहले आपको पोस्ट करें। फिर इंतजार करें। यह कौन सी बात। और लोग भी प्रश्न को जाने।
कोई कोई प्रश्न जन कल्याण हेतु भी पूछे जाते है।
ग्रुप में अनिल कुमार इसी लिए प्रश्न पूछता है।
जैसे कुछ अज्ञानी ज्ञानी ईश को सिर्फ निराकार बता कर दुकान चला रहे है। यदि ताकत होगी तो आप साकार सिद्ध कर देंगे। मतलब साकार भी निराकार भी।
एक मित्र ने वेद वाणी का उदाहरण देकर आर्य समाज की पूरी सोंच को सीमित कर दिया।
अब जो न माने यह उसकी झक्क है।


सनातन में कहा गया है यदि कही आध्यात्मिक विवाद हो तो वेद वाणी ही अंतिम और मान्य होगी।
यदि आपकी वानी सत्य होगी तो वेद में दी होगी।
यही मैं कहता हूँ। पर जिसका जो अनुभव वह सत्य आप थोप नही सकते। यह अवस्था है पहली कक्षा का विद्यार्थी उसी को सही मानेगा। आप दसवीं कैसे समझाएँगे। यदि समझाते है तो यह आपकी मूर्खता है। आप उसको सारे क्लास पढ़ाकर 10 वी तक लाये।
यही करना लोग भूल जाते है। सीधे सीधे 10 वी बात।
बात भटक गई।
आप गलत बात पर ग्रुप से लोगो को निकालेंगे तो लोग समझ जायेंगे और ग्रुप में बने रहेंगे। मैं किसी को ग्रुप में रुकने हेतु हाथ नही जोड़ता। जिसका प्रारब्ध है वो ही ज्ञान लेगा। बाकी जिसको जाना हो जाये।
मैं तो ईश का काम मॉनकर कर रहा हूँ। उसकी जो इच्छा। मेरी कोई इच्छा नही।
मैं कभी अपने महाराज जी के प्रवचनों का प्रचार नही करता। कारण अधिकतर लोग समझ ही नही पायेगे।


उनको समझने के लिए भी उच्च कोटि का स्तर चाहिए।
एक उदाहरण दे रहा हूँ।
एक प्रश्न था। ग्रुप में देखे कौन समझ पाता है।
क्या मृत्यु भी एक क्रिया है।
समस्या यही है। उनके प्रवचन लोग समझ ही पाते। यही आपका उत्तर है। वह जहाँ प्रवचन देते थे वह उनके आश्रम के शिष्य होते थे। जिनको कुण्डलनी जागरण और आत्ममय अनुभव थे। तो वह समझ जाते थे। मतलब महाराज जी सभी पोस्ट ग्रेजुएट क्षात्रों को ही प्रवचन देते थे। अब जो d.sc. होगा वह गली कूंचों में तो प्रवचन देगा तो बेकार जाएगा।
सर मेरे ब्लॉग पर मेरी स्वकथा 13 भागो में लिखी है। आप पढ़ने का कष्ट करें। बार बार बोलना या लिखना अजीब है। यह आत्मश्लाघा होगी।
चलिए। ग्रुप की टेस्टिंग है। उत्तर है मृत्यु भी एक क्रिया है। पर आप ज्ञानीजन बताये क्यो।
योग सिखाया या योगासन सिखाया।
योग आंतरिक होता है। अनुभव होता है। वह तो कोई समर्थ गुरू ही सिखा सकता है।
मात्र प्रणायाम या आसन योग नही। पातञ्जलि के अष्टांग योग के आठ अंगों में से मात्र दो अंग।
सर। यह आपकी व्याख्या है। पर क्रिया योग में बताये।
आप रेकी के सुपर मास्टर है। पर शक्तिपात दीक्षित भी है। कुछ और सोंचे।
नही यार 100 में 35 नम्बर। वो भी partiality में। क्योकि मैं तुम्हे विशेष प्रेम करता हूँ। 
अब देखो। महाराज जी का एक वाक्य समझ से परे जा रहा है।
मतलब महाराज जी की गहराई कौन नाप सकता है।
हाथ ऊपर।
पहले बताओ क्रिया क्यो होती है।
जोर दो क्रिया क्यो होती है। इसी में उत्तर छिपा है।
संस्कार न हो तो क्या होगा। यह क्लू है।
सही है। मतलब जीवन नही। जब जीवन नही तो मृत्यु नही।
तो मृत्यु क्या है। जब तक संस्कार है। जीवन मरण के चक्कर लगते रहेगे।
मृत्यु रूपी अंतिम क्रिया होती रहेगी।
जब संस्कार नष्ट। पातञ्जलि के अनुसार चित्त में कोई वृति नही। मतलब जन्म नही।
अब समझे। यह था मात्र एक वाक्य महाराज जी का सब उल्टे हो गए।
भाई आप उम्र में छोटे पर ज्ञान में बड़े है।
आपको नमन।
चलो कोई तो है जो ध्यान से मेरी बकवास सुनता है।
मोगैम्बो खुश हुआ।
यार बस फेल हो गए। अब योग मत पढ़ाओ।
यार मस्त रहो। व्यस्त रहो।
अस्त व्यस्त मत रहो।


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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