क्यो खतरनाक है यू ट्यूब की साधनाये।
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
मेरे पास कुछ ऐसे लोग व्हाट्सएप ग्रुप और व्यक्तिगत भी आते
है जो यू ट्यूब को देखकर चक्र साधना, कुण्डलनी जागरण, या क्रिया योग या
अन्य कुछ आरंभ करते है। कुछ दिनों बाद अधिकतर लोग आज्ञा
चक्र या कनपटी पर तीव्र दर्द, कमर में दर्द, अत्याधिक पसीना, खुजली, दाने इत्यादि की
शिकायत करते है। कोई कोई तो अनुभव से भयभीत होकर सलाह मागने लगता
है।
चलिए आज इस पर चर्चा की जाए। मेरे खुद के अनुभवों से जो सार निकलता है उस
पर विचार रखता हूँ।
देखिये
परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति
बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो, कीडे – मकोडे, जानवर या फिर मनुष्य
योनी। चित्त में भी कर्मफल बीज के रूप संचित होते हैं। यानी बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक
माना गया है।बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है। हिन्दू धरम में सभी
देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को
बीज मंत्र कहा गया है।
वस्तुतः बीजमंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं। इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति होती है। और यह समग्र शक्ति मिलकर समवेत रूप में किसी एक देवता के स्वरूप का संकेत देती है। जैसे बरगद के बीज को बोने और सींचने के बाद वह वट वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी जप एवं अनुष्ठान के बाद अपने देवता का साक्षात्कार करा देता है।
अब
आप कुछ समझे होंगे। वास्तव में ध्यान चाहे वह कोई भी विधि हो। त्राटक, विपश्यना, शब्द, नाद, स्पर्श योग या मन्त्र जप
या और कुछ। इनके द्वारा हमारी ऊर्जा बढ़ती है। आप जानते है शक्ति मतलब
ऊर्जा। अब होता यह है यदि हमारे शरीर को इस प्रकार की ऊर्जा सहने की
आदत नही होती तो हमको रोग या शारीरिक कष्ट हो सकते है।
आप जानते है ऊर्जा मतलब hn h is plank
constant n is frequency. इस कारण विभिन्न विधियों और मन्त्रो के अलग अलग
ऊर्जा के आयाम अलग आवृत्तियों के कारण हो जाते है।
उदाहरण आपने किसी विशेष चक्र पर उसके बीज मंत्र से ध्यान
किया। उस ऊर्जायित आयाम के कारण चक्र के बीज मंत्र उद्देलित हो
गए। अब चक्र की एक विशिष्ट ऊर्जा निकली। उस चक्र के ऊपर नीचे का चक्र तो
जागृत नही तो यह ऊर्जा कहा से निकलेगी। रास्ता न मिलने पर यह रोग
पैदा कर सकता है जो असाध्य भी हो सकता है।
यदि आपके चक्र कुण्डलनी जागरण के पश्चात मूलाधार को
भेदकर धीरे धीरे ऊपर के चक्रो में आते है तो यह ऊर्जा नीचे
के चक्रो से निकल जाती है और शरीर मे रोग नही होता।
अब यदि बिना कुण्डलनी जगे चक्रो के बीज मंत्र उर्जित हो गए तो भगवान मालिक।
वही
समर्थ गुरु अपनी ऊर्जा से शिष्य की अधिक ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है।
अब मान लीजिए आपने त्राटक किया वह भी बिंदु या रंग और जो निराकार है। तो आपके आज्ञा चक्र की ऊर्जा बढ़ी। यदि वह बाहर नही निकल पाई तो वह आपके मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को प्रभावित कर सकती है। ये न्यूरॉन्स बहुत कोमल और याददाश्त को गुत्थियों में संग्रहित करते है। इस कारण आपका मस्तिष्क संतुलन बिगड़ सकता है। आप जिद्दी या कुछ हद तक पागल भी हो सकते है।
इस सबका एक ही उपचार है कि प्रणायाम के
द्वारा अपनी अतिरिक्त ऊर्जा को श्वास से बाहर निकाले और आसनों द्वारा शरीर मजबूत
करे।
यदि यह नही कर सकते हो किसी साकार मन्त्र का जप करे। यह जाप सुनार के हथौड़े की चोट कर आपके शरीर और
चक्रो को कम्पन देकर उन्हें ऊर्जा सहने लायक बनाता है।
समस्या
वहाँ अधिक आती है जो निराकार विधियों से ध्यान करता है। क्योंकि निराकार आकार रहित होता है तो आपकी ऊर्जा जो
ब्रह्म शक्ति का रुप है वह आपको किस रूप में किस प्रकार सहायता करेगी।
वही साकार मन्त्र जप और
विधियाँ उस ब्रह्म शक्ति को उस मन्त्र के सगुण रूप में आने को विवश हो जाती है।
सहायता करने के अतिरिक्त वह उस साकार और मन्त्र संकल्पना का रूप धारण कर
दर्शन देकर अतिरिक्त ऊर्जा को शारीरिक ऊर्जा में समाहित कर देती है।
आप देखे माउंट आबू में मस्तिष्क रोगी अधिकतर पाए है।
जो नही वह किसी हद तक झक्की हो जाते है। कारण वहाँ जो है वह कुण्डलनी
शक्ति मानते नहीं। गुरु मानते नही। लाल प्रकाश जो मूलाधार का रंग है उस प्रकाश
पर निराकार त्राटक करवाते है। पति पत्नी के बीच सम्बन्ध से जो ऊर्जा
निकलती है उसे रोककर दोनो को भाई बहन बना देते है। तो ऊर्जा किधर जाए।
लिखने को हर विधि पर हैं पर संक्षेप में आप कोई भी विधि यदि
साकार सगुण करते है तो खतरा कम। दूसरे सबसे सरल सहज आसान है
मन्त्र जप। नाम जप। आपको जो इष्ट अच्छा लगे उसका मन्त्र जप करे। सघन सतत
निरन्तर। यह साकार मन्त्र आपको आपके गुरू से लेकर निराकार तक की यात्राओं
के अतिरिक्त ब्रह्म ज्ञान भी दे जाएगा। बस अपने इष्ट को समर्पित होने
का प्रयास करो।
जय
महाकाली। जय गुरुदेव।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की
वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास
विपुल खोजी
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