दीपावली एक : अर्थ अनेक
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
बृहदारण्यक उपनिषद की ये
प्रार्थना जिसमें प्रकाश उत्सव चित्रित है जो वास्तव में सनातन की दीवावली या
दीवाली को समझाता है।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा
ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
असत्य से सत्य की ओर। अंधकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर।(हमें ले जाओ) ॐ शांति शांति शांति।।
मृत्यु से अमरता की ओर।(हमें ले जाओ) ॐ शांति शांति शांति।।
भारत रत्न अटल बिहारी बाजपई की प्रकाश पर्व की यह
रचना भी ऐसा ही कुछ कहती है।
जब मन
में हो मौज बहारों की, चमकाएं चमक सितारों की।
जब
ख़ुशियों के शुभ घेरे हों, तन्हाई में
भी मेले हों।
आनंद
की आभा होती है, उस रोज़ 'दिवाली'
होती है॥
जब
प्रेम के दीपक जलते हों, सपने जब सच में बदलते हों।
मन में
हो मधुरता भावों की, जब लहके फ़सलें चावों की।
उत्साह
की आभा होती है, उस रोज दिवाली होती है॥
जब
प्रेम से मीत बुलाते हों, दुश्मन भी गले लगाते हों।
जब
कहीं किसी से वैर न हो, सब अपने हों, कोई
ग़ैर न हो।
अपनत्व
की आभा होती है, उस रोज़ दिवाली होती है॥
जब
तन-मन-जीवन सज जायें, सद्-भाव के
बाजे बज जायें।
महकाए
ख़ुशबू ख़ुशियों की, मुस्काएं चंदनिया सुधियों की।
तृप्ति
की आभा होती है, उस रोज़ 'दिवाली' होती है॥
दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का
त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन
हिंदू त्योहार है। विश्व के कई देशों में जैसे नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर दीपावली एक
सरकारी अवकाश है।
दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप'
अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'श्रृंखला'
के मिश्रण से हुई है। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली
जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे :
'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली' (बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम: ദീപാവലി, तमिल: தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती: દિવાળી, हिन्दी, दिवाली, मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी), 'दियारी' (सिंधी:दियारी), और 'तिहार' (नेपाली) मारवाड़ी में दियाळी।
इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के
लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के
मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से दीपावली पर घरों व दफ्तरों की साफ-सफाई व
रंगाई-पुताई तो इस आस्था एवं विश्वास के साथ की जाती है, ताकि श्री
लक्ष्मी जी यहां वास करें। लेकिन, इस आस्था व विश्वास के
चलते वर्षा ऋतु से उत्पन्न गन्दगी समाप्त हो जाती है। दीपावली पर दीपों की माला
जलाई जाती है। घी व वनस्पति तेल से जलने वाल दीप न केवल वातावरण की दुर्गन्ध को
समाप्त सुगन्धित बनाते हैं, बल्कि वातावरण में सक्रिय
कीटाणुओं व विषाणुओं को समाप्त करके एकदम स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते हैं।
कहना न होगा कि दीपावली के दीपों का स्थान बिजली से जलने वाली रंग-बिरंगे बल्बों
की लड़ियां कभी नहीं ले सकतीं। इसलिए हमें इस ‘प्रकाश-पर्व’
को पारंपरिक रूप मे ही मनाना चाहिए।
पुराणो के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम
अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का
ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत
में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की
रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास
से मनाते हैं।
प्राचीन काल से दीवाली को हिंदू
कैलेंडर के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया
गया। दीवाली का पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों
में उल्लेख मिलता है जो माना जाता है कि पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में
किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में
सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य
जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार
कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते
हैं। नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान,
सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में दर्ज़ की गयी है।
7 वीं शताब्दी के
संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव:
कहा है जिसमें दिये जलाये जाते थे और नव दुल्हन और दूल्हे को तोहफे दिए जाते थे।
9 वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका
कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था। फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने 11
वीं सदी के संस्मरण में, दीवाली को कार्तिक
महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार कहा है।
भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों
में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।इस दिन से नेपाल संवत में
नया वर्ष शुरू होता है। दीपावली धन की देवी लक्ष्मी के सम्मान में मनाई जाती
है। मारवाडी चोपडों की पूजा करते हैं। क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों
में बदलाव पाया जाता है। धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं
की पूजा की जाती है।
हिंदू दर्शन में योग,
वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह
विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर
ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है। लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं
को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं। कुछ
दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप
में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन
उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक
दुखों से दूर सुखी रहते हैं।
भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी
की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा
कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में
इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत
में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों
का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत
है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस
राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के
दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी
दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी
दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। सिक्खों के लिए भी दीवाली
महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ
था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे
गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा
किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व
महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान
करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति
के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया।
इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल
सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से
मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार
के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में
समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों
में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
दीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन
और सिख
समुदाय के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है। ये,
श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन शामिल संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमेरिका। भारतीय
संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीवाली मानाने
वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों
द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में
यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इन देशों में अधिकांशतः
दीवाली को कुछ मामूली बदलाव के साथ मनाया जाता है।
दीपावली के दिन भारत में विभिन्न
स्थानों पर मेले लगते हैं। दीपावली एक दिन का
पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की
तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। धनतेरस
के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक
जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती
है। इस दिन यम पूजा हेतु
दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर
उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन
लोग अपने गाय-बैलों
को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते
हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज
या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना
नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर
उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली
के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी
पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष
अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज
अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।
दुनिया के अन्य प्रमुख त्योहारों के
साथ ही दीवाली का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव चिंता योग्य है। दीवाली की
आतिशबाजी के दौरान भारत में जलने की चोटों में वृद्धि पायी गयी है। अनार नामक एक
आतशबाज़ी को 65% चोटों का कारण पाया गया है। अधिकांशतः
वयस्क इसका शिकार होते हैं। समाचार पत्र, घाव पर समुचित
नर्सिंग के साथ प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए जले हुए हिस्से पर तुरंत ठंडे
पानी को छिड़कने की सलाह देते हैं अधिकांश चोटें छोटी ही होती हैं जो प्राथमिक
उपचार के बाद भर जाती हैं।
आधुनिक युग में चाहे व्यक्ति मंगल पर पहुंच गया है मगर
तंत्र-मंत्र में उसका विश्वास अडिग बना हुआ है। शास्त्रों में सांकेतिक भाषा में
तंत्र-मंत्र के संबंध में कहा गया है। तंत्रशास्त्र में दो बातें मिलती हैं पहला
साधना का फल व दूसरा विधि का अंश। विधि विधान संकेतों में बताए गए हैं। किस
मनोभूमि का व्यक्ति, किस काल, किन
मंत्रों का किन उपकरणों द्वारा क्या प्रयोग करें, यह सब
संकेत सूत्र में छिपाकर रखा गया है।
संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार
हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थ, पुरुषार्थ, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा,
ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद
मुहुर्त होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता
तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक
क्रियाएं करते हैं। इन महूर्तों में सर्वाधिक प्रबल महूर्त हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र
व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता
है।
तंत्रशास्त्र गुप्त इस कारण है कि अनाधिकारी
लोग इसे प्रयोग न कर सकें। साधना और उसके विधि-विधान को गुप्त रखने के अनेक
आध्यात्मिक कारण है। तंत्रशास्त्र में अनेक विधान हैं जैसे की टोना, टोटका, उपाय, उतारा, साधना सिद्धि आदि। टोना का उपयोग शत्रु के अनिष्ट के लिए होता है। जबकि
टोटका स्वार्थ पूर्ति के लिए ही किया जाता है। तंत्रशास्त्र का उपयोग त्यौहारों के
आते ही आरंभ हो जाता है मगर तंत्रशास्त्र अनुसार दीपावली पर किए गए टोटके अत्यधिक
प्रभावशाली होते हैं। दीपावली पर मंत्र जगाए जाते हैं व विशेष सिद्धियों पर विजय
पाई जाती है। बदलते समय के साथ दीपावली पर होने वाले टोने-टोटके और तांत्रिक गतिविधियों
में अब कई तरह के बदलाव आ गए हैं। माना जाता है कि दीपावली के पांच दिनों में खास
करके दीपावली की रात्रि कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं। वे कई
प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह
शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ
रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने-टोटके अपनाते हैं।
मान्यतानुसार दीपावली की महारात्रि
देवी लक्ष्मी अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई
और स्वच्छता रहती है, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं
और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है। जादू-टोना,
व टोटका आदि का संबंध ऋग्वेदकाल से माना जाता है। अथर्ववेद में भी
इन विषयों का वर्णन है। कई स्थानों पर नवरात्र आरंभ होते ही लोग सजग हो जाते हैं
तथा उनकी यह सजगता दीपावली के खत्म होने तक बनी रहती है। यहां तक की घर में बुजुर्ग
स्त्रियों द्वारा भी घरेलू टोटके अपनाए जाते हैं। यह केवल गांवों ओर कस्बों तक ही
सीमित नहीं बल्कि छोटे-बड़े शहरों में भी किए जाते हैं। त्यौहारों के मौसम में जब
किसी दूसरे के घर से मिष्ठान आता है तो घर की महिलाएं उससे चुटकी भर पकावान निकाल
कर फेंक देती हैं। इसके बाद ही वह पारिवारिक सदस्यों को खाने के लिए देती हैं।
उनका मानना होता है कि अगर खाने में कोई टोना-टोटका किया गया होगा तो परिजनो पर
इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कुछ परिवारों में नजर उतारने हेतु थोड़ा
सा नमक हाथों में लेकर नजर लगने वाले से उतारा जाता है और बाद में इसे पानी में
बहा दिया जाता है। मान्यता है कि इस टोटके से बुरी बलाएं पास नहीं फटकती। लड़कियों
को बाल खोल कर न घूमने की हिदायत दि जाती है। यहां तक कि घर में छत या सुनसान
जगहों पर खेलने की इजाजत नहीं देते।
मान्यतानुसार टोना सिद्ध करना मंत्र सिद्ध
करने की अपेक्षा कठिन होता है। मंत्र को पढ़ उसे फेंका जाता है जबकि टोना केवल
संकेत मात्र से काम कर जाता है। मंत्र को सिद्ध करने हेतु मांस-मदिरा की आवश्यकता
पड़ती है। टोना सिद्ध करने हेतु विभिन्न जानवरों के मल-मूत्र की आवश्यकता होती है।
मंत्र झाड़ने हेतु पलीते का उपयोग होता है। टोना झाड़ने हेतु मोर पंख या झाड़ू का
उपयोग होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सभी कर्म रात्रि
के समय किए जाते हैं अर्थात सूर्य के आभाव में। जब महामावस्या अर्थात दीपावली पर
चंद्रमा बलहीन हो जाता है तभी अभिचार कर्मा अपने परचम पर होता है।
कुछ मंत्र नीचे दिये हैं जो धन प्राप्ति हेतु किये जा सकते हैं।
1. कमल गट्टे की माला से गुलाबी आसन तथा
महालक्ष्मी यंत्र के सामने उत्तराभिमुख हों। यंत्र की अनुपलब्धता में कमलासन पर
विराजमान हस्तियों से अभिषेक करा रही लक्ष्मीजी के सुंदर चित्र के सामने निम्न
मंत्र का चार लाख बार जाप करें। मंत्र : ''श्रीं क्लीं श्रीं।''
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
2. किसी भी गुलाबी आसन पर उत्तराभिमुख हों
बैठ जाएं। सामने लक्ष्मी माता का सुंदर चित्र हो। तब कमल गट्टे की माला से निम्न
मंत्र का चार लाख बार जाप करें। मंत्र : ''ऐं ह्रीं श्री क्लीं।।''
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
3. किसी भी गुलाबी आसन पर उत्तराभिमुख हों बैठ जाएं। कमलासन
पर विराजमान लक्ष्मी माता का सुंदर चित्र हो। तब कमल गट्टे की माला से निम्न
मंत्र का सवा लाख बार जाप करें। मंत्र : ''ऊं कमलवासिन्यै स्वाहा।।''
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्बफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
4. किसी भी गुलाबी आसन पर उत्तराभिमुख हों बैठ जाएं।
कमलासन पर विराजमान लक्ष्मी माता का सुंदर चित्र हो या श्रीयंत्र हो। तब कमल गट्टे
की माला से निम्न मंत्र का सवा लाख बार जाप करें।
मंत्र : ''ऊं श्ररीं ह्रीं श्री
कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नम:।।'' यह मंत्र सबसे प्रसिद्ध है।
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्वफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
जप के बाद : हवन में तिल, जौ, श्रीफल, बिल्वफल, कमल, कमलगट्टे, लाजा, गुगल, भोजपत्र, शक्कर, इत्यादि से दशांस होम कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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