गीता सार और कुछ उत्तर
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
विपुल
के दोहे।
क्यो
करते हो तुम सभी, राम नाम बदनाम।
नाम
राम पर रख लिया, जेलों में विश्राम।।
एक आशा
की राम से, राम उसे बचाये।
दूजा
संग रहीम ले, कुछ भी करै जाये।।
तीज
पालक बना राम, बच्चों को मरवाया।
हुआ
नतीजा उम्र कैद,राम न्याय दिखलाया।।
श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर
किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसके पश्चात जीवन के समरांगण से पलायन करने का मन
बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली
समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया है, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो
जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं।
भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे
उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव
जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान
मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि
की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों
में से एक है। यह कोई मानवीय पुस्तक नहीं अपितु स्वयं भगवान् की वाणी है। महाभारत
के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया
था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। इसमें
एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग,
भक्ति योग,सान्ख्योग की बहुत सुन्दर ढंग से
चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है। यह विश्व के उन
चुनिन्दा ग्रंथों में से है जो ईश्वरीय माने जाते हैं। गीता की सबसे ख़ास बात यह
है कि इसका अर्थ समझना अत्यंत सरल है परन्तु आशय समझना अत्यंत दुरूह है। महाभारत
काल से ही लगभग सारे विद्वानों में यह आम मान्यता है कि मानवीय तौर पर ऐसी पुस्तक
लिखना असम्भव है।
गीता का सार:
बेकार
की चिंता हम क्यों करते हैं
बेकार में ही हम किसी से क्यों डरते हैं
कोई भी हमें मार नहीं सकता .आत्म अज़र अमर है.
आत्म न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है.
इस संसार में जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है.
जो भी अब तक हुआ है वो भी अच्छा ही हुआ है.
और आगे भी जो होगा वो अच्छा ही होगा.
जो बीत गया उसके लिए पश्चाताप करने से
कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है.
आने वाले वक़्त की चिंता हमें नहीं करनी चाहिए .
अपने वर्तमान को जीने में ही समझदारी है.
जो हाथ से निकल गया
उसके लिए बेकार में ही हम क्यों रोते हैं .
हमारा क्या चला गया.
हम अपने साथ न कुछ लाये थे
और न ही हमने कुछ उत्पन्न किया.
जो भी हमने लिया , यहीं से लिया.
और जो हमने दिया, यहीं से दिया.
हम खाली हाथ आये थे
और हमें खाली हाथ ही चले जाना है
जो आज हमारा है वो कल किसी और का होगा.
उसे अपना समझकर खुश होने से कोई लाभ नहीं.
परिवर्तन इस संसार का नियम है.
और मृत्यु जीवन का अटल सत्य है.
एक पल में हम अपार दौलत के मालिक बन जाते हैं
तो अगले ही पल हम बिल्कुल कंगाल हो जाते हैं.
तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा , अपना-पराया
अपने मन से दूर करने में ही हमारी भलाई है.
ये शरीर तक हमारा नहीं है.
और न ही हम इस शरीर के हैं.
ये शरीर पांच तत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी
और आकाश से मिलकर बना है
और अंत में इन्ही तत्वों में मिल जाएगा.
हम अपने आप को भगवान् के समक्ष अर्पित कर दें.
यही सबसे उत्तम सहारा है.
और भय ,चिंता और शोक से मुक्ति पाने का
एक सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी है .
हम जो कुछ भी करें भगवान् को अर्पण करें.
यही जीवन मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग है
बेकार में ही हम किसी से क्यों डरते हैं
कोई भी हमें मार नहीं सकता .आत्म अज़र अमर है.
आत्म न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है.
इस संसार में जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है.
जो भी अब तक हुआ है वो भी अच्छा ही हुआ है.
और आगे भी जो होगा वो अच्छा ही होगा.
जो बीत गया उसके लिए पश्चाताप करने से
कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है.
आने वाले वक़्त की चिंता हमें नहीं करनी चाहिए .
अपने वर्तमान को जीने में ही समझदारी है.
जो हाथ से निकल गया
उसके लिए बेकार में ही हम क्यों रोते हैं .
हमारा क्या चला गया.
हम अपने साथ न कुछ लाये थे
और न ही हमने कुछ उत्पन्न किया.
जो भी हमने लिया , यहीं से लिया.
और जो हमने दिया, यहीं से दिया.
हम खाली हाथ आये थे
और हमें खाली हाथ ही चले जाना है
जो आज हमारा है वो कल किसी और का होगा.
उसे अपना समझकर खुश होने से कोई लाभ नहीं.
परिवर्तन इस संसार का नियम है.
और मृत्यु जीवन का अटल सत्य है.
एक पल में हम अपार दौलत के मालिक बन जाते हैं
तो अगले ही पल हम बिल्कुल कंगाल हो जाते हैं.
तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा , अपना-पराया
अपने मन से दूर करने में ही हमारी भलाई है.
ये शरीर तक हमारा नहीं है.
और न ही हम इस शरीर के हैं.
ये शरीर पांच तत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी
और आकाश से मिलकर बना है
और अंत में इन्ही तत्वों में मिल जाएगा.
हम अपने आप को भगवान् के समक्ष अर्पित कर दें.
यही सबसे उत्तम सहारा है.
और भय ,चिंता और शोक से मुक्ति पाने का
एक सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी है .
हम जो कुछ भी करें भगवान् को अर्पण करें.
यही जीवन मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग है
मेरे द्वारा जो कार्य किया जा रहा है, इसमे मेरा अपना और मेरे परिवार का कितना हित है, यही
तक विचार करना ही जीवन हो गया है।
मेरे किये कार्य से समाज को कहीं
नुकसान तो नही हो रहा है,यहाँ विचार करना आज आवश्यक है।
आज यह विचार जाग्रत करना होगा कि मेरे
द्वारा किये कार्य से लाभ भले न हो कम से कम हानि न हो। मै सुखी तो राष्ट्र सुखी
नही होगा लेकिन राष्ट्र सुखी तो मै भी अवश्य सुखी हो जाऊंगा।
श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में
है, जो न केवल
सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है.
कहते हैं जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है. भारत की
सनातन संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है. कहते हैं,
इस ग्रंथ में उल्लिखित उपदेश इसके 18 अध्यायों
में लगभग 720 श्लोकों में हैं. प्रस्तुत है इस महान दार्शनिक
ग्रंथ के कुछ चुनींदा श्लोक:
(1)
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)
(2)
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)
इस
श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो
तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए
उठो, हे कौन्तेय
(अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां
भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य
यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)
(3)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
(4)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।
(3)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
(4)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।
(5)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
इस श्लोक का अर्थ है: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। (यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है।)
(6)
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
इस श्लोक का अर्थ है: विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने विषयासक्ति के दुष्परिणाम के बारे में बताया है।)
(7)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
इस श्लोक का अर्थ है: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
(8)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ (तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
(9)
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)
इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।
(10)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥ (अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)
इस
श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग
कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं
(श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए
शोक मत करो।
मैंने कई बार कई लेखों में जिक्र किया है।
स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने कहा है जब तक आपको कोई बात आदेश साफ साफ लिखकर न
दिखाई दे या सुनाई न दे आप उसे मन की चालबाजी मान सकते है।
मन की वाणी को आत्मगुरु वाणी या ईश वाणी
मॉनकर लोग शेर के पिंजरे में कूद जाते है। और जान गंवा देते है।
या नर बलि इत्यादि दे देते है।
यह व्यवहार ठीक नही है। अपनी फोटो पोस्ट
करने में क्या आनन्द आता है।
निष्काम कर्म ही कार्य समर्पण है।अपने किसी
भी कार्य को कुशलता पूर्वक निभाना जिसमे कोई भी कार्यफल की चिंता न हो । यह योगी के लक्षण है।
सम धन अर्पण मतलब समर्पण।
बिना बुद्धि लगाए कर्म कर ही नही सकते।
कर्मफल के प्रति आसक्ति न हो।
ऐसा नही है। किस कार्य को किस प्रकार किया
जाए यह बुद्धि का कार्य है।
जैसे तुम टीचर हो हिंदी की जगह गणित न
पढ़ाये ये बुद्धि बताती है।
मित्र मैं एक छोटा सा तुच्छ प्राणी जो
सिर्फ और सिर्फ प्रभु कृपा से यहाँ तक पहुँचा हूँ। मुझे मेरे जीवन मे मेरा कोई
योगदान नही दिखता। सब प्रभु कृपा है।
अतः मैं इस लायक नही कि मैं किसी का
अवलम्बन बन सहारा दू।
आपके गुरू महाराज सक्षम और समर्थ गुरू है
आप उनके प्रति समर्पित हो।
आज अभी बेटी दामाद नाती और पत्नी के
साथ आळंदी, पंढरपुर, अक्कलकोट,
तुलजा पुर इत्यादि के लिए निकल रहा हूँ।
आपका स्नेह और आशीर्वाद कि यात्रा
सार्थक और सुखद हो।
तुकाराम मन्दिर। देहू। जन्म स्थान।
राखू माई मन्दिर देहू।
कल सुबह तक निवास। गजानन महाराज भक्त
निवास।
किराया 275 से लेकर 900 रुपये तक। रुम आसानी से मिल जाते है।
साफ सुंदर जगह। यहाँ सस्ता सुंदर टिकाऊ
निवास हो सकता है।
आप आळंदी आये तो यहाँ ठहर सकते है।
भोजन भी सात्विक मिलता है।
जय गजानन महाराज।
अब आळंदी कर लिए प्रस्थान।
जय ज्ञानेश्वर महाराज।
सन्त ज्ञानेश्वर महाराज का समाधि
मन्दिर, आळंदी
यह वह दीवार है जो सन्त ज्ञानेश्वर के
संकल्प से चलकर चांगदेव के स्वागत हेतु गाँव के बाहर तक चल कर गई। जिसे देखकर चांग
देव ज्ञानेश्वर के पैरों पर गिर
गया।
सन्त ज्ञानेश्वर ने भैंस के मुख से
गायत्री मन्त्र पढ़वा दिया था।
सन्त गजानन महाराज भक्त निवास। देहू
आळंदी रोड।
सुंदर निवास स्थान। 35 रुपये में शुद्ध भोजन।
अब आळंदी से निकल कर जुजरी फिर पन्धरपुर
निकलेंगे।
सन्त ज्ञानेश्वर सन्त तुकाराम की समाधि
पर मत्था टेका। एक इच्छा थी।
ट्रैफिक के कारण पूरा आळंदी घूम नही
पाए।
चलो अब आगे चलेंगे।
ज्ञानेश्वर महाराज की जय हो।
सन्त तुकाराम की जय हो।
गजानन महाराज के सुंदर भक्ति निवास यह
बताते है कि एक सन्त किस प्रकार पूरे देश प्रदेश को किस प्रकार बदल सकता है। कि
आगे आनेवाली पीढियां तक बदल जाती है।
आप यह देखे। भक्ति निवास में अधिकतर
सेवादार ही है जो अनुशासन के साथ अपनी सेवा से समाज का कल्याण कर रहे है।
जय गजानन महाराज।
यह अजीब बात है। एक मूरख मित्र किसी शत्रु से कम नही।
नीति कहती है। मूरख मित्र से बेहतर शत्रु है। क्योकि हम सजग रहते है पर
मित्र को मित्र जानकर अनभिज्ञ कि वह किस मूर्खता के कारण मुसीबत न ला दे।
खान्डोबा मन्दिर। जो पहाड़ी के नीचे से 500 मीटर में 376 सीढ़ियों पर चढ़कर जाया जाता है।
यह शिव के अवतार है। जेजुरी में।
पंढरपुर में बिठ्ठल रुक्मणि व अन्य दर्शन भलीभांति हुए। यह स्थान
महाराष्ट्र का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।
बिठ्ठल ने कुछ और न किया बस थोड़ा सी पिला दी।
जय विठ्ठल।
विठ्ठल मन्दिर।
यहाँ बारहों मास भीड़ रहती है। कभी कभी
तो 5 किमी तक की लाइन लग जाती है। किंतु
आफ सीजन प्रायः 3 घण्टे से कम में दर्शन हो ही जाते है।
नियान बोर्ड के नीले शब्द के बगल में
खिला हुआ पूर्णमासी का चांद।
बेहद जागता हुआ द्वारिकाधीश मन्दिर
बिठ्ठला मन्दिर के आगे।
चंद्रभगा नदी की आरती में हिस्सा लिया।
पर रोना तब आया जब नदी को देखा।
जय विठ्ठल।
अब अक्कलकोट स्वामी समर्थ की समाधि पर
मत्था टेकने हेतु।
कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।
मुझे मेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।
बेहद जागता सिद्धरामेश्वर मन्दिर।
लिंगायत शिव मन्दिर जरूर जाए। शोला पुर
तुलजापुर मेला के कारण बेहद भीड़। आधे
रास्ते से वापिस अक्कलकोट हेतु।
वहां से गाणगापुर करनाटक में दत्त महाराज
की जन्म स्थली।
लौटते पर दे गांव स्थित लाहिडी महाराज के आश्रम पर भी आन्नद लेकर आया। जय हो महाकाल। जय गुरूदेव महाकाली।
जय गुरूदेव महाकाली।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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