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Tuesday, November 20, 2018

गीता सार और कुछ उत्तर



गीता सार और कुछ उत्तर

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"

विपुल के दोहे।
क्यो करते हो तुम सभी, राम नाम बदनाम।
नाम राम पर रख लियाजेलों में विश्राम।।
एक आशा की राम से, राम उसे बचाये।
दूजा संग रहीम ले, कुछ भी करै जाये।।
तीज पालक बना राम, बच्चों को मरवाया।
हुआ नतीजा उम्र कैद,राम न्याय दिखलाया।।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसके पश्चात जीवन के समरांगण से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया है, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है।


श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। यह कोई मानवीय पुस्तक नहीं अपितु स्वयं भगवान् की वाणी है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग,सान्ख्योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है। यह विश्व के उन चुनिन्दा ग्रंथों में से है जो ईश्वरीय माने जाते हैं। गीता की सबसे ख़ास बात यह है कि इसका अर्थ समझना अत्यंत सरल है परन्तु आशय समझना अत्यंत दुरूह है। महाभारत काल से ही लगभग सारे विद्वानों में यह आम मान्यता है कि मानवीय तौर पर ऐसी पुस्तक लिखना असम्भव है।


गीता का सार:
बेकार की चिंता हम क्यों करते हैं
बेकार में ही हम किसी से क्यों डरते हैं
कोई भी हमें मार नहीं सकता .आत्म अज़र अमर है.
आत्म न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है.
इस संसार में जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है.
जो भी अब तक हुआ है वो भी अच्छा ही हुआ है.
और आगे भी जो होगा वो अच्छा ही होगा.
जो बीत गया उसके लिए पश्चाताप करने से
कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है.
आने वाले वक़्त की चिंता हमें नहीं करनी चाहिए .
अपने वर्तमान को जीने में ही समझदारी है.
जो हाथ से निकल गया
उसके लिए बेकार में ही हम क्यों रोते हैं .
हमारा क्या चला गया.
हम अपने साथ न कुछ लाये थे
और न ही हमने कुछ उत्पन्न किया.
जो भी हमने लिया , यहीं से लिया.
और जो हमने दिया, यहीं से दिया.
हम खाली हाथ आये थे
और हमें खाली हाथ ही चले जाना है
जो आज हमारा है वो कल किसी और का होगा.
उसे अपना समझकर खुश होने से कोई लाभ नहीं.
परिवर्तन इस संसार का नियम है.
और मृत्यु जीवन का अटल सत्य है.
एक पल में हम अपार दौलत के मालिक बन जाते हैं
तो अगले ही पल हम बिल्कुल कंगाल हो जाते हैं.
तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा , अपना-पराया
अपने मन से दूर करने में ही हमारी भलाई है.
ये शरीर तक हमारा नहीं है.
और न ही हम इस शरीर के हैं.
ये शरीर पांच तत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी
और आकाश से मिलकर बना है
और अंत में इन्ही तत्वों में मिल जाएगा.
हम अपने आप को भगवान् के समक्ष अर्पित कर दें.
यही सबसे उत्तम सहारा है.
और भय ,चिंता और शोक से मुक्ति पाने का
एक सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी है .
हम जो कुछ भी करें भगवान् को अर्पण करें.
यही जीवन मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग है
मेरे द्वारा जो कार्य किया जा रहा है, इसमे मेरा अपना और मेरे परिवार का कितना हित है, यही तक विचार करना ही जीवन हो गया है।
मेरे किये कार्य से समाज को कहीं नुकसान तो नही हो रहा है,यहाँ विचार करना आज आवश्यक है। 


आज यह विचार जाग्रत करना होगा कि मेरे द्वारा किये कार्य से लाभ भले न हो कम से कम हानि न हो। मै सुखी तो राष्ट्र सुखी नही होगा लेकिन राष्ट्र सुखी तो मै भी अवश्य सुखी हो जाऊंगा।

श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है. कहते हैं जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है. भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है. कहते हैं, इस ग्रंथ में उल्लिखित उपदेश इसके 18 अध्यायों में लगभग 720 श्लोकों में हैं. प्रस्तुत है इस महान दार्शनिक ग्रंथ के कुछ चुनींदा श्लोक:


(1)
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)

(2)
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)
इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)

(3)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

(4)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

(5)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

इस श्लोक का अर्थ है: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। (यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है।)

(6)
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

इस श्लोक का अर्थ है: विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने विषयासक्ति के दुष्परिणाम के बारे में बताया है।)

(7)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

इस श्लोक का अर्थ है: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

(8)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ (तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

(9)
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।

(10)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥ (अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)
इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।


मैंने कई बार कई लेखों में जिक्र किया है। स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने कहा है जब तक आपको कोई बात आदेश साफ साफ लिखकर न दिखाई दे या सुनाई न दे आप उसे मन की चालबाजी मान सकते है।
मन की वाणी को आत्मगुरु वाणी या ईश वाणी मॉनकर लोग शेर के पिंजरे में कूद जाते है। और जान गंवा देते है।
या नर बलि इत्यादि दे देते है।
यह व्यवहार ठीक नही है। अपनी फोटो पोस्ट करने में क्या आनन्द आता है।
निष्काम कर्म ही कार्य समर्पण है।अपने किसी भी कार्य को कुशलता पूर्वक निभाना जिसमे कोई भी कार्यफल की चिंता न हो ।  यह योगी के लक्षण है।
सम धन अर्पण मतलब समर्पण।
बिना बुद्धि लगाए कर्म कर ही नही सकते। कर्मफल के प्रति आसक्ति न हो।
ऐसा नही है। किस कार्य को किस प्रकार किया जाए यह बुद्धि का कार्य है।
जैसे तुम टीचर हो हिंदी की जगह गणित न पढ़ाये ये बुद्धि बताती है।
मित्र मैं एक छोटा सा तुच्छ प्राणी जो सिर्फ और सिर्फ प्रभु कृपा से यहाँ तक पहुँचा हूँ। मुझे मेरे जीवन मे मेरा कोई योगदान नही दिखता। सब प्रभु कृपा है।
अतः मैं इस लायक नही कि मैं किसी का अवलम्बन बन सहारा दू। 
आपके गुरू महाराज सक्षम और समर्थ गुरू है आप उनके प्रति समर्पित हो। 

आज अभी बेटी दामाद नाती और पत्नी के साथ आळंदी, पंढरपुर, अक्कलकोट, तुलजा पुर इत्यादि के लिए निकल रहा हूँ।
आपका स्नेह और आशीर्वाद कि यात्रा सार्थक और सुखद हो।
तुकाराम मन्दिर। देहू। जन्म स्थान।
राखू माई मन्दिर देहू।
कल सुबह तक निवास। गजानन महाराज भक्त  निवास। 
किराया 275 से लेकर 900 रुपये तक। रुम  आसानी से मिल जाते है।
साफ सुंदर जगह। यहाँ सस्ता सुंदर टिकाऊ निवास हो सकता है।
आप आळंदी आये तो यहाँ ठहर सकते है। भोजन भी सात्विक मिलता है।
जय गजानन महाराज।
अब आळंदी कर लिए प्रस्थान।
जय ज्ञानेश्वर महाराज।
सन्त ज्ञानेश्वर महाराज का समाधि मन्दिर, आळंदी
यह वह दीवार है जो सन्त ज्ञानेश्वर के संकल्प से चलकर चांगदेव के स्वागत हेतु गाँव के बाहर तक चल कर गई। जिसे देखकर चांग देव  ज्ञानेश्वर के पैरों पर गिर गया।
सन्त ज्ञानेश्वर ने भैंस के मुख से गायत्री मन्त्र पढ़वा दिया था।
सन्त गजानन महाराज भक्त निवास। देहू आळंदी रोड।
सुंदर निवास स्थान। 35 रुपये में शुद्ध भोजन।
अब आळंदी से निकल कर जुजरी फिर पन्धरपुर निकलेंगे।
सन्त ज्ञानेश्वर सन्त तुकाराम की समाधि पर मत्था टेका। एक इच्छा थी। 
ट्रैफिक के कारण पूरा आळंदी घूम नही पाए। 
चलो अब आगे चलेंगे।
ज्ञानेश्वर महाराज की जय हो।
सन्त तुकाराम की जय हो।
गजानन महाराज के सुंदर भक्ति निवास यह बताते है कि एक सन्त किस प्रकार पूरे देश प्रदेश को किस प्रकार बदल सकता है। कि आगे आनेवाली पीढियां तक बदल जाती है।
आप यह देखे। भक्ति निवास में अधिकतर सेवादार ही है जो अनुशासन के साथ अपनी सेवा से समाज का कल्याण कर रहे है।
जय गजानन महाराज।

यह अजीब बात है। एक मूरख मित्र किसी शत्रु से कम नही।
नीति कहती है। मूरख मित्र से बेहतर शत्रु है। क्योकि हम सजग रहते है पर मित्र को मित्र जानकर अनभिज्ञ कि वह किस मूर्खता के कारण मुसीबत न ला दे।
खान्डोबा मन्दिर। जो पहाड़ी के नीचे से 500 मीटर में 376 सीढ़ियों पर चढ़कर जाया जाता है।
यह शिव के अवतार है। जेजुरी में।
पंढरपुर में बिठ्ठल रुक्मणि व अन्य दर्शन भलीभांति हुए। यह स्थान महाराष्ट्र का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। 
बिठ्ठल ने कुछ और न किया बस थोड़ा सी पिला दी।
जय विठ्ठल।
विठ्ठल मन्दिर।


यहाँ बारहों मास भीड़ रहती है। कभी कभी तो 5 किमी तक की लाइन लग जाती है। किंतु आफ सीजन प्रायः 3 घण्टे से कम में दर्शन हो ही जाते है।
नियान बोर्ड के नीले शब्द के बगल में खिला हुआ पूर्णमासी का चांद।
बेहद जागता हुआ द्वारिकाधीश मन्दिर बिठ्ठला मन्दिर के आगे।
चंद्रभगा नदी की आरती में हिस्सा लिया।
पर रोना तब आया जब नदी को देखा।
जय विठ्ठल।


अब अक्कलकोट स्वामी समर्थ की समाधि पर मत्था टेकने हेतु।
कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।
मुझे मेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।
बेहद जागता सिद्धरामेश्वर मन्दिर। लिंगायत शिव  मन्दिर जरूर जाए। शोला पुर
तुलजापुर मेला के कारण बेहद भीड़। आधे रास्ते से वापिस अक्कलकोट हेतु।
वहां से गाणगापुर करनाटक में दत्त महाराज की जन्म स्थली।
लौटते पर दे गांव स्थित लाहिडी महाराज के आश्रम पर भी आन्नद लेकर आया। 

जय हो महाकाल। जय गुरूदेव महाकाली। 


जय गुरूदेव महाकाली।  


(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

सबरीमलाई छेडछाड लायेगा और तबाही: वैज्ञानिक दृष्टिकोण



सबरीमलाई छेडछाड लायेगा और तबाही: वैज्ञानिक दृष्टिकोण



नोट: यह विचार मेरे द्वारा संकलित हैं। मेरे नहीं  हैं पर मैं पूर्णतया सहमत हूं। यह मात्र सनातन को बचाने हेतु किया गया है। आपसे अनुरोध है बिना मेरे नाम के अधिक से अधिक शेयर करें। धन्यवाद

 
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग 1km की ऊंचाई पर सबरीमला मंदिर स्थित है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहाँ हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिन्ह है ये मंदिर, इसलिए विधर्मियों की नज़र भी हमेश सा इस पर रही।

मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियाँ हैं। मंदिर में रजस्वला स्त्री का प्रवेश वर्जित था इसके पीछे कारण था इस समय महिलाओं की ऑरा नेगेटिव एनर्जी होना, आप हर प्रवेश करने वाली महिला से ये तो पूछ नहीं सकते कि आप रजस्वला हो या नहीं, इसलिए मंदिर में 10 से नीचे और 50 से ऊपर महिलाओं के प्रवेश की अनुमति थी वो भी उनके ही भले के लिए क्योंकि ऐसा न होने पर मंदिर सिर्फ एक दर्शन स्थल ही रह जाएगा और उसका प्रभाव कम हो जाएगा, लेकिन फेमिनिस्ट जमात को सिर्फ हिन्दू धार्मिक स्थलों पर ही असमानता दिखती है। आशा करता हूँ मस्जिद में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए जल्द ही ये जमात आंदोलन करेगी।

विशेष-
ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल में सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुलता है। बाकी महीने इसे बंद रखा जाता है। भक्तजन पंपा त्रिवेणी में स्नान करते हैं और दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद ही शबरीमलै यानी सबरीमला मंदिर जाना होता है।

पंपा त्रिवेणी पर गणपति जी की पूजा करते हैं। उसके बाद ही चढ़ाई शुरू करते हैं। पहला पड़ाव शबरी पीठम नाम की जगह है। कहा जाता है कि यहाँ पर रामायण काल में शबरी नामक भीलनी ने तपस्या की थी। श्री अय्यप्पा के अवतार के बाद ही शबरी को मुक्ति मिली थी।

इसके आगे शरणमकुट्टी नाम की जगह आती है। पहली बार आने वाले भक्त यहाँ पर शर (बाण) गाड़ते हैं।

इसके बाद मंदिर में जाने के लिए दो मार्ग हैं। एक सामान्य रास्ता और दूसरा अट्ठारह पवित्र सीढ़ियों से होकर। जो लोग मंदिर आने के पहले 41 दिनों तक कठिन व्रत करते हैं वो ही इन पवित्र सीढ़ियों से होकर मंदिर में जा सकते हैं। दरअसल पहले नियम था कि इस मंदिर में 41 दिन के व्रत के बाद ही लोग प्रवेश करते थे इससे उनको ऊर्जा, व्रत के कारण आत्मिक शारीरिक शुद्धि मिलती थी जिससे यहाँ से जाने पर वे जीवन में अधिक ऊर्जा से आगे बढ़ते। लेकिन अब सीधे ऊर्जा के केन्द्र को ही दूषित कर देने का कुत्सित प्रयास हो रहा है ताकि हिन्दुओं का धर्मांतरण, उनके हनन में आसानी हो।

मंदिर का नियम और मानव शरीर-

सबरीमला मंदिर प्रवेश के लिए 41 दिन के व्रत के लिए जो निर्देश है उनसे क्या लाभ है इसका विश्लेषण भी कर देता हूँ –

1- इकतालीस दिन तक समस्त लौकिक बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना ज़रूरी है।

ब्रम्हचर्य के लाभ की आज वैज्ञानिक पुष्टि है कि इससे शरीर मे ऊर्जा बढ़ती है, मेडीकली देखे तो स्पर्म काउंट, डेन्सिटी और यौन क्षमता को बढ़ाया जाता है ब्रम्हचर्य से।

2- इन दिनों में उन्हें नीले या काले कपड़े ही पहनने पड़ते हैं।
प्रकाश के सबसे अच्छे अवशोषक है ये रंग, चर्म रोग या व्यधि कैलसिफिकेशन आदि रोगी जब 41 दिन तक इन कपड़ो में दैनिक कार्य सूर्य उपासना पूजा कर्म आदि करते हैं तो उसमें लाभ होता है यहाँ तक कि स्किन कैंसर जैसी समस्या के लिए भी एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

3- गले में तुलसी की माला रखनी होती है और पूरे दिन में केवल एक बार ही साधारण भोजन करना होता है। तुलसी माला एक मदिबन्ध पर दवाब डालती है तो रक्तचाप नियंत्रण में रहता है साधारण और 1 समय के भोजन से लिवर और पेट से समस्या खत्म हो जाती है।

4- शाम को पूजा करनी होती है और ज़मीन पर ही सोना पड़ता है।
मानसिक शांति के साथ, ज़मीन पर सोने से सर्वाइकल पेन और शरीर के मांसपेशियों को लाभ के साथ धरती की चुम्बकीय तरंगों से तन मन को रिलैक्स मिलता है।

कभी कभी मुझे लगता है कि जब आदमी ज्यादा पढ़ लिख लेता है तो चिराग तले अंधेरे जैसी कहावत को चरितार्थ करता है, मतलब हर समस्या को वो अपने लेवल पर लाकर उसका हल करने की कोशिश करता है लेकिन उसकी जड़ को नहीं देखता है, एक ऐसा ही वाकया मेरे साथ हुआ और वाकई एक ग्रामीण महिला के सामने खुद को अनपढ़ जैसा महसूस कर रहा हूँ।

वाकया कुछ यूँ है –

एक सुबह कुछ लोगों के साथ सबरीमाला मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, चर्चा करने वालो में सभी उच्च शिक्षित ही थे और सब एक से एक तर्क रख रहे थे, मैं भी अपना फ़ेसबुकिया तर्क रख रहा था (अब तक की सभी पढ़ी गयी पोस्ट जितनी भी पढ़ी थी सब चिपका दिया)।

मतलब आंइस्टीन से लेकर सेलुलर वाइब्रेशन इफ़ेक्ट तक सब पर चर्चा की गई, हम सबने एक बार गौर नहीं किया कि हमारे यहाँ के काम करने वाले बड़े ध्यान से इसे सुन रहे थे, जब हम सब थोड़े साम्य स्थिति में पहुँचे तो ये निष्कर्ष तो मिला कि ये मंदिर हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है और सैकड़ों सालों से ये ईसाइयों और अन्य विधर्मियों के निशाने पर रहा है.

इस पर ये दूसरा हमला है, पहला हमला जबरन घुसने का विफल रहा तो इस बार संविधान की आड़ से घुसने की कोशिश की गई है। लेकिन महिलाओं का प्रवेश क्यों नहीं है इसपे कोई खास एकमत नहीं थे, सबके अपने अपने तर्क और पक्ष थे।

चाय खत्म होने पर जब चलने का उपक्रम हुआ तो, एक महिला जिसे सब गुड़िया की माँ कहते हैं (खैर नाम मुझे भी नहीं पता) उन्होंने टोका, चूँकि वो काफी बुजुर्ग हैं और उनकी बात हर कोई सुनता है तो हम सब रुक गए, उन्होंने कहा कि इतनी देर से हम लोग सुन रहे हैं आप लोग जो आपस में बात कर रहे थे वो हम लोगों की समझ में ज्यादा तो नहीं आया लेकिन इस पर आप लोग मेरी बात को गलत सिद्ध कीजिये, हम सब सीरियस थे लेकिन अंदर से सब हँस रहे थे कारण था उनका अनपढ़ होना और हम सबको इस बार का गुरुर कि हम सब पढ़े लिखे हैं और तकनीकी रूप से उनसे कहीं जागरूक।

उन्होंने कहा कि – महिलाओं को समझने के लिए सबसे पहली शर्त है महिला होना, महिलाओं का पीरियड अनिश्चितता से भरा होता है, निश्चित समय होते हुए भी वो आगे आयेगा या पीछे आएगा समय से ये निश्चित नहीं होता है, सिर्फ कल्पना कीजिये कि जहाँ हजारों की भीड़ है वहाँ सांस लेने तक में उलझन होती है, वहीं किसी महिला को अचानक पीरियड शुरू हो जाये लाइन में लगे हुए ही उसका रक्तस्राव शुरू हो जाये, कभी कभी ऐसा होता है कि पीरियड आ जाता है और पता भी नहीं लगता, यदि ऐसा हो जाये तो पूरा मंदिर उस रक्तस्राव से फर्श का क्या हाल होगा, लाखों की भीड़ में सिर्फ 50 की हालत ऐसी हो जाये तो क्या हाल होगा?

अबतक के दिये उनके तर्क से हम सबकी हँसी अब गायब थी और वो पढ़े लिखे होने का गुरुर कही गुम से हो गया है और लग रहा है कि वाकई हम अनपढ़ हैं।

कोई आपसे पूछे कि ब्रह्मांड में कितनी तरह की चीज़े हैं तो आप क्या जवाब देंगे? जवाब है सिर्फ दो – पहली चीज़ है ऊर्जा यानी एनर्जी (E), दूसरी द्रव्यमान, मैटर या मास (M)। इनके बीच के सिद्धांत को ऊर्जा द्रव्यमान का समीकरण कहते है जिसे E = MC*2 से प्रदर्शित करते है और इस समीकरण के अनुसार ऊर्जा न पैदा होती है न खत्म की जा सकती है, बस अपना रूप बदलती है।

अब ज़रा इसे पढ़िए –

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(गीता: द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। मतलब उसे नष्ट नहीं किया जा सकता।

दोनो में समानता मिली ऊपर का नियम ऊर्जा द्रव्यमान का नियम है जो अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दिया गया नीचे भगवत गीता में आत्मा के उसी रूप यानी आत्मा के एक ऊर्जा ही होने की पुष्टि की जा रही है, कि आत्मा भी ऊर्जा का एक रूप है जिससे मानव शरीर कार्य करता है।

भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान में रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया।

एक व्यक्ति की कई तरह की ज़रूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए जिनका आधार रहा आगम शास्त्र दरअसल आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्‍तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।

यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है, सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं दूसरे शब्दों में विज्ञान की व्याख्यानुसार ऊर्जा का केंद्र जिससे हमें ऊर्जा मिलती है।

आगम शास्त्र, बहुत लम्बे समय से हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ, मंदिर निर्माण, आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक रीति-रिवाज के नियम और मानदंडों के लिए बने विचारों का एक सम्पूर्ण संकलन है। यह संस्कृत, तमिल और ग्रंथ शास्त्रों का एक संग्रह है जिसमें मुख्य रूप से मंदिर निर्माण के तरीके, मूर्ति निर्माण के तरीके, दार्शनिक सिद्धांतों और ध्यान मुद्राओं का सम्पूर्ण संग्रह है।

बाद के वर्षों में यह विभिन्न प्रकार के श्रोतों और विचारों को आत्मसात हुआ और सम्पूर्ण अस्तित्व में आया (कुछ कुरीतियाँ भी सम्मिलित हुईं)। एक संग्रह के रूप में सम्पूर्ण अगम शस्त्र को दिनांकित नहीं किया जा सकता है, इसके कुछ भाग वैदिक काल के पहले के प्रतीत होते हैं और कुछ भाग वैदिक काल के बाद के।

मंदिर निर्माण और पूजा में आगम शास्त्र की भूमिका एक पूर्ण उपदेशक और मार्गदर्शक के रूप में, आगम शास्त्र अभिषेक और पवित्र स्थानों के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ज्यादातर हिन्दू पूजास्थल आगम शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
आगम शास्त्र के चार पद – जैसे कि आगम संख्या में बहुत सारे हैं लेकिन उनमें से प्रत्येक के चार भाग होते हैं

क्रिया पद
चर्या पद
योग पद
जनन पद

क्रिया पद मंदिर निर्माण, मूर्तिकला के अधिक साकार नियमों की व्याख्या करता है जबकि जनन पद मंदिर में पूजा की विधि, दर्शन और आध्यामिकता के नियमों की गर्वित व्याख्या करता है, आगम शस्त्र के अनुसार मंदिर और पूजास्थल कभी भी ऐसे ही स्वेच्छा से और स्थानीय धारणाओं के आधार पर मनमाने ढंग से नहीं बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी भी हिन्दू तीर्थस्थान के लिए तीन अनिवार्य सारभूत या मौलिक आवश्यकताएँ हैं –

स्थल – मंदिर की जगह को दर्शाता है
तीर्थ – मंदिर के जलाशय या सरोवर को दर्शाता है
मूर्ति – पूजित प्रतिमा को दर्शाती है

आगम शास्त्र में तीर्थस्थल/मंदिर के प्रत्येक छोटे-छोटे से पहलू, आकृति, दृष्टिकोण और भाव के लिए विस्तार पूर्वक नियमों और तरीकों का विवरण है जैसे कि मंदिर का निर्माण किस सामग्री से किया जाना चाहिए, पवित्र प्रतिमा का उचित स्थान कहाँ होना चाहिए और पवित्र प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करनी चाहिए आदि आदि।

आसान शब्दो में ऊर्जा स्थानांतरण के लिए किन नियमों का पालन किया जाए कि हममें स्थित ऊर्जा उस ऊर्जा के केंद्र से ऊर्जा लेकर और अधिक ऊर्जावान बन सके ये हमें अगम शास्त्र का जनन पद बताता है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप ऐसे समझिए कि यदि किसी ट्रांसफार्मर से हम ऊर्जा यानी विद्युत आपूर्ति करते हैं तो वायर यदि सही न लगाकर गलत लगा दिया जाए तो न सिर्फ उपभोक्ता को नुकसान होगा अपितु उस ट्रांसफार्मर को भी क्षति पहुँचेगी और यही होता है जब कोई अपात्र व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है तो न सिर्फ उसे नुकसान होता है बल्कि उन ऊर्जा केंद्रों का भी।

यह सब देखते हुये भी सुप्रीम कोर्ट का उलटा फैसला सनातन और हिंदुत्व को मात्र आघात पहुंचाने हेतु ही किया गया दिखता है। दोषी कौन है आरोपी, बचाव पक्ष या सरकार या कोर्ट यह तो ईश जाने। पर यह सत्य है कि ऊर्जा से छेडचाद महंगी पडी थी केरल की बाढ के रूप में। अब यदि शुद्धता का ध्यान न दिया गया तो केरल की तबाही को कोई नहीं बचा सकता। 


नोट: यह विचार मेरे द्वारा संकलित हैं। मेरे नहीं  हैं पर मैं पूर्णतया सहमत हूं। यह मात्र सनातन को बचाने हेतु किया गया है। आपसे अनुरोध है बिना मेरे नाम के अधिक से अधिक शेयर करें। धन्यवाद 




जय गुरूदेव महाकाली।  


(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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