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Tuesday, December 18, 2018

क्या है दस विद्या ? तीसरी विद्या: त्रिपुर सुंदरी


क्या है दस विद्या ? 
तीसरी विद्या: त्रिपुर सुंदरी 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi



 

मित्रो मां दुर्गा की आरती में आता है।
दशविद्या नव दुर्गा नाना शस्त्र करा। अष्ट मातृका योगिनी नव नव रूप धरा॥

अब दशविद्या क्या हैं यह जानने के लिये मैंनें गूगल गुरू की शरण ली। पर सब जगह मात्र कहानी और काली के दस रूपों का वर्णन। अत: मैंनें दशविद्या को जानने हेतु स्वयं मां से प्रार्थना की तब मुझे दशविद्या के साथ काली और महाकाली का भेद ज्ञात हुआ जो मैं लिख रहा हूं। शायद आपको यह व्याख्या भेद कहीं और न मिले। किंतु वैज्ञानिक और तर्क रूप में मैं संतुष्ट हूं।

शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत पुराण का मंत्र है।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।

त्रिपुर सुंदरी : षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इसे ललिता, राज राजेश्वरी और ‍त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है। ‍‍भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है।

त्रिपुर सुंदरी यानि दूर दर्शिता और मोहनी विद्या की प्राप्ति। सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाली महाविद्या, श्री कुल की अधिष्ठात्री! महा त्रिपुरसुंदरी।
महाविद्या महा त्रिपुरसुंदरी स्वयं आद्या या आदि शक्ति हैं, इनके षोडशी, राज-राजेश्वरी, बाला, ललिता, मिनाक्षी, कामेश्वरी अन्य नाम भी विख्यात हैं।


अपने नाम के अनुसार देवी तीनों लोकों में सर्वाधिक सुंदरी हैं तथा चिर यौवन युक्त १६ वर्षीय युवती हैं, इनकी रूप तथा यौवन तीनों लोकों में सभी को मोहित करने वाली हैं।


मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप, मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु महाविद्या त्रिपुरसुंदरी की साधना उत्तम मानी जाती हैं।


सोलह अंक जो पूर्णतः का प्रतीक हैं (सोलह की मात्रा में प्रत्येक वस्तु पूर्ण मानी जाती हैं, जैसे १६ आना एक रुपये होता हैं), देवी सोलह प्रकार की कलाओं से पूर्ण हैं और सोलह प्रकार के मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं; तात्पर्य हैं सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं कारणवश महाविद्या षोडशी नाम से विख्यात हैं।


देवी ही श्री रूप में धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से विख्यात हैं, इन्हीं महाविद्या की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवी महाविद्या धन की अधिष्ठात्री हुई तथा श्री की उपाधि प्राप्त की।


श्री यंत्र जो यंत्र शिरोमणि हैं, साक्षात् देवी का स्वरूप हैं; देवी की आराधना-पूजा श्री यंत्र  में की जाती हैं। कामाख्या पीठ महाविद्या त्रिपुरसुन्दरी से ही सम्बंधित तंत्र पीठ हैं, जहाँ सती की योनि पतित हुई थीं; स्त्री योनि के रूप में यहाँ देवी की पूजा-आराधना होती हैं।


देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध पारलौकिक शक्तियों से हैं, समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तिओं (इंद्रजाल) की देवी अधिष्ठात्री हैं। तंत्र मैं उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि (जादुई शक्ति), कर्म इनकी कृपा के बिना पूर्ण नहीं होते हैं।


अपने भक्तों को हार प्रकार की शक्ति देने में समर्थ हैं देवी षोडशी, चिर यौवन तथा सुन्दरता प्रदाता हैं देवी त्रिपुरसुंदरी, राज-राजेश्वरी रूप में देवी ही तीनों लोकों का शासन करने वाली हैं।


देवी शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव के नाभि से निर्गत कमल-आसन पर बैठी हुई हैं, इनके चार भुजाएं हैं तथा अपने चार भुजाओं में देवी पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करती हैं।


देवी के आसन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा यम-राज अपने मस्तक पर धारण किये हुए हैं; देवी तीन नेत्रों से युक्त एवं मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए अत्यंत मनोहर प्रतीत होती हैं, सहस्रों उगते हुए सूर्य के समान कांति युक्त देवी का शारीरिक वर्ण हैं।

दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण 'पाद' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं।

उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

त्रिपुर सुंदरी माता का मंत्र: रूद्राक्ष माला से दस माला 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम इत्यादि किसी जानकार से पूछकर ही करें।


दस महाविद्या में षोडषी के शिव के रूप अवतार हैं कामेश्वर ।
दस महाविद्या में  षोडषी का विष्णु रूप अवतार है परशुराम । 
 
 
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 जय मां त्रिपुर सुंदरी

 
 
 
 
 

क्या है दस विद्या ? दूसरी विद्या: तारा



क्या है दस विद्या ? 
दूसरी विद्या: तारा 
 

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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मित्रो मां दुर्गा की आरती में आता है।
दशविद्या नव दुर्गा नाना शस्त्र करा। अष्ट मातृका योगिनी नव नव रूप धरा॥

अब दशविद्या क्या हैं यह जानने के लिये मैंनें गूगल गुरू की शरण ली। पर सब जगह मात्र कहानी और काली के दस रूपों का वर्णन। अत: मैंनें दशविद्या को जानने हेतु स्वयं मां से प्रार्थना की तब मुझे दशविद्या के साथ काली और महाकाली का भेद ज्ञात हुआ जो मैं लिख रहा हूं। शायद आपको यह व्याख्या भेद कहीं और न मिले। किंतु वैज्ञानिक और तर्क रूप में मैं संतुष्ट हूं।

शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत पुराण का मंत्र है।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।

मां तारा ध्यान और सिद्धि विद्या की अधिष्ठात्री हैं। कोई भी मानव यदि इन गुण विद्यायों और विधाओं से युक्त है तो वह ऐश्वर्यशाली बनकर सब सुख भोगकर भी योग मार्ग के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। यह मनुष्य का दूसरा गुण विद्या बता है।

तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है। सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती।

तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थी।

तारा माता के बारे में एक दूसरी कथा है कि वे राजा दक्ष की दूसरी पुत्री थीं। तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी 'तारा' का काफी महत्‍व है।
महाविद्या भगवती तारा, ब्रह्मांड में उत्कृष्ट तथा सर्व ज्ञान से समृद्ध हैं, घोर संकट से मुक्त करने वाली महाशक्ति। जन्म तथा मृत्यु रूपी चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली महा-शक्ति! तारा।


महाविद्या महा-काली ने हयग्रीव नामक दैत्य के वध हेतु नीला शारीरिक वर्ण धारण किया तथा देवी का वह उग्र स्वरूप उग्र तारा के नाम से विख्यात हुई।
देवी प्रकाश बिंदु रूप में आकाश के तारे के सामान विद्यमान हैं, फलस्वरूप वे तारा नाम से विख्यात हैं। देवी तारा, भगवान राम की वह विध्वंसक शक्ति हैं, जिन्होंने रावण का वध किया था।
महाविद्या तारा मोक्ष प्रदान करने तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाली महाशक्ति हैं।
देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध मुक्ति से हैं, फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र से हो या अन्य किसी प्रकार के संकट मुक्ति हेतु।
भगवान शिव द्वारा, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष पान करने पर, उनके शारीरिक पीड़ा के निवारण हेतु, इन्हीं देवी तारा ने माता की भांति भगवान शिव को शिशु रूप में परिणति कर, अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। फलस्वरूप, भगवान शिव को उनकी शारीरिक पीड़ा 'जलन' से मुक्ति मिली थीं, महा-विद्या तारा जगत जननी माता के रूप में एवं घोर से घोर संकटो की मुक्ति हेतु प्रसिद्ध हुई। देवी के भैरव, हलाहल विष का पान करने वाले अक्षोभ्य शिव हैं।


मुख्यतः देवी की आराधना, साधना मोक्ष प्राप्त करने हेतु, तांत्रिक पद्धति से की जाती हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जितना भी ज्ञान इधर उधर फैला हुआ हैं, वह सब इन्हीं देवी तारा या नील सरस्वती का स्वरूप ही हैं।
देवी का निवास स्थान घोर महा-श्मशान हैं, देवी ज्वलंत चिता में रखे हुए शव के ऊपर प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये नग्न अवस्था में खड़ी हैं, (कहीं-कहीं देवी बाघाम्बर भी धारण करती हैं) नर खप्परों तथा हड्डियों की मालाओं से अलंकृत हैं तथा इनके आभूषण सर्प हैं।
तीन नेत्रों वाली देवी उग्र तारा स्वरूप से अत्यंत भयानक प्रतीत होती हैं।
चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।
जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।

तारा माता का मंत्र : नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम इत्यादि किसी जानकार से पूछकर ही करें।
दस महाविद्या में तारा के शिव के रूप अवतार हैं अक्षोभ्य।
दस महाविद्या में  तारा का विष्णु रूप अवतार है मत्स्य। 
 
 

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 जय मां तारा

 
 
 

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