900 वर्ष के गोरक्षक: देवरहा बाबा
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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एक व्यक्ति का जीवन यानी कि उसकी आयु
कितनी लंबी होती है? 50 वर्ष? 60 वर्ष?
70 वर्ष या फिर यदि वह हमेशा से काफी हष्ट-पुष्ट रहा हो तो 100
वर्ष के आसपास की उम्र को छू लेता है और दुनिया के सामने एक मिसाल
बनता है। क्योंकि आज के जमाने में यदि कोई व्यक्ति 100 वर्ष
से ज्यादा उम्र काट लेता है तो उसे रिकार्ड माना जाता है।
दुनिया भर में उसकी प्रशंसा की जाती है तथा
उसे विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जाता है। लोग उनसे उनकी लंबी आयु के
राज पूछते हैं तथा वैज्ञानिक भी उनके ऊपर विभिन्न शोध करके यह पता लगाते हैं कि वे
आखिरकार इतना लंबा जीवन काटने में कैसे सफल हुए?
लेकिन इन रिकार्डों से बहुत ऊपर हैं एक
योगी। दरअसल उन्हें ‘महायोगी’ कहकर बुलाया जाता था। कहते हैं उनकी आयु 900 वर्ष से भी ज्यादा की थी। जी हां, 100 या 200
नहीं बल्कि 900 वर्ष से भी अधिक।
पहली बार में यह जानकर कोई भी विश्वास
नहीं कर सकता है लेकिन लोक प्रचलित कहानियों के आधार पर ही यह बात सामने आई है।
भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी रहते थे जिनका नाम था ‘देवरहा
बाबा’। कहते हैं कि देवरहा बाबा एक सिद्ध महापुरुष एवं संत पुरुष थे।
दुनिया के कोने-कोने से महान एवं
प्रसिद्ध लोग उनके दर्शन करने आते थे। उनके चेहरे पर एक अलग किस्म की चमक थी और
लोगों का यह तक मानना था कि बाबा के पास चमत्कारी शक्तियां भी थीं।
लेकिन इन सभी तथ्यों
से हटकर जो एक बात हर किसी के मन में आती है कि ‘क्या सच में बाबा की आयु 900 वर्ष से भी अधिक थी’? बाबा की उम्र
को लेकर लोगों में अलग-अलग मत प्रसिद्ध हैं। कुछ लोग उनका जीवन 250 वर्ष का मानते हैं तो कुछ का कहना है कि बाबा की उम्र 500 वर्ष की थी।
लेकिन हैरानी तब होती है जब लोग कहते हैं कि उनकी उम्र तो 900 वर्ष से भी अधिक थी।
परन्तु बाबा कहां से आए थे, उनका जन्म, उनका जीवन आज तक लोगों के बीच पहेली बना हुआ है। कहते हैं यह कोई नहीं
जानता था कि देवरहा बाबा का जन्म कब हुआ।
उनके जन्म की तारीख, जन्म स्थान तथा वे कब और कहां से आए यह सभी तथ्य अज्ञात
हैं। यहां तक कि उनकी सही उम्र का आंकलन भी नहीं है। बस लोग इतना जानते हैं कि वह यूपी
के देवरिया जिले के रहने वाले थे। और उन्होंने अपने आखिरी श्वास मंगलवार,
19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन लिए
थे। बाबा के संदर्भ में लोग अलग-अलग कहानियां सुनाते हैं, जिसमें
से एक कहानी काफी दिलचस्प है।
बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महाराज के मुताबिक बाबा निर्वस्त्र रहते
थे। वे धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे
और केवल तभी नीचे आते थे जब सुबह के समय उन्हें स्नान करना होता था।
ऐसा माना जाता है कि बाबा ने कई वर्षों
तक हिमालय में साधना की थी। लेकिन कितने वर्ष, यह कोई नहीं जानता। क्योंकि हिमालय में उनकी उपस्थिति अज्ञात थी। हिमालय
की गोद में जप-तप करने के पश्चात ही बाबा ने उत्तर प्रदेश के देवरिया क्षेत्र की ओर
प्रस्थान किया।
यहां बाबा ने वर्षों
निवास किया और अपने धर्म-कर्म से लोगों के बीच प्रचलित हुए। देवरिया में बाबा सलेमपुर
तहसील से कुल दूरी पर ही स्थित सरयू नदी के किनारे रहते थे। यह वही स्थान है जहां
भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार श्रीराम को त्याग कर वापस वैकुण्ठ लौटे थे।
इस नदी के किनारे बाबा ने वर्षों तक
अपना डेरा जमाए रखा और इसी क्षेत्र से बाबा को ‘देवरहा बाबा’ का नाम प्राप्त हुआ।
कहते हैं बाबा बहुत बड़े रामभक्त थे। उनके भक्तों को हमेशा ही उनके मुख पर ‘राम
नाम’ सुनाई देता था।
वह अपने भक्तों को भी श्रीराम के जीवन से
जुड़े तथ्य बताते तथा उन्हें जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करते। बाबा अपने
भक्तों के जीवन के कष्टों को कम करने के लिए श्रीराम तथा श्रीकृष्ण मंत्र देते थे।
वे श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को एक ही मानते थे। इन दो अवतारों के अलावा बाबा गोसेवा
में भी पूर्ण विश्वास रखते थे।
उनके लिए जनसेवा तथा गोसेवा एक
सर्वोपरि-धर्म था। वे अपने पास आए प्रत्येक भक्त को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे।
वे हमेशा ही लोगों को गोहत्या के विरुद्ध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे।
प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना
पावन संदेश देते हुए कहा था – “दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।“
लेकिन उम्र के संदर्भ
में जिस प्रकार के तथ्य लोग बताते हैं वह काफी आश्चर्यजनक हैं। लोग कहते हैं कि
बाबा की शारीरिक अवस्था वर्षों तक एक जैसी ही रहती थी। जिस किसी इंसान ने वर्षों
पहले उन्हें देखा था वह यदि कितने ही सालों बाद भी उनके दर्शन करता था तो उसे
उनमें कोई बदलाव नज़र नहीं आता था।
बाबा के दर्शन करने आए लोग उनसे मिलकर
काफी प्रसन्न भी होते थे। बाबा हमेशा कुछ ऊंचाई पर बैठकर अपने भक्तों से मिलते थे
तथा सभी की बात ध्यान से सुनते थे। लोग बताते हैं कि बाबा अपने भक्तों से मिलकर
काफी खुश होते थे और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते थे।
उनका अपने भक्तों को प्रसाद देने का
तरीका भी काफी अचंभित करने वाला था जिस पर विश्वास कर सकना भी मुश्किल है। कहते
हैं जब कोई भक्त उनसे प्रसाद की कामना करता तो बाबा उस ऊंचे मचान पर बैठे ही अपना
हाथ मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मिठाइयां या अन्य खाद्य पदार्थ अपने आप ही आ जाते थे।
यह देख लोगों को अचंभा होता था कि आखिरकार
खाली पड़े मचान में से बाबा के हाथ में प्रसाद कैसे आया। कुछ लोगों का मानना था कि
बाबा अपनी अदृश्य शक्तियों की सहायता से कहीं भी चले जाते थे तथा अपने भक्तों के
लिए प्रसाद ले आते थे।
लोगों का यह भी मानना है कि बाबा ने
वर्षों तक अपने सूक्ष्म शरीर में भी तपस्या की इसलिए उनकी उम्र का सही अनुमान लगाना
लोगों के लिए और भी मुश्किल हो गया। अक्सर उनकी इतनी अधिक उम्र को जानकर लोग यह
सोचते हैं कि बाबा काफी पौष्टिक आहार लेते होंगे।
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जन
श्रुतियों के मुताबिक बाबा ने अपने पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं खाया। वे केवल दूध
और शहद पीकर जीते थे। इसके अलावा श्रीफल का रस भी उन्हें बेहद पसंद था।
देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्तियों से
आकर्षित होकर देश की कई नामी हस्तियां भी उनके दर्शन करने आती थीं। इस लिस्ट में
राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजीव
गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालू
प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कमलापति त्रिपाठी जैसे
राजनेताओं का नाम शामिल है।
कहते हैं कि देश में आपातकाल के बाद
हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गई थीं तो वे देवरहा बाबा के पास अपनी समस्या
का हल मांगने आई थीं। तब बाबा ने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया और तभी
से कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है। मान्यतानुसार, बाबा से मिलने के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी जीत भी गई थीं।
बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना।
भारत
के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं, तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत
ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र
लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी।
कोई 1987
के जून महीने की बात है। देवरहा बाबा का वृंदावन में यमुना पार पर
डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने के आतुर थे।
अधिकारियों में उनकी सुरक्षा को लेकर हलचल मची हुई थी। प्रधानमंत्री के आगमन का
ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक
बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर बाबा आग-बबूला हो गये।
उन्होंने साफ शब्दों में
अधिकारियों को बोलाः
“तुम यहां अपने पीएम
को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों
के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा
वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? यह
पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी
है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
अफसरों ने अपनी दुविधा प्रकट की बाबा
ने ही उन्हें सांत्वना दी और कहा कि फिक्र मत करो, अब तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का
कार्यक्रम मैं कैन्सिल करा देता हूं। दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से रेडियोग्राम आ
गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां स्वयं बाबा
के दर्शन करने के लिए आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या
कहेंगे चमत्कार या संयोग?
बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में
आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें
दया का महासमुंदर बताते हैं। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया
लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा।
मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर
मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल
क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी।
याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक
का नाम व इतिहास तक बता देते।
बाबा ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास
ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। जन स्वास्थ्य के लिए प्रेरित उनकी
योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी
तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे
सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!