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Monday, December 31, 2018

900 वर्ष के गोरक्षक: देवरहा बाबा



900 वर्ष के गोरक्षक: देवरहा बाबा

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"




एक व्यक्ति का जीवन यानी कि उसकी आयु कितनी लंबी होती है? 50 वर्ष? 60 वर्ष? 70 वर्ष या फिर यदि वह हमेशा से काफी हष्ट-पुष्ट रहा हो तो 100 वर्ष के आसपास की उम्र को छू लेता है और दुनिया के सामने एक मिसाल बनता है। क्योंकि आज के जमाने में यदि कोई व्यक्ति 100 वर्ष से ज्यादा उम्र काट लेता है तो उसे रिकार्ड माना जाता है।
दुनिया भर में उसकी प्रशंसा की जाती है तथा उसे विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जाता है। लोग उनसे उनकी लंबी आयु के राज पूछते हैं तथा वैज्ञानिक भी उनके ऊपर विभिन्न शोध करके यह पता लगाते हैं कि वे आखिरकार इतना लंबा जीवन काटने में कैसे सफल हुए?
लेकिन इन रिकार्डों से बहुत ऊपर हैं एक योगी। दरअसल उन्हें ‘महायोगी’ कहकर बुलाया जाता था। कहते हैं उनकी आयु 900 वर्ष से भी ज्यादा की थी। जी हां, 100 या 200 नहीं बल्कि 900 वर्ष से भी अधिक।
पहली बार में यह जानकर कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है लेकिन लोक प्रचलित कहानियों के आधार पर ही यह बात सामने आई है। भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी रहते थे जिनका नाम था ‘देवरहा बाबा’। कहते हैं कि देवरहा बाबा एक सिद्ध महापुरुष एवं संत पुरुष थे।
दुनिया के कोने-कोने से महान एवं प्रसिद्ध लोग उनके दर्शन करने आते थे। उनके चेहरे पर एक अलग किस्म की चमक थी और लोगों का यह तक मानना था कि बाबा के पास चमत्कारी शक्तियां भी थीं।
लेकिन इन सभी तथ्यों से हटकर जो एक बात हर किसी के मन में आती है कि ‘क्या सच में बाबा की आयु 900 वर्ष से भी अधिक थी’? बाबा की उम्र को लेकर लोगों में अलग-अलग मत प्रसिद्ध हैं। कुछ लोग उनका जीवन 250 वर्ष का मानते हैं तो कुछ का कहना है कि बाबा की उम्र 500 वर्ष की थी।
लेकिन हैरानी तब होती है जब लोग कहते हैं कि उनकी उम्र तो 900 वर्ष से भी अधिक थी। परन्तु बाबा कहां से आए थे, उनका जन्म, उनका जीवन आज तक लोगों के बीच पहेली बना हुआ है। कहते हैं यह कोई नहीं जानता था कि देवरहा बाबा का जन्म कब हुआ।
उनके जन्म की तारीख, जन्म स्थान तथा वे कब और कहां से आए यह सभी तथ्य अज्ञात हैं। यहां तक कि उनकी सही उम्र का आंकलन भी नहीं है। बस लोग इतना जानते हैं कि वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। और उन्होंने अपने आखिरी श्वास मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन लिए थे। बाबा के संदर्भ में लोग अलग-अलग कहानियां सुनाते हैं, जिसमें से एक कहानी काफी दिलचस्प है।
बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महाराज के मुताबिक बाबा निर्वस्त्र रहते थे। वे धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे और केवल तभी नीचे आते थे जब सुबह के समय उन्हें स्नान करना होता था।
ऐसा माना जाता है कि बाबा ने कई वर्षों तक हिमालय में साधना की थी। लेकिन कितने वर्ष, यह कोई नहीं जानता। क्योंकि हिमालय में उनकी उपस्थिति अज्ञात थी। हिमालय की गोद में जप-तप करने के पश्चात ही बाबा ने उत्तर प्रदेश के देवरिया क्षेत्र की ओर प्रस्थान किया।
यहां बाबा ने वर्षों निवास किया और अपने धर्म-कर्म से लोगों के बीच प्रचलित हुए। देवरिया में बाबा सलेमपुर तहसील से कुल दूरी पर ही स्थित सरयू नदी के किनारे रहते थे। यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार श्रीराम को त्याग कर वापस वैकुण्ठ लौटे थे।
इस नदी के किनारे बाबा ने वर्षों तक अपना डेरा जमाए रखा और इसी क्षेत्र से बाबा को ‘देवरहा बाबा’ का नाम प्राप्त हुआ। कहते हैं बाबा बहुत बड़े रामभक्त थे। उनके भक्तों को हमेशा ही उनके मुख पर ‘राम नाम’ सुनाई देता था।
वह अपने भक्तों को भी श्रीराम के जीवन से जुड़े तथ्य बताते तथा उन्हें जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करते। बाबा अपने भक्तों के जीवन के कष्टों को कम करने के लिए श्रीराम तथा श्रीकृष्ण मंत्र देते थे। वे श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को एक ही मानते थे। इन दो अवतारों के अलावा बाबा गोसेवा में भी पूर्ण विश्वास रखते थे।
उनके लिए जनसेवा तथा गोसेवा एक सर्वोपरि-धर्म था। वे अपने पास आए प्रत्येक भक्त को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। वे हमेशा ही लोगों को गोहत्या के विरुद्ध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे।
प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था – “दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।“
लेकिन उम्र के संदर्भ में जिस प्रकार के तथ्य लोग बताते हैं वह काफी आश्चर्यजनक हैं। लोग कहते हैं कि बाबा की शारीरिक अवस्था वर्षों तक एक जैसी ही रहती थी। जिस किसी इंसान ने वर्षों पहले उन्हें देखा था वह यदि कितने ही सालों बाद भी उनके दर्शन करता था तो उसे उनमें कोई बदलाव नज़र नहीं आता था।
बाबा के दर्शन करने आए लोग उनसे मिलकर काफी प्रसन्न भी होते थे। बाबा हमेशा कुछ ऊंचाई पर बैठकर अपने भक्तों से मिलते थे तथा सभी की बात ध्यान से सुनते थे। लोग बताते हैं कि बाबा अपने भक्तों से मिलकर काफी खुश होते थे और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते थे।
उनका अपने भक्तों को प्रसाद देने का तरीका भी काफी अचंभित करने वाला था जिस पर विश्वास कर सकना भी मुश्किल है। कहते हैं जब कोई भक्त उनसे प्रसाद की कामना करता तो बाबा उस ऊंचे मचान पर बैठे ही अपना हाथ मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मिठाइयां या अन्य खाद्य पदार्थ अपने आप ही आ जाते थे।
यह देख लोगों को अचंभा होता था कि आखिरकार खाली पड़े मचान में से बाबा के हाथ में प्रसाद कैसे आया। कुछ लोगों का मानना था कि बाबा अपनी अदृश्य शक्तियों की सहायता से कहीं भी चले जाते थे तथा अपने भक्तों के लिए प्रसाद ले आते थे।
लोगों का यह भी मानना है कि बाबा ने वर्षों तक अपने सूक्ष्म शरीर में भी तपस्या की इसलिए उनकी उम्र का सही अनुमान लगाना लोगों के लिए और भी मुश्किल हो गया। अक्सर उनकी इतनी अधिक उम्र को जानकर लोग यह सोचते हैं कि बाबा काफी पौष्टिक आहार लेते होंगे।
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जन श्रुतियों के मुताबिक बाबा ने अपने पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं खाया। वे केवल दूध और शहद पीकर जीते थे। इसके अलावा श्रीफल का रस भी उन्हें बेहद पसंद था।
देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्तियों से आकर्षित होकर देश की कई नामी हस्तियां भी उनके दर्शन करने आती थीं। इस लिस्ट में राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनेताओं का नाम शामिल है।
कहते हैं कि देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गई थीं तो वे देवरहा बाबा के पास अपनी समस्या का हल मांगने आई थीं। तब बाबा ने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया और तभी से कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है। मान्यतानुसार, बाबा से मिलने के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी जीत भी गई थीं।

बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं, तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी।
कोई 1987 के जून महीने की बात है। देवरहा बाबा का वृंदावन में यमुना पार पर डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने के आतुर थे। अधिकारियों में उनकी सुरक्षा को लेकर हलचल मची हुई थी। प्रधानमंत्री के आगमन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर बाबा आग-बबूला हो गये।
उन्होंने साफ शब्दों में अधिकारियों को बोलाः
तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
अफसरों ने अपनी दुविधा प्रकट की बाबा ने ही उन्हें सांत्वना दी और कहा कि फिक्र मत करो, अब तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैन्सिल करा देता हूं। दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां स्वयं बाबा के दर्शन करने के लिए आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग?
बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा।


मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते।
बाबा ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। जन स्वास्‍थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!

परम हनुमान भक्त बाबा नीम करौली



परम हनुमान भक्त बाबा नीम करौली 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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नीम करोली बाबा एक महान हनुमान भक्त संत थे. बहुत से लोग उन्हें  हनुमान जी का अवतार भी मानते है, प्यार से लोग उन्हें महाराज जी के नाम से भी भी पुकारते हैं. हनुमान जी के परम भक्त नीम करोली बाबा जी के दरबार कैंची धाम आश्रम एवं वृंदावन आश्रम में  हमेशा भक्तों का ताँता लगा रहता है. लोगों का कहना है कि दरबार में आकर उनकी मनोकामना पूरी होती है और महाराज कभी भी किसी भक्त को निराश नहीं छोड़ते.

भारत  की धरती पुरातन काल से महान संतो, महापुरुषों एवं विदुषियों की जन्मदायिनी रही है. संत चाहे दुनिया के किसी भी कोने में पैदा हुवा हो, सही मायनो में संत वही है जो इंसानो को सही एवं कुदरती राह पर चलना सिखाता है. भारतीय संत परम्परा में संत कबीर से लेकर गुरनानक देव, बुल्ले शाह, मलूकदास, ज्योतिबा फुले, स्वामी विवेकानंद आदि सभी संतों की सामान्य प्रवृति में ज्ञान एवं कर्म की साधना करना एवं इसका उपयोग मानव एवं कुदरत सहअस्तिव के लिए करने का भाव है. परन्तु ज्ञान, कर्म एवं भक्ति की साधना कर महान मानवीय या फिर ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करने और उनको मानवता की सेवा में समर्पण कर देने का एक बड़ा उदहारण “नीम करोली बाबा” है.

हनुमान भक्त महाराज नीम करोली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर नमक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुवा था. नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रशाद शर्मा था. नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था.  अकबरपुर के किरहीनं गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुई. मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था. परन्तु  जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे.

       एक दिन उनके पिता को किसी ने उनकी खबर दी, पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने का आदेश दिया. पिता के आदेश को तुरंत मानते हुवे वो घर वापस लौट  आये और पुनः गृहस्थ जीवन आरम्भ कर दिया. गृहस्थ  जीवन  के साथ- साथ सामाजिक और धार्मिक कार्यों में वो बढ़ – चढ़ हिस्सा लिया करते थे. बाद में ही दो बेटों एवं एक बेटी के पिता भी बन गए, परन्तु घर गृहस्थी में लम्बे समय तक उनका मन नहीं रमा और कुछ समय बाद लगभग 1958 के आस- पास उन्होंने फिर से गृह त्याग कर दिया.

घर-बार त्याग कर वो अलग- अलग जगह घूमने लगे. इसी भृमण के दौरान उनको हांड़ी वाला बाबा, लक्ष्मण दास, तिकोनिया वाला बाबा आदि नामों से जाना जाना गया. कहा जाता है कि और उन्होंने मात्र 17  वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त कर लिया था. नीम करोली बाबा जी ने गुजरात के बवानिया मोरबी में साधना की और वहां वो तलैयां वाला बाबा के नाम से विख्यात हो गए. वृंदावन में महाराज जी, चमत्कारी बाबा के नाम से जाने गए.

 कहते है कि गृह- त्याग के बाद, जब वो अनेक स्थानों के भृमण पर थे  तभी एक बार महाराज जी एक स्टेशन से ट्रेन किसी वजह से बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ  गए. मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेक करने के लिए एक कर्मचारी उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है, कुछ वाद- विवाद के बाद ट्रेन के ड्राइवर एक जगह जिसका ट्रेन रोक दी. महाराज को उतार दिया गया और ट्रेन ड्राइवर वापस ट्रेन चलने लगा. मगर ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुवी. बहुत कोशिश की गयी, इंजिन को बदल कर देखा गया मगर सफलता हाथ नहीं लगी.

इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और  उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा. तो कर्मचारियों ने पास में ही में एक पेड़ के नीचे बैठे हुवे साधु को इंगित करते हुए, कारण अधिकारी को बता दिया.  वो अधिकारी महाराज और उनकी दिव्यता से परिचित था. अतः उसने साधु को वापस ट्रेन में बिठाकर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा.  साधु ने इंकार कर दिया परन्तु जब अन्य सहयात्रियों ने भी महाराज से बैठ जाने का आग्रह किया तो महाराज ने दो शर्ते रखी. एक कि उस स्थान पर ट्रेन स्टेशन बनाया जायेगा, दूसरा कि साधु सन्यासियों के साथ भविष्य में ऐसा वर्ताव नहीं किया जायेगा.  रेलवे के अधिकारिओं ने दोनो शर्तों के लिए हामी भर दी तो महाराज ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चल पड़ी.

बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया. कुछ समय बाद महाराज उस गांव में आये और वहां  रुके तभी से लोग उन्हें नीब करोरी वाले बाबा या नीम करोली बाबा के नाम से जानने लगे

नीम करोली बाबा जी आगरा से वापस कैंची धाम आ रहे थे.  जहां वो ह्रदय में दर्द की शिकायत के बाद जरुरी चिकित्सा जाँच के लिए गए थे,  इसी बीच मथुरा स्टेशन पर पुनः दर्द  होने के कारण उन्होंने अपने शिष्यों को वृंदावन आश्रम वापस चलने के लिए कहा.  तबियत ज्यादा ख़राब होने कि वजह से शिष्यों ने उन्हें वृंदावन में एक हॉस्पिटल के आकस्मिक  चिकिस्ता सेवा कक्ष  में भर्ती कर दिया.  डॉक्टर्स ने उन्हें कुछ इंजेक्शन दिए और आक्सीजन मास्क लगा दिया.

कुछ ही देर में महाराज वापस बैठ गए और आक्सीजन मास्क को उतार कर कहा “बेकार” कि (अब ये सब बेकार है) और महाराज धीरे- धीरे  कई बार “जय जगदीश हरे” पुकारते हुवे 11 सितम्बर 1973 को 1 बजकर 15 मिनट के समय बहुत ही शांति के साथ में लीन  हो गए .

अपने जीवन- काल में नीम करौली बाबा जी (Neem Karoli Baba) ने अनेकों स्थानों का भ्रमण किया. महाराज ने 100 से भी अधिक मंदिरों और आश्रमों का निर्माण करवाया था, जिसमे से वृंदावन और कैंची धाम आश्रम मुख्य है. कैंची धाम आश्रम में नीम करौली बाबा जी अपने जीवन के अंतिम दशक में सबसे ज्यादा रहे, इस आश्रम का निर्माण 1964  में करवाया गया था. आरम्भ में यह स्थान दो स्थानीय साधुओं, प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज के लिए यज्ञ हेतु बनवाया गया थासाथ ही यहाँ एक हनुमान मंदिर कि स्थापना भी उसी समय पर की गई.  कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल  से लगभग १७ किलोमीटर दूर अल्मोड़ा – नैनीताल रोड पर स्थित है. यह स्थान अत्यंत खूबसूरत एवं पहाड़ियों से घिरा हुवा है.  आश्रम की स्थापना की वर्षगांठ के अवसर पर हर  वर्ष 15 जून  को यहां पर मेले का आयोजन होता है, जिसमे देश  विदेश से लाखो लोग हिस्सा लेते है.

नीम करोली बाबा जी के अनुयायों का फैलाव सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं वरन यूरोप से लेकर अमेरिका तक है. बाबा रामदास, भगवान् दास , माँ जया, जय उत्त्कल, कृष्णा दास उनके मुख्य शिष्य है. इसके अलावा फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स आदि जैसी बड़ी नामचीन हस्तियां भी बाबा जी के मंदिर आते रहे है.

देश के किसी भी हिस्से से आप को नैनीताल के हल्द्वानी शहर या काठगोदाम पहुंचना होगा. काठगोदाम पहुंचने के लिए भारतीय रेल की सेवा का उपयोग किया जा सकता है जो काठगोदाम तक उपलब्ध है. या फिर सड़क मार्ग से भी आप हल्द्वानी, काठगोदाम होते हुवे कैंची धाम जा सकते है.  अगर आप हवाई मार्ग से आते है तो पंतनगर एयरपोर्ट तक का सफर आप हवाई मार्ग से कर  सकते है. पंत नगर एयरपोर्ट से कैंची धाम की दूरी लगभग 72 किलोमीटर है. इस सफर को  आप निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बस से भी तय कर सकते है काठगोदाम के बाद लगभग 40  किलोमीटर पहाड़ी सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है. निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बसों से भी ये सफर तय किया जा सकता है.

बाबा के वचन:
  •  ईश्वर के प्रेम को छोड़कर, सब कुछ अस्थायी है”
  •  यदि आप ईश्वर देखना चाहते हैं, मन की इच्छाओं को मार डालो, यदि कोई इच्छा है तो उस पर कार्रवाई न करें और वह दूर जाएंगे। यदि आप  चाय पीने की इच्छा रखते हैं, न पिए और  इच्छा दूर हो जाएगी”
  • इंसान अक्सर किसी और काम के लिए जाता है और दूसरा पाता है”
  •  सम्पूर्ण सत्य आवश्यक है, आप जो कहते हैं उसके अनुसार जीवित रहना चाहिए”
  •  हर किसी से प्रेम करो, हर किसी की सेवा करो, भगवान को स्मरण करें, और सत्य को बताएं”
  •  कुछ भी गुरु हो सकता है – वह एक पागल या आम व्यक्ति हो सकता है एक बार जब आप उसे स्वीकार कर लेते हैं, तो वह प्रभुओं का स्वामी है”
  •  सभी धर्म समान हैं, सभी एक ही परमात्मा  की तरफ जाते है. भगवन सर्वत्र व्याप्त  है”
  •  पूरे ब्रह्माण्ड हमारा घर  है और इसमें रहने वाले सभी लोग हमारे परिवार के हैं. किसी विशेष रूप में भगवान को देखने की कोशिश करने के बजाय, उसे हर चीज में देखना अच्छा है”
  •  वासना, लालच, क्रोध, अनुलग्नक – ये नरक के सभी रास्ते हैं”
  •  भगवान  को  ध्यान  में  रखना  ही वास्तव  में  सबसे  बड़ी  सेवा  है. हर  समय  आपके  मस्तिष्क  में  भगवन की छवि होनी  चाहिए”
  •  “यदि आप एक दूसरे से प्यार नहीं कर सकते, तो आप अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते”
  •  यह दुनिया एक छलावा है, फिर भी आप चिंतित हैं क्योंकि आप संलग्न हैं”
  •  जब आप उदास होते हैं, दर्द में या बीमार  होते हैं या आप किसी भी अंतिम संस्कार में गए होते  हैं, तो आप वास्तव में जीवन की कई सच्चाई सीखते हैं”
  •  भगवान को देखने के लिए सबसे अच्छा तरीका .. उसे  हर रूप में देखना है”
  •  सभी सांसारिक चीजों से  मन को  साफ़ करें. यदि आप अपने दिमाग को नियंत्रित नहीं कर सकते, तो आप भगवान को कैसे महसूस करेंगे”

रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव'  नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना 1943 की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।


दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती।  वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और चादर को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।


जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।


लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।


उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।

नीम करोली बाबा विदेशी भक्तों में ज्यादा लोकप्रिय है। 60 और 70 के दशक में भारत आने वाले बहुत से अमेरिकियों के गुरु के रूप में वह ज्यादा जाने जाते हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में उनकी शादी एक संपन्न ब्राह्मण परिवार की लडक़ी से कर दी गई। लेकिन महाराजजी ने अपनी शादी के तुरंत बाद घर छोड़ दिया और गुजरात चले गए। करीब 10-15 साल बाद, उनके पिता को किसी ने बताया कि उसने उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले के नीब करोरी गांव (जिसका नाम बिगडक़र ‘नीम करोली’ हो गया) में एक साधु को देखा है जिसकी शक्ल उनके बेटे की शक्ल से मिलती है।

‘‘रामदास अमेरीका से भारत आया। वह इतना बड़ा नशेबाज था कि एक दिन में दो, तीन एलएसडी निगल सकता था। एक दिन वह नीम करोली बाबा के पास गया, जो असाधारण काबिलियत के धनी एक अद्भुत गुरु थे। वे दिव्यदर्शी, एक बहुत काबिल तांत्रिक, एक असाधारण व्यक्ति और हनुमान के भक्त थे।

तो वह नीम करोली बाबा के पास आया और बोला, ‘मेरे पास एक असली माल है जो स्वर्ग का आनंद देता है। आप इसे खाएं तो ज्ञान के सारे दरवाजे खुल जाते हैं। क्या आप इसके बारे में कुछ जानते हैं?’ नीम करोली बाबा ने पूछा, ‘यह क्या है? मुझे बताओ।’

उन्होंने गोलियों को मुंह में डाला और निगल लिया। फिर वहां बैठकर अपना काम करते रहे। रामदास वहां इस उम्मीद में बैठा रहा कि यह आदमी अभी मरने वाला है।  उसने उन्हें कई सारी गोलियां दीं। वह बोले, ‘तुम्हारे पास कितनी हैं? मुझे दिखाओ।’ उसके पास बहुत सारी गोलियां थीं, जो उसके लिए कई दिनों या महीनों चलती। वह बोले, ‘लाओ मुझे दो।’ उसने उन्हें मुट्ठी भर एलएसडी दे दीं। उन्होंने गोलियों को मुंह में डाला और निगल लिया। फि र वहां बैठकर अपना काम करते रहे। रामदास वहां इस उम्मीद में बैठा रहा कि यह आदमी अभी मरने वाला है। मगर नीम करोली बाबा पर एलएसडी का कोई असर नहीं दिख रहा था। वह काम करते रहे, उनका मकसद बस रामदास को यह बताना था कि तुम एक फालतू सी चीज पर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो। यह चीज तुम्हारे किसी काम नहीं आने वाली।’’ -  सद्‌गुरु

ऊपर चर्चित आदमी ‘रामदास’ के बारे में पुस्तक ‘ मिडनाइट विद द मिस्टिक’ में चर्चा की गई है। इस पुस्तक की लेखिका शेरिल सिमोंन कई सारी कंपनियों की सी. ई. ओ. हैं, और पूरे जीवन एक आध्यात्मिक खोजी रही हैं। 30 साल की खोज के बाद आखिरकार वे सद्‌गुरु से मिलीं और उन्हें सद्‌गुरु के साथ बैठने और अपने ज्वलंत प्रश्न पूछने का मौका मिला। पेश है इस पुस्तक के कुछ अंश।

वे बोले कि कभी-कभी जब किसी की खोज बड़ी तीव्र और गहरी होती है, तो उनके माध्यम से कुछ घटित होने लगता है। उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु से मिलूंगी, तब मुझे पता चल जायेगा।


जब मैं उत्तरी कैलिफ़ोर्निया में रामदास से उनके घर पर मिलने गयी और मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मेरे गुरु हैं, तो उन्होंने कहा नहीं, वे गुरु नहीं हैं। वे बोले कि कभी-कभी जब किसी की खोज बड़ी तीव्र और गहरी होती है, तो उनके माध्यम से कुछ घटित होने लगता है। उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु से मिलूंगी, तब मुझे पता चल जायेगा। मैंने सोचा कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो कर गति पकड़ चुकी है और मेरे साथ कुछ बहुत बड़ा घटित होने वाला है। यह सब तीस साल से भी पहले हुआ था।

अगस्त की उस शाम को जब हम अपने द्वीप पर आग तापने बैठे थे, तब मैंने सद्‌गुरु को अपने रामदास वाली कहानी सुनायी। ‘जब मैंने पहली बार आपको देखा,’ मैंने सद्‌गुरु से कहा, ‘आप मुझे वही स्वरूप या सत्व लगे जिसको मैंने इतने समय पहले रामदास के रूप में देखा था। सब-कुछ इतना जाना-पहचाना-सा था और मैं अचरज में डूबी हुई थी। मैं जान गयी थी कि अब मेरे लिए यह स्वांग समाप्त होने वाला है। जो वास्तविक है वह अंतत: प्रकट हो चुका था।’

सद्‌गुरु ने तब उस घटना की व्याख्या करना शुरू किया। ‘जैसा कि आप जानती हैं, रामदास नीम करोली बाबा के पास गये,’ उन्होंने कहा। ‘नीम करोली बाबा प्रचंड क्षमताओं वाले महापुरुष थे। वे एक दिव्यदर्शी थे, जिन पर शिक्षा का बोझ नहीं था। मुझे अपनी बात आपकी भाषा में कहनी होगी और ऐसी बातें बतानी होंगी जिनको आप अपनी संवेदनशीलता से समझ पायें।
शेरिल, देखिए मैं आपके साथ कितनी सावधानी बरत रहा हूं? नीम करोली बाबा को इस सबकी परवाह नहीं थी।
मुझे पता नहीं रामदास ने यह बात किसी निश्चित क्षण में केवल आप से कही या यह बात उन्होंने सबसे कही, लेकिन किसी भी रूप में रामदास आपके गुरु नहीं हो सकते। अशिक्षित होने पर यह आजादी होती है। इसलिए रामदास के प्रति उनके प्रेम या फिर रामदास की अपनी निष्ठा और ग्रहण करने की उनकी सदिच्छा के कारण एक विशेष आयाम ने उन पर कृपादृष्टि की।
मुझे पता नहीं रामदास ने यह बात किसी निश्चित क्षण में केवल आप से कही या यह बात उन्होंने सबसे कही, लेकिन किसी भी रूप में रामदास आपके गुरु नहीं हो सकते। हां, वे आपको जीवन का एक और आयाम दिखाने वाला झरोखा हो सकते हैं, और उन्होंने बिलकुल यही किया। रामदास अपनी क्षमताओं से रामदास नहीं बने, वे अपनी साधना से रामदास नहीं बने, रामदास केवल इसलिए रामदास बन पाये क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में एक उपयुक्त कार्य किया- वे नीम करोली बाबा जैसे महापुरुष के सान्निध्य में रहे। उनमें उनके साथ बैठे रहने की समझ थी, जिसके कारण वे उस दिव्यपुरुष के एक खास आयाम को अपने में समाहित कर पाये। नीम करोली बाबा अनेक झरोखे खोलना चाहते थे, पर उन्होंने बस एक झरोखा खोल कर उसको अमरीका भेज दिया।’’

बाबा ने एक भारतीय लडक़ी से चार बार पूछा - ‘‘तुम्हें आनंद पसंद है या दु:ख?’’ हर बार लडक़ी ने जवाब दिया - ‘‘मैंने कभी आनंद महसूस ही नहीं किया, महाराजजी, बस दु:ख ही महसूस किया है।’’ आखिर में महाराजजी ने बोला - ‘‘मुझे दु:ख पसंद है। यह मुझे भगवान के पास ले जाता है।’’

भारत में, योग लोगों की रगों में बहता है। - नीम करोली बाबा

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...