मृत्यु का अनुभव और वापिसी: अन्य चर्चा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "अन्वेषक"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक, लेखक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
सत्व गुणों की प्रधानता वाला ऊपर की योनियों यानी देव और सिद्ध योनियों में
जन्मता है।
रजोवाला मनुष्य
तमोवाला नीचे की योनियों।
16 कला पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण
14 रामावतार
10 से 12 सिद्ध
8 से 10 देव
6 से 8 मॉनव
6 से 4 पशु
4 से 2 पक्षी
2 से 0 तक कीट और बृक्ष इत्यादि।
देखिए किसी का उपहास उचित नही।
आध्यात्म की लाइन में जिसको कुछ विशेष अनुभव
होते है उनको समाज कल्याण की भावना। उपदेश देने की
भावना। कुछ को तो गुरु बनकर पूजा करवाने की भावना स्वतः उतपन्न हो जाती है।
जिसने अपने को नियंत्रित किया वो आगे बढ़ा अन्य अनुभवों
और ज्ञान हेतु। जिसने लालच कर लिया उंसक पतन आरम्भ हो जाता है। पर उसको
मालूम नही पड़ता।
जली
पुनः लकड़ी की होली। पर क्या पाप जला पाए।।
चढ़ी
पुनः खीर और पूड़ी। पर क्या भूख मिटा पाए।।
युगों युगों से जला रहे हो। नाम होलिका का लेकर।
पर अपने मन का जो दानव। तनिक उसे जला पाए।।
आज विपुल मन कुछ यूं सोचो। जो कुरीतियां छाई
हैं।।
उन्हें त्याग मन मे हम झांके। गुझियां सद्भाव की आई है।
भारत अपना श्रेष्ठ बनेगा। संग विपुल परचम लहराए।
यही कामना मन मे लेकर। वंदे मातरम हर घर छाए।।
आसाराम बापू के प्रारब्ध और उनका ज्ञान योग में जाकर स्थिर होना। भारी पड़
गया।
पर मुझे आसाराम बापू के ही प्रवचन सर्वश्रेष्ठ लगते थे।
बाकी के प्रवचन से स्पष्ट लग जाता है कि उनको कितना अल्प अनुभव है।
मैंने कई बार लिखा है। ब्रह्म ज्ञानी होना सरल है। पर ज्ञानी ज्ञान योग में
जाकर फिसल सकता है।
अतः ब्रह्म ज्ञान को सिद्ध कर ब्रह्म स्वरूप होना चाहिए। ब्रह्म स्वरूप नही फिसलते। जैसे स्वामी
शिवओम तीर्थ या स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज।
रावण ब्रह्म ज्ञानी था। राम ब्रह्म स्वरूप थे।
आसाराम जी से कुछ गलतियां हो गई।
1 उनके गुरु की पूर्ण इच्छा नही थी कि
आसाराम गुरू बने।
2 आसाराम के प्रवचनों से स्पष्ट था कि वे
ज्ञान योग में स्थित हो गए।
जब सर्वत्र ब्रह्म सर्वस्य ब्रह्म तो सब जगत
छाया और भरम। अतः क्या गलत क्या सही। बस यहीं से अहंकार का प्रवेश और गलत
कार्यो में लिपपता।
प्रभु जी। मैं खुद रामदेव का प्रशंसक हूँ और समर्थक हूँ। जहाँ तक भारत की
विरासत और भारतीयता की बात है।
पर योग पर रामदेव जी की पकड़ नही है। एक बार एक पेट पिचकानेवाले को कहने लगे
अरे तू तो महायोगी हो गया। जो गलत है।
देखिए इसी कारण राम ने सीता को निकाला।
क्योकि जो नायक होते है श्रेष्ठ पुरुष आचरण करते है। लोग
उन्ही का अनुसरण करते है। अतः इस वाक्य सभी लोग पेट को पिचकाने को योग
मानने लगे।
रामदेव के भाषण में कही यह नही कहा भाई यह योगासन है। योग तो अलग होते है
वो तो दूर की बात है।
मैं यह भी कहता हूँ कि यदि आज पातञ्जलि जिंदा होते तो
आत्महत्या ही कर लेते।
क्वचिच चिंचो मूरख:। मूर्खो को ज्ञान
क्या।
अधिकतर मात्र बौद्धिक विलासिता और अपनी
विद्ध्वता या हम कुछ है ये ही सब प्रदर्शित करने में लगे है।
लगभग सभी पूछे गए और पूछे जाने वाले
प्रश्नों के उत्तर लेखों में दे चुका हूँ या ब्लाग पर दिए है।
पर पढ़ना नही। चिंतन करना नही। सिर्फ नेट
पर काबिलियत झाड़ना है।
मैंने इसी लिए मात्र हिंदी में अष्टावक्र
की गीता का भी संकलन दिया है। पहले पढो फिर पूछो।
पर आज फिर योग जैसे सामान्य विषय पर
व्यर्थ की चर्चा।
मेरे पास कोई नही वरना मैं मात्र 5 मिनट के क्लिप में योग को गणितीय आकार में
व्यख्यायित कर दूं।
मित्रो प्रभु चिंतन करो। ऐसा क्यो कहा।
इससे फायदा होगा।
व्यर्थ की बकवास सिर्फ समय व्यर्थ करेगी।
अब आपके साथ गुरू शक्ति है। चिंता न करे।
यह खुजली की क्रिया है कि दूसरो की टांग खींचे।
बाद में सुधर जाएगा। ज्ञान का बोझ सम्भल नही रहा है।
यह गोरख योग क्या होता है। बताने का कष्ट करें।
वेदान्त के अनुसार आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है।
इसके अलावा कौन सा योग है। प्रकाश डाले।
यह मॉनव जीवन प्रभु का सबसे बड़ा आशीष।
साथ मे सरकारी नौकरी इस जगत का आशीष।
अब कौन तुम्हे कुछ दे पाएगा। तुम तो खुद मालामाल हो।
मित्र अन्यथा न ले। इन्ही सब लेखों को देखकर मैं निष्कर्ष निकाला लेता हूँ। आपने
जो भी योग के विषय मे लिखा वह कदापि सत्य नही है। योग अन्त्राभूति है जब यह घटित होता है तब शारीरिक परिवर्तनों को भी अनुभव किया जा सकता है। यह
अचानक बिना प्लानिंग के घटित होता है।
आप आसनो को सिद्ध करने को योग कह रहे है।
फिर यम नियम प्रत्याहार के पालन को भी योग कह रहे है।
यह सिद्ध करता है आपको योग की अनुभूति नही हुई है।
अन्यथा न ले। आप इस विषय पर मात्र किताबे ढूढ़ रहे है।
जो जानकार नही वे भले ही सत्य माने। पर आपका व्याख्यान
पूर्णतया असत्य है।
जी यदि आप देखे तो जैन में और कुछ हद तक बौद्ध में भी ब्रह्म सूत्रों का वर्णन है। पर भाषा अलग है वो पाली
और प्राकृत में है।
दूसरी बात आप ब्रह्म सूत्र को कोई बहुत महान न समझे। यह मात्र ऋषियों ने विभिन्न वाणियो को एकत्र कर तर्क वितर्क
किया है। किसी ने सत्य को प्रतिपादित किया तो किसी ने जुड़ने को।
सबका सार यही है सर्वत्र ब्रह्म सर्वस्य
ब्रह्म। एक बार यह अनुभूति हो जाये तो सब एक तरफ।
मैं यह दावा इसी लिए कर रहा हूँ कि मैं
बादरायण के ब्रह्म सूत्र के भावार्थ लिख रहा हूँ। कुछ तो किसी अन्य ऋषि की
वाणी से अलग व्याख्या भी करते है।
बौद्ध
का अष्टमंन व सम्यक और अष्टांग योग की समानताओं पर मेरा लेख ब्लाग पर पड़ा है।
दोनो
के भावार्थ एक है।
बुद्ध
की सम्यक कार्यप्रणाली दृष्टा भाव नही तो क्या है।
ध्यान
करते रहो। ये सब इसी लिए होता है कि तुम ध्यान न करो।
बजरंग
बाण पढ़ लिया करो सोने के पहले।
बिन
गुरू ज्ञान कहाँ से लाऊँ।
तुम
बिन बिगड़े अपने काज।।
देखो
दीक्षा तुम्हारी शर्तो पर नही होगी। यह भाजी नही की हर कोई या ले।
चूंकि
मैं हूँ तो लोग शक्तिपात का नाम सुन पा रहे है। नही तो कोई नही जानता था।
इस
दीक्षा के बाद कुछ शेष नही रहता। जो शेष रहता है वो अशेष।
ज्ञानी
होने का अर्थ नही कि एक मात्र तुम्ही मालिक हो जगत के। किसी
का मान अपमान की वाणी बोलते क्यो हो जो बाद में माफी मांगनी पड़ी।
तोल
मोल के बोल।
मुँह
एक है कान दो है। आंख दो है। दूना देखो और सुनो।
बोलो
आधा।
तुम्हारी
बकवास से या अल्पज्ञता से हर ग्रुप की विभूतियां नाराज होती है।
तुम
हो क्या। तुम्हारी हैसियत क्या जो अहंकार और बकवास करते रहते हो।
जरा
सा प्रभु कृपा मिली पगला गए।
स्वामी
जी मानस को आज के संदर्भ में बेहद सुंदर
तरीके से नई नई व्याख्या करते है। मूरख तुम हो दूसरे को बोलते हो।
लोहे के गरम तबे पर पानी की एक बूंद है हम। याद रखो। यह शरीर रूप कुछ न रहेगा।
मैं स्वामी जी के अपमान से दुखी
हूं।
इसे शब्द योग विधि कहते है। जो संगीत शब्द और मन्त्र शब्द अथवा प्रकृति के
द्वारा हो सकता है।
अक्षर ब्रह्म। यह अंतर्मुखी होने की कर्ण विधियों में आता है।
मैं उनको दंडवत नमन ही करता हूँ। सन्यासी होने के
कारण पूज्यनीय है। पर वे मुझे बड़ा भाई मानती है।
यहाँ पर ज्ञान मान अभिमान की बात नही है। एक दूसरे के
प्रति आदर की बात है।
निश्चित वे गुरू पद है तो पूज्यनीय है । मैं उनको
अपने से अधिक ही मानता हूँ।
निश्चित उनका मान अधिक है। क्योकि उनको गुरू महाराज
ने मान दिया और नमन किया।
ध्यान दे सन्यास दीक्षा में पहला प्रणाम गुरू ही अपने
शिष्य को करता है।
इसके अतिरिक्त भी तमाम बातें है जो आप लोग नही जानते
और न मैं बता सकता
हूँ। भाई आखिर 1993 से परम्परा में
जुड़ा हूँ। कुछ तो आपसे अधिक है ही। भले ज्ञान न हो पर सानिध्य तो अधिक है ही।
आगे क्या बोलू पर इतना तो बताना जरूरी है
शिवओम तीर्थ
जी महाराज अपने पास बैठा कर स्वयं अपने
लिखित भजन सुनाते थे। यह सौभाग्य आपमें से किसका है।
पढ़ना और पढ़ाना मात्र समय की बर्बादी है।
प्रश्न: अब आप हमारे भाग्य को नीचा दिखाने
के आयोजन करने लगे प्रभु
सड़क पर कूड़ा उठानेवाला ट्रक केवल कूड़ा ही
देखता है। क्या तुम्हारी दृष्टि उसी की है।
यह समय समय की बात है। यही नही वर्ष 1994 में देवास में सभी सन्यासी इकट्ठा हुए तो मुझे कई
चमत्कारी सNयासियो से भी भेंट का विशेष अवसर मिला।
बड़े महाराज शिवओम तीर्थ जी महाराज द्वारा
मुझे प्रददत्त तौलिया अभी तक मेरे पास सुरक्षित है।
मित्रो भटके नही। योग को समझे।
योग
क्या है।
वेदांत : आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव।
कैसे पहिचाने की योग हुआ।
वेद महावाक्यों की अनुभूति। कम कम से कम एक की।
1 अहम ब्रह्ममास्मि।
इसमें द्वैत भक्ति करते करते दर्शनाभूति इत्यादि होते
होते दासत्व भाव होते होते अचानक अद्वैत की अनुभूति।
यह महसूस होना अरे मैं ही ब्रह्म हूँ।
वेद उपनिषद इसे सत्य बताते है। पर मैं इसे क्रिया
मानता हूँ क्यो।
क्योकि ब्रह्म वो जिसके अधीन माया।
मॉनव वो जो माया के अधीन।
यह अनुभूति कुछ ही मिनटों की होती है वह भी अचानक।
इसमें फंसकर कुछ अपने को ब्रह्म समझकर अहंकार में फंस
कर पतित हो जाते है।
अतः कोशिश कर जबरिया ज्ञान लेकर द्वैत मे दासत्व में
आओ। ताकि अहंकार का शिकार न हो।
2 तत्वमसि।
मतलब ब्रह्म ही सबका तत्व यानि आधार है। ये ज्ञान से
आता है। अनुभव नही मन से अनभूति होती है।
3 अयम आत्मा ब्रह्म। यांनी मेरी
आत्मा ही ब्रह्म है। यह अचानक ध्यान से उठने के बाद बैठे अंदर से कोई बोलता है। अरे पगले मैं तेरी आत्मा में हूँ। वही रहता हूँ। तू राम कृष्ण काली सबको
अपने से अलग क्यो देखता है। मैं सदैव तेरे साथ हूँ।
जैसे मुझे तो लगता है तमाम अन्य को भी लगा कि जैसे कोई
मेरे साथ है। उन्होंने मुझसे पूछा। तो मैं क्या बोलू हा किया।
4 प्रज्ञानम ब्रह्म ।
यह जो प्रज्ञा है वो जो सोंच पाती है वो ब्रह्म ही
है।
5 सर्व खलमिदम ब्रह्म।
यानि
सर्वत्र ब्रह्म सर्वस्य ब्रह्म।
ब्रह्म से ही भगवान देवी देवता इत्यादि पैदा होते है। वो ब्रह्म
सर्वशक्तिमान निराकार निर्गुण रूप में सर्वत्र व्याप्त है।
यह अनुभव सबसे उच्च कोटि का कह सकते है।
मुझे मात्र दो ही अनुभव हुए है। तीसरा पूर्ण नही।
अब यह हुआ तो योग हुआ।
अब
आदमी की पहिचान
चित्त में वृत्ति का निरोध। यह आंतरिक है बाहरवाले नही देख पाते।
बाहरवाले क्या देखे।
समत्व का भाव।
स्थिर बुद्धि
स्थितप्रज्ञ
यही योग को आठ भागो में बांटकर अष्टांग योग बना।
यम समाज मे क्या करे। 5 भाग
नियम अपने साथ क्या करे। 5 भाग
प्रत्याहार
त्याग की प्रवृत्ति
आसन
प्रणायाम
यह सब वाहीक कर्म
फिर आंतरिक
धारणा
समाधि
तब जाकर योग घटित हो सकता है।
किंतु
भक्ति में यह बन्धन नही
बस ईश प्राणिधान और समर्पण।
ज्ञान योग यानि वेद महावाक्य का अनुभव।
भक्तियोग
दर्शनाभूति
फिर वेद महावाक्यों की अनुभूति
कर्म योग
यह सब घटने के बाद निष्कासम कर्म स्वतः होने लगता है।
आसक्ति घटती है। तब कर्म योग।
निष्काम बहुत बाद में होता है यह पैतृक संपत्ति नही।
भक्ति में सिर्फ मन्त्र जप करो सब आ जायेगा। मिल जाएगा।
अपने आप होने लगता है।
कारण यह अनुभूतियां बहुत अल्प समय की हो सकती है। बाद में आदमी फिर संसार
मे लीन हो सकता है भटक सकता है।
जब इसकी पुनरावृत्ति होती है तो धीरे धीरे निष्काम भाव भी आ जाता है।
सही है। भक्ति सब स्वतः देती है।
मैं बोला न । अक्षर ब्रह्म। शब्द ब्रह्म।
यह सब कर सकता है।
मुझे न कुछ समझना न जानना। बस यह जानता हूँ। मन्त्र सर्व शक्तिमान।
एकमात्र तुम्ही ज्ञानी आये हो धरती पर। यह वहम निकाल दो।
प्रत्येक
मनुष्य के अनुभव कुछ अलग हो सकते है।
पहली
बात यह है कि आत्मा शरीर के किस अंग से निकलेगी।
उसके
अनुसार अनुभव हो सकते है।
स्वामी
विष्णुतीर्थ जी महाराज ने लिखा है। मृत्यु के समय एक
करोड़ सुइयों की चुभन जैसी वेदना होती है।
वैसे जानकारों ने बताया है।
पहले शरीर के पैर से होते हुए धीरे धीरे ऊपर के संग निष्क्रिय होते है। यह
क्रम ऊपर तक आता है। मस्तिष्क सब महसूस करता है पर बोल नही पाता व्यक्त नही
कर पाता।
मनुष्य
को कोई आकृति जो यम दूत हो सकता है या कोई अन्य दिखता है।
मनुष्य
को उसके जीवन भर के पाप उसके सामने फ़िल्म की तरह दिखाए जाते है। तब मनुष्य मात्र
रुओ पाता है अध्रु गिरते है।
फिर
अचानक तीव्र वेदना के साथ मनुष्य का सूक्ष्म शरीर आत्मा निकलती है जो वेदना से
मुक्त होती है।
कभी कभी मनुष्य को प्रकाश की
सुरंग इत्यादि दिखती है जिसमे से आदमी गुजरता जाता है।
मेरे
मित्र जिनको इस ग्रुप में कई सदस्य जानते है उनको मृत्यु का अनुभव है। वो ऊपर जाकर
वापिस आये थे।
शर्मा की हालत फेफड़ों के संक्रमण के कारण काम करने से मना कर रहे थे। उनको हिंदूजा
हस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ कोई दवा रिस्पांड नही हो रही
थी।
उनके शब्दो मे मेरे सामने अचानक यमदूत बिलकुल वोही
आकृति जो फोटो में दिखाते हैं। आकर खड़े हो गए कहने लगे तुम्हारा समय पूरा हुआ अब
मेरे साथ चलो।
वे झगड़ने लगे बोले क्यो चलू मुझे तमाम काम करने है। फिर मैंने कौन से पाप किये है
बताये।
इसी तरह तर्क करते हुए उनको को एक दरबार मे ले गए।
जहाँ एक सिंहासन था जिसपर सफेद वस्त्र पहने लंबी दाढी वाले वृद्ध बैठे थे और तमाम लोग
भी बैठे थे। शर्मा जी उनसे भी उलझ गए और तर्क देने लगे। वह बुजुर्ग सुनते
रहे फिर बोले ठीक है इसे वापिस ले जाओ। तब शर्मा जी ने उनको धन्यवाद बोलकर नमन
किया। उन्होंने हाथ उठाया। उन को अचानक दोनो ने धक्का दिया। शर्मा की आंख
खुली तो उसको 5 दिन बाद होश आया।
शर्मा के अनुसार मात्र कुछ पलों की घटना पर 5 दिन बीत चुके थे।
फिर दवा ने सुपर स्पीड से रिस्पांड किया। आज 56 साल की उम्र में 21 किमी का मैराथन
जीतते है
(कुछ तथ्य व कथन गूगल से साभार)
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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