क्या होते हैं शैव
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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आप वेदों को देखें तो उनमें 33 कोटि यानी 33 प्रकार के देवता होते हैं।
देवता बना है दिव धातु से जिसके अर्थ है देने वाला। उसी आधार पर इनका वर्गी करण
हुआ। (मेरा अलग लेख देखें)। कारण सत्य एक: विप्र बहुल: वदंति। ईश्वर एक पर उस पर पहुंचने के मार्ग अलग।
बस यही कारण है आपसी झगडे का। अब जो हमको देते हैं उनका वर्गीकरण 12 आदित्य : जिनसे मिले विष्णु और पैदा
हुये वैष्णव। 11 रुद्र जिनसे बने शिव और पैदा हुये शैव। 8 वसु और रुद्र आदित्य, जिनकी शक्ति बनी शाक्त। सबको माननेवाले बने
स्मार्त। वहीं वेदों के निराकार को लेकर बन गये वैदिक।
शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त
धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया।
इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के धर्म) के समन्वय का
कार्य भी किया। बाद
में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय बना जिसे स्मार्त
संप्रदाय कहते हैं।
इस तरह वेद और
पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदायों माने जा सकते हैं।
1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय।
भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव
कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में
माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की
आराधना में हैं। 12
रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए।
शैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर
शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती
जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है। शिव का निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है।
शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5.भैरव, 6.छिन्नमस्तक गिरिजा, 7.धूम्रवान, 8.बगलामुखी, 9.मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।
शिव के अन्य 11 अवतार : 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10. चण्ड तथा 11. भव का उल्लेख मिलता है।
इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।
शैव संस्कार : 1. शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। 2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं। 3. इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। 4. इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। 5. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। 6. ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। 7. शैव चन्द्र पर आधारित व्रत-उपवास करते हैं। 8. शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। 9. शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। 10. ये भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।
शैव धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्य:
(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव
और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है।
(2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक
पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।
(3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक
देवता का उल्लेख है।
(4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है।
(5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन
मत्स्यपुराण में मिलता है।
(6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग
पूजा का वर्णन मिलता है।
(7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या
चार बताई गई है: (i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत
पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान
शिव के 18 अवतारों
में से एक माना जाता है।
(8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को
पंचार्थिक कहा गया, इस मत का
सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।
(9) कापलिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक
स्थान था।
(10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव
पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल
में ही भोजन, जल और
सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे।
(11) लिंगायत
समुदाय
दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना
करते थे।
(12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के
प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा
जाता था।
(13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने
नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार
बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।
(14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा।
(15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है। जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम
उल्लेखनीय है।
(16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार
प्रसार नायनारों ने किया।
(17) ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण
राष्ट्रकूटों ने करवाया।
(18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में
राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।
(19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और
नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।
(20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के
अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं: (i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल
(21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं: (i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव
(22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं: (i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई
(23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं: (i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर
(24) शैव सम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार
हैं: (i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। (ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं। (iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। (iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। (v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। (vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में
कमंडल, चिमटा
रखकर धूनी भी रमाते हैं। (vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते
हैं। (viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। (ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां
सिर्फ शिवलिंग होता है। (x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं।
(25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा,औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।
वसुगुप्त
को कश्मीर
शैव दर्शन की परम्परा का प्रणेता माना जाता है। उन्होने 9वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में कश्मीरी
शैव सम्प्रदाय का गठन किया। इनके कल्लट
और सोमानन्द
दो
प्रसिद्ध शिष्य थे। इनका दार्शनिक मत ईश्वराद्वयवाद था। सोमानन्द ने "प्रत्यभिज्ञा
मत" का प्रतिपादन किया। प्रतिभिज्ञा शब्द का तात्पर्य है कि साधक अपनी पूर्वज्ञात वस्तु को पुन: जान ले। इस
अवस्था में साधक को अनिवर्चनीय आनन्दानुभूति होती है। वे अद्वैतभाव
में द्वैतभाव और निर्गुण में भी सगुण की कल्पना कर लेते थे। उन्होने मोक्ष
प्राप्ति
के लिए कोरे ज्ञान और निरीभक्ति को असमर्थ बतलाया। दोनों का समन्वय से ही मोक्ष प्राप्ति करा सकता
है। यद्यपि शुद्ध भक्ति बिना द्वैतभाव के संभव नहीं है और द्वैतभाव
अज्ञान मूलक है किन्तु ज्ञान प्राप्त कर लेने पर जब द्वैत मूलक भाव की
कल्पना कर ली जाती है तब उससे किसी प्रकार की हानि की संभावना नहीं रहती।
इस प्रकार इस सम्प्रदाय में कतिपय ऐसे भी साधक थे जो योग-क्रिया द्वारा
रहस्य का वास्तविक पता पाना चाहते थे क्योंकि उनकी धारणा थी कि योग-क्रिया
से हम माया के आवरण को समाप्त कर सकते है और इस दशा में ही मोक्ष की सिद्ध
सम्भव है।
वीरशैव वह परम्परा है जिसमें भक्त शिव परम्परा से बंधा हो। यह दक्षिण भारत में
बहुत लोकप्रिय हुई। ये वेदों पर आधारित धर्म
है और भारत का
तीसरा सबसे बड़ा शैव मत है। इसके अधिकांश उपासक कर्नाटक
में हैं और
भारत का दक्षिण राज्यों महाराष्ट्र, आन्ध्र
प्रदेश, केरल,
और तमिलनाडु
में वीरशैव
उपासक अधिकतम हैं। यह एकेश्वरवादी धर्म है। तमिल
में इस धर्म
को शिवाद्वैत
धर्म अथवा लिंगायत
धर्म भी कहते
हैं। उत्तर भारत में इस धर्म का औपचारिक नाम शैवागम है। वीरशैव की सभ्यता को द्राविड सभ्यता
कहते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार लगभग 1700 ईसापूर्व में वीरशैव अफगानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गये। तभी से
वो लोग (उनके विद्वान आचार्य ) अपने भगवान शिव को प्रसन्न करने के
लिये वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद में शिव भगवान को
परमब्रह्म प्रतिपादन को प्रमाण किया श्रीकर भाष्य ने, जिनमें ऋग्वेद
प्रथम था।
उसके बाद जगद्गुरु श्री वागिश पंडितारध्य शिवाचार्य उपनिषद जैसे ग्रन्थ को प्रस्थान त्रय ग्रन्थ में
शिवोत्तम का प्रतिपाद्य किया गया। १२वीं शताब्दी में बसवेश्वर
जी ने जन
भाष्य में सरल शिवतत्व का दर्शन दिया।