देवी नवरूप: पूजा व्याख्यान
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की
पूजा की जाती है। नवरात्र व्रत की शुरूआत प्रतिपदा तिथि को कलश
स्थापना से की जाती है। नवरात्र के नौ
दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के
समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।
यदि आप चाहे तो हर दिन अलग अलग रुपों की भी विशेष
पूजा कर सकते हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।
पहला नवरात्र: घट स्थापना व मां शैलपुत्री पूजा : दूसरा नवरात्र: मां ब्रह्मचारिणी पूजा, तीसरा नवरात्र: मां चंद्रघंटा पूजा, चौथा नवरात्र: मां कुष्मांडा पूजा, पांचवां नवरात्र: मां स्कंदमाता पूजा, छष्ठ नवरात्र: पंचमी तिथि सरस्वती आह्वाहन, मां कात्यायनी पूजा, सातवां नवरात्र:
मां कालरात्रि पूजा, अष्टम: महागौरी, नवमी: सिद्धिधात्री,
दशमी विसर्जन।
नवरात्र के 10 दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।
नवरात्र में हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए।
नारदपुराण के अनुसार हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा
अधूरी मानी जाती है। साथ ही नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा के लिए लाल रंग के
फूलों व रंग का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। नवरात्र में "श्री
दुर्गा सप्तशती" का पाठ करने का प्रयास करना चाहिए।
साबूदाना खिचड़ी: साबूदाना में स्टार्च या
कार्बोहाइड्रेट होता है जो उपवास के दौरान आपको आवश्यक ऊर्जा देता है। साबूदाना
की खिचड़ी साबूदाना, मूंगफली और हल्के मसालों के साथ बनाया गया एक हल्का
डिश। कुट्टू का डोसा:, कुट्टू की पूड़ियां, कुट्टू का
डोसा जिसमे आलू भरा हुआ। सिंगाड़े के आटे का सामोसा, इसे बनाने के लिए पानी में शहतीज का आटा,
सेंधा नमक और मसालेदार
चिरोंजी का इस्तेमाल करें। आलू की
कढ़ी: हलकी और स्वादिष्ट कड़ी। लो फैट वाली मखाना खीर, वज़न बढने की
चिंता को भुला कर इस खीर का मज़ा लें। केले अखरोट की लस्सी, दही,
केला,
शहद और अखरोट को मिला कर बनाई गयी है। अर्बि
कोफ्ता, व्रतवाले चावल का ढोकला, पकोड़े और पुरी, कबाब-ए-केला, मसालेदार केले कबाब, सोंठ की चटनी: सही पूरक है।
अब, क्योंकि हम
उपवास करते हैं,
इसका अर्थ यह नहीं है कि हम जितना मन
चाहे उतना उसे पियें। यहाँ तक की व्रत वाले दिन ताज़ा फलों का रस भी ज्यादा
नहीं पीना चाहिए इसका कारण यह है की फलों के रस में बहुत अधिक मात्र में
चीनी होती है और यही नहीं फलों के रस में फायदेमंद फाइबर,
और एंटी-ऑक्सीडेंट की कमी भी होती है।
न सिर्फ फलों के रस मधुमेह के जोखिम को
बढ़ाते हैं, यह बच्चों में मोटापे
की समस्या को भी जन्म देते है। यह रस
खून में शुगर की मात्रा को भी बढ़ाते है। इसके अलावा, ये रस आपका पेट भर नहीं पाते क्यूंकि इनमे फाइबर की
कमी होती है। तो, अच्छा यही है की आप पुरे फल को साबुत खाएं,
इसके इलावा आप हरी
सब्जी के रस को पी सकते हैं क्योंकि
उनमे चीनी की मात्रा कम होती है और आपके रक्त शर्करा के स्तर को भी परेशान नहीं करते।
तले हुए
नाश्ता आपको एक दिन के लिए आवश्यक सभी
कैलोरी दे सकता है। लेकिन उपवास का उद्देश्य शरीर के अन्दर की सारी गन्दगी को साफ़ करना
होता है न की गन्दगी बढाना। जिस हाइड्रोजनीकृत तेल में इन स्नैक्स को
बनाया जाता है उससे कई बीमारियाँ जैसे दमा,
धमनियों में रूकावट और मधुमेह हो
सकती है । इसलिए, व्रत वाले दिन
तली हुई पूरियों के स्थान पर रोटी आलू
या सीताफल की सब्जी के साथ खाएं।
चीनी चाहे सफेद हो या भूरे रंग की उसमे पोषण की मात्रा
शुन्य है। चीनी न सिर्फ आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करती है बल्कि यह
आपके पेट के स्वस्थ्य को भी ख़राब करती है। इन नवरात्रों में चीनी का त्याग
करें और आप निश्चित रूप से उत्साहित और स्वस्थ महसूस करेंगे। गुड़ या
नारियल के चीनी का इस्तेमाल करके अपनी साबूदाने की खीर को ज़ायकेदार
बनाये। पारंपरिक गुड़ में सेलेनियम, जिंक, और लोहा होता है और यह शरीर से गंदे पदार्थों को बाहर निकालता है। साथ ही, आप प्राकृतिक रूप से मीठे फलों को खा सकते है।
नवरात्रि के
दौरान सुपर बाजारों में व्रत के नमकीन और तरह-तरह के जंक फ़ूड उपलब्ध होते
हैं। हलाकि यह दावा किया जाता है की यह स्वस्थ के लिए अच्छे हैं, लेकिन
यीह प्रचार सही नहीं है। पैकेज्ड खाने में सोडियम, चीनी
और हानिकारक तेलों का इस्तेमाल होता है। यही नहीं जिन रसायनों से ऐसे खाने के इस्तेमाल की
उम्र बढाई जाती है वह सेहत के लिए हानिकारक होते है। आज कल लगभग 3000 से अधिक
खाद्य योजको और रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कंजक पूजा: नवरात्रि के अष्टमी या नौवीं (आठवीं या नौवें
दिन) पर की जाता है। देवी को आभार देने का यह एक और तरीका है।
कुमारी पूजा या कंजक को देवी महाकाली द्वारा दानव कलासुरा के वध के उपलक्ष
में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कलासुरा ने स्वर्ग और पृथ्वी दोनों
को परेशान करना शुरू कर दिया था और कोई भी उसे पराजित नहीं कर पा रहा था।
कलासुरा को रोकने के प्रयास में, अन्य देवताओं ने देवी महाकाली से संपर्क किया था
जिन्होंने देवी दुर्गा के रूप में पुनर्जन्म लिया था। देवी ने
एक छोटी लड़की का रूप ले लिया और कलासुरा से संपर्क किया।
कलासुरा ने जब यह देखा की एक
छोटी सी लड़की उसको चुनोती दे रही है तो वह लापरवाह हो गया और उसने यह सोचा की वह बड़ी
असानी से उस कन्या को पराजित कर देगा। उस समय पर, देवी महाकाली ने अपनी तलवार
को निकाला और उसे मार दिया। एक अन्य कथा से पता
चलता है कि एक युवा लड़की (कन्या / कुंवारी) की पूजा की जाती है क्योंकि वह उसका सबसे शुभ स्वरूप
है बाद में, वह एक पत्नी और माता (पार्वती, लक्ष्मी) की भूमिका, अपने बच्चों (सरस्वती) की शिक्षक की भूमिका और सभी बाधाओं (दुर्गा) के विनाश की
भूमिका ग्रहण कर लेती है।
दुर्गा
सप्त्शालोकी माँ दुर्गा के 7 रूपों का परिचायक है जैसे की माँ महाकाली माँ सरस्वती माँ महालक्ष्मी और माँ जगदम्बा। दुर्गा सप्त्शालोकी
माँ दुर्गा की सभी दानवों पर विजय को दर्शाता है। यह मान्यता है
की माँ दुर्गा ने दुर्गा सप्त्शालोकी का पाठ भगवान शिव को सुनाया था। एक बार
भगवान शिव ने माँ दुर्गा से पूछा की उनके भक्त ऐसा क्या करें की वह अपने
जीवन में हमेशा सफलता पायें। माँ दुर्गा ने सुखमय शांत और सफल जीवन जीने
के लिए दुर्गा सप्त्शालोकी के बारे में बताया। दुर्गा सप्त्शालोकी पाठ को
चंडी पाठ की जगह भी पड़ा जा सकता है।
परंपरा
कहती हैं कि घर की महिला 9 लड़कियों का स्वागत उनके पैरों को धो
कर और उनकी कलायिओं पर मोली या लाल धागा बांध कर करती है। इन लड़कियां को
एक पंक्ति में बैठाया जाता है और उपहारों के साथ हलवा, पूरी
और छोले (जिसे 'भोग' भी कहा जाता है) दिए जाते है। इन छोटी लड़कियों को देवी दुर्गा के
अवतार के रूप में देखा जाता है। कंजक पूजा आरम्भ करने से पहले कुछ वस्तुओं
का होना आवश्यक है। उन वस्तुओं की सूचि इस प्रकार है: कलश (पिचर), आम
के पत्ते, नारियल, रौली (कुमकुम), हल्दी, लाल पवित्र धागा, चावल, पान के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलायची, फूल, बेल पत्ते, मिठाई और दीपक। कलश को ऊपर तक पानी से भरें। कलश के मुंह पर आम के पत्ते को रखें। कलश की गर्दन पर पवित्र
धागा बांधें कलश के पास देवी दुर्गा की मूर्ति को रखें और उनकी हल्दी, कुमकुम, फूल, चावल, बेल
पत्तियों आदि से पूजा करें।
लड़कियों के आने के बाद,
उनके पैरों को धोने के लिए पानी को
तैयार रखें। लड़कियों के पेरों को पानी से धोएं। कंजकों की
उसी तरह से पूजा करें जिस तरह से आपने देवी दुर्गा की मूर्ति की पूजा की
है। हल्दी, कुमकुम, चावल आदि को कंजकों पर लगायें। लड़कियों के सामने एक दीपक
और धूप जलाएं। कंजकों को दियी जाने वाला भोजन शाकाहारी होना चाहिए और उसे
घी पकाना चाहिए। आम तौर पर कंजकों को पूरी,
काला चना,
आलू की सबजी और हलवा खिलाया जाता है।
लड़कियों को खिलाने के बाद,
उन्हें उपहार दें उपहार में एक चुनरी,
चूड़ी,
कुमकुम,
हल्दी,
मिठाई और पैसे शामिल होना चाहिए।
नौ दिनों के पूजा खत्म हो जाने के बाद, दसवीं दिन पर दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। दसवें दिन, नहा-धो कर पूजा स्थान पर बैठें। माँ दुर्गा की मूर्ति को चोव्की से उठा कर उस
स्थान पर रखें जहाँ पर वह स्थाई रूप से रखी जाती है। चोव्की पर रखे चढ़ावे को
इकठा कर के उसे प्रसाद के रूप में लोगों में बाँट दें। चावल के दानो
को पक्षियों में बाँट दें। कलश में रखे गंगा जल को अपने परिवार के सदस्यों
और पूरे घर में छिड़क दें।
सिक्कों को बाहर निकालें और उन्हें अपने दूसरे पैसे
के साथ रखें। आम तौर पर मिट्टी के बर्तन में जौ के विकास पर निगरानी
राखी जाती है। जौ के बीज को शकमभारी देवी माता के सम्मान में लगाया जाता
है (जो दुर्गा पाठ के 11 वें अध्याय में वर्णित है और जो माँ दुर्गा की ही एक
रूप हैं)। माँ शकमभारी देवी पोषण की माता हैं। यदि जौ के बीज बढ़ते
हैं और प्रचुर मात्रा में ताजे हरे रंग में उगते हैं,
तो यह एक निश्चित संकेत है कि आपके
परिवार को समृद्धि और खुशी का आशीर्वाद मिलेगा। कुछ अंकुरित
जौ माता दुर्गा को अर्पण करें।
श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार कुछ विशेष बातें निम्न
हैं:
यदि
श्रद्धालु नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सके तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा कर वह
सभी फल प्राप्त कर सकता है। अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना
कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है। कई लोग नवरात्र के प्रथम
दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य
है। नवरात्र व्रत देवी पूजन, हवन, कुमारी
पूजन और गरीब, असहाय
अथवा ब्राह्मण (दुकानदारी नहीं ब्रह्म ज्ञानी)। सर्वोत्तम है किसी संत के आश्रम
में भोजन साम्रगी का दान,
से ही पूरा होता है।
नवरात्रि में हर एक दिन
चंद्रघंटा, कुंष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी
और
सिद्धिदात्री
देवी की पूजा होगी। इन नौ देवियों की पूजा इनके रुप और
गुणों के अनुसार हर दिन अलग मंत्र और सामग्री से भी की जा सकती है। इनका
प्रसाद हर दिन अलग होता है। नवरात्रि में इस तरह हर दिन पूजा करने से मां दुर्गा
प्रसन्न होती हैं। जिससे हर तरह के दुख दूर हो जाते हैं।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।
धन्यवाद!