बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
मो. 09969680093
ई - मेल: vipkavi@gmail.com वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com, फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet
मित्रो एक प्रश्न है कि क्या हम अलग अलग बीज मंत्रो को मिला सकते है? और अगर यदि मिला सकते है तो कौन कौन सा बीज मंत्र है जिसको हम एक साथ जप सकते है।
बीज मंत्रो की ऊर्जा अनन्त है और रहस्यो से भरी है। परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो या फिर मनुष्य योनी। बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है। बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है। हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है। सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है। हिन्दू धरम में सबसे बड़ा बीज मंत्र ” ॐ ” है। अन्य शब्दों में बीज मंत्र किसी भी वैदिक मंत्र का वह लघु रूप है जिसे मंत्र के साथ प्रयोग करने पर वह उत्प्रेरक का कार्य करता है। | बीज मंत्रोंको सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है।
बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है |
बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है :- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं , ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है। उपरोत्क सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है। अब यह प्रमाणित हो चुका है कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान की अनेक नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं। अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान क्रियाशील रहते हैं। मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं जिन्हें 'धी' ऊर्जा कहते हैं। जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है।
आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है। मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है तथा मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है। मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है। मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है। रोग निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है। मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है। शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है। मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं। मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं
ह्रीं बीज मंत्र: ह्रीं माया बीज है जिसमे की ह से शिव , र से प्रकृति , ईकार से महामाया , नाद से विश्वमाता , बिंदु से दुख हर्ता। अतः इस बीज मंत्र का ऊर्जा विचार और आह्वान हुआ कि हे शिव युक्त प्रकृति रूप में महामाया मेरे दुख का हरण कीजिये।
श्रीं बीज मंत्र: यह महालक्ष्मी का बीज मंत्र है। यह सौम्य ऊर्जा से सम्बंधित है । इसमें श से महालक्ष्मी र से धन ऐशवर्य ईकार से तुष्टि और बिंदु से दुखहरन की ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह बीज मंत्र सिर्फ यही तक सीमित नही है अपितु हमारे लिए एक अत्यंत रहस्यमयी महाविद्या श्री विद्या के द्वार तक ले जाता है ।
ह्रौं बीज मंत्र: यह शिव बीज है इसमें ह से शिव का आहवान होता है औ से सदाशिव जो कि शिव का अत्यंत शक्तिशाली रूप है।और अनुस्वार है दुख हरण । यह बीज मंत्र जितना सामान्य लिखने में है। वास्तव में उतना ही ऊर्जा क्षमता और रेहजयो से भरा भी है। यह बीज मंत्र हमारे लिए बहुत ही उच्च विद्या महामृत्युंजय विद्या के द्वार खोलता है जिसे कहा जाता है मृत संजीवनी महामृत्युंजय विद्या। वह विद्या जिसका अंश भी यदि प्राप्त हो जाये तो साधक को किसी भी तरह की समस्या से ऊपर ऊथकर किसी भी प्रकार की मृत स्थिति चाहे वह रिश्ता हो या जीवन की कोई और स्थिति, को पुनः स्थापित करने का सामर्थ्य देता है।
भं बीज मंत्र: भं बीज भैरव बीज है। भ से भैरव और अनुस्वार से दुख हरण। इसकी ऊर्जा उग्र है और तँत्र में इसका बहुत प्रयोग भी होता है।
क्रीं बीज मंत्र:यह बीज काली बीज है। इस बीज मंत्र में क से काली र से ब्रह्म ईकार से महामाया आदिशक्ति और बिंदु से दुखहरन अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ ब्रह्मशक्ति सम्पन्न महामाया काली मेरे दुखो के हरण करें। यह बीज मंत्र अत्यंत ही उग्र ऊर्जा से भरा है इसके प्रयोग भी बहुत है बहुत से मानसिक विकारों को पूर्ण रूपेण डोर करने की क्षमता है इस बीज में। और तँत्र में तो यह बहुत ही उच्च स्थान रखता है। मारण कर्म तक इससे सम्पन्न किये जाते है।
ऐं बीज मंत्र:यह सरस्वती बीज मंत्र है। इसमे ए से सरस्वती का आह्वान होता है और अनुस्वार दुख हरण है। इस बीज मंत्र सृष्टी ज्ञान को समाहित किए हुए है।
क्लीं बीज मंत्र: यह कामदेव बीज है।और वशीकरण सम्मोहन और अनन्त सौंदर्य भोग और उच्चता स्वयम में लिए हुए है। इसमे क से कामदेव ल से इंद्र ईकार से तुष्टि और अनुस्वार सुख दाता है।
गं बीज मंत्र:यह गणेश बीज है इसमे ग से गणपति और बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।
हुम् बीज मंत्र: यह अत्यंत शक्ति शाली अत्यंत ही उग्र प्रभावी बीज है। क्रीम की तरह ही इसका प्रयोग भी तँत्र कर्मो में बहुत होता है और मानसिक विकार दूर करने के लिए भी प्रयोग होता है। ह से शिव उ से भैरव और अनुस्वार से दुखहर्ता का आह्वान होता है।
ग्लौं बीज मंत्र: यह भी गणेश बीज है और अत्यंत प्रभावी भी। इसमें ग से गणेश ल से सृष्टी औ से तेज ओज और ऊर्जा बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।
स्त्रीं बीज मंत्र: स्त्रीं बीज मंत्र को माँ तारा का बीज मंत्र भी कहा जाता है और इसका प्रयोग कई अन्य प्रयोगों में भी होता है। यह उग्र और सौम्य दोनो प्रकार से प्रयोग होता है। इसका अर्थ है स से मा दुर्गा का आह्वान त से तारन शक्ति र से मोक्ष या मुक्ति और ईकार से महामाया आदिशक्ति का आह्वान होता है और अनुस्वार दुखहरन। अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ है माँ दुर्गा तारिणी रूप में अर्थात माँ तारा के रूप में आदिशक्ति की शक्ति से मेरे कष्टों से मुक्ति हो। और मेरे दुखो का हरण हो। यह मन्त्र तँत्र प्रयोगों में कष्ट मुक्ति के लिए अत्यधिक प्रयोग होता है।
क्ष्रौं बीज मंत्र:यह नरसिंह बीज है वे नृसिंह जो कि विष्णु का उग्र रूप है अतः इसकी ऊर्जा भी अत्यंत शीघ्र प्रभावी है और उग्र प्रभावी है। सौम्य हृदय वालो को बिना गुरु कृपा के उग्र प्रभावी प्रयोग नही करने चाहिए। इस बीज में क्ष से नृसिंह भगवान र से ब्रह्मशक्ति औ से शक्तिशाली और उर्ध्वकेशी भयानक रूप और बिंदु से दुखहरण का आह्वान है। अर्थ हुआ नरसिंह भगवान जो कि उर्ध्वकेशी और उग्र रूप वाले है वे ब्रह्मशक्ति से युक्त हो मेरे दुखो का नाश करे। सामान्य साधक को इस बीज मंत्र के जाप से दूर रहना चाहिए।
शं बीज मंत्र : यह शंकर बीज है श से शिव के शंकर रूप और बिंदु से दुखहरन का आह्वान होता है|
फ्रॉम बीज मंत्र: यह बीज मंत्र कलयुग के प्रत्यक्ष देवता भगवान हनुमान का बीज मंत्र है। इस मंत्र को उनकी कृपा प्राप्ति के लिए ध्यान किया जाता है। परन्तु इसकी विधियां अत्यंत गोपनीय है अतः गुरु कृपा से ही प्राप्त कर के जाप करे।
क्रोम बीज मंत्र : यह भी काली बीज ही है इसमें क काली र ब्रह्म और औ से भैरव रूपी शिव और बिंदु से दुखहरण शक्ति का आह्वान होता है यह मन्त्र बहुत ही ज़्यादा उग्र प्रभावी है अतः इसे तुच्छ कामनाओ या फिर किसी के नुकसान के लिए दुरुपयोग नही करना चाहिए और उत्कीलन कर के शुद्ध विचारो से कष्ट मुक्ति के लिए गुरु कृपा से ही प्रयोग करना चाहिए अन्यथा अर्थ के साथ साथ अनर्थ की भी संभावना प्रबल होती है दुरूपयोगो में।
दं बीज मंत्र: यह भी अत्यंत गोपनीय और रहस्यमयी बीज मंत्रो में से एक है अतः इसके बारे में गुरु ही शिष्य को बताने का अधिकारी है।
हं बीज मंत्र: यह आकाश बीज है । हमारे पंचतत्वों में से आकाशतत्व का शक्ति रूप है। इस बीज को हनुमान जी के मंत्रो में भी प्रयोग किया जाता है और अकेले भी। इसको कई बीमारियो के इलाज मानसिक विकारों के इलाज डर भय आदि के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है।
यं बीज मंत्र: यह अग्नि बीज है। अभी प्रकार की अग्नि के आह्वान के लिए इस बीज का प्रयोग मान्य है । जैसे कि कालाग्नि, जठराग्नि इत्यादि।
रं बीज मंत्र: यह जल बीज है।
लं बीज मंत्र: यह पृथ्वी बीज है।
भ्रं बीज मंत्र: यह भैरव बीज है।
सृष्टि-देवी माँ के बीज मंत्रो से उपचार!
खं*– हार्ट-टैक कभी नही होता है | उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), निम्न रक्तचाप (लो बी.पी.) कभी नही होता | * ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है।
बीज मंत्रो से उपचार! * कां, * गुं, * शं
कां*– पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आंतों की सूजन में लाभकारी। *गुं*– मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी।
*शं*– वाणी दोष, स्वप्न दोष, महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार औेर हर्निया आदि रोगों में उपयोगी।
बीज मंत्रो से उपचार! * घं, * ढं
घं* – काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के दुष्प्रभाव के कारण जनित रोग-विकार को शांत करने में सहायक।
ढं*– मानसिक शांति देने में सहायक। अप्राकृतिक विपदाओं जैसे मारण, स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी।
बीज मंत्रो से उपचार! * पं, * बं, * यं, * रं
पं*– फेफड़ों के रोग जैसे टी.बी., अस्थमा, श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी।
बं*– शूगर, वमन, कफ, विकार, जोडों के दर्द आदि में सहायक।
यं*– बच्चों के चंचल मन के एकाग्र करने में अत्यत सहायक।
रं* – उदर विकार, शरीर में पित्त जनित रोग, ज्वर आदि में उपयोगी।
बीज मंत्रो से उपचार! * लं, * मं, * घं, * एं
लं*– महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म, उनके अनेक गुप्त रोग तथा विशेष रूप से आलस्य को दूर करने में उपयोगी।
मं*– महिलाओं में स्तन सम्बन्धी विकारों में सहायक।
धं* – तनाव से मुक्ति के लिए मानसिक संत्रास दूर करने में उपयोगी ।
ऐं*– वात नाशक, रक्त चाप, रक्त में कोलेस्ट्राॅल, मूर्छा आदि असाध्य रोगों में सहायक।
बीज मंत्रो से उपचार! * द्वान्, * ह्रीं, * एं, * वं, * शुं
द्वां*– कान के समस्त रोगों में सहायक।
ह्रीं*– कफ विकार जनित रोगों में सहायक।
ऐं*– पित्त जनित रोगों में उपयोगी।
वं*– वात जनित रोगों में उपयोगी।
शुं*– आंतों के विकार तथा पेट संबंधी अनेक रोगों में सहायक।
बीज मंत्रो से उपचार! * हुं, * अं, *
हुं*– यह बीज एक प्रबल एन्टीबॉयटिक सिद्ध होता है। गाल ब्लैडर, अपच, लिकोरिया आदि रोगों में उपयोगी।
अं* – पथरी, बच्चों के कमजोर मसाने, पेट की जलन, मानसिक शान्ति आदि में सहायक इस बीज का सतत जप करने से शरीर में शक्ति का संचार उत्पन्न होता है।
सावधानियां...
बीज मंत्रों से अनेक रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण करने की है। पौराणिक, वेद, शाबर आदि मंत्रों में बीज मंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं उठते-बैठते, सोते-जागते उस मंत्र का सतत् शुद्ध उच्चारण करते रहें। आपको चमत्कारिक रुप से अपने अन्दर अन्तर दिखाई देने लगेगा। यह बात सदैव ध्यान रखें कि बीज मंत्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को एक निश्चित लय और ताल से करने में है। बीज मंत्र में सर्वाधिक महत्व उसके बिन्दु में है और यह ज्ञान केवल वैदिक व्याकरण के सघन ज्ञान द्वारा ही संभव है। आप स्वयं देखें कि एक बिन्दु के तीन अलग-2 उच्चारण हैं। गंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है। गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है। गंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है। अर्थात इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्चारण हो रहा है।
सावधानियां...
कौमुदी सिद्धांत के अनुसार वैदिक व्याकरण को तीन सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है-:
1 - मोनुस्वारः
2 - यरोनुनासिकेनुनासिको तथा
3- अनुस्वारस्य ययि पर सवर्णे।
बीज मंत्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अन्तर को स्पष्ट किए बिना शुद्ध जाप असम्भव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता। इसलिए सर्वप्रथम किसी बौद्धिक व्यक्ति से अपने अनुकूल मंत्र को समय-परख कर उसका विशुद्ध उच्चारण अवश्य जान लें। अपने अनुरूप चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते-फिरते उठते-बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इसका उद्देश्य केवल शुद्ध उच्चारण एक निश्चित ताल और लय से नाड़ियों में स्पदन करके स्फोट उत्पन्न करना है।
नौ देवियाँ हमारी सर्व रोग रक्षक!
भय दूर करने बाली शैलपुत्री ।
स्मरण शक्ति बढ़ाने बाली ब्रह्मचारिणी ।
हृदय रोग देवी चंद्रघंटा।
रक्त शोधन देवी कुष्माण्डा।
कफ रोग-नाशक देवी स्कंदमाता।
कंठ रोग- शमन देवी कात्यायनी।
मस्तिष्क विकार-नाशक देवी कालरात्रि।
रक्त शोधक देवी महागौरी।
बलबुद्धि बढ़ाने बाली देवी सिद्धिदात्री।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। जो सिर्फ़
सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुछ लेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।